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वज
सिनेह
तृष्णा
नग्न
हिलाद (४) ऐसे संयुक्त व्यंजनों में, जिनमें एक र् हो
वजिर (५) सानुनासिक संयुक्त व्यंजनों में, स्नेह
तसिणा निम्नलिखित अपवाद भी हैं, कृष्ण
कण्ह
नग्ग (आ) अ का आगमन,
प्रायः ऐसे संयुक्त व्यंजनों के मध्य में होता है, जिनके पूर्व और पश्चात् अ स्वर हो गर्दा
गरहा गर्हति
गरहति (इ) उ का आगमन
प्रायः म् और व् से पूर्व होता है ऊष्मन्
उसुमा सूक्ष्म
सुखुम
दुवे छन्दांऔर समास के कारण स्वरों के मात्राकाल में परिवर्तन (अ) छन्द की आवश्यकता के कारण
(१) कहीं-कहीं ह्रस्व स्वर का दीर्घ कर दिया जाता है, जैसे 'नदति' की जगह गाथा में लय को ठीक करने के लिये 'सी हो व नदती वने' में कर दिया गया है। 'सतिमती' से 'सतीमती' 'तुरियं' से 'तूरियं' आदि परिवर्तन भी इसी प्रकार कर दिये जाते हैं।
(२) कहीं-कहीं दीर्घ स्वर को ह्रस्व कर दिया जाता है, जैसे 'भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे' । यहाँ 'व' की जगह 'वा' होना चाहिये था। किन्तु छन्द की गति के लिये उसे ह्रस्व कर दिया गया है । इसी प्रकार ‘पच्चनीका' से 'पच्चनिका' जैसे प्रयोग भी छन्द में कर दिये जाते हैं।