Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
ME नमो नमो निम्मलदसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरुभ्यो नमः
(भाग
सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि ।
आगम - ४० "आवश्यक नियुक्ति एवं चूर्णि: [३]
आजमा आजम मूल संशोधक :- पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब
अभिनव-संकलनकर्ता :- आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि]
पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, पालडी, अमदावाद
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता
सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद ।
श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर
वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद सूरीश्वरजी महाराज साहेब
करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म. ही है |
इस संघमें पूज्य साधू-भगवंत एवं साध्वी-महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर-साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म. की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है।
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम आज : आजम आजम
आजम
SIMINE
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि
मूल संशोधक
आगन आजम
STIT SPLOTER
37077
腿
अभिनव संकलनकर्ता
(3)
STROTH
आगम
BIDDE
आगर
आजम
भागम
पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य
आगम दिवाकर मुनिश्री दीपत्नसागरजी श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज आगम (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] आगम
आवास
प्रत- प्राप्ति और पेज- सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855 / 9825306275
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
si
, ਬਸ ਬਸ ਬਸ ਹਰ
ਸਰੀਰ
ਨੂੰ ਹਰ ਸਾਲ ਹੀ
ਗੁ
ਰ
ਗਈ
आगम
S
ਨਾ ਤਾ
ਸਗਲ
ਰੋਸਾਕ ਕਰ ਕਰ
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
"भाग-5 १४०] श्री आवश्यक सूत्रम् (3)
"
"""
नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नम:
"आवश्यक नियुक्ति एवं चूर्णि: [3] मूल : भद्रवाहस्वामी कृत नियुक्ति के भाष्य जिनदासगणि रचिता चूर्णिः।
[आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ]
(किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता→ मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि)
01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल ५
'सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग-५
SASR999999999999999999999999999999999999999999933इइइइडर
उपन्य आरामोद्धारको संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्रामलसूत्रा । आवश्यक नियुक्ति एवं जिनदासमणिरचिताचणि
)
(5)
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3
अध्ययनं H. मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: भाष्यं । - पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र[४०],मूलसूत्र[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
EXAM AARAMITAMINOMPARINIMIREOMAMMADED.MAMMMMAND
प्रत
poooooooooooooooooooooooooooococoOOOOOOOOOwooooooove श्रीमद्गणधरगौतमस्वामिसंहब्धं-श्रुतकेवलिश्रीमदभद्रबाहुस्वामिसूत्रितनियुक्तियुत
श्रीमजिनदासगणिमहत्तरकृतयाचूा समेतं
श्रीमदावश्यकसूत्रं (उत्तरभागः) प्रकाशिका-जामनगरवास्तव्य श्रेष्ठिधारशीभाइ देवराजस्य सद्गतसुपुत्रलक्ष्मीचन्द्रव स्मरणार्थ
तस्सुपुत्र चुनीलालेत्यनेन कृतेनार्थसाहाय्येन
श्रीऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबरसंस्था रतलाम. मुद्रपिता-इन्दौर नगरे श्रीजैनबन्धुमुद्रणालयाधिपः श्रेष्ठी जुहारमल मिश्रीलाल पालरेचा.
पीरसंवत् २४५५ विक्रमसंवत् १९८६ क्राइस्टसन् १९२९ ग्राहकाणां पयं ३-०-० Emoooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo
दीप अनुक्रम
Xcoooooooooooooom
0ovoc
आवश्यकसूत्रस्य मूल "टाइटल पेज"
(6)
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
सामाचारी-संरक्षक, ज्ञानधनी, आगम-संशोधक, तीव्र-मेधावी, समाधिमृत्यु-प्राप्त, बहुमुखीप्रतिभाधारक पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब
• जिन्होने शुद्ध-श्रद्धा, सम्यक्-श्रुत आराधना, यथाख्यातचारित्र के प्रति गति और अंत समय देह-ममत्व के त्याग के द्वारा कायोत्सर्ग नामक अभ्यंतरतप कि मिशाल कायम कि है ऐसे बहुश्रुत आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी महाराज का परिचय कराना मेरे लिए नामुमकिन है, फिर भी गुरुभक्ति बुद्धि से श्रद्धांजली स्वरुप एक मामूली सी झलक पैस करने का यह प्रयास मात्र है।
चारित्र-ग्रहण के बाद अल्प कालमे जो अपने गुरुदेव की छत्रछाया से दूर हो गये, तो भी गुरुदेव के स्वर्ग-गमन को सिर्फ कर्मो का प्रभाव मानकर अपने संयम के लक्ष्य प्रति स्थिर रहते हुए अकेले ज्ञान-मार्ग कि साधना के पथ पर चले | पढाई के लिए ही कितने महिनो तक रोज एकासणा तप के साथ बारह किल्लोमिटर पैदल विहार भी किया | लेकिन अपने मंझिल पे डटे रहे, और परिणाम स्वरुप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा का, प्राचीन लिपिओ का, व्याकरणन्याय-साहित्य आदि का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया | जैन आगमशास्त्रो के समुद्र को भी पार कर गए|
.एक अकेला आदमी भी क्या नहीं कर शकता? इस प्रश्न का उत्तर हमें इस महापुरुष के जीवन और कवन से मिल गया, जब वे चल पड़े देवर्द्धिगणी : क्षमाश्रमण के स्थापित पथ पर. बिना किसी सहाय लिए हुए सिर्फ अकेले ही 'जैन-आगम-शास्त्रो" को दीर्घजीवी बनाने के लिए अनेक हस्तप्रतो से शुद्ध-पाठ • तैयार किये | दो वैकल्पिक आगम, कल्पसूत्र और नियुक्तिओ को जोड़कर ४५ आगम-शास्त्री को संशोधित कर के संपादित किया | फिर पालीताणामें आगम । मंदिर बनवाकर आरस-पत्थर के ऊपर ये सभी आगम-साहित्य को कंडारा, सूरतमें तामपत्र पर भी अंकित करवाए और “आगम मंजूषा" नाम से मुद्रण भी करवा के बड़ी बड़ी पेटीमें रखवा के गाँव गाँव भेज दिए | वर्तमानकालमे सर्व प्रथमबार ऐसा कार्य हुआ |
.सिर्फ मूल आगम के कार्य से ही उन के कदम रुके नही थे, उन्होंने आगमो की वृत्ति, चूर्णि, नियुक्ति, अव चूरी, संस्कृत- छाया आदि का भी | संशोधन-सम्पादन किया | उपयोगी विषयो के लिए उन्होंने एक लाख श्लोक प्रमाण संस्कृत-प्राकृत नए ग्रंथो की रचना भी की | कितने ही ग्रंथो की प्रस्तावना भी लिखी | ये सम्यक्-श्रुत मुद्रित करवाने के लिए आगमोदय समिति, देवचंद लालभाई इत्यादि विभिन्न संस्था की स्थापना भी की |
.ज्ञानमार्ग के अलावा सम्मेतशिखर, अंतरीक्षजी, केशरियाजी आदि तीर्थरक्षा कर के सम्यक-दर्शन-आराधना का परिचय भी दिया | राजाओं को प्रतिबोध | : कर के और वाचनाओ द्वारा अपनी प्रवचन-प्रभावकता भी उजागर करवाई | बालदिक्षा, देवद्रव्य-संरक्षण, तिथि-प्रश्न इत्यादि विषयोमे सत्य-पक्षमें अंत तक दृढ़ रहे | जैनशासन के लिए जब जरुरत पड़ी तब अदालती कारवाईओ का सामना भी बड़ी निडरता से किया था |
• सागरानंदजी के नाम से मशहूर हो चुके पूज्य आनंदसागरसूरीश्वरजीने अपने परिवार स्वरुप ७०० साधू-साध्वीजी भी शासन को भेट किये। ...ये थे हमारे गुरुदेव "सागरजी"...
.......मुनि दीपरत्नसागर... |
.
स
(7)
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
संयमैकलक्षी, उपधान-तप-प्रेरक, चारित्र-मार्ग-रागी, प्रवचन-पटु, सुपरिवार-युक्त पूज्य गच्छाधिपतिआचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब
... परमपूज्य आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी के पाट-परंपरामे हुए तिसरे गच्छाधिपति थे पूज्य आचार्य श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी, जो एक पून्यवान् आत्मा थे, दीक्षा ग्रहण के बाद अल्पकालमे ही एक शिष्य के गुरु बन गये | फिर क्या । शिष्यो कि संख्या बढ़ती चली, बढ़ते हए पुन्य के साथ-साथ वे आखिर 'गच्छाधिपति' पद पे आरूढ़ हो गए | इस महात्मा का पुन्य सिर्फ शिष्यों तक सिमित नही था, वे जहा कहीं भी 'उपधान-तप' की प्रेरणा करते थे, तुरंत ही वहां 'उपधान' हो जाते थे | प्रवचनपटुता एवं पर्षदापुन्य के कारण उन के उपदेश-प्राप्त बहोत आत्माओने संयम-मार्ग का स्वीकार किया | खुद भी संयमैकलक्षी होने के कारण चारित्रमार्ग के रागी तो थे ही, साथसाथ ज्ञानमार्ग का स्पर्श भी उन का निरंतर रहेता था | आप कभी भी दुपहर को चले जाइए, वे खुद अकेले या शिष्यपरिवार के साथ कोई भी ग्रन्थ के अध्ययन-अध्यापनमें रत दिखाई देंगे। ... ये तो हमने उनके जीवन के दो-तीन पहेल दिखाए | एक और भी अनुसरणीय बात उन के जीवन में देखने को मिली थी- 'आराधना-प्रेम'. कैसी भी शारीरिक स्थिति हो, मगर उन्होंने दोनों शाश्वती ओलीजी, [पोष)दशमी, शुक्ल पंचमी, त्रिकाल देववंदन, पर्व या पर्वतिथि के देववंदन आदि आराधना कभी नहीं छोड़ी | आखरी सालोमें जब उन को एहसास हो गया की अब 'अंतिम-आराधना' का अवसर नजदीक है, तब उन के मुहमें एक ही रटण बारबार चालु हो गया“अरिहंतनुं शरण, सिद्धनुं शरण, साधुनुं शरण, केवली भगवंते भाखेला धर्मनु शरण " इसी चार शरणो के रटण के साथ ही वे समाधि-मृत्यु-रूप सम्यक् निद्रा को प्राप्त हुए थे | ऐसे महान् सूरिवर को भावबरी वंदना |
... मुनि दीपरत्नसागर...
अनुदान दाता संस्था:- "श्री परम-आनंद श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ"
वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठककर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद करीब ५० साल पहेले परम पूज्य स्व. गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेंद्रसागरसूरीजी म.सा. ही है | इस संघमें पूज्य साधू भगवंत एवं साध्वीजीओ का उपाश्रय भी है जहा हर-साल चातुर्मास करवाके श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है । इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म० की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है |
(8)
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
‘सागर-समुदाय-एकता-संरक्षक, तीर्थ उद्धार कार्य प्रवृत्त, गुणानुरागी'
इस “सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि' श्रेणि भाग १ से ८ के संपूर्ण अनुदान के प्रेरणाद
पूज्य शासनप्रभावक आचार्य श्री हर्षसागरसूरिजी महाराज साहेब
पूज्यपाद स्व. गच्छाधिपति देवेन्द्रसागर सूरीश्वरजी के विनयी शिष्य एवं दो गच्छाधिपतिओ के मुख्य सहायक के रुपमे 'सागर समुदाय' के सुचारु संचालक पूज्य हर्षसागरसूरिजी, जिन की प्रेरणा से ये "स चूर्णिक- आगम-सुत्ताणि" के मुद्रण के लिए संपूर्ण द्रव्यराशि प्राप्त हुई, उनका अत्यल्प परिचय यहां करेंगे । • समुदाय एकता के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हुए ये महात्मा समुदाय के साधु-साध्वीजी की आवश्यकताओकी पूर्ती के लिए भी प्रवृत्त रहेते हैं, प्राचीन-अर्वाचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार एवं विकाश के लिए भी उत्साहित रहेते है, ज्ञान क्षेत्र अछूता न रहे इसीलिए अनुमोदना, अनुदान एवं समय मिलने पर शास्त्र-वांचनमें भी रुचि रखते है | समुदाय के जरूरतमंद साध्वीजी भगवंतो के आवास का विषय हो या साध्वीजी के विहारमें मजदूर का वेतन चुकाना हो, ऐसे छोटे-छोटे कार्यों के प्रति भी उनका लक्ष्य रहेता है | दर्शन-शुद्धि के लिए जब उन्होंने समग्र भारतवर्ष के १०० साल तक के पुराने जिनालयो में १८ अभिषेक की प्रेरणा की, उस वक्त लगभग सभी अभिषेक-सामग्री की द्रव्य-शुद्धि का ख़याल रखते हुए अपनी मेधावी बुद्धि का परिचय दिया था, साथमे अनुकंपा भाव से पुजारी या विधि करानेवाले - को यत्किंचित् बहुमान प्रगट करते हुए कुछ धन राशि प्रदान करवाई |
ऐसे बहुगुण-संपन्न महात्मा पूज्य आचार्यश्री हर्षसागर सूरिजी को हम भावभरी वंदना करते हुए इस श्रुतकार्य का प्रारंभ करने जा रहे है |
मुनि दीपरत्नसागर [कात्रेज] पूना, शंखेश्वर, कपडवंज, प्रभासपाटण आदि स्थानोमे आगममंदिर के प्रेरक, कर्मग्रंथ अभ्यासु, निस्पृह महात्मा
पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्य श्री दौलतसागर - सूरीश्वरजी महाराज साहेब
(एवं) अजातशत्रु, स्वाध्याय- रसिक, प्रशांतमूर्ती और अपने गुरु के प्रीतिपात्र परम पूज्य आचार्य श्री नंदीवर्धनसागर-सूरिजी महाराज साहे इस पवित्र श्रुत-कार्यमे दोनो सूरिवरो का स्मरण करते हुए कोटि कोटि वंदना के साथ
(9)
***
.मुनि दीपरत्नसागर
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
आवश्यक चूर्णे: मूल संपादने लिखित: विषयानुक्रम:
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्रा४०],मूलसूत्रा०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
आवश्यक| ॥ अथावश्यकोत्तरार्धक्रमः ॥ २५ लिंगमात्रे कर्तग्यता |१०२ संयतपारिष्ठापनिकी | २४६ द्रव्यभावत्रणी उत्तराध १ सामायिकाध्ययनेन संबन्धः २८ ज्ञानदर्शनपक्षी ११२ लेश्यापटकं
२४७ कायोत्सर्ययोनिक्षेपाः PI चतुर्विशतिस्तवयोनिक्षेपाः ३५ नित्यवासादिषु संगमकवस- | ११६ माचर्यगुप्तयः २४९ कायोत्सर्गभेदाः
२ द्रव्यस्तवे शुभानुबन्धो निर्जरा च स्वान्यर्णिकापुत्रोदायनदृष्टान्ता ११८ श्रावकप्रतिमा: २५१ सूत्राणां व्याख्या ३ लोकनिक्षेपाः उद्योतनि०/४१ वन्दनकसंख्याऽऽवा दोषाश्च १२२ भिक्षुप्रतिमाः |२५७ अईश्चैत्यस्तवव्याख्या धर्मनि० तीर्थनि० करनिक्षेपाः ४५ वन्दनकसूत्रव्याख्या १२७ क्रियास्थानानि
२५८ श्रुतस्तवव्याख्या ९ ऋषभादिनामान्वर्थः प्रतिक्रमणाध्ययनं. १३२ गुणस्थानानि
२६२ सिद्धस्तवव्याख्या ल १२ निनभक्तिफलं | ५२ प्रतिक्रमणशब्दार्थादि १४० परीषहाः
२६३ प्रतिक्रमणविधिः वन्दनकाध्ययनम्. | ५४ प्रतिक्रमणादिषु दृष्टान्ताः १४३ भावमा:
२६८ कायोत्सर्गदोषाः १४ वन्दनकादिषु शीतलक्षुल्लक- ७३ शयनविधिः
१४९ मोहनीयस्थानानि
२७१ प्रत्याख्यानाध्ययनं. कृष्णसेवकशाम्बदृष्टान्ताः ७५ अतिक्रमादिस्वरूपं १५२ योगसंग्रहाः
२७४ श्रावकभंगा: |१९ अवन्दनीयाः ८१ ध्यानाधिकारः २१२ आशातनाः
२८२ श्रावकत्रवानि सातिचार . २१ चम्पकाप्रियकथा द्विजपुत्रकथा च ८७ क्रियाभेदाः
२१७ अस्वाध्यायिकव्याख्या ३०८ प्रत्याख्यानानितदृष्टांताश्च २३ दोषगुणानां संसर्गजत्वं ९६ पारिष्ठापनिकीस्वरूपं । २४६ कायोत्सर्गाध्ययनं. । । इत्यावश्यकोत्तरार्धक्रमः॥
...चूर्णि के मूल संपादकने ये अनुक्रम बनाया था इसीलिए जिन स्थानो पर मूल संपादकीय ये 'विषय' आते है, उन सभी पृष्ठो की फूटनोटमें हमने इन सभी विषयो की नोंध कर दी है।
(10)
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
मूलाका: ५०+२१
आवश्यक मूल-सूत्रस्य विषयानुक्रम (भाग-3)
दीप-अनुक्रमा: ९२
मलांक:
अध्ययनं
| पृष्ठांक
नियु
-
पीठिका
"
००९
क्ति
[भाग-1
--मंगलं
०११
मलांक: अध्ययनं
मलाक:
अध्ययनं २ | पृष्ठांक: ०१-०२ १-सामायिक 2/२९७
आवश्यक सटीकं (संक्षिप्त) विषयानुक्रम नि./भा. | -उपोदघात-निर्यक्ति: | पृष्ठांक | नि./भा. | अध्ययनं-१- सामायिक | पृष्ठांकः | ०८१ --वीरआदिजिनवक्तव्यता
८९० नमस्कार-व्याख्या ३४३ --भरतचक्री-कथानक
९१९ अर्हत, सिद्धादेः नियुक्ति: भा.०३९ --बलदेव-वासुदेव कथानक
९६० | सिद्धशिला वर्णनं भाग-21
९९३ | आचार्य-आदीनाम निक्षेपा: ५४३ --समवसरण वक्तव्यता ५८८ --गणधर वक्तव्यता
१०१३ सामायिक- व्याख्या, ६६६ --दशधा सामाचारी
उद्देश-वाचना-अनुज्ञा आदिः ७५४ --निक्षेप, नय, प्रमाणादि
सूत्र स्पर्श भगा: ७७८ --निहनव वक्तव्यता
सामायिक-उपसंहार: ७८९ | --सामायिकस्वरुपम्
। ८१२ --गति आदि दवाराणि
००१
--ज्ञानस्य पञ्चप्रकारा:
०१३
--उपक्रम-आदिः
०८८
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र[४०],मूलसूत्र[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
(11)
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
मूलाका : ५०+२१
आवश्यक मल-सूत्रस्य विषयानुक्रम (भाग-३)
दीप-अनुक्रमा: ९२
मुलाक:
अध्ययनं
१०.
अध्ययनं ३-वंदनकं ६-प्रत्याख्यानं
पृष्ठांक मलांक:
अध्ययनं | पृष्ठांक | मूलांक: ०३-०९ 12. २-चतुर्विंशतिस्तव: 3/०१४ | 3/०६५- ३७-६२
५-कायोत्सर्ग | 3/२५८ । । ६३-९२ आवश्यक सटीक (संक्षिप्त) विषयानक्रम पृष्ठांकः । । नि./भा. । अध्ययनं पृष्ठांक:| | नि./भा.
पृष्ठांक:
3/०२७ | 3/२८४
११-३६
४-प्रतिक्रमणं
अध्ययन
Sin
| पृष्ठांक:
नियुक्ति अध्ययन | भाष्य
भाग-3
अध्ययनं-२सूत्रपाठः, कीर्तन, प्रतिज्ञा, --अर्हत: विशेषणं, |--ऋषभादि नामानि,
कन्सुन
०८१
०१४ ०१६
अध्ययनं-५- कायोत्सर्ग: ૨૮ सूत्रपाठः, कायोत्सर्गस्थापना ૨૬૩ | श्रुतस्तव, सिद्धस्तवादि पाठः |
०१६
२७१
०२२
अध्ययनं-४- प्रतिक्रमणं | २०६५ नमस्कार व सामायिक-सूत्रं | | चत्वार: लोकोतम-मङ्गल
एवं ----------शरणभूत | संक्षिप्त व ईर्यापथ
०८५ शयन संबंधी प्रतिक्रमणं ०८६ | भिक्षाचर्याया: प्रतिक्रमणं ०८७ स्वाध्याय, असंयम आदि ३३
०८९ सत्रोच्चारणे मिथ्यादृष्कृतम २३० | प्रवचनस्तुति, वंदना,
२५५
૦૨૭
૨૮૪
०५८
०८८
अध्ययन-३- वन्दनं --गुरुवन्दन सूत्रपाठः --मितावग्रह प्रवेशयाचना --क्षमापना, प्रतिक्रमण
अध्ययनं-६- प्रत्याख्यानं सम्यक्त्व एवं
श्रावकव्रतप्रतिज्ञा विविध प्रत्याख्यानादिः
૨૮૮
०६१
३२६
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र[४०],मूलसूत्र[१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
(12)
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
[आवश्यक - चूर्णि] इस प्रकाशन की विकास- गाथा ]
यह प्रत सबसे पहले “आवश्यकसूत्र (पूर्वभाग ) ” के नामसे सन १९२९ (विक्रम संवत १९८६) में रुषभदेवजी केशरमलजी श्वेताम्बर संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी महाराज साहेब |
वृत्ति की तरह चूर्णी के भी दुसरे प्रकाशनों की बात सुनी है, जिसमे ऑफसेट प्रिंट और स्वतंत्र प्रकाशन दोनों की बात सामने आयी है, मगर मैंने अभी तक कोई प्रत देखी नहीं है ।
* - हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले ४५ आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने उन सभी प्रतो को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी . ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर श्रुतस्कंध अध्ययन-उद्देशक- मूलसूत्र- निर्युक्ति आदि के नंबर लिख दिए ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन, उद्देशक आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके, बार्थी तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके । हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस [-] दिए है और जहां गाथा है वहाँ || || ऐसी दो लाइन खींची है।
इस आगमचूर्णि के प्रकाशनोमें भी हमने उपरोक्त प्रकाशनवाली पद्धत्ति ही स्वीकार करने का विचार किया था
. परंतु चूर्णि और वृत्ति की | संकलन पद्धत्ति एक समान नही है, चूर्णिमे मुख्यतया सूत्रों या गाथाओ के अपूर्ण अंश दे कर ही सूत्रो या गाथाओ को सूचित कर के पूरी चूर्णि तैयार हुई है, कईं निर्युक्तियां और भाष्य दिखाई नही देते, कोइ कोइ निर्युक्ति या भाष्य के शब्दो के उल्लेख है, उनकी चूर्णि भी है पर निर्युक्ति या भाष्य स्पष्टरूप से अलग दिखाई नहि देते | इसीलिए हमें यहाँ सम्पादन पद्धत्ति बदलनी पड़ी है । हमने यहाँ उद्देशक आदि के सूत्रो या गाथाओ का क्रम, [१-१४, १५-२४] इस तरह साथमे दिया है, निर्युक्ति तथा भाष्यो के क्रम भी इसी तरह साथमे दिये है और बायीं तरफ़ उपर आगम-क्रम और नीचे इस चूर्णि के सूत्रक्रम और दीप-अनुक्रम दिए है, जिससे आप हमारे आगम प्रकाशनोंमे प्रवेश कर शकते है|
शासनप्रभावक पूज्य आचार्यश्री हर्षसागरसूरिजी म०सा० की प्रेरणासे और श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनसंघ, पालडी, अमदावाद की संपूर्ण द्रव्य सहाय से ये 'सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि' भाग-५ का मुद्रण हुआ है, हम उन के प्रति हमारा आभार व्यक्त करते है | .मुनि दीपरत्नसागर.
(13)
......
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति : [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०],मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
-
पतर्विध ॥ श्रीजिनदासगणिमहत्तरकृताया आवश्यकचूर्णरुत्तरार्धम् ॥ शामिल
-
प्रस्तावना
चतुर्विंशतिस्तव चूर्णी
प्रत सूत्रांक [...]
निपादि
दीप
अनुक्रम [२...]
माणितं सामाझ्यज्झयणं,इवाणिं चउवीसत्थयादीणि भण्णंति, येन सामायिकव्यवस्थितेन पत्तकालं उक्किसणादीणिवि अवस्स
कातव्याणि, तत्थ सामाइयाणंतरं चउचीसत्थओ भण्णति, अस्य चायमभिसम्बन्धः-यैरेव तत्सामायिकमुपदिष्ट (तैरिदमपि) तेषां परया है भक्या गुणसंकीर्तन वा द्रष्टव्यमिति, हवा तस्स सामाइये ठितस्स के पूज्या मान्याश्च , ये ते सामायिकोपदेष्टारः ते पूज्या मान्या
बेति तेषां समुत्कीतना अनेन वा संबंधेन चतुर्विशतिस्तवस्यावसरः संप्राप्तः, अस्य च समुत्कीर्चनाध्ययनस्य चत्वार्यनुयोगद्वाराणि, ४ जथा नगरस्य,तंजधा-उवक्कमो निक्लेवो अणुगमोणयो,एत नेतब्वं जया पेदिताए उपक्कमो छब्विहोवि णिक्खेको तिविही वष्णेतव्यो, & नामनिष्फण्णा चउर्वासस्थान, मुत्तालावगनिष्फण्णो निक्खेवो 'लोउज्जोयकरोत्ति, तत्थ ताव पढम नामनिष्फण्णो भण्णति-IMIntesta
पउसिं धवं च, चउवीसति संखा, तत्थ निक्खेबो नामचउव्वीसा ठवणच. दवच खेसच. कालच० भावचउन्नीसा, दो गताओ, दव्यचउच्चीसा तिचिहा-सचित्ता आमाणं चतुम्बिसा, अचित्ता करिसावणाणं, मीसिया भियगुडियाण हत्थीण, अहवा
|
कल
...अत्र आवश्यक-सूत्रस्य द्वितियम् अध्ययनम् आरभ्यते ...सामायिकस्य चतुर्विंशति सह संबंध:, ... चतुर्विंशते: नामादि निक्षेपा:
(14)
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक ||१-७||
तिस्तव
दीप अनुक्रम [३-९]
चतुर्विंश- दुपदाणं चउप्पदाणं अपदाणं च विभासा, खेत्तचउरीसा चउबीसं खत्चाणि, चउवीस वा आगासपदेसा, चउवीसपदेसोगार्ड वा
दवं, एवमादि विभासा, कालचउबासा चउब्बीसवासा एवमादि विभासा, चउवीससमयाद्वितियं वा दच्वं, भावचउरीसा चउचूर्णी वीसं भावयोगा चउवीसगुणकालगादि विभासा । एत्थ दुपदचउबीसाएवि अधिगारो।
| इदार्णि धवो, 'ष्टुं स्तुती', सो थवो चउबिहो, णामट्ठवणाओ गताओ, दव्यस्थओ पुण्फादीहिं, आदिग्रहणेण वत्वगंधालं-1 है कारादिग्रहणं, भावत्थओ संताण गुणाण उक्कितणा, जथा-पुरवरकवाडवच्छे फलिहजे दुंदुभीथणितघोसे । सिरियच्छंकितवच्छे
वंदामि जिणे चउथ्वीसं ॥१॥ चोर्चासं बुद्धातिसेसा एवमादि, शिष्यमनभिधार्यापि अयमाचार्यः इदमब्रवीत् , आयरिओ
अचोदितस्सवि णिण्णय भणति, स्यादिति आशंका- इयं ते मतिः स्यात् 'दब्वत्थयो बहुगुणो'त्ति ये एवंचादिणा ते अणिIपुणभतिणी, तेर्सि अनिपुणमतीणं पयर्ण इदं, जथा- दबत्थयो बहुगुणोत्ति, कह,जेण छज्जीवहितं जिणा बंति, दश्वत्थए तु
| जीववहोवि दीसतित्ति, पर आह- यदि एवं तो वरं भावत्थयं चेव करेमो, होतु दब्बत्थयेणं, आयरिओ भणति-जदि तुम सन्चातो जीववहातो नियचो तो एवं भवतु, पुणो आह-जदिवि अहं सवाओ न नियत्तो तथावि कहं धम्मबुद्धीए जीववह पेक्खंतो दब्बस्थए वट्टिस्सं इति, धम्मबुद्धी जीपबहे विरुजातीत्यभिप्रायः, उच्यते, जो कसिणो छष्पिहजीवकायसंजमा सा दन्यथए वि.
रुज्झति-अजुचो भवति, कसिणो नाम संपुण्णो, जो पुण अकसिणो सो न विरुज्झति पत्तकाले दन्वत्थये, तेण जे कसिणसंजमविऊ &ामुणी ते पुण्फादीयं न इच्छेति, ये पुण अकसिणपबत्तगा-विरताविरता तेसि एस दव्यस्थयो पत्तकाली जुचा, अकसिणे पबत्तते। | अकसिणपवत्तगा, नणु कह हिंसात्मकोऽपि युको भविष्यति', भण्णति-संसारपतणुकरणो- संसार पकारसण तय करेति,
॥
२
R
C
*** अत्र 'स्तव' शब्दस्य व्याख्या: क्रियते ... द्रव्यस्तवे शुभ-अनुबन्ध:
(15)
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
॥ १-७॥
दीप
अनुक्रम
[3-9]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
आयं [१९०-२०३]
अध्ययनं [ २ ],
मूलं [१...] / [गाथा १-७), निर्युक्तिः [ १०६७-१११३ / १०५६- ११०२],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
चतुर्विंशविस्तव
चूर्णे
॥ ३ ॥
कई ?, एत्थ कूलः दितो, जथा नवनगरसंनिवेसादिसु कोई पभूयजलाभावतो तहाविपरिगता तदपनोदार्थं कूबं खणंति, तेसिं च जदिवि तण्हादीया बति मडिककदमादीहि य मइलिज्जति तथापि तदुद्भवनवपाणिएण तेसिं तण्हादीया सोय मलो पुव्वगो य फिति, सेसकालं च ते तदमे य सत्ता सुहभागिणो भवन्ति, एवं दव्वरथये जदिवि असंजमो तहावि ततो चैव सा परिणामसुद्धी भवति जा तं असंजमोवज्जितं अण्णं च णिरवसेसं खवतित्ति, तम्हा विरताविरताण एस दव्वत्थओ जुत्तो, सुभाणुबंधी पभूततरनिज्जराफलो इतिकातूण इति । एवं नामनिष्फष्णो गतो ।। इदाणिं सुत्तालावगनिष्फण्णो निक्खेवो पत्तलक्खणोवि न निक्षेप्पति लाघवत्थं ततिए अनुयोगदारे निक्खिपिहिति । इदाणि अणुगमो निज्जुतीअणुगमो जहा हेट्ठा विभासा, सुत्ताणुगमे सुत्तं अणुगंतव्धं अक्खलित एवमादि तत्थ संहिता प० सिलोगो, तत्थ संहिता
लोयस्सुज्जोयगरे, धम्मतित्थंकरे जिणे । अरहंते किस्सामि, चउवीसंपि केवली ॥७१॥
एतस्स सुत्तस्स आदाणपदेणं लोउज्जोतकरेति नाम भण्णति । इदाणिं पदच्छेद : लोक इति पदं १ उज्जीय इति पर्य२ कर इति पदं धम्म इति पदं४ तित्थगर इति पदं५ जिण इति पदं६ अरहंत इति पदं७ किनहस्सामिति पदं८ चउवीसंति पदं९ अपत्ति पदं १० केवलित्ति पदं ११ एगारसपदं सुतं । इदानिं पदार्थ:-'लोक दर्शने' लोक्यत इति लोकः, 'श्रुति दीप्ती' ' धरणे' तस्य मत्प्रत्ययांतस्य रूपं धर्म इति दुर्गतिप्रसृतान् जीवान्यस्माद्धारयते ततः । घचे चैतान् शुभे स्थाने, तस्माद्धर्म इति स्मृतः ॥ १ ॥ चन्तरणयोः' त्रिभिर्वा अर्थयुक्त तीर्थ, 'इकञ् करणे' 'जि जये' 'अहे योग्यत्वकीर्तनसंशब्दने' चतुब्बीसंति संखा, अपि पदार्थसंभावने, केवलः प्रतिपूर्णत्वे । लोको पंच अस्थिकाया तस्स उज्जोतं करोतीति प्रकटनं करतीति प्रकाशयतीत्यर्थः तत्तथा, धम्मपहाणो तित्थगरेति
लोगस्स सूत्रस्य गाथा१
... अत्र 'लोक' पदस्य व्याख्या क्रियते
(16)
लोकपद
व्याख्या
॥ ३ ॥
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक ||१-७||
तिस्तव
धम्मतित्थगरा तान् , तथा रागदोसजयाज्जिनाः तान्, के ते एवंभूता ?- अरहंता- असोगादिपाडिहेरपूजां अरिहंतीति ते का
लोकपद दी अर्हन्तः तान् , कीर्तयिष्यामि- संशब्दयिष्यामि, एतेन तदुत्कीर्तनावश्यकस्य करणाभ्युपगमं दर्शयति, केत्तिए ?-चउव्वीसंपि,
व्याख्या चूर्णी
से पुनरपि किंविशिष्टाः १. केवली, केवलाणि- संपुष्णागि णाणदरिसणचरणाणि येसिं ते केवली तान् । इदाणि पदविग्गहो । ॥४॥ यत्थ समासो तत्थ कातब्बो । एत्थ ताव सुत्तफासित भणामो । चालणापसिद्धीओचि भणिहिति । तत्थ पढम पदं लोक इति, द्रा तस्स अट्ठविहो निक्खवो-.
नाम ठवणा दविए खेत्ते काले भवे य भावे य । पज्जवलोए य०॥११॥७॥ १०६८॥ नामढवणाओ गयाओ
दब्बलोगे जीवमजीवे ॥११॥८॥ तत्थ य काणि य इंदिएहिं लोक्कंति काणि य इंदियवतिरित्तणं णाणण अहवा पच्चक्खा-19 दीहि पमाणेहिं । जीवा कहं ! लोक्यन्त ?, लिंगैः, प्राणापाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतींद्रियान्तराविकारसुदुक्खेच्छा द्वेषो प्रयत्नश्चे-18 त्यात्मलिंगानि, सामान्य वा लक्षणं उपयुक्तवान् उपयुज्यते उपयोक्ष्यते इति च जीवः, तद्विपरीतेन लक्षणेन अजीघा लोक्यते,
तत्र जीवा दुविहा-रुवी अरूबी य, रूबी संसारी अरूबी सिद्धा । देवे ण भंते ! महिडीए (फु) पुबामेव रूबी भवित्ता पच्छा अरूवी है भवित्तए०' आलावमा भाणितव्वा । अजीवा दुविहा-रूवी पोग्गला अरूवी तिण्णि, जीवा रूबी सपदेसा य कालादेसेणं नियमा
| सपदेसा लद्धिआदेसेणं सपदेसा वा अप्पदेसा वा, अरूवी कालादेसेणवि लद्धिआदेसणवि सम्पदेसा वा अपदेसा वा अरूवी था| &ारूची वा, चउम्बिहो-दब्बओ खत्तओ कालओ भावओ, दव्यओ परमाणू अपदेसो सेसा सपदेसा, खेत्तओ एगपदेसोगाढो अप
देसो सेसा सपदेसा, कालओ एकसमयडितिओ अपदेसो सेसा सपदेसा, भावतो एगगुणकालओ अपदेसो सेसा सपदेसा, अहवा
SAEXERCAR
दीप अनुक्रम [३-९]
... अत्र 'लोक' पदस्य निक्षेपा: दर्शयते
(17)
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक ||१-७||
दीप अनुक्रम [३-९]
चतुर्विंश वण्णगंधरसफासेहिं चउहा सपदेसत्तं वा अपदेस बा, अरूबीअजीवाणं तिष्हं अस्थिकायाणं परनिमित्तं सपदेसत्तं वा अपदेस तिस्तव वा, ते चेव जीवा अजीवा य निच्चा अणिच्चा य, लोगोत्ति जीवा चउम्विहा सादी सपज्जवसिया ४ भंगा, गति सिद्धा भविया
IDEव्याख्या चूर्णी 3
य अमविया य, अहवा दबद्वताए णिच्चा पज्जवट्ठताए अणिच्चा। अजीचे पोग्गला अणागतद्धा य तीतव्य तिणि काया एवं ॥ ५ ॥ IA जथा पेदिताय दन्बकाले, अहवा अजीवा दवट्ठताए णिच्चा, वण्णादिएणं परादेसेण य अणिच्चा एवं विभासा जथाविधि ।
इदाणि खत्तलोगो, सो केरिसो, तत्थ गाथा आगासस्स पदेसा अहवा उडं तिरियं ॥११-१० ॥१९९ भा० लाखतं कह लोकति , छउमत्थो उग्गाहणं दट्टणं जीवाणं पोग्गलाण य , एवं अणुमाणियाए, आलोयणाए जाणाहि खत्तलोग | अणंतजिणपदोसतं सम अवितह, अहवा अणंता मिच्छतादीता सांसारिया भावा जिणन्ति अणंतजिणा, अणंता वा जिणा अनन्तजिणा । इदाणि काललोगो, काल एव लोकः,स कही,लोक्यत इति लोका,वर्तमानलक्षणः कालः, परापरत्वन लोक्यत इति लोका, उदाहरणं यथा घटस्य अनुत्पत्तिकालो दृष्टः उत्पत्तिः विगमकालश्च मृत्पिण्डघटकपालत्वे,एवं सर्वद्रव्येषु योज्यं । तत्थ कालनिभागे निज्जुत्तिगाथा-समयावलिय मुहुत्ता दिवस अहोरत्त पक्खमासा य ॥ ११-११ ।। २०० ॥ भा. समयो अणुमाणेण दीसति, दोधारच्छेदेण उप्पलबेहेण य पट्टसाडियादिद्रुतण य, सेसो तेण माणेण णालियाए य सूरोदयमझण्हत्थमणविभागेहिं, सेसेसु उवमा विभासितब्बा, वर्तना परिणामः क्रिया परापरत्वे च कालस्य लिंगानि । इदाणि भवलोगो, तत्थ गाथा-णेरड्य देवा तिरिय मणुया०॥ ११-१२ ॥ २०१॥ भा. सन्ति चेव परइया, अहो एस रहयपडिरूवियं बेदर्ण वेदेतित्ति लोक्कति, | देवा, अहो एस पुरिसो असुरकुमारोपमो य रूवेणं ललिएण यत्ति । अहवा पच्चक्खितेणं लोकतित्ति पुष्वं भणितं । इदाणि भाव
RA
(18)
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति : [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
||१-७||
चूणों
RA
दीप अनुक्रम
चतुर्षिश- लोको, सो कह लोक्कति ?, उदाहरण, कोहादीणं उदयेण लोक्कति उदइओ, अणुदएणं उपसमिओ, अणुप्पत्तीए खडओ, देसवि-का लोकपद तिस्तव
व्याख्या सुद्धोए खओवसामओ, परिणवणाए परिणामिओ, संजोगण संनिवाइओ , एत्थवि कोवि पच्चक्खेण कोवि परोक्खेण । इदाणि
पज्जवलोगो परिस्समंता अयः परि अब इति पर्याय:, सो चउब्यिहो- दन्यस्स गुणा खत्तस्स य गुणा कालस्स अणुभावो । ॥ ६ ॥
भावस्स परिणामो । दव्बस्स गुणा एत्थ गाथा
वपणरसगंधसंठाण फासठाणगातिवण्णभेदे य । परिणामे च बहुविहे पज्जबलोगं समासेण ॥११-१६॥२०५ भा. शिवणस्स भेदा कालगातीता, रस भेदा ५, गंध २ संठाणे परिमंडलादी पंच, फासे कक्खडादी अट्ट, ठाणं ओगाहणा, एगदेसा-17
दिगता फसणा, चसरेण जचा यष्णभेदा एवं सेसा पदेसभेदा, कालवण्यास्स परिणामो बहुविहीं एगगुणकालादी,सध्यस्थ विभासा,
आहवा परिणामो बहुधिहोत्त सो चेव पसत्थो होऊण अपसत्थपरिणामो भवति । इदाणं खेत्तपज्जवा भरहे पज्जवा जाप एर| वए, दीवसागरपण्णत्ती वा, उद्दलोगे तिरिए अहोलोगे, अण्णो भणति-खेत्तपज्जवा अगुरुलध्वादयः,ते तेन लक्षणेन लोक्यते ।। इदाणि भवपज्जमलोगो, मेरइयाण अच्छिनिमीलणमेचं नस्थि सुहं दुक्खमेव अणुबद्धं । णरए रयाणं अहोनिसि पच्चमाणाणे ॥१॥ असुभा उब्बियणिज्जा सहरसरूवगंधफासा य । नेरए नेरइयाणं दुकयकम्मोवलित्ताणं ।। २।। अहवा सीतादिवेदणाओ
॥ ६ ॥ तिमि भवे अणुभागो, अहवा जे मुहा पोग्गला पक्खिप्पति तेवि दुक्खत्ताए परिणमंति, जेण वा न मरंति तेण दुक्खेणं, मणुयाण लातिरियाणं च वेमाया, देवाणं नारगाहतो विपरीता विभासा । ते एवं लोक्कति ।
इदाणि भावपरिणामो, सो पसत्थोऽपसत्थो य, पसत्थो णाणादीहिं ३, विवरीतो अपसरथो, अहवा जीवो जेण जेण भावेण
E
[३-९]
%
(19)
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक ||१-७||
चतुर्विंश- तिस्तव चूर्णी
दीप अनुक्रम [३-९]
परिणमति, एवं अजीवाणवि पसत्थो अपसरथो य विमासितब्बो, जथा कालो पोम्गलाण परिणममाणो य २ कालकतं जहितूण
उद्योतनीली होति एबमादी, सोवि श्वेतलक्षणेन लोक्कति । तस्स लोगस्स एगहिताणि आलोक्कती पलोक्कति० १०६९ ॥ गाथा विभासितब्बा बंजणपरियावण्णा एस लोगो सम्मत्तो।
दाणि उज्जोतो, उद्योतनं उद्योतः,सो दुविहो-दरुचुज्जोतो अग्गिमादि,अहवा ये लोगिया विभंगणाणिणो संव्वाणि करेगा परमात विमलं करेंति । अप्पणएण य पचियाति, एस दखुज्जोतो । नाणं, जथा जिणेहि भणित तहेव जेण उबलम्भति, कई त भावुज्जोतो ?. जतो जदा तेसु सम णाणभावेसु उपउत्तो भवति तदा भावुज्जीतो भवति, उवउत्तो भावोतिकातुं, भावो य सो | उज्जोतो य भाषुज्जोयो,जेण भणितं नाणं पगासगंति,अह जदि णाणं पगासय घडपडादी पगासेति एवं चंदादिचाबिघडपडादी पगासेति तेण ते किन्न भावुज्जोतो ?, उच्यते, चंदादिच्चा घडपडादीण स्वर्गधे पगासयंति, गुरुलहुयाणिं दवाणि, णाणं पुण| अट्टविहंपि लोग पगासेति अरूविदव्याणिवि, रश्यन्ते च निमित्तगणियजोतिसेहिं पच्चक्खं भावा,तेण सिद्धं नाणं भावुजातोत्ति।
आह-किं ते पहुगा तो भणह भायुज्जोतकरेत्ति ?, उच्यते-नणु मए पुज्यं भणितं चउच्चीसाए, अधिगारोति, एस्थ जिणवरा भावज्जोतं करोति, जतो तदुपदेसणं तं नाणं भवति जेण लोगो तथा पयासिज्जइ, किं च-दब्बुज्जोतभावुजोताण इमं अंतर दब्बुजजोतो० ॥१.७३।। उज्जोतो सम्मत्तो।
JH७॥ इदाणिं धम्मो, धर्मः स्थितिः समयो व्यवस्था मर्यादेत्यनान्तरं, सो दुविहो-दव्बधम्मो भावधम्मों य, दबधम्मो धम्म-18 स्थिकायो वा जस्स दव्वस्स भावो सो दव्यधम्मो, भावधम्मो सुयधम्मो चरितधम्मो य, सुयधम्मो सज्झायो, चरित्तधम्मो समण
CA
R-
... अत्र उद्धयोत एवं धर्म शब्दस्य व्याख्या क्रियते
(20)
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
धमताय
कराणां
प्रत सूत्रांक ||१-७||
चूणों
व्याख्या
दीप अनुक्रम [३-९]
चतुर्विंश- धम्मो, सो उ पंचविहो-सामाइयचरित्तादि, अहवा खतिमाती दसविहो, एतेण सावगधम्मोऽपि सइतो,सज्झातो नाम सामाइयमादी | विस्तव जाब दुवालसंग गणिपिडग | धम्मो सम्मत्तो।
. इदाणिं तित्थं प्राग्विहितनिवर्चनं, तं च दुबिह-दव्वतित्थं भावतित्थं च, दव्वतित्थं मागहमादी य परसमया वा मिच्छत्तदोसेणं मोक्खमग्गममाहगा, असाहगचेण य भोक्खं न मग्गति तेहिं, एवं कार्याकरणे दव्यतित्थं भवति । तत्थ मागहाइयदब्बतित्थे निरुत्तगाथा दाहोवसमं०॥ ११-२५ ॥ १०७७ ।। भावतित्थंपि तेहिं निउत्तं- कोचम्मि उ निग्गहिते०॥ ११-२६ ।। सिद्धं। अहवा दंसणनाण ॥११.२८॥१०६०|| अहवा दब्बतित्थं चउविह-सुओयारं सुउत्तार ४ भंगा,भावेवि सुओयार सुउत्तार ४ भंगा, सरक्खा तब्यन्त्रिता बोडिया साधुत्ति जथासंखं । .
इदाणिं करो, सो छबिहो, दो गता, दबकरे गाथा-गोमुहिमुहिपसूर्ण० ॥११-३०॥१०८२-३।। कत्थवि विसए ॐगावीओ कर लम्भति, अहव। पडिएण वा अद्विएण वा एवं सम्वत्थ विभासा, सीतकरो खेत्तं जं वाविज्जति भोगे वा जो लइज्जति, | अण्णस्थ उस्सारियं अण्णत्थ जोत्तियाओ जंघाओ, सेस गाथासिद्ध , एते सत्तरस, अट्ठारसमो उप्पत्तिओ, अप्पणियाए इच्छाए जो
उप्पाइज्जति सो उप्पत्तिओ खेत्तकरो, जवा सुकमादि, गामादिसु वा जमि वा खेत्ति करो वणिज्जति । कालकरो ४ामि काले करो अहवा कालेण एच्चिरेणं तुमे दातब्बति विभासा । भावको पसस्थो अपसत्थो य, अपसत्थो& कलहकरो० ॥११-१३ ॥ १०८५ ।। सिद्धं । पसत्थो लोगो लोगुत्तरो य, अस्थकरो य. ॥११-३४ ।। १०८६ ।।
सिद्धं । इदाणि जिणेत्ति-जितकोहमाणमाया जितलोभा तेण ते जिणा होति । अरिहा इंता रयं हंता अरिहंता
545
... अत्र तीर्थ एवं कर शब्दस्य व्याख्या क्रियते
(21)
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक ||१-७||
Bार्थ:
तीर्थकुमा
दीप अनुक्रम [[३-९]
तेण वच्चति ॥११-३॥१०८७॥ जहा नमोकारनिज्जुत्तीए। इढाणिं कित्तपिस्सामित्ति, कित्तमि कित्तणिज्जे र
११-३६॥१०८८ कस्स ?- संदेवासुरमणुयस्स लोगस्स, किमिति ?- देसणणाणचरिते तबो विणओ य जेण दंसितो, अतस्ते | चतुर्विंश-18
पूज्या इत्यर्थः । ते का?, उच्यन्ते-चउव्वीसं,अपिशब्दो सब्वेसिं एतद्गुणवत्वं ख्यापयति । इयाणि केवलिात्त,कम्हा ते केवली', तिस्तव M तस्थ गाथा-कसिणं केवलकप्पं० ॥११-३८॥१०९०॥
मान्वर्थ याणि चालणा,आह-लोग उज्जोतेति अलोग न उज्जोति?,उच्यते-(लोए)उज्जोतो,जीवाः संसारांधकारे मग्गा तेषां मोक्षोपदेशनं उज्जोतो, अलोगे णस्थि जीवा नो वा अजीवा तत्र किमुज्जोएंतु, अहवा लोक उज्जोतकरा इति पठितव्वं, एवं पाठी-12 |ऽस्तु, लोक उद्योतकरा इति ब्रुवद्भिः असर्वज्ञं ख्यापितं, येन लोकस्य अन्तो दृष्टः परितत्वात्, अलोकाकाशं न दृष्टमित्यापतिता,
आचार्य आह- लोकस्त्वया न ज्ञायते, लोको नाम पंचास्तिकायात्मकः, एतावति च ज्ञेयानि, योऽसावाकाशास्तिकायः स संपूर्णी| लोके, लोके तु तस्य देवाः प्रदेशाध, तेन सूक्तं पंचास्तिकाया लोका,तेन शोभनः पाठः लोकोद्योतकरा इति, एवं सबविससणाणं
| साफल्लं उपयुज्ज विभासितव्यं, के त जे कित्तणिज्जा केवलनाणी वत्ति ते माणितब्बा, ते इमे उसभादीया बद्धमाणपज्जवसाणा । 13ाइदाणि तेसि संतगुणकित्तणा कातग्वा, सा य संतगुणकित्तणा सामण्णलक्खणसिद्धा य विशेसलक्खणसिद्धा य, सा महंतीए) लाभत्तीए भण्णति, सामान्य लक्षणं-धूप उद्वहने, उन्बूढं तेन भगवता जगत्संसारमग्गं तेन ऋषभ इति, सर्वे एव भगवंतो जगदु
॥ ९ ॥ द्वहन्ति अतुलं नाणदसणचरितं वा एते सामण्णं वा, विसेसो ऊरुसु दोसुवि भगवतो उसमा ओपरामुहा तेण निष्वत्तवारसाहस्स नाम कतं उसभोत्ति, किंच-पढम उसभो महासुविणे दिट्ठो, सेसाणं मातीहिं पढमं गतो १ अजितोचि अजितो परीसहोवस
ॐBARCORRE
R
... अत्र लोक-उद्धयोतकर शब्दस्य व्याख्या क्रियते ... अत्र लोगस्स सूत्रस्य गाथा: २,३,४ मध्ये निर्दिष्ट ऋषभ आदि तीर्थकराणां नाम्नार्थ प्रस्तूयते
(22)
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
4
तिस्तव
प्रत सूत्रांक ||१-01
%AE
%
दीप अनुक्रम [३-९]
चतुर्विश-1४ ग्गेहिं सामणे, विसेसो पतं रमति पुण्यं राया जिणियाइओ गम्भ आभूते माता जिणति सदावित्ति तेण अक्खेसु अजितत्ति लोक
अजितो जातो २ संभवे सामण्णं चोत्तीसबुद्धातिसेसा सव्वसुवि संभवंति अतिसया गुणा य, विसेसो अन्भधिया सासाणं सह जातचि ३ अभिणंदणे अभिमुहा अभिमुख्ये 'दुनदि समृद्धी' अहवा सब्वेवि देवेहिं आणदिया,विसेसेणं भगवतो माया गम्भगए।
तीर्थकुन्ना
मान्वथे। सर्वेषामेव शोभना मतिरस्य सुमतिः, विसेसो गभगते भट्टारए माताए दोण्इं सवत्तीणं छम्मासितो ववहारो छिण्णो एत्थं असोगवरपादवे एस मम पुत्तो महामती छिदिहिति, ताए जावत्ति भणिताओ, इतरी भणिति एवं होतु, पुत्तमाता णेच्छतिचि णातूर्ण छिष्णो एतस्स गम्भगतस्स गुणेणंति सुमती जातो ५ सब्वे पउमगम्भसुकुमाला, विसेसओ पउमगब्भगोगे, पउमसयणीयदोहलोत्ति ६ सव्वेसिं सोभणा पासा तिस्थकरमातूणं च, विसेसो माताए गुब्बिणीए सोमणा पासा जातत्ति, पढमं विकुक्षिया आसी सामण्णं सव्वे चंद इव सोमलेसा, विसेसो चदपियणमि दोहलो चंदाभो यत्ति ८ सामण्णं सव्वे सव्वविधीसु णाणाइयासु कुसला, | विसेसो माताए अतीव कोसल्लं जातं गब्भगते ९ सामणं सीतला अरिस्स मित्तस्स वा, विसेसोवि पुणो दाहो जातो ओसहेहि न लापउणति, देवीए परामढ़े पउणो १० सामण्णं सब्वे सेया लोके, अहवा तेण निवर्तितसरीरा, बिसेसो तस्स रण्णो परंपरागता सेज्जा
देवताए परिग्गहिता अच्चिज्जति अच्छति, न कस्सति ढोकं देति, देवीए गभगते दोहलो, तं सेज्जं विलग्गा, देवता रडितूण पलाता, तेण सेजंसो ११ वसू-देवा वासवो इंदो तेण सब्वेवि अभिगच्छितपुब्बा, विसेसेण इमोत्ति, अहवा वमणि-रयणाणि वासबो-13
समणो सो वा अभिगच्छति १२ सामष्ण सध्ये विमलमती, विसेसो माताए सरीरं अतीवविमलं जातं बुद्धी तत्ति १३ सामण्णं सम्बहिडा॥१० कम्मं जितं, विसेसो माताए सुविणए अणतं महंत रतणचितं दामं दिट्ट अंतो से नस्थि तेण अणंतई, वितिय से नाम १४ सर्वेऽपि
SEARRESENTS
(23)
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति : [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक ||१-७||
II शोभनधर्माः सुधर्मा च, विसेसो अमापितरो सावगधम्मे भुज्जो चुक्के खलंति, उबवणे दढव्वताण १५ सामण्णं सब्वेवि संतिकरा तीर्थकत्स्वतिस्तव
जिणा, विसेसो जाते असिवं पसंतं १६ सामणं कुत्ति-भूमी ताए बसुहाए सव्वे भूमिद्विता आसी, विसेसो माताए धूभो सब्बर-1 तणामतो सुविणे दिट्ठो भूमित्थो तेण कुंथू १७ अरणामर्थ:-सब्बे घणकणगसमिद्धेसु जाया कुलेसु, विसेसो सुमिणे सव्वरतणामओ
अरओ दिडो १८ सामण्णं सब्बहिषि परीसहमाल्ला मलिता, विसेसो मल्सयणे दोहलो १९ सामण्णं सच्चेसि सुब्बता, सिसो* ॥११॥ गम्भगते माता पिता य सुव्वता जाता २० सामण्णे सव्वेहि परीसहा नामिता कोहादयो य, विसेसो णगरं रोहिज्जति, देवी अड्डे
संठिता दिट्ठा, पच्छा पणता रायाणो, अण्णे य पच्चतिया रायाणो पणता तेण नमी २१ आरिष्ठं- अप्रशस्तं तदनन नामितं नेमि | सामान्य, विसेसो रिट्ठरयणमइ नेमि उप्पयमाणी सुविणे पेच्छति २२ सामण्णं सब्बे जाणका पासका य सव्यभावाणं विससो माता | अंधारे सप्पं पासति, रायाण भणति-हत्थं बिलएह सप्पो जाति, किह एस दीसति?, दीवएणं पलोइओ, दिडो २३ सामण्णं सब्वेवि | णाणादीहि गुणीह वती, विसेसा नातकुलं धणरतणेण संवति २४ । एते कित्तिया चउच्चीसपि इति ।
एवं मए अभित्धुता बिहुतरयमला (७५) । थुनीणामएगविताणि अभित्थुणणा०॥११०३ ।। सिद्धा। 'धून कंपने' विविधप्रकारा धुणणा विधुणणा, कि विधूतं ?-रयो मलो य, कम्मपायोगो रयो पद्धो मलो, अहवा रयो पद्माणो मलो पुवोवचितो, अहवा बद्धो स्यो निकाइओ मलो अहवा हरियावहितं रयो संपराइयं मलो, पधीणं जरा य मरणं च जेसि ते पहीणज-k॥११॥
रामरणा, ते पुखुत्ता चउबीसपि जिणवरा, वरा बरिष्ठा इत्यर्थः, अबेचि जिणा अस्थि, न पुण तेसु वरसहो। ते तित्थंकरा टू पसीदतु । कित्तिया उसभादीया, बंदिया 'बदि स्तुत्यभिवादनयोः' उद्देसे पुब्बभणिता तेच्चेवत्ति। लोगस्स उत्तमा उद्-उद्भवो
BEERIES
दीप
अनुक्रम [३-९]
|D लोगस्स सूत्रस्य गाथा-५, ६ आरभ्यते
(24)
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
॥१-७॥
दीप
अनुक्रम [३-९]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [१९०-२०३]
अध्ययन [ २ ],
मूलं [१...] / [ गाथा १-७], निर्युक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
चतुर्विंशतिस्तव
चूण
॥ १२ ॥
र्ध्वगमनोच्छेदनेषु, तिविधातो तमातो उंमुक्का, तेण उत्तमा । को तमो १
मिच्छत्तवेदणि० ।। ११०४ ॥ अहवा तमो-संसारो ताओ उम्मुक्का तेण उत्तमा, ओपातितो वा तमो यैस्ते उत्तमाः, सिद्धा इत्यर्थः । आरोग्गबोधिलाभं समाधिवरमुत्तमं दिंतु । आरोग्गं मोक्खो, बोधिलाभः प्रेत्यधर्मावाप्तिः, सो बोधिलाभो समाधिवरमुत्तमः तं देतु, दध्वसमाधी यमुद्धियं दच्वं यं वा सुसंगोचितं, भावसमाधिनाम यो रागहोसेहिं नावहीरति मरणकाले वा मग्गमारूढो न ओरुमति, झाणसेढीओ वा ण पल्हत्थति, सो तस्स समाधीए बरो, तस्सवि अणेगाई तारतम्माई तेण उच्चमरगहणं आह किं ते पसीदंतिः, जेण तुमे भण्णह तित्थगरा मे पसीदंतु, तहा आरोग्गवाहिलाभं समाधिवरमुत्तमं च मे देतु, किं गुडु णिदाणमेतं १, णु इति वितक्के, किमिदं निदाणं न कीरति?, उच्यते विभासा एत्थ भवति । तंजहा भासा असचमोसा० ॥ ११०६ ॥ सा असवामोसा दुबालसविहा जा सा जायणी सा एसा साधू संसारविमोक्खणं मग्गंति, ण हु खीणपेज्जदोसा देन्ति समाधिं च योधिं च । आह-जदि न पर्सादेति न वा देति तो किं नमुक्कारो कीरति १, उच्यते जथा अग्गी न तूसति न वा देति तहवि जो सीतपरीगतो सो अल्लियति, सो य सकज्जं निष्फाएति, एवं तेवि खीणरागदोसमोहा न किंचिवि देन्ति, न वा तूसंति, जो पुण पणमति सो इच्छितमत्थं लभति, उक्तं च--"चंद्रं द्रष्ट्वा यथा तोयं ०" लोकः, अवि यजं तेहिं दातव्यं ॥ ११०७ ।। तेहिं तिभिवि आरोग्गादीया लामा लब्भंति, जम्हा एतेसिं एते गुणा तेण परमा भची कातब्वा । उक्तं च-भक्तीए जिणवराणं० ।। ११०८ ।। अहबा कहं तेसिं अरुसंताणवि आरोग्गादीणि पाविज्जति १, भण्णतिभत्तीए जिणवराणं विज्जति पुनवसंचिता कम्मा । ततो अस्था सिज्यंति, जथा लोके आयरियाणं नमोक्कारेण मत्तीए
•••जिन भक्तेः फलम् प्रदर्शयते
(25)
बोधिलाभप्रार्थना
॥ १२ ॥
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [२], मूलं [१...] / [गाथा १-७], नियुक्ति: [१०६७-१११३/१०५६-११०२], भाष्यं [१९०-२०३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
५
||१-७||
दीप अनुक्रम [३-९]
चतुर्विंश-IMIमंतादी सिमंति, एवं अत्यादि । आह-जदि एवं तो बरं तित्थगरत्थति चेव करेमो, कि एवढाए खडफडाए, किंच-पुणोकि तपासयमातिस्तव एतप्पभावेण बोधि लभिस्सामो, ततो अण्णं करेस्सामो, इदाणि पुण न सक्कामो, किल एत्थ भण्णति-लद्वेल्लियं च॥११०९ ॥
द्योगः चूर्णी
४ एत्थ लहिऊणं बोहिं जं कातब्वं तं जदि न काथिसि तदा पुण किर बोधि लभेत्ता किं करिस्ससित्ति, ता ते दच्छिसि जह तं बिम्हलो, ॥१३॥
इमं च चुक्किहिसि, दच्छिसिति द्रक्ष्यासि, विम्हलात हे विम्भला, इमाओवि वाधिओ चुक्किाहसि, अण्णाओवि, तओ परितिणिहिसि, जथा सो जंबुओ मंसपेसि जहितूण मच्छ पत्थंतो इमं च अण्णं च चुक्को, अयमभिप्रायः-यदुत ण केवलाओ तित्थगर
त्थुतीओ आरोग्गादीणि भवंति, किं तु एसावि णिमित्र आरोग्गादीणं, तुमं पुण बोहिं लहितूण असदालंबणेहिं पमावतो इमाओ Mचुक्किहिसि, पमादपरुचाएहि य कंमेहि पुणो बोधि दुल्लभा चोल्लगादीहिं दिढतेहि, अतो अण्णच चुक्किादसित्ति । किं च-दहा
उत्थिताणुट्टाणपवित्तीए सुभकम्मोदएणं अण्णा बोधी निब्बत्तिज्जति, जथा अत्थेण अत्थो बज्झति, तुमं पुण इमं पमायंतो अण्णं कतरेण मोल्लेण लम्भिसि ?, लभिहिसीत्यर्थः, स्याद् बुद्धि :-तित्थगरत्धुतीए, तण्ण , जतो अम्हेहिं पुव्वं भणितं जथा न केबलाए तित्थगरत्युतीए एताणि लभंति, किंतु तबसंजमुज्जमेण, एत्थ य उज्जमेंतेण सब्वत्थ कतं भवति चेव , भणितं च भट्टा
रएहिं-चेतिय कुलगणसंघे॥११-६०।१११२॥ तबो १२, संजमो १, एत्थ उज्जमितव्वं, तेसिं बयणे ठितेण तवसंजममुज्जम-18 है तेण तेर्सि भत्ती कता भवति, न इतरेण इति चंदेहिं निम्मलतरा० ॥७॥ चंदादिच्चेहितो कहमाधितं पगासंति, चंदाति
तिच्चाणं उर्दु अधेय तिरियं च परिमितं खत्तं पगासणे, केवलियनाणलंभो लोगमलोग पगासेति | सागरवरो सयंभुरमणो, ततोचि & गंभीरतरा, ण तीरंति परीसहोचसग्गादीहि खोभेतुं । एवंगुणा ते भगवंतो सिद्धिं गता, मे सिद्धा सिद्धि दिसंतु, एवं तेसि मह
॥१३॥
|D लोगस्स सूत्रस्य गाथा-७ आरभ्यते
(26)
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक ॥ १-७॥
दीप
अनुक्रम [3-9]
...
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [११११८-१२२९२ / ११०३-१२३० ],
यं [२०]
अध्ययनं (31.
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
चन्दनाध्ययन
चूण
॥ १४ ॥
तीए भतीए समुकीचणा कता । सुत्तफासिया गया, नया तहेब जहा सामाहणे दोष्णि गाथा, इत्यादि चर्चः ॥ काव्वीसत्थयचुण्णी समत्ता, अहवा लोओज्जोयगरचुण्णी आदाणपदेणं ॥
अह वंदणगज्झयणं, चउव्वीसत्थयाणंतरं बंदणगज्झयणं, एतस्स को मिसंबंध ः १, जेहिं सामाइकमुपदिष्टं तेर्सि समुक्कित्तणा कातव्वति तदणंतरं अरिहसमुक्कित्तणा कता, गणधरादीहिवि एतं पणीतं अतो गणधरआयरियादणिवि दर्ज कातव्वंति भण्णति, अहवा सामाइए ठितस्स जथा तित्थगरा पूज्या मान्याश्र तथा गणधरादीवि, अतस्तदर्थं बंदणगं भण्णति, एवमादिसंबंधेणायातस्स वंदणगज्झयणस्स चत्तारि अणुयोगद्दाराणि उवक्कमादीणि सहेव वष्तव्वाणि जाव नामनिप्फण्णों निक्खेवो बंदुणगंति, एत्थ यत्थाधिगारो गुणवंतस्त गणधरादिस्स पडिवची-चंदणगमिति कोऽर्थः १-" यदि अभिवादनस्तुत्योः शुभेषु वा अर्थेषु वागादीनां दानं ॥ बंदनं चतुब्बिहं, दो गता, दव्ववंदणगं दव्वभूतस्स दव्वनिमित्तं वा अण्णउत्थियाण वा भाववंदणगं निज्जरडियस्स साधुस्स बंदमाणस्स । तस्स एगडिताणि वंदणगन्ति वा चितिकमति वा कितिकमति वा पूजाकमंति वा विषयकंमंति वा । तत्थ बंदणए उदाहरणं
एगस्स रण्णो पुत्लो सीतलो नाम, सो य निष्णिकामभोगो पव्वइओ, पढतो आयरिओ जातो, तस्स य भगिणी पुषदिण्णा अण्णस्स रायाणगस्स, तीसे चत्तारि पुत्ता, सा तेसिं कतरेसु कहेति, जथा तुम्भं तु मातुलो पञ्चइओ, एवं कालो बच्चति । सेवि अण्णदा तथारुवान थेरान अंतिए पव्वता, बचारि बहुसुता जाता, माउलगं वंदना जंति, एगंमि नगरे सुतो, तत्थ
वंदनकं विषये शितलाचार्यस्य कथानक
आवश्यक सूत्रस्य द्वितियं अध्ययनं समाप्तं अथ तृतीय अध्ययनं आरभ्यते
(27)
संबन्धः
॥ १४ ॥
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[3]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 मूलं [१] / [गाथा-1, निर्युक्तिः [११११८-१२२९२ / ११०३-१२३० ],
यं [२०]
अध्ययनं (31.
