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ચુંમાલીસમું ] તપસ્વી હીરલા આ૦ જગચંદ્રસૂરિ
१२७ ફરમાન સાતમું
અહિંસાનું ફરમાન जोधपुरनिवासी मुनशी देवीप्रसादजीने इस फारसी फरमानका हिंदीमें इस तरह अनुवाद किया है
फरमान अकबर बादशाह गाजीका सूबे मुलतानके बडे बडे हाकिम, जागीरदार, करोडी और सब मुत्सद्दी (कर्मचारी) जान लें कि, हमारी यही मानसिक इच्छा है कि सारे मनुष्य
और जीवजंतुओंको सुख मिले, जिससे सब लोग अमन चैनमें रह कर परमात्माकी आराधनामें लगे रहें । इससे पहिले शुभ चिंतक तपस्वी जयचंद (जिनचंद्र)सूरि खरतर( गच्छ) हमारी सेवामें रहता था। जब उसकी भगवद्भक्ति प्रगट हुई तब हमने उसको अपनी बादशाहीकी महरबानियोंमें मिला दिया । उसने प्रार्थना की कि, “ इससे पहिले हीरविजयसूरिने सेवामें उपस्थित होनेका गौरव प्राप्त किया था, और हरसाल बारह दिन मांगे थे; जिनमें बादशाही मुल्कोंमें कोइ जीव मारा न जावे, और कोइ आदमी, किसी पक्षी, मछली और उन जैसे जीवोंको कष्ट न दें । उसको प्रार्थना स्वीकार हो गई थी। अब मैं भी आशा करता हूं कि एक सप्ताहका
और वैसा ही हुक्म इस शुभ चिंतक के वास्ते हो जाय" । इसलिये हमने अपनी आमदयासे हुक्म फरमा दिया कि आषाढ शुक्ल पक्षको नवमीसे पूर्णमासी तक सालमें कोई जीव मारा न जाय और न कोई आदमी किसी जानवरको सतावे । असल बात तो यह है कि जब परमेश्वरने आदमी के वास्ते भांति भांतिके पदार्थ उपजाये हैं, तब वह कभी किसी जानवरको दुःख न दे और अपने पेटको पशुओंका मरघट न बनावे । परंतु कुछ हेतु
ओंसे अगले बुद्धिमानोंने वैसी तजवीज की है । इन दिनों आचार्य 'जिनसिंह' उर्फ 'मानसिंह'ने अर्ज कराइ कि पहिले जो उपर लिखे अनुसार हुक्म हुआ था वह खो गया है, इसलिये हमने उस फरमानके अनुसार
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