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( ५० ) आचार्य
आचरिय-आचेर मात्सर्य
मच्छर स्थविर
थेर (६) प्राकृतों के समान पालि में भी कहीं-कहीं उप और अप उपसर्ग क्रमशः उव और अव स्वरूपों में होकर ऊ और ओ हो जाते हैं। उपहदति
उहादेति अपवरक
ओवरक अपत्रप
ओत्तप्प (७) कहीं-कहीं अनियमित अक्षर-संकोच भी दिखाई पड़ते हैं। मयूर
मोर (मयूर ___ स्वरभक्ति के कारण स्वरागम पालि में स्वरागम अधिकतर शब्द के मध्य में होता है। स्त्री से इत्थी; स्मयते से उम्हयति, उम्हयते जैसे शब्द अपवाद हैं। शब्द के मध्य में स्थित केवल उन्हीं संयुक्त व्यंजनों के बीच में स्वर का आगमन होता है, जिनमें य, र, ल, व्, में से कोई एक व्यंजन हो या जो सानुनासिक हो। 'कष्ट' जैसे शब्द का 'कसट' रूप होना एक अपवाद है। यह पालि में पाया जाने वाला पैशाची प्राकृत का प्रयोग है। इसकी व्याख्या हम पहले कर चुके हैं। पालि में पाये जाने वाले कुछ स्वरागम इस प्रकार हैं(अ) इ का आगमन, जो पालि में अधिकता से होता है । (१) संयुक्त व्यंजन 'य' में ईर्यते
इरियति मर्यादा
मरियादा (२) ऐसे संयुक्त-व्यंजनों में, जिनमें एक य हो कालुष्य
कालुसिय ज्या
जिया ह्यः
(अर्द्धमागधी हिज्जो) (३) ऐसे संयुक्त-व्यंजनों में, जिनमें एक ल हो
पिलक्खु
हिय्यो
प्लक्ष