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
वन्दनाध्ययन
चूर्णां
।। १५ ।।
गता, निगालो जातुचि बाहिरिवाए ठिता, सावओ य नगरं पविसितुकामो, सो मेहिं भणितो- सीतलाणं आयरिमाणं कद्देज्जहति जं जे तुम्भ भाइणेज्जा ते आगता, विगालोत्ति न पविडा, तेण कहितं, ते तुट्ठा, इमेसिपि रतिं सुभेणज्हावसाणेणं चण्डवि केवलनार्थ उप्पण्णं, पभाते आयरिया दिसाओ पलोएंता अच्छेति एताए मुहुत्रेण एहिन्ति, सुत्तपोरिसिंपि मण्णे करेंतिीत अच्छंति, उषा डाए अत्थपोरिसिंति, अतिचिरावेंते तं देउलियं गता, ते वीतरागा पाडायंति, डंडओ ठवितो. पडिक्कतो, आलोइयं संदिसह कतो वंदामि १, तेहिं भणितं जतो रोयति, सो चिंतेति अहो दुट्ठसेहा पिल्लज्जचि, तथावि रोसेणं चंदति, केवली य किर पुव्वपवर्त्त उपयारं न भेजति जाव न पडिभिज्जति, एस जीवकप्पो, तेसु नत्थि पुव्यपवत्तो उवगारोति भणति अज्जो दव्ववंदण एण वंदितं, एचाहे भाववंदणएण चंदाहित्ति, ते य किर तं वदतं कसायकंडएहिं छाणपडितं वतं पेच्छति तेण पडिचोदितो, सो भगति एतंपि गज्जति १, तेहिं भणितं वा किं अतिसयो अत्थि ?, आमं किं छउमत्थिओ केवलिओ १, भांति केवलिओ, ताहे सो फिर तब उद्धसितमकृषो अहो मया मैदभग्गेण केवली आसाइतचि संवेग गतो तेहिं चैव कंडमडाणेहिं परिनिय जाव अपुव्यकरणज्झाणं अणुष्पविडो जाव केवलनाणं समुप्पष्णं चउत्थगं वंदेतस्स समत्तीए, सच्चेक काइया चेझ एगंमि बंधाय एगंमि मोक्खाय । पुव्वि दव्ववंदणगं जातं ॥
इदाणिं चितिकमं, दव्वचिती भावचिती य, 'चिं चयने' दव्वाचिती पेढे, अहवा रयहरणादी बाहिरं लिंग, एस लोउत्तरिया, लोइया बोडियनिण्हगतच्चण्णियाणं लिंगगहणं । भावचिती णाणदंसणचरणाण उवचयो । तस्थ उदाहरणं- खुट्टओ। एगो आयरिओ, तेणं कालं करेमाणेणं लक्खणजुत्तो आयरिओ ठवितो, सो खुट्टओ, ते सव्वे पन्चदया तस्स भय पामेण य अतीव
... चितिकर्म-विषये क्षुल्लक-साधोः कथानकम्
(28)
चन्दनादिषु दृष्टान्ताः
।। १५ ।।
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत सूत्रांक
[1]
दीप
अनुक्रम [१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
वन्दना
ध्ययन
चूर्णी
॥ १६ ॥
बठ्ठेति, तेसिं च कडादीगं घेराणं अंतियं पढति, अण्णदा मोहणिज्जेण वाहिज्जेतो भिक्खाए गतेसु साधुसु वितिज्जएवं सण्णापाणियं आणावेत्ता मत्तयं गहाय उवहतपरिणामो वच्चति, दूरं गतो परिसंतो एगत्थ वणसंडे वीसमति, तत्थ वणसंडस्स पुल्फियफलियस्स मज्झे समी असणवसणादिया चेहयाए पेढियाए य सुपरिग्गहिता, तीसे तद्दिवसं जत्ता, लोको महतीइडीए अच्चति धुव्वति, किं एतं अच्चेह १, इमे असोगवरपादवे ण अच्चेह, ते भति-पुब्वएहिं एयं कतेयं तं जणो चंदति, तस्स चिंता जातापेच्छह जारिसिया समी तारिसओमि अहं, अण्णेवि तत्थ बहुस्सुता रायम्भत्ता अस्थि ते ण ठविता, अहं ठवितो, तो ममं पूयंति, कतो मज्झ समणत्तणं, रतहरण चितीगुणेणं बंदंति जेण आयरिएहिं जितो ठवितो, एरिसियं रिद्धिं मुहसा किह गच्छामि १, तत्थेव णिन्विष्णो वेयालिये पडिनियत्तो, इतरेवि भिक्खातो आगता, मरगंति, ण लहंति सुर्ति वा पवर्त्ति वा, सो आगतो आलोएति जहाऽहं समाभूमिं गतो, सूलो उद्धातितो, तत्थ पडितो. पुणो वोसिरावणियाए दुक्खवितो अच्छितो, इदाणि उवसंतो आगतो मि, ते तुड्डा, पच्छा कडादीण आलोएति, पादच्छित्तं च पडिवज्जति, पच्छा तस्स भावचिती जाता. णाणदंसणचीरताणि भावचिती । चितित्ति गतं ॥
इदाणिं किकमं, कृत्य कर्म गुरूणां दव्वकितिकम्मं णिण्हगादीण अणुवउत्ताणं उवउत्ताणं वा दव्वाणमित्तं वा भावकि तिकमं णीतागोतादिकंमक्खवणदृताए जं कीरति, तत्थ दव्वकितिकमे भावकितिकंमे य उदाहरणं- वारवती वासुदेवो, वीरओ कोलिओ, सो वासुदेवभतो. सो य किर वासुदेवो वरिसारते बहवे जीवा वहिज्जेतिति ण णीति, सो वीरओ वारमलहंतो पुप्फपुडियाए बारस्स मूले अच्चणितं काऊण वच्चति दिने दिणे, ण य जेमेति, ओरूढमंसु जातो, वत्ते वरिसारत्ते राया पीति, सब्वेवि
•••• कृतिकर्म-विषये वीरक एवं कृष्णवासुदेवस्य कथानकम्
(29)
चन्दनादिषु दृष्टान्ताः
॥ १६ ॥
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
वन्दनाध्ययन चूर्णी
दीप अनुक्रम [१०]
रायाणो उपट्टिता, वीरओधि पाएसु पडितो, राया पुच्छति-वीरओ दुब्बलोत्त, बारवालेहि जहावत् कहित, रो अणुकंपा जाता, वन्दनादिषु
दृष्टान्ताः अबारितोवाती सो कतो। वासुदेवो य किर धीताओ जाहे विवाहकाले पादर्वदियाओ एन्ति ताहे पुच्छति-किं पुत्तगे! दासी होहिसि । सामिणिति ?, ताओ भणंति सामिणिओ होमात्त, राया भणति-तो खाई पन्वयह भट्टारगस्स पादमूले, पच्छा महता णिक्खमणसक्कारेण सक्कारियाओ पव्वयंति, अनदा एगाए देवीए धीया, सा चिंतेति-सव्वातो पव्वाविज्जति, ताए पिता सिक्खाविता-1* भणाहि-दासी होमिति, तहेच अलंकितविभूसिता उवणीता, पुच्छिया भणति-दासी होमिात्ति, भणिता-दुक्खिता होहिसित्ति, वासु-18 देवो चिंतेति-मम धीता संसारे हिंडिहित्ति तो ण लडगं एतं, को उवाओ होज्जा? जेण अभावि एवं ण करेज्जति, लद्धो उवाओ, वीरगं पुच्छति-अस्थि ते किंचि कतपुवं, भणति-पत्थि, चिंतेहि, ता सुचिरं चिंतेत्ता भणति-अस्थि, बदरीए उवरि सरडो सो पाहाणेण आहणित्ता मारितो, सगडबहाय पाणितं बहतं वामपादेण धरित उब्वेल्लं गतं, परजणघडियाए मच्छियातो पविट्ठाओ हत्थेण आहाडिताओ गुमुगुमैतीओ होडन्ति, वितिए दिवसे अस्थाणीआए सोलसण्हं रायसहस्साणं मझे भणति- सुणेह भो एतस्स वीरगस्स कुलुप्पत्ती भए सुता,कंमाणि य, वासुदेवो भणति-जेण रत्तसिरो णागो, वसंतो बदरीवणे । पाडितो पुढविसत्थेण, वे मती णाम खत्तिओ ॥१॥ जेण चक्खुक्खया गंगा, वहती कलुसोदगं । धारिया वामपादेण, वे मती णाम खत्तियो॥२॥ जेण घोसवती सेणा, वसंती कलसीपुरे। वारिया वामहत्थेण, वे मती णाम खत्तिओ ॥३॥ एतस्स धीतं देमि, दिमा, सो ॥१७॥
भणतितो-धीतं ते देमि, णेच्छति, भिउडी कता, दिना, णीया, सयणिज्जेणच्छति, इमो से सव्वं करेति । अभदा राया पुच्छति-13 हाकिह वयणं करेति ण करेतित्ति , वीरओ भणति-ताए अहं सामिणीए दासत्ति, राया भणति-जति सव्वं ण कारवसि तो ते णत्थि |
CREASE
(30)
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
वन्दना ध्ययन
॥१८॥
दीप अनुक्रम
55655
फेडओ, तेण रमो आकृतं पाऊणं घरं गतेण भणिता, जहा-पज्जणं फरेहित्ति, सा उद्विता, कोलिया! अप्पाणगं ण याणसित्ति, वन्दनादिषु हातेण उठेऊणं रज्जुणा पहता, कूवेंती रंनो मूलं गता, पादपडिता भणति- अहं तेण कोलिएण हता, राया भणति-तेण चेवासि मते ५
मणिया-सामिणी होहित्ति, तो तुमे दासत्तणं मग्गितं, अहं एचाहे ण वसामि, सा भणति-एताहे सामिणी होमि, राया भणतिजति वीरओ समणिहिति, मोहया, पच्वतिया। अरिडणेमिसामी समोसरितो, राया णिग्गतो, अट्ठारसचि समणसाहस्सीओ वासुदेवो वंदेउकामो मट्टारयं पुच्छति- अई साहू कतरेण चंदणएण वंदामि, केण पुच्छसि-दब्बबंदणएणं भाववंदणएण', सो भणति-जेण तुम्भे चंदिता होह, सामी भणति-भाववंदणएण, ताहे सव्वे साहुणो बारसायत्तेणं बंदणएणं बंदति, रायाणो परिसंता ठिता, वीरतो वासुदेवाणुवत्तीह पंदति, कणो बद्धसेतो जातो, भट्टारओ पुच्छिओ जहा अहं तिहिं सड्ढेहिं संगामसएहि ण एवं पारसंतोम्मि,सामी भणति-तुमे खीतयं संमत्तं उप्पाडित,तुमए एयाए सद्धाए तिस्थकरणामगोतं कर्म णिच्वत्तियं, यदा किर विद्धो सि तया जिंदणगरहणाए सत्तमाए पुढवीए बद्धेल्लयं आउयं उब्बेढंतणं तच्च पुढविमाणितं, जदि आउयं धरतो तो पढमपुढविमाणेतो, अने भणतिइहेब बंदतेणंति, भाषकितिकम वासुदेवस्स, दब्बे वीरगस्स ॥
दार्णि पूयार्कम,पुरस्तात् पूज्जा पूजा,दब्वपूया णिण्हगादीणं, भावपूया परलोगडिताण । तरथ उदाहरणं दो सेवगा, तेसि अल्लिणा गामा, तेसि सीमाणिमित्तं भंडण जातं, ताहे ते णगरं रायसमीर्य संपस्थिता, तेहिं साधू दिडो, तत्थ एगो भणति-साधू ॥१८॥ दृष्ट्वा धुवा सिडिशि पदाहिणं काऊणं बंदित्ता गतो। बितिओषि तस्स किर ओग्घहयं करेति, सोऽपि वंदति तं चेव मणति, | ववहारे आबद्धे जितो, दब्बपूया तस्स, इतरस्स भावपूया ॥
[१०]
... पूयाकर्म-विषये कथानक
(31)
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[3]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [११११८-१२२९२ / ११०३-१२३० ],
यं [२०]
अध्ययनं (31.
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
बन्दना
ध्ययन
चूर्णी
॥ १९ ॥
इदार्णि विषयकंमं । विनयनं विनयः, दव्वविनयो विभासियो, भावे य । तत्थ साम्बपालगा उदाहरणं चारवती वासुदेवो; नेमी समोसढो, वासुदेवो भणति - जो कल्लं सामि पढमं बंदति सो जं मग्गति तं देमि, संत्रेण य सयणिज्जाओ उट्टेचा वंदितो, पालतो रज्जलोभा एसिग्घेणं असणं पर गतो वंदति, सो य किर अभवसिद्धिओ बंदति, हियएण अक्कोसति, वासुदेवो गतो, पुच्छति केण तुम्भे पढमं वंदिया १, सामी भणति दव्वतो पालएणं, भावतो संवेणं, ताहे संचस्स दिनं । एवं भाववंदणएण बंदितव्यं ।
एवं कितिकम् काति दिद्धं । तत्थ इमाणि दाराणि कस्स कैण काहे कतिखुत्तो कतिओणयं कतिसिरं कतिहि व आ वस्सएहिं परिसुद्धं कतिदोसविप्यमुक्कं कीस कीरतित्ति दाराणि ॥ कीसन्ति दारं, कास कितिकम्मं, कास ण कायव्वंति, तत्थ ताव इमेसि ण कायव्वं असंजताण ण कायव्वं, जदि ते पृथ्वं पुज्जा आसी, कतो ?, मातरं पितरं गुरुं सेणावर्ति पसत्थारो रामाणं देवताणि य, माया ताव लोगे देवतं सा ण वंदितव्या असंजयत्ति, एवं पितावि, भातावि, गुरू णायपित्तियओ मातुलओ समु रओ एवमादि, उवज्झातो वा सिणकलादिसु होज्जा, सेणावती जहा गणराया, पसत्थारो जे पसत्थेहिं कंमेहिं अत्यं वणिज्जत जहा सत्थवाहादओ, राया पंचमी लोगपालो, देवताणिविण वद्धंति, किमंग पुण मणुया?, चसरेण पुत्रं जेहिं कला गाहितपुष्वा अनतित्थियात्रि, जतिचि ते लोइए धम्मे ठिता तहवि ण य बंदियब्वा । केसिं पुण कायव्वं कितिकम्मति ?, भण्णति
समणं वंदेज्ज० ।। १२.६ ।। १११८ ।। 'श्रमु तपसि खेदे च' श्राम्यतीति श्रमणः तं वंदेज्ज, केरिस ? 'मेधाविं' मेरया भावतीति मेधावी, अहवा मेधावी विज्ञानवान् तं पाठांतरं वा समणं वंदेज्ज मेधावी, तेण मेघाविणा मेधावी वंदितो, चर
... विनयकर्म विषये शांब एवं पालकस्य कथानक
(32)
वन्द्या
बन्याः
॥ १९ ॥
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[3]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
वन्दनाध्ययन
चूण
॥ २० ॥
भंगो, चउत्थे भंगे कितिकंमफलं भवतीति, सेसएसु भयणा । तथा 'संजतं' संमं पावोवरतं, तहा 'सुसमाहितं' सुद्ध समाहितं सुसमाहितं णाणदंसणचरणेसु समुज्जतमितियावत् को य सो एवंभूतः ?, जो पंचसमितो तिगुतो अहिं पवयणमाताहिं ठितो असंजम दुर्गुछतित्ति, एवंगुणसंपउता बंदणिज्जा, ण पुण जे समणा मेधावी संजता जाव दुगुंछगा इव प्रतिभासंते, जहा णिण्डगा, जेण ण ते इद्द भट्टारगाण सकलं मेरं धावेतित्ति ॥ किं च-इमेवि पंच ण बंदियब्वा समणसदेवि सति, जहा आजीवमा तावसा परिव्वायगा तच्चणिया, वोडिया समणा वा इमं सासणं पडिवचा, ण य ते अन्नतित्थे ण य सतित्थे, जेवि सतित्थे न प्रतिज्ञामणुपालयंति देवि पंच पासस्थादी ण वंदितव्या । एत्थ दारगाथा
पंच कितिकम् ॥ १२-३ ।। १११९ ।। णणु किं जातं ? जं एते ण बंदिज्जति ओबाते?, पासत्थादी० ॥ १२-८॥ ११२० ॥ एते बंदमाणस्स व कित्ती अहो इमो विणीओति एवमादि, अकित्ति पुण आवहति ते बंदतो, जहा एरिसो महप्या एचो एवं एते वंदंति, नूणं एसवि एरिसोति अकिसी भवति, णिज्जरा होज्जा सावि णत्थि ?, कहूं ? ते जिणाणं अणाणार वति, ते बंदमाणस्स जिणाणं आणावतिक्कमेण कम्मं बज्झति, कतो णिज्जरा १, एवं च काइया चेडा णिरत्था णाम कुणति तें वंदेतो, तहा कंमबन्धं च, जतो आणादीया दोसा, कहं १, ते भगवतो अणाणाए वट्टमाणे अवंदणिज्जे बंदमाणस्स आणालोवो, सो अ णं बंदति पासत्यादि, ते बंदिज्जमाणे दद्दूणं सेहस्स वा सस्स वा डिगमणादयो दोसा भवेज्जा, जं ते गया काहिंति सो तस्स उवरिं कंमयंघोति, तदणुमतिमादीहिं संजमादिविराधणा, एवं विभासा, चसदा संसारंच सुचिरं हिंडिहिंति । एसो वेदमाणस्स दोसो, जो पुण तेसु ठाणेसु बट्टमाणो वंदावेति तस्स इमे दोसा-
••• वंद्य अवंद्य साधुनाम् वर्णनं
(33)
बन्द्या
वन्द्याः
॥ २० ॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सुत्रांक [१]
बन्दना
जे बंभचेरभहा०॥ १२-९॥ ११२१ ॥ जो ताव अब्बभं सेवति सो ताव भट्ठवतो चेष, नट्ठा य भट्ठो य, भचेरं नाम कुशी ध्ययन संजमचरणं, ततो जे भट्ठा गुणाहीणा गुणाहिते पादेसु पाति ते संसारं बडेति, दुब्बोधिलाभियं च कम्मं करेंति, सुचिरपि हिडिऊणं
जरावि माणुसत्तणं वा लमीत तदावि विगलिंदिया इंटमेंटगा अंधबहिरा रोगिया य भवंति, जथा- लघृणवि धम्म न सक्छति | ॥२१॥ कातुं, अविय० ते नासितुकामा नट्ठा जे संजमे न उज्जमंति, सुठुतरं नासंती ॥ १२.१० ॥११२२॥ के ण ते सुसमणा', उव-1
| रिल्लएहिं कंडगडाणेहि बट्टमाणा सुसमणा भवति, जे ण य जधुत्तं करेंति, गुरुजणा चरिताधिगा, चसहा कारयति उपदिसंति य | जहुतं, एवं ते गट्ठा णासंति पूणरवि, जम्हा एते दोसा तम्हा ण ते ते वंदितम्वा, ण वा तेहिं बंदावेतन्वं । आह-जे पुचि बेहारुया,
पच्छा पासस्थादी जाता तेसिं कि, एवं चेव, यतो-असुइहाणे, अहवा न केवलं पासत्थादीणं एते, जेवि इतरा तेहिं समर ६ संवसंति तेसिीप एत, जतो असुइ० गाथा ॥१२११. ।। ११३३ ॥
एगो चपगपिओ कुमारो, सो चंपगमालाए सेहरं रयेतूण आसेण जाति, सा से चंपगमाला विगलिता, मीढस्स उबरि | पडिता, तेण हत्थो पसारितो, मीढं दट्टण मुक्का, सो य चंपएहि विणा घिति न लभति तथावि ठाणदोसेण मुक्का, एवं जना द्रमाला तारिसा सुविधिता साधू, जारिसतं तडाण तारिसया पासत्थादी ठाणा, बेहि पदेहिं पडिसीवएहिं पासत्थो होति सेज्जा-18
तरपिंडादीहिं तेमु जे पडिता ते परिहरितव्या, जहा माला, अहवा पासत्थादीहाणेसु बट्टमाणो नाम जे मुद्धावि पासस्थाद्रीहिं ॥२१॥ समं संघसन्ति संवासेंति वा तेवि परिहरणिज्जा इति । अहवा इमं उदाहरणं, एवं बा परिहरितच्या । तत्थ गाथा
पक्कणकुले वसंतो० ॥ १२१२ ॥ ११२४ ।। एगरस पिज्जातियस्स पंच पुत्ता, ते पंचवि श्रवणीयपारगा चोद्दसविजा
SARACKASS
ॐ4%82
दीप अनुक्रम [१०]
... पासत्यादि साधूनां संसर्ग-त्याग:, ... अत्र चंपकप्रियकुमारस्य द्रष्टांत
(34)
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
संसगेत्यागः
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना- 13 हाणाणि ससुत्नत्थाणि जाणीत, तत्थ एगो एगाए दासीए सम संपलग्गो, सा मज्ज पिज्जति, इमो य ण पिवति, तीए भण्णति-| ध्ययन
जिदि तुम पिवेज्जासि तो णे रती होज्जत्ति, इहरथा विसरिसो संजोगोनि, एवं सो ताव पहुसो २ भणतीए पाइतो, सो य चूर्णी
पुर्व अण्णेण आणावति, पच्छा पच्छष्ण सयमेव आणेति, एवं काले वच्चंते आढचे पक्कणकुलेसुवि पिवितुं, तेहिं चेव पियति ॥२२॥
|य वसति य, तेणे तस्स सयणेण सव्ववज्झो कतो अभोज्जो य कतो, अण्णदा सो पडिभग्गो, एगो से भाता हेण कुडिं पविसिऊणं पुच्छति देति य से किंचि, सो णिच्छ्डो, अण्णो बाहिं पाडिएसओ देति पुच्छति य, सोऽपि निल्छूढो, ततिओ ण जाति, ट। बाहिरपाडए संतओ देति पुच्छति, परंपरएणं दवावति, सोऽवि निच्छूढो, पंचमो गंधपि न सहति, करणं जाइउं तेण मरुयएण तस्स पुत्तस्स सबं दिण्णं, इतरे पत्तारिवि निच्छूटा, लोगे गरहिता य जाता, एस दिलुतोऽयमर्थोपनया-जारिसया पक्कणा तारिसया पासत्यादि, जारिसयो धीयारो तारिसा आयरिया, जारिसया पुत्ता तारिसया साहयो, जथा तेण णिच्छूडा एवं निच्छू
म्भंति, कुसीलसंसम्गि करेंता बज्झा गरहिता य भवन्ति, जो पुण परिहरति सो पुज्जो सादीय सपज्जवसित च निव्वाणं पाविहिति। इणणु को दोसो संसग्गीए जेण ते परिहरिया ?, णवर अखंडियचारित्तण होतब्वं, भण्णति-संसग्गीचि विणासिता कुसीलेहि, उक्तं च
"जारिसरहिं मित्तिं करेंति अचिरेण तारिसो होति । कुसुमेहिं सह वसंता तिलावि तग्गंधिता होति ॥१॥" आहन एस नियमो जथा संसग्गीए दोसेहि लिंपिज्जति, कह?-सुचिरंपि अच्छमाणो. ॥११२५।। जथा बेरुलिओ कायमणीण मजे I सुचिरपि अच्छमाणो कायमणी न भवति, एवं साहूवि सुचिरपि अच्छमाणो न चेव पासत्थादी मविहितित्ति अत्थ न दोस इति, न चैतत् प्रतिज्ञायते, यतोऽभिप्राय वं न वेत्सि, तथाहि- न मयोक्तं यथा मनुष्यः तिर्यग्योगाचिरयो भवति, यदि मयैतदुक्तमभ
CAR+SAR
(35)
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
संस
सुत्रांक [१]
***%
दीप अनुक्रम [१०]
विष्यनतो युक्तमेवं वक्तुं यथा वैडूयः काचसम्मिश्रः किं न काचीमवति ।, किंतु मयोक्तं तस्स पासस्थादीसंवासेणं णाणदंसणावन्दना-
दयो गुणा परिहार्यति, आदर्शवत् , जथा आदरिसो अपरिसीलणाए सामाए घच्छो मलिणीभवति, या सा रूपदर्शनक्रिया सार ध्ययन चूर्णी
| तत्र परिहायति, तथा नानादीमवीत, एवं मयोक्त-शीलं नश्यति मलिनीभवति, घनमूलोद्वर्तनेन सर्व एव नश्यति, अवो अनुक्तो- त्यागः
पालंभा, किंच- बैडूर्यस्यापि वमणविरेयणउप्पादीहिं छाया कज्जति, आदर्शवत , यो तु कायमणीण मज्झगतो धरिज्जति, उप्पण्णा॥२३॥ दीणि न कीरति. तस्स बण्णरसगंधफरिसादीणो हायति, तम्हा संसग्गीवि विणासिया गुणाण ॥ किंच-विहाणि दवाणि-भावुउगाणि अभावुगाणि य, तस्थ पारादीणि गंधादी हिं अभाविताणि, तहाविहा उ केवलिमा, जे ते मातुन सकिज्जात पासत्थट्ठा
हिं, भावुगं छउमत्थस्स गंधो, सो न सक्कति तदभाविगं गंधता, भाविग.तु पाडलादीहि कवेलुगादी, स्यात् बुद्धिा-जीवदव्बंपि | अभावुगमज्झे भविष्यति, अत उच्यते-(११२७) जीवो अणादिनिहणो पमादभावणभावितो य संसारे सो य मेलणदोहै साणुभावेणं खिप्प भाविज्जतित्ति । एत्थ संसाम्गिविणासे दिट्ठतो
अवस्स य० ॥ ११२८ ।। निवोदएणं कहुयएणं भूमि भाविता, अंचओ तत्थ जातओ, पुणोनि तेसिं परोप्परओ मूला संपलग्गा, तेण संसग्गिदोसणं कडयओ जातो, तम्हा संसग्गी विणासका अपात्रेहिं सह । आह- जदि संसग्गी गुणदोसे पमाणं 8 * ततो निग्गुणोवि गुणवंतेहिं सह मिलितो तारिसो भवतु, न च भवति, जओ सुचिरंपि अच्छ० ॥ ११२९ ॥ नलत्थंभो उच्छु-४॥२३॥
मज्झे परिमलेणं उदएण य मूलेहि य कीस मधुरो ण जायति ?, उच्यते विहितोत्तरमेतत् , भावुगअभावुगाणि य० गाथाए, द्र यतः नलत्थंभो अभावुगो, जो पुण भावुको सो भाविज्जति दोसेहिं वा गुणेहिं बा, जदि हि संसग्गिमविनासिका स्थाचतो युक्त
RARIA
... दोष-गुणानाम् संसर्गत्वं वर्णयते
(36)
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना-8 मेवं वक्तुं, यस्मात्तु संसग्गी निनासिका भवत्यविनासिका च ततः प्रतिषिध्यते, अणस्थसंदेहोवि निवित्तीए अंगमित्तिकातुं । किंच-18 कुशीलध्ययन
जे भगवन्तो जिनादयस्तेषां यत्र वा तत्र वापि वसतां नैव दोषा यत् आत्मसमुत्था उत्पद्यन्ते, किंतु तं वेतालेतूण गहितव्वं जाला चूणों IPसहूणं असणं च सवेसामेव वारण अणवस्थपसंगाद् , अदोसवारण च, जथा मरुएणं सेसावि परिचचा पुत्ता एगस्स परिरक्खण
त्यागः २४॥
निमित्तं अणवत्थादिनिवारणत्थं च, एवमिहावि, उक्तं च-"रपणो गिहवतीणं च, रहस्सारक्खियाणि य ॥" सिलोगो । तता यद्यपि सम्बेसि ते दोसा न उप्पति तथावि सव्वेसामेव वारण कत, एवमिहापि वारण, अहबा एक्को न विनट्ठ इति न घेत्तव्य, सिद्धोऽप्यनयो न प्रशंसितव्यः, तस्मात्तैः सह संसगी वर्जनीया इति । पुणो आह- आलावादिमेत्तं संसम्गि जदि करेज्ज ता किं, भण्णति-न कप्पति, यतो
____णगसयभागणवि०॥ ११३० ।। जथारिट्टे कट्ठ वा सिला वा लोहं वा दुपदं वा चतुष्पद चा पडित समाणं लवणीसामवति, तस्स लवणस्स उवरियो अंतो तस्स दन्चस्स हेडिल्ला भाया जो तमि लोणे पतिहितो सो सहस्सतिमो होज्जा अतिरित्तो वा,
एत्तिल्लियाएवि संसग्गीए उपरिमं असंबद्धमवि लोणीभवति अचिरेणं, एवमिहापि, एवं खलु सीलमतो०॥११३२।। सीलमनोवि
होन्तओ ताणं थोवाएवि संसग्गीए णासति संवसणाणुमोदणादीहिं संजमाओ, इहलोगेवि ताण तणएहि दुच्चरिएहिं घेषेज्जा, 8 एसोचि ताण मझेत्ति, आदिग्गहणेण न केवलं लवणागरे, अण्णोऽवि भंडखाइया नाम रसो अस्थिति सुणिज्जति, वत्थ लोहपि
जाप ओगाहिज्जति ताव फाति, ओक्खिप्पंतो जत्तियं अवगाढं तं तत्थेव गहुँ, जचियं न ओगाद तत्तिय अच्छति, अतः एषमा-&िा॥२४॥ | दिसु कारणेसु खणमवि ण खमं काउं० ॥११३३॥ किं पुण चिरओ ?, एवं सीलवान तैमिलितः लहुं चेव भंडखाइयांदिढतेण
(37)
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[१]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
बन्दनाध्ययन
चूर्णी
॥ २५ ॥
नासति । तथा-गवासनानां स गिरः शृणोति अहं च राजन् ! मुनिपुंगवानाम् । प्रत्यक्षमेतद्भवतापि दृष्टं, संसर्गजा दोषगुणा. भवन्ति ॥ १ ॥ तथा हन्दि समुदमुपगतं उदगं लवणत्तणमुवेति हन्दीति उपप्रदर्शनार्थः । सीसो आह-दुविष्णेयो सुविहितदुविहितभावो, अहं च छउमत्थो, सव्वण्णूणमेव स विसयो, किं तु लिंग दर्द्ध णमामि तिकरणपरिसुण भावेणत्ति । आयरिओ मणति एवं तुमे लिंगं पमाण कतं, अतः यदि ते लिंग पमाणं तो नाम तुमं निण्हए वंदाहि सब्बे, सीसो भणति--न वंदामि किं कारणं १, जेण ते मिच्छादिट्ठी, जदि निण्डए लिंगी न बंदसि तो तुम अप्पाणं अप्पमाणं करोसि, एवं लिंगमंचस्स वंदणगपचित्तिए अप्पमाणतायां प्रतिपादितायां सत्यामणभिनिविडो चैव सामायारिजिष्णासया सीसो आह
जदि लिंग० | ११३६ ।। जदि लिंगप्पमाणेणं पणमंतस्स य दीसते दोसो निण्हणणं, भावो य निच्छरण ण णज्जति, तो अम्देहिं समणलिंग दणं किं कातव्वंति ?, आयरिया भणति, तत्थ-
अ० | ११३७ || अवं दणं अभुतव्यं, न नज्जति को सो तेण विधाणेण एति, सो य इहइएहिं पारलोइएहि य अतिसएहिं जुतो, सो य आगतो एस तस्स देमिचि, तेण नव्भुट्टितो, तेन दुट्ठरुद्वेण न दिण्णं, जथा सुवण्णभूमिं गता अज्जकालगा पसीसस्स मूल, आसादणा य गुरूणं, तम्हा अब्भुतव्या, किमालवणं किच्चा १, साधुति, अदिव्वे एवं दिवाण जदि अभुड्डाणरहितो अभुट्टिज्जति, इतरो नवि, लिंगी पुण अप्पसुतो वा बहुसुतो वा उस्सग्गेण णन्भुडिज्जति, अववादिण पुण कारण पड़च्च जतणाएं सव्र्व्वपि कीरेज्ज णिद्वेधसस्सावि, तत्थ गाथा
वायाए नमोकारो० ॥ १९३९ ।। पढमं वायाए आलविज्जति अमुगत्ति, सागतंति वा, तथाविहं पड़च्च सहीलं नमो तंति
•••लिंग्मात्रे कर्तव्यता
(38)
लिंगविचार:
।। २५ ।।
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
विचार:
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना-13 हत्था या उस्सविति, सीसेण वा पइसेसित्ति, संपुच्छणं किहं स्येवं भौति,एताणि वाहिएताणि चव अंतोवि करेज्जा,उल्लावसध्ययन लालावे, सद्धिं वा अच्छेज्जावि, तत्थ छोभवंदणगंवा देज्जा अणाढाए आरभर्ड, सो वा संविग्गो अ,सो जाणति ताहे परिसुद्धपि चूर्णी
दिज्जति, पुण बंदिज्जति एवं भडारगाणं गुणे पूर्यतेणं, तत्थ पुण किं आलवणं कातव्व॥ २६॥
परियायः॥ ११५० ॥ परियाओ दीहो भचेरस पुवंति, परिसा वा से विणीतादी, एसो जदिवि न लइओ, परिसं ताजाणति कुलगणसंघकज्जाणि आयत्ताणि, आघवओ जदिन वंदिहामि तो लोगो सण्णति मुतिहितित्ति । अपि च प्रावचनी
धम्मकधी' श्लोकः ।तमि वा खेते तस्स गुणेण अच्छिज्जति, ओमोदरीयादीए वा काले पडितप्पति, आगमो वा से अस्थि जथा मम(संम)सिवायगस्स तं जुगमासज्ज,एवमादि कारणजातं पडच्च ज जस्स अरिहं तं जांग बाबार कुज्जा,अहया कारणजात नाम पढिउकामा वा, तेण सतणाणभत्तिए बंदिज्जति । अह पूण पत्तकालाणिवि एताणि वायादीणि ण पउँजति तो इमे दोसा
एताणि अकुब्धंतो०॥ ११४१ ।। जतिन कुब्बति तो पवयणभत्ती न कता होति, ततो जे अभत्तिमन्तेहितो दोसा ते सो लाकरेज्जा रुट्ठो, जथा अजवालगवायगेणं बंधाविता साधू, जे य सो अभत्तिमतो दोसे काहिति तेण सयं चेव कता भवंति, एसा। Pणाहव्वविही, जस्स जं जोग तस्स तं कातय्वं । एत्थ सीसो आह-कोचि एत्तिय जाणिति ?, किं ताव तेहिं सव्वेहिवि ? जो होइ। ४सो होउ, आतविसुद्धिए णमन्तस्स निज्जरा फलं होइ, विवरीए न होति. जथा तित्थगरस्स जे तित्थयरगुणा पडिमास० &।। ११४२ ।। लिंग जिणपणतं० ।। ११४३ ।। आयरिओ भणति-अप्पणममति । बंदणगे न जाणासि, यतो संता तिस्थयर
गुणा॥११४४॥जे तित्थगरे संता गुणा आसी ते तित्थगरपडिमास अध्यात्मना आलंपिऊण पणमिति, न पूण तत्थ |
SIRSA%
ॐARBA
॥२६॥
(39)
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[3]
दीप
अनुक्रम [१०]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 मूलं [१] / [गाथा-1, निर्युक्तिः [११११८-१२२९२ / ११०३-१२३० ],
यं [२०]
अध्ययनं (31.
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
वन्दना
ध्ययन
चूणी
॥ २७ ॥
पण भिज्जति लट्ठगं चित्तमं वण्णगादि वत्ति, णणु जदि एवं तो संता साधुगुणा जे ते पासत्यादिसु अध्यात्मना आलंबिऊण पण मज्जओ को दोसो १, उच्यते, पडिमासु सावज्जा किरिया नन्थि, जतो पडिमाओ न किंचि सावज्जं चिट्ठति, ततः महारमार्ग गुणा तासु आरोवितूण बंदिज्जति, एताए य बुद्धीए कम्मबंधो न भवति, निज्जरा चैव भवति, इतरेसु पुण पासत्थादिसु घुबा सावज्जा किरिया तो कहं तत्थ साधुगुणाध्यारोपः सावज्जकिरियाजुत्तेवि य णं बंदमाणस्स समणुष्णाया ते भविस्संति, पासस्थेसु जे दोसा तेहि लग्मिहिसीत्यर्थः । पुणो आह परः
जह सावज्ज० ॥। ११४५ ।। आयरिओ भणति - कामं० ॥। ११४६ ॥ जदिबिय पडिमाओ जथा मुणिगुणसंसरण(कप्प) कारणं लिंग । उभयमवि अत्थि लिंगे णचि पडिमासूमयं अस्थि ।। ११४७ || नियमा जिणेसु उ गुणा पडिमाओ दिस्स जे मणे कुणति । अण्णे अ बियाणंतों के मण्ड मणे गुणे काउं १ ।। ११४८ ॥ जह वेलंबगलिंगं जाणंतस्स नमतो भवति दोसो । निद्वेधसं विणातृण बंदमाणे धुवं दोसो ॥। ११४९ ॥ एवं न लिंगमेचमकारणतो अवयतसावज्जकिरियं नमणीयमिति ठावितं भावलिंगमवि दव्वलिंगरहितमेवं चैव विभासितव्यमिति, भावलिंगगमं तु दब्बलिंग न मणागवि विकणं, इतरत्थ उ विभासेति दर्शयन्नाह -
रुष्पं० ।। ११५० ।। उस्सग्गेणं जहिं दव्वलिंग भावलिंग च अस्थि सो बंदणिज्जो, जथा रूपकं जत्थ सुद्धं टंकं समखरं सो छेको भवति, रुप्पं जत्थ सुद्धं टंकं विसमाहतक्खरं सोबि रूवओ व छेओ न भवति, रुप्पं जत्थ असुद्धं टंक सुद्धं सोबि सुतरां छेओ न भवति, रुप्पं जत्थ असुद्ध कंपि अमुद्धं सोऽधि सुतरां छेदो न भवति, किं तु जत्थ दोण्णिवि सुद्धाणि सो छेओ, एवं सो
(40)
द्रव्यभावलिंगे
॥ २७ ॥
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [१०]
संववहार्यः जत्थ उभयमवि अत्थि, एत्थ य रुप्पगत्थाणीया पत्तेयबुद्धा, जदा वा दध्यालिग नस्थिति न कोई तेण पणमति ज्ञानवादध्ययन भणितं च-किह लिंग न पमाणं उप्पपणे केवलंमि जंणाणे । न नमंति जिणं देवा सुविहितणेवत्थपरिहीणं ॥१॥
खुण्डन जदा दवलिंग गहितं ताहे नमिज्जति, टंकत्थाणीया निण्हगा, सच्चगं तेचि रखहरणगोच्छगधारी तथावि मिच्छद्दिट्ठी, जे ॥२८॥
पापासस्थादी तेहिं भगवतो लिंग गहितं,ण पुण सच्चे अणुपातिचि विसमाहतक्खरा,अहवा संबिग्गावि जदा निकारणे चाउसगा हिंडंति 1& एवमादि.तेवि विसमाहतकखरा एवमादि विभासा वेरुलियात गतं प्रसंगण भणितं ।
.इदाणि णाणेत्ति,आह-कि एताहिं सब्बाहिवि तिरिविडाहिं?, जो णाणी तं बंदामि,अण्णे गुणा होतु मा वा, येन ज्ञानपूर्विका । सर्वक्रिया, उक्तंच- जे अण्णाणी कम खवेति बहुयाहि वासकोडीहिं । तं णाणी तिहि गुत्तो खवेति उस्सासमेत्तणं
॥१॥ जेण य सूर्या जथा समुत्ता ण णस्मती कयवरंमि पडियावि । जीवी तथा ससुत्तो ण नस्सति गतीवि संसारे ।।२।। जेण य-णाणं गेण्हति गाणं गुणेति णाणेण कुणति किच्चाई । भवसंसारसमुई णाणी णाणट्टिओ तरति ३॥ एवं भणिए आयरिओ भणति-लोगेवि णाणेण केवलेण कज्जन साहिज्जति एगंतेण, किमंग पुण लोउत्तरे, जथा
आउज्जणकुसला णट्टिया ॥११५६ ।। जथा पट्टिया सा वीणाइयाउज्जणडेसु तत्थ जाणियावि रंगपरिवारिया जदि न गच्चति न वा भावस्थादोणि दावेति तो कुसलावि ण तं जणं तोसेति, अपि च णिदं खिंसं च सा लभिति, जथा जाणमिाणीवि पेच्छ ण णच्चति, छट्ठासु टुकिया वा, एवमादि, चसहातो लाभमाओ य चुक्कति, एवं लोउत्तरेवि- इय लिंगणाण-ला
सहिओ०॥ ११५७ ।। एवं नट्टियात्थाणिओ समणो, आउज्जादित्थाणीयं बाहिरगं लिंगादि, नसुत्तत्थाणीयं णाण, जोग -
NERAS
... ज्ञानपक्षस्य खंडनं
(41)
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[1]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
बन्दना
ध्ययन
चूणां
॥ २९ ॥
जणत्थाणीयं चरणं, जदि चरणं णाणुपालेति तो सपक्खपरपक्वेर्हि निंदिज्जति, जथा सा नडिया, मोक्सोक्खं च न लभति ॥ जया वा जति तरंतो जाणतोऽविय तरितुं० ॥ ११५८ ।। जदि काइयं किरियं न करेति तो बुज्झति, तम्हा दोण्णिवि संपदं लएति, मा णाणं गेण्हाहि एगतेणं । उक्तं च-नाणं पगासयं ॥ पुणो सीसो भणति तुम्मेहिं गुणाधिके बंदणगं उवदिडं, गुणहीणे पुण कंमबंधया, छउमत्थेण य सतिवि लिंगे अभंतरिया भावविशुद्धी ण गज्जति, अयाणतोय गुणाधियं वा वंदावेज्जा गुणहीणपि वा वंदेज्जा, जदि य गुणाधिकं वा वंदावेति न वंदति वा तो पुव्यभणितेहिं दोसेहिं संबज्झति, एवं गुणहीणवंदणेवि, तेण बाउलिया मो कि अम्हेहिं कातव्यं ?, वरं तुहिक्का अच्छामो, अजाणमाणा किं काहामो इत्यभिप्रायः, आयरिया भणतिनायमेकान्तः जथा न चैव नज्जति गुणाहिया गुणहीणा वा, किं तु छउमत्थेणवि णज्जंति, कहीं ?
आलए० ।। ११६० ।। आलयो बसही विहारो मासकप्पादी ठाणं- हरियादिविरहितं चकमण- जुगतरनिरुद्ध दिडी भासा निरवज्जं वेणयियं तथा विणयकमं, आह एतेहिवि न सक्का, जेण उदाइमारगमथुराकोटलगादी केण जाणिता ? जथा एते एतसमायारति, तेण न सक्का जाणितुं भावं ?, किंच यं एतं बाहिभावं करणं एवं अणेगतियं, तो किं इमेणं वंदणगादिवावारणं १, वरं अज्झष्पयमुद्धिं चैत्र पक्खीकरेमो, जतो एतस्सेवायत्ता फलसिद्धि:, तथाहि
भरहो पसण्ण० ।। १२-५१ ।। ११६२ ।। अभंतरं भरहो, जतो तस्त्र बाहिकरणविहूणस्सवि आभरितविभूतिस्स अज्झ प्पविसुद्धीए चैव केवलनाणं उप्पण्णं, तस्स तं बज्झकरणं दोसउप्पादणकरं न जातं बाहिरगं च स्यहरणवंदणगादि गुणकरं ण जातं, बाहिरं उदाहरणं पण्णचंदो, जतो तस्स पगिट्ठबाहिरकरणवतोवि अभिंतरकरणविगलस्स अहे सचमपुढविपायोग्गकम्मचं
(42)
ज्ञानवाद खण्डन
॥ २९ ॥
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[3]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [११११८-१२२९२ / ११०३-१२३० ],
यं [२०]
अध्ययनं (31.
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
वन्दनाध्ययन
चूर्ण
॥ ३० ॥
घोऽभूत्, पच्छावतीए अज्झष्पसुद्धीतो मोक्खो जातो, तस्सवि तं वज्झकरणं गुणकरणं न जातं किं तु अज्झष्पविसुद्धी, अतो बाहिरकरणमणेगतियंति किमणेति । एवं वबहारविधिमवियाणगं चोदगमवगच्छिऊण एसंमि पक्खे अपायसंदेसथमन्मं पण्णविंति गुरुबो, जहा वच्छं । एते पत्तेयबुद्धा, तेसि कदाइ एवं लाभो, सोडावेय पुन्वभवे उभयसंपदाए पचपुच्बो, तेण चैव भण्णति, आहच्चभावकहणे करणं णासेंति जिणबरिंदाणं । सम्भावमयाणंता पंचहिं ठाणेहिं पासत्था ।११६३ ॥ आहच्चभावो नाम कादाचित्कः पत्तेयबुद्धलाभादी तस्स कहणे सति आगमे तं आलंबितूण केयी करणं- बाहिरमणुडाणं णासेति परिहरतीति भावः य एवं करेंति ते जिणवरिंदाणं सम्भावमयाणता तित्थगराणं जो सम्भावो जथा कत्थति ववहारविहीए पयद्वितव्यं, कत्थय निच्छयकि घीए, कत्थ य उभयविधीए, कत्थ य बाहिरकरणं, एवं अभिंतरकरणे, उभये, एवमादि अनियतपवित्तिनिवृत्तीहिं कज्जीसद्धिचि, न पुण नियतं केणति, एस सन्भावो, तं अयाणंता पंचहि ठाणेहिं णाणायारादीहिं अडवा पाणातिवातादीहिं अहवा पासत्थादीहिं जाणि ठाणाणि तेहिं विषयभूतेहिं चरणं णार्सेति, पासत्था सिद्धिपहस्स पासे ठिता, ते य आहच्चभावं पत्थिता की सिद्दिन्ति, जथा सो बोदो, कोइ बोहो एगाए इट्टगाए अफिडिओ, तत्थ तेण दौणारो दिट्ठे। सो तेणं न लइओ, भणति- अण्णाओवि इट्टग़ाओ अस्थिति सो गतो, सो य अण्णे लइओ, घरं गतो माताए कति सा भणति दुछु ते कतं जं सो न लइओ, सो भणतिकिचिओ आणेमित्ति, बाहिरियाए जन्थ जत्थ इट्टगं पेच्छति तत्थ तत्थ पादे अक्खलिओ अप्पगं पाडेति, सो छोडिपडतो गतो, न य किंचिवि लर्द्ध एवं तुमपि संसारे सुचिरं भमिहिसि, बोहिदीणारं लद्धुं आहच्चभावालवणेण अकरेंतो अण्णे बोधिदीणार अलभतो इत्ययमभिप्रायः, जथा ववहारविधी एसो, तेण पायं आलयादीहिं लक्खिज्जति सुनिहितऽसुविहिता, जदिवि में कत्थई
?
