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व्रणशोथ या शोफ
२१ पक्कावस्था है। इसी काल में पूयनिहरण के लिए शस्त्रकर्म ( operation ) का विधान शास्त्र करता है।
व्रणशोथ के पक्कापक्क के ज्ञान के विषय में वैद्य को पूर्णतः सजग रहना चाहिए जो इनको नहीं समझता उसे तस्कर तथा जो विना समझे ही चीर देता है उसे चाण्डाल की पदवी से शास्त्र ने विभूषित किया है:____ आमं विपच्यमानं च सम्यक पक्कं च यो भिषक । जानीयात् स भवेत् वैद्यः शेषास्तस्करवृत्तयः॥ तथा-यश्छिनत्त्याममशानायश्च पक्कमुपेक्षते । श्वपचाविव मन्तव्यौ तावनिश्चितकारिणौ ॥
अतिपाक अष्टाङ्गहृदयकार ने अतिपक्क शोफ का वर्णन करते हुए लिखा है:पाकेऽतिवृत्ते सुषिरस्तनुत्वग्दोषभक्षितः । वलीभिराचितः श्यावः शीर्यमाणतनूरुहः ।
जब पाक अतिक्रान्त कर जाता है तो त्वचा पतली पड़ जाती है त्वचा से व्रण शोथाधिष्ठान तक सब भाग सुषिर (पोला ) हो जाता है और पूय द्वारा भक्षित हो जाता है, त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, वह स्थान काला हो जाता है और वहां के रोम गिर जाते हैं।
रक्तपाक रक्त पाक के नाम से जिस पाक का उसी ग्रन्थकार ने वर्णन किया है वह इस प्रकार है:
कफजेषु तु शोफेषु गम्भीरं पाकमत्यसक् । पक्कलिङ्गं ततोऽस्पष्टं यत्र स्यात्छीतशोफता ॥ त्वक्सावये रुजोऽल्पत्वं धनस्पर्शत्वमश्मवत् । रक्तपाकमिति ब्रूयात्तं प्राज्ञो मुक्तसंशयः॥
(अ. हृ. सू. २९-८, ९) अर्थात् कफज शोथों में गम्भीर स्थानों में यद्यपि रक्त का पाक हो जाता है पर पक्कावस्था के लक्षण अस्पष्ट होते हैं। शीतशोफता त्वग्सवर्णता अल्पशूल पत्थर के समान कठिन स्पर्श आदि आमावस्था के लक्षण मिलने पर भी यह पाक हो जाता है और इसे रक्तपाक कहते हैं।
व्रणशोथ के कारण क्षेत्रीय परिवर्तन ___ व्रणशोथ के केन्द्रविन्दु पर विष का सर्वाधिक प्रभाव देखा जाता है । इस कारण ऊति के इस केन्द्रस्थ भाग की मृत्यु सबसे अधिक होती है। उति का यह क्षतिग्रस्त भाग मृतप्राय होकर समीपस्थ स्वस्थ भाग से पृथक हो जाता है तथा उसका कुछ अंश स्वपाचित हो जाता है। जब विधि ( abscess ) फूटती है तो यह ऊति का नष्ट अंश जिसे निर्मोक ( slough ) कहते हैं बाहर निकल जाता है। इस केन्द्रिय विनष्ट भाग के चारों ओर ऊति के वे कोशा होते हैं जो नष्टप्राय होने की तैयारी कर रहे होते हैं। यहां पर मेघाभ शोफ (cloudy swelling) तथा स्नैहिक विहास (fatty degeneration) प्रायशः देखा जाता है। इस क्षेत्र में कुछ कोशा मर जाते हैं तथा कुछ पुनः सजीव हो उठते हैं। इस क्षेत्र के बाहर का जो भाग होता है उसमें व्रणशोथ
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