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मुनि सभाध एवं उनका पंगपुराण
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उसने पहिले अपने ननिहाल के राजा महेन्द्र को मातंकित किया और अपनी सामध्य का परिचय दिया। मागे चल कर मुनियों की प्रग्नि घुझा कर रक्षा की। हनुमान मागे चले । संका सुन्दरी ने जब हनुमान को देखा तो लंका सुन्दरी उस पर मोहित हो गयी। उसने विवाह सूत्र में बंधना चाहा । हनुमान लंका के लिए प्रागे बढ़े मोर संफा में पहुंच गये। वहां सर्वप्रथम हनुमान ने विभीषण से मेंट की और सारी परिस्थिति समझायी । विभीषण ने रावण को समझाने का प्रयास किया लेकिन रावण कोधित होकर निम्न बात कही
कहा करेगा तपसी राम, मो जीत सके संग्राम ।
जीती है मैं सगली मही, मोकू किस का ही डर नहीं ।।३०५२।।
हनुमान वानर का रूप धारण कर सीता के पास पहुंच गया और अपने पापको राम का सेवक के रूप में प्रगट किया । सीता ने हनुमान से कितने ही प्रश्न किये । उनका सही उसर पाकर सीता को हनुमान पर विश्वास हो गया। इसके पश्चात् मन्दोदरी ने हनुमान को रावण की शक्ति के बारे में बतलाया । राम के सापसी जीवन के बारे में भी कहा लेकिन हनुमान ने सो निरुत्तर कर दिया । जब उसने मन्दोदरी की एक भी बात नहीं मानी तो उसने अपनी अन्य रानियों के साथ बुरी हालत करली पोर रावण के पास जाकर शिकायत की। रावण ने अपने सैनिकों से अनुमान को पकड़र लाने के लिए कहा लेकिन कोई भी हनुमान को नहीं पकड़ सका । पन्त में इन्द्रजीत हनुमान को नागपाश में बांष लाया मोर रावण के समक्ष उपस्थित किया । रावण को हनुमान द्वारा किये गये सभी कार्यों का ब्यौरा दिया। रावण ने क्रोधित होकर हनुमान को बहुत फटकारा और उसकी गरदन काटने की बात कही लेकिन उसकी एक नहीं चली। हनुमान ने मामावी विद्या के द्वारा सोने की लंका को भस्म कर दिया और फिर किष्किंधपुर नगर में वापिस प्रा गया।
हनुमान ने पाकर राम से पूरी कहानी कही । सीता की चिन्ता, रात दिन राम का स्मरण प्रादि सभी बातें सुनायी। राम को हनुमान की बात सुनकर गहरी चिन्ता हुई । राम के साथी सभी राजामों ने युद्ध में रावण को जीतने की बात कही। युव की तयारी होने लगी । सब विद्याधर राजा एकत्रित होने लगे । अन्त में प्रासोग सुदी पंचमी के दिन से सेना ने प्रयाण किया और हंस द्वीप जाकर विश्राम किया।
उपर रावण अपनी शक्ति में प्रधा बना हुमा पा । उसे अपनी विद्यामों पर गर्व या। राम लक्ष्मण को यह भूमिगोबरी कहता था। सोलह हजार मुकुटरद्ध राजा उसकी सेवा में तत्पर रहते थे । मेनिन योवानों ने रावण को सीता को लौटाने