(43)
ज्ञानवाद खण्ड
॥ ३० ॥
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
चूणों
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना
&न लक्खिज्जति तहवि आगमोवयोगतो पयत्तो सुद्धो चेव, तम्हा आगमोवउत्तेहिं पयत्तेहिं सब्वमट्ठाणमणुसीलणीयंति एस दर्शनपक्ष
कप्पो अम्हति, जे पुण जदिच्छालभ गहाय अण्णसि सत्ताण संसारं नित्थरितुकामाणं उम्मग्गं देसयति तत्थ गाथा-।। १२-५३ ॥ ध्ययन
खण्डनं ॥११६४ ॥ उम्मग्गदेसणाए करणं- अणुहाणं णासेंति जिणवरिंदाणं, संमत अपणो असि चतं वायणं ते वावष्णदसणा,
जेण ते करणं न सहईति, मोक्खे य विज्जाए करणेण य भणितो, अण्णेसिं च मिच्छतुप्पायणणं एवमादिएहिं कारणदि वावष्ण॥३१॥ दसणा, खलुसद्दा जदिवि केई निच्छयविधीए अबावण्णदसणा तहावि वावण्णदंसणा इव दब्बा, ते य द?पि न लम्भा, किमंग
ठा पूण संवासो सभाजणो संथवा या हुसहो अविसहरथा, सा य ववहितसंबंधो दरिसितो यय, न लब्भा नाम न कप्पतीति। णाणेत्ति गतं ।
इवाणिं दंसणेत्तिदारं, दंसणं गहाय उवट्टितो सीसो,जदि वावष्णदसणा दटुंपि न कप्पति तो जे दंसणिणो ते मम पुज्जतरा, तस्थ चेव घणं लग्गितब्ब, जेण य सम्मचमृलियाणि सव्वाणि ठाणाणि, उक्तं च-द्वारं मूलं प्रतिष्ठासं०|| अतः सम्बग्द-13 शनावगाढेन भवितव्यं । एवं च जारिसा आलंघति तान् भणति आयरिओ-धम्मनियत्तमईया ॥१२-६१|| ११६९ ॥ चरित
धम्माओ नियत्तमतीया, परलोगो-निब्याणं तस्स परंमुहा, किनिमित्तं ते एवंविधा, जतो चिसएसु गिद्धा जेण चिसयलोलुयताए से पंचरणकरणं काउमसत्ता,ते य एवंविधा-सपक्खसंधारणत्थं सेणियरायं आलंबणं करेंति,किही-ण सेणिओ आसि तथा बहुम्सुओ• ॥३१॥
॥ ११७० ॥ वृत्तं वंशस्थ । अविय- मोक्खस्स परमं साहणं संमचं चेब, तेण भट्ठण चरित्ताओ०॥ ११७१ ॥चरिचविसुद्धीए दमद्वेण मुठ्ठतरं दस लम्गितच, जेण सिझंति चरणरहिता दंसणरहिता ण सिझंतित्ति । एत्थ आयरिया भणंति
253 30-
4304
... दर्शनपक्षस्य खंडनं
(44)
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[2]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
चन्दना
ध्ययन
चूण
॥ ३२ ॥
नाणचरणरहितेणं दंसणेणं मोक्खो न भवति, जथा
जह तिक्खरुवि० || २२ प्र. । इय नाण० ॥ २३ प्र ॥ जंच भणसि न सेणिओ आसि तदा बहुस्सुओ न यावि पण्णत्तधरो न वायगो तेणं चैव (नरगं गतो, जहा ) बोराणि, जथा एगो भाइणेज्जस्स घरं गतो पाहुणओ, तेण तस्स बोरचुण्णो दिण्णो, भणति-माम मए अइसमें करिसणं न कतं, पच्छा सो भणति -भाइणेज्जातो चैव बोराणि । एवं सिस्ता जेणेव सेणिओ | अबहुस्सओ तेण चैव नरगं गतो, तथा च--दसारसीहस्स य सेणियस्स वृत्तं उपेन्द्रवज्जा ( ११७२ ) दसारसीहो कण्हवासुदेवो, सेणिओ उ पसेणइसुतो, पेढालपुत्तो सच्चती, एतेसिं अणुत्तरा खाइयदंसणसंपदा तदावि चरित्रेण विणा अधरं गतिंनरकगतिं गता । अण्णं च सत्याओधि गतीओ० | ११७३ ।। जदि चरणरहिता सिज्झता दंसणनाणेहिं चैव तो तब बुद्धीए नेरतिया तिरियावि देवावि अकंमभूमिगावि सिज्झेज्जा, जतो णाणदंसणा तत्थवि अस्थि, न य सिज्यंति तेण दंसणं चेव असाहगं, अविय-मिच्छद्दिडीयावि अनंतरागता मणुस्सेसु उबवण्णा चरणगुणेण केह सिज्झति, तो को व तब दंसणे असग्गहो ?, जं तुमं भणसि दंसणं घणं परिषेत्सव्वंति ?, किं च चरिचे ठितेण दंसणं घणं गहितं चैव भवति । जतो-संमत्तं अचरित्तरस होज्ज भयणाए नियमसो नस्थि । जो पुण चरितजुत्तो तस्स हि नियमेण संमत्तं ॥ ११७४ ।। जो पुण चरितं कातुमसमत्थो तस्स ताव दंसणपक्खोव भवतु, जतो-
दंसणपक्खो सावग चरित्त भट्टे य मंदधम्मे य० ॥ ११७७ ।। सावओ न सकेति विसयगिद्धो पच्चतुं, सो भणति - दंसणंपि ता मे होतुति तस्स स पक्खो, चरितभट्टे वा एवं चेत्र, मंदधम्मे वा जो गहितं भंजति, जो पुण चरितं कातुं सत्तो
(45)
दर्शनपक्ष खण्डनं
॥ ३२ ॥
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
आला
प्रत सूत्रांक [१]
चिच पहाणामालम्बन
खुण्डन
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना- हनेव्याणकखी समणो तेण दसणपक्खो चरित्तपक्खो य लएतत्वो, दंसणे नियमा नाणंति तिण्ई समायोगेण व्याणं लम्भतित्ति ध्ययन
पुणब्भूतलोयणेण सीसो आह-जदि अणुत्तराएवि देसणसंपदाए णाणे य होन्तएण अधर गति गम्मति, चरितं चैव पहाण चूर्णी
मोक्खसाहण, तंमि प पर पययितब्ब, किं णाणदसणेहिं , आयरिया भणति-तं चरित्तं पाणदंसणविरहितं न चैव भवति, तम्हा। ॥३३॥
तमिच्छंतेण णाणदसणेमु पयइतब्वं, अचहा न चेव पयतितं चरणे भवति, जतो तप्पुब्धिगा चरणस्स य सिद्धी इति, आह च- ।
पारंपरप्पसिद्धी॥११७८॥ दसणणाणेहि पारंपयेण चरणस्स पगिट्ठा सिद्धी भवति, जथा रईए विण्णाणे दंसणे य तहाविहाणं अण्णापाणाणं पारंपर्येण पगिट्ठा सिद्धी भवतित्ति । गणु जदि एवं से तो कि चरण विसेसिज्जति, भण्णति, जम्हादसणणाणा। आह-णाणदसणचरित्ततवेसु जेचियं सकति उज्जमितुं तत्तिएण चेव गुणो भवति, तुम्हच्चए पुण चरणे जदि सव्वं न पालति तो विराहग भणह, तो कह उज्जमितित्था', जेत्तियं पुण सकेमो तेत्तियं उज्जमंताण सेस अकरेंताण किमिति गुण न भणह, भष्णति,
अणिग्रहेन्तो विरियं न विराहति करणं तवसुतेसु (१९८१) तपाश्रुतयोः यत्करण तं अनिगृहंतो विरियं जदि करेति | तो न विराहेति । एवं जदि संजमेवि विरियं न निगूहेज्जा-न हावेज्जा । संजमजोगेसु सदा॥११८२ ।। आह-जे पुण टू आलंवणमासृत्य बाहिरकरणालसा भवंति तेसिं का बाता इति ?, उच्यते-- I आलंबणेण० ॥११८३ ॥ आलंचणेण 'काहं अछित्ति अदुवा अधीह' इत्यादिना केणइति जे मपणे संजम पमादेति
न हुत-आलंयणमेत्थं पमाणं भवति, किंतु भूयत्थगवेसणं कुज्जा किं तु पुढआलंचणं तहेच उयाहु अपुढं-अण्णहा, एवमादिभूतद्र स्थगवेसणं कुज्जा । गणु पुडालवणेण संजमं पमादेंतस्स किं कोति बिसेसो उपजायते जेण सो आराहगो भवति ।, उच्यते
CASEKASAA-%
॥३३ ।।
... आलंबनवादस्य खंडनं
(46)
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
चूर्णी
०
खण्डनं
दीप अनुक्रम [१०]
बन्दना
सालंयणी पडतो० ॥११८४।। इहालवणं दुविह-दथ्वालंबणं भावालवणं च, दब्बालवणं गड्ढादिसु पवडतेहि आलंबिज्जतिआलम्बनध्ययन ला दव, सपि दुविहं-पुट्ठमपुढं च, अपुढं दुबल कुसप्पयगादि, पुढे बलियं तथाविहं वेल्लिमादि, एवं भावालंबणपि अपुढे जाल वाद
णाणादिउबगारे ण सु? बरति, पुट्टमितर, उक्तं च काहं अछित्ति अदुवा अधीहं, तपोषहाणे उ उज्जमिस्सं । गणं ॥ ३४॥
वणीती अणुसारविस्सं, सालंयसेवी समुवेति मोक्खं ॥ १॥ तदेवं जधा पुट्ठालंबणो पडतोवि अप्पगं दुग्गमे धारेति एवं
पुट्ठालंबणसेवा धारेति जतिं विराहणागहुए पडतं असढमावं । व्यतिरेकमाह-आलंपणहीणो ॥ ११८५ ।। एवं दसतिगतं । Pइदाणिं णीयाबासे य जे दोसेत्ति दारं
जे जत्थ जदा॥११९६ ॥ अयमभिप्राय:-जथा चोरगहितो असमत्थो धाउलिओ विप्पलवति एवं एतेवि चरित्तादीणि असमत्था अणुपालतुं तो जत्थ चेव ठिता तत्थ चेव बितिज्जगं, मग्गं वा इमं पहाणं घोसति, जथा सिणपल्लिं सत्थो पचिट्ठो, अण्णो जणोवि उत्तिण्णो, सीतलासु छाया पाणियाणि पिइत्ता सुहं मुहेण विहरति, अण्णे पुण परिस्संता पविरलासु छायासु जेहिं वा तेहिं वा पाणिएहि पडिबद्धा एगवासे अच्छति, अण्णे य सहावयंति, इह इमं चेव पहाणं, इहवि ते चेय गुणा तत्थवि ते चेव, तत्थ य सत्थे केइ तेसि पडिसुणेति केइ न मुर्गेति, जे सुणेति ते तण्डाछुहातवादियाणं दुक्खाण आभागी जाता, जे
न सुगंति ते खिप्पामेव अद्धाणसीसयं गतुं उदगस्स सीतलस्स छायाणं आभागी जाता, एवं इमे पासस्थादयोऽपि सकलं चरितं & असमत्था अणुपालेतुं तो भणति इमाणि णाणाविधाणि आलंबणाणि गाणदंसणादीणि, किं च-जाणि थेरेहि कारणाणि आसेवि
॥३४॥ याणि असढेहिं ताणि ते आलंचणाणि करेंति, एवं जथा ते पुरिसा सीदति तहा एतालंत्रणा पासस्थादीवि , जथा ते निस्थिण्णा
COMSELSECROP
56-499
(47)
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [१०]
तथा सुसाहुत्ति । काणि पुण थेरेहिं कारणेहिं आसरिताणि असढे हिं जाणि ते आलंबंति ?, भण्णति
आलम्बन ध्ययन 11 नीयावासविहारं०॥ १९८७॥ कण पुण कारणण ते एवं आलंति, उच्यते-जाहेषिय परितंता॥ ११८८॥ तथाहि-01 वाद चूणों
एगो पव्यइओ परिततो भमिउं ताहे एगत्थ अच्छति, अण्ण साधबो भणति-किं अज्जो हदुसमट्ठो अच्छसि , न वरसि, विहराहि, ट्राखण्डन
भणितं च अणियतवासोति, सो भणति- को एस्थ दोसो जदि अच्छिज्जति, जादै दोसो होति तो संगमधेरा ण अच्छंता, ॥३५॥
किह संगमथेरति ?, तेसि उप्पत्ती-कोल्लहरं नगरं संगमधेरा, दुभिक्खणं पब्बइयगा विसज्जिता, ते तं नगरं नवभागे कातूणं जंघायलपरिहीणा विहरति, नगरदेवता य तेसि किर उबसंता, तेसि सीसो दत्तो नाम आहिडओ, चिरेणं कालेणं उदंतवाहओद्र आगतो, सो तेसि पडिस्सयं न पचिट्ठी नियतवासित्ति, भिक्खावेलाए ओगाहित हिंडताणं संकिलिस्सइ, कोंटो सडकुलाई न दावेतित्ति, तेहि नातं, एगत्थ सेट्टिकुले रोइणियाए गहितओ दारगओ, छम्मासा रोपयंतस्स, आयरिएहिं चप्पुडिता फता--मा रोबानि, चाणमंतरीए मुस्को, तेहिं तुढेहिं पडिलाभिता जहिच्छितणं. सो विसज्जितो, एताणि अकुलाणित्ति आयरिया सुचिरं
हिंडितूणं अन्तं पन्तं गहाय आगता, समुदिहा , आवस्सए (भणंति.) आलोएहि, भणति-तुब्भेहिं समं हिंडितो मि, धातीपिंडो ४ ते भुत्तो, भणति-अतिसुहुमाई पेच्छिहित्ति बइठ्ठो, देवताय अड्डरते बासं अंधकारो य विगुरुब्बितो एसो हीलोतीति, आयरिएहिं |
भणितो अतीहित्ति, सो भणति-अंधकारोत्ति, आयरितेहिं अंगुलीए दाइतं, सा पज्जलिता, आउट्टो आलोएति, आयरियावि से ह॥ णवभागे परिकहंति, एवं एस पुढालंचणो ण होति सब्बोसि नितियावासीणं व्यपदेशः । अण्णे चेतियाणि नीसं करेंति, अई चेइयाणि सारमि, णत्थि कोइ सारयेन्तओत्ति,तेण ण उज्जमामि, कुलकजं वा करेमि, एवं गणसंघ० एतेसि चेव वेयावच्चं कातव्वं चेव,
RRENA
३५॥
...नित्यवासे संगमस्थवीरादिनां द्रष्टांतानि
(48)
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[2]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
वन्दना
ध्ययन
चूण
॥ ३६ ॥
जथा विण्डुणा मधुरासमणगेण वा कतं, अण्णं वा किंचि आलंयेति, अहवा अज्जवइरसामी कि अजाणओ ?, तो दव्वत्थओ भट्टारगाणं कओ, तो अपि करेमि, नत्थि एत्थ दोसो । एवमादीणि अभिगिज्झ अकिच्चाणि सेवंति, ताणि पुण पुप्फाणि अग्गिवरे पुष्वक्खताणि धूवेण य अचित्तीकताणि अण्णाणि य कारणाणि न गणंति, ताहे ते भणंति-अज्जो! चेहयकुलगणसंघे आयरियाणं च पवयण सुते य । सव्र्व्वसुवि तेण कतं तवसंजममुज्जमंत्रेण ॥ १ ॥
अष्णो पुण अज्जिताहिं भत्तपाणं आणीत लएति, सो भण्णति- अज्जो ! न वट्टति, भगति को दोसो, जदि ण बट्टेज्जा तो अणियपुत्ता पुष्फलाए आणिएल्लयं न भुंजतो, तेणेव य भवेणं सिद्धो, तो के अत्थ दोसोति । कहाणगं जोगसंग भ णिहिति। सो भण्णति-जे थेरा जंघाबलपतिहीणा तबस्सी बहुस्सुता ता कज्जं अकज्जं वा जाणंति तुमं किडगाही परिपूणगो जथा, एक्केण असं आचरितं प्रमाणं, जं रिसिसहस्सेहिं अणाचरितं तं गेण्हास असम्भावं, थेरीकरितुं मग्गसि, अप्पाणपि दुहतं करोसि, एकं ता चरसि, बीयं पण्णवेसि असम्भावं । अण्णो रसपडिबद्धो साहूहिं वारिज्जति-ण वहति रसपडिबंधो, रसपरिवज्जणता तवो, सो भणति को दोसो ?, जदि अकप्पो होज्जा तो उद्दारणो रज्जं परिचत्ता ण तं भुजज्जा, तस्स उप्पत्ती- उदाइणो राया पब्वइओ, तस्स भिक्खाहारस्स वाही जातो, सो वेज्जेण भणितो-दक्षिणा भुंजाहिं, सो किर भट्टारओ वतियाए पत्थितो, अण्णदा तं नगरं गतो वितिभयं तस्स भाइणेज्जो केसी तेणं चैव रज्जे ठवितओ, सो कुमारामच्चेहिं भण्णति- एस परिसहपराजितो आगतो, रज्जं मग्गति, देमि, ते भगति न एस रायधम्मोति बुग्गार्हेति, सुचिरेण पडिस्सुतं किं कज्जतु है, बिसं से दिज्जउ, एगाए पसुवालि याए घरे पउत्तं दहिणा समं देहित्ति, सा पदिण्णा, देवताए अवहितं भणिओ य-महारसी ! तुन्भं बिसं दिष्णं, परिहराहि दधि,
(49)
आलम्बनबाद खण्डनं
॥ ३६॥॥
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत सूत्रांक
[१]
दीप
अनुक्रम
[१०]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०४ ]
अध्ययन [ ३ ],
मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
बन्दना ध्ययन
॥ ३७ ॥
| सो परिहरति, सो रोगो बद्धति, पुणो य जिमिती, पुणो देवताय अवहितं ततियाए बेलाए देवताए बुच्चति, पुणरवि दिष्णंति, तंपि अवहितं सा तस्स पहिंडिता, अण्णदा पमत्ताए देवताए दिण्णं, कालगतो, तस्स य सेज्जातरो कुंभारो सावओ, तंमि कालगए चूर्णो देवताए पंसुवरिसं पाडित, सो सेज्जातरी अवहितो, गाई अन्तरोति, सिणवल्लीए कुंभारपक्खेवं नाम पट्टणं तस्य नामेणं जातं, तत्थ सो अवहितो, तं सव्वं नगरं पंसुणा पेल्लितं, अज्जवि पव्वतो अच्छति । ते एत्थ उदायणं, सो त पासत्थादी भत्तं वा पाणं वा० | ।। ११९७ ।। भतं ओदणादि पाण-मुद्दियपाणगादि भुजंताणं लावलवियं-लोलियाए उबवेयं असुद्धं विगतिमिस्सादि, तथा च अकारणे पडिसिद्धो चैव विगतिपरिभोगो, उक्तं च विगई विगती भीओ विगतगतं जो य भुंजए साह। बिगती विगतिसहावा विगतिं विगती बला नेइ || १|| तो केणति साहुणा चोदिता वज्जपडिच्छित्ता ओदायणं ववदिसंति, अहवा जे वज्जेण पडिच्छादिता ते एवं ववदिसंति-ते भति, वेणं वाधितेणं सेवितं तुमं किं वाहितो?, ते चैव पुष्वभणिता दोसा एत्थावि, किं च-तुमं नवि मासं मासं अच्छास, जदि तं आलंबसि तो सणकुमारं किं न आलंबसि, एवं नीयावासादिसु मंदधम्मा संगमरादीणि आलंबणाणि आलंचिऊण सीयंति, अण्णे पुण सुत्तस्थादीणि अधिकृत्य सीदंति । तथा च
सुत्तस्थ बालबुड्ढे असह दव्वादिआवतीओ या । निस्साण (ग्रं. १४०००) पदं काउं संथरमाणा विसीदति ॥ ११९० सुतं जथा- अहं पठामि ताव किं मम अण्णेण १, एवं अत्थं, एवं बालचं, बालो अहं, बालो वा मम परिवारो तं ताव पालेमि, एवं बुड्डा, असहू वा अहं, असहू वा मम परिवारो, एवं दव्वावदा दुल्लभमिदं दब्यं, खेत्तावदा खिलतं खर्च, कालावती दुम्भिक्खादि, भावावदी गिलाणोऽहं एवमादी मिस्सापदं का संथरमाणावि जदिवि तथायि संथरंति तोचि केई मंदधम्मा विसीदति अप्प
(50)
आलम्बनवाद खण्डनं
॥ ३७ ॥
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
खण्डन
सूत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [१०]
बन्दना- सचा, जदि पुण जंवा तं वा आलंबणं आलंबिज्जति तो
आलम्बनध्ययन
वाद आलंबणाण लोगो भरितो० ॥ १२००॥ किं च-दुविधा जीवा- मंदसद्धा तिब्बसबाय, तस्थ जे मंदसद्धा ते एवं विहे चूर्णी
आलंयति, जे जत्थ जवा०॥ १२०१॥ जे केति पासस्थादी जरथ गामे वा णगरे वा जदा काले आसी बहुसुता चरणकरण-1I ॥३८॥ठा पन्भट्ठा ते मंदधम्मा णीसाणं करेंति-अमुतो आयरिओ बहुस्सुतो सो पासस्थो, सो किं अयाणओ, पूर्ण एवंविधो चेव धम्मो ।
भट्टारएहि दिडोचि निद्धम्मा आलंति, ते य भाणितव्या-जदि तेण नीसाणेण पडिसेबसि तो तेसु खेतेसु तमि काले चहुस्सुता
उत्थिता य तेसिं पच्चएण सुठुतरं करेहि, अह ते ण आलंचसि इतरे आलंयसि तो सादी आलंबणं करेता सङ्कादी होहि निस्सीलो, मजदि आलंधणेहि कर्ज तो अण्णाणिचि एयप्पगारााण आलंचणाणि, ताणं च सबलोगो भरितो, अजतुकामा य ज ज पेच्छति
ते तं सब्वं चेव आलंपति, सट्टियाण पुण जे जत्थ जदा०॥ १२०२ ॥ तम्हा-दंसणणाणचरित्ते० ॥ १२०३ ।। दसणायारेला
अट्ठबिहे नाणायारे अविहे चरिचे अट्टविहे तब बारसविहे विणए चउबिहे जो पासे अच्छति सो पासस्थो, पासस्थो वा जो| Xवीसत्थो अच्छति, एते जसघाती पबयणस्स, कई, जदि एत्थ एतं न पति तो कीस एते सेवति', णू] एस विधी अस्थिति, हैपूर्व समणगुणेहि अहिज्जतेहिं जसो आसी, इमेहिं सर्वतेहिं ताणि ठाणाणि जसो घातितो तेणं ते जसपाती पवयणस्स, तम्हा ते है माणूणं अवंदणिज्जा, पण ते जदि किंचि काहिति तेसिं चेव मत्थए पडिहिति अम्हे किमिति सेहि सम वेरं लएमो', भण्णति
कितिकमं च पसंसा०॥ १२०६ ।। जो करति पसंसति वा वहुस्सुतो सुसीलो विणीतो एवमादि सो कमबंधे वति, कहा जेण जे जे पमादहाणा पंचसु महणतेसु उत्तरगुणेसु य ते ते उवहिता ता मोति- समस्थिवा, अणुमता इत्यर्थः, पुन ते सकंति
CROSH
(51)
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
दीप अनुक्रम
बन्दना-INI बंदिज्जता ते नीसीकता हॉति, एतसिपि अणुमतंति । अहवा अण्णे पव्वतितुकामा तेर्सि मूले न पव्ययंति पासस्थत्ति, संविग्गेहि बन्धवन्दक
वैदिज्जमाणे दटुं तत्थ पच्चयंति,एवमादिणा उवहिता भवति,तो न केवलं तेसिं मत्थए, तववि अणुमती होज्जा, जे पुण विपरीता विचार: चूर्णी
संविग्गा तेसु कितिकम पसंसा य निज्जरहाए, जेण जे जे विरविठाणा ते ते अणुमता होति । नीतावासत्ति गतं ।। एते पास॥३॥ स्थादी पसंगेण भणिता, एते सव्वे किल न बंदेज्जा, जे पसत्थगुणेहिं वइंति ते वंदितव्वा, इमे य ते संगहतो
आयरिय उवमझाए॥ १२०७ ।। एते विभासितबा। तत्थ आयरिया बंदेयवा सेबेहिवि, जदिवि ओमरायणिया। पच्चक्खाणालोयणादिसतमि पंदिते इमेऽवि अतिसेसतिति तेवि वंदितव्या, पच्छा उवज्झाओ ओमराइणिओवि, पवित्नीविदा पवत्तयतीति, सीदंत थेरो थिरीकरोतीति सामायारीए,पच्छा ओमोवि गणावच्छेदिओ सो गच्छरस वत्थपातादीहिं उवग्गह करेति, एते किर ओमावि वंदिज्जति, एसो एतेसि आदेसो । अण्णे पुण भणति- अण्णोवि जो तथाविहो रायणिओ सो पंदितव्यो, रायणिओ नाम जो दसणणाणचरणसाधणेसु सुट्ठ पयतो, एतेसि कितिकम णो इहलोगट्ठताए वंदेज्जा नो परलोगट्ठताए नो कित्तिवष्णसहसिलोगट्ठताए, नण्णस्थ निज्जरदुताए,बिससओ नीयागोकमक्खवणढताए अट्ठविहंपि माणं निहाणिऊणं । कस्सचि गतं।
इदाणिं केणति दारं । एतेहिं को कितिकम कारखेतव्यो, ताव तत्थ उस्सग्गतो इमे ण कारवेज्जा, मातरं०॥१२०८॥ किंनिमित्त लोएपि गरहितं,ताणं च विप्परिणामो होज्जा, पुयि अम्ह एतस्स पुज्जाणि आसि.इदाणिं अवमाणेति,(अब)माणो य ॥३९॥ तेसिं जथा पुत्तो वंदावति, देवताणि अम्हे एतस्सत्ति, एवमादि । एवं पिता जेट्ठभाता, रायणियाचि । एताणि य पवतिगाणिक गहिताणि, सङ्केसु का पुच्छा, ताणि वंदति चेव, जदि पुण ताणिवि भणेजा- अम्हे तुमे विणयमूलाओ धम्माओ फेडिता होमो
SEASE
[१०]
---
वंद्य- वंदकस्य विचारणा क्रियते
(52)
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
चूणों
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना-13 मा वारहित्ति, तो वंदावेति । जदि पुण पति तो सवाणिवि बंदाविज्जति जतणाए, किमिति !, सुतं भट्टारंगं बंदिज्जातत्ति,वन्यावन्धध्ययन इहरहा णाणविणओ विराहितो भवति, एते दिट्ठा जे न कारेतव्वा,नवरं कारणे उद्देसादीए कारवेतन्वा,अहवा धम्मसद्धिया भणज्जा-पा
अम्हे बंदामो, ताहे बंदाविज्ज, जे पुण अण्णे साधुणो ते कारयेतब्बा, तेहि य एवंचिहहिं होतब्ध॥४॥18 पंचमहब्बत० ॥१२०९।। पंचहिं महच्चएहिं जुत्तो अणलसो-ण परितमति अहमयट्ठाणवज्जितमतीओ, संविग्गो दब्बे मिगो
भावे संविग्गो सव्वतो अवज्जस्स बीहेति, उक्तं च--मृगा यथा मृत्युभयस्य भीता, उब्धिगवासे न लभंति निद्राम् । एवं बुधा ज्ञानविशपबुद्धाः, संसारभीता न कभति निद्राम् ।। १॥ नीयागोतादिस्स कंमस्स निज्जरट्ठी य, एरिसो कितिकमकरो भवति ।। | काहेत्ति दारं । काहे कातव्वं काधे न कातव्यं, इहं ताव न कातव्यंहै। वक्खित्तः ॥ १२१० ।। ववित्तं पोल्लादीहिं सुत्तत्थचिंतणादीहि वा परंमुहं पमत्तयं कोधादिणा पमादेण आहारते 31 अतरादीयं सीतलं पा होज्जा, एवमादि वित्थरतो विभासेज्जा । इह कातवं--
पसंते॥१२११ ।। पसंतो ण आकुलमणो आसणे णिसेज्जाए सुहनिविडो उपसंतो न उ कुद्धो उवाहितो छदेणीत भणति,अणुण्णवणाए दुवे आदेसा,जाणि धुवाणि बंदणमाणि तेसुण संदिसावेति,जाणि कज्जेसु उप्पत्तियाणि तेसु संदिसावति,तो सुई पच्छा होहिति, मेहावी पुन्वभणितो । इदाणि कतिक्खुत्तो कातन्वं दारं, तत्थ नियताणि अनियताणि बंदणाणि भवन्ति, ॥४० | अतो उभयवाणाणि दारगाथाए दंसेति
पडिकमणे सज्झाए ॥ १२१२ ।। तत्थ नियमा चोहसखुचो, उप्पत्तियाणि बहुधावि होज्जा, पुब्बसंझाए चत्तारि पडि
FACLEASCA6%
... वंदन-संख्या दर्शयते
(53)
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
बुन्दनाध्ययन चूणों
॥४१॥
दीप अनुक्रम [१०]
कमणे बंदिता आलाएंति एक, वितिय जे अम्भुत्थितावसाणे मज्झे दति, मज्झदणए कति वंदितव्या, जहण्णेणं पन्दनतिण्णि मज्झिमेणं पंच वा सत्त वा उकोसेण सब्वेचि, जदि वाउला बक्खेबो वा तो एगेण ऊणगो दोहिं तिहिं जाय तिण्णि अवस्सा शवंदितव्वा, एवं देवसिएवि, पक्खिते पंच अवस्स, चातुम्मासिए संवत्सरिए य सत्त अवस्सं, ते वंदितूण जं आयरियस्स अल्लिवि
ज्जति तं ततिय कितिकर्म, पच्चक्खाणे चउत्थं कितिकम्मं । तिणि सज्झाए-बंदिसा पट्ठवेति पढम, पढविते पवेयंतस्स वितियं, |पच्छा पढति, ततो जाहे चउम्भागावसेसा पोरिसी ताहे पादे पार्डलेहिति, जदिन पढति तो वंदति, अह पढति तो अचंदित्ता पातं पडिलेहेतूणं पच्छा पढति, कालवेलाए पंदितुं पडिकमति, अह उग्घाडकालियं न पढति ताहे वंदितुं पाए पडिलेहिति, एतं ततियं, एवं पुवण्हे सत्त, एताणि अम्भचद्वितस्स नियमा, भत्तद्वितस्स पच्चक्खाणं अम्भहितं, एताणि अवस्स चोद्दस । इमाणि कारणिजाणि उद्देससमुद्देसअणुग्णवणासु सत्त, विगति आयंबिल काउस्सग्गे परियट्टिएँ समाणे । उवसंपज्जणअवराधविहारा उत्तिमट्ठालोयणाए य ॥१॥ एतेसुवि दो दो बंदणगाणि, अवराधसंवरणआपुच्छणाकालप्पवेयणादिसु एककं, अवराधो गुरूणं कतो तपि बंदित्ता खामेति, पक्खियवंदणगाणिबि अबराहे पडंति, पाहुणगत्ति एत्थ भण्णति-पाहुणगाणमागताणं वंदणगं दातब्वं वा पडिच्छितब्वं वा, तस्व को विधी', जदि संभोइया तो आयरिए आउच्छित्ताणं बंदंति, अह न संभोइया तो अप्पणगं आयरियं वैदित्ता संदिसावेत्ता बंदति,एवं उभयपक्खेऽपि । आलोयणंति,जाहे विहारालोयणा अवराहालोयणा वा उपसंपज्जणालोयणा ॥४१॥ बा, संवरणं वेतालियं अंतरा बा, भन्न गहिते इच्छा जाता अज्ज अभत्तटुं करेमिति,अहवा न जीरातत्ति भत्तहुँ लाएमि एवं संवरणं, पवमादिसु,उत्तिमई भत्तपच्चक्खाणं कातुकामो संलेहे वोसिरणे एवमादिसु विभासा । कतिखुत्तोत्ति गत|कतिओणयति दारं,
(54)
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
बन्दना- ध्ययन चूणों
अवनामाधाः
॥४२॥
दीप अनुक्रम [१०]
दुओणतं जाए वेलाए पढम वंदति जाहे य निफेडितूणं पुणो वंदति, जहाजाते सामण्णे जोणिणिक्खमणे य, सामण्ण रयहरण 31 मुहपोत्तिया चोलपट्टो य,जोणिणिक्खमणे अंजलिं सीसे कातूण णीति । चारसावत्तं पढम छ आवत्ता निक्खीमतुं पबिहेवि छ, अहो-ल कायादी तिनि तिनि,एते बारस,एताणि अन्तरदाराणि,दोण्णिवि कति ओणयति एतेण सइताणि । कतिसरंति, चतुसिर,पढम दोणि निक्खंतस्स, बितियाए परिवाडीए दोष्णि, एताणि चत्वारि सिराणि । तिगुतं मग वंदणे मणो बायाए वंजणागि अक्खडे वा४ कारणं काझ्या आवत्तातो न विराहेति । दो पवेसा-पढमो इच्छामि खमासमणो०,आवस्सियाए पडिकतो जं उग्गहं पविसतिल सीसा वितिओ। एगनिक्खमण आचस्सियाएचि । कतिआवस्सगसुद्धंति, पणुवीसं आवस्सगाणि अवस्स कातवाणि, कितिकमे ओणामा दोणि २ अहाजातं ३ आवत्ता वारस १५ चत्वारि सिरा १९ विगु २२ दो पवेसा २४ एग निक्खमणं २५॥ कितिकमपि करें० ॥१२१७ । जदिवि अबा किरिया आओएति तहवि तप्पच्चतियाए निज्जराए अणाभागी भवति जो पण-14 वीसाए आवस्सयाणं अण्णतरं विराहेति, को दिढतो?, जहा विज्जाए एगपि बिहाणं फिति नो सिज्झति, एवं इह चितिकम जोन विराधेति तस्स विपुलं निज्जराफलं, एतं आवस्सगसुद्ध कितिकम जो करेति सो व्वाण पावति, जथा सीतलो, विमाणवास, जथा सावगा अणेगा विमाणवासं वत्ति, अरईतत्तणं वा गणहरतणं वा चकवाट्टित्तणं वा एवमादिए सुद्धकारी भवति ।
__कतिदोसविप्पमुक्कन्ति दारं, बत्तीसं दोसा, अणाढियं ॥१२१९॥ मच्छुव्वतं०॥ १२२०॥ तेणियं०॥ १२२१४ & दिमदिटुं॥१२२२॥ मूयं ॥१२२३।। अणाढियं नाम अणादरेण वंदति १ थद्धं अहण्ई अण्णतरेण मचोरपविद्धं वंदणगंट
देतओ चेव उद्देत्ता णासति३ परिपिंडितं, भणति-एतं मे सन्चस्स चेव कालप्पगतस्स बंदणम,अहवा न वोच्छिण्णो आवते पंज
।
553
॥४२॥
... वंदन-विषये ३२ दोषाणां वर्णनं क्रियते
(55)
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [१०]
बन्दना-8ोणाण या करेति, पिंडलओ वा जाहओ बंदति, संञ्यओ उप्पीलणसंपीलणाए वा वंदति ४ टोलगति टोलो जथा उवेत्ता अण्ण-18
14/३२ दोषाः ध्ययन मण्णस्स मूल जाति५ अंकुसो दुविहो, मूले गंडस्स, रयहरणं गहाय भणति-निवेस जा ते वदामि, अहवा दोहिवि हत्थेहि अंकुस का चूणों
जथा गहाये भणति-वंदामि ६ ककछभरिंगियं एक्कं वंदित्ता अण्णस्स मूल रंगतो जाति, ततोवि अण्णस्स-मूलं जाति ७.मच्छु॥४३॥
ब्बत्तं एक वंदितर्ण छाति वितिएण पासेंति परियचति रेचकावर्तेन ८ मणसा पदुह, सो हीणो केणति, ताहे हियएण चितेति-| एतेण एवग्गतेणं बंदाविज्जामि, अण्णां वा किंचि पओसं बहति ९ वेदियाबद्धं नाम तं पंचविहं-उवरि जाणुगाणं हत्थे निवेसितूण बंदति हेट्ठा वा जानकाणं एग वा जाणुं अंतो दोण्डं हत्थाणं करेति उच्छंगे वा हत्थे कातूणं बंदवि १० भयसा भएणं वंदति, मा निच्छुम्भिहामि संघातो कुलाओ गणाओ गच्छाओ खेत्ताओनि ११ भयंतं नाम भयति अम्हाणं अम्हेवि पडिभयामोत्ति १२ मेत्तीए स मम मित्तोत्ति, अहवा मेचि तेण समं काउं मगति १३ गारवा नाम जाणतु ता ममं जहेस साभायारीकसलोचि १४ कारणं नाम सुत्तं वा अत्थं वा बत्थं वा पोस्थगं वा दाहितिचि कज्जनिमित्तं बंदति १४ तेणियं नाम जदिदीसति तो चंदाते, अहवा न दीसति अंधकारो वा ताहे न वंदति१५ पडिणीयं नाम सण्णभृमं पधाइयं वंदति भोत्तुकामं,पढितं वा भणति-भट्ठारया अबस्स वंदितब्बगा १७ रुष्टुं रुटुं नाम रोसिओ केणति तो धमधमेतेण हियएण वंदति १८ तज्जितं नाम भणति-अम्हे तुर्म बंदामो, तुमं पुण न वाहिज्जसि न वा पसीदास जथा थूभो, अंगुलिमादीहिं वा तज्जेंतो वंदति १९ सहं नाम हहस-M॥४३ मत्थो निद्धम्मलेण रज्जुगोजं करेति, संघसं करोतीत्यर्थः २० हीलितं नमेमि वायगा वंदितुं गणी महत्तरगा जेनुज्ज एवमादि| २१ पलिकुंचितं नाम बंदतो देसरायजणपदविकहाओ करेति २२ दिद्वमदिह नाम एवं सिग्ध वंदति जथा केमाह दिडो केणइ
65555
(56)
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
चूणौं
[१]
॥४४॥
दीप अनुक्रम [१०]
चन्दना-131न दिट्ठो २३ सिंग नाम सीसे एगेण पासण वंदति, अहवा अण्णेहि साहिं समं संगेण जह वा तह वा वंदति २४ करो नाम बन्दनध्ययन त | एसोवि राणओ करो जह व तह व समाणेतव्यओ,बेट्ठी एसा न निज्जरति मंणति२५ मोयणं नाम न अन्नहा मोक्खो,एतेण पुणला
फलम् | दिण्णण मुच्चामित्ति बंदति २६ आलिद्धमणालिद्धं रयणहरणे य निडाले य किंचि आलमति किंचि नालभति, एत्थ चउभंगो,
सीसे आलिद्धं श्यहरणे आलिद्धं ४, पढमा सुद्धो २७ ऊणं बंजणेहिं आवस्सएहिं वा २८ उत्तरचूलिया नाम एतेहिं बंजणेहिं &ा आवस्सएहि वंदित्ता भणति- मत्थएणं बंदामित्ति २९ मूर्य नाम मृयो वंदति न किंचिवि उच्चारेति ३० महता सद्देण ढङ्करं ले
३१ चुडली नाम चुडलं जथा रयहरणं गहाय बंदति, अहवा दिग्ध हत्थं पसारेति, भणति- बंदामि, अहवा हत्थं भमाडेति, द्र सबे मे बंदामित्ति ३२ । एते बत्तीस दोसा, एतद्दोसविप्पमुक्कं कितिकम कातव्वं । जो एतेसि बत्तीसाए अण्णतरेणं अविसुद्ध । | बंदति सो ताए वेणयिताए निज्जराए अणामामी भवति । जो पुण. बत्तीसदोसपरिसुद्धं ॥ १२२५ ॥ कहं पुण सो एताओ एतं पाविति', भण्णति- आवस्सएम जह जहः ॥१२२६।। दोसा गता । इदाणि कीस कीरतित्ति दारं, तत्थ विणयोवयार० ।। १२२७ ॥ विणयोवयारो कतो भवति, जतो-विणओ *सासणे मूलं०॥१२२८|| विणयस्स पुण इमा णिरुत्तगाथा-जम्हा विणयति कंम, विणयति नाम विविहं नयति विनयति, अणे| गधा विणासयतित्ति जं भणित, किमत्थं ?, चातुरंतमोक्वाय चातुरंतो-चतुग्गतिओ संसारो तस्स मोक्खत्थं, तस्माद्बदन्ति | |॥४४॥
विद्वांसः विणय इति,विलीणसंसारास्तीर्थकरादयः, अहवा विणीयसंसारा विनष्टसंसारा इत्यर्थः,सो सासणे मूलं धम्मस्स,माणित आच-विणयमूलए दुविध धम्मे- अगारे अणगारेति, एस्केको पंचविधो. पाणातिपातादि, जो विणीतो स संजतो, अविणीतस्स।
(57)
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
बन्दन
प्रत सूत्रांक [१]
वन्दनाध्ययन चूणीं
॥४५॥
दीप अनुक्रम [१०]
60-60%A4%AR
कओ धम्मो को तवो?, उक्तंच- बुझती से अविणीतप्पा कटु सोयगतं जथा संसारसोतेणं, विणीतो पुण सब्बसंपत्तीओ लभति, उक्तंच- 'तथारूवं गं भंते ! समणं वा माहणं वा पन्जुवासेमाणस्स किंफला पज्जुवासणा , गोतमा । सवणकला, एवंस विभासा जह पण्णत्तीए । एवं विणओक्यारो कतो भवति तथा माणस्स भंजणा अडविहस्सवि माणस्स मंजणा कता भवति,गुरुपूया य कता भवतित्ति, तित्थगराणं च आणा,मुतधमो एस गुणवतो पडिवत्तित्ति आवासए भाणतं, एतं च सुतं, तेण सुतधम्मा| राधणा कता भवति, अहवा सुतधम्माराधणा, जतो बंदणपुष्वगं सुतग्गहणं एवमादि, किरिया य कृत्यमेतत् । तं च कतं भवति, अहवा किरिया भविस्सति-एस विणीओत्ति, अहवा किरिया- कमखवणं कतं भवतित्ति, एवमत्थं कीरति कितिकंमति ।
एवं नामनिष्फण्णो गतो, इदाणिं सुत्नालावगनिष्फष्णो निक्खेयो, सो य पत्तलक्खणोऽवि न भग्णति इत्यादि जथा सामाजाइए, मुत्ताणुगगो सुत्न अणुगतब्ब अक्खलितं अमिलितं जाव कितिकम्मपदं वा णोकितिकम्मपदं वा, तत्थ 'संहिता य पदं चेवर | सिलोगो, तत्थ संहिताईच्छामि खमासवणो! सव्वं उच्चारतव्वं, पदमिदाणि-इच्छामित्ति पर्द, खमासमणोति पदं, एवं रंदित जावनिज्जाए निसीधियाए अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि अहोकायं कायसंफासं खमणिज्जो मे किलामो अप्पकिलताणं बहुसुभेण भे दिवसो वतिक्कतो जत्ता मे जवाणिज्जं च मे खाममि खमासमणो! देवासयं वितिकम आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं ४ देवसियाए आसायणाए तित्तीसण्णयराए जैकिनिमिच्छाए मणदुक्कड़ाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए । लोभाए सबकालियाए सम्वमिच्छोवयाराए एवं सब्बधम्माइक्कमणाए आसातणाए जो मे अतियारो कतो तस्स खमासमणो।। | पडिस्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामिति पदानि । इयाणि पयत्थो, तत्थ 'इषु इच्छायां' 'क्षमूष सहने' 'श्रम तपसि
SES
...अत्र 'वंदन' सूत्र लिखितम्
(58)
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं [२०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
दीप अनुक्रम
वन्दनाः खेदे च श्राम्यतीति श्रमणः क्षमाप्रधानः श्रवणः क्षमाश्रवणः, चंदनम्-उक्तनिर्वचनं, एवं पगतिपच्चयविभागेण पदस्थो भाणिबिक्यो, ध्ययन | एत्थ पुण भावत्थो भण्णति
तत्थ किर अप्पच्छंदेण [अप्पच्छंदे] अविसए असत्तस्स अविहीए करणं न वट्टतित्ति बंदगो गुरुं बंदितुं उज्जुत्तो उवमाझाओ ॥४६॥
बाहिं ठितो ओणयकायो दोहिवि हत्थेहिं मझे गहितरयहरणो एवमाह-इच्छामि खमासवणो इच्चादि, वंदितुं इच्छामि तुम भो खमासवणो, खमागहणे य मद्दवादयो सूदता, ततो खमादीयो जदिधमो, तप्पहाणो समणो खमासमणो तं आमंतेति, जावणि
जाए निसीहियाए यावणीया नाम जा कणति पयागण कज्जसमत्था, जापूण पयागणविन समत्था सा अजाचनीया, 11 | ताए जापनिज्जाए, काए ?-निसीहियाए, निसीहिनाम सरीरगं वसही थंडिलं च भण्णति, जतो निसीहिता नाम आलयोहा
वसही थोडलं च, सरीरं जीवस्स आलयोति, तथा पडिसिद्धनिसेवणनियत्तस्स किरिया निसीहिया ताए, तत्कोऽर्थः - हे समण|गुणजुत्त ! बंदितुं इच्छामि, कई , विसक्तया तन्वा, कह ?- विपडिसिद्धनिसेहकिरियाए य, अप्परोगं मम सरीरं, पडिसिद्धपावक-| ट्रमो य होतओ तुम वंदितुं इच्छामित्तियावत् , एत्थ बंदितुमित्यावेदनेन अप्पच्छंदता परिहरिता, खमासमणाति अणेण अविसयो|
परिहरियो, जावनिज्जाए निसीहियायानि अणेण शक्तत्त्वं विधीय दरिसिता, सेसपदाणि पुण विधीए विभासितब्वाणित्ति । एस. विसयविभागो । कहिं २ पुण एस्थ उपरमो ?, भण्णति- इच्छामि खमासवणो! वंदितुं जावानिज्जाए निसीहियाए, एस एककोठा &ा फुडचियडसद्धबंजणा उच्चारतबो सम्यविधीए, तत्थ जदि बाधा अस्थि काइतो मणति-अच्छताच, जदितं अक्खाइसच तो
अक्खाति, अह रहस्स तो रहकस्स-चेव कजति, जदि पडिच्छितुकामो ताहे भणति- छंदेणं, छदेणं नाम अभिप्पाएप, ममामि
[१०]
CE
... अथ वंदन-सूत्रस्य व्याख्या वर्णयते
(59)
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
वन्दना- ध्ययन चूर्णी
[१]
॥४७॥
दीप अनुक्रम [१०]
प्रेतमित्यर्थः । ताहे सीसो भण्णति- अणुजाणह मे मिसोग्गह, एत्थ उग्गही आयरियस्स आतप्पमाणं खेचं, ते आयरिओग्गहो, त बन्दन. अणशुण्णवेत्ता न वकृति पविसेत, तो वंदितुकामोतं अणुण्णायेति, जथा- मम परिमित उम्गहं अणुजाणह, ताहे आयरिओ सूत्राथे: मणति- अणुजाणामि, ताहे सीसो आयरियउग्गहं पत्रिसति । पविसित्ता संम रयहरणं भूमीए ठावेत्तातं निडालं च फुसंतो भणति-
II अहोकायं कायसंफास खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलताणं यहुसुभेण दिवसो वतिक्कतो, रायणियस्स सफासोवि अणणुण्णवेत्ता ण बट्टति कातुं तो एबमाह- अहोकायं आसृत्य मम कायसंफासं, अणुजाणहत्ति एत्थकि संबज्झति, अहोकायो पादाः, ते हि रयहरणे णिवसित्ता अण्णष्णो कायेण हत्थेहिं फुसिस्सामि, तं च मे अणुजाणहत्ति, भणति यःखमणिज्जो मेला किलामो, 'क्षमूप सहने' सहितन्वो तुन्भेहि किलामो, 'क्लमु ग्लानौ' संफास सति वेदणारूवे, किंच- अप्पकिलंताण बहुसुभेण दिवसो वितिक्कतो, अल्प इति अभावे स्तोके च, अप्पवेदणाणं बहुएण सुभेणं भवतां दिवसो वितिक्कतो?, दिवसो पसत्थो अहो । रत्तादी य तेण दिवसो गहितो, राती पक्खो इञ्चादिवि भाणितव्व, एत्थ आयरिओ भणति-तहत्ति, एसा पडिसुणणा। अब्बा
वाहपुच्छा गता, एवं ता सरीरं पुच्छिते, इदाणि तबसंजमनियमजोगेसु पुच्छति-जत्ता में संजमतवनियमसज्झायआवस्सएहिंग 8 अपरिहाणि, चरणजोगा उस्सप्पतित्ति भणित भवति, ताहे आयरिओ भणति- तुमीप बढ़ती?, जत्तापुच्छा गता। इदाणि ४ & नियमितव्येसु पुच्छति-जयाणिज्जं च मे जवणिज्ज २-ईदियणोइंदिय०, इंदियजयणिज्ज निरुबहताणि वसे य में वइंति इंदि-16।
याणि १, णो खलु कन्जस्स बाधाए वढुंतीत्यर्थः, एवं ता इंदियजबणिज्ज, कोधादीएवि णो मे बाहेति २ । एवं पुच्छति पराएका ट्राभलीए, विणो य कतो भवति, एवं पडिसुणणा । जवाणिज्जपुच्छा गता । इवाणिं अवराधखामणा, ताहे सीसो पुच्छति ||
॥४७॥
(60)
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [१]
ॐॐ
9
KAR
दीप अनुक्रम [१०]
वन्दना-13 पादेसु पडितो-जं किंचि अवरई खामेतकामो भणति- खामेमि खमासमणो ! देवसिय बतिक्कम, बतिक्कमो नाम अति- चन्दनध्ययन | क्कमस्स बीओ अवराधो, सो य बतिक्कमो जे अवस्स कराणिज्जा जोगा विराधिता तत्थ भवतित्ति आवस्सियाए गहणं, दिवसे |
सूत्राः चूर्णी
भवो देवसिओ, देवसियग्गहणेण राइयोबि गहितो, ताहे आयरिओ भणति- अहमपि खामेमि तुमे, पच्छा एगनिक्खमण निक्खम||मति । सीसो ताहे भणति- पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसातणाए तेत्तीसण्णतराए जं किंचि इचादि, है पडिक्कमामि नाम अपुणक्करणताए अन्भुट्ठमि, अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जामि खमासमण, देवसियगहणं तहेब । आसा
वणा तेत्तीस, जथा दसासु, तेत्तीसाए अण्णतराए, सब्बाओ न राईदिए संभवंति तेण अण्णतरग्गहणं, एक्का वा दो वा कता | होज्जा, जंकिंचि अवरद्धं तत्, किमुक्तं ?- खमासमणा ! देवसिओ जो वतिक्कमावराधो आवस्सिगाविसयो तं खामेमि, अपुणक्क| रणताए य अन्मुढेमि, अथारिहं पायच्छित्तं पढिवज्जामि, तथा खमासमणाण देवसियाए आसातणाए तेत्तीसअण्णतराए ज किंचि अवरळू तंपि खामीम, अपुणक्करणताए अन्भुढेमि, अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जामि इतियावत् , एगो किच्चाणं अकरणे अवराधो तं खामेमि पडिक्कमामि य, बीओ पडिसिद्धकरणे तंपि खामेति पडिक्कमति य इत्यर्थः, एवं देवसिय खामित, एतेण पुण सर्व सव्वकालियं खामेति किीचीमच्छाए इच्चादिणा, जं किंचिसहो एस्थवि संबज्झति, मिच्छाभावेण कता मिच्छा, मणेण दुडु कता मणदुक्कडा, एवं वइदुक्कडा कायदुक्कडावि, कोषभावेण कतो कोधो, एवं माणो माया लोभो, सय्वकाले भवा
सन्चकालिगी, पक्खिका चातुम्मासिया संवत्सरिया, इह भवे अण्णेसु वा अतीतेसु भवग्गहणेसु सव्वमतीतद्धाकाले, सब्वमि-IM॥४८॥ अच्छोवयारं नाम सम्वेण जेणे केणवि पगारेण दूसितभावेण कता, सव्वधम्माइक्कमणाए धम्मा करणिज्जा जोगा सब्वे जे
AGRAM
(61)
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
ध्ययन चूर्णी
॥४९॥
दीप अनुक्रम [१०]
केइ करणिज्जा जोगा तेसिं विराधणा अतिक्क्रमणा तीए सव्वधम्मातिक्कमणाए आसातणाए पडिसिद्धकरणं तीए आसातणाए. इच्छादय: जो मए अतियारी कतो अतियारो नाम अतिक्कमबतिक्कमाणं ततिओ अवराधो, तस्स बमासमणी! पहिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि निंदणगरिहणवोसिरणाणि जथा सामाइते, तदयमर्थ:-मिच्छाभावादिएहिं अण्णेणवि जेण केणइ पगारेण दूसितभावेण कता सन्चकालिया सव्वकरणिज्जजोगीवराधणा तीए जैकिंचि अवरद्धं तं खाममि, तस्स चेव अपुणक्करणताए अब्भुट्ठमित्ति, पडिक्कमामि निंदामि, पच्छातावकरणेण हा दुटु कतं०. गरिहामि परसक्खिग अथारिहपायच्छित्तपडिबज्जणेण, अप्पाणं बोसिरामित्ति तथा मिच्छाभावादीएहिं अण्णण य जेणवि केणचि पगारेण दुसितभावेण है कता सध्यकालियाए पडिसिद्धकरणरूवाए आसातणाए तीए सव्वाए जो मए अतियारो ततिओ अवराधो कतो तपि खामेमि, तस्स पडिक्कमामि यनिंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामित्ति। एवं पुणोऽवि इच्छामि खमासमणो तहेव जाव बोसिरामिति ।। एवं सीसेण पदे पदे संवेगमावज्जतेणं नीयागोतखवणढताए अगोत्तस्स य ठाणस्स फलं हितदए कातूण बंदणगं कातयं । |एवं पयस्थो भणितो । पदविग्गहोचि समासपदेसु जाणितब्बो । इदाणि मुत्तफासियनिज्जुत्ती
इच्छा य० ॥ १२-१२२ ।। ।। १२३० ॥ छंदेणऽणुजा ।। १२-१३३ ।। १२३१ ।। तत्थ इच्छा य छबिहा, दो गताओ, दबिच्छा जो जं दव्वं सचितं वा ३ इच्छति, खेत्तिच्छा-खेत्तं जो जं इच्छति भरहादि, कालिच्छा जो जं कालं इच्छति, जथा है।
'रयणिमहिसारियाओ चोरा परदारिया व इच्छति। तालायरा सुभिक्खं बहुधन्ना केइ दुभिक्खं ॥१था भाविच्छा२ तपसत्था अपसत्था य, पसत्था पाणादीणि इच्छति, अप्पसत्था अण्णाणादीणि इच्छति, एत्थ पसस्थिच्छाए अधिगारो, सेसपदाणि
BARABAR ॐ55
... अत्र सूत्र-स्पर्शिक नियुक्ति: प्रस्तूयते
(62)
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
वन्दनाध्ययन चूर्णी
CROCOCCES
॥२०॥
दीप अनुक्रम
पुण णए फुसंति एताए दिसाए विभासितब्वाणि । तत्थ दब्वखमा जो असमत्थयाए सहति, भावखमा संसारभया परस्स पीडा ण कचव्यत्ति सहति, दबसमणा णिण्हगादी, भावसमणा जे सम्भाविएम अहिंसादिसु जतंति, भावखमाए भावसमणेण य अधिकारो। वंदणगं कातुं वंदितुं, बंदणगं पुग्वं भणित, जावनिज्जाए निसीहियाए, दबजावणिया जै दव्यं केणति पयोगेण जाविज्जति बाहिज्जति, जथा उग्गमणमादीहिं मंडिमादीणि वाहिज्जति, भावजावाणज्जा भाषो जाविज्जति, दुविहाए अधिगारो । दबनिसीहिया सरीरं, भावनिसीहिया निसहकिरिया, दुविहाएवि अधिकारो। अणुण्णा छब्दिहा विभासितन्ना, सेवाणुष्णाए अधिगारो । एवं अव्वाचाधादीणिवि सवित्थरं विभासज्जा । इदाणि चालणापसिद्धीओ भण्णंति, तत्थ आह--णणु किमिति पढम पवेसे वंदित खामेतुं पुणोवि य पवेसेण वंदतिी, उच्यते-लोग जथारायादीणं दतादयो बहुमाणाणुरागेण पुण्यं पणमितूण कुसलयट्टमाणि आपुच्छिय खामेचा पूणो पुणो पणमति पुच्छति खाति, ततो पणमित्ता बच्चंति, एवं लोगुत्तरेवि बहुमाणो, भत्तीए पुचि बंदणपुरस्सरं विण्यं पर्युजिता पच्छा खाति आवस्सिगमादि, पुणरवि पणमति। तहेव पुणो आह-जदि तुम्भ वाहगं काहगं च जोग एकत्थ करे ता दोकिरियपसंगो होति, निवारियाओ सुने दो किरियाओ एकदा बहुसो, तो एवं करेतु सव्यं पकवितूण तुहिको आवत्तादी करेतु, एवं सेय, आयरिओ भणति-तुम सिद्धृत न गाणसि, जदा भिण्णविसया भोगा होति तदा एकदा णिसिद्धा, जथा अणुप्पेहाति य वकमतीया, णो पुण एगलक्खधा भोगे, दिहिवादे एगमि काले बायाए उच्चारेति कारण य भंगे करेति । | मणेण य तदुवउत्ते, एवं अम्ह एगमि वेणहए पयोगे दोकिरियादोसा न होतित्ति । अण्णे पुण एवं परिहरति, जथा किर एगमि समए दोसु किरियासु उवयोगो निसिझति, न पुण किरियामेनं, जतो तिण्डवि जोगाणं जुगवसंपातो दिट्ठो भंगियसुवादिसुचि।
[१०]
M॥५०॥
(63)
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [३], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [११११८-१२२९/११०३-१२३०], भाष्यं २०४] - पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [१]
MAA
पूणों
दीप
वन्दना
एवं दिवसओ वंदणगविधाणं भणिस । रतिमादिसुवि जेसु ठाणेसु दिवसग्गहणं तस्थ राइगादीवि भाणितव्वा । पादोसिए जान इच्छादयः ध्ययन.. 121पोरिसी न उग्घाडेति ताव देवसिय भण्णति, पुब्वण्हे जाव पोरिसी न उग्घाडेति ताव राइयति । तेणवि आयरिएण उक्ाहुएणं
अंजलिमउलियहत्येण वंजणे पादे य उवउनेणं अब्बग्गमणणं पुण्णाए सरस्सतीए अणुभासितव्यं, जथा तस्स सीसस्स संवेगो भवति, ॥५१॥|| संवेगो नाम मोक्खोत्कंठः । संवेगाओ विपुलं निज्जरा फलंति । अणुगमो गतो।
इयाणिं नया इच्छितब्वा, तत्थ सत्त मूलनया-नेगमसंगमववहारउज्जुसुतसद्दसमभिरूढएवंभूता, ते सव्वेवि दोसु समोतरंति-उचएसे चरणे य, नेगमसंगहववहारा उपदेसनयो, उज्जुसुतसद्दसमभिरूढएवंभूता चरणनयो । तत्र जाणणाणयो ज्ञानोपलब्धिमात्रा, अविशेषितं द्रव्यास्तिक इत्यर्थः, तस्य वंदनाध्ययनस्य सुत्तस्थजाणओ-मोक्खगमणाय भवति--
णातमि गिहितब्वे०॥१०६५-१७१८ ।। जतितत्वं नाम करणीयमिति तस्य पिंडार्थः, अयं अस्थिभावं अस्थीति वदति, नस्थिभाव नत्थीति भणति । परमविसुद्धचरणनयो ब्रूते__ सब्वेसिपि णयाणं ॥ १०६६-१७१९ ।। चरणनयः पर्याय इत्यर्थः, तस्य सर्वनयानुमतस्य चरणनयस्य पिंडार्थोऽयं-चरणसंपन्नः साधुर्मोक्षाय भवतीत्येतन्मतं, को हेतुः, जम्हा जस्स चरितं तस्स नियमा समं नाणं संमं दसणं च भवति, यस्य पुनर्द-15
॥५१॥ निशाने भवतस्तस्य चारित्रं (भजनया) स्यात् , तस्माद् चरणसंपन्नः साधुोधाय सर्वनयानुमतो भवतीति नया: समाप्ताः ॥ |संमत्तं च वंदणज्झयणं । इइ बंदणगझयणचुण्णी संमत्ता ॥
अनुक्रम [१०]
SARKARIER
-
--
अत्र अध्ययनं -३- 'वन्दनं' परिसमाप्तं
(64)
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक [१]
दीप अनुक्रम [१०]
प्रतिक्रमणा इयाणि पडिक्कमणज्झयणं, अथ कोऽस्याभिसंबंधः, सामाइकब्बवस्थितेन यथा पत्तकालं उकित्तणादीणि अवश्यका- प्रतिक्रमणध्ययने तवाणि, एवं क्वचित् स्खलितेन निंदणअपुणकरणादाण अवस्सकातब्वाणीति पडिक्कमणस्सज्झयण भण्णति, तस्स चत्तारि अणु
&ा स्वरूप ॥५२॥
ओगद्दाराणि उवक्कमणादीणि पुथ्वगमेण भाणितवाणि, अत्याधिगारो पुण से खलितस्स निदणा । कमागते नामनिष्फण्णे | | निक्खेबे पडिक्कमणति नाम,प्रतिक्रमणमिति कोऽर्थः१, प्रतीत्युपसर्गः,'क्रमु पादविक्षेपे प्रतीपं क्रमण प्रतिक्रमणं,प्रतिनिवृत्तिरित्यर्थः,
उक्तं च-"स्वस्थानाद्यत्परं स्थानं, प्रमादस्य वशाद् गतः। तत्रैव क्रमणं भूयः, प्रतिक्रमणमुच्यते॥शक्षायोपशमिका| द्वापि,भावादीदायिकं गतः। तत्रापि हि स एवार्थः, प्रतिकूलगमात् स्मृतः।।२॥"प्रति प्रति क्रमणं शुभयोगसु प्रवर्तनमित्यर्थः, उक्तं च-"पति पति पवत्तणं वा सुभेसु जोगेसु मोक्खफलदेमु । निस्सल्लस्स जतिस्सा जं तेणं तं पडिक्कमणं॥१॥"
करणेण य तिविधा या भवति-कर्ता करण कार्य, एवमिहापि प्रतिक्रमका प्रतिक्रांतयं च प्रतिक्रमणेन सूचितं भवति,तत्थ गाथा | ही पडिकमओ परिकमणं पडिकमितव्वं च आणुपुब्बीए । तीते पच्चुप्पण्णे अणागते व कालमि ॥१३-१।।१२४३॥ तत्थ पडिकमओ जीवो पडिक्कमणं भणितनिर्वचनं पडिक्कमितब्ब-खलित, एत्थ गाथा--
जीवो उ पडिक्कमओ०॥ १३-२॥१२४४ ॥ उसद्दो विसेसणे, तेण निंदणादिपरिणओ तदुवउत्तो जीवो पडिक्कमओ।। केसि ?-- असुभाण पावकमजोगाणं स्खलितानामित्यर्थः, जे पुण झाणपसत्था जोगा तेसिन पडिकमो॥ध्य चिंतायां' | ध्यान चित्तं ज्ञानमित्यर्थः, ये ज्ञाने उपयुक्तेन प्रशस्ता योगा निखद्यीभूतास्तेषां न प्रतिक्रमति, तं च पडिक्कमणं तीतकालविसय पच्चुप्पण्णकालविसर्य अणागतकालविसयं होज्जा । तत्थ अतीते निंदणादिपडिक्कमण, सेसे अपुणकरणताए अन्डाणति ।।
अत्र अध्ययनं -४- 'प्रतिक्रमणं' आरभ्यते ... अत्र चतुर्थ-अध्ययने 'प्रतिक्रमण'स्य स्वरुपम् वर्णयते
(65)
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
[सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाला एवं विबिहेवि पडिक्कमणं होज्जा, तस्स इमाणि एगडियाणि जथा-वंदण चितिकितिकम पूपा विणयो एवमादी, एवं इदवि, प्रतिक्रमण
ध्वदृष्टान्तः ध्ययने पडिकमणं पडियरणा० ॥ १३.३ ॥ १२४५ ॥ पडिक्कमणति वा पडियरणंति वा पडिहरणंति वा बारणति वा णिय-12
नीति वा निंदति वा गरहत्ति वा विसोहित्ति वा,तत्व पडिक्कमणं पुनरावृत्तिः, प्रति प्रति तेष्वर्थेषु अत्यादरात् चरणा पडिचरणा-18 | अकार्यपरिहारः कार्यप्रवृत्तिश्च, परिहरणा चरणप्रमाददोसेहिंतो, आत्मनिवारणा वारणा, असुभभावनियत्तणं नियत्ती, निंदा आत्म-| | संतापः, गर्दा प्राकाश्ये, सोही विसोहणं, एतेसि एगडिताणं इमाणि तु अट्ठ उदाहरणानि--
अदाणे पासादे०॥ १३-४ ॥ १२५४ ।। तत्थ पडिकमणं छविह-नाम ठवणा० दव० खेत्त० काल. भाव०, दो गता,1ळू | दव्यस्स दब्वाण एवमादिकारकवचनयोजना कार्या, दम्बनिमित्तं दब्वभृतो का, पत्तयपोत्थपलिहितं वा, अहवा पासस्थादीण | म पडिकमणं तं दब्बपडिकमणं, खेत्तपडिकमणं खेत्तस्स चर्चा, जमि खिते ठितो पडिक्कमति वण्णेति वा तं खेत्तपडिकमणं, चर्चा ४ है दुविहा-धुर्व अधुर्व, धुर्व जहा भरहेरवएसु खेत्तेसु पुरिमपच्छिमाणं तित्थगराणं तित्थेमु संजताण अवराधो होतु मा वा उभयोकालं|
अवस्स पडिकमियब्वं, अधुर्व सेसाणं तित्थगराणं, कारणजाते पडिकमणं तं अधुर्व, होति वा ण होति वा, एवं बुद्धथा अभिसमीक्ष्य 8 वक्तव्यं । भावपडिकमणं जं संमदसणाइगुणजुत्तस्स पडिकमणति । तत्थ अदाणे उदाहरणं जथा-एगो राया नगरबाहिरियाए | पासादं काउकामो सोहणे तिहिकरणमि सुत्ताणि पाडिताणि रक्खावेति, जदि कोइ पविसेज्जा सो मारेतव्यो, जो नाम न मारेत-18|॥५३ | वओ सो जदि तेहिं चेव पदेहिं अण्णत्तो अणकमेंतो पडिनियत्तति तो णं मुएज्जाह, एवं रक्खावेति, तस्स य वत्थुस्स एकासीति | विभागा, कहं पुण ते ?, चतुरंसं तं वत्थु, तं तिधा छिन्त्र, पुणो तिधा छिन्नं, एवं नवधा होति, एकेक्कं तिधा तेधा छिमं, एक्का
BREAKERA
दीप
अनुक्रम [११-३६]
प्रतिक्रमण' शब्दस्य अष्ट पर्यायाः, तेषाम् व्याख्या एवं कथा:
(66)
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
दृष्टान्त'
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा 8 सीति जाता, तत्थ नवसु मूलवत्यूसु चउदिसि पत्तारि देवताणि-सोमवरुणजमवेसमणाणित्ति, मझे एक्क, एवं पणयालीस
प्रतिध्ययने दादेवता इति, कालहता य दोभि गामेल्लगा आगता तेसिं रक्खगाणं पक्वित्ताणं, नवरि अर्फत दिट्टा, भणिता असिवरगहल्थेहि हाल
चरणाया ॥५४॥ IPादासा । कहिंस्थ पविट्ठा , तत्थ एगो भणति काकडो-को दोसोत्ति इतो ततो पधावितो, सो तेहिं तत्थेव मारितो, वितिजा
प्रासाद्द्र भणति-अयाणतोऽहं पविट्ठो मा में मारेह, जे आणवेहतं करेमित्ति, तेहिं उड्ढेतूण भण्णाति-जदि अण्णतो न अवकमसि तो नवरि
फिट्टिसि, सो भीतो बराओ तेहिं चेव पदेहि पडिनियचो, मुक्को इहलोइयाण भाबी जातो, इतरो जुको, एस दिहतो, अयमत्या. वणओ--जारिसो राया तारिसो तित्थगरो, जथा पासायभूमी तथा अस्संजमो, जथा रक्खगा तथा संसारगाणि भयाणि, जथा ते
गागेल्लगा तथा पबहतगा, जो नियत्तो सो आणाए ठितो, इतरे अणाणाए, विणासो संसारो, एवं मावो जत्तो निग्गतो होज्जा शादियादिणा पमादेण ततो पढितव्वं झडत्ति मिच्छादुकडन्ति ।
पडियरणावि छविधा जथा पडिकमणे एवं विभासज्जा । तत्थ पासादउदाहरण-एगस्थ नगरे वाणियओ समिद्धो, तस्स दाआशुट्टितयओ लक्खणजुत्तो पासादो रत्तरतणभरितो, सा भज्ज अप्पाहेतूण गतो देसयचाए, सा अप्पपलग्गा पासादस्स एगमि
देसे खंडिते विणासिते वा भणति-कि एतिल्लगं करेति !, अण्णदा पिप्पलपोतओ जातो, भणति--कि एचिल्लाओ करति ?, वड्डितेण ४सब्बो पासादो भग्गो, वाणितओ आगतो पेच्छति विणहूँ, निन्छूढा, अण्णो पासादो कारितो, अण्णा भज्जा आणीता,मणिता. य- ५४॥
जदि विणस्सति ता ते सच्चेव गतित्ति, गतो, तीए दिहूं मणाग खड, बीसोबएणं सकारावितो, एवं चित्तकम्मे कट्टकम्मे सव्वं तिसम्झं पलोएति,तारिसगं चेव पर अच्छति,आगतो तुडो य,सव्यसामिणी जाता, एस दिहतो, जथा वाणियबो तथा आयरिओ,
RECEREBRAN
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(67)
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाजथा पासादो तथा संजमो, जथा वाणिगिणी तथा साधू, जो तं सीदावेति उवेक्खति वा सो तथा अणाभागी भवति, एवं सारेति वारणायांध्ययने
जावरापे पायण्डित वहति संठवति य, तेण चारित्तं निम्मलं भवतित्ति ।। 8
विषविकला परिहरणावि छम्विहा तहेब, तत्थ दुद्धकायउदाहरण-एगो कुलपुत्तओ,तस्स दो भगिणीओ अण्णेसु मामेसु, इमरस पीता जाता, भगिणीण पुत्ता जाता, संवलिताणि, दोवि भगिणीओ समं चेव परियाओ आगताओ, सो भणति-दोण्ह अच्छाण कवरं
पितं , वह, पुत्ते पेसेह, जो खयण्णो तस्स देमित्ति, गताओ, पेसविता, दोण्दंवि समा घडगा दिण्णा, जाह गोउलाओ दुई दाणे,त्ति, गता, दुद्धस्स घडगा भरिता, काउडीहिं सम, उच्चालिता, तत्थ दोणि पंथा, एगी परिहारो, सा समो, वितिरे Pउज्जुओ खाणुविसमबहुलो, एगो उज्जुतेण पत्थितो, सो अक्खडितो, भिण्या दोषि घडगा, एगो अनेण भमिचा आगतो, सो
भणति,मए भणित-दुद्धं आणेदिति,न मए भणियं-लहुं वा चिरेण वा एहति, सो धाडितो, इतरस्स दिण्णा । एष दृष्टांतः। एवं चेव | उपसंहारो भाये होति, जथा सो कुलपुचओ तथा तिस्थकरो, जथा सा दारिया तथा सिद्धी, जथा ते दारगा तथा साधू, जथा दुद्धघडगा तथा चरित, जथा पंथा तथा दब्बखेत्तकालभाचा विसमा य समा य, एवं परिहरितवाणि कृत्सिवाणि ठाणाणि, दन्छ । खेत्तं कालो भावो य। वारणावि छविहा तहेव, तत्थ विसभोयणविकल उदाहरण-एगो य राया अण्णस्स रायाणगस्स णगररोहओ जाति, तेणी
॥५५॥ ठारायाणएण पाणियाणि विसेण भाविताणि, सत्थो य आवासावितो, विसकर्य अण्णपाण अदूरागतं जाणिचा णासहालतरण नापीसावित-जो एत्थ पाणितं पियति फलाणि वा खाति सो मरतित्ति, अण्णाउकंठिता उ विरसपाणियाओ अरसाबिरसाणि य|
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(68)
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
Gk%A
- II
सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
दाहरणा
प्रतिक्रमण फलादीणि तेहिं किच्चं करेधत्ति, गतो राया, अणेहिं परिहरितं ते जीविता, जे ण करेंति ते विणट्ठा, तहेव उवणयो-रायत्थाणीया ध्ययने नि
| तित्थगरा, विसपाणीयत्थाणीयाणि असजमवाणाणि, मणूसत्थाणीया साधणो, एवं भावेवि जो परिहरति आधाकम्मादीणि सो ॥५६॥ नित्यरात ससाराउति ।
नियत्तीवि छब्बिहातहेच, तत्थ एगा कंणा उदाहरण-एगमि नगरे कोलिओ, तस्स सालाए धुत्ता विणति,तस्स धूया य, है तत्थ एगो कोलियो मधुरेण सरेण गायति, सा तेणं अक्खित्ता, घडितो संजोगो, भणति-नासामो, सा भणति-मम वयंसिता ताए
शविणा न बच्चामि, सो भणति-सावि याणिज्जउ, तीए साऽऽक्खाता, पडिस्सुतं, पधाविताणं महल्लो पच्चूसो, तत्थ अतिप्पउत्ति । अच्छंति, तत्थ केणइ उग्गीत-जदि फुल्ला कणियारहा०॥ १२५५।। ताए अत्थो अणुगुणितो, एस चूतो वसंतेण उवालद्धो-जदि | कणियारा फुल्लिता तब न जुतं पुफितुं, किन्नु तुमे अधिमासघोसणा ण सुता १, रुक्खाणं अंतस्थाः कणियारा, एवं यदि एसा कालिगिणी एवं करेति तो किं मएपि कातव्वंति', एसा छिण्णा दवभिण्णा, ण से अवसहो,न वा किंचि,तत्थवि एसा कोलिगिणी, | ममासत्तमस्स छायाघातो नगरे य उडाहो एवमादि वियालिऊणं रतनकरंडओ वीसरिउत्ति एतेण छलेण नियत्ता, भावणं उवणयो| कण्णत्थाणीया साधू धुत्वत्थाणीया विसया गायणस्थाणियो उ आयरिओ गीतिगत्थाणीया पडिचोदणा, एवं भावि नियत्तितव्वं । सावितिय उदाहरणं दण्वभावनियत्तणे-एगमि गच्छे एगो तरुणो गहणधारणासमत्थोति तं आयरिया बट्टाति, अण्णदा सो असुभ- कमोदयेण पडिगच्छामिति पधावितो, निग्गच्छतो य गीतशब्दं सुणेति, तेण मंगलानिमित्तं उपयोगो दिण्णो, तत्थ य तरुणा सरल जणा इममभिणयं गातंति
दीप
4
अनुक्रम [११-३६]
ॐ
(69)
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
निन्दायां
प्रत सूत्रांक
दारिका
A6
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा तरितव्या प पतिण्णया मरितव्वं वा समरे समथएण। असरिसवयणुप्फेसया नहु सहितव्वा कुले पसूप- ध्ययन एणं ॥ १२५५ ।। गीतीए भावस्थो, जथा के लबूजसा सामिसंमाणिया मुभता रणे पहारितुवरता भज्जमाणा एगेण समक्ख..
