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मुनि सभा एवं उनका पमपुराण
में उसे स्वीकार कर लिया । इसी बीच अनन्तवीर्य राजा ने अयोध्या पर प्राक्रमण कर दिया । भरत की रक्षा के लिए पृथ्वीधर ग्रादि राजा प्रा गये। दोनों में भयानक युद्ध हुमा। युद्ध के पश्चात् अनन्त वीर्य ने वैराग्य धारण कर लिया और तपस्या करने लगा।
वहां से सुलोचना नगर के वन में गये 1 खेमोजलपुर में विधाम किया। यहां जितपमा पर लक्ष्मण ने विजय प्राप्त की। उसके साथ विवाह कर लिया। उसे वहीं छोड़कर वे वंसस्थल नगर पहुंथे । वहां के वन में चार प्रजगर देवता के रूप में थे । इसी वन में देसभूषण कुलभूषण मुनि पर आये उपसर्ग को दूर किया। उन्हें वहीं कैवल्य हो गया । फिर वे रामगिरि पहुंचे। यहां दो चारण ऋद्धि घारी मासोपवामी मुनियों को माहार दिया । मार्ग और भी मुनियों के उपसर्ग दूर किये । मुनियों देख कर वृक्ष की डाल पर बैठे हुये गृख पक्षी को पूर्व भव का ज्ञान हो गया। उसने व्रत धारण कर लिया।
राम लक्ष्मण प्रागे चले । दंडक वन में उन्होंने रहने का निश्चय किया। दंडक वन की विशालता एवं सुन्दरता का कवि ने अच्छा वर्णन किया है 1 इसी बन में खरष्ट्रषण का पुत्र मंबुक सूरजहास खड्ग प्राप्ति के लिए घोर साधना कर रहा था। लक्ष्मण को खड्ग की गन्ध प्राने पर वह भी यहां चला गया । लक्ष्मण को सूरजहास सहज ही प्राप्त हो गया। जब उसने सरजवास के सामर्थ्य की परीक्षा लेना चाहा सो संबुक का सर कट गया जो १२ वर्ष से उमको प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रहा था। वहीं पर लक्ष्मण को देयोपनीत वस्त्रों की प्राप्ति हई । उपर खरदूषण की पत्नी एवं संयुक की माता चन्द्रनखा घोर बिलाप करती हुई लक्ष्मण के पास प्रायी । पहले उसने लक्ष्मण से विवाह करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिलने के कारण वह खरदूषण के पास चली गयी।
संबुक के मारे जाने से खरदूषण को बहुत दुख हुप्रा । उसने राम लक्ष्मण से युद्ध करना चाहा लेकिन अपने ही मंत्रियों द्वारा युद्ध की सलाह नहीं देने के कारण वह रावण के पास गया । रावण ने सीता का सौन्दर्य देख कर उसे उठा लाने की छान ली। करणमुप्ति विद्या द्वारा उपाय बतलाने पर रावण ने बारण द्वारा प्रकार कर दिया । शंखनाद किया जिसको सुनकर राम सीता को अकेली छोड़ कर लक्ष्मण की सहायतार्थ चले गये। इसी बीच रावण ने सोता का हरण कर लिया । और उसे पूष्पक विमान में बिठा कर लंका ले गया । सीता को जटायू पश्री ने बचाने का प्रयास किया लेकिन रावण ने पक्षी के परख काट कर उसे जमीन पर गिरा दिया । सीता का हृदय विदारक विलाप सुनकर रावण को भी दुःख हुमा । उसने निश्चय मिया कि जब तक सीता उसे स्वयं नही चाहेगी वह उसका स्पर्श नहीं करेगा । उधर