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જૈન પરંપરાના છતહાસ—ભાગ ૩જો
[प्रश्
साष्टांग दंडवत बहु प्रणाम के साथ, जो तख्त खास पर दो आसन जमा कर, हझरत अर्दा अकदस्त ( फरुखशियर बादशाह ) के सामने बेठनेनी इझझत रखते है.
और तख्तखां छायादार छत्र छुल ( चामर) आफताबी ( लोटा ) .... और सोने चांदी की दस्ती (छडी) वगैरह ये तमाम शाही जुलुस बादशाही के तर्फ से नझरे नेयाश ( भेट ) दिया हुआ है. और ये इज्जत महेफूझ और जारी रख कर तमाम कौम हो नदि (हिंदु ) और मुसलमान वगैराह को ( हुकम दिया जाता है ) के " इझजतसे पेश आकर मजकुरके आगे नझर नेयाझ ( भेट ) दे और सतगुरु पूज्य समझें और ये मरतबा आयंदा मुकरर हो जाय.
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" चाहिये कि मुअझझद ( इज्जतवाळा ) शाहझादे साहेब, अख्तेदार वझीर, सल्तनत और खिलाफतके पाय तख्तके बलेद मरतबा उमरा जागीरदार, करोडगीर ( टोलटेक्स लेनेवाले ), मुक्काम ( हाकेम ), उग्माल ( आमील ), मुत्सद्दी, जो बादशाही कामके, अंजाम देनेवाले है.
सरकार दोलतमदार के तमाम महालत के झमींदार, रजवाडे, और खास आम तमाम मळलुक ( प्रजा ) हमेशा हमेशा इन्के हुकमों की तामील ( ताबेदारी) में अपती नेकबख्ती समझें "
'मझकुरको सतगुरु, पूज्य, हझरत, श्रीजी, जानकर साष्टांग दंडवत बहु प्रणाम करें, और साल बसाल हर फसल में हर जगह एक रुपया एक नारियल भेंट चढावें. और मझहवी कानूनमें इनकी पैरवीसे बहार न जाय और तमाम कौमके लोक अपना गुरु समझें. "
और जो कोई इस मामलेमें जरा भी फर्क करेगा वो दीनके खिलाफ
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होगा.
“ खास कर तमाम बक्काल और जैन लोग इनकी तरफ तबज्जुह करके, ' अपने मझहब पर रह कर ' इनकी खिदमत करने को सच्ची इबादत जाने. "
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