जसावलंबिणा अफालिता- नो सोभिस्सह पढिप्पहरा गच्छमाणत्ति, तं सोतुं पडिनियत्ता, ते य ठिता, पडिता पराणीए, मग्गं च | तेहिं पराणीय,समाणिया य पभुणा,पच्छा सुभडवाद सोभति वहमाणा,एत गीतत्थं सोतुं तस्स चिंता जाता-एमेव संगामत्थाणीका
पवज्जा, जदि ततो पराभज्जामि तो असरिसजणेण हीलिज्जामि,एस समणपच्चोगलितोत्ति पडिनियत्तो,आलोइयपडिक्कतेण | ताआयरियाण इच्छा पडिपूरिता, एवं भावे पडिचोयणत्ति ॥
निंदावि छविधा तहेव, तत्थ उदाहरणं दोण्हं कण्णगाणं वितिया कण्णगा चित्तकरदारिया,जथा-एगो राया दुर्य पुच्छति४ किं मम नत्थि जे अण्णरातीण अत्यि, चित्तसभा नस्थित्ति, आणत्ता णिम्माणिया, चित्तकारकसेणीए विरिक्का, एगस्स चित्त
कारगस्स धीता पितुं भचं गहाय गच्छति, राया मग्गेण आसेण वेगविप्पमुक्केण एति, सा पलायंती किहवि फिडिता गता, पिता
सेतं ठवितूण सरीरचिताए गतो, तीए वण्णेहिं तत्थ कोट्टिमे मोरपिच्छं लिहित, रायावि तत्थ चक्कमणयं करति, सावि अणचित्रेणं * अच्छति, रायाए पिच्छे दिट्ठी गता, गेहामित्ति हत्थो पसारितो, नहाणि दुक्खाविताणि, ताए हसित, भणति य-तिहिं पादेहिं ।
मम मुक्खासण न ठाति जाव चउत्थं मग्गामि, नवरं तुगं चउत्थो, राया पुच्छति- किहत्ति, सा भणति- अहं च पिताए कूरं आणामि जाव एगो पुरिसो नगरमज्झे आस वाहेति, नस्थि से घिणा मा किहवि किंचि मारिज्जामिति, तत्थ अहं सएदि पुण्णेहि | जीविता, वितिया राया, तेण चित्तकराणं विरिक्का सहा, तत्थ एक्कक्के कुटुंबे बहुगा मणूसा चित्तकरा, मम पिता एककल्लओ
-
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥७॥
-
(70)
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणासो चित्तेति,तातियो मम पिता,तेण चित्तसभ चिनेतेणं पुवविढचपि बहुं निढवित, संपति जो वा सो वा आहारो, सोय सीतलो निन्दायां ध्ययन लाकेरिसो होहिति? तो आणिते सरीरचिताए जाति, चउत्थो तुम, कह , सब्बोदि ताव चिंतत्ति-कतो एत्थ मोरपिच्छ, जदिविलचित्रकर आणितेल्लग होज्जा तोचि ताव दिडीए सुछ निज्झाइज्जति, सो भणति-सच्चगं मुक्खा, राया गतो, पिता से जिमितो, सावि
दारिका ॥५८॥
सघरं गता,रायाए बरगा पेसिता, तीए मातापितं भणितं- दोहीति, भष्णइ य- अम्हे दरिदाणि, किह रण्णा सपरिजणस्स पूर्व काहामो ?, ताहे दव्यं से रण्णा दिण्ण, तेहिदि दिण्णा । दासी अणाए सिक्खाविता-मम रायाणगं च संबाधंती अक्खाणगं पुच्छेज्जासित्ति, जाहेराया सोतुकामा ताहे दासी भणति-सामिाण! राया पवति, किंचि अक्खाणर्ग कहहि । भणति- कहमि, एगस्स धूता अलंयणिज्जाणं तिण्हं बरगाणं मातिभातिपितीहि दिण्णा जाव निव्वहणाणि आगताणि,सा रति अहिणा खइता मता, एगोलू | तीए समं चितं विलग्गो, एगो अणसणं पयट्ठो, एगण देवो आराधितो, तेण से संजीवणो मंतो दियो, उज्जीविता चिता, प्रतिण्णिवि उवहिता, फस्स दातब्बा , किं सक्का- एक्का दोण्हं तिण्हं वा दातुं, तो अक्खाहत्ति, भणति-निदाइयामित्ति सुवामि,
कल्लं कहेहामि, तस्स अक्खाणगस्स कोतुहलेणं चितियपि दिवसं तसिवि वारओ आणचो, ताहे सा पुणो पुच्छिता भणति- जेण उज्जिताविता सो से पिता, जेण समं उज्जीविया सो से पितो भाया, जो अणसणगं पविट्ठो तस्स दातब्बत्ति । अणं कहेहि, सा भणति एगस्स राहणो सुवण्णगारा भूमिघरे मणिरयणकउज्जोता अणिगच्छन्ता, अंतउरस्स आभरणगाण घडाविज्जति, एगो भणति- का पुण वेला बद्दति ?, एगी भणति- रत्ती वट्टति, सो कह जाणति जो ण च ण सूरं पेच्छति , सा भणति-निदाइया | TET॥५८ पितियदिणे कहेति- सो रतिं अंधओ तेण जाणति, अणं अक्साहित्ति । भणति- एगो राया, तस्स दुवे चोरा उबढविता, तेण से
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(71)
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
ध्ययने ।
+ गाथा: ||१२||
है मंजूसाए पक्खिविऊण समुद्दे छुढा, ते किच्चिरस्सवि उच्छलिया, एगेण दिडा मंजूसा, गहिता, मणूसे पेच्छइ, ताहे पुच्छह- कति- निन्दायां प्रतिक्रमणा
च्चो दिवसो छूढाणं 1, एगो भणति चउत्थो दिवसो, सो कह जाणति?, तहेव वितियादणे कहेति-तस्स चाउत्थजरो तेण जाणति। का अण्णं कहेह, दो सवत्तिणीओ, एक्काए रयणाणि अस्थि, सा इयरीए ण विस्संभइ, मा हरेज्ज, ततो णाए जत्थ निक्खमंती पवि-16 दारिका संती य पेच्छति तत्थ घडए छोण ठबियाणि, आलित्तो घडो, इयरीए विरहं गाउं रयणाणि हरियाणि, तहेव घडओ ओलित्तो, इयरीए णायं हरियाणित्ति, तो कहं जाणइ ओलित्तए हरियाणित्ति, वियदिणे भणइ-सो कायमओ घडओ, तत्थ ताणि परिभासंति, | हरिएमु णस्थि । अण्ण कहेहि,भणइ-एगस्स रणो चचारि पुरिसरयणा,तं नैमित्ती रथकारो सहस्सोधी तहेव विज्जो य । दिपणा चउण्ह कण्णा परिणीया णवरमेहेण ॥शाकह?, तस्स रष्णो अइसुंदरा धूया, सा केणवि विज्जाहरेण हडा, ण णज्जा कतोचि अक्खिचा, रण्णा भाषीयं- जो कण्णगं आणेति तस्सेव सा, तओ नेमित्तिएण कहितं- असुगं दिसं नीता, रहकारेण आगा-18 सगमणो रहो कतो, ततो चत्वारिवि तं विलग्गिऊण पधाविया, अंमतो बिज्जाहरो, सहस्सजोधिणा सो मारितो, तेणं मारिज-ल तणं दारियाए सीसं छिण्णं, विज्जेण संजीवणासहीहि उज्जिवाविता, आणिता घरं, राइणा चउण्हवि दिण्णा, दारिया भणति- किही
अहं चउण्हवि होमि, तो अहं अग्गि पविसामि, जो मए समं पविसति तस्साह, एवं होतुत्ति, ए समं को अग्गि पविसति, किस्स सा दातव्या । बितियदिणे भणति-निमिचिणा निमित्तेण णातं जहा एस न मरातित्ति तेण अन्भुवगतं, इतरेहि नेच्छित, ९॥ दारियाएवि तहाणस्स हेडा सुरंगा खाणिता, तत्थ ताणि चितगाए णुवणाणि, कट्ठाणि रयिताणि, अग्गी दिष्णो जाहे ताहे ताणि सुरंगाए निस्सरिताणि, तस्स दिण्णा । अण्णं कहेहि, सा भणति- एगार अविरतियार पगतं जंतियाए कड़गा मन्गिता, ताए।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(72)
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [0] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
६०
प्रतिक्रमणा रूवरहि बंधएण दिण्णा, इयरीए धूताए आविद्धा, वत्से पगते ण चेव अल्लियेति, एवं कतिवताणि वरिसाणि गयाणि, कडइत्तएहिं गहायां ध्ययन सामग्गिता, सा भणति- देमिति, जाव दारिया महंती भूता, ताए न सक्कांत अवणेतुं, ताहे ताए कडगाइत्तिया भणिता- अण्णविला
पतिरूपए देमि मुयह, ते गच्छतित्ति किं सक्का हत्था छिदितुं, ताहे भणित-एरिसच्चेव कडए घडावितुं देमो, ताहेवि णेच्छति, तोव | दातव्या, कहं संणवेतब्बा , जथा दारियाए हत्था ण छिज्जति कहं तेसिमुत्तरं दातव्वं , आह-ते भणितव्वा 'अम्हवि तेच्चेव। रूपए देह तो अम्हेवि ते चव कडए देमों। एरिसाणि अक्खाणगाणि कहतीए दिवसे दिवसे राया छम्मासे आणीतो, सवत्तिणीओ से छिद्दाणि मग्गंति, सा य चित्तकरदारिया उबरयं पविसिऊण एक्काणिया चिराणए मणियए चीराणि य अग्गतो कातूण अप्पाणं निंदति-तुम चित्तरदारिया, एताणि ते पितिसंतियाणि वत्थादीणि, इमा सिरी रायसंतिया, अण्णाओ उदितकुलपसूताओ रायधीताओ मोलणं राया तुम अणुक्त्ता तो मा गर्व बहिहिसि, मा य अवरज्झिहिसित्ति, एवं दिवसे दिवसे दार घट्टेऊण करेति, ताहि किहवि णात, रण्णो पादपडिताओ भणंति-मा मारिज्जिहिसि एताए, एसा कमणं करेति, ताहे रण्णा जाणित, सुतं, तुट्ठो, महादेविपट्टो बद्धो । एवं भावनिंदाए साधुणावि अप्पा निंदितव्यो, जथा-जीव! तुमे संसारं हिंडतेण नरयतिरियगतीसु कहाचा
माणुसते सम्मत्तणाणचरिचाणि आसादिताणि जाँस पसाएण सब्बलोए माणणिज्जो पूषणिज्जो य जातो, तो मा गब्बे काहिसि181 बहुस्सुतो एवमादि विमासा, मा य अवरज्झिहिसि, कहमवि अबरद्धेवि परितपिज्जिहिसित्ति।
गरहावि छब्बिहा तहेब,तत्थ पतिमारिया उदाहरण-एगो मरुयओं थेरो अझावओ, तस्स भज्जा तरुणी, सा बलिवइसदेवं करेंती भणति- अहं कागाणं बीहेमित्ति, ततो उवज्झायानउत्ता चट्टा दिवसे दिवसे धणुगहत्था रक्खंति, तत्थेगो चढो चिति
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(73)
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाष्यं [२०५-२२७]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २], निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
॥ ६१ ॥
प्रतिक्रमणाण एसा मुद्धा, अतिक्रिया एसा, तो तं पडिचरति सा य र्णमदं तरन्ती अण्णदा घडगेणं पिंडारसगासं वच्चति, तसिमेगो सुंसु"ध्ययने मारेण गहितो, सो रडति, ताए भण्णति-अच्छि ढोकेहनि, ढोकिते मुक्को, तीए भणिता किं थ कुतिरथेण उत्तिष्णा?, सो खंडिओ तं तो चैव नियत्तो, चितियदिवसे बलि करेति, तस्स य रक्खणवारओ, ताहे तेण भंगति-दिया कागाण बभोरी, रतिं तरस नंमदं । कुतित्थाणि य जाणासि, अच्छीणं ढोंकणाणि य ॥१॥ तीए गातं एतेण दिट्ठामिति तं उचचरति, सो भगति किं उवज्झायस्स पुरतो ?, ताए मारितो पती, पिडियाए छोटूण अडवीए उज्झिउमारद्धा, वाणमंतरीए भिता, अडवीओ भमितुमारद्धा, छुधं न सक्केति अहियासेतुं तं च से कृणवं उबारं गलति, लोगेण हीलिज्जति-पतिमारिता पतिहिंडति, तीए पुणरावची जाता, ताहे सा मणइ ते देह अमो ! पतिमारिताए भिक्खन्ति, मए मंदणुसत्ताए, पती मारितो धेरओ । तरुणगं कंखमाणीए, कुलं शीलं च पुंसितं || १ || || सुचिरेण पाडतं, असि एवं अम्ह पुण अज्जाणं पाएस पडतीए पडिता पेडिता, पव्वहता, एवं गरहितब्वं जं दुच्चिरणं ॥
इदाणिं सोधी, दोसविणासणमित्यर्थः । सावि छव्विहा, तहेब विभासेज्जा, तत्थ दो दिता वत्थदितो अगदितो य। तत्थ वत्यदितो रायगिहे सेणिओ राया, तेण खोमेअचलं निल्लेवस्य समप्पितं, कोमुदिवारो य वट्टति, तेण दोन्ह भज्जाणं अणुचरतेण दिण्णं, सेणिओ अभओ य कोमुदीए पच्छष्णं डिंति, दिडं, तंबोलेण सितं, आगताओ अंबाडिताओ, तेण खारेण सोधिताणि, गोसे आधाविताणि, सन्भावं पुच्छितो, कहितं तुट्टो अहो सिप्पिउनि । एवं साधुणावि सव्वं आलोयणादीहिं सोहेतव्यंति । अगदो जथा हेट्ठा नमोकारे । एवं साधुणावि तद्देव निंदादीपणं अगदेणं भावदोसविसं ओतारेतव्वंति । सव्वत्थ उवणओ जथा
(74)
शुद्धौ वखागदान्तौ
॥ ६१ ॥
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणासंभवं समोतारेतब्बो ॥ एतागि एगविताणि भणिताणि । इदाणि कह पडिकमितवति भण्णति
आलोच. ध्ययने
आलोयण ॥ १२५७ ॥ एस्थ मालागारेण दिद्वतो, जथा-एगो मालागारो अप्पणच्चयं आराम निच्चकाल तिसम्झं नाया
| आलोकेति-पुष्पाणि संति?,न सैति', सुक्ख मधुरं वा इमं एवमादि, पच्छा आलुंचति,मज्जायाय हुँचति-गेण्हतित्ति, एवं गहिताणिमालाकार। ॥६२॥
पच्छा वियडीकरेति, कई, विभत्ताणि करति, मउलाणि बिभत्ताणि, फुल्लाणि विभत्ताणि, चिरेण जाणि फलिहिति तांणि वि-IA । भत्ताणि करेति, खाराणि न उक्खणति, पच्छा नगरे बीहीए जत्तियाओ पुष्फजातीओ ताओ विभत्ताओ करेति, गाहताणुवढवेति, इतराणि च जेत्तिगाणि से अस्थि ताणं दाम दामं उप्पि करेति, कइगा दट्टणं किणंति, सो फलं लभति, अण्णो विवरीतं,णालोएति एमेव नालुंचति न गेण्हति न वा वियडीकरेति,उदाहरिएणं करंडेणं अच्छति,सो फलं न लभति । एवं साधुणावि उच्चारपासवणभूमीओ पडिलेहेत्ता णियाघाते काउस्सग्गे ठाइतब्ब, तत्थ सज्झायं अणुपेहेति, जाहे आयरिया ठिता ताहे ठितो व आवस्सग अणुप्पेहेति, सो साधू मुद्दपोत्तियमादि कातूणं सवं आलोकेति जाव इमो काउस्सग्गोत्ति, पच्छा आढुंचति गेहति इमो एरिसो२|ति अवराहो, पच्छा आलोयणाणुलोम पडिसवणाणुलोम च करोति,पच्छा वंदितूण सरसरस्स साहति,ताहे ओदइयस्स भावस्स सोहील | भवति, पुणो खओबसमिए ठितो भवति, एस विधी, एवं आलोयिए आराहगो, अणालोइए भयणा, कह?, 'आलोतणापरिणओ | सम संपट्टितो गुरुसकासं। जदि अंतरा उ कालं,करेज्ज आराहओतहवि॥१॥ जथा पण्णत्तीए आलापगो, जे पुण-इडीए लागारवर्ण बहुस्सुतमदेण वावि दुच्चरितं । जे न कहति गुरूणं नहु ते आराहगा भणिताशाएवं भयणा भणिता । एवं- ॥६
आलोयणमालुंचण वियडीकरण च भावसोभी य । उभयो कालं मुणिणा सातियारेण कातब्ध।।१।।निरतियारेणवि एवं
दीप
अनुक्रम [११-३६]
CRETARSCIEO
(75)
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा है पुरिमपच्छिमाण तित्थगराण, मज्झिमगाणं पुण तित्धगराणं कारणजाते पडिकमणं । तत्थ गाथा-संपडिकमणो धम्मो०॥१२५८॥ आलोचध्ययने पुरिमपच्छिमएहि उमयो कालं पडिकमितवं इरिवारहियभागतेहिं उच्चारपासवणआहारादीण वा बिवेगं कातूण,पदोसपच्चूसेसुवा नाया
अतियारो होतु वा मा वा तहावस्सं पडिकमितव्वं एतेहिं चेव ठाणेहि, मज्झिमगाणं तित्थे जदि अतियारो अस्थि तो दिवसोलमालाकार: ॥६३॥
होतु रत्ती वा पुवण्हो अवरण्डो मज्झण्हो पुन्यरत्तोवरत्तं वा अट्ठरत्तो वा ताहे चैव पडिक्कमति, नत्थि तो न पडिक्कमति, जेण ते असढा पंणाचता परिणामगा, न य पमादो बहुलो, तेण तेर्सि एवं भवति, पुरिमा उज्जुजडा, पच्छिमा बक्कजडा नीसाणाणि | मग्गात पमादवहला य, तेण तेहि अवस्स पडिक्कमितनं ।। जो जाह आवजति० ॥ १२४९।। जा साधू जाह दव्य वा खेने वा काले बा भावे या अण्णातर अकिच्चट्ठाणं पडिसेवति सो ताहे तरसेव एगस्स पाडसेविएन्तगस्स पडिक्कमति गुरुसगासे, एगल्लओ वा, जेण ते असढा,इमे हि सति नियमा गुरुमले । तित्थगरा य किर सम्बत्तगेण णातूण जेण विधाणेण जीवाण विसुद्धी भवति तथा तथा उवादिसति, कि एसेव विसेसो उदाहु अणोवि अस्थिी, पहुगा, पावीसं तित्थगरा०॥ १२६० ॥ जाहे सामान इयं कतै ताहे चेव आरद्धो उबट्ठवितो साधुपरियाओ य गणिज्जति, पुरिमपच्छिमगाणं न एवं, यादवि सामाइयं कतं तथावि न उड्डाविज्जति, एवं निरतियारो, सातियारी पुण जो पडिसेवणाए मूलं पत्तो सो तेण अतियारेण उवठ्ठाविज्जति, एवमादिविभासा, सचेलो अचेलो य चातुज्जामो पंचज्जामो य ठितो आडिओ य एवमादिविसेसा, इमं पुण पडिक्कमर्ण दोसयं भवति ॥ ६३ ॥ रातियं च, एवमादि, तत्थ गाथा--
पडिकमण दोसयं राइयं च०॥१२६१ ।। दिवसओ देवसीयस्स रातो राइयस्स पक्खिते पक्खितस्स चातुम्मासिते
ERCASACRORE
दीप
अनुक्रम [११-३६]
HARSAE%
... प्रतिक्रमण'स्य दैवसिक आदि षड्भेदाः, प्रतिक्रमण-करणस्य कारणानि
(76)
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाचातुम्मासितस्स संवच्छरिए संवच्छरियस्स, एतं इत्तिरिय, इम पूण आवकहितं ( १२६२) पंच महन्वयाणि रातीभोयणविरमण-पंचधायावध्ययने
ताछवाणि चाउज्जामो वा, एस आवकहाए, दोण्हपि य भत्तपच्चक्खाणं आवकहितति । गणु देवासयं रातिय पडिकतो किीमति लात्कायकाम पक्खियचातुम्मासियसंवत्सरिपसु विसेसणं पडिक्कमति । उक्तं च- "जह गेहं." जथा लोगे गेह दिवसे दिवसे पमज्जिज-1॥
त्वरं च ॥६४॥ ४ा तंपि पक्षादिसु अब्भधित अवलेवणपमज्जणादीहि सज्जिज्जति, एवमिहावि बबसोहणाविसेसे कीरतित्ति, तथा इमपि इत्तरं
अतिक्रमण पडिक्कमणका उच्चारे पासवणे॥१२६३ ॥ उच्चारं परिद्ववेत्ता मत्नग वा पासवणं वा पासवणमत्तो वा भत्तं वा पाण वा पडिस्सयद्रा कयगरो वा जदिवि पडिलहियपमज्जिते परिढवित आउत्तो य आगतो तहवि पडिक्कमितव्यं, मत्तए जो परिवति सो पडिक्कतमति, खेले सिंघाणए जल्ले य जदि पडिलहिय पमज्जिय परिडवेति न पडिक्कमति, इयरहा पडिक्कमणं भवति, तं पुण किह ',
मिच्छादुक्कड, तत्थ पुणरावती जाता ताहे पडिक्कमणं भवति, एस विधी, जाणतेण कर्त, पुणरावची जाता पडिक्कमति, अणाट्र भोगो अजाणतेण जं कर्त, सहसक्कारो आउत्तेण वीरियंतरायदोसेण सहसा जं विराधित, जथा-आउलियमि य पादे इरिया०॥ नागमणे आगमणे वीसमणे णदिसतरणे एवमादिसु पडिक्कमणं, एतं पडिक्कमणं भणितं । इदाणिं पडिक्कमितब्बति दारं,
| जस्स ठाणस्स पडिक्कमिज्जति तं विसेसतो भण्णति, तं पुण ओघतो पंचण्डं ठाणाणं पडिक्कमितव्वंति-मिच्छत्तपडिक्कमण० 81॥१२६४ ।। एवं पंचविहं । तरथ मिकछत्तपडिक्कमर्ण ज मिच्छतं आभोगेण अणाभोगेण सहस्सकारण वा गतो पण्णवितं याला॥१४॥
तस्स पडिक्कमति, असंजमो सचरसविधो पडिक्कमितब्बो, कसाया चत्तारि, जोगा तिनि, काइयवाइयमाणसा, ते पसत्या अप्प
RESCU ACASA CASA
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(77)
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
A
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणासत्था य, अप्पसस्था पडिक्कमितव्या, संसारपडिक्कमणं चतुविहं, निरइयादिभषस्स जंजकारणं तस्स तस्स पडिक्कमितव्ये प्रतिकान्त ध्ययन IN अण्णे पुण भणति- संसारपडिक्कमणं चतुव्विई परड्याउयस्स जे हेतू महारंभादी तेसु जं अणाभोगेणं आभोगेण वा सहसक्कारेण व्यानि
वा पट्टितं वितह वा परूवितं तं तस्स पडिक्कमति-ते वज्जेति, तिरिएसु माइलता, माणुस्सगा देविगावि हेतू ण इच्छंति,माणुस्सदुहै गतिहेतू वा एतेसु पडिक्कमति, एतं भावपडिक्कमणं ।। एतं पुण तिविहं तिविहेण पडिक्कमितत्वं । कहं !, मिच्छ न गच्छति ।
न गच्छावेति गच्छन्तं न समणुजाणति वा मणसा वयसा कायसा, किमुक्तं भवति?- मिच्छत्तं मणेण न गच्छति न गच्छावेति गच्छतं न समणुजाणति, स्वयं न गच्छति न गच्छावेति न चितेति अंगो मिच्छत्तगं गच्छेज्ज, केई तच्चष्णमादी होज्जा तं हुई मण्णेज्जा मणेणं एवं अणुजाणित भवति, एवं वायाए काएण य विभासा, एवं पदे पदे जाव संसारोत्ति विभासा । एवं भावा पडिक्कमितव्या । एतं पुण सव्वमवि इमाहिं चउहिं मूलमातुगाहिं परिग्महित कोहेणं, एतहि उदयभावतो खयोवसमादिभाव । उवणीतेहि पडिक्कमित भवतिति । एत्थ आयरिया उदाहरणं भणंति । जथा- किल केति दोणि संजता संगारं कातूण देवलोग। गता, इतो य एमि नगरे सेड्डी उवाइयसतेहिं णागदेवताए भणति- होहिति ते पुचो देवलोगनुतोत्ति, तेसि च एगो देवो चुतो, दारओ जातो, नागदत्तोत्ति से नाम कतं, बावरिकलाविसारदो, गंधध्वं च से अतिप्पित, तेण गंधवनागदत्तो से नार्म कतं एवं बहुमितपरिवरितो अभिस्मति, देवो य गं बहुसो बहुसो संबोहेति, सोण संबुज्झति । अध्णदा सो देवो अन्चनेण लिंगणं, नवि ॥६५॥
पव्वइतओ जेण से उवगरणं नस्थि, चनारि सप्पे करंडगे गहाय तस्स उज्जाणियं गतस्स अदूरसामतेणं वीतिवयति, तस्स मित्ता ६ साहति, तस्स मूलं गतो पुच्छति--किं एल्थ ?, भणति- समा, गंधवनागदत्तो भणति- रमामो, सो न देति, अभिवेति- तुम
दीप
RERATORS
अनुक्रम [११-३६]
-
4
(78)
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ध्ययने
कथा
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा | महच्चाहं अहं तुहच्चएहिं, देवो तस्सच्चहि रमति, खइतोविन मरति, सो तेणं अमरिसेणं भणति- अहपि तवकेरएहिं रमामि,81 गन्धवेदासो न सैमण्णति, मा खज्जिधिसिति, न ठाति, भणितो-मरसि, तथवि ण ठाति, जाहे निबंधण लग्गो ताहे मंडलगं आलिहिते-ला
नागदत्त ॥६६॥ IVल्लग, तेण चतुद्दिसिपि करंडगा ठविता,पच्छा सो सच्वं मित्तसयणपरियण मेलतूण तरसमक्खं इमं भणिताहा
गंधब्वनागदत्तौ॥ १२६६ ॥ तेसिं च सप्पाणं पुण माहप्पं परिकहेति | तरुणदिवायर०॥ १२६७ ॥ इक्को जण. ॥ १२६८ ॥ एस कोड्सप्पो, पुरिसे योजना स्वबुध्या कायो । जथा कोहवसगतो तरुणदिवायरणयणा भवति, एवमादि, एवं मेकगिरि०॥ १२६९ ।। डको०॥ १२७० ।। एस माणसप्पो । एवं-सललित०॥ १२७१॥ तं चसि० ॥१३७२।। हासति ते०॥ १२७३ ॥ एसा मायाणागी । एवं-ओत्थरमाणो० ॥ १२७४ ।। डक्को॥१२७५ ।। एस लोभसप्पो सब्यविससमुदायोत्ति, जे हेडिल्लासु तिसु कसाएसु दोसा ते लोभे सब्वे सविसेसा अस्थित्ति । एते ते पावा० ॥१२७६।।एतेहि जो उ खजति.
॥ १२७७॥ एवं माहप्पं साहितूण जाहे न ठाति ताहे मुक्का, पक्खलितो, तेहि खनिओ पडिती, मतो य,पच्छा सो देवी भणतिताकिह जातं, न ठाति वारिज्जतो, पुखभणिताय तेण मित्ता, ते अगदे छम्भंति, ओसहाणि य, किंचिबि गुणं ण करेंति, पच्छा | तस्स सयणपरियणो तस्स पादेहि पडिओ-जीवावहत्ति, देवो भणति- अहपि अणाडिओ आसी, ताहे अणेणं खावितो मतो य,
ताहे भणति-अदि मम चरितं अणुचरति एते य सप्पे करंडगत्थे वहति तो ण जीवति, अण्णहा उज्जीवितोपि मरति, ताहे मम & सयणेण पडिस्सुतं, जीवितो ते अणुचरामि एते यवहामिात ते चरितं कहति, एतेहिं ॥१३-३६ ॥ १२७७ ॥सवामि॥१३
३७.१२७९।। अच्चाहारो० ॥ १३-३८॥१२८० ।। उस्सपणं ॥१३-३९ ॥ १२८१ ॥ थोवाहारो॥१३-४०॥१२८२।।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
... कषायप्रतिक्रमण" तस्य व्याख्या, कारणानि, तद् विषये नागदत्तकथा
(79)
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
तृतीयौपघदृष्टान्त:
सूत्रांक
+ गाथा:
||१२||
प्रतिक्रमणाली एवं एसोवि जदि एतं अणुषालेति तो उडुवेमि, अण्णहा कि किलेसेणति, भकति वरं एवंपि जीवतो, पच्छा सो पुख्यमहो ठितो. ध्ययने किरिय पउंजिउकामो भणति-सिद्धे णमंसितूणं ॥ १२८३ ॥
सव्वं पाणारंभ पच्चक्रवाती य अलियवयणं च । सब्वं अदिण्णादाणं अव्वंभपरिग्गरं स्वाहा।। १२८४ ॥ ॥ ६७ ॥ संसारत्था महावज्जा केवलिचोदसपुश्वधरादयो, एवं भाणते उछितो, अंमापिऊहिं से परिकहितं, न सद्दहति, पहाइओ, पडितो,
पुणोवि तहेव देयेण उबवितो, पुणो पधावितो, पडितो, ततियाए बेलाए देवो गच्छति, पसादितो, उढवितो, पडिसुत, अमापितरं आपुच्छित्ता तेण समं पधाचितो, एगमि वणसंडे पुथ्वभवं परिकहेति, संवुद्धो,पत्तेययुद्धो जातो, देवोवि पडिगतो। एवं सो ते कसाए सरीरकरंडए छोढूण कतोइ संचरितुं न देति, एवं सो उदयियस्स भावस्स निंदणगरहणाए अपुणक्करणाए अभुहितो पडिक्कतो दीहेण सामण्णपरियाएण सिद्धो । एवं भावपडिक्कमणं । आह- किं निमित्तं पुणो पुणो पडिक्कमिज्जति', जथा मज्झिमगाणं तथा कीस णवि कज्जे कज्जे पडिक्कमिज्जति?, आयरियओ आह- एत्थ विजेण दिटुंतो, जथा किल एगो राया, तेण विज्जा सदा| चिता,मम पुत्तस्स तिगिच्छ करेह, भणंति- करेमो, राया भणति- केरिसा तुम्ह जोगा', तत्थेगो भणति-जदि रोगो अस्थि तो उबसाति, अह नत्थि तो तं चेव जरिता मारेंति, वितिओ भणति- ममतणगा जदि रोगो अस्थि तो पउणावेंति, अह नस्थि तो नवि गुणं नचि दोस कति, ततिओ भणति- जदि रोगो अस्थि तो हणंति रोग, अहवा नस्थि तोपि वण्णरूवजोवणलायण्णचाए | परिणमति, ततिएण रण्णा तिगिच्छा कारित्था । एवं इमंपि पडिक्कमण, जदि दोसा अस्थि तो ते विसोहेति, अदि नस्थि तो | शाणविसुद्धी सुभतरा भवतित्ति भणितं पडिकमणं । अज्झयणं पुन्छ भणित, एवं एसो नामनिष्फण्णो निक्लेवो गतो । इदाणि
दीप अनुक्रम [११-३६]
॥७॥
(80)
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
ནྡྷམྦྷཝཉྙཱ སྶ
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
अनुक्रम [११-३६]
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ६८ ॥
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
सूत्र
सुत्ताणुगमो सुत्ताला वगनिष्फण्णो सुत्तफासितनिज्जुती य तिभिवेि एगट्ठा बच्चेति एत्थमादि चर्चा जाब इमं च तं सुतं करेसि भंते! सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जाब वोसिरामि । एत्थ सुत्ते पदं पदत्थो चालणा पसिद्धी य जथा सामाइए तथा विभासितव्या, चोदगो भणति एत्थ किं सामाइयसुतं भण्णति ?, उच्यते, सामाइयगाणुस्सरणपुव्वगं पडिक्क्रमणीत तेण भण्णः । प्रस्तुतमभिधीयते
चत्तारि मंगलं० दंसणसुद्धिनिमित्तं च तिनि सुत्ताणि, चत्तारि मंगलं अरहंता मंगलं०, साधुग्रहणेण जायरिया उवज्झाया य भणिता, धम्मग्रहणेण सुतधम्मो य गहितो, मां पापेभ्य अरहंतादयो गालयंतीति पिंडार्थोऽयं सूत्रस्य । जतो य ते संसारनित्थरणकज्जे मंगल भवंति तत एव लोगुत्तमत्ति । अरहंता लोगुत्तमा० ॥ सूत्रं । तत्थ अरिहंता ताव भावलोगस्स उत्तमा, कहूं?, उत्तमा पसस्थाणं वेदणिज्जाउयनामगोत्ताणं अणुभावं पंडुच्च उदयभावस्य उत्तमा, एतमेव विसेसिज्जति-उत्तरपगडीहिं सातं मणुस्साउयं तासिं दोन्हं, इमासि च नामस्स एक्कसीसाए पसत्थुत्तरपगडीणं, तंजथा- मणुस्सगति पचिदियजाति ओरालिय तेयगं कंमगं समचतुरंससेठाणं ओसलियंगो वंगं० बहरोसभणारायसंघयणं० वष्णरसगंधफासा अगुरुलघु उपघातं पराघातं ऊसासं पसत्थविहगमती तसं वादरं पज्जचयं पत्तेयं विराधिराणि सुभासुभाणि सुभगं ससरं आदेज्जं जसकिती निम्मानमं तित्थगरमिति एमसी पसत्याणं, बेदमिज्जं मणुस्साऊ उच्चागोयं वा एतेसि चोचीसाए उदश्यभावेहिं उत्तमा, पधाप्यत्ति भणितं होत, उवसमियभावो अरहंताणं पत्थि, खाइयभावस्य पुष्प णाणावरणदंसणावरणमोहंतराइयाण णिरवसेसखवर्ण पडुच्च खाइयमावलीगरस उत्तमा सरण्या वा, से पुण अरिहंताणं पुण्यवण्णितस्स ओदइयभावस्त्र व समायोगे सम्णिवादभावो निष्फज्जवि, तेण उत्तम्रा
मंगललोकोत्तम
(81)
शरणसूत्राणि
11 12 11
नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमक्कारो, सव्व पावप्पणासणी, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं •••मूलसूत्र - (१) नमस्कार सूत्र" हमने पूज्यपाद आचार्य सागरानंदसूरीश्वरजी संपादित "आगममंजुषा" पृष्ठ-१२०५ के आधार से यहां लिखा है । मू. (११) करेमि भंते सामाइयं .. जाव......... वोसिरामि । [ यह पूरा सूत्र अध्ययन-१ 'सामायिकं' पृष्ठ ९११ अनुसार समझ लेना ] *** यहां मैंने उपर हेडिंग में मूलं के साथ [ कौंस मे] 'सूत्र' ऐसा लिखा है, क्यों की मूल संपादकने यहां कोइ क्रम नहि दिया है |
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
MIलोगुत्तमा । सिद्धा खेत्तलोगस्स निरवसेसाणं च कमगर्डाणं जो खाइयभावलोगो तस्स उत्तमा, खीणं सच कमन्ति भाणित होति । कायिकादि प्रतिक्रमणा "TP साधू णाणदसणचरित्नाणि पडच्च भावलोगुत्तमा । धम्मो दुविधो-सुतमम्मो चरित्तधम्मो य, एते दोण्मिवि खाइ खाजोषसमिया
प्रतिक्रमण |च भावलोग पच्च उत्तमा । जतो य उत्तमा तत एव सरण पत्रज्जितव्वति-चत्तारि सरणं पयज्जामि, अरहते सरणार ॥६९॥ पवजामि०॥ सूत्रं । संसारभयभीतो मोक्खसुहत्थं अरहंतादीणं भत्तिमंतो होमिात्ति भाणितं होति, एवं तिहिं सुत्तेहिं मंगलं
दसणसुद्धिं च कातुं पडिक्कमणसुतं भणति--
इच्छामि पडिक्कमितुं जो मे देवसिओ अतियारो कतो काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो जाव समणाणंटी जोगाणं जाव तस्स मिच्छामिदुक्कडंति ।
इदाणि पयाणि पदत्यो य भणितब्बा, इच्छा खमासमणत्यो य पुवमणितो, दिवसतो जातो देवसिओ, अतियारो 'अतिरतिक्रमणादिषु' अतिचरणमतिचारः, स्खलितमित्यर्थः, सो पुण अतियारो उपाधिभेदेन अणेगधा भरति, अत आह- 'काइओ वाइओ' इच्चादि, तत्थ कायातो जातो काइओ, एवं बाइओ माणसिओवि, ऊचं सूत्रादुत्सूत्रः सुत्तलंघणेण, मग्गो नाम खओय- समभावो तातो तिब्बउदइयभावसंकमणं एवोम्मग्गो, न कप्पो अकप्पो, न करणीओ अकरणीयः, दुझातोत्ति अंतोमुहुर्त जो
छउमत्थाणं अणोच्छिण्णो अणष्णभावेण एगग्गजोगाभिनिवेसो सो झाणं भवति, तत्थ जे दुझातं, जो पुण जोगपरिणामो अण्णो- ॥६९।। जाणेहिं अज्झवसाणेहि अंतरितो सो चित्तं, तत्थ जं दुम्विचिन्तितं, अणायासे नाम अणाइण्णो, अणिच्छितब्बो जो इच्छित्वोषि
न भवति, किमंग पुण कातयो , असमणपायोग्यो तवस्सीणं अणुचितो, को सो एवंचिहो', जो सो पुलपत्थुतो देवसितो
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(82)
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा अतियारो, एताणि पुण विसेसनयाभिप्पायेण भिण्णस्थाणि विभासिज्जंति, अण्णे पुण एगडिताणि भणति, पडिक्कमणाधिकारे | TI ध्ययने संवेगत्थं, अण्णे पुण हेतुहेतुमद्भावेन वणति, जथा जतो चेव उस्सुलो अतो चेव उम्मग्गो, जतो चेव उम्मग्गो अतो चेव अकप्पोट्रा
प्रतिक्रमणं ॥ ७०॥
VIइच्चादि । एसा य कमि विसए भवतीत्याह-नाणे दंसणे चरिते सुए सामाइए मुतसामाइयाणे भदेण गहणं विसिडषिसय-
दरिसणत्थं, एतेसु विसयभूतेसु जो मए देवसिओ अतियारो कतो उस्सुप्तादिविसेसणविसिट्ठो तस्स पडिक्कमितुमिच्छामीत्यर्थः, अनेन वितिगिछाऽभाव दंसेति, तत्थ निहं गुत्तीणं चतुपहं कसायाण पंचण्डं महव्वताणं छहं जीवनिकायाणं सत्त-४ |ण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पबयणमादीणं नवह भचरगुत्तीणं दसविधे समणधंमे समणाणं जोगाणं जे
खंडित ज विराधितं तस्स मिच्छामिदक्कडति, तत्थ गुत्तिमादीण सरूव उरि भणिहिति, पिंडेसणा प्रण भवंति सत्त, ता इमा, तंजथा-संसद१ असंसट्ठा२ उद्धडा३ अप्पलेवा उग्गहिता५ पग्गहिया६ उज्झियधीमयाओ७ | तत्थ पढमा दोहिवि असंसट्ठा, असंसट्टे हत्थे असंसट्टे मत्ते, अखरडिएत्ति वुत्तं भवति, एताएवि गिण्हति गच्छवासी जरथ पच्छेकंमपुरेकमादी दोसा न भवंति, गिलाणादिकारणे वा इतरपि गेहति१. बितिया दोहिवि संसद्वा, सुठुतरंति पच्छेकमादिदोसा बज्जितार सतिया उद्धडा, संसट्टाउ कङ्कितं अच्छति थालसरावपडहत्थिगपिडिगाछप्पगपडलगअलिदिगाकुंडगादिसु विरूबरूबेमु भायणेसु अणेगप्पगार भोय
॥ ७०॥ माणजातं३, संसड्ढे हरथे संसड्ढे मत्ते चत्तारि भंगा, गच्छवासी चउहिपि गेण्हति जिणाणं संसद्धेहि दोहिवि गहणं भंगेहि४ सुचादेसेण &ावा चउत्था अपलेबा, अभाव अप्पसहो, निलेप मन्धुमादी पंचमी उवम्महिता, उबग्गदित भुजणनिमित्तं असडाए उवणीत थाल
सरावकोसगादिसु, जस्स तं उवणीतं तस्स पाणीसु जो दगलेपो सोवि परिणतो सो वा देज्जा ५ छट्ठा पग्गहिता, पग्गहितं नाम |
दीप
अनुक्रम [११-३६]
RE
(83)
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा: ॥१२॥
टीप अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ७१ ॥
इत्थगतं दिज्जमाणं जस्सवि अट्ठाए पग्गहितं सोबितं नेच्छति, पादपरियावणं कंसभायणस्स नत्थि दगलेपो पाणीसु नत्थि दगलेबो तस्स नियचो भावो छडी६ सत्तमी देतस्स दिज्जस्सवि जस्सवि दिज्जति दोहवि नियचो भावो अह उज्झियधमिया, पुव्वदेसे किर पुण्यहे रद्धं जं तं अवरण्डे परिविज्जति, साधुआगमणे वा संपि भायणगतं वा देज्जा, हत्थगं वा देज्जा, कप्पति जिणकम्पितस्स पंचविहग्गहणं, थेराणं सत्तविहं ७ एतासि सत्सहं पिंडेसणाणं केई पति सत्तण्हं पाणेसणाणं, एवं पाणएवि चउत्थी अप्पलेवा- तिलोदगादी अडण्डं पचयणमादीणं पंच समितीओ तिष्णि गुनीओ, एताओ अड्ड पत्रयणमाताओ, सेसं उवरि भणिहिती । तत्थ समणाणं एते सामणा, के ते ?- तिणि गुत्तीओ जाव समणधम्मो, अण्णे पुण भति- सामणाण जोगाणंति, ये चान्येऽप्यनुक्ताः समणयोगाः, एतेसिं जोगाणं जं खंडितं नाम एगदेसो भग्गी, विराधितं नाम बहुतरं विणासितं, तस्स मिच्छामिदुक्कडं, जथा दसविघसामायारीए अनेन च प्रतिक्रान्त इति । एत्थ सुत्तफासितनिज्जुत्तिगाथा-पडिसिद्धाणं करणे किच्चाणं अकरणे पडिक्कमणं । अस्सहहणे य तथा विवरीतपरूवणाए य ॥ १२८५ ।। एताओ गाथाओ सव्वाणि परिक्कमणमुचाणि अणुगंतव्याणि, जथा करेमि भंते! सामाश्यकंति, एत्थ पडिसिद्धा रागदोसा ते जो करेति, किच्च रागदो वणिग्गहो सामायिकमित्यर्थः, तस्याकरणे, तं तहा न य सद्दहितं वादि विपरीतं वा परूचितं तस्स पढिक्कामितं । एवं मंगलसुत्ते भावेतव्वं । एवं जे विसोहिडाणा तेहिं जं न कतं न सहितं विवरीतं वा परुवितं, जे अविसोहिडाणा तेहिं जं कतं न सहित विपरीतं वा परुवियं तेसिं पडिक्कमति । एवं सव्वसुचाणि माणितव्वाणि । एवं ओहातियारस्स पडिक्कमणं भणितं ॥ इदाणिं विभागण भष्णति संवेगत्थं, तत्थ पढमं गमणातियारं, उक्तं च ठितीक्खया गच्छति, जन्थ गच्छती गतिक्खया
(84)
कायिकादि प्रतिक्रमण
॥ ७१ ॥
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
र्यापथिकी व्याख्या
प्रत सूत्रांक
[सू.] + गाथा: ||१२||
-PSCENERB
प्रतिक्रमणा चिट्ठति,जस्थ चिट्ठति सुहक्खया सोयति,जत्थ सोती नखक्खया मोयति,जत्थ मोदति(पमायति)जं च हेट्ठा भणिता अप्पमादनि- ध्ययने ल मित्त, इदमपि अप्रमादार्थमेव, एस संबंधो इरिया सूत्र इच्छामि पडिक्कमितुं इरियावहियाए घिराहणाए 'ईर गति-
प्रेरणयोः ईरणं या गमनमित्यर्थः एतो जाता पाया रणे पथिका इरियावधिया, काऽसौ ?, विराधणा, तीए गच्छन्तस्स ॥७२॥
पथि जा काइ विराधणा सा इरियावहिया । इच्छामि पडिक्कमितुति पुव्वभाणितं, एस संखेवत्थो इरियावहियाए, विस्तरतस्तु ।
गमणेत्यादि, तत्थ इरियावहियाविराधणं एवं गमणं अण्णस्थ, गैतुं अच्छति, पाढादि करेति न वा, गत्वा पडुच्च तं तत्थ पडिम कमति, आगमणे जं ततो नियत्तति, तत्थवि पडिक्कमति, तं हि गमणागमणे जं पाणकमणं कतं, बीजकमणं वा कतं, पाणग्गहणणे
दियादी मूयिता, बीयग्गहणेणं बीजा जीवा, न निज्जीवा, एवं ठावितं भवति, हरितकमणेण वणफतिकायो सूइतो, तथा ओसाउत्तिंगपणगदगमट्टीमकडासंताणासंकमणे, तत्थ ओसा पसिद्धा, उचिंगा नाम गद्दभगाकिती जीवा भूमीए खड्डयं करेंति, कीडियानगरं वा, पणगो पंचवष्णो, पणओ उल्लिीत चुच्चति, दगमट्टिया चिक्खल्लादि, अहवा दर्ग- आउक्काओ मट्टिलाया-पुढविकाओ मकडगसताणओ-कोलियगजालं तेसि संकमणे एते भेदा दंसिता, केतियं वा भणिहामित्ति समासेण भण्णति, किं
बहुणा ?-जे मे जीवा विराहिया एगिदिया जाव पंचिंदिया, अभिहता नाम आवडिता आवेडिता वा चलणादिणा खिता अहवा अक्कता, वत्तिया नाम पुंजीकता, अहवा धूलीए चिक्खल्लेण वा ओहाडिता, लिसिता पिट्ठा, अहवा भूमीए कुड्डादिसु वा लाइया, संघातिता गत्ताणि परोप्परं लाइताणि, संघहिता इसित्तिच्छित्ता, परिवाविता-दुक्खाविता, किलामिता-किंचिज्जीवितसेसा कया अहवा समुग्धात नीता, उदविता उबद्रविता उत्त्रासिता का, ठाणाओ ठाणं संकामिया अण्णाओ ठाणाओ अण्णत्व
दीप
अनुक्रम [११-३६]
M
॥७२॥
E RSA
(85)
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमनीता, जीविताओ ववरांविता-मारिता,नस्स मिच्छामिदुकडंति पुब्बभणितमिति ।। इदाणि गति ट्ठियाणं भवातति तस्थ भण्णति-- प्रकामध्ययन सत्र इच्छामि पडिकामउं पगामसेज्जाए. सूत्रं । पगामसेज्जा सब्बरति सुवति, पगामत्थरण जे संथारुत्तरपट्टगातिरि अत्थरतिः । शय्या
पगाम पाउणति, गहभदिद्रुतमकातूणं परेणं तिहं पाउणतित्ति । एताणि चव पदाणि दिणे दिणे जदि करेति तो निगामसज्जा, ॥७३
दिवे दिवे सव्यरति सुवति, दिवे दिवे तथा पत्थरेति पाउणति । एत्थ सोतब्वयविधाणं जथा ओहसामायारिए अभिगमनिगमट्ठाणगमणचंकमणाणि जथा तहं विभासितवाणि, उब्यत्तणं पढम वामपासेण निवनो संतोज पल्लत्थति एतं उन्मत्तण । जे पुणो वामपासेणं एवं परिपत्तणं, आकुंचणं गातसंखेबो, पसारणं गाताणं, एत्थ उ कुकडिवियमिय दिटुंतो, जथा कुक्कुडि पार्द पसारेतुं लहूं। चैव आउंटेति एवं साधू जाहे परितन्तो ताहे भूमि अच्छिवंतो पसारेति: लहुं चेव आउंटेतुं संथारपट्टए ठवेति, कुपित नाम* ककराइयति अहो विसमा सीतला घमिला दुग्गंधादि ककराइतं. अहवा कुत्सितं रासितं कूजितं, ककसं रसित ककरातितं, छीए जंभाइए य अजयणाए पाणवहो भवेज्जा । आमोसो आमूसणं अणुवउत्तेण जे कर्त, ससरक्खामोसा पुढवादिरयेण सह तं ससरक्खं तस्स आमुसणं ससरक्खामोसो. एते ताव जागरस्स अतियारा । इदाणिं सुत्तस्स भण्णति-आउलमाउलताए सोवणंतिए
निदप्पमादाभिभूदस्स मूलगुणाणं उत्तरगुणाणं वा उवरोधकिरिया जा णाणाविधा सोवणंतिया सो आउलमाउला, अहवा आउलं-| तनाणाविहं रूवं विवाहसंगमादिसु दिदं आयरितं वा, पुणोचि आउलं तारिसा बहयो वारा दिडा एसा आउलआउला । एते या ॥७३॥
| आमोसादी तिणि आलावमा केहन पहंति, किंतु इत्धीविपरियासियाए इथिए विपरियासो इत्थीविप्परियासो, स्वप्ने लिया | ब्रह्मचर्यविनाश इत्यर्थः, विपर्यासो नाम अचंभचेरं, दिट्ठिविपरियासो रूर्व द्रष्टुं भ्रमति, एवं पाणभायणं सुविणे कतं सो
दीप
%A5
अनुक्रम [११-३६]
%
E
... एते सूत्रे शयानस्य विधि दर्शयते
(86)
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाविपर्यासः, मणोविपरियासिया यदप्रशस्तं मनसा चिंतितं,कई पुण आउलमाउलाएं सोयणवत्तियार एतं आलावर्ग एत्थ पढति, ध्ययने लतत्थ जातो, सेसाओ आउलम सोमणतियाओ इत्थी दिडीओ निदापमादामिभूतेण,तस्स मिच्छामिदुक्कडीत पुन्वणित।
दाणि भिक्खायरियाविराहणं सूत्र इच्छामि पडिकामितुं गोयरचरियाए इत्यादि, गोचरचर्या इति कोऽर्थः?, गोवरण ॥ ७४|
मोचरः, चरणं चर्या, उक्तंच- जया फवोता य कविजलाय, गावो चरती इध पागडाओ । एवं मुणी गोयरियं चरेज्जा, नो हीलए *नोविय संथवेज्जा ॥१॥ लाभालामे सुहृदुक्खे सोभणासोमणे भने वा पाणे वा सुसमणो तुहिको चरति, जहा वा सो वच्छो शादिवस तिसाए छुहाए य परितावितओ तीए अबिरतियाए पंचविहविसयसंपउत्ताए तणपाणिए दिज्जमाणे समि इस्थियंमि ने लासल्छ गच्छति, न वा तेसु चित्रं देति, किंतु चारि पाणियं च एगग्गमाणसो आलोएति, एवं साधूवि पंचविहेसु विसएसु अप
ज्जतो भिक्खायरियाए उवउत्तो चरति तेण गोचरचरिया, तीए गोचरचरियाए या भिक्खायरिया भिक्खेसणा तत्थ भिक्खाय|रियाए उग्घाडकवार्ड उग्घाडितं उग्घाडं नाम किंचि थगित, साणो बच्छओ दारओ वा संघट्टितो, मंडीपाहुडिया नाम & जाहे साधू आगतो ताए मंडीए अण्णंमि वा भायणे अग्गपिंड उकड्डिताण सेसाओ देति, बलिपाहुडिया नाम अग्गिमि छुभति, | चउद्दिसिं वा अच्चणितं करेति, ताहे साहुस्स देति, तं न वद्दति, ठवणापाहुडिया नाम भिक्खायरा आगमिस्संति अहवा साधूण 1
& चेव अट्ठाए ठविता, संकिते सहसाकारे अणेसणाए, इदमुक्तं भवति-अणेसणाए अण्णतरेण दोसेण संकिता, अणेसणा पचुद्धा, सहसकारेण गहिता, पाणमोयणा दुप्पडिलेहितो, एवं बीयहरियभोयणेवि, अहिले उक्खेवनिक्खेवे जे अमिहर्ष, अभिहई नाम आणीत, एवं रयसंसहअभिहति, वगसंसह अभिहडंपि, पारिसाडणियाए जै पारिसाडिज्जत लइय, पारिडाव
HEARTNERSI
दीप
॥७४॥
अनुक्रम [११-३६]
(87)
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
स्वाध्यायाप्रतिक्रमण पणियाए, तत्थ भायणे असणं किंचि आसी ताहे तं परिडवेतूण अण्णं देति सा पारिद्वावाणया, कित्तियं वा भणीहामि-जं उग्ग
करणादि मेण उपायणेसणाए अपरिसुद्धं पडिग्गहितं वा परिभुत्तं वा उग्गमउप्पायणेसणाओ जथा पिंडनिज्जुसीए, तरस
मिच्छामिबकई पुज्वमणितं ॥ पडिकमामि चाउकालं सज्झायस्स अकरणयाए दिया पढमचरिमामु रतिपि पढमचरि-IG ॥
मासु चेव पोरिसासु सज्झायो अवस्स कातव्यो, उभयो कालं भडोवगरणस्स अप्पडिलेहणाए दुपहिलेहणाए च अप्पडिलेहणा चक्खुसा ण णिरिक्खिक दुप्पडिलेहणा- दुण्णिरिक्षितं अप्पमज्जणा-रयहरणादिणाण पमज्जति दुप्पमज्जणा-रयहर-11 णादिणा दुप्पमज्जितं, एत्व सम्वत्थ अतिकमे बातिकमे अतियारे अणायारे जो मे देवसिओ अतियारो कतो तस्स मिच्छामिदुकडं, अतिक्कमादणि पुण इमं निदरिसणं, जथा- एगो साधू आहाकमेण निमीतओ पडिस्सुणति अतिक्कमो, उग्गाहितेवि जाय उपयोगे ठितेण संदिसावितं सोवि अतिकमो, जाहे पदभेदो कतो ताहे पतिकमो, जाब उक्खिचा भिक्खा तहवि बतिक्कमो, जाहे भायणे छूढं ताहे अतियारो, जावलंबणे उक्खिवह तहवि अइयारो, जाहेणेण मुहे पक्खिचो ताहे अणायारो, एवंविहा भावयन्वा । एत्थ सम्बत्थ जे करणिज्ज न कतं अकरणिज्जं कतं न सद्दहियं वा वितह वा परूवितं तत्थ जो देवसिओ अतियारो कतो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । एवं रातिमातिपडिक्कमणे रातियातिअतियार भणिज्जा । एत्थ य केह: अतियारा दिवसतो संभवंति कई रातीयो संभवति केई उभएवि केई अहोरायमि, तत्थ दिवसा असंभविणोषि देवसिए उच्चरि- ७५॥
जंति, संवेगत्थं अप्पमादत्थं निंदणगरहणत्थं एवमादि पहुच, एवं रातिअसंभविणोवि विमावेज्जा, अण्णे पुण भणंति-सम्बे ट्रा सव्वत्थऽसंभविणो अपमादादिकारण पहुच्च सुविणयमादि च पडुच्च एवं विभासज्जा । एवं देवसियस्स पडिक्कता । इदाणि।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
...एते सूत्रे अतिक्रम, व्यतिक्रम आदि दर्शयते
(88)
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
एकवि
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
MCAN
प्रतिक्रमणा सव्वकालियस्स पडिक्कमति, जहा अनिर्दिष्टकालाः प्रत्ययाविष्वपि कालेषु भवंति एवं अनिर्दिष्टकालं प्रतिक्रमण विष्वपि कालेषु ध्ययने । भवतीति, सो य अतियारो संखेवतो एगविधो संखेचवित्थरतो भवति सो च्चत्र दुविधो वा जाव दसविधो वा जाव सत्तरसविधो |
धादि
प्रतिक्रमणं वा संखेज्जअसंखेज्जअणंततिविधो वा । एते संखेववित्थरतो अतियारभेदा कहं', उच्यते- एमविध पहुच्च दुविधं भेदवित्थरतो ॥७६॥
भवति, सो च्चव दुविधो तिविधं पहुच्च संखेवो भवति, तम्हा दुविधो संखेववित्थरो अविरुद्धोत्ति, एवं सबढाणाणिवि जाव
अचरिम, अणंतइम चरिमं पुण इमं जाब वित्थरतो भवति, एतेसिं जथापरिवाडीए वक्खाणं भवति । एत्थ संखेववित्थरतो भाकिंचि भणति| पडिकमामि एगविधे असंजमे इत्यादि, तत्थ एगविधे इमं सुत्तं- पडिकमामि एकविधो अस्संजमे, एतन्मात्रमेव सूत्र
पदार्थः । प्रतीप क्रमामि प्रतिक्रमामि, जथा नगराओ गाम गतो देवदत्तो तसो पुणरवि तमेव नगर पञ्चागतो संतो पडियागतांति IKा भण्णति, एवं साधूवि खओवसमियभावातो उदइयभावं संकतो पुणरवि तमेव खोवसमियमा पडिसकतो पडिकंतोत्ति भण्णति। सूत्र सो अतियारो कह भवति , एकविधे अस्संजमो, न संयमः असंयमः, संजमो संमै उबरमो, तमि असंजमे जो पडिसिद्धकरणा-IX
दिणा अतियारो कतो तिकालचिसोऽवि तस्स मिच्छामिदुक्कडं, एवं तं उवरि सज्झाए ण सज्झातिय तस्स मिच्छामि दुकडंति एत्थ भणिति एवं सम्वत्थ विभासा, एवं एकविधो अतियारो भणितो । इदाणिं दुविधं भणति- पडिकमामि दोहिं बंधणेहि
+ ॥ ७६ लारागवंधणेण दोसबंधणेण य पडिकमणोत्थ पुब्ववणितो, दोहिंति रागद्वेषापेक्षणीया संख्या, बंधनमिति बध्यतेनेनेति बंधनं,
| दुविध-रागबंधणं दोसबंधणं च, रंजनं रज्यते वाञ्जेन जीव इति रागः राग एव बंधनं, द्वेपणं द्विषत्यनेनेति वा द्वेषः द्वेष एव
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(89)
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाबन्धनं दोसवन्धर्ण, एतेहिं दोहिं बंधणहेतृहि अतीचारी कर्मबन्धश्च भवति तम्हा एतेहिं दोहिं जो पाडिसिद्धकरणादिणा अतियारोटा दंडध्ययने कतो तस्स मिच्छामिदुकडं । एस च दुविधो अतियारो पज्जायनयवसेण जोगवसेण करणवसेण य तिविधो भवति- पडिक- प्रतिक्रमण
मामि तीहि दंडेहिं मणोदंडेण वइडेणं कायदंडेणं । जो मे पडिसिद्धकरणादि अतियारो कतो तस्स मिच्छामि दुकडं । ।। ७७॥
एसा सव्वा विराधणा संगादिगा संठिता, अण्ण पुण एवं भणंति जथा- पडिक्कमामि एगविधे असंजमे पडिसिद्धकरणादिणा जो मे अतिवारो कतो तस्स मिच्छामिदुकडं । तंमि चेव अस्संजमे पडिकमामि दोहिं बंधणेहि- रागवंधणेणं दोसबंधणेणं २, तंमि चेव अस्संजमे रागदोसेहि पडिसिद्धकरणादिणा जो मे अतियारो कतो तस्स मिच्छामिदुकडं, एवं तमि चेव असंजमे तिहिं दंडेहि मणसादीहिं पडिसिद्धकरणादिणा जो मे अतियारो कतो तस्स मिच्छामिदुकर्ड । एवं सब्यस्थ विभासा । दंडयत्यात्मानं तेनेति
दंडः, जथा लोके दंडिज्जति दवं च हीरति बज्झति य एवमिहावि चरितं च हारवेति दोग्गई च लभेति, मन एव दुष्प्रयुक्तो है दंडो भवति, तत्थ मणदंडे उदाहरणं-कोकणगखतो, सो उद्दजाणू अहोसिरो चितंतो अच्छति, साधुणो अहो खतो सुभशाणोवगतोत्ति बंदति, चिरेणं सलाव देतुमारद्धो, साहहिं पुच्छिते भणति-खरो वातो वायति, जदि ते हि मम पुत्ता संपतं वल्लराणि
ART|७७॥ पलीचेज्जा ता तेसि वरिसारत्ते सरसाए भूमीए सुबहु सालिसंपदा भवेज्जति एवं चितियं मे, आयरिएण बारितो ठितो ।। एवमादीर जं असुभ मणे चिंतेति सो मणदंडो । वइदंडो सावज्जा भासा, तत्थोदाहरणं-साधू सण्णाभूमीओ आगतो, अविधीए आलोएति,
जथा सूयरवंदं दिट्ठति, पुरिसेहिं सुतं, गंतुं मारित । अहवा कोट्टिओ सामि दटुं भवति-जदि दिवसो होतो सम्बे समणगा हलं दि वाहावेतो । कायदंडो कायेण असुभपरिणतो पमत्तो वा जं करेति सो कायदंडो, दिईतो-चंडसहो आयरिओ उज्जेणिए बाहि
RWADCASCARRIOR
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(90)
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययने ।
॥७८॥
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथाः ||१२||
KARENCE
प्रतिक्रमणारगामातो अणुयाणपेक्खओ आगतो, सो य अतीव रोसणो,तत्थ य समोसरणे गणियाघरबिहेडितो जातिकुलादिसपण्णो इन्भदारओ गुप्ति
हासेहो उवद्वितो, तत्थण्णेहि असदहंतेहिं चंडरुहस्स पास पेसिओ, कलिणा कली घस्सओत्ति, सो तस्स उपडितो, तेण से ताहे व याप्रातक्रमण
लोयं कार्ड पव्वातितो, पच्चूसे गामं वचंताणं चंडरुद्दो पत्थरे आवडितो रुट्ठो सेह डंडएण स मत्थए अभिहणति, कई ते पत्थरो न दिट्ठोत्ति ?, सेहो संम सहति, कालेणं केवलणाणं, चंडरुद्दस्सवि तं पासितुं वेरग्गेण केवलणाणं, अवो एतेहिं तिहिं डंडेहिं जो मे जाव दुकर्ड।
पडिकमामि तिहि गुत्तीहिं-मणोगुत्तीए बय० कायगुत्तीए, एसा संहिता सव्वविसोहिढाणाण संगाहिगा, असुभजोगो परमोऽगुत्ती, तत्थ मणगुत्तीए उदाहरण- सेविसुतो सुण्णघरे पडिम पडिवण्णो, पुराणमज्जा से संनिरोध असहमाणी उभामइल्लण समं तं चेव घरमतिगता. पल्लंककंटएण सावगस्स पादो बिद्धो, तत्थ अणायारं आयरति,न तस्स भगवतो मणो निग्गत्तो सट्टाणातो । वइगुत्तीए सण्णायगसगासं साधू परिधतो, चोरेहिं गहितो मुको य,अंमापितरो विवाहनिमित्तं एंताणि दिट्ठाणि,तेहिं नियतिओ,तेण | तेसि वतिगुनेण ण कहितं, ताणि तेहिं चोरेहिं गहिताणि, साहू य पुणो णेहिं दिट्ठो, स एवायं साधुत्ति भणितो, मुक्को, माताये
पुच्छिता-तुब्भेहिं कि एसो गहितूण मुक्को, आम, ता आणेहि छुरिय जाथणेऽहं छिंदामि, तेहि भण्णति-किमिति', सा मणति| दुज्जातो एसो, तुब्भे दिट्टा तहावि ण कहेति, किं तुज्झ पुत्तो?, आम, तो किं न सिर्ल्ड , ताहे तेण धम्मो कहितो, आउट्टाणि,
७८ विमुक्काणि तस्संतियाणित्ति काउं ।। काइयगुत्ताहरणं अद्धाणपवण्णगो जथा साधू।आवासिताम सस्थ मलमति तहि थडिलं किाचे
| लद्धं चणेण कहची एगो पादो जहिं पतिद्वाति । तहिय ठितेगपादो सब्बराति तहिं थद्धो ॥२।। न य ठवितं किंचि अत्थंडिलंमि
दीप
अनुक्रम [११-३६]
%A4%
(91)
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
प्रतिक्रमणा ध्ययन
%- 15
॥७९॥
C
+ गाथा: ||१२||
होतब्वमेव गुण । सुमहन्मएवि अहवा साहु न भिंदेइ गतिमेगो ॥३॥ सक्कपसंसा असदहण देवागमो विउब्बति या । मडकं- शल्यलिया साध जयणाए संकमे साणयं ॥ ४॥ हत्थी विकुवितो जो आगच्छति मग्गतो गुलगुलेंतो। णय गतिभेद कुणती, गएणप्रतिक्रमण हत्येण उच्छढो ॥ ५॥ बेति पर्डतो मिच्छामिदुफर्ड जित विराधिता मेत्ति । णवि अप्पाणे चिंता देवो तुडो नर्मसति य॥६॥ एताहिं तिहिं गुत्तीहि जो मे अतियारो कतो, कह , पडिसिद्धाणं करणं किच्चाणं अकरणं असदहणं विवरीयपरूवर्ण, एतासु गुत्तासु अतियारा तस्स मिच्छामिदुराई ।
पडिकमामि तिहिं सल्लेहि मायासलेण निदाणसल्लेण मिच्छादसणसल्लेण, तत्थ दबसल्लो कंटगादी, भावसल्लो जं अवराहट्ठाणं समायरिता नालोएति, मायासलोत्ति अप्पणा अवराध कातूण भणति- न करेमि, अण्णस्स वा पाडेति, अर्सपुण्णं या आलोएति, पडिकुंचति, जथा परोवधानियाए मायाए अंगरिमी उदाहरणं, इतराए पंडरज्जा १॥ निदानशल्यं निधितमादानं निदानं, अप्रतिक्रांतस्य अवस्यमुदयापेक्षः तीवः कर्मबंध इत्यर्थः, निदानमेव सल्लो निदानसल्लो, दिव्वं वा माणुस बा विभवं पासितूण सोऊण वा निदाणस्स उववत्ती भवेज्जा, तेण किं भवति , उच्यते, सणिआणम्स चरित्तं न बद्दति, कस्मात् अधिकरणानुमोदनात् , तत्थोदाहरणं बंमदत्तो। मिच्छादसणसाल इति मिथ्यादर्शनं मोहकर्मोदय इत्यर्थः,सो तिविधी- अभिनिवेसण मतिमोहेण (भेएण) संपवेण वा, तत्थ उदाहरणानि जथासंख्य गोठ्ठामाहिलो जमाली सावगोत्ति।
॥७९॥ पटिकमामि तिहिं गारवेहिं इड्डीगारवेणं रसगारवेणं सातागारवेणं । गुरुभावो गारवो, प्रतिबंधो अतिलोभ इत्यर्थः, इड्डीगारवो लोगसंणतीए नरिंददेविंदपूयाए वा भवति, रसमारखे जिम्भादंडो, सातागारयो सुहसातगत्तणं सयणासणयसहिवत्थादीहिं
दीप
S
अनुक्रम [११-३६]
x-14
(92)
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६] / [ गाथा-१,२], निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
सुहकारणेहिं पडिबंधो, तिसुवि उदाहरणं महराए अज्जमंगू आयरिओ तिब्बगारवाभितो अपडिकतो कालं का महराए निद्धयणजक्खो उबवण्णो, ताहे जक्खायतणस्स अदूरेण साहुणो बोलेंताणं जक्खपडिमं अणुपविसितुं जीहं निलालेति, एवं अण्ण दावि कते साधुहिं पुच्छितो भणति अहं सो पावकम्मो अज्जमंगू जीहादोसेण एत्थ उबवण्णो, तं मा तुम्भे गारवर डिबद्धा निघसा ७ होहिह, एतेहिं गारवेहिं जो मे जाव दुकडंति ॥ परिक्रमामि तिहिं विराहणाहिं विगता आराहणा विराहणा, विराहणाए
1160 11
प्रतिक्रमणः ध्ययने
गौरवविराधना
(93)
कषायसंज्ञाः
अकालसज्झायकारओ उदाहरणं, दंसण चिराहणाए सावगधीता जह्नगंधेण चरित्तविराहणाए खुट्टओ सुतओ जातो, महिसो वा सूत्र एताहिं तिहिं विराहणाहिं जो मे जाव दुकडंति । तिविहातियारातो चतुकावियारो भवति, पडिक मामि चउहिं कसाकोहकसाएणं माणकसाएणं माताकसाएणं लोभकसाएणं, कसाया नमोकारे पुण्यवष्णिका, एतेहिं जो मे जाव दुकडंति । | पडिकमामि चउहिं संणाहि आहारसंणाए। संणा दुबिहा खओवसमिया कम्मोदइया य, तत्थ खओवसमिया णाणावरणखओवसमेण आभिणिवोहियनाणसंणा भवति, ताए एत्थ नाधिगारो, कंमोदइया चतुब्विहा आहारसंना ४, आहारसंणा नाम आहारभिलाससंज्ञानं, आहाररागसंवेदनमित्यर्थः तीए चत्तारि उदयहेतुणो 'चउहिं ठाणेहिं आहारसंणा समुप्पज्जति ओमको ताए १ छुहावेदणिज्जस्स कंमस्स उदरणं २ मतीए ३ तदट्ठोवयोगेणं ४, तत्थ मती सोनुं द आघातुं रसेणं फासेन वा भवति, तदट्ठोयोगेणं आहारं चिंतेति, सुतत्थतदुभएहिं वा अप्पाणं वावडं न करेतित्ति, भयसंणा नाम भयाभिनिवेसो भयमोहोदय संवेदनमित्यर्थः तीए चत्तारि हेतुणो- चउहि ठाणेहिं भयसंणा उप्पज्जति हीणसत्तयाए भयपोहणिज्जउदपणं मतीए तदट्ठोवयोगताए तहेव रे ॥ ८० ॥ मेहुणसंणाणाम त्र्याद्यभिलापसंज्ञानं वेदमोहोदय संवेदनमित्यर्थः तीए चत्तारि हेतू ' चउहि ठाणेहिं मेहूणसंणा समुप्पज्जति तं०
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणामागसंवेदणमित्यर्थः
प्रत सूत्रांक
॥८१
सूत्र
+ गाथा: ||१२||
& चितमंससोणितयाए वेदमोहणिज्जोदएणं मतीए तदहोवयोगणं' तहेव, परिग्गहसंणा णाम परिग्गहाभिलाससंणाणं, परिग्गहरा- विकथाः
गसंवेदणमित्यर्थः, तीसे हेतूणो-अविवित्तताए लोभोदएणं मतीए तदह्रोवयोगेणं' तहेव, एएहिं चउहिं संणाहिं जो मे जाव दुकडंति । पडिकमामि चउहि विकहाहि-इस्थिकड़ाए भत्तकहाए देसकहाए रायकहाए । तत्थ इथिकथा चतुविधा जाति
कथा कुलकथा रूपकथा नेवत्थकथा, जातीए ताच बंभणखत्तियवस्सासु एत्थ एगतरं पसंसति निदति वा. कुलकथा उग्गादिरूवं कादमिलिणं मरहट्टियाण एवमादि पसंसति निंदति बा, नेवत्थे जो जमि देसे इत्थीणं । भत्तकधा चतुर्विधा अतिवाचे निवावे आरंभ निट्ठाण, अतिवावे एत्तिया दब्बा सागवतादीए उवउचा,निब्याए पत्तिया बंजणभेदादी एत्थ,आरंभे एचिलगा तित्तिरहिंगुकडमेंढनेथितदुद्धदहियतंदुला एवमादी, गिट्ठाण एत्तिएहिं रूबेहिं वेलाए संभ निहितं । रायकथा चतुबिधा-निज्जागकथा अतिजाणकथा बलकथा कोसकथा, निज्जाणकथा एरिसीरिदीए नीति, अतिजाणकथा-एरिसियाए अतीति, बलकथा-एत्तियं बलं, कोसकथाएत्तिओ कोसो । देसकथा चतुविधा-दो विधी विकप्पो नेवत्थो, देसच्छंदो माउलधीता गंमा लाडाणं गोल्लविसर भगिणी,
मातिसवित्तिओ विच्चाण गंमा अण्णेसि अगम्मा एमादि, विधी नाम भोयणविधी विवाहविधी एवमादि, विकप्पो परिसा घरा सूत्र | देवकुलाणि नगरनिवेसा गामादीण एवमादि, नेवत्थो इत्थाणं पुरिसाणं साभाविओ बिउब्बिओवा। पडिकमामि चउहिं झाणेहिं लसूत्रं । जीवस्स एगग्गे जोगाभिनिवेसो झाणं, अंतोमुहुत्तं तीव्रजोगपरिणामस्थावस्थानमित्यर्थः, तस्स सत्त भंगा- मानसं १ अहवा M८१॥
वाइयं२ अहवा कायियगं३ अहवा माणसं वाइयं च४ अहवा वाइगं काइगं च अहव। माणसं काइगं अहवा मणवयणकार्यिगंति, एन्थ पढ़मो भंगो छउमत्थाणं सम्मदिद्विमिच्छादिट्ठीणं सरागवीतरागाणं भवति, वितितो तेसिं चेव छदुमत्थाणं सजोगिकेवलाणं
