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सुभासीस ] તપસ્વી હીરલા આ જગચ્ચંદ્રસૂરિ
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૧૪. બા॰ ફરૂખશેઅર :-( પરિચય માટે જૂએ પ્રક૦ ૪૪ પૃ૦ ૧૦૭)
રાજ્યકાળ :– હી. સ. ૧૧૨૪ જિલજ્જ તા. ૨૩ થી ૧૧૩૧ २०४०४१ ता. ८ सुधी, ता. १०-१-१७१३ थी ता. १७-२-१७१७ सुधी, વિ. સં. ૧૭૬૯ મહાવિદે ૧૦ થી ૧૭૭પ ક્ા. સુ. ૯ સુધી.
આ બાદશાહે જૈનાચાર્યું અને જૈનગૃહસ્થાને વિવિધ ફરમાના આપ્યાં હતાં.
३२भान नं. २४भु :
જૈનાચાર્ય ને બહુમાન કરવાનું ફરમાન ઃ—
મૂળ ફરમાન ઉર્દુ` લીપીમાં છે. તેમાં અક્ષરશ: નીચે પ્રમાણે समाणु छे:
'इस नेक घडी में यह फरमान जारी हुआ. जिसकी एनायत फर्श है, और इस पर यकीन करना झरुरी है. चुंकि साबिक तरीके पर बडी सल्तनके तख्तको बुलंद करनेवाले, और सबको वसी रियासत के अलम गाडनेवाले, तख्तशाही पर बैठनेवाले, सल्तनत के कवानी और बडाईकी हलीलको, मजबुत करनेवाले, सफाई और बरमुझीद के चमकदार मोती, हक्क पसंद हकीकतकी बुनियाद ज्यादा कानून और एकताई ( खुदा) को पहेचाननेवाले, बादशाह जमशेद जैसी इज्जत रखनेवाला, सरमाये ( Capital) का मालिका खूदाको देखनेवाला, सच्चाईसे वाकिफ हझरत ( खालीजील्ल ) ( फरुखशियर बादशाह ) ने
अनेक शकल सुह उपमान, विराजमान, इझझतकी मजलीसके झीना, परम सतगुरु, जगतगुरु, जगतश्रीपूज्य, स्वामीनाथ, जगत आचार्य, परमस्वरूप, धरमजगत, - चक्रवर्ती, ठारक भट्टारक इन्दरिसिंह महंत सिरिजी महाराज जैन बादशाह स्त्रीकार इस्तुतरंक बिराजमान श्री बाबाजी हश सेलजी और स्वामी साहब - भद्रजी देवसिरिचरण को
" जो बडा मरतबा और बुलंद पाया रखते है, अपने तर्फ बादशाहने शर्फ बारियाबी बक्षी (मुलाकात आपी ), और दुआ देते वख्त" ताझीम
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