Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: स्वरूप और प्रकार] [11 3. से कि तं अजीवाभिगमे ? अजीवाभिगमे विहे पण्णतेतं जहा--१ रूवि-अजीवाभिगमे य 2 अरूवि-अजीवाभिगमे य / [3] अजीवाभिगम क्या है ? अजीवाभिगम दो प्रकार का कहा गया हैवह इस प्रकार-१ रूपी-अजीवाभिगम और 2 अरूपी अजीवाभिगम / 4. से कि त अरूवि-अजीवाभिगमे ? अरूवि-अजीवाभिगमे बसविहे पण्णत्ते--- तं जहा-धम्मत्थिकाए एवं जहा पण्णवणाए' जाव (अद्धासमए), से तं प्रवि-अजीवाभिगमे। [4] अरूपी-अजीवाभिगम क्या है ? अरूपी-अजीवाभिगम दस प्रकार का कहा गया हैजैसे कि-१ धर्मास्तिकाय से लेकर 10 अद्धासमय पर्यन्त जैसा कि प्रज्ञापनासूत्र में कहा गया है / यह अरूपी-अजीवाभिगम का वर्णन हुआ। 5. से कि तं रूवि-अजीवाभिगमे ? रूवि-अजीवाभिगमे चउम्विहे पण्णत्तेतं जहा-खंधा, खंधदेसा, खंघप्पएसा, परमाणुपोग्गला / ते समासतो पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया एवं जहा पण्णवणाए' (जाव लक्ख फास-परिणया वि) / से तं रूवि-अजीवाभिगमे; से तं अजीवाभिगमे / [5] रूपी-अजीवाभिगम क्या है ? रूपी-अजीवाभिगम चार प्रकार का कहा गया हैवह इस प्रकार–स्कंध, स्कंध का देश, स्कंध का प्रदेश और परमाणुपुद्गल / वे संक्षेप से पांच प्रकार के कहे गये हैंजैसा कि-१ वर्णपरिणत, 2 गंधपरिणत, 3 रसपरिणत, 4 स्पर्शपरिणत और 5 संस्थान / इस प्रकार जैसा प्रज्ञापना में कहा गया है वैसा कथन यहाँ भी समझना चाहिए। यह रूपीअजीव का कथन हुआ। इसके साथ ही अजीवाभिगम का कथन भी पूर्ण हुआ। विवेचन–प्रस्तुत सूत्रों में जिज्ञासु प्रश्नकार ने प्रश्न किये हैं और गुरु-प्राचार्य ने उनके उत्तर दिये हैं / इससे यह ज्ञापित किया गया है कि यदि मध्यस्थ, बुद्धिमान और तत्त्वजिज्ञासु प्रश्नकर्ता प्रश्न करे तो ही उसके समाधान हेतु भगवान् तीर्थकर द्वारा उपदिष्ट तत्त्व की प्ररूपणा करनी चाहिए, अन्य अजिज्ञासुनों के समक्ष नहीं। 1. प्रज्ञापनासूत्र 5 2. प्रज्ञापनासूत्र 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org