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(94)
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ८२ ॥
च धम्मं कथेन्ताणं, काइगं तेसिं चैव छदुमत्थाणं सजोगिकेवलीणं च चरमसमयसजोगिन्ति ताव भवति, चउत्थो पंचमो व जथा पढमो, छट्टो जथा सजोगिकेवलीणं, सत्तमो जथा पढ़मो ।
तं झा चतुर्विध- अहं रुदं धम्मं सुकं च । आर्तभावं गतो आर्त्तः आर्तस्य ध्यानं आर्तध्यानं रौद्रभावं गतो रौद्रः, धर्मभाव, गतो धर्मः, शुक्रभावं गतः शुक्लः । उक्तं च हिंसाणुरंजित रौद्रं, अहं कामाणुरजितं । धम्मााणुरंजियं धम्मं, शुकुं झाणं निरंगण ॥ १ ॥ एगेगस्स असंखज्जाई ठाणाई, एतेसु ठाणेसु जीवो अरहडपटीविय आएति य जाति य, तत्थ संखेवतो अहं चउि अमणुष्णाण संजोगाणं वियोग चिंतेति काए बेलाए विमुच्चेज्जामि ?, अणागतेऽवि असंप्रयोगाणुसरणं, अतीतेऽवि वियोग बहु मण्णति, एवं वीर्य मणुष्णाणं वियोगं नेच्छति, एवं ततियं आर्यकस्स केण उवाएण सचितादिणा दव्यजातेण तिमिच्छ करेमित्ति चितेति चत्थं परिहीणो वित्तेण तं पत्तो वित्तं झायति, दुम्बलो थेरो असमत्थो वा भोतुं आहारं हथि या कदा जेज्जामित्तिय चिंतति । गाहाओ---
अमणुण्ण संपयोग मणुण्णवग्गस्स विप्यओगे वा वियगाए अभिभूतो परइडीओ य दद्दणं ॥ १ ॥ सदा रूवा गंधा रसाय फासा व जे तु अमणुण्णा । बंधबंवियोगकाले अट्टज्याणं शियायति ॥ २ ॥ एवं मणुण्णविसए इड्डीओ चक्कवट्टिमादी | महिले विहितमनसे पत्थेमाणे झियाएज्जा ॥ ३ ॥ मित्तयनातिवियोगे वित्तविष्णासे तह य गोमहिसे । अहं झाणं झायति परितप्ते सिदेत या ॥ १ ॥ किण्डा नीला काऊ अवृज्ज्ञाणस्स तिष्णि लेसाओ । उबवज्जति तिरिएझुं भावेण व तारिसेण तु ॥ ५ ॥ अहं झाणं शियातो, किण्डलेसाए बढती । उक्कडगाम ठाणंमी, अचरिती असंजतो ॥ ६ ॥ अर्द्ध शाणं झियायतो, नीललेसाए बढ़ती।
•••अत्र ध्यानस्य चतुर्विधत्वं दर्शयते
(95)
आर्त्तध्यानं
॥ ८२ ॥
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथा ||१२||
प्रतिक्रमणा
मझिल्लगमि ठाणमि, अपरित्ती असंजतो ॥ ७॥ अट्ट झाणं रियायतो, काऊलेसाए षट्टती । काणगंमि ठाणमी, अचरित्ती असं-1 आध्यानं । ध्ययने
12जतो ॥ ८॥ तिव्यकोचोदयायिट्ठो, किण्हलेसाणुरंजितो । अई झाणं झियायतो.तिरिकपत्तं निगच्छती ॥ ९॥ एवं चत्तारि कसाया।
माणितब्बा। मज्झिमकोधोदयाविट्ठो, नीललेसाणुजितो | अट्ट झाणं झियायंतो, तिरिक्खने निगच्छति ॥ १०॥ एवं चत्वारिविल በ c}
कसाया। मंदकोधोदयाविट्ठो, काऊलेसाणुरंजितो । अट्टज्झाणं झियायतो, तिरिक्वस निगच्छति ॥ ११ ॥ एवं चत्तारिवि कसाया। अट्टम्स लक्षणाणिकंदणता सोयणता तिप्पणता परिदेवणता, तत्थ कंदणता हा मात! हा पितेत्यादि, सोयति करतलपल्हत्थमहो। दीणदिडी झायति, तिप्पणता तिहिं जोगेहिं तप्पति, परिदेवणता एरिसा मम माता पा २ लोगस्स साहति, अहवा बेमाला वायं जोएति बा, अहवा परि २ तप्पति, सरिता मातुगुणे सयणवत्थाणि वा घरं पा दटुं २ तप्पति- इंदियगारवसंण्णा उस्सेब रती भयं च सोगं च । एते तु समाहारा भवंति अदृस्स झाणस्स ॥ १॥ रोई चतुबिध- हिंसाणुचंधी मोसा[बंधी तेणाणुबंधी सारक्षणाणुबंधी, तत्थ हिंसाणुबंधी हिंसं अणुबंधात, पुणो पुणो तिब्वेण परिणामणं तसपाणे हिंसति, अवा पुणो पुणो भवति चिंतेति वा सु? कतं, अहवा छिद्दाणि चयराणि वा मग्गति, हिंसं अणुबंधति, ण विरमति । एवं मोसेवि, विष्णेवि, संखखणोपरागादीणि काति, जो वा जोइल्लओ खाति तं मारोति, मा अण्णोषि खाहिति, दुढे सासति, सव्वतो य वीमेति, पलिचमिव
मण्णति, उक्षणति निस्खणति, सव्यं तेलोकं चोरमइयं मणति, परनिंदासु व हिस्सति, रुस्सति, वसणमभिनंदति परस्स, रोदना-INT॥८३॥ माणमतिगतो भवति येव दुकडमयीयो, एवं सारक्खणाणुचंधे, सेसं तहेब, तस्स चत्तारि लक्खणाणि- उस्सण्णदासो बहुदोसो अंणा-1
णदोसे आमरणतदोसे, ओस हिंसादीणं एगतरं अभिक्खणं २ करेति उस्सष्णदोसो, हिंसादिसु सच्चेसु पक्तमाको बहुदोसो,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
-
(96)
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाठी अण्णाणदोसो संसारमोदगादाण, आमरणतदोसो जथा पब्बतराई, परिगिलायमाणस्सवि आगतपच्चादेसस्स थोषोऽवि पच्छाणु- राद्रध्यान ध्ययने
दूतावो न भवति, अवि मरणकालेवि जस्स कालसोयरियस्सेव ण ताओ उवरती भवति, एस आमरणतदोसो । तत्थ गाहाओ॥८४॥
अहाए अणट्ठाए निरवेक्खो निद्दयो हणति जीये । चितेतो वावि विहरे रोद्दज्झाणे मुणेतब्बो ॥ १॥ अलियपिसुणे पसत्तो जाणाहियवादी तहेवमादी य । अभिसंधाणभिसंदण रोद्दज्झाणं झियायेति ॥२॥ परदव्वहरणलुद्धो निच्चपिय चोरियं तु पत्थेतो। लालुद्धो य रक्षणपरो रुद्दज्झाणे हवति जीवो ॥ ३॥ किण्हा नीला काऊ रोइज्झाणस्स तिणि लेसाओ । नरगमि य उववत्ती रोह
ज्ज्ञाणा उ जीवस्स ॥ ४ ॥ रोदज्झाणं झियायंतो, किण्हलेसाए बट्टती । उक्कस्सगंमि ठाणमि,अचरिती असंजतो ॥१॥सेस जथा | है अडे, नवरं गति गच्छति दुद्धरं । पाणबद्दमुसावाए अदत्तमेहुणपरिग्गहे चेव । एते तु समाहारा हवंति रोदस्स झाणस्स ॥६॥
धम्मे चउबिहे चउप्पडोयारे पण्णते, संजथा-झाणे अणुप्पेहाउ लक्खणे आलंबणे, एतं चतुविध, चउप्पडोयारं नाम एक्केक्का | तत्थ चतुविधं झाण, चतुविध तंजथा- आणाविजये अवायविजए विवागविजए संठाणविजये, तत्थ आणाविजए आणं विवेएति, जथा पंचत्थिकाए छज्जीवनिकाए अट्ठ पवयणमाता, अण्णे व मुत्तनिवद्ध भावे अबद्धे य पेच्छ कह आणाए परियाणिज्जंति, एवं | | चिंतेति भासति य, तथा पुरिसादिकारणं पहुच्च किच्छासज्झेम हेतुविसयातीतेसुवि वत्धुसु सन्चण्णुणा दिद्वेसु एवमेव सेतीत चि. | तंतो भासंतो य आणा विवेयेति १ एवं अवायविजयेति, पाणातिवातेणं निरयं गच्छति अप्पाउओ काणकुंटादी भवति एवमादि | लत्वाचा, अहवा मिच्छत्तअविरतिपमायकसायजोगाणं अवायमणुचितेति, णाणदसणचरित्ताणं वा विराधणावायमणुचिंतेति २ विवा-|
गविजयो विविधो पागो विवागो, विविधो कमाणुभावोत्ति भणितं होति, सुभासुभा य जे कमोदयभावा ते चिंतेति ३ संठाणवि
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥८४॥
ॐऊनऊ
(97)
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा जयो, संठाणाणि विवेचयति, सम्वदब्वाणं संठाणं चितेति, जथा लोए सुपतिद्वासंठिते अलोए सुसिरगोलकसंठिते नरगा हुँडस- धर्मध्यानं ध्ययने ठिता एवं सम्पदव्वाणं । एल्थ इमाओ चउण्हपि कारगगाथाओ-पंचत्थिकाए आणाए, जीवा आणाए छबिहे । विजए जिणपण्णते,
धम्मज्झाणं नियायह ॥१॥ इहलोइए अवाए, तधा य पारलोइए । चिंतयंतो जिणक्खाए,धम्मज्झाणं झियायती ॥ २ ॥ इहलोइयंट्री ॥८५॥ IN अवार्य, नितियं पारलोइयं । अप्पमत्तो पमत्तो वा, धम्मज्झाणं झियायती ॥ ३ ॥ सुभमसुभं अणुभावं कमविवागं विवागविजयंमि ।
संठाण सव्वदव्वे जरगविमाणाणि जीवाणं ॥४॥ देहादीयं परीणाम,नारगादीसुणेकधा । लेस्सातिगं च चिंतेति, विवागं तु झिया
यती ॥ ५॥ सुभाणं असुभाणं च, कंमाणं जो विजाणती । समतिण्णाणप्पामणं, विवागं तु झियायती ॥ ६॥ पंचासवपडिविगरओ चरितजोगमि वहमाणो उ । सुत्तत्थमणुसरतो धम्मज्झायी मुणेयवो ॥ ७॥ तेजोपम्हासुकालेसाओ तिणि अण्णतरि
गाओ । उववातो कप्पतीते कप्पमि व अण्णतरगमि ॥ ८॥ धम्मज्झाणं झियायतो, सुक्कलेसाए वहती | विक्किडगंमि ठाणंमि, &ा सचरिती सुसंजतो ॥ ९ ॥ एवं पम्हालेसाए मज्झियगंमि ठाणमि,तेऊलेसाए कणिढगंमि ठाणमि । कोयनिग्गहसंजुत्तो, सुक्कलेसाशाणुरंजितो । धम्मशाणं झियायतो, देवय निगच्छती ॥१०॥ ति, एवं माणमायालोभनिग्गहेऽपि, एवं पम्हाएवि,तेऊएचि लेसाए 1121
इमाओ पुण से चत्तारि अणुप्पेहाओ,तं०-अणिचताणुप्पेहा एवं असरणता०एगत्तासंसाराणुप्पेहा, संसारसंगविजयनिमित्तमाणिच्चता-५ तणुप्पेहमारभते, एवं धमे थिरतानिमित्तं असरणगतं, संबंधिसंगविजयाय एग,संसारुद्वेगकारणा संसाराणुप्पेहं । लक्षणाणि इमा-18॥८५॥
माणि चत्वारि-आणासई निसग्गरुई मुत्तरुई ओगाहरुई,आणारुई तित्थगराणं पाणं पसंसति,निसग्गरुई सभावतो जिणप्पणीए भावे रोयति II मुससई- सुत्तं पदंतो संवेगमावज्जति, ओगाहणारुई णयवादभंगगुबिलं सुत्तमत्थतो सोतूण संवेगमावन्नसद्धो झायति । आलेवणाणि|
दीप
ॐॐॐॐ
अनुक्रम [११-३६]
(98)
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमण ध्ययने
॥ ८६ ॥
च से चचारि जथा विसमसमुत्तरणे वल्लिमादीणि, तंजथा वायणा पुच्छणा परिवरणा अणुष्पेहा, धम्मका परियहणे पडति । एवं विभासेजा । इदाणिं सुकं, मुक्के चतुव्विधे चउप्पडोयारे पण्णचे-पुहत्तवितक्के सविचारे १ एगसवितक्के अविचारे २सुडुमा करिए अणियट्टी३ समुच्छिष्णकिरिए अप्पडिवाई ४
सुतणाणे उवउवत्ती अत्यंमि य वंजणंमि सवियारं । झायति चोदसपुदी पढमं सुक्कं सरागो तु ॥ १ ॥ सुतणाणे उपउत्तो अत्थमि य गंजणंमि अबियारं । झायति चोहसपुथ्वी वीयं सुक्कं विगतरागो || २ || अत्थसंकमणं चैव, तहा बंजणसंकर्म । जोगसंकमणं चेव, पढमे झाणे निगच्छती ॥ ३ ॥ अत्थसंकमणं चैव, तथा वंजणसंकर्म । जोगसंक्रमणं चैव वितिए ज्झाणे चितक्कती ॥ ४ ॥ जोगे जोगेसु वा पढमं वीर्य योगंमि कण्डुयी । ततियं न काइके जोगे, चउत्थं च अजोगिणो ||५|| पढमं बीयं च सुक्कं सायंती पुब्वजाणगा । उवसंतहि कसाएहिं खीणेहि व महाभुणी ||६|| वीयस्स य ततियस्स य अंतरियाए केवलनाणं उप्पज्जति । दोष्णी सुतणाणीगा झाणा, दुवे केवलणाणिगा । खीणमोहा झियायंती, केवली दोणि उत्तमे ।। ७ ।। सिज्झितुकामो जाहे कायजोगे निरुमती ताहे, तस्स मुटुमा उस्सासनिस्सासा, तत्थ य दुसमयद्वितियं परमतं इरियावाधियं कम्मं बज्झति, तत्थ ततियं सुमरियं अणियाणं भवति जोगनिराधें कते पुण्यपयोगेणं, चउत्थं समुच्छिनकिरियामप्पाडवादि झाणं णाणाठाणोदणं (यं ) जथा तथा झायति, अहवा कुलालचक्केण दितो, जभा दंडपुरिसपयत्तविरामवियोगेण कुलालचक्कं भमति तथा सयोगिकेवलिणा पुन्वार सुक्कज्माणे अजोगिकेवलीभावेण सुकज्झायी भवति । पढमवितियाओ मुक्काए, ततियं परमसुक्कियं । लेश्यातीतं उवरिल्लं, होति ज्झाणं वियाहितं ॥ ८ ॥ अणुचरेहिं देवेहिं, पदमबीएहिं गच्छती । उपरिल्लेहिं झाणेहिं, सिज्झती निरयो धुवं
(99)
शुक्रप्यानं
॥ ८६ ॥
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययन
प्रत सुत्रांक
[सू.] + गाथा ||१२||
सूत्र
प्रतिक्रमणा है॥९॥ इमाओ पुण से चत्तारि अणुप्पेहाओ- अवायाणुप्पहा असुभाणुप्पेहा अणंतवत्तियाणुप्पेहा विप्परिणामाणुप्पहा, जपत्य है। क्रिया
विचार: आसवादिअवाय पेक्खति संसारस्स असुभ अणंततं सब्वभावविपरिणामित् । लक्षणाणिवि चचारि- विवेगे वियोसग्ग अवहे
असंमोह, विवेग सबसजागविवर्ग पक्खति, वियोसग्गे सम्बोवहिमादिविउस्सग करेति, अव्वधे विण्णाणसंपण्णो ण विहति ण ॥८७।। चलति, असंमोहे सुसण्हेवि अत्थे न संमुज्झतित्ति । आलंबणाणि चत्तारि-खती मुनी अज्जवं मवति । एतेहिं चउहिं झाहिं
जो मे अतियारो पडिसिद्धकरणे कतो तम्स मिच्छामिदुकडंति ॥
पटिकमामि पंचहिं किरियाहिं काइयाए ५ सत्रं । काइका तिविधा-अविरतकाझ्या दुप्पणिधिकाइया उवरतकाइया, तत्थ अविरतकाइया असंजतस्स या सावगस्स बा, दुप्पणिधितकाइया पमत्तसंजतस्स, सा दुविहा ईदियदुप्पणिहाणजाइया णोइंदियदप्प.दिएहि पंचहिणाईदिएहि मणेण वायाए कारणं, उवरयकाहया अप्पमनस्स सकसायाकसायस्स १। अधिगरणिया
दुविधा अधिगरणपवत्तणी जथा चकमहादिपसुबंधादी पवत्तिज्जति । निव्वत्तिणी दुविधा-मूलगुणनिव्वत्तणी उत्तरगुण,मूलगुण ओराPIलिगादि, उत्तरगुणे णेगविधसगडरथजाणजुग्गमादि । एस्थ पाहटिया गाथा
निबनण संजोजण थिरकरणे व तहय निक्खये | सातिज्जण समणुणे परिग्गहे संपदाणे य॥१॥ निष्वचण जथा रथंगाणं, संजोजणं संघातर्ण, थिरिकरणं लोहादिणा पंधणं, निक्खवणं जत्थ ठवेति रथमादि, सातिज्जणा समणुण्णा परिग्गहो तत्थ पुच्छणं, पदाणं पयच्छणं, एतं रथंगाणं दरिसितं, एवं अण्णस्थवि भावेतब्बं २ । पादोसिय तिविध मण० वयण काय, मणपादोसिया दुविधा-अनिदाए निदाए य, एवं वायाए काएणवि, णिदाए अट्ठाए, अणिदाए अणट्ठाए ।पारितावणिगा दुविधा
दीप
अनुक्रम [११-३६]
...अत्र क्रियायाः भेदा: दर्शयन्ते
(100)
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
क्रिया
विचार
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा। सहत्थपरितावणिगा पोसहत्थपरितावाणगा य, सहत्थपरितावणिगा २ अट्टाए अणट्ठाए य । एवं णोसहत्थपरितावणिगावि ४। ध्ययने
त एवं पाणातिपातकिरिया जथा परितावणिगा५। एताहिं पंचहि पंचवीस किरियाओ सूचिताओ, तंजथा-मिथ्याक्रिया प्रयोगक्रिया २ ॥८८॥ समुदाणक्रिया ३ इयोपथिका ४ कायिकी ५ अधिकरणक्रिया ६ पाउसिया ७ परितावणिया ८ प्राणातिपातक्रिया ९ दर्शनक्रिया १०
स्पर्शनक्रिया ११ सामन्तक्रिया १२ अनुपातक्रिया १३ अनाभोगक्रिया १४ स्वहस्तक्रिया १५ निसर्गक्रिया १६ विदारणक्रिया १७ आज्ञापनक्रिया १८ अनवकांक्षक्रिया १९ आरंभक्रिया २० परिग्रहक्रिया २१ मायाक्रिया २२ रागक्रिया २३ द्वेषक्रिया २४ अप्रत्याख्यानक्रिया २५ इति । तत्र मिथ्याक्रिया त्रिविधा-हीनामिथ्याक्रिया अधिकमिथ्याक्रिया तद्व्यतिरिक्ता मिथ्याक्रिया, तत्र हीनमिथ्याक्रिया तंजथा-अंगुष्ठपर्वमानो ह्यात्मा यवमात्रस्यामाकतंदुलमात्रो वालाग्रमात्रः परमाणुमात्रः हृदये जाज्वल्यमानस्तिछति भूललाटमध्ये वा इत्यादि, अतिरिक्तमिभ्याक्रिया-पंचधनुःशतानि सर्वगतः, अकर्ता अचेतन एवमादि, तद्व्यतिरिक्तक्रिया नास्त्यात्मा आत्मीयो वा भावः नास्त्ययं लोको न परः भावा निःस्वभावाः इत्येवमादि श प्रयोगक्रिया त्रिविधा-कायप्रयोगक्रिया । वाक्प्रयोगक्रिया मणप्रयोगक्रिया, नत्र कायप्रयोगक्रिया प्रमत्तस्य गमनागमनाकुंचनप्रसारणक्रियाचेष्टा कायस्थ, वाक्प्रयोगक्रिया ।
भगवद्भिर्या गर्हिता भाषा तां भाषां स्वेच्छया भाषतो, मनःप्रयोगक्रिया आर्तरोद्राभिमुखो इंद्रियप्रसृतो अनियमित मन इति २।। का समुदानक्रिया द्विविधा-देशोपघातसमु० सर्वोपघातसमु०, तत्र देशोपघातसमु० इंद्रियदेशोपघातं कुरुते, सर्वोपघातसमु०सर्वप्रकारेण &ा इंद्रियं विनाशयति ३ईयोपथक्रिया द्विविधा-बध्यमाना वेद्यमाना ४ । काइया द्विविधा-अनुपरतकायक्रिया दुष्प्रयोगिका, मिथ्या-13
दृष्ट्यादीनां अनुपरतका क्रिया, दुष्प्रयोगिकाक्रिया प्रमत्तसंयतानां ५/ अधिकरणक्रिया द्विविधा-निवतेनेनाधिकरणक्रिया संयोज
दीप
-0-56
अनुक्रम [११-३६]
(101)
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा
नेनाधिकरणक्रिया, तत्र निर्वर्तनेनाधिकरणक्रिया द्विविधा-मूलगुणनिर्वर्तनाधिकरणक्रिया उत्तरगुणनिर्वर्तनाधिकरणक्रिया, सत्र क्रियाध्ययने |
मूलगुणनिर्वर्तनाधिकरणक्रिया पंचानां शरीरकानां निर्वर्तन, उत्तरगुणनिर्वर्तनाधिकरणकिया हस्तपादांगोपांगानां निर्वर्तनं, अहबा विचार:
मूलगुणनिर्वचनाधिकरणीक्रया असिशक्तिभिडमालादीनां निर्वतनं, संयोजनाधिकरणक्रिया तेपो यियुक्तानां संयोजनमिति, अहवाह ॥८९॥ संयोगः विषगरहलकूडधनुयंत्रादीनां, निर्वर्तनाधिकर० द्रव्येण कालकूटमुद्रादीनां ६ प्रादोषिका द्विविधा-जीवप्रादोषिका अजीब
प्रादोषिका च, जीवादोषिका पुत्र शिष्यादौ कलत्रे वा प्रदोपं गच्छति, अजीवप्रादोषिका अस्मना कंटकेन वाऽभ्याहतः अस्मान कंटके वा प्रदोपं गच्छति ७ । परितापनक्रिया द्विविधा- स्वदेहपरितापनक्रिया परदेहपरितापनक्रिया, परस्य देहं दृष्ट्वा स्वदेहर ताडयति, परदेहपरितापनक्रिया पुत्रं शिष्यं कलत्रं ताडयति ८ प्राणातिपातक्रिया द्विविधा- स्वदेहम्पपरोपणप्राणातिपातक्रिया परदेह०, तत्र स्वदेहव्यपरोपण क्रिया यत् स्वर्गहेतोः देहं परित्यजति गिरिशिखर,प्रज्वलित वा हुतवहं प्रविशति,अंभासि वाऽऽत्मानं परित्यजति, आयुधेन वा स्वदेहं विनाशयति, परदेहव्यपरोपणक्रिया अनेकविधा, तद्यथा-क्रोधाविष्टः एवं मानमायालोभमोहा०,को-ला
घेन रुष्टो मारयति, एवं मानेन मनो मायया विस्वासेन लोभेन लुब्धः शौकरिकवत् मोहेन मूढः संसारमोचकवत् , ये चान्ये धर्म४ा निमित्तं प्राणिनो व्यापादयति ९ । दर्शनक्रिया द्विविधा-जीवदर्शनक्रिया अजीवदर्शनक्रिया, नरेन्द्राणां निर्गमप्रवेशनस्कन्धावारप्रद-17 8शन तथा तालाचराणां विभूपितानां च प्रमदानां संदर्शनं, अजीवदर्शनक्रिया चित्रकर्मपुस्तककर्मग्रंथिमवेढिमदेवकुलारामोधानसभा- ८९॥
प्रवासु दर्शनोधम इति १० स्पर्शनक्रिया द्विविधा-जीवस्पर्शनक्रिया अजीवस्पर्शनाक्रिया, तत्र जीवस्पर्शनाक्रिया स्त्रीपुंनपुंसक वा I४ स्पृशति, संपट्टयतीत्यर्थः,अजीवस्पर्शनक्रिया सुखस्पर्शार्थ मृगलोमादिवखजातं मुक्तकादि वा रत्नजातं स्पृशतीति ११॥ सामंतक्रिया
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(102)
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
क्रियाविचार
सुत्रांक
455
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा द्विधा- देशसामंतक्रिया सर्वसामंतक्रिया, प्रेक्षकान् प्रति यत्रैकदेशेनागमो भवत्यसंयतानां सा देशसामतक्रिया,सर्वसामन्तक्रिया यत्र | ध्ययने ।
सर्वतः समंतात्प्रेक्षकाणामागमो भवति सा सर्वसामन्तक्रिया १२। अनुपातक्रिया प्रमत्तसंयतानामप्यानपानं प्रत्यनवगुण्डने संपातिमस॥ ९०॥
वानां विनाश इति १३॥ अनाभोगक्रिया द्विविधा- आदाननिक्षेपणानाभोगक्रिया उत्क्रमणानाभोगक्रिया,तत्रादान रजोहरणपात्र चीवरादिकानामप्रत्युपेक्षितानामप्रमार्जितानामनाभोगेनादाननिक्षेपो, उत्क्रमणानाभोगक्रिया लंघनप्लवनधावनसमीक्षागमनागमनादि १४ । स्वहस्तक्रिया दुविधा-जीवस्व० अजीयस्व०,जीर्य स्वहस्तेन ताडयति,वस्त्र पात्र वा०१५ | निसर्गक्रिया द्विविधा-जीवका निसर्गक्रिया अजीबनिसर्गक्रिया, तत्र जीनिसर्गक्रिया जीवं निसजति, अजीवनिपात्रं वा चीवरंवा१६। वियारणक्रिया द्विविधा
जीववियारणकिया अजीववियारणक्रिया, जीवमजीवं वा अभासिएसु विक्केमाणो दोभासिओ वियारेति, अहया जीवमजीव वा विदारयतीति१७/ आज्ञापनक्रिया नाम स्वपुत्र शिघ्यं पा आज्ञापयति१८ अनवकांधक्रिया द्विविधा-स्वारमानवकविक्रिया परास्मानव-1* कांवक्रिया,तत्र स्वात्मना न्यक्करोति येनात्मानं नावकांक्षति अथवा सदाचरति येन परं नावकांक्षति १९ । आरंभक्रिया द्विविधाजीवारंभक्रिया अजीबारंभक्रिया,तत्र जीवारंभक्रिया जीवानारभते,अजीवारंभक्रिया अजीवानारभते२० परिग्रहक्रिया द्विविधा-जीवपरिग्रहक्रिया अजीवपरिग्रह क्रियार। मायाक्रिया द्विविधा-आत्मवक्रीकरणमायाक्रिया परवक्रीकरणमायाक्रिया २२ । रागक्रिया द्विविधा-मायाधिता लोभाश्रिता या, अहवा तद्वचनमुदाहरति येन परस्य राग उत्पद्यते २३॥ द्वेषक्रिया द्विविधा- क्रोधाश्रिता
R मानाश्रिता च,क्रोधक्रिया आत्मना क्रुध्यति, परस्य वा क्रोधमुत्पादयति, मानक्रिया स्वयं मायति परस्य वा मानमुत्पादयति२४॥ अप्रत्यारुपानाक्रिया अविरतानामेव, न क्वचिद्विरतिरस्तीति २५ । एताः पंचविंशतिः क्रिया आश्रवभूता भवतीत्येवं वाच्यं ।
दीप
॥१०॥
अनुक्रम [११-३६]
KAROORKS
(103)
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
प्रतिक्रमणाला
अहवा इमाओ अण्याजो पणवीसं किरियाओ, तंजथा- आरंभिया १ परिग्गहिता २ मायावत्तिया ३ मिच्छादसणक्रिया II क्रियाध्ययन अपच्चक्खाणकिरिया ५ दिद्विवाझ्या ६ पुट्टिवाइया ७ पाडुच्चिया ८ सामंतोवणिवातिया ९ सत्थिया १० साहस्थिया ११
विचार: ॥९ ॥
आणमणिया १२ वेयाराणिया १३ अणाभोगवचिया १४ अणवखवत्तिया १५ पायोगकिरिया १६ समुदाणकिरिया १७ पेज्जपत्तिया १८ दोसवत्तिया १९इरियावहिया चेति २० । एताओ वीसं पुव्वभणिताओ, पंच काइगा अधिकरणक्रिया एवमादिगा, एता पणचीसं ॥ तत्थ आरंभिया द्विविधा-जीवारंभिया अजीवारंमिया, जीये आरंभति अजीवे आरंभतिश्एवं परिग्गहियाथि २ मायावत्तिया द्विविधा- आयर्वचणक्रिया परवंचणकिरिया य ३ मिच्छादसणवत्तिया द्विविधा- आभिग्गहिया य अणाभिग्गहिया य४ अपच्चक्खाणाकरिया द्विविधा-जीवअपच्चक्खाणकिरिया अजीवअपच्चक्खाणकिरिया ५दिहिवाइया दुविधाजीवदिट्ठिया अजीवदिट्ठिया प, जीवदिदिया आसादीण चक्खुदंसणपडियाए, अजीवदिद्विया चित्तकमादीणं पुट्टिया दुविधाजीव० अजीव०, जीवपुहिया जीवाधिगारं पुच्छति रागदासेण, अजीवाधिगारं वा०, अहवा पूट्ठियति फरिसणकिया, सापि जीव० अजीव तहेव७पाइरिचया दुविधा- जीवपा० अजीव०, जीववत्थु पच्च जो बधो सा जीवपादृच्चिया, एवं अजीवपाहुच्चिया ८ सामंतोवणिवाइया समन्तादणुपततीति सामन्तोषणिवाइया, सा दुविधा. जीव० अजीब०, जीवसामंतोवणिवाइया जथा एगस्स संडोतं जणो पलोएति जथा जथा पलोएति तथा तथा सो हरिसं गच्छति । एवं अजीबपि रहकमादिसु ९ नेसत्थिया का दुविधा- जीव० अज्जीव०, जीवणेसस्थिया रायादिसंदेसो जथा दगजंताई, अजीवणेसस्थिया जथा पाहाणकंडादीणि गोफणधणुग
मादीहिं निसरति१० साहत्थिया दुविधा-जीव०अजीव०, जीवसाहस्थिया जं जीवेण चेव जीवं आहणति, अजीसाहस्थिया जथा
SACRORREN
+ गाथा: ||१२||
4-04-982
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(104)
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१, २], निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ९२ ॥
असिमादि ११ आणमणिया दुविधा- जीव० अजीव, जीवआणमणिया जीवं आज्ञापयति परेण, एवं अजीवंपि १२ बेयारणी जीव० अजीव०, जीववेयारणिया जीवं विदारयति अजीवं विदारेति, फेडतीत्यर्थः १३ अणाभोगबत्तिया अणाभोगअतियणया य अणाभोगनिक्खेवणया य, अणाभोगी अण्णाण, आदियणं वा गहणं निक्खेवणं ठवणं १४ अणवकंवबत्तिया दुविधा - इहलोगे परलोगे य, इहलोगे अणवकखवतिया लोगविरुद्धाणि चौरिकादीणि करेति, जेण यहबंधादीणि इद्देव पावति परलोग अणवर्कखवचिया हिंसादिकंमाणि करेमाणो परलोगं नावकखति १५ पयोगकिरिया मण० वय० काय० तत्थ मणे पयोगकिरिया अड्रोइज्झाणादी इंदियप्रसृतो अणियमितमण इति, वइपयोग० सावज्जभासणं, कायपयोग पमत्तस्स गमनागमणादि १६ समुद्राणकिरिया देसोवघात सब्बोवघात, ०, तत्थ देसोवघातसमुदाणकिरिया कोइ कस्सइ इंदियदे सोवघातं करेति सच्योवघातसमुदाण किरिया सव्यपगारेण इंदियं विणासेति १७ पेज्जयतिया दुविधा मायनिस्सिता लोभनिस्सिता, पेज्जं नाम राग इत्यर्थः, अहवा तं वयणं उदाहरति करेति वा जेण परस्स रागो भवति १८ दोसवत्तिया दुविधा कोहणिस्सिया माणणिस्सिया या तं वा वयणं भगति करेति वा जेण परस्स दोसो उप्पज्जति १९ इरियावहिया सा अप्पमत्त संजतस्स वीतरागछउमत्थकेवालस्स वा, आउचं गच्छमाणस्स वा आउत्तं चिट्ठमाणस्स वा आउत निसीमाणस्स वा आउनं तुयट्टमाणस्स वा आउतं भुंजमाणस्स वा आ० भासमाणस्स वा आउच वत्थं पडिग्गहं कंबलं पादपुंछणं गेहमाणस्स निक्खेवमाणस्स वा जाब चक्खुपम्दनिवातमवि अस्थि वेमाता सुहमा किरिया इरियावहिया कज्जति सा पढमसमये बद्धपट्टया वितियसमये वेदिता ततियसमये निज्जिण्णा, सा बद्धा पुट्ठा उदिता वेदिता निज्जिण्णा, सेअकाले अकंमं वाचि भवति २० । एताओ पणवीस किरियाओ ||
(105)
क्रियाविचारः
॥ ९२ ॥
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
SH
महा
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा पडिमामि पहिं कामगुणेहिं सद्देणं । म । सूत्रं ॥ एत्थ रचो दुट्ठो वा मूढो वा जाब दुकति ।
कामगुणा पष्टिकमामि पंचहिं महब्बतेहिं पाणातिपाताओ वेरमण । मृ । सूत्रं ॥ तत्थ पाणानिपातो नाम पाणार्ग साधुमेरा
व्रतानि च द्रातिकमेण पातो । मुसाबातो नाम असच्चवयणं, साधूणमधित तमसच्च, सत्ताहियं असच्चंति चयणाओ, किंच अहिती, जे साधुमे-II
रातिक्कमणंति । अदिबादाणं नाम जं साधूण अणणुणात। मेधुणं नाम अबभचर, चमें तच्च जेसि अस्थि ते बंभा, तेहि इत्यिमा
दिविसय अणायरितं अचंभचरितं । परिग्गहो नाम साधुमेरातिक्कमेण गहो । एसि विरमण बिवेगो, साधुमेरतिक्कमणे प पिडिसेवणाए विराधणा, सो य देसे सव्ये य, तत्थ पुण पन्छिसविधाणं, साधुमेराए पडिसेतो आराहगो जतो एवं विभामा। TV एत्थ पंचसुवि उदयभावेसु वडमाणेण पडिसिद्धकरणादिणा जाब मिच्छामिदु कडेति। एत्थ केइ अण्णपि पढंति- पडिकमामि
पंचहिं आसयदारेहि-मिच्छत्तअचिरतिपमादकसायजोगहि, पंचहि-अणासवदारहिं संमत्तविरति अपमाअकसा. यित्तअजोगित्तेहि,पंचहिं निज्जरहाणेहिं नाणदंसणचरित्ततवसंजमहिति। पडिकमामि पंचहिं समीतीहिं ईरियासमितीए । न । सूचं । पयत्तवओ पवित्ती समिती, ईरियासमिती गच्छंतस्स | तस्थोदाहरण
एगो साहू ईरियासमिईए जुत्तो सकस्स आसणं चलित,वंदति, मिच्छदिड्डी देवो आगतो, मच्छियप्पमाणाओ मंडकियाओ I विउच्वति पिट्टओ हस्थिभयंगति न मिदति,हधिणा उक्विचितुं पाडितो,न सरीरं पेहति, सत्ता मारिज्जिहित्ति जीवदयापरिवतो,
अहवा अरहणणो समितो,असमिओ देवताए पादो छिण्णा,अण्णाए संधितो । मासासमितीए-एगो साहू पगररोहगे भिक्सक्स निग्गतो, कढगे हिंडतो पुच्छितो- केजदया आसा हत्थी एवमादि, मणति-न सुष्ट जाणामो समायजोगवक्खित्ता, किह हिंडता
दीप
-%
सूत्र
अनुक्रम [११-३६]
CF%
॥९३॥
ॐ
(106)
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ९४ ॥
तो णवि पेच्छह नवि सुणेह ?, साधू भगति- बहुं सुणेति कण्णेहिं० सिलोगो, एवमादि। एसणासमितीए- नंदिसेणो अणगारो, मगहाजणवए सालिग्गामो, तत्येगो गाहाबती, तस्स पुत्ती नंदिसेणो, तस्स गन्भस्थस्स पिता मतो, माता छम्मासिस्स, मातुसिता संबद्धित अणदा मंदिबद्धणो अणगारो साधुसंपरिवुडो विहरमाणो तं गाममागओ, उज्जाणे ठितो, साधू भिक्खस्स गता, नंदिसेणो भणति के तुम्भे ? केरिसो वा तुम्भं धम्मो ?, साधुद्धिं भणितो- आयरिया जाणति, उज्जाणे, तत्थ गंतुं पुच्छाहि, गतो, पुच्छितो, पवतो, छट्ठक्खमओ जातो, अभिग्ग गण्डति बेयावच्च मए कायति, सको गुणग्गहणं करेति अदीणमणसो वेयावच्चे अतिो, जो जं दब्बं इच्छति साहू तं तस्स सो देति, एगो देवो मिच्छद्दिट्ठी असतो आगतो, साधुरूवं विउत्ति उन्भडओ पडिस्सयं आगतो. नंदिसेणस्स छट्ठस्स पारण पढने कबले उक्खिते देवसमणो भुत्तं पत्तो भणति चितिजो तिसाए पडितो अतरंतो ठितो वाहिं, जइ कोइ सद्दहति वैयावच्चं तुरितं घेत्तृणं पाणगं जातु नंदिसेणो अपारितो चैव पाणगस्स गार्म अतिगतो, भिक्खन्तो हिंडतो देवाणुभावेणं न लभति, चिरस्स लद्ध, महाय गतो, साहुं न पेच्छति, बाहरति, चिरेण वाया दिण्णा, देवेण अतिसारजुत्तो साहू विउच्चितो, भणति य णं-धि मुंड एच्चिरस्स आगतो, वैयावच्चेवि कवडबुद्धी, भणति - मिच्छादुकडंति, पाणगं चिरेण लद्धति, भणति किह ते गामं नेमि है, कि अंसेण पिट्टीएत्ति, भणति असे, असे का पविट्ठो, असुभकलमलं सूयति, गुरुगं च अप्प करेति, भणति य-मा तूर खलखलाविज्जामि, पुणो तुराहित्ति, एवं बहुसो विक्खाभे जाणेह तरति खोभतु ताहे सो तुट्टो, संमतं पडिवण्णो, बंदिता पडिगतो । एस एसणास मितो अहवा इमं दिवातियं, पंच संजता महल्लाओ अद्वाणाओ तन्हाछुहाकिलंता निग्गता, वेयालि गामं अतिगता पाणगं मग्गंति, अणेसणं लोगो करेति, न लर्द्ध, काल
(107)
समितयः
॥ ९४ ॥
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥९५॥
+ गाथा: ||१२||
L-CRORSCIRCTCH
| गता पंचवि, एते एसणाए ।। आदाणभंडमत्तनिवेवणासमितीए- आदाणं- गहणं निक्खेवो-ठवणा. न पडिलहेति न पम- समितयः ज्जति चतुभंगो, तत्थ चउत्थे पत्तारि गमगा,दुष्पडिलहितं दुप्पमज्जितं च चतुभंगो, आदिल्ला अप्पसस्था, अंतिल्लो अ पसत्थो, तस्थादाहरणं-आयरिएहि साधू भणिता- गाम पवाचामो, उम्गाहितं, केणति कारणेण ठिता, एगी एत्ताह पडिलाहताणाच ठरतु-15 मारद्धो, साधूहि चोदितो भणति- किंस्थ सप्पो होज्जा जो एति, देवताए तहेव कत, आउट्टा मिच्छादुफडेति, एस जहण्णओIN समितो । अण्णो तेणेव विधिणा पडिलेहिता ठवेति, सो उकोससमितो । अहवा दिडिवाइंग, सेविसुतो पबहतो, सेहो, पंचण्हं संजतसताणं जो जो एति तस्स तस्स दंडगं गहाय ठनेति, एवं तस्स ठितगस्स अच्छतस्स अण्णो एति अण्णा जाति, सा भगव अतुरियमचवलं उबरि हेट्ठा य पमज्जिना ठवेति, एवं बहुएणवि कालेण न परितमति । उच्चारपासवणखेलार्सिघाणगपारिहावणियासमितीए- एस्थवि स भंगा, तस्थ उदाहरणं-धम्मलई पारिट्ठावणियासमितो समाहिपरिट्ठावणे अभिग्गहणं, सकासणचलणं, मिच्छदिहिआगमणं,किचिल्लियाविउधणं, काइया संजता, बाहाडिओ य, मत्तओ निग्गतो पच्छात, ताह सरता साहात य किलामिज्जातान्ति पपीतो, देवेण वारितो, बंदित्ता गतो। बितियं दिविवाएग-एगो चेल्लओ, तेण डिलं न पडिलहितं, बेयाले सो रनि काइयाडो जातो, न पेहितति न बोसिरति, देवताए उज्जातो कतो, अणुकंपाए, दिट्ठा भूमिति चोसिरिय । एस४ समितो,वितिओ असमिती, चउब्धीसं उच्चारपासवणभूमीसु तिणि कालभूमीओ न पाडलेहेति, भणति-किमेत्थ उहो उवविसेज्जी, देवता उद्रवेण तस्थ ठिता, काइयटुं पढमाए गतो, दिट्ठो उट्टो बितियाए गतो, तत्थवि एवं, ततियाए, ताहे तेण उडवितो, तत्थ देवताए पडिचोदितो-कीस सत्तवीस न पडिलहिसि ?, संम पडिवणो, एस पारिट्ठावणियासमितिति । किं एत्तियं चेव ।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
-
(108)
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [0] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा संजताणं परिद्वावणियाविहाणं उदाहु अण्णंपि अस्थि ?, उच्यते- अस्ति, किंत परिडविज्जति? कहं या परिविज्जति ! रतेणा-17 पृथ्वीपरिध्ययने मिसंबंधेण पारिद्वावणियनिज्जुत्ती आगता, तत्थ मूलगाथाउवग्पातो
लाष्ठापना ॥९६ ॥
पारिट्टायणियविधि वोच्छामि धीरपुरिसपणतं । णाऊण सुविहिता पक्षपणसारं अणुचरंति ॥१५॥१२॥१२८६||PI एताए विभासाए कातव्या, सा पारिट्ठावणिया समासओ दुविधा- एगिदियपरिहापणिया णोएगिदियपरिट्ठावणिया य, दोण्हवि | विधी भण्णति- तत्थ एगिंदियपारिट्ठावणिया पंचविवा- पुढवी आऊ ते 5०वाऊ०वणस्सइ०, तत्थ पुढविकायस्स दुविधं गहणं
आपसमुत्थं च परसमुत्थं च, आयसमुत्थं जं सर्य गहति, परसमुत्थं जं परो देति, सर्य आभोगेण वा गेण्हेज्जा अणाभोगेण वा, परावि आभोएण वा देज्जा अणाभोएण वा, तत्थ आयसमुन्थं आभोएण कह होज्ज', साहू अधिणा खतितो विसं व खाइत विसफोडिगा वा उद्विता, तत्थ जो अचित्तो पुढविकायो केणइ आणितो सो मग्गिन्जति, नस्थि ताहे अडवीओ आणिज्जति, तत्थ नवि होज्ज अचित्तो ताहे मीसो अन्नो हलक्खणणकुहमादिसु आणिज्जति, न होज्ज ताहे अडवीए पंथो बंमिए दुदहए चा, न होज्जा पच्छा सचित्तो घेप्पति, आसुकारितं वा कज्ज होज्जा जो लदो सो आणिज्जति, एवं लोणपि जाणतो०,अणाभोगेण तेण
लोण मम्गितं अचिचंतिकातुं, मीसगं सचित्तं वा घेनु पच्छा णात, तस्थेव छदेतब्वं, खंडे वा मग्गिते एतं खंडित्ति लोणं दिण्णं, ४ तपि तहि चेष विगिचितब्ब, ण देज्जा ताहे अप्पणा बिगिचितव्वं, एतं आयसमुत्थं दुविहंपि,परसमुत्थं आभोगेण वाताव सचित्तमिडिया लोणं वा दियां, अणाभोगेण वा खडं मग्गितं, लोणं देज्जा,तस्स घेव दायच ,णेच्छेज्जा ताहे पुच्छिज्जति-कतो आणीती, ॥१६॥
जस्थ साहति तत्थ तुं विगिचिज्जति, ण साहेज्ज ण वा जाणामोसि भणेज्जा ताहेत उवलक्खेतव्वं वष्णरसगंधकासेहि, वस्थ
55
दीप
मट
अनुक्रम [११-३६]
...अत्र पारिष्ठापनिकी स्वरुपम् दर्शयते
(109)
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा- १,२], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ९७ ॥ *
आगरे परिडुविज्जति, णत्थि आगरा पंथ वा वट्टंति विगालो व जातो ताहे सुक्खगं महुरगं कप्परं मग्गिज्जति, ताहे महुररुक्ख हेडा ठविज्जति, जथा उण्हेण य ओसाए ण य छिप्पति, न होज्ज कप्परं ताहे वडपचए पिप्पलपत्तए वा कातून परिहविज्जति, एवं जथाविधं विभासेज्जा इति ।
आक्कावि दुवि गहणं, आयाए णातं अणातं च एवं परेणचि णातं अणातं च, आताए जाणं तस्स विसकुंभे हणितच्चओ विसफोडिगा वा सिंचियव्त्रा विसं वा खाइतं मुच्छाए पडितो, गिलामो वा, एवमादिसु पुन्यमचित्तं पच्छा मी अहुणुव्यत्तं तंदुलोदगादि, अवरकज्जे सचित्तपि, सयमेव, पच्छा अण्णेवि, सव्वत्थ विधीए कते कज्जे ससे तत्थेव परिडुविज्जति न देज्ज ताहे पुच्छिज्जतिकतो आणिीतं १, जदि साहति तत्थ परिवेतव्यं आगरे, ण साहेज्ज ण वा जाणेज्जा पच्छा वण्णादीहिं उवलक्खेतुं तत्थ परिवेति, अणाभोगा कोंकणेसु पाणिय अंबिलं च एगत्थ बेहयाए अच्छति, अविरतिया मग्गिता भणति एतो गेण्हाहि, तेण अधिलंति पाणितं गर्हितं, जाते तत्थेव छुभेज्जा, अह न देति ताहे आगरे, एवं अणाभोगा, परसमुत्थे जाणंती अणुकंपाए चैव देज्जाण एते भगवंतो पाणियस्स रसं जाणति हरतोदगं देज्जा, पडिणियत्ताए वा देज्जा वताणि से भज्जंतुति, पाते तत्थेव साहरितव्वं, न देज्ज जतो आणीतं तं ठाणं पुच्छिज्जति, तत्थ नेतुं परिङ्कविज्जति, न जाणेज्ज० वण्णादीहिं लक्खिज्जति, ताहे नदीपाणीतं तं नदीए विगिंचेज्जा, एवं तलागपाणीतं तलाए, अगडवाविसरमादिसु ठाणेसु विगिंचिज्जति, जदि सुक्कं पाणितं वडपत्तं पिप्पलपत्तं वा अहेतूण सणितं विर्गिचिज्जति, जथा ऊयूरो न जायति पत्ताणं, असतीए भाणस्स तु सार्णयं उदयं अलियाविज्जति ताहे विगिंचिज्जति, अह कूवोदगं ताहे जे कूवतडा उल्ला तत्थ सायं णिसरति, अणुल्हसंते सुक्का तडा होज्जा उल्लगं च ठाणं नत्थि ताहे भाणं सिक
(110)
अप्कायपरिष्ठापना
॥ ९७ ॥
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
--
3 अनिवापु
प्रत सुत्रांक
+ गाथाः ||१२||
प्रतिक्रमणा एणं जीवज्जति, मूले से दोरो बज्झति, ओसकावेतुं पाणितं ईसि असंपत्तं मूलदोरो उक्खिप्पति, ताहे पलोट्टति, नस्थि कूवो दूरे वा ध्ययने | तेणसावयभयं वा होज्जा ताधे सीतलपमुहरुक्खस्स हेट्ठा सपडिग्ग योसिरति, न होज्ज पातं ताहे तुल्लगे पुढविकाय माग्गडं तेणी
परिष्ठापना ॥९८॥1
परिवति, असति मुक्कंपि उण्होदगेण उल्ले ता पच्छा परिदृविज्जति, नियाघाते चिक्खल्ले वा खई खणितूण पत्तनालण विगि-। चिज्जति छादिस च. करेति, एसा विधी, जं पडिणियनाए आउक्काए मीसेतूण दिण्णं तं विगिपिज्जति, जो संजतस्स पुष्वगाहिते पाणीए आउक्काओ अणाभोगण दिण्णो, जदि परिणतो परिमज्जति, नदि परिणमति जेण कालेण डिल्ल पावति विगिचितव, जत्थ हरतणुग पडेज्जतं कालं पडिमिछत्ता विगिचिज्जति । तेउकाओ आयसमुत्थो आभोगेण संजतस्स अगणिक्काएण कज्ज, जातं अहिडको वा डंभिज्जति फोडगा वा वातगंथी वा अंतवद्धी बा बसहीए वा दीहजातिओ पविट्ठो पोट्टसल वा तावेयचं, एवमादीहि आणीत कते कज्जे तस्थेव पडिच्छुम्भति, नदेति तो तेहिं कहिं जो अगणी तज्जातीओ तत्थ विगिचिज्जति, न होज्ज सोषि न देण्ज वा ताहे तज्जाइएण छारेण उच्छादिज्जति, पच्छा अण्णजातीएणपि, दीवएसु ताई गालिज्जति बढी य निप्पीलिज्जति, मल्लगसंपुढं कीरति पच्छा अहातुं पालेति, मनपच्चक्खातगादिसु मल्लयसंपुढए कातूण अच्छति, सारक्खिज्जति, *कते कज्जे तहेय विधेगो, अणाभोगणं खल्लगलोयछारादिस, तहेव परो आभोगणं मग्गिती देज्जा, छारेण पाकमितो, वसहीए कावा अगाण जोतिया करेज्जा तहेव विवेगो, अणाभोगेणवि एते च्चेव पूषालयं वा सईगाल देज्जा तहेब विवेगो।।
।। ९८॥ याउकाए आयसमुत्थं आभोगणं, फह, बत्थिणा दतिएण वा कज्ज. सो कदाइ सचित्ती अचित्ती मीसोवा, दुविधो कालोसीतो उण्हो वा, सीतो तिविधी, लाहोवि तिविहो, उकोसए जहिं धंतो भवति ताए पढमाए पोरिसाए अचित्तो वितियाए मीसो
दीप
अनुक्रम [११-३६]
।
(111)
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
[सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाट ततियाए सचित्तो, मज्झिमे वितियाए आरद्धो चउत्थीए सचिनो, मंदसीए ततियाए आरंभो, पंचमाए पोरुसीते सचिसो, उण्ड- वनस्पतिध्ययने काले मैदे उहे मज्झे उकासे दिवसा, नवीर तिनि चनारि पंच य, एवं वस्थिस्स, दतियस्स पुबघतस्स एसेव कालविभागो, जो पारष्ठापना
पुण ताहचेन धमित्ता पाणियं उत्तारिज्जति तस्स पढमे हत्यसते अचिचो, चितीए मीसो ततिए सचित्ता, कालविभागो मस्थि, ॥ ९९॥
जेण पाणित पर्यईए सीयलं, पुर्व अचित्तो मग्गिज्जति, पच्छा मीसो, पच्छा सचित्तोधि, अणाभोगेण एस अचिचो मीसगसचिचा गहिता, परोवि एवं चेव जाणतो वा अजाणतो बा देज्जा, नाते तसेवा, अणिच्छंते उव्वरगं सकवाडं पविसित्ता सणिय मुंचति ।
पच्छा सालाएवि, पच्छा निगुंजे महरे, पच्छा संघाडियाओषि जतणाए, एवं दतितस्सवि, सचित्त। वा अचित्तो वा मीसे था होतुर *सबस्सवि एस विधी मा अण्णं बिरादेहितित्ति ।
वणस्सइकाइयस्सवि आतसमुत्थं आभोगण गिलाणादिकज्जेसु मूलादीणं गहणं होज्जा, अणाभोगेण वा गहितं, मक्ते वा लोट्टो पडितो तलपिडिगं वा, कुक्कुसस्स य सो व पोरिसिविभागो, दुक्खोहितओ चिरपि होज्जा, इधणं वा पप्प परो अल्लएण| मीसितगं चबलगमीसितगाणि वा पीलणि कूरउंडियाए वा अंतो छोटूर्ण करमंदिपहिं वा संमं कैजियो अंणतरो वा बीजकायो पडितो।
होज्जा, तिलाण वा एवं गहणं होज्जा, निबतिलमातीपसु होज्जा, जदि आभोगगहितं आभोगेण वा दिण्ण विवेगो, अणामोगगहिते लादिष्णे वा जदि तरति विगिचिउं पढमं परपादे, सपादे संधारए लट्ठीए वा पण ओ हवेज्जा ताहे उण्डं सीतं च णाऊणं विगिंचणा | |९९॥ मएस बणस्ससिकायो । पच्छा अंनो काते । एसि बिगिचणाविधी, अल्लग अल्लगखचे, सेसाण आगरे, असती आगरस्स निवाघाते दामहराए भूमीए अन्नो वा कप्परे वा पत्ते वा, एस विधी । एगिदिया गता ।।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(112)
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१००॥
गोएगिदिया दुविहा तसा गोतसा य, गोतसा ठप्पा, तसा विगलिंदिया पंचेंदिया, विगलिंदिया तिविहा- वि० ति० चतु०, बेइंद्रियाणं आयसमुत्थं जलोगा गंडादीसु कज्जेसु गहिता तत्थेव विकिंचति, सत्तुगा वा आलेविनिमित्तं ऊरणिगासंसत्ता गहिता, विसोहिता आगरे विर्गिचिति, सति आगरे सत्तएहिं समं, निव्याघाते संसत्तदेसे कत्थइ होज्जा । अणाभोग गहणं तं दे व न गंतव्वं, असिवादीहिं गंमेज्जा जत्थ सतुगा तत्थ क्रूरं मग्गति, न लम्भति तद्देवसिए सत्थुए मग्गंतु, असतीए वितियततिय०, असति पडिलेहिय गेण्हतु, बेला अतिकमति अद्धाणं वा, संकिता विभत्तुं घेप्पंति, वाहिँ उज्जाणे देवकुले पडिसयस्स चाहिं रयचाणं पत्थरंतूण उवरिं एकं पडलं मसिणं तत्थ पल्लत्थिज्र्ज्जति, तिष्णि ऊरणिगपडिलेहणाओ, नत्थि जदि ताहे पुणो पडिलेहणाओ, तिष्णि मुट्ठी पगहाय जदि सुद्धा परिभुज्जति, एगंमि दिट्ठे पुणोषि मूलाओ पडिलेहिज्जति, जे तत्थ पाणा ते मल्लए सत्तएहिं सम ठविज्जति, आगराइसु विंगचिज्जति, एवं भत्ते, जादे पाणगं संसज्जेज्जा आयामं घेप्पति, पाणग्गहणं बीयपत्ते पडिलेहेत्ता उम्गाहितए हुभति, संसतं जातं रसएहि ताहे सपडिग्गह वोसिरति, नत्थि पाद अंबिलीए उत्ता सुष्णघराईसु, गत्थि उल्लिया सुक्खियाए, मिम्मओ नत्थि तो अष्णं कप्परं मग्गिज्जति, तत्थ छुभित्ता अबिलिबीयाणि छोट्टण वाडिको अणमि वा गुम्मादिमि छुमति जथा न कोइ पयति, नत्थि अपारिहारिंग पडिहारिगे छुमति, अंबिलीr affaलीए वा तिकालं पडिलेहेति दिणे दिणे, सुद्धं छद्दिज्जति, न सुज्झति सुक्खति तु अण्णंपि थोवं छुम्भति, ताहे सुद्ध पडितविज्जति, भाषणं च पडितप्पिज्जति, नत्थि भायणं ताहे अडवीए अणागमणपथे छाधीए जो चिक्खल्लो तत्थ खणित्ता मिच्छिदं लिपित्ता पत्तणालेणं जयणाए छुम्भति, एकसिं पाणएणे भमाडेति, तंपि तत्थेव छुम्भति, एवं तिष्णि वारे, पच्छा कप्पेति, कट्टएहि मालकं करेति, चिक्खल्लेणं लिंपति, कंटगसाहाए
(113)
विकले
न्द्रियपरिष्ठापना
| ॥१००॥
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
निकाय उच्छाएति, तेण भायणेणं सीतळपाणयं न लएति अवस्साणेण य करेण उवाहिज्जति एर्ग दोनि वा दिणे, संसत्तर्गचा विकलेध्ययने पाणं असंसनगं च एमो ण धरेति, गंधेणवि संसज्जति, संसत्तगं च गहाय न हिंडिज्जति, विराहणा होज्ज, संसत्तगं च गहायन्द्रिय
| न समुद्दिसिज्जति, जदि परिसता जे ण हिंडंति ते गति, जे य पाणा दिवा ते मया होज्ज, एगेणं पडिलहित वितिएणं सुद्धं परिष्ठापना ॥१०॥
परिभज्जति, एवं चेव महितस्स विग्गलियस्स दहियस्स, णवणीयस्स का विधी ?, महिए एगा ओंडी छुब्भति तत्थ दीसंति, असति महितस्स गोरसधोवणे, पच्छा उण्होदगं सीतलाविज्जति, पच्छा मधुरे चाउलोदगे, तेसु सुद्धं परिभुज्जति, असुद्धे तहेव विवेगो । दधिस्स पच्छतो उयवेत्ता णियले पडिलहिज्जति । तीराए मुत्तेवि एस विधी, परोवि आभोगणाभोगाए ताणि घेवड़ा
देज्जा ।। तेइंदियाणं गहर्ण, सत्तुयचुण्णाण पुच्चभणितो विधी, तिलकीडगावि तहेब, दहिए परल्लो तहेव, छगणकिमिओवि तहेक । का संथारओ गहिओ, णाते तहेव तारिसए कट्ठे संकामिज्जति, उद्देहिगाहिं गहिए पोत्ते णस्थि तस्स विगिचणा,ताहे तेसिपि लाढाइ-1
ज्जंति, तत्थ अतिति, लोए छप्पदियाओ वीसमिति सत्तदिवसे,कारणगमणं ताहे सीतलए नियाघाते, एवमादीण तहेव आगरे। |नियाघाते य विवेगो, कीडियाहिं संसते पाणए जदि जीवंति खिप्पं गलिज्जति, अहवा पडितो लेवाडेणवि हत्थेणं उद्धरितव्या, ४. अलेवाडं चेव पाणगं होति । असिवुमोयरिए तुरितं कज्ज, सहमाणेमु य कमेण कातव्यं, न य नाम न कायव्वं कातव्यं वा दाउवादेयं । एवं मक्खिगावि, संघाडएणं एगो भवं गेहति, सो चेव फुसति, वितिओ पाणयहत्थो अलेवाडो चेव, जदि कीद्धि
याओ मतियाओ तहवि गालिज्जंति, मेहं उवहणंति, मच्छिगाहिं वमेति, जदि तंदुलोदगमादिसु पूयरओ ताहे पगासमुहे भायणे | छुभित्ता,पत्तेणं ददरओ कीसति, ताहे कोसरण खोरएणं वा उक्कढिज्जति, थोबएणं पाणएणं समं बिगिचिज्जति आउक्कार्य
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(114)
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
CARRC
+ गाथा: ||१२||
प्रातक्रमणाजगमित्ता कढण गहाय उदगस्स टोइज्जति, ताहे अप्पणा चेव तत्थ बच्चति, एवमादी तेईदियाणं, पूलिया वा कीडएहि संसज्ज- संयतध्ययने |तिया होज्जा, सुक्खओ वा कूरो ताहे शुसिरि विकलरिज्जति, तत्थ पाणा पबिसंति । मुहुतं च रक्खिज्जति जाव विष्पसरिया।
& परिष्ठापना चरिदियाणं आसमक्खिया अक्खिमि अक्खरा ओकडिहतित्ति पेप्पज्जा,परहत्थे भने पाणए वा जयि मच्छिगा तं अणेस॥१०२॥
|णिज्जं संजतहत्थे उद्धरिज्जति, हे पडिता छारेणं तु गुंडिज्जति, कोत्थलकारिया बा बत्थे पादे वा घरं करेज्जा सव्वविवेगो, असति छिदति, अहवा अण्णाहिं घरए संकामिज्जति, संथारए मंकुणाण पुब्बगहिते साहे वा पेप्पमाणे पादपंछणेण, अदि तिनि वेलाओ पडिलेहिज्जंतेवि दिवे दिवे संसज्जइ ताहे तारिसए चेव कड्ढे सेकामिति,डंडए से वा, भमरस्सवि तहेव विवेगो, सअंडए सगही विषेगो, पूतरगस्स पुब्बभणितो विवेगो । एवमादि जथासंभव विभासा कातमा ॥
पंचेंदिया दुविहा-मणूसा णोमणूसा यमणूसा दुविहा-संजता असंजता य,संजता दुविहा-सचिना अचित्ता य,सचित्तसंजताणं कई गहणंति विवेगो,सचित्तसंजनाणं जथा निसीहे जाब इह जट्टा अधिकृता । इदाणिं अचिचसंजताणं पारिट्ठावणिया तस्स य मरणकालो,सो दुविधो-सणिमित्तो अणिमिचो य,सनिमित्तो भचपरिण्णा गिलाणो वा, अणिमित्तो आसुकारेणं,तम्हा ओधाणेतव्वं,जदिन | ओधाणेति जाय ताहिं विणा विराहणा,किंी,णाणीणं तु । तम्हा पुवं पडिलहेतब्बा। वहणी धंडिल्लं च उप्पएतत्वं । तत्थ इमाणि दाराणि
पडिलेहणा दिसा गंतए य काले दिया य राओ य । जग्गण बंधण छेदण एतं तु विधि तहिं कुज्जा।। कुसपडिमा पाणग य नियत्तणगत्तगसीसतणाई उबगरणे । काउस्सग्गपदाहिण उहाण चव बाहरणे।। उस्सग्गे सज्झाए
॥१०२॥ खमणे स्वमणस्स मग्गणा होती । बोसिरणे ओलोयण सुभासुभगती निमित्तहा।। (हा० १३१८-९) पढमदार पडि
AXXASSISTARS
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(115)
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
यखविधि:
RSHIPR
प्रतिक्रमणालेहणति, वहणीणं, अहवा दिसाणं, जाद दिसाओ न पाडलेहेति जा डिल्लैण विणा विराहणा ते पार्वति, पढम अवरदक्षिणाएं ध्ययने
सातिष्णि धंडिला पडिलेहेतवा आसण्णे मज्झे दूरे, पढमस्स बाघातेण वितिए ततिए बा, पढमथोडल्ले भत्नपाणसमाही, तमि बिज्ज॥१०॥ माणे जदि दक्खिणं पडिलेहेति तत्थ भचपाणं न लभंति, आहारपाणे अलभंते जं विराहणं पावन्ति जाव चरिमं, अहवा
एसणं पेल्लेंति वा भिन्नं मासकप्पं कातुं बच्चंति जा य पंथे विराहणा दुविधा, जदा पूण पढमाए असति वाघाओ वा इमेहिं। उदग तेण पाला बा तदा पितिया पडिलहिज्जति, वितियाए विज्जमाणीए जइ ततियं पडिलेहिज्जति ततो उबगरणं न लब्भाति,
तेण विणा जपावति ते चेच य दोसा, एवं चउत्थी दक्षिणपुब्बा तत्थ पुण सज्झायं न करेंति , पंचमी अवरुनरा, तत्थ कलहो *भवति संजतगिहस्थअंणउत्थिएहि सद्धिं पुणो उड्डाहो विराहणा य, छट्ठी पुष्वा ताए गणभेदो चरित्तभेदो वा, सत्चमी उत्तरा, सातत्थ गेलणं जंच परितावणादि, जाव चरिमा पुरुबुचरा अणं मारेति, एते दोसा परिहरंता संबसंति । पढमाए असति वितिया,
ततिया वा न लभेज्जा, ताहे जतणाए सेसाओ कप्पंति,णतु संते । णंतपति दारं, वित्थारायामणं जं पमाणं भणितं ततो विस्थारेणवि आतामेणवि जं अतिरेग लग्भात चोक्खं सुइग,सतं चेव चोक्खं, जत्थ मलो नास्थ चित्तल वन भवति,सुइगं सुगंधि,न य विवणं, सेतं पंडुरं, ताणि गच्छे जीवितोक्कमण निमित्तं धारेतच्बाणि, जहण्णेणं तिण्णि, एर्ग पत्थरिज्जति एर्ग पाउाणिचा बज्झति ततियं ६ उरि पाउणिज्जति, एताणि तिणि जहष्णेणं, उक्कोसेणं गच्छं णाऊण बहुगाणिवि घिप्पंति, जदि ण गेण्हति पायच्छितं पावति,
आणादि,विराहणा दुबिहा, मइलकुचोल निजंते दटुं लोओ भणति-इहलोगे चेव एसा अवस्था, परलोगे पावतरिया, चोक्खमुईहिं लोगो द पसंसति, अहो लडो धम्माति,पवज्जाभिमुहा य हाँति,अहणत्थि णन्तर्गति रतणीए निएहामो तो अच्छावेंति तत्थ उदाणादी दोसा,
-%A4%AEASE
(116)
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [४], मलं सत्र /११-३६] | गाथा-१.२. निर्यक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] भाग-5
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा जत्थ णामग्गहणादी, णामग्गाहणं या, पज्जत्तियाणि तम्हा घेतब्वाणि, ताणि बसमा सारवंति, पक्खियचाउम्मातिएहि पडिले- कालविलंबे ध्ययने लहिज्जति, इहरया मइलिज्जति दिवसे दिवसे पडिलेहिजंताणि।
| जागरण ॥१०४॥
कालेत्ति दारं, सोय दिवसतो कालं करेज्जा रातो या, एवं कालगमणं हि पुग्वभाणितं भत्तपरिण्णा गिलाणे वा, तैमि काल-II विधि: गते जतिणा सुत्तत्थगहितसारेण (आयरितो अधिकृतो तेण) विसाओ न कातब्बो, (जंबलं कालगतो) निक्कारणे,कारणे अच्छाविज्जति, किं कारणं , रतिं ता आरक्खिततेणगसावगभयादिणा दारं न ताव उग्याडिज्जति, तेणं कालिया संविक्खाविज्जति, महजणणातो वा सो तंमि नगरे इंडिगादीहि आयरिओ वा सो तंमि नगरे सवेस या विक्खातो भत्तपच्चक्खातओ या, सनायगा वा
से भणति, जथा- अहं अणापुच्छाए ण णीहित्ति, तेण रनि ण नीणि जति, दिबसतो गंतगाणं असति चोक्खाणं, डंडिगो वा है अतीनि नीति वा, तेण दिवसतो संविक्खाविज्जति, एवं कारणे निरुद्धस्स इमो विधी-जे सेहा अपरिणता य ते ओसारेता जे गी| तत्था अभीरू जितनिदा उवायकुसला आमुकारिणो महाबलपरक्कमा महासत्ता दुद्धरिसा कतकरणा अप्पमादिणो एरिसा जे ते | जागरंति, नतु चट्टति (अपरिणते धार ) जदि पुण जागरंता अच्छिदिय अबंधिय तं सरीरगं जागरंति सुर्वति वा आणादी,तत्थ |
| पंता देवता छलेज्जा कलेवरं गयणे उद्वेज्ज चा पणच्चज्ज वा आधावेज्ज वा रसेज्ज वा बित्तासेज्ज वा भीसणेण या लोमहरिसजणजाणं सदेणं भेरवेणं अट्टहासं मुंचज्जा । जम्हा एते दोसा तम्हा छिदितुं विधि व जागरितव्वं । जाहे चेव कालगतो ताहे चेव हत्य3ापादा उक्कयारिज्जति, पच्छा थद्धा ण सक्कंति, अच्छीणि संमिलिज्जति, तोंड च से संबद्धं कीरति, मुहपोत्तियाए पज्झति, जाणि &॥१०॥ | संधाणाणि अंगुलिअंतराणि तत्थ इसि निच्छिज्जति, पादअंगुहेसु हत्थंगुट्ठसु य बक्षति । आहरणमादीणि य कहिज्जंनि । जथा
CROCHECKSCRRECT
दीप
ॐॐॐॐॐ
अनुक्रम [११-३६]
(117)
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
A
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा तह जागरंति । एसा विधी कातव्वा ।
कुशपतिध्ययन
। दाणि कुसपडिमत्तिदारं,कालगते समाणे किं नक्खतंति पलोइज्जति,न पलोएंति असमायारी वट्टति,जतो तत्थ पणयालीमा निवर्त
समुहुत्ता जे दिवढक्खेत्ता ते अण्णे दो कट्टुति, तत्थ अण्णे दो पुत्तलगा कीरति, तीसतिमुहुत्ता जे समक्खेत्ता तेसु एको पुत्तलओनमावकIN कीरति, एस ते वितिज्जतोनि, न करेति एक कढति, पण्णरसमुहुत्तिएसु पुण सतभिसयादिसु अबङ्गखेत्तम छम
शीषतृणानि अमीइंमि य, एत्थ एकावि न कीरति । नियंत्तणेत्ति दारं, एवं तमि निज्जमाणे थंडिल्लस्स बाघाते खेत्तं उद्गं हरितं अग्याभोगण| वा अतिच्छिता डिल्लं ताहे जदि तेणेव मग्गेण णियति तो असमायारी, पच्छा सो कवितो कदाइ गामहुत्तो उद्वेज्जा, जतो चेव सो उद्वेति ततो चेव पधावति,तम्हा ठयेऊण जतोमुहाणि तूहाणि तं थंडिल्लं ताहे भमितूर्ण पदाहिणं करेंतेहिं उवागमति। मत्तएत्ति दारं । मुत्तत्थतदुभयविद् मत्तएण समं संसट्ठपाणगं कुसा य ते समच्छेदा अपरोप्परसंबद्धा हत्थचतुरंगुलप्पमाणा, ते घेत्तूर्ण पुरतो अणवयक्संतो बच्चति थडिलाभिमुहो जेणं पुवं दिटुं, अहवा केसराणि चुण्णागि वा, जदि सागारियं मिच्छदिट्ठी गता तो परिद्ववेत्ता हत्थं पादं सोयति आयमंति य तेहिं पुढो । इदाणि सीसशि दारं, जचो दिसाए गामो ततो सीसं कातन्वं, पडिस्सत्ताओ ॥णीणतेहिं पुव्वं पादा जीणेतब्बा, पच्छा सीसं, किं निमित्त ?, उद्वैतरक्खणट्ठा, जतो उद्वेति ततो चेव गच्छति, सपडिहुत्ते अमंगलं
व । तणाणित्ति दारं, जाहे थंडिलं पमज्जितं भवति ताहे कुसमुट्ठीए एकाए अबोच्छिण्णाए धाराए सरत्तिकातुं संधारो कातन्वो, ॥१०५॥ सत्य समो, जदि पुण विसमा हवंति तणा उवार मज्ो हेड्डा वा तत्थ मरणं गेलण्णं वा, उवार आयरियाण मज्झ वसभाणं हेट्ठा द्रा भिक्खूर्ण, तम्हा समो कातब्बो, जदि य नस्थि तणाई केसरहिं वा चुण्णेहि वा अब्बोच्छिण्णाए धाराए कार 'कातूण हेढा तकारी
दीप
अनुक्रम [११-३६]
4- 21
(118)
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
दक्षिणो
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा जाबन्झति, असति गुण्णाण केसराणं वा ताहे पलेवगादीहिं। उवगरणेति दार, परिविज्जते उवगरण अहाजातं ठवेतव्य रयह-18/उपकरणोध्ययने कारणचौलपगुहपोत्ति, जदि न ठयति असमायारीय वकृति, विराहणा य, आणादी, तस्थ दिडो जणण, दंडिती यसो या कोपिओ
रसगप्र॥१०६॥
दवियगाति मा गामज्झामणं करेज्जा, अहवा मिच्छतादयो दोसा, जथा उज्जेणगस्स सावगस तवनिर्यालगणं कालगतस्स तच्च-1 ४॥ नियपरिएसणा, पच्छा आयरिएहितो पोहिलाभो । काउस्सग्गेत्ति दार, तत्थ परिवेज्ज, जो जतो ठितो सो ततो चेव निय-नापानानि हात्तति, काउस्सगं न करेंति जदि तत्व कति आणादिविराधणा, उट्ठाणादी दोसा, तम्हा काउस्सग्गो न कातब्बो । पयाहिसाणेत्ति दारं, परिवेत्ता जो जतो सो तो चेव नियति पदाहिणं न कातव्यो, जदि करेंति उछितो विराहणा बालवुट्टादीण, तम्हा ॥2 दान कातवो। उठाणेति बार, कलेवरं नीणिज्जमाणं वसहीए चेव जदि उद्रेति गाममझ मोत्तम्ब,निवेसणे उट्ठति निवेसणं मोत्तम्Pउज्जाणे कई मोत्तव्यं, मंडलाओ महल्लतरगति, उज्जमणस्स य णिस्सीहिताए य अंतरे उद्देति देसो मोत्तबो, निसीहियाए उज्जाठाणस्स य अंतरे आगतुं पडितो निवेसणं मोत्तव्ब, उज्जाणे साही, उज्जाण गामस्स य अंतरा गामड़, गामदारे गामो, गाममो।
मंडलं, साहीए कंड, निवेसणे देसा, वे सहायरज्जं मोत्तच्वं जदि निष्णूढो वितिय पविसति तो दो रज्जा मोतचा, ततिय | पविसति तिण्णि रज्जा मोत्तम्बा, तेण पर तिण्णि चेव बहुसोवि पविसंतस्स, पुणोऽपि परिदृवितव्यो, एवं चेष आगतस्स इहेव उद्वि
१ बसही मोत्तब्वा, णिवेसणे हे निवेसणं मोत्तव्यं, साहीए उट्वेव साही मोत्तम्या, गाममझे पट्टेति गाममग्झं मोत्तव्वं, गामदारे उद्वेति ॥१६॥ गामा मोत्तव्यो, गामस्स य उजाणस्स च अंतरा उट्रेति मंडळं मोत्तठव, जाजाणे कंडं मोसम्ब, निसीहियाए उद्देति र मोत्तम्ब, इत्येवं प्रत्यंतरे। एवं वा निजूदमि परिठ्ठति गीयस्था, पगयस्स मुगु संविखंति, अदि निसीहियाए उहितो तत्व पवितो उवस्सगे मोतब्बो
दीप
%
अनुक्रम [११-३६]
e
(119)
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
4
प्रतिक्रमणाला यस्स अण्णाइदुसरीरस्स पन्ताए देवताए तत्थ अमूढहस्थेणं काइयं धामहत्थेणं गहाय अच्छोडेतु भणज्जा-मा उडे उज्म गुज्झगाला
गारव्याहरणोध्ययने
जहिं व उद्वितो तं जदि न मुपति बिराहणा जा होति निष्फण, तम्हा मोत्तव्वं । जदि पुण बहिया असिवादिकारणं तो नश
निग्गच्छति, तहेव वसंता जोगपरिवट्टि करेति, नमोकारइत्ता पोरिसिं करेति, पोरिसित्ता परिमहू, सति सामत्थे आयंबिलं पात, ॥१०७ असति निविइयं समितियपि, एवं पुरिमडइत्ता चउत्थं चउरथइना छटुं । एवं विभासा । वाहरणेत्ति दारं, सो उड्डितो समाणो
णाम एगस्स दोण्ई तिहं सब्वेसि या गेहेज्जा, तत्थ जावतियाण गेहति तेसि खिप्प लोचो कीरति, परिणा-पचखाणं दुवा
लसमें से दिज्जति, जो नाम न सरेज्जा तस्स दसम अहम छटुं चउत्थं आयंबिलेण बा, पारसमै गणभेदो य कीरति, ते गणाओं मणिति, जदि एवं न करेंति असमायारीए पहुँति, जे ते पाविहिन्ति, तम्हा एसा विधी कातबा । काउस्सग्गेति दारं, ततो
आगता चेतियपरं गच्छति,चेइताई बंदिना सतिनिमित्तं अजितसंतित्थओ परिपढिज्जति, पच्छाऽऽयरियसगासमागत अविधिपरि-1 हावणियकाउस्सग्गो कीरति, जो पडिस्सए अच्छति तण उच्चारपासवणखलमत्तगा विगिचितब्बा, बसही य पमज्जितव्वा
सजझाइपत्ति दारं, तद्दिवर्स सज्झाओ कीरति न कीरतित्ति, जदि य आयरिओ महाजणणाओ वा संणायगा व से अस्थि ४ तेर्सि अद्धिती तेणं ण कीरति, इहरहा कीरति । एवं खमणवि । एवं ताव सिवे, असिवे खमणं णस्थि, जोगवड्डी कीरह, काउसग्मो
य वढिज्जइ, परिस्सये य मुहत्तागं संचिक्खाविज्जति जावं च उवउनो तत्थ, तत्थ जेणे संथारएणं णीतो सो विकरणो कीरति,8॥१७॥ न करति असमायारीए बटुंति, अधिकरणं, आणेज्जा या देवता पंता, तम्हा विकरणं कातव्वं ॥ ददाणि लोयणेत्ति दारं
अवरज्जतस्स०॥१५- ।।१३४८ ।। अवरज्जतस्सत्ति वियदिणमि, ते पूण कस्स पेप्पति, आयरियस्स महडियस्स भच
दीप
%***-%3A %AE
अनुक्रम [११-३६]
(120)
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणापच्चक्खायस्स असो वा जो महातबस्सी, जे दिसं तं सरीरगं कड़ियं तं दिसि सुमिक्खं सुविहारं च वयंति, अह तत्थेव संचिक्खइकाष्ठाविधिः ध्ययने
अक्खयं ताहे तंमि देसे सिर्व सुभिक्खं सुहविहारं च भवइ, जइ दिवसे अच्छइ तत्तियाणिवि वरिसाणि मुभिक्ख, सुभासुभं । इयाणि | ॥१०॥
चवहारओ इमं भणामि-थलकरणे वेमाणितो जोतिसिवाणमंतरो, समंमि गड्डाए भवणवासी एस गती से समासेणं । एत्थं एक्कमेक्के थाणे आणादीविराधणा, एक्कमेक्कातो पदातो तनिष्फणं । एत्थ पुण कठुस्स गहणमोक्खणे एस विधी-पुथ्वट्ठातंतगा चेर तणडगलछारादिदधमालोएंति अणुनवेन्ति य, किमिति , कोइ अणिमित्तं कालं करेज्ज रातो ताहे जादि सागारियं वहणकट्ठादीगट्ठा उद्ववति तो आणादी, आउज्जोवणवणिए, अगणि कुडंवी कुकम कुम्मरिए । तेणे मालागारे उभामग पंधिय पर्यते ॥१॥ तम्हा न उहवेतब्बो, तं दव्वं घेत्तुं ण परिहवेंति, जदि एगो समत्थो णेतुं ताहे न चैव घेप्पति, जदिन तरति ताहे दो जणा वहणीए ऐति, तं च कहूँ जदि तत्थेव परिडवेति तो अण्णेण गहिते अधिगरणं, सागारिओ वा तं अपेच्छतो दिया वा रातो वा आसियाडेज्ज, विणासं गरई च पावेंति, तम्हा आणेतब्वं । जदि पुण आणचा तहेव पवेसिति तो सागारिओ मिच्छचं
गच्छेज्जा, एते भणति- आदिण्णं न कप्पइ, इमं च णेहिं गहितंति, अहवा भणेज्ज- समला, पुणोऽवि तं चैव आणेति, अवण्णं वा | करेज्जा, इतरज्जाति य दुगुछति य-मतगं वहितुं मम परं आणेन्ति, उड्डाह वा करेज्जा, जम्हा एते दोसा तम्हा आणेत्ता एक्को तं ठातूण गच्छति,पट्टि चा सेसा अतिन्ति ,जदि ताव सागारिओ न उद्वेति ताहे अतिणेचा तहेब ठवेति जथा आसी,अह उद्वितओ ताहे15 | साहति- तुम्भे पासुतेल्लया अम्हेहि न उढविता, साधू कालगतो, तुमच्चिताए वहणीए णीतो सा किं परिवचिज्जतु आणिज्जतु ॥१०॥ जं सो भणति तं कीरति, अह तेहिं आणीतं ठवितं, तेण य आगमियं- महं वहणीए परिहवेत्ता पुणोचि अतिणेतुं वत्येव ठवितषि,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(121)
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा:
||१२||
प्रतिक्रमणाहरुट्ठो,ताहे अणुलोमिज्जति, आयरिया भणंति- केणतं कर्त !, अमुगणति, कीस मम अणापुच्छाए करसिी, अलाहि एण मर्म, नीतु, सचित्तध्ययने एवं समक्खं तु भणति, भाणते जदि सागारिओ भणिति- मा छुम्भह, अच्छतु, मा णवरं वितियं करेज्जा, अह भणति-मा अच्छतु, मनुष्यपरि ॥१०९॥
पच्छा अण्णाए बसहीए ठाति, विविज्जो से दिज्जति, मातिट्ठाणेण कोई साधू भणति- मम स णीयल्लगी यदि निच्छुम्मति अहंपि जामि, अहबा सागारिएण समं कोई कलहेति, ताहे सोचि निन्छुम्भति, सो से वितिज्जगो होति, जदि पहिया से परवाओ'वसही वा नत्थि ताहे सब्वेवि णिति,वितियपदं तत्थेव परिद्ववेज्जा उछितो सो संनियेसो असिवगहितओ वा। संजतपरिद्वावणिया गता । इदाणिं असंजतमणुयाणं, सा दुविधा भवति- सचित्तेहिं अचिनेहि य, सचित्तेहिं तार कह पुण तीए द्रा संभवोत्ति
कप्पटुग ॥ १५-१३५।१३४|४|| काइ य अविरइया संजताणं वसहीते कप्पट्ठगरूवं साहरेज्जा अणुकंपाए भएणे पडणी-131 यत्ताए वा, अणुकंपाए चिंतेति-एते भट्टारगा सचहितायोत्थिता, एत्थ साहरामिति साहरेज्जा, दुक्काले वा पत्ते भत्तं वा पाणंद वा से दाहितित्ति छज्जा, दासी वा चिंतेति- एतस्सतएण न कोति दुक्किहितित्ति एतेसिं अणुकंपिताणं वसहीए साहरेज्जा भएणं रंडा पतुत्थवतिया ना साहरेज्जा, एतेसि अणुकंपिहितित्ति परिवेज्जा २ पडिणीया तच्चणिगिणी चरिगा वा एतेसि । उडाहो होउत्ति साहरेज्जा३, एत्थं का विधी, दिवे दिवे य वसही वसभेहिं परिसंचितवा, पच्चूसे पदोसे मज्झण्हे अद्धरते या|॥१०९॥ एषमादी दोसा होहिंतिति, जदि विगिचंवी दिट्ठा चोलो कीरति, एसा इत्थिया दारगरूवं छोतूर्ण पलायति, ताहे लोगो एति, पेच्छति तं, ताहे जं जाणति तं कीरति, न दिट्ठा होज्जा ताहे विगिचिज्जति उदगपहे, जणो वा जत्थ पादे निग्गतो अच्छति।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
E-N
(122)
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययने
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा|४| तत्थ ठवेत्ता अच्छितिज्ज वा अण्णं पडिपछता अण्णदोमहो, जथात नसणकापणं गज्जारेण वा मारिज्जति. जाहे फेणतिया आपत्त:
दिड ताहे ओसरति ॥ अचि कह , पडिणीओ वणीमगसरीरं छभेज्जा जथा से उडाहो होतात. वणीमको वा कोणे कहंचिला मनुष्यपार ॥११॥
मतो, अण्णेण वा केणति मारेऊण एत्थं निद्दोसांनि छडितो, अविरतिगाए मणूसेण वा उक्कलवितं वा होज्जा, तत्थ तहेव बोलो 8 कीरति, लोगो कहिज्जति एगो नहोत्ति, उक्कल विते णिव्यिण्णएणं चारताणं रडताणं मारिओ अप्पओ, न होज्ज एवं कातव्यं,
दिद्वेणं कालकखेयो कातब्बो, पडिच्छितणं जदि कोह नस्थि ताहे जत्थ कस्सति निवेसणं न होति तत्थ विगिचिज्जति. अपेक्खेजा। लावा, पदोस बट्टति संचरति लोगो ताहे निस्संचारि विवेगो, अतिप्पभाते संविक्खावेत्ता अप्पसागारिए रनि विगिचिज्जति, जदि।। निस्थि कोइ पडियरति, अह कोइ पडियरइ तस्सव मुखे छम्मति, एवं विप्पजहणाए, विगिचणं नाम जं तस्स तत्थ मंडोवगरण | तस्स विवेगो,जदि रुधिरं ताहे न छति एक्कधा वा विधावि मग्गो नज्जति,ताहे बोलकरणं,एवमादि विभासा । गोमाणुस्सा दुविहा| सचित्ता अचित्ता य, सचित्ता चाउलोदगादिसु, तस्स गहणं जथा ओहनिन्जुत्तीए, तत्थ निसनओ आसि मच्छओ मंडुक्कलिया | दावा, तं घेत्तूर्ण थोवएणं पाणिएण सह णिज्जति, पाणियं ढोइज्जति, मंडकको हुति, मच्छी बला छुन्मति, आदिग्गहणेण संसह
पाणए गोरसकुंडए तेल्लभायणे वा, एवं सचित्ते, अच्चित्ते मच्छओ मयओ आणीतो केणइ पक्खिणा पडिणीएण वा, थलचरो
उंदुरो घरकोइलगो एवमादि, खयहरो इंसवायसमयूरा, जस्थ सदोसं तत्थ विवेगो, अप्पसारिते पोग्गलबोलकरणं वा, निदोसे | लाजाह रुरुचति ताहे विगिचिज्जति ।। नोतहि दुविहा- आहारे णोआहारे य, आहार जाता य अजाता य, दावि जथा आधनि-ला॥११०॥
ज्जुत्तीए । णोआहारो दुविहो- उपकरणे णोउपकरणे य २, जाता य २, जा सा जाता सा बस्थे य पाए य, अजातावि वत्थे य |
दीप
अनुक्रम [११-३६]
CROTECH
(123)
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ १११ ॥
पादे य जाया नाम जं वत्थं नाम पायं वा मूलगुणअसुद्धं वा उत्तरगुणअसुद्धं वा आसि, योगेण वा विसेण या जं विसेण आभियोगितं वा वत्थपातं खंडाखंड कातूणं विर्गिचितन्त्र, सावणा व तहेब, जाणि अतिरिता णि वत्थपादाणि कालगते वा पडि भग्गे वा साहारणे वा गहिते जाएज्जा । एत्थ का विचिणविधी १, चोयओ भणति अभिओगविसाणं तहेव खंडाणि कातूण विचिणा, मूलगुणअसुद्धस्स बत्थस्स एक वंकं कीरति उत्तरगुवअसुरस दोणि वैकाणि, सुद्धं उज्जुर्ग ठविज्जति, पाते मूलगुणअमुद्दे एगा चोरिंगा दिज्जति, उत्तरगुणअमुद्धे दोष्णि दोणि चीरखंडा पाते छुम्भंति, सुद्धं तुच्छं कीरति, रितगति भणितं होति, आयरिया भणति एवं तुज्यं सुद्धपि असुद्ध होहिति, कह ?, उज्जुग ठवित एगेणं बँकेणं मूलगुणअसुद्धं जातं, दोहिं उत्तरगुणअसुद्धं जातं, दुर्बकं वा एगबंकं या होज्जा, एकवंकं या दुबके वा होज्जा, एवं मूलगुणेसु उत्तरगुणा होज्जा, उत्तरगुणेसु मूलगुणा होज्जा, पानि एवं चीरं निग्गतं मूलगुण अमुद्धं जातं, दोहिनि निग्गतेहि सुद्धं जातं, जे य तेहिं वत्थपातेहिं परिभुंज॑तेर्हि दोसा वसि भवति होति तम्हा जं भणसि तं अजुचं, एवं परिवेतव्यं वत्थे मूलअमुद्धे एगो गंठी कीरति उत्तरे दोषिण, सुद्धे तिष्णि, एवं तावत्थे, पाते मूलगुणः सुद्धए अंतो एगा सण्डिया रहा, उत्तरगुणअसुद्धे दोष्णि, सुद्धे तिणि रेहा, एवं जातं होति, जाणएण कातव्याणि कहिं परिवेयव्याणि एगते अणावाए सह संबंधएहिं रत्ताणेहि य, असति पडिलेहणियाए दोरेण मुद्दे बज्झति, उद्धमुहाणि ठबिज्जति असति ठाणस्स तस्स पासहियं टवेंति, जओ या आगमो जातो तो पुप्फर्क करेंति । जदि एताए विधीए विगिचित कोइ गिण्हेज्जा आगारी तथावि बोसट्ठअधिकरणा सुद्धा साधुणो, जेहिं अण्णेहिं सामूहिं गहिताणि जदि कारणे गहिताणि सुद्धाणि जावज्जीवाए परिज्जति असुद्वाणि उप्पण्णे उप्पण्णे विगिंचिज्जति ।। नोडवकरणे चतुव्विधा उच्चारे पासवणे
(124)
नोत्रसपरि
॥ १११ ॥
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [0] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
S
प्रत सूत्रांक
+ गाथाः ||१२||
प्रतिक्रमणा का खेलि सिंघाणे, तत्थ उच्चारे कहं विवेगो, जथा ओघनिज्जुसीए, अहवा इमा इह निज्जुत्तीए गाथा
परिष्ठापध्ययने I उच्चारं कुब्वंतो०॥१५-१४९ । १३६८ ॥ छायाए वोसिरितव्यं जस्स गणी संसज्जति, केरािसयाए छायाए ?, जो
निका ॥११२॥
लोगस्स उपतोगरुक्खो तत्थ न बोसिरिज्जति,णिरुवभोगे वोसिरिज्जति,तस्सवि जा सयाओ पमाणाओ निग्गता तत्थ बोसिरिज्ज, 51 असति रुक्खाण कारण छाया कीरति, तेसु परिणतेसु बच्चति । काया दोणि-तसकायो थावरकायो य, जदि पडिलेहेतिवि पम-15 लज्जतिवि तो एगिदियापि रक्खिता तसावि, पडिलेहेति न पमज्जति तो थावरा रक्खिता तसा परिचत्ता, अह न पडिलेहेति पम
ज्जति थावरा परिचत्ता तसा साराक्खिता, इतरत्थ दोवि परिचत्ता, अपि पदार्थसंभावने , सुपडिलेहिएसु सुपमज्जिएसुवि ४, हा पढमं पदं पसत्थं, बितिए ततिए पक्खेण, चउत्थे दोहिबि अपसत्थं, पढम आयरितवं, सेसा परिहरितब्बा । दिसाभिग्गहे- उमे|
मूत्रपुरीपे तु, दिवा कुर्यादुदङ्मुखः । रात्रौ दक्षिणतश्चैव, तस्य त्वायुन हीयते । ॥ १ ॥ दो चेव एताओ अभिगिण्हंति | डगलमगहणे तहेव चतुभंगो । मरिय गामे एवमादि विभासा कातव्या जथासंभवे । इमा सीसथिरीकरणगाथा
गुरुमूलेवि० ॥१५-१६३ ।। एसा परिहावाणिया समिती सम्मत्ता । एत्थं पंचसुवि समितीसु पडिसिद्धकरणादिणा५ सूत्र | जो मे जाव मिच्छामिदुक्कडंति ॥ पडिकमामि छहिं जीवनिकाएहिं पुढविकारण, छ इति संखा, जीवाणं निकाया नाम
मा समूहो. अतो तेहिं छहि जीवनिकाहि जोऽतिचार इति, तंजथा- पुढविकाएणं योऽतिचारः, एवं आउतेउवाउवणतसाणं विभासा ॥११॥ ट्राएतेहिं छहिं जीवनिकाएहिं जाव मिच्छामिदुक्कडं । पडिकमामि छहिं लेसाहिं-किण्हलेसाए॥ सूत्रं । 'लिश संश्लेषणेसलि
प्यते आत्मा तैस्तैः परिणामान्तरः यथा श्लेषेण वर्णसंवन्धो भवति एवं लेश्याभिरात्मनि कर्माणि संश्लिष्यंते, योगपरिणामी लेस्था,
दीप
ABSCASHARE
अनुक्रम [११-३६]
...अत्र लेश्याया: भेदा: वर्णयते
(125)
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
जम्हा अयोगिकेवली अलेस्सो । तत्थ कण्हलेस्सा इति द्विपदमिदं वचनं, कृष्णो द्रव्यपर्यायो वर्णः लेश्या योगपरिणामः, कृष्णद्रव्यसाचिव्याद्यः योगपरिणामः स कृष्णलेश्या, एवं नीललेश्यादीयाओवि विभासितव्याओ, अण्णे भणति कृष्णवर्ण इव लेश्या कृष्णलेश्या एवं जाव सुक्कलेस्सा, नवरं पसत्थतरो परिणाम । एत्थ लेस्सापरिणामे उदाहरणं एगत्थ छहि मणूसेहिं जंबू दिडा फलभरिता, तत्थेगो पुरिसो भणति मूला छिज्जतु तो पंडिताए खाइस्सामी, सो कण्हाए, त्रितिओ भणति मा विणा सिज्जतु, साला छिज्जंतु सो नीलाए बट्टति, तनिओ मा साला छिज्जेतु, साहाओ विछज्जंतु एवं काउलेसा, चत्थो भणति गोच्छा छिज्जंतु, एसो तेऊ, पंचमो भणति आरोभितुं खामो घुणमो वा जेण पकाणि पद्धति ताणि खामो, एसो पीताए, छट्टो भणति सयं पडिताणि पभूताणि ताणि खामो, सो सुकाए। एवं लेस्साहिवि जीवस्स विशुद्धपरिणामो अविसुद्धपरिणामो य, सजेोगिकेवलीणं सुकलेस्साए वमाणाणं नवरं जोगपच्चदयं इरियावहियं दुसमयद्वितियं एवंति। अह्वा गामघातहि दितो, पढमओ भणति सजवयं गोमासि मारेमो, त्रितिओ माणुसाणि, ततिओ पुरिसे, चउत्थो आउधहत्थे, पंचमो जे जुज्यंति, छट्टो किं एतोही मारिएहि, सूत्र वर्ण हीरंतु, एवं छल्लेसाओ समोतारेतच्याओं । एताहिं छहिं लेस्साहिं जो मे जाब दुक्कडंति । पक्कियामि सत्तर्हि भयहाणेहिं ॥ सूत्रं ॥ भयद्वाणाणि जथा सामाइए || पक्किमामि अहिं मदाणेहिं । मदस्थानानीति द्विपदं वचनं मदो नाम मानोदयादात्मोत्कर्षपरिणामः, स्थानानि तस्यैव पर्याया भेदाः, मदस्य स्थानानि मदस्थानानि तानि चाष्टी- जानिमद कुलमद बलमद रूपमद तपोमद इस्सरियमद श्रुतमद लाभमद । कोइ नरिंदादि पञ्चजितओ जातिमदं करेज्जा, एवं कुलमदादीणि विभासिज्जा | नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं ॥। बसदि कह० ।। १६-१५ । २ । गाथा । नव बंभचेरसमाधिट्ठाणाई पण्णत्चाई
प्रतिक्रमणा ध्ययने ॥ ११३ ।
•••अत्र नव ब्रह्मचर्य - गुप्तयः वर्णयते
(126)
जीव
नीकायाः लेश्पाच
।।११२॥
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥११४॥
जाई भिक्खु सोच्चा निसंम संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुर्त्तिदिए गुत्तभयारी सदा अप्पमते विहरेज्जा, तंजथा- गो इत्थमुपंडगसंसत्ता सयणासणाई सेवेत्ता भवति से निग्गंथे, कहमिति १, इत्थिपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा कंखा वा वितिमिच्छा वा समुप्पज्जेज्जा, भयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणेज्जा दीहकालिय वा रोगायेक पाउणेज्जा, केवलिपद्मत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा, तम्हा नो इत्थीपसुपंडगसंसचाई सयणासणाई सेवेचा भवति से निग्गंथे १। णो इत्थी कहं कहिता भवति से निग्गंथे, कहमिति १ इत्थीणं कहं कहेमाणस्स बंभयारिस्स वंभचेरे संका वा जाव धम्माओ भसेज्जा, तम्हाणो इत्थणिं कई कड़ेत्ता भवति से निग्गंथे २॥ णो इत्थीणं सद्धिं सण्णिसेज्जागते विहरिता भवति से निग्गंथे, तं कहमिति ?, इत्थीहिं सद्धिं सग्णिसेज्जागतस्स जाव धम्माओ भंसज्जा, तम्हा णो इत्थीहिं सद्धिं सण्णिसेज्जागते विहरित्ता भवति से निग्गंधे ३) नो इत्थीणं इंदियाई मनोहराई मणोरमाई आलोएना निज्झाएता भवति से निग्गंथे, तं कहमिति १, इत्थीणं इंदियाई जाव से निग्गंध ४ । नो इत्थीण कुतरंसि वा इतसदं वा रुइनस वा गीतसदं वा हसितसदं वा थणितसई वा कंदितस वा विलविय सदं वा सुणित्ता भवति से निग्गंथे, तं कदमिति १, इत्थीणं कुतरंसि वा जाव विलवितसई सुणेमाणस्स जाब धमाओ सज्जा, तम्हा इत्थणिं कुतरंसि वा जाव से निम्गंथे ५॥ नो इत्थीर्ण पुन्दरतपुव्वकीलियाई अणुसरिता भवति से निग्गंथे, तं कमिति, इत्थीणं पुम्बरतपुत्रकीलिताई अणुसरमाणस्स जाव भैसेज्जा, तम्हा नो इत्थीणं पुग्रतपुत्रकीलित जाब से निम्गंथे ६ नो पणीत पाणभायण आहारेता भवति से निग्गंथे, तं कहमिति १, पणीत पाणं वा भोगणं वा आहारेमाणस्स जान धमाओ भंसेज्जा, तम्हा नो पणीत पाणभोगणं जाव निग्गंधे | नो अतिमाताएं पाणभोयण आहारेता भवति से निम्गंथे: तं
(127)
भवस्था
नानि मद
स्थानानि
॥११४॥
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
A
E
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा कहामिति , अतिमाताए पाणभायण आहारेमाणस्स जाव धम्माओ भंसज्जा तम्हा णो अतिमायाए जाव से निग्गंधे ८ णो नि- ब्रह्मचर्यध्ययन गंथे विभूसाणुवादी सिता, तं कहमिति !, निग्गंथे य णं विभूसावत्तिए विभूसितसरीरे इत्थीजणस्स अभिलसणिज्जे सिया, ततेा गुप्तयः दणं तस्स इत्थीजणेण अभिलसिज्जमाणस्स बंभचारिस्स बंभचेरे संका वा खा वा वितिगिछा वा समुप्पज्जेज्जा भय वा लभेज्जा
उम्माद वा पाउणेज्जा जाव केवलिपणचाओ धम्माओ था मैसेज्जा, तम्हा णो निग्गंथे विभूसाणुवादी सिया ९। इति नवमे बंभचेरसमाहठाणे भवति । भवति य एस्थ सिलोगा-जं विवित्तमणाइन्नं, रहितं धीजणेण य । यंभचेरस्स रक्वट्ठा, आलयं तं निसेवए ।॥१॥ मणपलहायजणाण, कामरागविवर्णि। भचेररतो भिक्ख, धीकहं परिवज्जए ॥ २ ।। समं च संथवं धीहिं, संकहं च अभिक्षणं । भचेररतो भिक्खू. निच्चसो परिवज्जए ॥३॥ अंगपच्चंगसंठाण, इंदियाई ण भूसणं । वंभचेररतो स्थीणं, चक्खूगेज्जं च बज्जए ॥४॥ कृ.तं रुइत गीतं हसितं धणितकंदितं । मधेररतो. सोयगेजनं विवज्जए ॥५॥हासं किई रति बप्पं, सहभुत्तासिताण या। बंभचेररतो थीण, णाणुचिंते कदाचिद ॥ ६ ॥ पणीतं भत्तपाणं तु, विप्पं मदविवडणं । बमचेररतो भिक्खू, निच्चसो परिवज्जए ॥ ७॥ धम्मलद्वं मितं कारले, जत्तत्थं पणिहाणवं । गातिमत्तं तु भुजेज्जा, बंभचेररतो है सदा ।। ८॥ विभूसं परिवग्जेज्जा, सरीरपरिमंडणं। बभचेररतो भिक्खू, सिंगारत्थं न धारए ॥ ९॥आलओ ॥११॥ | पीजणाइपणी, पीकहा य मणीरमा। संधवो चेव नारीहि, तासिं इंदियदरिसणा ॥१०॥ कहतं कहतं गीतं, सहभुत्तासिताणि य। पणीतं भत्तपाणं च, अतिमातं पाणभोधणं ॥ ११॥ गत्तभूसणमिथि , कामभोगा
%E0%
दीप
अनुक्रम [११-३६]
AA-%
%
(128)
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ ११६॥
य दुज्जया नरस्सत्तगवेसस्स, विसं तालउर्ड जथा ॥ १२ ॥ दुज्जए कामभोगे तु निच्चसो परिवज्जए । संकट्टाणाणि सव्वाणि, वज्जए पणिधाणवं ॥ १३ ॥ धम्मारामे चरे भिक्खू, मधी धम्मसारथी धम्मारामरते दंते, वंभचेरसमाहितो ॥ १४ ॥ देवदाणवगंधव्वा, जक्खरक्ख सकिन्नरा बंभयारी नर्मसंति, दुक्करं जे करंति तु ॥ १५ ॥ एस धम्मे धुए नीए सासए जिणदेसिए । सिद्धा सिज्यंति चाणेणं, सिज्झिस्संति तथाऽवरे ।। १६ ।। ति एताहि नवहिं मचेरगुती हिं पडिसिद्धकरणादिणा जाव मिच्छामिदुकडंति ।
सूत्र
दसविहे समणधम्मे । दसविधो साधुधम्मो, तंजथा- उत्तमा खमा मद्दवं अज्जवं मुत्ती सोयं सच्चो संजमो तवो [चाओ] अर्किचणत्तणं वंभचेरमिति, तत्थ खमा अक्कोसतालणादी अहियातस्स कम्मक्खओ भवति तम्हा कोहोदयनिरोहो कातव्बो, उदयप्यत्तस्स वा विफलीकरणं, एसा खमति वा तितिक्खत्ति वा कोहनिरोहिति वा १ मद्दवता न जातिकुलादाहिं अनुकरिसो परपरिभवो वा एत्थवि माणोदयनिरोहो उदयप्पत्तस्स विफलीकरणं २ अज्जवं रिजुभावो तस्स अ करणे णिज्जरा, मायाएवि उदयनिरोहो उदिष्णविफलीकरणं वा ३ मुती निल्लोभता प्राप्तहर्षा प्राप्तशे काकरणेन ४ सोयं अलुद्धा धम्मावगरणेसुवि, तस्स करणे अकरणे य कम्मस्स निज्जरा उबचयो य, अतो लोभोदयनिरोहो उदयप्यत्तस्स विफलीकरणं कातव्यं ५, सच्चमणुवधावर्ग परस्स तत्थं वयणं, तथा भर्णतस्स निज्जरा, अण्णथा कम्मबंधो ६ संजमो सतरसविधो, तंजथा- पुढविकायसंजमो आउ० तेउ० वाउ वनस्पति० बेतेंदिय• तेंदिय० चतुरिंदिय० पंचिदिय० पेहासंजमो उवेहासंजमो अवदुजमो ) वमज्जितसंजमो मणसंजमो वसेजमो काय० उपकरणसंजमाति, पुढविकायसंजमो पुढत्रिकायं त्रियोगेण न हिंसति न हिंसावेति हिंसेत
(129)
श्रमणधर्मः
. ११६॥
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथाः ||१२||
प्रतिक्रमणा नाणुजाणाति, एवं उक्कायसंजमो जाव पंचिंदियसंजमो, पेहासजमो जत्था ठाणणिसीदणतुपट्टणं कातुकामो तं पडिलहिय पम- उपासकध्ययने
PIज्जिय करेमाणस्स संजमो भवति, अण्णहा असंजमो, उपहासजमो संजमे तवे य संभाइयं पमाद चोतेंतस्स राजमो,असंभोइयं चोएं-1 प्रतिमाः ॥११७ 1 तस्स असंजमो, पावयणीए कज्जे चियत्ता वा से पडिचोयणात्त अंगसंभोइयंपि चोयंति, गिहत्थे कम्मादाणेसु सीतमाणे उवहंतस्सी
संजमो,वाबारेंतस्स असंजमो,अहदटुसंजमो,अनिरेगोवगरणं विगिचिंतस्स संजमो,पाणजातीए य आहारादिसु असुद्धाबाहमादाणि य है। परिहवेतस्स,पमज्जणासजमो सागारिए पादे अप्पमज्जंतस्स संजमो,अप्पसागारिए पमजंतस्स संजमो,मणसंजमो अकुशलमणनिरोधो वा कुसलमणउदीरणं वा,वइसंजमो अकुसलवइनिरोधो कुसलवइउदीरणबा,कायसंजमो अवस्सकराणिज्जबज्जं सुसमाहितपाणिपादस्स कुम्म इव गुत्तिदियस्स चिट्ठमाणस्स संजमो, पोस्थएम घेप्पतेसु य असंजमो,महाधणमुल्लेसु वा इमेसु,वज्जणं तु संजमो,कालादि पडच्च चरण-IX करणहूँ अब्बोच्छित्तिनिमित्तं गहतरस संजमो भवति । तयो दुविधो-बझो अब्भतरो य,जथा दसर्वतालिचुपणीए चाउलोदणारा अलुद्धण णिज्जरर्दु साधुसु प्पाडवायणीय ८ । आकिंचणीयं नथि जस्स किंचणं सो अकिंचणो तस्स भायो आकिंचणियं,
कम्मनिज्जरकै सदेहादिसुवि णिस्सगेण भवितव्यं ९ । बंभमट्ठारसप्यगारं ओरालिया कामभोगा मणसा ण सेवेति न सेवावेति सेवंत गाण समणुजाणति एवं वायाए कायेणवि, नपाधं गतं, दिनेसुचि एते विगप्पा, एतं अट्ठारसचिह पंभचर आयरंतस्स कम्मनि-1
ज्जरा, अणापरंतस्स बंधो, तम्हा सेवितव्य १०, एस दसविधो समणधम्मो मुलुत्तरगुणेसु समायरति, संजमो पाणातिपातविरती ॥११॥ सच्चं मुसावायवेरमणं आकिंचणय- निम्ममत्तं अदनपरिग्गहबज्जणं, भचेरं महुणविरती, खंती महवं अज्जवं सोतं तबो [चागो] उत्तरगुणेसु जथासंभवं, एत्थ दसबिहे समणधमे पडिसिद्धकरणादिणा जाब दुकडेति ॥ एकारसहिं उवासगपडिमाहिं । तत्थ
सूत्र
KAR-RA%
दीप
अनुक्रम [११-३६]
...अत्र श्रावकस्य एकादश-प्रतिमा: वर्णयते
(130)
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
LAM
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा ध्ययने । " गाथा-वंसणवतसामाइयः॥४॥ तत्थ किरियावादी यावि भवति, तंजथा आहियवादी आहितपणे आहितदिट्ठी संमा- उपासक
वादी अणियतवादी, संति परलोगवादी जाव अस्थि संसाराओ सिद्धी, से एवंवादी एवंपण्णे एवंदिट्ठी छंदरागमतिनिबिट्टेट्री ॥११॥
यावि भवति, से भवति महिन्छे जाव मुक्कपक्खिए, आगमस्सीण सुलभयोहिए यावि भवति, सब्बधम्मरथी यावि भवति, तस्स णं वहूई सीलव्ययगुणवेरमणपच्चक्वाणपोसथोववासाईनो सम्म पट्टवियाई भवंति, पहमा उवासगपडिमा १॥ अहावरा दोच्चा उवासगपडिमा सव्वधम्मरुई यावि भवति, तस्स णे बहूई सीलब्बयगुणवेरमणपोसहोरवासाई नो सम्म पढवियाई भवंति, से गं सामाझ्यदेसावगासियं नो सम अणुपालेता भवति, दोच्चा उवासगपडिमा २॥ अहावरा तच्चा उवासगपडिमा सयधम्मरुदे। यानि भवति, तस्स ण चहूई सीलब्धतगुणवेरमणपोसहोववासाई नो संम पडविताई भवति, से ण सामाइयं देसावगासयं संमं| अणुपालेत्ता भवति से ण चाउद्दसिअट्टमिपूणिमासिणीसु पडिपुण्ण पोसह नो समं अणुपालेचा भवति,तच्चा उवासगपाहिमा ३|| अहावरा चउत्था उवासगपडिमा सव्वधम्म,तस्स ण पहुई सीलब्बतजाव सम पट्ठविताई भवंति, से णं सामाइयं देसावगासिय संममा अणुपालेत्ता भवति,से ण चाउहसि जाव संमं अणपालेता भवति.सेण एगरातिय उवासगपडिम णो संम अणुपालेता भवति ट्र चउत्था उवासगपडिमा ४॥ अहावरा पंचमा उवासगपडिमा सम्बधम्म, तस्स णं यहूई सील जाव संपट्टिताई भवंति, से ण ॥११८
सामाइयं तहेव, से णं चाउसि नहेव, सेणं एगराइयं उबासगपडिम अणुपालेता भवति, से णं असिणाणए वियडभोई मउलियडे। दिया चमचारी रति परिमाणकडे, सेणं एयारूपेण विहारेण चिहरमाणे जहण्णणं एगाहं वा दुयाई वा तियाह वा उकासण पचा
मास विहरेज्जा, पंचमा उवासगपडिमा ५॥ अहावरा छट्ठा उवासगपडिमा सयधम्म जाव से ण एगराइयं उवा० संमं अणु-1
दीप अनुक्रम [११-३६]
CR
(131)
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणापालेत्ता भवति, से असिणाणए वियडभोई मउलियडे रातोवरायं बंभचारी, सचित्ताहारे से अपरिणाते भवति, सेण एतारूवेणं उपासकध्ययने विहारेण विहरमाणे जहण्णण एगाईया दुयाह वा तियाई वा उकासेणं छम्मास विहरेज्जा ६॥ अहावरा सत्तमा उवासगपडिमा,
मा.काप्रतिमाः सवधर्म० जाच रातोवराय चमचारी, सचित्ताहारे से परिणाए भवति, आरंभा से अपरिष्णाय। भवंति, सेणं एतारूपेणं बिहा-13 ॥११९|| IMरेणं विहरमाणे जहण्णणं एगाई वा दुयाहं वा तियाई वा उकासेणं सत्त मासे विहरेज्जा, सत्तमा उवासगपडिमा ७॥ अहा
वरा अट्ठमा उवासगपडिमा सब्बधम्म जाव रातोवरायं बंभचारी सचित्ताहारे से परिष्णाए भवति आरंभा से परिष्णाता, पेसा लासे अपरिग्णाता भवति, से गं एतारूवेणं विहारणं विहरमाणे जहण्णण एगाह वा दुपाई वा तियाई वा उकासणं अह मास विहरजा, अट्ठमा उवासगपाहमा ८॥ अथावरा नवमा उवासगपडिमा, सब्वधम्म जाव आरंभा से पारण्णाता पस्सा से परिणाया. उद्दिट्ठभत्ते से अपरिणाए भवति, से गं एतारूवणं विहारणं विहरमाणे जहणणं एगाहं वा दुयाह वा तियाह वा उपसिणं नव मासे विहरेज्जा, नवमा उपासगपडिमा ९ ॥ अहावरा दसमा उवासगपडिमा सधधम्म० जाव पसा स पारष्णाता उद्दिडभने से परिणाए भवति, सेणं खुरमंडाए वा छिहलिधारए वा,तस्स णं आलतसमाभट्ठस्स कप्पति दुवे भासाओ भासित्तए,
तंजथा- जाणं वा जाणं अजाणं वा जो जाणं,से णं एतारूवणं विहारणं जहणणं एगा० दुया० तियाउकोसणं दस मासे विहरेज्जा, लदसमा उवासगपडिमा १०॥ अहावरा एकारसमा उवासगपडिमा सवधम्म• जाव उहिट्ठभचे से परिणाते भवति, सेण ॥११९॥
सुरमुंडए वा लुकासरए वा गाहियायारभंडणेवरथे जे इमे समणाणं निम्गंथाणं धम्म तं सम काए संफासेमाणे पालमाण पुरता। जुगमात पेहमाणे दळूण तसे पाणे ओघद्ध पादं रीएज्जा साहबटु पायं रीएज्जा वितिरिच्छ वा पादं कटु रीएज्जा, सति पर
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(132)
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१२०॥
कमे संजतामेव परिकमेज्जा, णो उज्जुतं गच्छेज्जा, केवलं से णातए पेज्जयंधणे अव्त्रोच्छिन्ने भवति, एवं से कप्पति णार्तविधिं एनए, तत्थ से पुब्वागमणेणं पुयाउने चाउलादणे पच्छाउने मिलिंग, कप्पति से चाइलोदणे पडिग्गाहेत्तर, णो से कष्पति मिलिंग पडिग्गाहेत, तत्थ से पुत्र्वागमणणं पुवाउने भिलिंग पच्छाउने चाउलोदणे कप्पड़ से भिलिंगवे परिग्गाहित्तए, नो से कप्पड़ चाउलोदणे पडि, तत्थ से पुण्यागमणेणं दोवि पुव्वा उ० कप्पति से दोषि पडिग्गाहेत, तत्थ से पुव्वागमणेर्ण दोषि पच्छाउत्ताई णो से कप्पति दोवि पडिग्गाहेत्तर, जे से पुब्वागमणेणं णो पुव्वाउते णो से कष्पति पडिग्गादतए, तस्स णं गाहावतिकूलं पिंडवायपडियाए अणुष्पविट्टस कप्पति एवं वदितए- समणो वासस्स पडिमं पडिवण्णस्स भिक्वं दलयह, तं चेतारूवेणं विहारेण विहरमाणं केई पासेता वदेज्जा के आउसो ! तुमं वत्तब्बे सिया १, समणोबासए पडिमापडियण्णए अहमसीति बत्तव्वं, से णं एतारुणं विहारेणं विहरमाणे जहणेणं एगाहं वा दुयाई वा तियाई वा उकासेणं एकारस मासे विहरेज्जा एक्कारसमा उवासगपडिमा ॥ ११ ॥ इति ।
एत्थ कवि अण्णोवि पाढो दीसनि, तंजथा इमाओ खलु एक्कारसाओ उवासगपडिमाओ पण्णत्ताओ, तंजथा- दंसणसावमो १ कतव्यकंमेर कतसामाइए ३ पोसहोववासणिरए ४ राहभत्तविरते ५ सचिताहारपरिणात ६ दिया बंभचारी रातो परिमाणकडे ७ दिवावि रातोषि बंभयारी असिणाणए यावि भवति बोस केसकक्खमंसुरोमणही ८ आरंभपरिष्णातो ९ पेस्सआरंभपरिण्णाते १० उभित्तविवज्जए समणन्भूते यावि भवति ११ ।। तत्थ खलु इमा पढमा उवासगपडिमा दंसणसावर यावि भवति, तस्स णं एवं भवति- अस्थि लोए अस्थि अलोए अस्थि जीवा एवं अजीवा बंध मोक्खे पुण्णे पाये आसवे संवरे वेदना
(133)
उपासक प्रतिमाः
॥ १२० ॥
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा
निज्जरा अस्थि अरहता एवं चक्कचट्ठी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाहरा गरगा णेरड्या तिरिक्खजोणी तिरिक्खजोणिया उपासकध्ययने
माता पिता रिसयो अरिसयो देवा जाव अस्थि देवलोगा अस्थि सिद्धी अस्थि असिद्धी अस्थि परिनिन्बाणे अस्थि परिनिव्वुत्ता प्रतिमाः
| अस्थि पाणातियाते जाव अस्थि मिच्छादसणसन्चे अस्थि पाणातिपातरमणे जाव अस्थि राइभायणवरमणे अस्थि काहविवेगे जाव ॥१२१॥ अस्थि लोभविवेगे अस्थि पेज्जविवेगे जाव अस्थि मिच्छादसणमन्नविवेगेनि, जिणपत्रत्ता भावा अवितहं सद्दहति तस्स णं एग वा
मा अणेगाई वा अणुब्बताई णो कताई भवतीति पढमा उवासगपडिमा १॥ अथावरा दोच्चा उ० देसणसावए यावि भवति,
तस्स ण एवं मवति-अस्थि लोगे जाच जिणपण्णता भावा अवितई सद्दहति, तस्स गं एग वा अणेगाईच अणुबताई भवंतीति ट्र! दोच्चा उ०२ अहावरा तच्चा उदेसणसावए यावि भवति, तस्सणं जाव सद्दहति, तम्स णं एग अगाई वा अणुव्यताई कताई भवति । सामाइयं संम अणुपालेति जाव तिमि मासा एतगुणा धारतित्ति तच्चा उ०३ ।। अहावरा चउरथा उन्दसणसा. जथा तच्चा जाव |' सामाइयं सम अणुपालंति, चाउसिअट्टमुदिट्ठपुणिमासिणीसु पडिपुण्णं पोसह सम्मं अणुपालेनि जाव चत्वारि मासा एते गुणा धारेतिति चउत्था उ०४॥ अधावरा पंचमा उ० देसणसावए जथा चउत्था जाव पोसह संमें अणु० रातिभत्ते से परिणाते भवति सचिचाहारे से णो परिण्याते भवति जाब पंच मासा एते गुणा धारेतित्ति पंचमा उ०५॥ अहावरा छट्ठा उ० सण जथा पंचमाए तहेव जाव रातिभत्ते से परिणाते भवति सचित्ताहारवि से परिणाए भवति जाव छम्मासा एते गुणा धारोतत्ति ॥१२॥ छट्ठा उ०६॥ अहावरा सचमा उदंसण जथा छट्ठाए तहेव रातीमत्तपरिणाते सचिचाहोर परिणाए दिया भचारी रातो परि-II माणकडे जाव सन मासा एते गुणा धारेतित्ति सत्तमा उ०१॥ अथावरा अट्ठमा उ० दंसणसावए यावि भवति जाव पडिपुणं ४
*
दीप
%
अनुक्रम [११-३६]
%
-
*-
(134)
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
CRA
प्रतिक्रमणा पोसह सम अणुपालेति रातिमानपरिष्णाते सचित्ताहारपरिण्यात दिवावि राओवि बंभयारी असिणाणए यावि भवति बोसट्टकेसक- उपासकध्ययने
&ा प्रतिमा दाखमंसुसेमणहे जाव अट्ठ मासा एते गुणा धारेतित्ति अट्ठमा उ०८॥ अथावरा नवमा उ.दसण जथा अङ्कमाए तहेव जावडू ॥१२२॥
दियांवि राओवि बंभयारी असिणाणए यावि भवति बोसट्टकेसकरखमंसुरोमणहे आरंभे परिण्णाते भवति,पेस्सारंभे से णो परिणाते भवति जाव नव मासा एते गुणा धारतिनि नवमा उ०९॥ अहवरा०दसण तहेव जाच आरंभ परिणाते भवति पेसारमेवि से परिण्याते भवति जाब दस मासा एते गुणा धारेतित्ति दसमा उ १०॥ अहावरा एकारसमा उवासगपडिमा दंसणसापए जाव दसमाए तहेव रोमनहे सारंभपरिणाते उहिट्ठभत्तविवज्जगे समणभृते यावि भवति, समणाउसो। तस्स णं एवं भवति सब्बतो पाणातिपातातो वेरमणं जाव सव्वातो राइभोयणातो वरमणं खरमुंडए वा लुत्सकसए वा अचेलए वा एगसाडिए या संतरुत्तरे वा स्यहरणपडिग्गहकक्षमायाए जे इमे समणाणं णिग्गंधाण आयारगोयरिए भम्मे पण्णचे सं संमं फासेमाण अण्णतरं दिसि वारीएखा अवससं तं चैव जाव समणोबासए पडिमावण्णए अहमंसीति वत्तब्वेति जाव एकारसमाए गुणा धारेतित्ति एक्कारसमा उवासगपतिमा ॥ एताओ एकारस उवासमपडिमाओ जाव पण्णचाओति । एवं जथा दसास। एस्थ पदिसिद्धकरणादिणा जाय ।
दुकडंति। सूत्र पारसहिं भिक्खुपडिमार्मि, तत्थ मासादी गाथा, ताओ पण इमाओ, तंजधा-मासिया भिक्खुपडिमा दोमासिया।
॥१२२॥ तिमासिया चउमासिया पंचमासिया छम्मासिया भिक्खु० सत्तमासिया भिक्खु पढमसत्तराईदिया. दोच्चा ससराईदिया तच्चा I सचराइदिया अहोराइया एगराइया भिक्सुपडिमा। भासियण्णं भिक्खुपडिम पडिवणस्स अणगारस्स मास निमचंवोसट्टकाए।
MSCRBTC-RS
दीप
अनुक्रम [११-३६]
...अत्र साधूनां एकादश-प्रतिमा: वर्णयते
(135)
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
A
प्रत
मिक्षुप्रतिमा
सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा पियत्तदेहे जे फेह उपसरगा सपप्पज्जेज्जा, तंजथा- दिग्या वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा अणुलोमा वा पडिलोमा वा ध्ययने
तत्थ पडिलोमताए अंणतरेणं दंडेण अड्डी मही लेटु कपाले जातवेने जाव कसेण वा कार्य आउडेज्जा, अणुलोमा बंदिज्ज का ॥१२३॥ 3॥
सम्म कल्लाणं मंगलं देवतं चेइतंति पज्जुवासेज्जा, ते सव्वे संमं सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खज्जा अहियासज्जा । मासिय णं भिक्खु-14
पडिम पडिवण्णस्स अणगाररस मासं कप्पति एगा दती भोयणस्स पडिग्गाहेत्तए एगा पाणस्स, अण्णात उंछ सुद्धोबहडं निज्जूसाहित्ता बहवे दुपदचतुष्पदसमणमाहणअतिहिकिविणवणीमए, कप्पति से एगस्स जमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, णो दोण्इं णो तिह'
णो चउण्डं, णो गुब्बिणीए, णो बालवच्छाए णो दारंग पेज्जमाणीए णो अन्तो एलुगस्स दोवि पाए साइटु दलमाणीए णो चाहि एलुयस्स दोवि पार साहदु दलमाणीए, एगं पादं अंतो किच्चा एगं पादं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभएत्ता एवं से दलपति एवं से कप्पति पडिग्गाहिचए, एवं से णो दलयति एवं जो कप्पति पडिग्गाहितए, पाठतरं णो से कप्पति अंतो एलुयस्स दोदि पाए साइट्टु पडिम्गाहितए, एवं वाहिपि, एगे पादं अंतो किच्चा एग पादं वाहि किच्चा एलयं विक्खंभइत्ता चढेज्जा, पताए एसणाए एसमाणे लभेज्जा आहारेज्जा, एताए णो णो आहारज्जा, तस्स णं तओ गोयरकाला पण्णता, तंजथा- आदी मच्छे
चरिमे, आदि चरेज्जा णो मज्झे चरिज्जा णो चरम चरिज्जा, मज्झे चरेज्जा णो आदि चरेज्जा णो चरिमे चरेज्जा, चरिम टै चरेज्जा णो आदि चरिज्जा णो मज्झे चरा । तस्स णं कप्पति अट्ठण्डं गोयरभूमीणं अंगतरं अभिगम भत्तपाणं गवेसित्तए, तं०-18 का उज्जुग वा गंतुं पच्चागतं वा गोमुचिगं वा पतंगविहितं वा वेलं वा अद्धलं वा अभंतरसंयुक्कावर्ल्ड वा बाहिरसंधुक्काबई वा,
जस्थ णं केइ जाणति मामंसि वा जाव मंडपंसि वा कप्पति तत्थेगराय वत्थए, जत्थ ण केइ ण जाणति कप्पति से तत्धेमरायचा
दीप
ASHOCK
अनुक्रम [११-३६]
(136)
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१२४॥
दुरायं वा वत्थए, णो से कप्पति एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वत्थए, जड़ तत्थ एगरायातो वा परं वसति से संतरा छेदे वा परिहारे वा, तस्स णं कप्पंति चत्तारि मासाओ भासित्तए, तंजथा- जातणी पुच्छणी पण्णवणी सुद्धस्स वागरणी, तस्स णं कप्पंति तओ उवस्सगा अणुष्णवेत्तए, तंजथा- अधे आगमण गिर्हसि वा अहे वियडगिहंसि वा रुक्खमूलगिहंसि वा तस्स णं कप्पति तओ उवस्सगा ओवाणियत्तए, तं चैव तस्स णं कप्पति तओ संधारगा पाडलेहित्तए, वं० पुढविसिल वा कसिलं वा अथासंथडमेव, तस्स णं कप्पति से पुत्रि पडिलेहित्तए, तओ संधारगा अणुण्णवेत्तए तं चैत्र, तस्स णं कप्पति तओ संथारगा उवायाणचए, तं चैव मासिय० इत्थी उवस्वयं उवागच्छिज्जा सइत्थीए वा पुरिसे णो से कप्पति तं पदच्च निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा, से उच्चारपासवणेणं ओबाहिज्जमाणे कप्पति उग्गेण्हितए वा पगिण्हत्तए वा, कप्पति से पुब्वपडिलेहिते थंडिले उच्चारपासवर्ण परिवेत्तए, तमेव उवस्सयं आगम आहाविहमेव ठाणे ठाइत्तए, मासिय० केइ उबस्सयं अगणिकाएणं झामेज्जा नो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पवित्तिए वा तत्थ णं केइ बाहाए गहाय आगसेज्जा णो से कप्पति अवलंबित्तए वा पञ्चवलंबित्तए वा कप्पर से आहारियं रिइत्तए, मासिय० पायंसि खाणु वा कंटए वा हीरे वा सकरा वा अणुपविसेज्जा णो से कप्पति निहरितए वा विसोहित्तए वा, कप्पति से आधारिये रोहत्तए, मासिय० अच्छिसि पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियावज्जेज्ज नो से कप्पति नीहरितए वा विसोहित्तए वा कप्पति से आहारीय रित्तिए, मासिय० जत्थ सूरिए अत्थमज्जा तं ० - जलांस वा थलसि वा दुम्गंसि वा निनंसि वा पव्त्रयंसि वा विससि वा तत्थेव सा रयणी उवादिणावेता सिया, नो से कप्पति पदमा गमित्तए, कप्पति से कल्लं पादुष्पभाते जाव जलते पाइणामिमुहस्स वा पदीणाभिहस्स वा दाहिणामिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा
(137)
भिक्षुप्रतिमाः
॥ १२४ ॥
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
मा
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा आहारियं रिदत्तए, मासियं णं भिष्णो से कप्पति अर्णतराहिताए पुढवीए निदाइत्तए वा पयलाइत्तए चा, केवली वया आयाणमेतं, 3 मिन
से तत्थ निदायमाणो वा पयलायमाणो वा हत्थेहिं भूमि परामुसिज्जा आहा०विवित्तमदाणं जदि पबत्तए, मासियण भिक्खू नो ॥१२५||
कप्पति ससरक्षण काएणं गाहावइकुल भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसेत्तए बा.अह पुणो एवं जाणेज्जा से सरक्खे | सेअत्ताए चा मलचाए वा पंकत्ताए वा विद्वत्थे एवं से कप्पति गाहावइकुलं भताए वा. पाणाए वा निक्खमिचए बा०, मासिय० नो | कप्पति सीतोदविगडेण वा० हत्थाणि वा पादाणि वा दंतााण वा अच्छीणि वा मुई वा उच्छोलेत्तए वा पधोएत्तए वा, गण्णत्य लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा, मासिब नो कप्पति आसस्स वा हस्थिस्स वा गोणस्स वा महिसस्स बा सीहस्स वा बग्घस्स बा बगस्स बा दीवियस्स वा अच्छस्स वा तरच्छस्स वा सुणगस्स वा कोलसुणगस्स वा दुगुस्स आवयमाणस्स पदमवि मच्छित्तए,
अदुदुस्स आवायमाणस्स कप्पति जुगमेत्तं पच्चोसकित्तए, मासियं० णो कप्पति छातातो सीतंति उण्हं एत्तए, उपहातो वा उण्हति लाछायं एत्तए, जे जत्थ जदा सिता ते तत्थ तदाधियासए, एवं खलु एसा मासिया भिक्खुपडिमा अहामुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अथा
तच्च समं कारणं फासिया पालिया सोभिया तीरिया आराहिता आणाए अणुपालिया यावि भवति १॥ दोमासियं णं भिक्खुपडिमं निच्च बोसट्टकाए तं चेव जाव दो दत्तीओ २॥ तेमासियं० तिष्णि दत्तिओ ३ ।। चातुम्मासियं० चत्तारि दत्नीओ ४॥ पंचमासिय० पंच दत्तीओ ५॥ छम्मासियं० छ दत्तीओ ६॥ सत्तमासियं० सच दचीओ ७ ॥ जति मासा तति दचीओ। ॥१२५॥ पढमसत्तरातिदियण मिक्सुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स निच्चं बोसढे काए जाव अहियासेज्ज, कप्पात से चउत्थंचउत्थर्ण अणिक्खितेणं तवोर्कमेणं पारणए आयंपिलपरिग्महिते चरिमे दिवसे चउत्थेणं भत्रणं अपाणएणं पहिया गामस्स पा जाप राय
MOCRACES
दीप
अनुक्रम [११-३६]
-
(138)
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा वहाणीए या अण्णतराई चेइयाई पुरतो काउं अण्णतरे अचिंत्ते पोग्गले निमायमाणस्स उत्ताणगरस वा पासियल्लिस्स वा णिसज्जि- भिक्षुध्ययने
दातरस वा ठाणं ठातित्तए, तत्थ दिव्या मणूसा तेरिक्खा वा उबसग्गा पयालेज्ज वा पाडेज्ज वाणो से कप्पति पयलित्सए कालापातमा ॥१२६॥
पिडितए वा,तत्थ उच्चारपासवर्ण उम्बाहिज्ज णो से कप्पति उच्चारं पासवणं च गिणिहत्तए वा पगिणिहत्तए वा,कप्पति से पुभप-IN | डिलहितसि डिल्लास उच्चारपासवर्ण परिवेत्तए, आहाविहमेव ठाणं ठाइत्तए, एवं खलु एसा पढमा सत्तराईदिया। एवं चीया वतियावि, णवरं गोदोहियाए वा वीरासणियस्स अवखुज्जगस्स वा ठाणं ठाइत्तए, सेसं ते चेष जाव अणुपालिया यावि भवति ।। एवं अहोरातिदिया, पवरं छट्ठणं भत्तेणं अपाणएर्ण बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए या इंसि दोवि पादे साहटु वग्वारितपाणिस्स ठाणं ठाहत्तए, सेस तं चेव जाव अणुपालिता यावि भवति, एगरातिय भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स निच्च वोसकट्ठाएणं जाय आहियासेति,कप्पति से अट्ठमण भत्तेणं अपाणएणं वाहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वाईसी पम्भारगण एवं खलु मूलगताए दिट्टीए अणिमिसनयणे अहापणिहितेहिं गतेहिं सबिदिएहिं गुत्तेहिं दोषि पाए साहदटु बग्धारितपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए, नपरं उयस्स वा लगडसाइयस्स वा डंडातियस्स वा ठाणं ठाइचए, तत्थ से दिखमाणुसतिरिक्खजोणिया जाच आधाविधिमेव ठाणं ठाइत्तए, एगराइयणं भिक्खुपडिमं संमं अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अदिताए असुभाय अखमाए आणिस्सेसाए अणाणुगाामयत्ताए भवति, संजहा उम्मायं वा लभेज्जा दीहकालियं वा रोगायक पाउणेज्जा केवलिपण्णताओ धम्माओ वा भैसिज्जा, एगराइयं गं भिक्खुपडिमं सम्म अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणाओ हितार जाव आणुगामित्चाए भवंति, तंजथा-ओधिण्णाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवणाणे पा से समुप्पज्जेज्जा, केवलवाणे बस से
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(139)
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
प्रतिक्रमणा ध्ययने ॥१२०
सूत्र
+ गाथा: ||१२||
असमुप्पण्णपुल्चे समुपज्जिज्जा । एवं खलु एसा एगराइंदिया भिक्षुपडिमा अहामु अथाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम क्रियाकारणं फासिया पालिता सोहिता तीरिता किविता आराहिता आणाए अणपालिया याचि भवति । एताओ खल ताओ परेका स्थानान भगवंवेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पण्यात्ताओत्ति । एवं जहा दसासु । एतासु पडिसिद्धकरणादिणा जाव जो मे दुक्कडंति । .. तेरसहिं किरियाठाणेहिं । तत्थ गाथा । इमाई तेरसकिरियाठाणाई भवतीतिमक्खातं, तंजहा-अट्ठाडंडे १ अणडाउंडे २ हिंसांडंडे अकम्हाडंडे ४ विडीविपरियासियाडंडे ५मोसवानिए ६अदिण्णादाणवचिए ७ अज्झथिए ८ माणवचिए ९ मित-13 दोसवचिए १० मायापत्तिए ११ लोभवतिए १२ ईरियावाहिए १३ । पढमे डंडसमायाणे अट्ठाउंडवनिएत्ति आहिज्जति, से तथा नामए केइ पुरिसे आयहेतुं वा भूतहेतुं वा जाव जक्खहेतुं वा तं डंडं तसथावरेहिं पाणेहिं सयमेव णिसिरति अण्णणं वा णिसिरोवति शिंसिरतं वा अनं समणुजाणति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जेति आहिज्जति । पढमे डंडसमायाणे अढाउंडवत्तिएत्तिा आहिते १। अहापरे दोचे डंडसमायाणे अणट्ठाईडवत्तिएति आहिजति, से जथानामए कई पुरिसे जे इमे तसा पाणा भवंतिते यो अच्चाए णो अजिणाए णो मंसाए णो सोणियाए णो हिययाए णो पित्ताए णो बसाए णो पिच्छाए णो पुच्छाए णो वालए जो सिंगाए णो विसाणाए गो दन्ताए णो दाढाए णो णहाए णो ण्हारुणियाए णो अडीए णो अद्विमिजाते नो हिंसासु | मेत्ति णो हिंसति मेत्तिनो हिसिसत्ति मेति ते णो पुत्तपोसणयाए णो पसुपोसणताए णो अगारपरिवहणताए णो समणमाण-IM॥१२७॥ | वत्तियहेतुं नो तस्स सरीरस्स किंचि परितातिता भवति से इंता छेत्ता भेचा लुंपतित्ता विलुपतित्ता उद्दवइत्ता उजिझउँ कलेवरस्सा-12 |भागीभवति, अणडाडंडे०से जथा नामए केइ पुरिसे जे इमे थावरा पाणा भवंति, तंजथा-इक्कडाइ वा कढिणाति वा अंनुयाति चा
दीप
अनुक्रम [११-३६]
... अत्र क्रियास्थानानि वर्णयते
(140)
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१२८॥
परगाति वा मोरगाति वा तणाति वा कुसाति वा कुज्जगाति वा दब्भगाति वा पलालमादि वा ते णो पुत्तपोसणताए जो पसुपोसणयाए णो अगारपोसणताए णो समणमाहणपोसणताए णो तस्स सरीरस्स पोसणताए, से हंता छेचा भेता पत्ता विलुंपतित्ता उद्दवतित्ता उज्झितुं कलेवरस्साभागी भवति, अण्डाउंडे० से जथा नामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा दर्शसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा गहणंसि वा णूमंसि वा वर्णांस वा वणविदुग्गांस वा पव्वयंसि वा पव्वतयदुम्गंसि वा तणाई ऊसविया २ अगिणिकायं णिसिरति अण्णेण वावि अगणिकायं णिसिरावेति अगणिकार्य णिसितंपि अण्णं समणुजाणति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जेति आहिज्जति, दोच्चे दंडसमादाणे अण्णत्थादंडवत्तिएत्ति आहिए २ । अहावरे तच्चे दंडसमादाणे हिंसाउंडवत्तिए आहिज्जति, से जथा नामए केइ पुरि से ममं वा मर्मि वा अण्ण वा अणि वा हिंसिसु वा हिंसति वा हिंसिस्संति या तं डंडे तसथावरेहिं पाणेहिं सयमेव णिसरति अण्णेण वा णिसिरावति णिसिरंतं तु अण्णं समणुजाणति, एवं खलु तस्स वप्पत्तियं सावज्जेति आहिज्जति, तच्चे दंडसमादाणे हिंसादंडवत्तिएत्ति आहिते ३ || अहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकमहादंडवत्तिएत्ति आहिज्जति, से जथा नामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा दर्गसि वा दवियंसि वा जाव वण० पव्वतदुग्गंसि वा मियवित्तिए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मियति काउं अण्णतरस्स मियस्स बहाए उसे आयामेऊणं णिसिरेज्जा मियं विधिस्सामित्तिकट्टु तितिरं वा वङ्गं वा लावगं वा कवोतं वा कविजलं वा विधित्ता भवति इति खलु से अण्णस्स अड्डाए अण्णं फुसति अकम्हाडंडे से जथानामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीणि वा कोदवाणि वा कंगुणि वा वरट्टगाणि वा रालगाणि वा निलिज्जमाणे 'अण्णतरस्स तणस्स वधाए सत्थं निसिरेज्जा से सामगं वा मतणगं वा मुमुद्गं वा वीहिफुसियं वा कलेसुयं वा तणं छिदिस्सामित्तिकट्टु
(141)
क्रियास्थानानि
।। १२८ ।।
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
क्रियास्थानानि
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
अतिक्रमणा सालिग वा वाहिं वा कोहगं वा कंगु वा घरट्टगं वा रालगं बा छिदित्ता भवति इति खलु से अण्णस्स अट्टाए अण्ण फुसति, एवं ध्ययन खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जेत्ति आहिज्जति । चउत्थे दंडसमादाण अकम्हादंडवत्तिएत्ति आहिते ४॥ अहावरे पंचमे दंडसमा-
दाणे विट्ठीविपरियासियादडवत्तिएत्ति आहिज्जति,से जथा नामए के पुरिसे मातीहि या०भगिणीहि वा भज्जाहिं वा पुत्तेहिं । ॥१२९॥
चा धुताहिं पा सुण्हाहि वा सद्धिं संवसमाणे मित्तं अमित्तमिति संकप्पमाणे मित्ने हतपुग्वे भवति दिट्ठीविपरियासियाडंडे, जथा।
नामए केई पुरिसे गामघातैसि वा णगरपातसि वा खेडघातसि वा कब्बडवासि वा मंडप्प (मडंच)घातंसि वा दोणमुहघातमि वा तापट्टणघातास वा आगर० आसम० चाह० संनिवेस० नियम रायहाणिघातांस वा अतेण तेणामति मण्णमाणे अतेणे हतपुच्चे भवति दिट्ठीविपरियासियाडंडे,एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जेति आहिज्जति,पंचमे दंडसमादाणे दिट्ठीचिप्परियासियाडंडवत्तिपत्ति आहितेति ५॥ अहावरे छठे किरियट्ठाणे मोसवात्तिएत्ति आहिज्जति,से जथांनामए के पुरिसे आतहेतुं वा णातहेतुं वा आगारहेतुं वा परिवारहेतु वा सयमेव मुसं वयति अण्णणवि मुसं वयावेइ मुसं बदंतपि अण्णं समजाणति, एवं खलु तस्स तप्पत्तिय सावज्जेति आहिज्जति,छटे किरियट्ठाणे मोसवत्तियएत्ति आहिते६।।अहावरे सत्तमे किरियाठाणे अदिण्णादाणवत्तिएत्ति आहिज्जति, से जथानामए केह पुरिसे आतहेतुं वा णातहेतुं वा अगारहेतुं वा परिवारहेतुं वा सयमेवादिण्णण आदियति अण्णेणावि | अदिण्णं आदियावेति अदिग्णं आदियतंपि अण्णं समणुजाणति, एवं खलु तस्स तप्पत्तिय सावज्जेति आहिज्जइ । सत्तमे किरियाठाणे अदिण्णादाणवत्तिएत्ति आहिते ७॥ अहावरे अट्ठमे किरियाठाणे अज्झस्थिएत्ति आहिज्जति, से जथानामए केइ पुरिसे | | नाविणं तस्स कोइ किंचि विसंवादेति सयमेव दुढे दुम्मणे ओहतमणसंकप्पे चिंतासोगसागरसंपविढे करतलपल्हस्थियमुद्दे अट्ठज्झाणे
दीप
SCHORSicker
अनुक्रम [११-३६]
॥१२९॥
(142)
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा का | विमते भूमिगतदिट्ठीए झियाति, तस्स णं अज्झत्थिया संसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिज्जंति,तंजथा-कोधे माणे माया लोमे,अज्झत्थमएक्रियास्थाध्ययने
कोधमाणमायालोमा, एवं खलु तस्स तप्पनिय सावज्जत्ति आहिज्जति । अट्टमे किरियहाणे अज्झत्थिएत्ति आहितेचा अहावरेट नानि
नवमे किरियट्ठाणे माणबत्तिएत्ति आहिज्जति,से जथानामए केइ पुरिसे जातीमएण वा कुलमदेण वा बलमदेण वा रूवमदेण वा ॥१३०॥
तवमदेण वा सुतमदेण वा लाभमदेण वा ईसरियमदेण वा पन्नामदेण वा अनतरेण वा मदट्ठाणेण मत्ते समाणे परं हीलति जिंदति खिंसति गरहति परिभवति, इत्तरिए अभयमन्त्रि अचाणं समुक्कसे, देहते कमपिपिति (वितिए) अवसे पयादी, तंजथा-गब्भाओ गमल जम्माओ जम्मं माराओ मारं नरगाओ नरगं चंडे थडे चवले माणि यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जेत्ति आहिज्जति णबमे किरियट्ठाणे माणवत्तिए आहिते ९।। अहावरे दसमे किरियट्ठाणे मित्तिदोसबत्तिएत्ति आहिज्जति, से जथानामए केर पुरिसे मातीहिं वा पितीहिं वा मातीहि वा भगिणीहिं वा भज्जाहिं वा पुत्तेहिं वा सुताहिं वा सुण्हाहि वा(समं संवसमाणे) तेसिं अंणतरंसि अहालहुसर्गसि अवराहसि सयमेव गुरुयं दंड निवत्तेति, तंजथा- सीतोदगवियर्डसि कार्य ओबोलेचा भवति, उसिणोदय
वियडेणं कायं ओसिंचित्ता भवति, अगणिकाएणं कायं ओडहित्ता भवति, जोचेण वा णेचेण या कसेण वा छियाए वा लताए वा है पासाई अवदालेत्ता भवति, दंडेण चा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा कवालेण वा कार्य आउडेचा भवति, तहप्पगारे पुरिसज्जाते | संवसमाणे दुमणा भवति, पवसमाण मुमणा भवति, तहप्पगारे पुरिसज्जाते दंडपासी डंडगुरुए डंडपुरेक्खडे अहिते अस्सि लोगसि
॥१३॥ | अहिते परसि लोगसि संजलण काधणे कोवणे पडीमंसि यावि भवति, एवं खलु तस्स तप्पनिय सावज्जेचि आहिज्जति, दसमेला किरियट्ठाणे मित्तिदोसवत्तिएत्ति आहिते१०॥अहावरे एक्कारसमे किरियहाणे मायवत्तिएत्ति आहिज्जति,जे इमे भवंति गूढा
SACREARRC
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(143)
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
प्रतिक्रमण ध्ययने
सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
॥१३१॥
&ायारा तमोकाइया उलुयपनलहुया पब्वयगुरुया ते आयरियावि संता अणायरियाओ भासाओ विजुज्जति, अण्णाहा संत अप्पाण..
* क्रियास्थाअण्णथा भण्णंति, अण्णं पुट्ठा अण्णं वागरेति, अण्ण आइक्खितच्च अण्णं आइक्खंति, से जथानामए केइ पुरिसे अंतोसल्ले त सलं का
IAL.नानि णो सयं णीहरति णो अण्णेहिं णीहरावेति णो पडिवि«सति, एकामेव निण्हती, अविउद्देमाणे अंतो अंतो झियाति, एवामेव माती मायं कटु नो आलोएति णो पडिक्कमति णो निंदति नो गरिहति नो विउद्दति नो विसोहेति नो अकरणताए अब्भुढेति नो आहारिहं पायच्छित्तं तवोकम पडिवज्जति, मायी अस्सि लोए पच्चायाती मायी परस्सि लोए य पच्चायाती निंदं गहाय अपसंसत्ति णायरति ण नियती निसिरियडंडं छाएति, मायी असमाहडलेस्से याबि भवति, एवं खलु तस्स तप्पनिय सावज्जेत्ति आहिज्जति,एक्कारसमे किरियडाणे मायावत्तिपत्ति आहितेशाधारसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिएत्ति आहिज्जति,जे इमे भवंति आरणिया आवसहिया गामणियंतिया कण्ट्रयीराहस्सिया नो बहुसंजता णो बहुपडिविरता सबपाणभूतजीवसत्तेहिं ते अप्पणा सच्चामोसाओ भासाओएवं विजुजंति-अहन तिचे अण्णे इतव्या, अहन अज्जावतव्यो अण्णे अज्जावतम्बा, अहंन परिषतब्बो अण्णे। परिघेचब्बा, अहं न परितावेतव्यो अण्णे परितावेतव्या, अहं न उवद्दबेतब्बो अण्णे उबद्दवेतब्बा, एवामेव ते इस्थिकामेहिं मुच्छिता गिद्धा गढ़िता अज्झोपवण्णा मुंजिला भोगाई कालमासे कालं किन्चा अंणतरेसु आसुरिपसु किब्धिसिएसु ठाणेसु उववचारो॥ भवति, ततो विष्पमुच्चमाणा अज्जो एलमूयत्ताए पच्चायांति, एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जेत्ति आहिज्जति, बारसमे किरिय- ॥१३॥ हाणे लोभवत्तिएत्ति आदिते१२। इच्चेताई वारस किरियडाणाई दविएणं समणेण वा माहणेण या संमं सुपरिजाणितब्याई भवति।। अथावरे तेरसमे किरियट्ठाणे ईरियावहिपत्ति आहिज्जाति, इह खलु अत्तत्ता संवुडस्स अणगारस्स हारयसिामयस्स भासासमि-18
दीप अनुक्रम [११-३६]
PARAN
(144)
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा यस्स एसणासमियस्स आयाणगंडमत्तणिक्खेवणासमितस्स उच्चारपासवणखलसिंघाणजल्लपारिट्ठावाणयासमियस्स मणसमियस्स भूतग्रामा: ध्ययने
| वहसमियस्स कायसमियस्स मणगुत्तस्स वइगुत्तस्स कायगुत्तस्स गुत्तस्स गुनिदियस्स गुत्वंभचारिस्स आउत्तं गच्छमाणस्स वा ॥१३॥ चिट्ठमाणस्स वा निसीयमाणस्स वा तुयट्टमाणस्स वा आउचं भुंजमाणस्स वा आउत्तं वत्थ पडिग्गह कंवलं पादपुंछणं गेण्हमाणस्स।
वा निक्खिवमाणस्स चा जाब चक्लुपम्हनिवायमवि अस्थि वेमाता सुहुमा किरिया ईरियावहिया कज्जति, सा पढमसमये बद्ध| पुट्ठा बितियसमये वेदिता ततियसमये निज्जिण्णा, सा बद्धपुट्ठा उदिता वेदिता निज्जिण्णा, सेअकाले अकमि वावि भवति ।
एवं खलु तस्स तप्पत्तियं असावज्जति आहिज्जति,तेरसमे किरियट्ठाणे इरियावहियवत्तिएत्ति आहिते १३||से बेमि जे अतीता जे | पडुप्पण्णा जे आगमेस्सा अरिहंता भगवंतो सब्बे ते एताई तेरस किरियाठाणाई भासिसु वा भासंति वा भासिस्संति वा, एवं पणविसु ३, एवं चेव तेरसम किरियाठाणं सेविसु ३, एत्थ पडिसिद्धकरणादिना जो मे जाव दुक्कडति ।। | चोद्दसहिं भूतगामेहिं।।सूत्र।जिम्हा भुवि भविस्सति भवति य तम्हा भूतत्ति वत्तव्बा,भूता-जीवा गामोत्ति समूहो,भूताणं गामा साभूतग्गामा तत्थ,तहिं गाथा-एगिदिय सुहुमितराणाएगिदिया सुहुमा इतरा-बादरा,सुहमा पज्जत्ता अपज्जत्ता य,एवं बादरावि
दुविहा, बेदियावि दुविहा-पज्जता अपज्जत्ता य,तेंदियावि दुविहा,चउरिदिया दुविहा,पंचिदिया दुविधा-सण्णिणो असण्णिणो य, तत्थ असण्णिपंचिंदियावि दुविधा- पज्जत्ता अपज्जत्ता, सण्णिपंचिदियावि दुविधा- पज्जत्ता अपज्जचा य, एते चोइस भूतग्गामा, |
IR॥१३२॥ | एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जो मे जात्र दुक्कडेति ।
334555
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(145)
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमण
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
अण्णे पुण एत्थ चउद्दस गुणट्ठाणाणिवि पणति, जतो एतेमुवि भूतग्गामा पट्टतित्ति तत्थ इमाओ दो गाहाओ- Kगुणस्थाध्ययने
मिच्छट्ठिी ॥ ८॥ तत्तो य० ॥२॥ तत्थ इमाति चोइस गुणडाणाणि, तंजहा-मिच्छट्ठिी सासायणं समामिच्छादिट्ठी नान अविरतसम्मदिट्ठी विरताविरता पमससंजता अपमत्तसं नियट्टि अणियट्टि मुहुमसंपराग उवसंतमोह खीणमोह सजोगिकेवली & अजोगिकेवलित्ति। तत्थ मिच्छादिड्डी दुविहो, तं०-अभिग्गहीतमिच्छट्ठिी अणभिग्गहीतमिच्छद्दिडी, तत्थ अभिग्गहीतमिच्छट्ठिी
संखआजीवयवुड्डवसणतावसपाणामनिण्हगबोडियादी, अणभिग्गहीत. एगिदियबेइंदियतेइंदियचउरिदिय, जेसिं च पंचिदियाणं जीवाणं न कत्थइ दंसणे अभिपायो, एस मिच्छदिट्टी १॥ सासायणो जस्स इसि जिणक्यणरुई, अहब जो जीवो उवस-II
मसंमत्ताओ मिच्छत्तं संकामितुकामो, जथा वा कोइ पुरिसो पुष्फफलसमिद्धाओ महदुमाओ पमाददोसेण पवडमाणो जाव धरणितलं मन पावति ताव अंतराले बट्टति एवं जीवोबि संमत्तमूलाओ जिणववणकप्परुक्खाओ परिवयमाणो मिच्छत् संकामितुकामो एत्थ है| छाबलियमेत्ते काले बदमाणो सासायणो भवति, अहवा संमत्ते सरसादो सायणो, तत्थिमा निज्जुत्तिगाथा-उवसमसम्मा
पडमाणओ तु मिच्छत्तसंकमणकाले । सासाणो छावलिओ भूमिमपत्तोव्य पडमाणो ॥१॥२॥ ४ा तथा सम्मामिच्छादिट्टी नियमा भवत्थपंचिंदियसन्निपज्जत्तगसर्रारी भवति, पढमं चेव मिच्छट्टिी होतो पसत्थेसु IN अज्झवसाणेसु वट्टमाणो मिच्छत्तपोग्गले तिहा करेति, तंजथा-मिच्छत्तं समामिच्छत संमत्तंति, एत्थ दिट्ठतो मदणकोद्दवहि, जथा R॥१३३॥
मदणकोद्दवाणामणिब्वलिताण मदणभावो भवति, तेसिं चेव धोयणादीहिं मंदनिव्वालियाणं मदणमाहिजं भवति, तेसिं चेव | तिमणीधोव्यणादीहिं सुपरिक्कमिताणं पागभावावगताणं मधुरसुविसदो ओदणो भवतित्ति, एवं जीवोवि मिच्छतादिभावो-181
ॐॐॐॐॐICES
दीप
अनुक्रम [११-३६]
... अत्र गुणस्थानानि वर्णयते
(146)
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
गुण
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा कावचिते मिच्छत्तपोग्गले सुमज्झवसाणपयोगेण विहा करेति, तंजहा--मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तं सम्मत्तंति, एत्थ जाहे जीवो मिच्छध्ययने ठिानोदयातो
R ट्रचोदयातो विसुज्मिऊणं सम्मामिच्छनोदयं परिणमति ताहे से जिणवयणे सद्धासदसणी सम्मामिच्छद्दिट्ठी अंतोमहत्तकालो भव- THHTHATURT
स्थानानि तित्ति, ततो परं सम्मचं वा मिकछत्तं परिणमति ३॥ अविरतसम्मदिट्टी निरयतिरियमणुयदेवगवीसु महब्बताणुष्वतविरती न भवति खओवसमखाइयरोइतदंसणी भवति, तं च सम्म दुविह-अभिगमसंमत्तं निसग्गसम्मत्तं च, तत्थ जीवाजीवपुण्णपावासवसंवरनिजजरबंधमोक्खेसु परिच्छितनवपदस्थाभिगमपच्चइयं अभिगमसंमत्तं, निसग्गो नाम समावो,जया सावगपुत्तनत्तुयाणं कुलपरंपरागतं निसग्गसम्म भवति, जहा या सयंभुरमणमच्छाण पडिमासंठिताणि साहुसंठिताणि य पउमाण मच्छए ।
बा दळूणं कंमाणं सोवसमेणं निसग्गसंमत्तं भवति, तैमूलं च देवलोगगमणं तेसि भवतित्ति ४॥ विरताविरतो मणुयपं.-1 * दियतियरिएसु देसमूलुत्तरगुणपञ्चक्खाणी नियमा संनिपंचेंदियपज्जत्तसरीरो भवति ५ ॥ इदाणिं पमत्तो, सो दुबिहो ।
भवति-कसायपमचो जोगपमत्तो य, तत्थ कसायपमत्तो कोहकसायवसट्टो जाव लोभ० ति, एस कसायपमची, जोगप्पमचो
मणदुष्पणिहाणेणं वइदुप्पणिहाणेणं कायदुष्पणिहाणेणं , तथा इंदियेमु सदाणुवाती रूवाणुवाती ५ तथा इरियास॥१३४॥ मितादीसु पंचसुवि असमितो भवति, तहा आहारउवहिवसहिमादीणि उग्गमउप्पादणेसणाहिं अणुवउचो गेहति ६॥ ॥१३॥
अप्पमत्तो दुविहो कसायअप्पमत्तो जोगअप्पमत्तो य, तत्थ कसायअप्पमत्तो खीणकसाओ, निग्गहपरेण अहिगारो, कई तस्स 31 ला अप्पमतं भवति?, कोहोदयनिरोहो वा उदयपत्नस्स वा विफलीकरणं, एवं जाव लोभोत्ति, जोगअप्पमतो मणवयणकायजोगे । | तिहिं व गुत्तो, अहवा अकुसलमणनिरोहो कुसलमणउदीरणं वा, मणसो वा एगतीभावकरणं, एवं वइएकि, एवं काएपि, तहा
5555
दीप अनुक्रम [११-३६]
SACRECARE
(147)
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
A
प्रत
सूत्रांक
NS
+ गाथा: ||१२||
49929
प्रतिक्रमणाटाइदिएमु सोइंदियविसयपयारनिरोहो वा सोईदियविसयपत्तेसु वा अत्थेसु रागदोसविणिग्गहो ५, एस अप्पमत्तो ७॥ इदाणि गुणध्ययने
| नियट्टी, जदा जीवो मोहणिजे कम खवेति वा उवसमेति वा तदा अप्पमत्तसंजतस्स अंणतरपसस्थतरेसु अज्झवसाणट्ठाणेसु मास्थानानि वह्नमाणो मोहणिज्जे कंमे खवेति उपसमेति वा जाव हासरतिअरतिसोगभयदुगुंछाणं उदयतो छेदोन भवति ताव सो भगवं अणगारो। अंतोमुहुत्तकालं नियत्ति भवति ८अनियही नाम जदा जीवो नियट्टिस्स. उवरि पसत्यतरेसु अज्झवसाणढाणसे वट्टमाणो हासच्छक्कोदये वोच्छिण्णे जाव मायाउदयवोच्छेदो न भवति एन्थ वट्टमाणो अणगारो अंतोमुत्तकालो अणियट्टियत्ति भवति ९॥ सुहुमसंपराइयं कम्मं जो बज्झति सो सुहुमसंपरागो, सुहुमं नाम थोवं, कहं थोवं, आउयमोहणिज्जबज्जाओ छ कम्मपगडीओ सिडिलवंधणबद्धाओ अप्पकालट्ठितिकाओ मंदाणुभावाओ अप्पप्पदेसग्गाओ मुहुमसंपरायस्स बझति, एवं थोवं संपराश्यकम तस्स बज्झति, सुहुमो रागो वा जस्स सो सुहुमसंपरागो, सो य असंखेज्जसमइओ अंतोमुहुत्तिओ विमुज्झमाणपरिणामो
चा पडिपतमाणपरिणामो वा भवतित्ति १०॥ उवसंतमोहो नाम जस्स अट्ठावीसातविहंपि मोहणिज्जकम्ममुवसंतं अणुमेत्तपि Pण बेदेति, सो य देसपडिवातेन सब्बपडिवातेण वा नियमा पडिबतिस्सति ११।। खीणमोहो नाम जेण निरवसेसमिह कंमणायक
४मोहणिज्ज खवितं, सो य नियमा विसुज्झमाणपरिणामो अंतोमुहुर्ततरेण केवलनाणी भवतित्ति १२॥ जोगा जस्स अस्थि केव-18 ॥१३॥
लिस्स सो सजोगिकेबली, तस्स धम्मकथासीसाणुसासणवागरणनिमित्तं वयजोगो, ठाणणिसीदणतुयट्टणउम्बनणपरिवत्तणवि-18॥१३५।। हारादिनिमित्तं कायजोगो, मणजोगो य से परकारणं पडुच्च भज्जो, कहं ?, अणुसरोवरातिदेवेहि अण्णेहि वा देवमणुएहि मणसा| पुच्छितो संतो ताहे तेसिं संसयवोच्छेदनिमित्तं मणपायोग्गाई दबाई गेण्हिऊण मणत्ताए परिणामतूणं ताहे तो मणसा घेच वाग
-550
दीप
अनुक्रम [११-३६]
5
(148)
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
परमाया
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणापरणं वागरेति, ततो तेसिं अणुत्तरादाणं ते भगवतो मणपोग्गले वियाणितण संसयवोच्छेदो भवतित्ति, अण्णहा तस्स नस्थि मणेणं ध्ययने
पयोयणं, तेणं तस्स सकारणं पहुच्च मणजोगो पडिसेहिज्जतित्ति १३|| अजोगिकेवली नाम सेलसीपडिवन्नओ, सो य तीहिं ॥१६॥ जोगेहिं विरहितो जाव कखगघङ इच्चेताई पंचहस्सक्खराई उच्चारिजंति एवतियं कालमजोगिकेवली भवितूण ताहे सबकम्मवि11णिमुक्को सिद्धो भवति १४॥ एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जो मे जाय दुक्कडंति ॥
| पण्णरसहिं परमाधम्मिएहिं ।।सू.॥ एत्थ दो गाथाओ-अंबे० ॥१०॥ असिपत्ते धणु०॥११।। एतेसि एस वाचारातिकागो-धाडेंति पहावंती य, हणति विंधति तह निसुंभेति । मुंचति अंबरतले अंबा खलु तस्थ रहए ॥१॥
आहतहते य तहियं निसपणे कप्पणीहिं कप्पंति । पिडलगचदुलगछिपणे अंबरिसा तत्थ नेरइते ॥ २॥ साडणपाडणतुत्तणविंधण रज्जुत्तलप्पहारेहिं । सामा गेरइयाणं पर्वतयंती अपुण्णाणं ३॥ अंतजरफिफिसाणि य हिययं से कालेज्जफुप्फुसे चुण्णे । सबला णेरइयाणं पबत्तयंती अपुषणाणं ॥४॥ असिसत्तिकुंततोमरसूलतिसूलेसु सूइचितगासु। पोयंति रुद्दकम्मा उ नरयपाला तहिं रोहा ॥५॥ भजति अंगमंगाणि ऊरू बाह्र सिराणि करचरणे । कप्पंति | कप्पणीहिं उवरूदा पावकम्मरते।।६।।मीरासु सुंढएमु य कंटएसु पयणगेसु य पयंति । कुंभीसुं लोहीसु य पयंति काला | उणेरइए ॥ ७॥ कप्पंति कागणीमंसगाणि छिदंति सीहपुच्छाणि । खाएंति य रइए महकाला पाचकम्मरते ॥८॥ हत्थे पादे ऊरू बाहु सिरा तह य अंगमंगाई। छिंदंति पगामं तू णेरइयाणं तु असिपत्ता ।।९।। कण्णोट्टणासकरचरणदसण तह थणपुलुरुवाहणं । छेदणभेदणसाडणअसिपत्तधणू तुकारेंति ॥१०॥ कुंभीसु य पयणेसु य, लोहीसु
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(149)
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
॥१३७॥
प्रय कडहिलेहिं कुंभीसु । कुंभीतु नरगपाला हणंति पार्वति णरएम ॥११॥ तडतडतडस्स भज्जेंति भज्जणे असंय
कलंबुवालुगापट्टे। बालूगा परइए लोलेंती अंबरतलंमि ॥ १२ ॥ वसपूतिरुधिरकेसटिवाहिणि कलकलेंतजतुसोतं । माद्या: वेतरण णिरयपाला रहए ऊ पवाहति ॥१३ ।। कप्पति करकएहिं छिदंति परुप्परं परसुएहिं । तरूमारुहंति संवलि खरस्सरा तत्थ नेरहए ॥ १४॥ भीते य पलायन्ते समंततो तत्थ ते निरंभति।पसुणो जथा पसुपए महघोसा ते तुला नेरइए ॥ १५ ॥ एत्थ जेहि परमाधमियत्तणं भवति तेसु ठाणेसु जे बट्टिते, एवं पडिसिद्धकरणादिणा जाब दुक्कडंति ॥ी सोलससुसूत्र । गाहाए सह सोलस अज्झयणा तेमु, सुतगडपढमसुतबंधअज्झयणेसु इत्यर्थः, ताणि पुण सोलस एवं-समयो १४ बेतालीयं २ उपसग्गपरिषण ३ थीपरिषणा या निरयविभत्ती५. वीरस्थओ६ कुसीलाण परिभ सा७॥शविरियंदा धम्म ९ समाही १० मग्ग ११ समोसरण १२ महतधं १३ गंथो १४। जमतीतं १५ तह गाथा १६ सोलसमं होति अज्झयणं ॥शाएत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जाव दुक्कडंति ॥
सत्तरसविधे असंजमे ।। सूत्रं ॥ संजमो-समणधमो पुण्यं भणितो, अहवा जथा ओहानिज्जुत्तीए, तविपरिते असंजमे, तस्थ पडिसिद्धकरणादिणा जाव दुक्कडेति ॥ । अट्टारसविहे अचंभे ॥ सूत्रं । बभं जथा दसविधे समणधम्मे भणितं, तविपक्खो अन्यौ, अथवा बभे- समणधम्मोला ॥१३७॥ पवयणमायाओ अब्बभतविपक्खो तत्थ जो पडिसिद्धकरणादिणा जाव दुक्कडन्ति ।।
एगूणवीसाए णाअज्झयणेहिं ।।सू०।। इमाहिं दोहिं गाहाहि अणुगंतव्याणि-उक्खित्तणाग१ संघाडे२, अंडे३ कुंमे य४
सूत्र
दीप अनुक्रम [११-३६]
(150)
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४] मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१३८
सूत्र
सूत्र
सेलए ५ तुंबे व ६ रोहिणी ७ मल्ली ८, मायंदी ९ चंदिमा इय १० ।। १६ ।। दावदवे ११ उद्गणाते १२ मंडुक्के १३ तेतली इय १४ | नंदीफले १५ अबरकंका १६ आइण्णे १७ सुसुमा १८ पुंडरीए १९ ।। १७ ।। एत्थ जो मे पडिसिद्धकरणादिणा जाव दुक्कडंति ॥
वीसाए असमाहिट्टाणेहिं ॥ सूत्रं ॥ तत्थ इमाओ तिनि गाथाओ - दवदवचारि० ॥ १८ ॥ संजलण० ॥ १९ ॥ ससरक्ख० ॥ २० ॥ इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिडाणा पण्णत्ता, तंजथा दवदवचारी यावि भवति १ अप्पम - ज्जितचारि यात्रि भवति २ दुप्पमज्जितचारी यानि भवति ३ अतिरित्त सेज्जासणिए ४ रातिणियपरिभासी ५ थेरोवघातीए ६ भूतोवघाती ७ कोधणे ८ पिट्ठी मंसिए यावि भवति ९ अभिक्खणं ओहारियावि भवति १० नवाई अधिकरणाई अणुप्पण्णाई उप्पादहत्ता भवति ११ पोराणाई अधिकरणाई खामियविओसवियाई उदीरेता भवति १२ अकाले सज्झायकारि यावि भवति १३ ससरक्खपाणिपादे १४ सहकरे १५ झंझकरे १६ कलहकरे १७ असमाधिकरे १८ सूरप्पमाणभोई १९ एसणाए असमिते यात्री भवति २०। एते थेरेहिं भगवंतेहिं बीसं असमाहिडाणा पण्णत्ता । तत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जो मे जाव दुक्कडंति ॥
एक्कवीसाए सबहिं ॥ सूत्रं ॥ २१ ॥ सबले नाम अविसुद्धचरिते, सबलोति वा चित्तलोत्ति वा एगहूं । एत्थ गाथाओ, तंजह उ हत्थकंमं० ॥ २१ ॥ तत्तो य रायपिंडं० ॥ २२ ॥ छम्मासभंतरओ० ॥ २३ ॥ मासभंतरओ वा० ||२४|| गेहंते य अदिष्णं० ||२५|| एवं ससिणिद्धा ए० ||२६|| संडसपाणसबीए० ||२७|| आउट्टिमूलकंदे ० ||२८| दस दगलेवे ॥ २९ ॥ दव्वीय भायणेण व० ॥ ३० ॥ इमे खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पण्णचा, संजया
(151)
असंय
माद्याः
॥१३८॥
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने ॥१३९॥
सूत्र
हत्थकंमं करेमाणे सबले १ मेहुणं पडिसेवते सचले २ रातिभायणं गुंजमाणे सबले ३ आहाकमं भुंजमाणे सबले ४ रायपिंडं का पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसिद्धं अभिहडं आह दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले ५ अभिक्खणं अभिक्खणं पच्चक्खिय भुजमाणे सबले ६ अतो छ मासाणं गणातो गणं संकममाणे सबले अंतो मासस्स तयो दगलेवे करेमाणे सबले ८ अंता मासस्स तयो माइडाणाई करेमाणे सबले ९ आउट्टियाए पाणातिवार्त करेमाणे सबले १० आउट्टियाए मुसावादं वदेमाणे सबले ११ आउट्टियाए अदिष्णादाणं गेण्हमाणे सबले १२ आउट्टियाए अनंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा निसीहितं वा चेदेमाणे सबले १३ | एवं ससिषिद्धाएं पुढवीए १४ ससरकखाए पुढवीए १५ एवं आउट्टियाए चित्तमन्ताए सिलाए चितमंताए लेलूए १६ कोलावासंसि वा दारुरुवे जीवपतिट्ठिए सअंडे सपाणे सवीए सहरिने सओसे सउनिंगपण गद गमट्टीमक्कडासं ताणए तहप्पगारे ठाणं वा सेज्जं वा निसीयणं वा तेमाणे सबले १७ आउट्टियाए मूलभोयणं वा कंदभोगणं वा पवालभोगणं वा तयाभोवणं वा पत्तभोगणं वा पुण्फभोयणं फलभोगणं वा वीयभोयणं भुजमाणे सबले १८ तो संगच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले १९ अंतो संचच्छरस्स दस माइडाणाई करेमाणे सबले २० आउट्टियाए सीतोदवरधारिण हत्थेण वा मचेण वा दवीए भायणेण या असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा डिगाहेता भुंजमाणे सबले २१ एते खलु धेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीस सबला पण्णत्तत्ति, एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जो मे जाब दुक्कडंति ।
बाबीसाए परीसहेहिं ।। सूत्रं ॥ परीसहिज्जेते इति परीसहा, अहियासिज्जतित्ति वृत्तं भवति । तत्थ दो सिलोगा- खुधा पिवासा० ॥ ३४ ॥ अलाभरोग० ॥ ३५ ।। इह खलु बावीसं परीसहा समणेणं भगवता महावीरेण कासवेण पवेदिता जे
I
••• अत्र परिषहानाम् वर्णनं क्रियते
(152)
शबलाः
॥१३९॥
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा भिक्खू सोच्चा णच्चा जिच्चा अभिभूय भिक्खायरियाए परिवयंतो पुट्ठो नो विहन्नेज्जा,तंजहा-दिगिछापरीसहे १ पियासापरीसहे२परापहार ध्ययने 8
सीतपरीसहे ३ उसिणपरीसहे ४ एवं दसमसग०५अचेल०६अरति०७इथि०८चरिया०९निसीहिया०१० सेज्जा०११ अक्कोस०१२ ॥१४० वह०१३ जायणा०१४ अलाभ०१५ रोग०१६ तणफास०१७ जल्ल०१८ सक्कारपुरस्कार०१९पण्णा०२० अण्णाण०२१ दंसणपरी-IN
का सहेत्ति २२। परीसहाणं पविभत्ती, कासवेण पवेइता । तं भे उदाहरिस्मामि, आणुपुर्दिवं सुणेह मे ॥१॥ दिर्गि-14
छापरिगते देहे, तवस्सी भिक्खु थामवं । नच्छिदे नेव छिंदावे, न पए नो पयावए ॥२॥ कालीपब्बंगसंकासे, पाकिसे धमणिसंतए । मातपणे असणपाणस्स, अदीणमणसो चरे ॥ ३॥ ततो पुट्ठो पिवासाए, दोगुञ्छी लज्ज.
संजते । सीतोदगं न सेवेज्जा, विगहस्सेसणं चरे ॥ ४॥ छिपणावातेसु पंथेस, आतुरेसु पिवासिते । परिसुक्क-18 &ामुहे दीणे, तं तितिक्खे परीसहं ॥ ५॥ संजतं विरतं लूह, सीतं फुसति एगदा । णातिवेलं मुणी गच्छे, सोच्चाणं
जिणसासणं ॥६॥ न मे निवारणं अस्थि, छवित्ताणं न विज्जती । अहं तु अग्गि सेवामि, इति भिक्खू ण चिंतए ॥ ७॥ उसिणपरितावेण, परिदाहेण तज्जिते । प्रिंसु वा परितावेण, सातं नो परिदेवते ॥ ८ ॥ उपहाभितसे मेधावी, सिणाणं नाभिपत्थए । गातं न परिसिंचज्जा, न वेयावेज्ज अप्पयं ॥९॥ पुढो य दंस-MI मसएहिं, समरे व महामुणी। णागी संगामसीसे वा, सूरो अभिहणे परं ।। १० ।। न संतसे ण वारेज्जा, मणंपिहा ण पदोसए । ण उवहणे पाणिणो पाणे, मुंजते मंससोणियं ॥ ११॥ परिजुन्नेहिं वत्थेहिं, भोक्खामित्ति अचेलए ।। अदुवा सचेलए होक्खं, इति भिक्खू न चिंतए ॥ १२॥ एगदा अचेलए होति, सचेले यावि एगदा । एतं धम्म
AHARASWER
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(153)
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ध्ययने ।
RESS
+ गाथा: ||१२||
क्रमणादहितं नम्चा, गाणी णी परिदेवते ॥ १३ ॥ गामाणुगामं रीयंत, अणगारं अकिंचणं । अरती अणुप्पविस्से, तं तिति- परीषहाः
|क्खे परीसहं ॥ १४ ॥ अरतिं पिट्टतो किच्चा, विरते आतरक्खए | धम्मारामे निरारंभे, उवसंते मुणी चरे॥१५॥
संगो एस मणूसाणं, जाओ लोगसि इथिओ। जस्स एता परिण्णाता, सुकडं तस्स सामपणं ॥१६॥ एवमालदाय मेधावी, पंकभूताओ इत्थीओ | बज्जएज्ज सदा कालं, चरेज्जत्तगवेसए ॥१७॥ एग एव चरे लाढो, अभिभूत है।
परीसहं । गामे वा नगरे वापि, नियमे वा रायहाणिए ॥ १८॥ असमाणे चरे भिक्खू, न य कुज्जा परिग्गहं
असंसत्तो गिहत्थेहि, अणिएतो परिब्बए ।॥ १९ ॥ सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्रवमूले व एक्कओ। अकुक्कुओ |निसीएज्जा, न य बित्तासए परं ॥२०॥ तत्थ से अच्छमाणस्स, उवसग्गाहिधारए । संकाभीतो न गच्छेज्जा,
उद्वेत्ता अण्णमासणं ॥ २१ ॥ उच्चावयाहिं सेज्जाहिं, तवस्सी भिक्खु थामवं । नातिवेलं विहंणज्जा, पावदिट्ठी लाविहण्णती ।। २२ ॥पइरिक्कुवस्सयं लधुं, कल्लाणं अदु पावयं । किमेगराति करिस्सामि, एवं तत्धहियासए ॥२३॥
अक्कोसेज्जा परी भिक्खु,न तस्स पहिसजले। सरिसो होति बालस्स, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥RI
सोच्चाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकंटका। तुसिणीओ तु वेदेज्जा (उबेहिज्जा उ०) न ताओ मणसीकरे ॥२५॥ ॥१४॥ हतो न संजले भिक्खू, मणंपि न पदोसए। तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं विचिंतए ॥ २६ ॥ समणा ॥१४१।।
संजतं दंतं, हणेज्जा कोइ कत्थई । नस्थि जीवस्स णासोत्ति, एवं पेहेज्ज संजए ।। २७ ।। दुक्करं खलु भो निच्चं, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वं से जाइयं होइ, णस्थि किंचि अजाइतं ॥ २८ ॥ गीयरग्गपविठ्ठस्स, पाणी पो
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(154)
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रविक्रमणासुप्पसारए । सेओ अगारवासोत्ति, इति भिक्खू न चिंतए । २९ परेसु घासमेसेज्जा, भोयणे परिनिष्ठिते । परीषहाः ध्ययने दिलद्धे पिंडे अलद्धे वा, णाणुतप्पति पंडिते ॥ ३० ॥ अज्जेबाहं न लन्भामि, अवि लाभो सुए सिया। जो एव ॥१४॥
पडिसंविखे, अलाभो तं न तज्जए ॥ ३१ ॥ नाचा उप्पत्तियं दुक्खं, वेदणाए दुहटिए । अहीणो थावए पपणं, 181 पुट्ठो सत्यहियासए॥३२॥ तेइच्छं नाभिणंदेज्जा, संचिन्तत्तगवेसए। एवं खु तस्स सामण्णं, जंकुज्जा ण कारण॥३॥ है। अचेलगस्स लूहस्स, संजतस्स तपस्सिणो । तणेसु सयमाणस्स, होज्जा गातविराहणा ॥ ३४ ॥ आतवस्स णिवा-टी
तेण, अतुला होति वेदणा । एवं नच्चा न सेवेति, तंतुजं तणतज्जिता॥३५॥ किलिण्णगत्ते मेधावी, पंकेण य रए
ण य । गिम्हासु परितावणं, सातं नो परिदेवति ॥ ३६ ॥ वेदेज्ज निज्जरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरहै भेदोत्ति, जल्लं कारण धारए ॥ ३७ ॥ अभिवादणमन्भुट्ठाणं, सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताई पलिसेवंति, न
तेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुक्कसायी अप्पिच्छे, अण्णातेसी अलोलुए। रसेसु णाभिगेझज्जा, णाणुतप्पज्ज पंडित ॥ ३९ ॥ से गृणं मए पुष्वं, कम्मा णाणफला कडा। जेणाहणाभिजाणामि, पुट्ठी केणइ कण्हुई॥ ४० ॥ अह पुट्टा (पच्छा) उदिज्जंति, कंमा नाणफला कडा । एवमासासे अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागतं ॥४१॥
R ॥१४॥ शानिरस्थगमि विरतो, मेहुणाओ सुसंबुडो । जे सावं नाभिजाणामि, धर्म कल्लाणपावर्ग ॥ ४२ ॥ तवोषहाण| मादाय, पडिम पडिबज्जओ । एवंपि मे विहरओ, एउमत्तं न नियहती ।। ४३ ॥ नस्थि नूर्ण परे लोए, डी वावि तवस्सिमो । अदुवा वंचितो मेत्ति, इति भिक्खून चिंतए ॥४४॥ अभू जिणा अस्थि जिणा,अदुवावि भबिस्सति।
SARKARKESher
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(155)
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
१२
प्रत
"
सूत्रांक
॥१४॥
+ गाथा: ||१२||
मुसंते एबमामु, इति भिक्खू न चिंतए ॥ ४५ ॥ एते परीसहा सब्बे, कासवेण पवेदिता । जे भिक्खू न विह- महावत|णज्जा, पुष्टो केणइ कण्हुइ ॥४६॥ ति । एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जाब दुक्कडंति ॥
तेवीसाए सुतंगडजायणेहिं ।। मूत्रं ।। तत्थ इमा गाथा-पुंडरीय १ किरिपठाण २ आहारपरिषण ३ पच्च-11: क्खाणे ४य अणगारे ५ अइय ६ णाल ७ सोलसाइंच१६ तेवीस।।२३-३६॥ एत्थ जो मे पडिसिद्धकरणादिणा जाव दुक्कडंति।। चउवीसाए देवेहिं । पंचवीसाए भावणाहिं ।।मूत्र।। ताओ महब्बयाणं थिरीकरणनिमित्तं भवति, तत्थ खलु पढमस्स महब्बयस्स इमाओ पंच भावणाओ भवंति- ईरियासमिए से निग्गंथे पुरओ जुगमायाए पेहमाणे २ दणं तसे पाणे उद्धटु पायं रीएज्जा साहटु पार्य रीएज्जा संवितिरिच्छं पायं कट्टु रीएज्जा, सवि परक्कमे संजतामेव परिक्कमज्जा, णो उज्जुतं गच्छेज्जा, ईरियासमिए से निग्गंथेत्ति पढमा भावणा १-१ । अहावरा दोच्चा भावणा आलोइयपाणभोयणभोयी से निग्गंथे, नो अणालोइयपाणभायणभोई सिया, आयाणमेयं अणालोइयपाणभोयणभोयी, से निम्नथे आवज्जज्जा पाणाणि वा बीयाणि वा हरिताणि वा भोत्तए, आलोइयपाणमोयणभोयी से निग्गंथेति दोच्चा भावणा १-२। अहावरा तच्चा भावणा- आदाणभंडमचनिक्खे| वणासमिए सिया, आदाणमेयं आदाणभंडमत्तीनक्खेवणाअसमिए, से निग्गथे आवज्जेज्जा पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि
वा घबरोवित्तए, आदाणभंडमचनिक्खेवणासमिते से निग्गंथेति तच्चा भावणा १-३ । अहावरा चउत्था भावणा मणसमिए । |से निग्गंथे, णो य मणअसमिते सिया,जे यमणो पावए सावज्जे पावे भतोवधादिए, तहप्पगारं मणं णो पुरतो कटु विहरेज्जा, जेणं मणो अपायए असावज्जे जाव अभृतोवघातिए तहप्पगारं मणं पुरतो कटु विहरेज्जा मणसमिए से निग्गंचि चउत्था ट्र
दीप
अनुक्रम [११-३६]
२ ०४२१११
... अत्र महाव्रतानां भावना: वर्णयते
(156)
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
प्रतिक्रमणा ध्ययन
PAK
महाबतभावताः
+ गाथा: ||१२||
भावणा १-४ | अहावरा पंचमा भावणा- वइसमिए से निग्गथे, जह मणे सह बईवि जाब वइसमिते से निग्गंथति पंचमा भावणा १-५ । इच्चेताहि पंचहि भावणाहिं पढम महब्बतं अहामुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं संमं कारणं फासितं पालितं सोभितं तीरितं किट्टितं आराहितं आणाए अणुपालितं भवति १ ॥ अहायरे दोच्चे महव्वते मुसावायाओ वेरमणं, तस्स खलु इमाओ पंच भावणाओ, तत्थ खलु इमा पढमा भावणा- हास परियाणति से निग्गंथे, णो य हाससंपउने सिया, आदाणमेयं हाससंपउत्ते से निग्गंथे आवज्जेज्जा मुसं बदित्तए, हासं परियाणति से निग्गंथेत्ति पढमा भवणा २-१ । अहावरा दोच्चा भावणा अणुवीइभासए से निग्गंथोत्ति दोच्चा भावणा २-२ । अहावरा तच्चा भावणा- कोधं परियाणति से निग्गंथे, नो य कोवणसीलए सिया आदाणमेत कोधणसीलए से निग्गथे आवज्जज्जा मोसवयणाई, कोधं परियाणति से निग्गंथेति तच्चा भावणा २-३ । अहावरा चउत्था भावणा- लोभ परियाणति से निग्गंथेत्ति चउत्था भावणा २-४ । भयं परियाणति से निग्गंथे, नो य भेउरजाइए सिया, आदाणमेयं भेउरजाइए से निम्गंथे आवज्जेज्जा मोसवयणाई, भयं परियाणते से निग्गयोनि पंचमा भावणा २-५ । इन्चेताहिं पंचहिं भावणाहि दोच्चं महब्बतं अहामुत्तं तहेब जाव अणुपालियं भवति २॥ अहावरे तच्चे महव्वए अदिण्णादाणाओ वेरमण, तस्स खलु इमाओ पंच भावणाओं भवति, तत्थ खलु इमा पढमा भावणा- से आगंतारेसु वा ६ अणुबीई ओग्गहं जाएज्जा, तत्थ इस्सरे जाव तेण परं विहरिस्सामा, से आगंतारेसु वा (ह) अणुवीयिओग्गह जाएज्जा से निग्गंथेत्ति पढमा भावणा ३-१ । अहावरे दोच्चे भावणा उग्गहणसीलए से निग्गंथे, णो य अणोरगहणसीलए सिया, जत्थेव ओग्गहणसीलए ओग्गहं तु गेण्हेज्जा | तत्थेव ओगाहणसीलए उग्गहं अणुण्णवेज्जा, उग्गहणसीलए मे निग्गंथेत्ति दोच्चा भावणा ३-२ । अहावरा तच्चा भावणा णो
-MA
दीप
॥१४४॥
*
॥१४४॥
अनुक्रम [११-३६]
(157)
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
महाव्रतभावनाः
+ गाथाः ||१२||
प्रतिक्रमणा निग्गथे एतावताय उवग्गहे एताव ताय अत्तमणसंकप्पो जाब तस्स य उग्गहे जाय तस्स परिक्खेबे इचावता से कप्पति, णो से ध्ययने कप्पति एनो चहिया, णो निग्गंथे. इनाव ताव अनमणसंकप्पेत्ति तच्चा भावणा ३-३ । अहावरा चउत्था भावणा- अणुण्णवियपा- पाणभोयणभाई से निम्नथे, णो अणणण्णवियपाणभायणभाइ सिया, आदाणमेत अणणुष्णवियपाणभोयणभोयी, से निग्गंथ आवज्जज्जा
अचियत्न भोत्तए, अणुण्णवियपाणभायणभोयी से निग्गंथेचि चउत्था भावणा ३-४ । अहावरा पंचमा भावगा-से आगन्तारसु या () अणुष्णावियओग्गहजाती से निम्नथे सामिएसु, तेसिं पुवामेव उग्गहणं अणणुण्णाविय अपडिलेहिय अप्पमज्जिय णो चिट्ठज्जा वा णिसीएज्ज वा तुयडेज्ज वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं या पादपुंछणं वा आतावेज्ज या पदावेज्ज वा,तेसिं पुन्बामेव | | उग्गई अणुण्णपिय पडिलहिय पमज्जिय ततो संजतामेव चिट्ठज्ज वा जाव पयावेज्ज वा, से आगंतारेसु वा(६)अणुचीयिमितोग्गहजाती निग्गंथे सामिए, पंचमा भावणा ३.५॥ इच्चेताहि पंचहि भावणाहि तच्च महवत जाव अणुपालियं भवति ३ ॥ अथावरे उत्थे भंते! महब्बते मेहुणाओ बेरमण,तस्स णं इमाओ पंच भावणामो भवति,तत्थ खलु इमा पढमा भावणा-णो पाणभोयणं अतिमायाए आहारत्ता भवति से निग्गथे,आदाणमेत पणीयपाणभोयणं, अतिमत्ताए आहारेमाणस्स णिग्गंथस्स संति भेदे सति विभंगे संति केवलिपणनाओ धमाओ भंसणता, णो पणीयं पाणभोयणं अतिमायाए आहारचा भवति से निगगथे, पढमा भावणा ४-१।।
अहावरा दोचा भावणा-अविभूसाणुवाई समणे निग्गंथे,णो विभूसाणुवायी सिया, आदाणमेयं विभूसाणुवादिस्स निग्गंथस्स संति INभेदे जात्र भसणना, अविभूसाणुवाई से निग्गंथे, दोच्चा भावणा ४-२ । अहावरा तच्चा भावणा-णो इत्थीण इंदियाई मणोहराई ... मणोरमाई निशाना भवति से निगगये, दाणमेनं, इत्थीण इंदियाई मणोहगई मणोरमाई निज्झायमाणस्स निग्गंथरस सति |
दीप
अनुक्रम [११-३६]
१४५॥
%A5%
४.पी.-
(158)
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाभेदे जाव भेसणता, णो इत्थीण इंदियाई मनोहराई मणोरमाई निझाइत्ता भवति से निग्गंधात तरुचा भावणा ४-३। अहावरा महामतध्ययने पचउत्था भावणा-णो इत्थीपमुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवेत्ता भवति से निग्गंथेत्ति चउत्था भा०, इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सय
मावनाः Tणासणाई सेवमाणस्स निग्गंथरस संति भद जाव भेसणना, णो इत्थापसुपंडगसंसचाई सपणासणाई सेषित्ता भवति से निग्गवत्ति ॥१४६॥ चिउत्था भावणा ५-४ । अहावरा पंचमा भावणा-णो इत्थीणं कहं कहेता भवति से निग्गंधे, आदाणमेतं, इत्थीर्ण कह कहेमाणस्स
निग्गंथस्स संति भेदे जाव भंसकता, णो इत्थीणं कई कहेता भवति से जिग्गंधत्ति, पंचमा भावणा ४.५। इच्चेयाहिं पंचहिं भावणाहिं यउत्थं महध्यतं अहासु जाव अणुपालितं भवति || अहावरे पंचमे मद्दश्यते य परिग्गहाओ बेरमण, तस्स इमाओ| पंच भावणाओ भवंति, तत्थ खलु इमा पढमा भावणा-सोईदिएण मणुण्णामणुण्णाई सदाई सुणेना भवति से निग्गंथे, तेसु मणु|ण्णामणुण्णेसु सद्देसु गो सज्जेज्ज वा गिज्झेज्ज वा मुच्छेज्ज वा अज्झोववज्जेज्ज वा विणिपातमावज्जेज्ज वा हीलेज्ज वा निदे-1 ज्ज वा खिसेज्ज वागरहेज्ज या तज्जेज्ज या तालेज्ज वा परिभवेज्ज या पब्बहेज्जया, सोईदिएण मणुण्णामणुण्णाई सद्दाई मुणेचा भवति स णिग्गं च पढमा भावणा ५-१। अहावरा दोच्चा भावणा-चक्खिादएण मणुण्णामणुष्णाई रूवाई पासिचा भवति जथा| || सद्दाइ एमेव५.२। एवं घाणिदिएणं. अग्घाइत्ता ५-३। जिझिदिएणं आसाएत्ता ५.४ फासिदिएणं पडिसंवेदेता जाब पंचमा भावणा ५५ इच्चेताई पंचहि भावणादि पंचम महब्वतं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च संमं कारण फासिय पालियं सोमियं तीरिया किट्टियं आराहितं आणाए अणुपालियं भवति ॥
॥१४६॥ हरियाममिर सया जने, उचेह भुजेज्ज प पाणभोयणं । आदाणनिक्षेचबुर संजते, समाधिते संजमती
98496
दीप
अनुक्रम [११-३६]
+ anismeena
9+
करुन
-
+
(159)
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा: ॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ १४७॥
मणोषयी ॥ १६ ॥ ५१॥ अहस्ससच्चं अणुवीयभासर, जे कोहली भभयमोहवज्जए । से बीहरायं समुप्पेहि पासिया, मुणी हि मोसं परिवज्जए सया ।। १६ । ५२ ॥ सयमेव उपग्गजायणे घडे, मतिमं अणिसं असति भिक्खु ओग्गहं । अणुष्णविय भुंजिय पाणभोयणं, जाइत्ता साहम्मियाण उग्गहं ॥ १६ ॥ ५३ ॥ आहारगुप्ते अविभूसि तप्पा, इथि न णिज्झाए ण संघवेज्जा । बुद्धे मुणी खुद्दकडं न कुज्जा, धम्माणुपेही संघ भरं ॥ १६ ॥ ५४|| जे सहरूवरसगंधमागते, फासे य पप्य मणुण्णपावर । गेधिं पदोर्स न करेंति पंडिते, से होति दन्ते विरते अकिंचणे ।। १६ ।। ५५ ।। अण्णे पुण एताहिं गाथाहिं पणुवीसं भावणा अणुभासन्ति, तंजधा पणुवीसभाषणाओ पंचन्ह मह्यताणमेताओ। भणिपाओ जिणगणहरपुज्जेहिं णवर सुत्तंमि ॥ १ ॥ इरियासमिती पदमं आलोइयअण्णपाणभोई या । आदाण मंडनिक्वणाय समिती भवे ततिया ॥ २ ॥ मणसमिती वयसमिती पाणनिवार्यमि होति पंचेया । हास परिहार अणुवीतिभासणा कोधलोभपरिण्णा ॥ ३ ॥ एस मुसावायस्सा अदिष्णदाणस्स होंतिमा पंच पहुसंदिट्ट पहुं वा पढमोग्गहजाए अणुवीई ॥४ ॥ ओग्गहणसील बितिया तत्तो गेव्हेज्ज उग्गहं जहियं । तणडगलमल्लगादी अणुण्णवेज्जा तर्हि तहियं ॥ ५ ॥ तच्चमि उग्गहंन् अणुण्णवे सारिउग्गहे जाव । तावलिए मेर कानुं न कप्पती चाहिए तस्स || ६ || भावण पउत्थ साहम्मियाण सामण्णमंणपाणं | संघाडगमादणि भुजेज्ज अणुण्णविय ते उ ॥ ७ ॥ पंचामेयं गंतॄण सामिय उग्गहे अणुण्णविय । ठाणादी चेतेज्जा पंचताऽदिष्णदाणस्स || ८ || नवय भावणाओ णो अनिमातापणीतमाहारो । दोच्च अविभूसणा उ विभूमती ण तु हवेज्जा
(160)
महाव्रतभावनाः
॥ १४७॥
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
प्रत सूत्रांक
[सू.] + गाथा: ||१२||
॥१४८॥
सूत्र
युकल्पा :
॥९॥ तच्चा भावण इत्थीण इंदिया मणहरा णणिज्झाए।सयणासणविवित्ताई इस्थिपसुविधज्जिया सम्बे ॥१०॥ शाधु| एस चउत्था ण कहे इस्थीण कहंतु पंचमा एसा । सहा रूवा गंधा रस फासा पंचवी एते ॥ ११ ॥ रागदासविच-15
शाः ज्जण अपरिग्गहभावणाओं पंचेता। मब्बाओ पणुवीसं पतास न वहितं जंतु ॥ १२ ॥ एस्थ पडिसिद्धकरणा- साधुगुणा दिणा जाव दुक्कर्षति ।।
आचारछब्बीसाए इसकप्पववहाराणं उरमणकालेहिं ॥ सूत्रंत य एवं छम्चीस भवनि-दस उद्देसणकाला वसाण कप्पस्स होति उच्चव । दस चव यववहारस्स होति मन्येवि छब्बीम॥१२॥ १३ ॥ तन्ध पडिसिद्धकरणादिणा जावा दुक्कडंति।
सत्तावीसाए अणगारगुणेहिं । सूत्रं । ते य इमे-ययाडक्क० ॥ ४४ ॥ कोधादिरोहणा जाविय, सत्तावीसं अणगारगुणा * पण्णता समणाउसो : तेजधा-सय्वाना पाणातिवायाओ बेरमणं एवं जाय च राईभोयणाओ०, साइंदियसंवरे जाच फासिदिय ११, खमा विरागता भावसच्चं १४. खमा-दोमनिग्गहो विरागता-रागनिग्गहो भावसच्च- सबस्थ सुपणिहियभावप्पणं,करणसच्च-ज सयमणहाणं विस्पष्ट करेति, अहवा भावसकच अभितरलिंगसुद्धीबाहिलिंगमुद्धी करणसच्चे१५,मणसमणाहारा-णिरुभति मणन्ति भणियं होति,एवं वइकायसमण्णाहारावि१५,कोहबिबेगो एवं जाव लोभ०२२,णाणसंपण्णता एवं जाव चरित्त०२५,वेदणाहियासणया
॥१४८॥ मारणतियाहियासणया२७, वेदणाओ सीओसिणभीमाओ ३ अहवा माणसियसारीरियाधीसियाओ ३, मारणंतियाहियासणया जे मारांनियं दक्खं नस्स अहियामणया । एन्थ पडिसिद्धकरणादिणा जाय दक्कडंति ।।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(161)
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
मोहनीय
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणात सूत्र अट्ठावीसतिविहे आयारकप्पे ॥ सूत्रं ।। २८ ।। वत्र आयारस्स पंचवीस अझयणाओ, घातियं अणुपातिवं आरोक-टापथुतानि ध्ययने I ति तिविहं निसीहं, ते अट्ठावीसं । एत्थ पडिसिद्धकरणादि जाब दुक्कडन्ति ।।
पगुणनीसाए पावसुतपसंगेहि।।सत्रात पुण पावसुतं एवं एगुणतीसतिविहं भवति, तंजथा-अठ्ठ निमित्तंगाणि दिग्ब उप्पामस्थानानि
२ अंतलिक्खं च ३१ भोमं ४ अगं ५(च) सरं ६,लक्खणं ७ बंजणं ८। तत्थ एक्कक्कं तिविधं, तंजथा-सुसं वित्ती बत्तिय, तथा ॥१४॥
अंगवज्जाणं सत्तहं सहस्स मुत्तं सतसहस्सा विती कोडी वत्तियं, अंगस्स सतसहस्सं सु कोडी वित्नी अप्परिमित बत्तियं, एते चिउबीस, तथा गाणितं १ जोतिस २ वागरणं ३ सहसत्थं ४ घणुव्वेदो ५, एसा गुणतीसा, जाणि वा सूयगडे भणिताणि ।
एत्थ पसंगा- मज्जादातिक्कमेण पवत्तणाणि । एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जाब दुक्कर्षति ।। सूत्र | तीसाए मोहणीयट्ठाणेहिं ।। सूत्रं ॥ ताणि पुण इमाणि तीसं, अह खलु अज्जो! मोहणिज्जट्ठाणाई जाई इमाई-इत्थी वा या परिसो वा अभिक्खणं २ आयरमाणे वा समायरमाणे वा मोहणिवत्ताए कंमं पकरेति, तंजथा-जे केइ तसे पाणे, वारि-1 मज्झे विगाहिया । उदएणोकस्स मारेति, महामोहं पकुव्वती॥शाशपाणिणा संपिहित्ताणं सोयमावरिय पाणिणा अंतोणदंतं मारेती, महामोह पकुव्वती ॥२॥२॥ जाततेयं समारम्भ, बहुं ओभिया जर्ण । अंतो धूमेण मारेती, महामोहं०॥३॥३। सीसंमि जो पहणती, उत्तमंगंमि चेतसा । विभज्ज मत्थगं, फाले, महामोहं॥४॥४ ॥१४९॥
सीसावेटेण जे केइ, आवेदति अभिक्खणं । तिव्वं अमुहमायारे, महा० ॥५॥५। पुणो पुणो विहिणिए, जो दाणं उवहणे जणं । फालेण अदु डंटेण, महा०॥६॥६। गूढायारी निगहेज्जा, माय मायाए छायए। असश्य
दीप
अनुक्रम [११-३६]
CIRMEND
... अत्र मोहनीयस्थानानि वर्णयते
(162)
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४] मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥ १५०॥
वाओ णिण्हाती, महा० ॥ ७ ॥ ७ । जेणं सिया अभूषणं, अकंमं अत्तर्कसुणा । तुमं एतं अकासिण्णु, महा० ॥ ८ ॥ ८ । जाणमाणो परिनाते, सच्चामोसाणि भासती । अज्झणि अरये, महा० ॥ ९ ॥ ९ । अणासायरस णयवं, दारं तस्सेव घंसिया । विपुलं चिक्खोभति ताणं, किच्चाणं पडिवाहिरं ॥ १० ॥ उवकसंतंपि जपेत्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं । भोगभोगे वियारेति, महामोहं० ॥ ११ ॥। १० । अकुमारभूते जे केली. कुमारभूतेऽहं वदे । इत्थीविसयहीए, महामोहं० ||१२|| ११ | अयंभचारी जे केई, बंभचारित वदे । गद्दभेव गवां मध्मे विस्सरं । नदी नदं ।। १३ ।। अप्पणी अहिते वाले, मायामोस बहुं सयं । इत्थीबिसयगेहीए, महामोहं० ॥ १४ ॥ १२ ॥ जं निस्सिओ उ वहती, जससाऽहिगमेण य। तस्स लुग्भइ वित्तंसि महामोहं० ।। १४ ।। १३ । इस्सरेणऽवु गामेण, अणिस्सरे इस्सरे कते । तस्स संपग्गहीयस्स, सिरी अतुलमागता ॥ १६॥ इस्सादोसेण आइडे, कलुसाऽतुलचेतसा । जे अंतरागं चेतेती, महामोहं० ॥ १७ ॥। १४ । सप्पी जथा अंडपुढं, भत्तारं जो विहिंसती सेणावतिं पसत्थारं, महामोहं० ।। १८ ।। १५ । जे णायगं च रस्स, णेतारं णियगस्स वा । सेट्ठि बहुरथं हंता, महामोहं० ||१९|| १क्षा बहुजणस्स णेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं । एतारिसं नरं हंता, महामोहं० || २० || १७ | उवहितं पडिविरतं, संजतं तु समाहितं । विउकंम धंमा सेज्जा, महा० ॥ २१ ॥ १८ । तहेब णंतणाणीणं, जिणाण वरदक्षिणं । तेसिं अवणिमे वाले, महा० ॥ २२ ॥ १९ | नेपाउयस्स मग्गस्स, बुट्टे अवहरती बहुं । तं तप्पियं नो मासेति, | महा० || २३ || २० || आयरियउवज्झारहिं सुते विणयं च गाहिते । ते चैव खिंसती वाटो, महा० ॥२४॥२१॥
(163)
मोहनीयस्थानानि
॥ १५०॥
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
ध्ययनेमा
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाआयरियउवमायाणं, संमं न पडितप्पति । अपडिपूयए थद्धे, महा०॥ २५॥ १२ अवहुस्सुतेवि जे केई, सुतणं माहनीय
पधिकत्धति । सजझायवायं वयति, महा० ॥ २६ ॥ २३ ॥ अतवस्सिए य जे केई, सवेण पषिकस्थति। सव्वलो-1 स्थानानि भपरे तेणे, महा०॥ २७ ॥ २४ । साहारणमि जे के, गिलाणमि उपट्टिते । प ण कुब्बती किंचि, मजपेस णाला कुब्बती ॥ २८ ॥ सढे णियडिपणो णु, कल्लुसाउलचतसे । अप्पणो य अणाधीए महा०॥ २९ ॥ २५ । जो कहाधिकरणाई, संपयुजे पुणो पुणो । सबसिस्थाय भेयाए, महा॥३०॥२६॥ जे य आहंमिए जीए, संपयुंजे पुणो पुणो । सहाहतुं सहीहेतु, महामो०३१ ॥ २७॥ जी य माणुस्सए भोप, अदुवा परलोइए । तिप्पयंतो आसयति, महा०1४ ॥३३ ।। २८ ॥ इही जुत्ती जसो वणो, देवाणं बलबीरियं । तेसिं अवंनिम बाले, महा०॥ ३३ ॥ २९ ॥ अपस्समाणो पस्सामि, देवा जक्खा य गुज्झगा। अण्णाणी जणपूयट्ठी, महा०॥ ३३ ॥३०॥ एते मोहगुणे बुत्ता,कम्मंता चितवद्धृणा । जे तु भिक्खू विवज्जेता, चरेज्जत्तगवसए ॥३४॥ पुब्बि ताय विजाणेज्जा, किच्च्याकिचाई पंडितो। तो अकिच्चं विवज्जेज्जा, किच्चाई सेवए विदू ॥ ३५ ॥ पत्ते अणुत्तरे घमे, तबेण विविहेण तु । ततो वमे सए दोसे, विसं आसीविसो जहा ।। ३६ ॥ सवत्तदोसे मुद्धप्पा, कालं किच्चा समाहिणा । तिसरीरविणिमुक्को,
असरीरं गच्छती गति ॥ ३७॥ एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जाव दुक्कडंति ॥ ... सूत्र एक्कतीसाए सिद्धादिगुणेहिं ।मत्र।। सिद्धाण आदीए गुणा सिद्धादिगुणा,सिद्धेहिं सहभाविन इत्यर्थः ते य अपज्जवसिया,ते य । हाइमे,राजथा से ण परिमंडले १ न बढ्ढे २ न तैसे ३ ण चतुरंसे ४ ण आयते ५ ण किण्हे ६ ण णीले ७न लोहिए ८ न हालिदे ९
दीप अनुक्रम [११-३६]
॥१५
(164)
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
प्रतिक्रमणान सुक्किले १० न सुब्भिगंधे ११ न दुन्मिगंधे १२ न तिते १३ न कडुए १४ न कसाए १५ न अंबिले १६ न मधुरे १७ सिद्धादिध्ययने तीन कक्खडे १८ न मउए १९ न गरुए २० न लहुए २१ न सीतो २२ न उण्हो २३ न निद्धे २४ न लुक्खे २५ न संगे २६ नागुणाः योग ॥१५२॥
I रुढे २७ न काओ २८ न इत्थी २९ न पुरिसे ३० न नपुंसके ३१।। अहवा खीणाभिनिचोहियनाणावरणिज्ज पंच, खीणाचरखुद-1 संग्रहाच 18 सणावरणिज्जे एवं णव,खीणसातवेदणिज्जे खीणअसातवेदणिज्जे एवं दुबिहे,मोहणिज्जे खीणदसणमोहणिज्जे खीणचरिचमोहणिज्जे,
खीणनिरयाउए ४, खीणसुभणामे खीणअसुमणामे. खीणउच्चगोए रखीणनीयागोए २ खीणदाणं तराइए०५, एते एक्कतीसे सिद्धा-ल
दिगुणा । एत्थ पडिसिद्धकरणादिया जाव दुक्कडंति ।। सूत्र | पतीसाए जोगसंगहेहि।। ते य इमे बत्तीस जोगसंगहा-धमा सोलसविध एवं सुकंपि,एते पत्तीस जोगाणं संगददेतू , आया आला आलोयणादि श्मे धत्तीस संगहजोगा,तत्थ आलोयणेणं अनि सम्यग्मनोवाक्काययोगाः संगृह्यते, अहवाणाणादियावाराः संगृवंते, तत्थ
| उदाहरण-उज्जेणी नगरी,जितसत्तू राया,तस्स अट्टणो मल्लो सब्बरज्जेसु अजयो,इतो य समुद्दतडे सोप्पारगं नगर, तत्थ सीहगिरी हराया, सो य मल्लाणं जो जिणति तस्स चहुं दबं देति, सो अट्टणो तत्थ गंतूण वरिसे वरिसे पडाग हरति, राया चितेति- एस
अण्णाओ रज्जाओ आगतूणं पडागं हरति, एस ममं ओभावणत्ति पडिमई मग्गति, तेण मच्छिको एको दिवो वस पितो, बलं च | से विण्णासितं, णातूण पोसितो, पुगरवि अमृणो आगतो, सो य किर मल्लजुद्धा होहिंतित्ति अणागतं चेव सकाओ नगराओ अप्पणो पत्थयणस्स अवलं भरेतूणं अव्वाबाई एति, संपत्तो सोपारक, जुई पराजितो मच्छियमल्लेणं, गतो सय आवास, चितेति-एयस्सा बड्डी तरुणगस्स, मम हाणी, अण्णं मग्गति मल्ल, सुणति य सुरद्वाए अत्थित्ति इंतेण भरुकच्छाहरणीए गामे दुरुल्लकाविधाए
EXPERIENDS
+ गाथा: ||१२||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
... अत्र योग-संग्रहानां वर्णनं क्रियते
(165)
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६] / [ गाथा - १,२],
निर्युक्तिः [ १२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१५३॥
करिसओ दिट्ठो. एक्केण इत्थेणं हलं वाहेति एक्केण फलीहे उप्पाडेति तं दणं ठितो. पेच्छामि से आहारति अबला मुक्काभज्जा व से भतं गहाय आगता, पत्थिकाकरस्स उज्झियघडओ पच्छति, जिमितो सण्णाभूर्मी गतो. तत्थवि परिक्खति, सध्वं संवचितं, बेकालिकं वसहितं तस्स घरे मग्गति, दिण्णा, ठिता, संकहाए पुच्छति का जीविका ?, तेण कहिते भणति अहं अट्टणो, * तुम इस्सरं करेमित्ति, तीसे महिलाए कप्यासमुल्लं दिष्णं, सो य अवल्ला सवलेा उज्जेणिं गता, तेणेव वमणचिरेणाणि कताणि, पोसितो, निजुद्धं च सिक्खावितो, पुणरचि महिमाकाले तेणेव विहिणा आगतो, पढमदिवसे फेलही मल्लो मच्छियमल्लो य जुद्धे एक्को अजितो एक्को अपराजितो, राया चितियदिवसे होहितित्ति अतिगतो, इमेवि सए सए आलए गतो, अट्टणेण फलहीमल्लो भणितो- कहि पुत ! जं ते दुक्खावितं, तेण कहितं मक्खता से दिण्णेण संमदणेणं पुणष्णवीकतं, मच्छियस्सवि रण्णा संमदका विसज्जिता, भणति अहं तस्म पितुंपि न बीहेमि सो को बराओ ?, वितियदिवसे समजुद्धा, ततियदिवसे अप्पप्पहारो | णीसहो वहसाहं ठितो मच्छिओ, अट्टणेण भणितो- फलहित्ति, तेण फलहिग्गहेण कांडतो सीसेण कुंडिकग्गाद्देण सक्कारिवो, गतो उज्जेणि, पंचलक्खणाणं भोगाणं आभागी जातो, इतरो मत। एवं जथा पडागा तथा आरोहणपडागा, जथा अडणा तथा आयरिया, जथा मल्ला तथा साधू पहारा अवराहा, जो सो गुरुणो आलोएति सो पीसल्लो णेव्वाणपडागं तेल्लोक्करंगमज्जो हरति, एवं आलोयणं प्रति योगसंग्रहणं भवति एते सीसगुणा १ ॥ इदाणि केरिसस्स मुले आलोइतब्वं १, जो अष्णस्त मुले ण लवति ॥१५३॥ एरिसं एतण पडिसेविर्तति तत्थ उदाहरणं दंतपुरनगरे दंतवक्को राया, सच्चवती देवी, तीसे दोहलओ, कई दंतमए पासाए अभिरभिज्जति, दन्तनिमित्तं घोसावियं रण्णा-जहोचितं मुल्लं देमि, जो न देइ तस्स राया विषयं करेति, तत्थेव नगरे घणमिचो
अ. लोचनाअप्रतिश्रावित्वं
(166)
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणापाणियो, तस्स दोणि मारियाओ,घणसिरी महंती,पउमसिरी उहरिया पियतरियत्ति, अण्णदा सवत्तीण मंडण,पणसिरी भणति- आलोचना ध्ययन
CA एवं गम्विता, किंतुझ ममातो अधिय' जहा सच्चवतीए तहा ते किंपासादो कीरेज्जा', या भणति-अदिन कीरति ॥ तो ण अहंति उब्बरए बार बंधेचा ठिता. वाणियओ आगतो, पुच्छति-कहिं पउमसिरी १, दासीहिं कहितं, तत्थ अतिगतो, पसा-1
विलं ॥१५॥
| देति, न पसीयति, जदि नस्थि न जीवामि, तस्स मिनो दढमित्तो, सो आगतो, तेण पुच्छित, सम्न परिकहेति, भणति-कीरतु, मा एताए मरतीए तुम मरेज्जासि, तुमे मरतेण अहंपि, रायाए घोसावितं तो पच्छण्ण कातव्य, ताहे सो दढगिता पुलिंदगपायोग्गाणि पोचाणि मणियाणि अलतगकंकणे य गहाय अडविं अतिगतो, दंता लद्धा, पुंजो कतो, तणपिंडिताण मज्झे पंधिता सगड भरेता आणीता, णगरं पवेसिज्जतेसु वसभण कवित, खडत्ति पडितो दंतो, जगरगुत्तिएहि दिहो, गहितो य, रायाए उवणीतो, बज्झो णीणिज्जति, तं धणमिचो सोऊण आगतो, तो शयाए पादवडितो विष्णवेति, जथा-एते मए आणाविता, सो पुच्छितो
लवति-एतं न चेव जाणामि कोति', एवं ते अवरोप्परं भणंति, रायाए सबहसाविता पुच्छिता, अभया दिग्णा, परिकहित, द्र पूयेत्ता विसज्जिता । एवं निरवलावेण होतचं आयरिएणं । वितिओऽवि-एक्कण एक्फस्स हत्थे पणामितं किंचि माण वा० अंतरा| |पडितं, तत्व माणितव्वं मम दोसी, इतरणवि ममति २॥
आवतीसु दधम्मत्तर्ण कातव्यं । एवं जोगा संगहिता भवंति. तत्थ उदाहरणं-उज्जेणी नगरी, तत्थ धणवम् वाणिट्रायजा, सा चंप जातुकामो उग्घोसणं करेति जथा णाते, तं अणुण्णवेति धम्मघोसो, तेसु अडवि र अतिगतेसु पुलिंदेहिं बिलूओ-ICTam
॥१५॥ मलितो सस्थो इतो ततो य नहो, सो अणगारो अण्णेण लोगण समं अडवि पविट्ठो,ते म्लाणि खायंतिपाणियं च पिवंति,सो णिमं
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(167)
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
धर्मत्वं
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणातिज्जइ, णेच्छति, अवसरे जाते एकत्थ सिलातले भत्तं पच्चाखाति, अदीणं आहियासेमाणस्स कंबलणाणं उप्पण्णं, सिद्धो । एवं दढध्ययने धम्मवाए जोमा संगहिता,एसा दव्यावती, खत्तावती खनाणं असतीए कालावती ओमोदरियादिसु,भावावतीए इमं उदाहरण-
मधुरा नगरी, लवणो राया, जवुणायक उज्जाणं, अबरेण तत्थ जउणाए कोप्परो दिण्णो, तत्थ दंडो अणगारो आतावेति, सो। ॥१५५|
रायाए णितेण दिडो, तेण रोसेण असिणा सीसं छिण्णां, अण्ण भणंति-आहतो, पच्छा सव्येहिवि मणूसेहिं, कांधोदयं पति तस्स में आवति, कालगतो सिद्धो, देवाण महिमकरणं, सक्कागमणं पालएणं, तस्सविय रण्णो आउडी जाता, वज्जेण भासितो सक्केण, जदि पव्वयसि तो मुच्चसि, पच्चइतो थेराणं अंतिय, अभिग्गई गण्डति-जदि भिक्खागतो वा संभरामिण जमेमि, जदिय जि| मितो तो सेसगपि बिगिचामि, एवं किर तेण भगवता एगमवि दिवसं पाहारितं, तस्सवि दव्यावती, दंडस्स भायावती, एवं दढ-14 धम्मता कातम्या ।। __अणिस्सितावधाणेत्ति, 'थि सेवायां 'न निश्रितमनिश्रित, द्रव्यप्रधानं उपधानकमेव, भावुवधाणं तयो, सो किर। अणिस्सितो कातव्यो इह य परस्थ य, जथा केण कतो, उदाहरणं-अज्ज धूलभहस्स दो सीसा अज्जमहागिरी अज्जमहत्थी य,13 ते महागिरी मुहस्थिस्स उवज्झाया, महागिरी अज्जमुहस्थिस्स गणं दातूण बोक्छिण्णो जिणकप्पो तहवि अप्पडिपद्धता होतुति गच्छपडिचद्धा जिणकप्पपरिकंमं करोति, तेवि विहरंता पाइलिपुत्तं गता, तस्थ सेट्ठी वसुभूती तेर्सि अतिए धम्म सोच्चा णिसम्म सावओ जातो, सो अण्णदा भणति सुहस्थि-भगवं! मज्म दिण्णो संसारनित्थरणाचाओ, मए य सयणस्स परिकहितं, ते न तथा लग्मति, तुम्भवि वाव अबाभियोगेणं गतूणं कहेधात्ति, ते गता, धम्म कथेति, तत्थ य महागिरी पविट्ठो, ते दळूण सहसा उ
दीप
*
अनुक्रम [११-३६]
॥१५५॥
(168)
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
RA
+ गाथा ||१२||
प्रतिक्रमणा हिता, वसुभूती भणति-तुम्भवि अण्णे आयरिया , ताहे सुहत्थी तेसि गुणसंथर्व करेंति, जहा जिणकप्पो अतितो तथावि एते अतिश्रितोध्ययन
एवंविहं परिकम करेंति, एवं तसिं चिरं कहित्ता अणुव्वताणि य दातूण गता सुहत्थी, तेण वसुभृतिणा जेमित्ता ते भणिता-जदिपधानता ॥१५६॥
एरिसओ साधू एज्जा तो से अग्गतो जथा उज्झितगाणि एवं करेज्जाह, एवं दिण्णे महफलं भविस्सति, बिती-14 यदिवसे महागिरी भिक्खस्स पविट्ठो, ते अपुवकरणं दङ्गं चितति- दव्यओ ४, णातं जथा गातो अहंति तहियागहिते भत्ते नियत्तो,भणति-अज्जो! असणा कता, केणं ?, तुम ज कल्लं अन् हितो।। दोवि जणा वइदिसिं गता, तत्थ जितपडिम वंदि&चा अज्जमहागिरी एलकच्छं गता गयम्गपदकं बंदका ।। नस्स कह एलकच्छनाम:, तं पुर्व दसण्णपुर नगरं,तस्थ याचिका एक्क-1 कस्स मिच्छद्दिट्ठीतस्स दिण्णा, वेकालियं आवस्सय करेति पञ्चक्खानि य, मो भणति कि रत्तिं उद्वेत्ता कोई जिमनि, एवं उद्धा
सेति, अण्णदा सो भणति-अहंपि पच्चक्खामि, सा भणति-भंजिहिसि, सो भणति-कि अण्णदावि अहं रति उद्वेत्ता जमेमि, दिणं, देवता चितेति-साविकं उप्पासेनि, अज्ज णं उवालभामि, तस्स भगिणी तत्थेव बसति, तीसे रूबेणं रनिं पहेणगं गहाय आगता, पक्खइतो, साविगाए पारिता. भणति- तुभच्चएहि आलमालेहिं कि ममंति', देवताए पदारे दिणा, दोवि अच्छि-10 गोलया भूमीए पडिता, साथिया मा मम अयसो होहित्ति काउस्सग्ग ठिता, अद्धरने देवता आगता भणति कि माविए !, साह भणति-मम एस अयसोचि, वाहे अण्णम्स एलगस्स अच्छीणि सुपदेसाणि तक्खणमारितस्स आणत्ता लाइताणि, गोसे जणो १५६॥ भणति- तुह अच्छीणि जथा एलगत्सत्ति, तेण सव्वं कहितं, सड्ढो जातो, जणो कोतुहल्लेण एति पुच्छति, सम्बत्थ रज्जे फुर्द,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(169)
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
प्रतिक्रमणा भणति- कतो एसि!, जत्थ सो एलकच्छो, अण्णे भणंति-सोच्चेव राया, ताहे दसण्णपुरस्स एलगच्छत्ति नामं जातं, तत्थ व मय- अतिश्रितोध्ययने गस्स पदओ, तस्स उप्पची जथा इड्डीए ।
पधानता तस्थ महागिरीहि अब्जेहि मत पच्चक्खातं, देवत्ते गता, सुहस्थीवि उज्जेणीए पडिम वंदगा गता, उज्जाण ठिता, मणि॥१५७||
है तो य-वसहि मग्गाहिति, तत्थ एगो संघाडगो भद्दाए सेटिभज्जाए घरं भिक्खतो अतिगतो, पुच्छियतो- कृतो भगवंतो', तेहिं।
भणित-सुहत्यिस्स, वसहिं मग्गामो, जाणसालाओ दरिसिताओ, तत्थ ठिता, अण्णया पदोसकाले आयरिया पलिगिगुंमं अज्झयण परियडेंति, तीसे पुत्तो अवंतिसुकमालो सत्ततले पासाए बत्तीसभज्जाहि सम उवललति, तेण सुत्तविउद्धण सुतं न एतं नाडगंति |
भूमितो भूमिय सुणेतो २ ओतिषणो, बाहिं निग्गतो, कत्थ एरिसंति , जाति सरिता, तेसिं मूलं गतो,साहति-अहं अवंतिसुकुमाभालोति,नलिणिगुम्मे देवो आसि, तस्स उस्सुको मि, पब्वयामि, असमत्थो दीहं सामण्णपरियागं अणुपालेत्ता, इंगिणिं साहेमि
अई, तेवि माया से णापुच्छितति णेच्छति. सयमेव लोय करोति, मा सयंगहीतुत्ति दिष्णं लिंग, मसाणे कथारकुंडगं, तत्थ भरी पच्चक्खाति, सुकुमालएहि य पाहि लोहितगंधेण सिवाए सपेल्लिकाए आगमणं, सिया एक खाति एक पेल्लिगाणि,पढमे जंणुगाणि ४ वितिए ऊरू ततिए पोई, कालगतो, गंधोदगं पुष्फवासं, आयरियाण आलोयणा, भज्जाण परंपरं पुच्छा, आयरिएहिं कहितं, सड्डी लसुण्हाहि समं तं गता मसाणं, पव्यहताओ य, एगा गुधिणी णियत्ता, तीसे पुत्तो तत्थ देवकुलं कारेति, तं इयाणि महाकालं जातं, १५७ ॥ लोकेण परिग्गहित, एतं उत्तरचूलियाए भणित पाडलिपुत्ते । सम्म अपिस्सिततवो महागिरीण ४॥
पदाणि सिक्खत्ति, सा दुविधा-गहणसिक्खा आसेवणसिक्खा य, आसेवणसिक्खा जथा ओहसामायारीए पयविभा
SAAREtc
+ गाथा: ||१२||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(170)
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१५८।।
3
गसामापारी व वणितं महणसिक्खाइ भुयं जथा भगवता धूल महसामिणा गहित अणिब्विण्णणं होतूण, गहणसिक्खणं प्रति संमे जोगा संगृहिता तहा इहें भष्णति, तत्थ खितिचण० ॥ १७-११।१३८१ ।। तेण कालेनं अतीतअदाए खितिपतितिं नगरं जितसत्तू राया, तस्स नगरस्स वत्थूणि ऊसण्णाणि, अणं णगरद्वाणं वत्थुपापदि मग्गावेति, तहिं एवं चणगखे से अतीव पुप्फेहि य फलेहि य उतं दिनं तत्थ चणगपुरं निवेसितं कालेण तत्थवि वत्थूणि खीणाणि, पुणोवि मग्गिज्जति, तत्थ एगो वसभो अण्णेहिं पारो एकमि रण्णे अच्छति न वीरति अण्णेहिं बस मेहिं पराइणितुं तत्थ उसभपुरं पुणरवि कालेण उसण्णं पुणोवि महिं कसबो दिट्ठो अतीव पमाणाकितिविसि तत्थ कुसग्गपुरं जातं, तंभि य काले पण राया, तं च नगरं अभिक्ख अग्गिणा दज्झति, ताहे लोगस्स भयउ णणनिमित्तं घोसावेति जस्स घरे अग्गी उद्वेति सो नगराओ निष्छुम्भति, तत्थ महाणसि याण पमादेणं रण्णो चैव घराओ अग्गी उडतो, ते सच्चपतिष्णा रायाणो जदि उरप्पकं ( सपक्खन सासामि तो कहं अण्णंति निग्गतो नगरातो, तस्स गाउयमेते ठाति, ताहे दंडभडभोइयगमादी तरथ बच्चति, भणति कहिं वच्चह ?, आह रायगि कतो एह १, रायगिहातो, एवं नगरं रायसिंहं जातं जदः य राइणी सिंह अग्गी उडतो तदा कुमाराणं जे जस्स पिये आसो हत्थी वा तेण तं नीणितं, सेणितेणं भिभा णिता, रायाए पुच्छिता-केणं किं गणिती, अण्णो भगति-मए इत्थी, एवमादि, सेणिओ पुच्छितो भणति भिंभा, ताहे राया भगति सेणियं एस तव सारो भिभित्ति ?, भणति- आमं, सो य रण्णो सम्पपिओ, ताहे से बीयं नामकं कर्त भिभिसारीति, सो रण्णो पिता लक्खणतोय, मा अष्णेहिं कुमारहिं मारिज्जिहितित्ति न किंचिवि देइ, सेसका कुमारा भडचडकरेण णिन्ति, सैणिको ते दद्दू आद्धति करेति सो ततां निष्फिडितो विष्णातडं गतो, जथा नमोकारे अधियत भोगवाणं
(171)
2
शिक्षायां अभयवृ
।। १५८।।
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१५९॥
निग्गम वेण्णातडे य कासवए । लाभ घर नयण नेष्वग धृता सुस्सूसिंगा दिण्णा ॥ १ ॥ पेसण आपुच्छणता पंडुकुइति गमण अभिसेओ । दोहल नाम निरुत्ती कहिं पिता मेति रायगिहे ||२|| आगम अमच्च मग्गण खड्डग छगणे य कास तं तु । कहणं मातुअतिणणा विभूषणा वारणं मातुं ॥ ३ ॥ तं च सेणियं उज्जेणीतो पज्जोतो रोहको जाति, सो उदिष्णो, सेणिको नीति, अभयो भणति मा संकट, नासेमि, तेण खंधावारनिवसजाणगेण भूमिता दीणारा लोहसंघाडेसु णिक्खता डंडावासहाणे, सो आगतो, रोधित्, जुज्झिता कति दिवसे, पच्छा अभयो लेडं देखि जथा-त डंडा सध्ये सेणिएवं भिण्णा, णास मा पहिति, अहवि अपच्चयो तो अमुकस्स २ डंडस्स अमुगपदेसं खण, तेण खतं, दिडो, नड्डी, पच्छा तो सेणिएणं बलं विलओलितं तेत्रि रायाणो सव्ये कर्मेति ण एतस्स अम्हे कारिचि, अभएण एसा माया कता तेण पत्तीयं । अण्णदा सो अस्थानीय भणति सो मम नत्थि जो तं आणेज्जी, अण्णदा एगा गणिया भणति अहं आणेमि मम सहायिकाओं दिज्जंतु, दिण्णाओ से सत्त वितिज्जकाओ जाओ से रुच्यंति मज्झिमवयाओं, मणुस्सा थेरा, तेहिं समं पवहणेहिं सुबहु एहिं भत्तपाणपत्थयणेण पुत्रि व संजतीणं मूले बिडसत्तिणं गहाय गताओ, अण्णेसु य गामणगरेसु जत्थ संजता वा सङ्ग्रा वा तर्हि तर्हि असतीओ सुछुतरं बहुस्सुताओ जाताओ, रायसिंहं गताओ, बाहि उज्जाणे ठिताओ, चेतियाणि वदंतीओ घरचेतियपरिवाडीए अभयस्स घरं अतिमताओ निर्माहियति अभयो ददहूण उम्मुक्कभूसणाओं सुरूवाओ उडतो, सागतं निसीधियाएति, चेतियाणि दरिसि ताथि, वंदिताणि य, अभयं वंदित्ता निविडाओ, जमभूमओ निक उमणणाणपरिणेष्वाणभूमीओ य वंदावेति, पुच्छति कतो?, ताई कति उज्जेणीए उम्मुक्को (अमुक) वाणिय पुतो, तस्स भज्जाउ, सो कालगदो, अम्हे पव्वतुकामाओ, न सीरति पव्वताहि
(172)
शिक्षायां अभयवृत
।। १५९ ।।
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
FE
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा | वंदितं पढितवएणंति, भणिताओ-पाहुणिकाओ होह, ताओ भणंति-अभत्तट्टिकाओ अम्हे, सुचिरं अच्छिना गताओ, चियदि- शिक्ष ध्ययने
बसे अमओ एक्कओ आसेण पए गतो,एह मम घरे पारेहत्ति, भणति-कतं इमं पारणगं,तुम्भेवि पारेह,चिंतेति-मा मम घरं न जाहि-दा ॥१६॥
तिचि, भणति एवं होतु,पजिमितो,संजोतिमं मज्जं पज्जितो, सुत्तो, ताहे आसरहेण पलाइतो,अंतरा य अण्णेवि रचा पुग्वं ठविता, ४. एवं परंपरएण उज्जेणिं पावितो,उवणीतो पज्जोयस्स,भणितो य-कहिं ते पंडिच्चीसो भणति-धम्मच्छलेण वंचितो,निबद्धो,पुवाणीता या C से तत्थ भज्जा, सा उवणीता, ताए का उत्पत्ती
सेणिकस्स विज्जाहरो मित्तो, तस्स चिरं पीति होतुत्ति सेणिकेण सेणा भगिणी दिग्णा, निम्बंधे कते, सा य विज्जा-1 हरस्स इट्ठा , एसा धरणिगोयरी अम्हं बहाएत्ति विज्जाहरीहिं मारिता, तसे धूता, सा तेण मा एसा मारिज्जेज्जा सेणियस्स उवणीता, खिज्जितो य, सा जोथ्वणस्था अभयस्स दिण्णा, सा विज्जाहरी अभयस्स इट्ठा, सेसिकाहिं महिलाहि | मातंगीओ ओलग्गिता, ताहिं विज्जाहिं जथा नमोक्कारे चक्खिदियउदाहरणे जाव पच्चंते उज्झिता , ताबसेहिं दिवा, पुच्छिता-कतोसित्ति', कहितं, तत्थ सेणिकस्स पुब्बगा ताबसा, तेहिं नत्तुका अम्हन्ति सारविता,सिवाए उज्जणि जेतुं दिण्णा । |एवं तीए समं अभयो वसति, तस्स पज्जायस्स चत्तारि रतणाणि- लोहधो लेहहारिओ १ अग्गिभीरू रथो २ पल
गिरी हत्थी । सिवा देवित्ति, अण्णदा सो लोहजंघो भरुकच्छं विसज्जितो, ते य चिंतति-एसो एगेण दिवसेणं एति पंच- १६०॥ ला वीसजोयणाणि, पुणो पुणो अम्हेहिं सद्दाविज्जामो, एतं मारेमो, जो अण्णो होहिति सो गणिएहिं दिवसेहिं एहिति, एश्चिरंपि
नाव काल सुहिता होमोनि तस्स संपलं पदिष्णा रायाणो, सो नेच्छति, साधे बीधीए से दवावितं, तत्थवि पुब्बसंजोगिता विसमो
दीप
SAGAR
अनुक्रम [११-३६]
(173)
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ot
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाला दगा दिण्णा, सेसकं संबल हरितं, सो कतिवि जोयणाणि गंता नदीतीरे खामिति जाव सकृणो वारेति, उद्रेत्ता पचावतो. पुणो H ध्ययने र गहुँ पाखातो, तस्थवि वारितो, ततियपि-णिवारितो, तेणं चिंतितं- भवितव्य कारणेणंति, पज्जोतस्स मूलं गतो, निवेदित राय:
कजं, तं च से परिकहितं, अभयो वियक्खणोत्ति सहावितो, तं च परिकहितं, अभयो भणति-एत्थ अमुकरच दव, एस सप्पो ॥१६॥
है। समुच्छिमो जातो, जदि उपाडित होन्तं तो दिट्ठीबिसेण सप्पेण दट्ठो होतो, तो किं कज्जतु', वणनिगुंजे मुयह, परंमुहं मुक्को,
वणाणि दवाणि, सो महुत्तेण मतो, तुट्ठो राया, भणितो-बंधणमोक्खवज्जं वरं बरेहित्ति, भणति-तुम्भ चेव हत्थे अच्छतु ११ अण्णदा जणलगिरी बियट्टो, ण तीरति गेण्डितु, अभयो पुच्छितो, सो भणति-उदायणो गातउत्ति, सो उदायणो किहं बद्धोति। तस्स पज्जो#तस्स धूता अंगारवती, अत्तिया वासवदत्ता, बहुयाओ कलाओ सिक्खिता, गंधब्बे उदायणो पधाणो, सो य कोसंचीए सयाणियशामिगावईए य पुत्तो, सो घेप्पतत्ति, केण उवाएण, सो किर जे हत्थी पेच्छति तत्थ गायति जाव बद्धपि न याणति, एवं कालो है वच्चति, पज्जोतेण जंतमओ हत्थी कतो, तस्स बिसयंते चारिज्जति, तस्स वणचरेहिं कहितं, गतो, तत्थ खंधारो पेरते अच्छति,
सो य गायति, हत्थी ठितो, दुक्को गहितो य, आणिो य, भणितो-मम धुता काणा ते पेच्छसु मा, मा सा तुम दट्टणं लज्जिहि४ तित्ति , तीसेवि कहितं-उबझाओ कोढिओ मा दग्छिसिचि, सो य जवणियंतरितो ते सिक्खावेति, सा तस्स सरेण हीरति, कोढि-18 है ओत्ति ण जोएति, अण्णदा चिंतति-जदि पेच्छामिचि चिन्तती अण्णहा पढति, तेण रुद्वेण भणित-किं काणे विणाससे, मा
भणति- कोढिका ण याणसि अपाण', तेणं चिंतित-जारिसो अहं कोढिओ तारिसा एसा काणति, जइणिया फालिता, दिन अवरोप्पर संजोगो जातो, नवरं कंचणमाला जाणति दासी, अम्मघाती य सच्चेव , अमया आलाणखंभाओ जलगिरी फि-!
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥१६॥
(174)
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणामा डिओ, रायाए अमओ पुच्छिओ, उदायणो गायउत्त, ताहे उदायणो भणति-भवतीए हस्थिणिकाए अहं च दारिका य गायामो. पर ध्ययन। जहाणियंतरिता गीतं गायति, गहितो, इमाणिवि पलाताण, एस बितीओ उ बरो२ । अण्णे भणति-उज्जिाणिगाए गतो पज्जो
| तो, इमा दारिका णिमाता, तत्थ गाविज्जिाहितिति णिज्जति, तस्स उदायमस्स जोगंधरायगो अमच्चो, सो उम्मत्तकवेसेण पढ
ति-जदि तां चैव तां चैव, तां चैवायतलोचनाम् | न हरामि नृपस्याथै, नाहं जोगंधरायणः ।।१॥ सो य पज्जोतेण दिडो, ठितदओ व काइयं पोसिरितो, णादरो कतो पिसाओत्ति, सा कंचणमालावि भिष्णरहस्सा, बसंतओ मेंठो, चत्तारि मुत्तपडियाओ Pाविलइशाओ, पासवंती वीणा, कच्छाए बसंतीए सकुंतो नाम मती अधलओ भणति-कथायर्या वध्यमानायो, यथा रसति हस्तिनी ।
योजनानां शतं गत्वा, प्राणत्यागं करिष्यति ॥१॥ ताहे सव्वजणसमुदयमजसे उदायणो भणति-एष प्रयाति सार्थः, कांचनमाला | वसंतकवैव । भद्रवती घोषवती, वासवदत्ता उदयनश्र.॥१॥ पधाविता हस्थिणी, नलगिरी संनज्झति ताव पणुवीसं जोयणाणि | | गता, संनद्धो, पच्छतो लग्गो, अहदागते पडिका भिण्णा, जाव ते उपसिंथति ताव अण्णाण पंचवीस, एवं तिष्णिवि, णगरं च।
अतिगतो । अण्णदा उज्जेणीए अग्मी उढितो,सो धूलीएवि जलति पाहाणेविहि इट्टिकाहिवि, णगरं उज्झति,अभओ पुच्छितो, ॥१६२॥ सो भणति-विषस्य विषमौषधं अने: अग्निरेव, ताहे अम्गीतो अण्णो अग्गी कतो. वाहे ठितो, सतिओ बरो, सोवि तहेब अच्छतानि।
७ ॥१६ अण्णदा उज्जेणीए असिवं उद्वितं, अमयो पुच्छितो भणति-अम्भितरियाए अत्थाीए देवीओ विभूसिताओ एज्जंतु, जा तुम्मेठी रायालंकारविभूसिते दिडीए जिणति तं मम कहेज्जाह, तहेब कतं, राया पलोएति, सब्बाओ हेडाहातिओ, सिवाए राया जिणितो, कहित-तव घुल्लमातुगाए, मणति-रति अवसणा कुंभवलीए अच्चणियं करेतु, जं भूतं उद्देति तस्स सहे करं शुम्भत, तहेव कर्त, II
दीप
॥
अनुक्रम [११-३६]
(175)
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
आयं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१६३॥
"
एवं चउक्के अड्डालए य, जाहे सा देवता सिवारूण वासति ताहे से मुखे कूरं ठुमति, भणति अहं सिवा गोवालगमाताच एवं पर चतुष्कं सव्वाणि णिज्जिताणि, तत्थ चउत्यो बरो४ । अभ्यो चितेति केच्चिरं अच्छामो, जामोति भणति भट्टारगा! वरा दिज्जंतु, वरेहि पुता!, नलगिरिंमि हरिथमि तुम्मे मिठा सिवाए उच्छंगे निवण्णो अग्गिभीरुस्स रहस्स दारुएहिं चितका कीरतु, तत्थ पविसामि राया बिसष्णो, तुट्ठो, विसज्जितो सक्कारितो य, ताहे अभओ मणति- अहं तु जेहिं धम्मच्छलेण आणतो, अहं पुण तुमं दिवसतो आदिच्चं दीवकं कातूण रतं नगरस्स मज्ोण जदि न हरामि ता अग्गिमि अतीमिति तं भज्जं महाय गतो किंचि काल रायगिहे अच्छिता दो गणियदारिकाओ अपढिरुवाओ गदाय वाणियगवेसेण उज्जेणीए रायमग्गोगार्ड आवारिं गेण्डति, अणदा दिट्ठाओ पज्जीवणं, ताहिवि सविलासाहिं दिट्ठीहिं निज्झाइतो, अंजली य से कतो, अतिगतो नियकभवणं, दुर्ति पेसेति, ताहि परिकुविताहिं घाडिता, भणति-राया न होहित्ति, वितिए दिवसे सगियकं आरोसिता, ततिए दिवसे भणिता-सत्तमे दिवसे देउले अम्हं देवजण्णओ तत्थ विरहो. इहरा भाता रक्खति तेण य तारिसओ मणूसो पज्जोतोचि णामं कातूर्ण उम्मत्तओ कओ, भणइ एस मम भाता, सारवेमि णं, किं करोमि एरिसो भाविणेहो, सो महो नही रडतो पुणो पुणो आणिज्जति, उड्डेद्द रे अमुका दारुका! अहं पज्जोतो हीरामिति, सत्तमे दिवसे दूती पेसिता, एड एगउत्ति भणियो, आगतो, गवक्खेणं संतिताए विलग्गो, मणूसेहिं पडिवो बद्धो पहुंकेणं समं, हीरति दिवसतो नगरमज्झेण, बीचीकरणमूलेणं पृच्छिज्जति, भणति- वेज्जघरं निज्जति, अग्गतो आसरहेईि उक्खितो, पावतो रायगि, सेणियस्स कहितं, असं अंडित्ता आगतो, अमरण वारितो, किं कज्जतु १, सकारेता विसज्जितो, पीवी जाता ततो परं, एवं ता अभयस्स उद्वाणपरियाणियं । तस्स सेणियस्स चलणा देवी, तीसे उड्डाणपरि
(176)
।।१६३।।
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
सुलसामुंवा
प्रतिक्रमणा|गाणियं कहिज्जति, तत्थ रायगिहे पसेणतिसंतिओ नागो नाम धिओ, तस्स सुलसा भज्जा, स पुत्तकामो इंदखंदादी नम-पिता ध्ययने सति, साविया णेच्छति, अण्ण परिणेहित्ति, सो भणति-जदि तव पुचो तेण कति, तेण विज्जोवदेसणं तिहिं सतसहस्सेहिला
ख्याः ॥१६ तिणि तेल्लकुलवा पका, सकालए सैलाबो-एरिसा सुलसा साविकत्ति, देवो आगतो साधू, तज्जातियरूवेणं निसीहिका कता,
18| उद्वेत्ता वंदति, भणति-किमागमण, तुम्ह सतसहस्सपार्क तेल्लं, तं देहि, बेज्जेण उवदि, देमित्ति अतिगता, ओतारेतीए मिण द पत्तग, वितिय गहाय निग्गता, तैपि भिवं, तइयपि भिन, तुट्ठो देवो साहति जथाविधि, बत्तीस गुलियाओ देति, कमेण खाए
ज्जासि, बत्तीस पुचा होहिंति, जदा य ते किंचि पयोअर्ण ताहे संभरेज्जासि तो एहामित्ति, ताए चिंतित-को एच्चिरं मीढमुत्ताई
खाहिति , एताहिं सवाहिवि एको पुत्तो होज्जा, पुत्ताओ आधृता बत्तीस, पोई बङ्गति, अद्धितीए काउस्सग्गो, देवो आगतो, हापुच्छति, साहति-सव्याओ खाताओ, सो भणइ-द? ते कतं, एकाउया होहिन्ति, देवेण उवसामितं अस्सातं, कालेणं बनीस पुत्ता
जाता, सेणिकस्स सरिखया वविता,तेऽविरहिगा जाता,देवदिण्णत्ति विक्खाता। एत्तो य वेसालीए नगरीए चेडओ राया हेहय४ कुलसंभूतो, तस्स देवीण अण्णमण्णाणं सत्त धूताओ-पभावती पउमावती मिगावती सिवा जेट्ठा मुजेडा चेल्लणत्ति, सो चेडओ
सावओ, परविवाहकरणस्स पच्चक्खातं, धूताओ ण देति कस्सति, ताओ मातिमिस्समाओ राय आपुच्छित्ता अण्णसिं इच्छित-1
काणं सरिसगाणं देति,पभावती वीतिभए उदायणस्स दिण्णा १ पउमावती चपाए दहिवाहणस्स२ मिगावती कोसंबीए सताणिय-1 ॥१६४॥ लिस ३ सिवा उज्जेणीए पज्जोतस्स ४ जेडा कुंडग्गामे परमाणसामिणो जेट्ठस्स नंदिवद्धणस्स दिण्णा , सुजेहा चेल्लणा य दो
आ.कण्णगाओ अच्छति, ते अंतपुरं परिल्याइका अतिगता, ससमयं नासिं कहेति, सुजेडाए निप्पडपसिणवाकरणा कता, महमकडि
दीप
अनुक्रम [११-३६]
ऊऊऊर
(177)
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
।। १६५॥
याहिं निच्छूढा पदांसमावण्णा निग्गता, अमरिसेणं सुजेडाए फलए रूवं कातूणं सेणियस्स घरमतिगता दिई सेणिएण, पुच्छिता, कहितं, अद्वितिं करोति, वरओ दूतो विसज्जितो, तं भणति चडओ-कदsहं पाधियकुलए देमिति, पडिसिद्धो, घोरतरी अद्विती जाता, अभ्यागमो, जधा णाते, पुच्छिते कहितं, अच्छह वीमत्था, आणेमित्ति, अतिगतो नियगभवणं, उपायं चिंतेत्ता वाणियगरूवं करेति सरभेदवण्णभेदे कातूर्ण बेसालिं गतो, कृष्णंतेपुरममीचे आवणं गण्हति चितपट्टए य सेणियस्स रूवं लिहति, ताहे । ताओ कण्णंते पुरदासीओ कज्जगस्स एन्ति, ताहे सुबहुं देति, ताओविय दाणमाणसंगहिताओ करेति, पुच्छति किं एवं चित्तपट्टए ? भण- सेणिओ अम्ह सामिओ, किं एरिसं तस्स रूवं १ को समत्थो तस्स रूवं का?, जं वा तं वा लिहितं दासचेडीहिं कण्णतेपुरे कहिलं, ताओ भणिताओ-आह ताव तं पट्टकं दासीहिं मग्गितो, ण देटि, मा मज्झ सामिए अव काहिथ, बहुयाहि य जायणिकाहिं दिष्णो, पच्छष्णं पेसवितो, दिट्ठो सुजेडाए. दासीओवि भिनरहस्साओ कयाओ, सो वाणियओ भणिओ, सो भणतिजदि एवं तो इहं चैव आणेमि सेणियं, आणितो, पच्छण्णं सुरंगा खता जाव कृष्णंतेपुरं, सुजेडा चेलणं आपुच्छति-जामि सेणिएण समं, दोषि पधाविताओ, जाव सुजेट्ठा आभरणाणं गता ताव मणुस्सा सुरंगाए उबेडा, चेलणं महाय गता, सुजेट्टाए आराडी कता, | चेडओ संद्धो, वीरंगिओ रहिओ भणति भट्टारमा ! मा तुम्भे वच्चह, अहं आणामिति, निम्गतो, पच्छितओ लग्गति, तत्थ दूरीए एक्को रहमग्गो, तत्थ ते बत्तीसं सुलसापुता ठिता, ते वीरंगतेर्ण एगेण सरेण मारिता, जाव सो ते रहे ओसारेति ताव सेणिओ पाओ, सोवि नियत्तो, सेभिओ सलवति सुजेठ्ठत्ति, सा भगति अहं चलणा, सेणिओ भगति सुजेद्रुतरिया तुमं चैव, सेणिकस्स हरिसोवि विसादोवि, हरिसो कुणालंभेणं, विसादो रथिकमारणेण, चेङ्खणाएवि हरिसो तस्स रूवेणं, विसादो मगि
(178)
चलाणानवणं
॥१६५॥
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा जाणीवंचियाति । सुजेट्ठा य धिररथु कामभोगाणचि पव्वइता, चेल्लुणाए पुत्तो जातो कोणिउत्ति, तस्स का उप्पत्ती।।
कोणिक प्ययने र एग पच्चंत नगरं, तत्थ जितसत्तुस्स पुत्तो सुमंगलो, अमच्चपुत्तो सेणिोति पोट्टिओ, सो ओहसिज्जति, पाणिए उच्चा
लिस्बोस्पचिः ॥१६६
लगं पज्जिज्जति, सो दुक्खाविज्जति सुमंगलेण, सो तेण निव्वेएणं चालतवस्सी पब्बइतो, सुमंगलोवि पितरि मते राया जातो, ४ अणदा सो तेण ओगासेणं वोलेंतो दिवो, पुच्छति, लोगो भणति- एस एरिसं तवं करेति, रण्णो अणुकंपा जाता पुब्बं दुक्खावि&ाओति,निमंतिओ, मम घरे पारेहित्ति, मासखमणे पुण्णे गतो, राया पडिभग्गो, न दिण्णं, पुणोवि उहितं पविट्ठो, संभारितो,
पुणो गतो, निमंतेति, आगतो, पुणोवि पडिभग्गात्ति, पुणोऽपि उट्टियं पविट्ठो, पुणोवि निमंतेति तइयं, तइयाएवि अणातो चारबालेहिं पिट्टितो, जदिहेल्लाओ एति ततिहल्लाओ राया पडिभग्गति,सो निग्गतो, अद्धितीए अहं पब्वइतो मि तहावि धरसितोx एतेणंति निदाणं करेति,एतस्स बधाए उववज्जामित्ति, कालगतो अप्पिट्टितो वाणमंतरो जातो, सोवि राया तावसो पव्वइतो, वाणमंतरो जातो, पुव्वं राया सेणिओ, कोणिओ कुंडसमणो जं चेव चल्लणाए पोड्ढे उववण्णो से चव चिंतेति- किह रायाण
अच्छीहिवि ण पेच्छेज्जति, तीए चितित-एयस्स गम्भस्स दोसोति, गम्भपातणेदिवि न पडति, दोहलकाले दोहलो, कह:★ सेणियस्स उदरवलिमसाणि खाएज्ज, अभतरे परिहाति, न य अक्खाति, निबंधे साविताए कहित, अभयस्स कहितं, ससगचंका मेणं मंस कप्पेत्ता पलीए उवरि दिग्ण, तीसे ओलोगणगताए पेच्छमाणीए दिज्जति, राया अलिगपच्छिताई करेति, आहे सेणिय ॥१६॥ उचितति ताहे अदिती उप्पज्जति, जाहे गम्भ चितति किह सम्बंपि खाएज्जामि', एवं माणिता पवहि मासहिं दारओ जाती।
रग्णो निवेदितो, तहो, दासीए छडावितो असोगवणियाए,सेणियस्स कहितं,आगतो,अंबाडिया-कीस पढमधुत्तो उजिातोतिी, गतो
दीप
अनुक्रम [११-३६]
CREENA
(179)
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१६७॥
असोमवमितं तेन सा उज्जोविता, सो भणति असोगवणचंदउत्ति, असोगचंदुति नामं च से कतं, तत्थ य कुक्कुडपिच्छेणं कार्णगुली से विद्धा सुकुमालिया, सा ण पाउणति सा कुणिया जाता, ताहे से दारगरूयेहिं कर्त नामं कुणिओसि, जाहे य किर तं अंगुलिं पूर्व गलिति सेमिओ मुखे करेति ताहे ठाति, इतरहा रोवति, सो य संवति । इतो य अण्णे दो जुत्ता जमला चेल्लणाए जाता- इल्लो विहल्लो य, अण्ण सेणियस्स बहवे पुत्ता अण्णासिं देवीणं, जाहे य किर उज्जाणिकाए खंधावारं वा जाति ताहे चेल्लणा कूणियस्स गुलमोदए पेसेति, हल्लविहल्लाणं खंडकते, तेणं बेरेणं कूणिओ चितेति ऐते सणिओ ममं देतित्ति पदोसं वहति, अण्णदा कृणियस्स अडुर्दि रायवरकष्णाहिं समं विवाहो कतो, अट्टओ दाओ जाव उप्पि पासादगतो विहरति । एसा चेल्लणाए उत्पत्ती कहिता ॥ सेणियस्स रण्णो फिर जावतियं रज्जस्स मोल्लं तावतियं देवदिष्णस्स हारस्स सेतणगस्स व गंधहस्थिरयणस्स मोल्लं, तेर्सि उड्डाणपरियाणियं कहेतव्यं, हारस्स का उत्पत्ती, कोसंबी नगरी, धिज्जातिगिणि गुब्विणी पति भणति घतमोल्लं विडवेहि, कं मयामि, भणति रायाणं पुप्फेहिं ओलम्गाहि, ण य वारिज्जहिसि सोय ओलग्गितो पुप्फफलादिएहिं एवं कालो बच्चति । अण्णदा पज्जोतो कोसचीं यच्चति, सो य सताणिओ तस्स भयेणं जउणदक्खिणकूलं उद्ववेत्ता उत्तरं कूलं एति, सोय पज्जोतो न तरवि जउणं उत्तरिउं, कोसंबीए दक्खिणपासे खधावारं निवेसहत्ता तावेति, जे य तस्स तणहारिमादी वेसिं वातघोडएदि गंतूणं कण्णणासा छेदिज्जति, सताणिकमणूसा एवं परिवखीणा, एगाए रतीए पलातो, तं च तेण पुष्फलुडिकागतेणं दिहुं रण्णो य निवेदितं, राया तुट्टो भणति भण किं पदमि १, भणति जा बंभणीं पृच्छामि, पुच्छिता भणति अम्गासणे कूरं मग्गाहिति, एवं सो जेमेति दिवसे दिवसे दीणारं लमति दक्षिणं, एवं ते कुमारामच्चादि चिंर्तिति-एस रण्णो अन्मासिओ दाणमहितो कीरहति देवि देवि,
(180)
हारादीनामुत्पचिः
॥१६७॥
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ट्रिनाइत्पतिः
CA-NCCC
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा खद्धादापिओ जाता, पुत्तावि से जाता, सा तं बहुकं जेमतब्ब, ण जीरति ताहे वमेति, जिमितो जिमितो दीणारं लभति, पच्छाहारादीध्ययने
से कोढं जातं, अभिग्रस्तो तेण, ताहे कुमारामच्चा भणति पुत्ते विसज्जेह, तुम्भे अच्छह, ताहे से पुत्ता जेमेति ताणवि तहेच मणंति, ॥१६८॥
| पितुणा लज्जितुमारदा, पत्थतो से परं कतं, ताहे ते सुहाआ न तहा पट्टितुमारद्धाओ, पुत्तावि णाढायंति, तेणं चिंतित एताणि मर्म दव्येण हिताणि मम व विहसंति, तह करेमि जहएताणिवि वरुण पावंति । अण्णदा पुत्ता सहाविता, भणति- पुत्ता। मम किं जीवितणं, अम्ह कुलपरंपरागतो पसुपथो तं करेमि, तो अणासयं काहामि, तेहिं से कालओ भो दिण्णो, सो ट। तेण अप्पगं उल्लिहावेति उव्वलणियाओ पक्खावेति, जाहे णायं सुगहितो एसो कोढेणति ताहे लोमाई ओक्खणति, फुसत्ति एति , ताहे मारेचा भणति-तुम्भेहिं चेब खाइतब्बो, तेहिं रुहतो, कोटेणं गहिताणि, सोवि उद्वत्ता गट्ठो, एगत्थ अडवीए पब्बतदरीए णाणाविहाणं रुक्खाणं तयपत्नफलाणि य पडियाणि तिफला य पडिता, सो सारदेण उण्हेण कक्को जातो, |तं निविष्णो पियति, तेण पोई भिण्णं, सोहिते सज्जो जातो, आगतो सगिह. जणी भणति-किह गहुँ , भणति-देवेहिं नासितं, ताणि पेच्छति सडसडेन्ताणि, भणति-किह तात! तुम्भे', खिसणा, ताहे ताणि भणंति-तुमे पाविताणि अम्हे एयमवयी, भणति-15 चादति, सो जणेण खिीसतुमारद्धा,ताहे नवा गतो रायगिह, दारपालिएण समं दारे बसति,तस्थ वारजक्खीए जो चरुओ तं भुजति,शि
अण्णदा तुडेरगा बहु खाइता, सामिस्स समोसरणं, सो बारपालिओ तं ठवेत्ता भगवतो बंदओ गतो, सो दारं न छड्डीति, तिसाइ- लातो मतो, चाबीए मंदुक्को जातो, पुच्चभवं सरति, उत्तिष्यो, पधाइतो सामि वंदओ, सेणिको गीति, तत्थ एक्केण अस्सकिसोरिण ॥१६॥
अक्कतो मतो देवो जाता ।। सक्को सेणियं पसंसति, सो समोसरणे सेणिकस्स मूले कोढिकरूवेण निविट्ठो, सामि चच्चरिक्काहिं
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(181)
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा कोढोपत्तणिगाहिं सिंचति, तत्व सामिणा छीतं, सो देवो भणति-भर, अभएण छीतं, भणति-जीव वा मर वा, सेणिएण छीतं, ध्ययने
भणति-चिरं जीवाहि, कालसोपरिएण छीतं, भणति-मा जीव मा मर, सेणिओ रुहो भट्टारए मर इति भाणिते, मणुस्सा सण्णिता॥१६९॥
उडिते समोसरणे ममं उवणेज्जाह, सोवि पलाओ, न तीरति गेण्हितूणं, नातो देवोत्ति, गतो घरं, वितियये दिवसे पए गवो पुच्छति को सोति ?, ततो से पुब्बवुत्ततं भट्टारगो परिकहति जाव देवो जातोति, तो तुम्भेहिं छीतेहिं किं एवं भणति ?, भगवं| आह-मम भणति-कीस संसारे अच्छसि, णेवाणं गच्छति, तुम जाव जीवसि ताव मुहं, मतो नरगे जाहिसि, अभयो इहवि चेझ्यसा-| धुपूयाए पुण्णं समज्जिणति, मतो य देवलोगं जाहिति, कालो जदि जीवति ता दिवसे २ पंच महिसकसताणि मारेति, मतो यर नरगं जाति, सेणिओ सामि भणति- भगवं! आणाहि, अहं कीस नरकं जामि ?, केण वा उवाएणं नरकं न गच्छेज्जा, सामी | मणति-जदि कालसोयरियं सूर्ण मोएहि जदि य कविल माहगिं भिक्खं दवावेहि तो तुमंपि न गच्छेज्जासि नरकं, सो तेसिं मूलं गतो, जवीमंसिता य गं सव्वपगारेहि, णेच्छंति, से किर अभवसिद्धीओ, धिज्जातिकीणी य कविला, न पडिबज्जति जिणवयणं, सेणि
एण गंतूण धिज्जातिगिणी भणिता सामेण-साधू वंदाहि, णेच्छति, भणिता-मारेमि, तहवि णेच्छति, कालोवि णेच्छति, भणतिमम गुणेण एसिओ जणो सुहितो नगरं च, को व एत्थ दोसोचि, तस्स पुत्तो सुलसो नाम, सो अभएण उवसामितो, सो किर५
कालो मरितुमारधी, तस्स पंचहि भहिससतेहिं ऊणं अहे सचमाए पायोग्गं, अण्णदा तेणं पुत्तेण पंच महिससता से पला-18|॥१६९॥ 1 विया, तेण विमंगेण दिट्ठा माराविता, तस्स य मरणकाले सोलस रोगातका पादुम्भूता, अस्सायबहुलताते य नरकपडिरूवपोग्ग-IPI I लपरिणामो संचुनो, विधरीता इंदियत्था जाता, गीतं सुतिमधुरं अक्कोसंति मण्णति, मणोहराणि रूवाणि विकताणि, खीरं खंड-14
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(182)
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा सक्करोवणीत पूइयंति मण्णति, चंदणाणुलेवणं मुंमुरं वेदेति, हंसतूलमउई सेज कंटकिसाहासंचयं पडिसंवेदेति, तस्स य तहा- सेचनकध्ययने &ा विहं भावं जाणितण पुरोण से अभयस्स कहितं, ताहे चंदणिकापाणिकं दिज्जति, भणति-अहो मिटुं, मीण य विलिप्पति, पूति-पद
मंसाणि से आहारो, एवं किलिस्सितूण मतो अहे सत्तमं गतो । ताहे सयणेण पुत्तो ठविज्जति, सो नेच्छति, मा नरकं जाइस्सामि , ताणि भणंति-अम्हे ते पावं विरिचिस्सामो, तुम नवरं एक मारेहि सेसग सम्बं परिजणो काहिति, तत्थ महिसगो दिक्खिओ कुहाडो य, रत्तचंदणेणं रत्तकणवीरियाहि य दोधि मंडिता, तेण कुहाडेण अप्पो | आहओ मणाग, मुच्छितो पडितो बिलवति य, सयणे भणति- एयं दुक्खं अवणेह, न तीरतित्ति भणितो, तो कह। | भणह-अम्हे तं विरिचिहामोचि , एतं अधिकारेण भणितं । तेण देवेण सेणिकस्स तुडेणं अट्ठारसर्वको हारो दिण्णो दोण्णि यह
अक्खाडिमतया दिण्णा, सो हारो चेल्लणाए दिण्णो, बट्टा नंदाए, ताए रुवाए कि अहं चेडरूवत्ति कानूणं खमे आवाडिता, तत्थ टा ही एकमि कुंडलजुयलं एकमि देवदूसजुयलं, तुट्टाए गहिताई, एवं हारो उप्पण्णो । सेयणगस्स उत्पत्ती
___एकत्थ वणे हथिजूह, तमि जूहे एगो हत्थी जाते जाते हस्थिवालये मारेति, एगा हस्थिणिगा गुब्बिणी, सा सणिकं २४ ॥१७॥
ओसरित्ता एकल्लिका चरति, अण्णदा कदाइ तणपिंडगं सीसे कानूणं तावसाणं आवासं गता, तेसिं तावसाणं पाएमु पडिता, तेणं नाणं, सरणागतिका वराईका । अण्णदा तत्थ चरंती वियाता पुन, हथिजूहे चरिचा छिद्देण गंतूर्ण थणकं दातूर्ण जाति, एवं का१७०॥ संवढ़ात, तत्थ तावसपुत्तमा पुष्फजातीओ सिंचंति, सोवि सोडाए पाणितं तूण सिंचति, ताहे से नाम कर्त सेयणउत्ति, संवड़ितो, IM मयकालो जातो, ताहे तेणं सो जूहपती गंतूणं मारितो, अप्पणा जूंह पडिवण्णो। अण्णदा तेहिं ताबसेहिं राजा गाम दाहितित्ति
FAE35455
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(183)
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
मोदएहि लोमवेचा राजगिह गीतो, पवेसावेत्ता बद्धो सालाए, अण्णदा कुलवती तेण चेव पुग्यम्भासेणं दुको भणति-किं पुत्ता : प्रतिक्रमणारा ध्ययने असेचणका !, हत्थं से पणामेति, तेण हरियणा सो लएतूण मारितो । अण्णे भणंति-जूद्दपतिणा ठितेण मा अण्णावि एथ वियाहि-प्रकारावासः
चंपाधितित्ति ते तापसकुडगा भग्गा, तेहि तावसेहिं रुद्वेहिं रणो कहितं सणिकस्स, पच्छा सेणिकेण गहितो, एसा सेयणकस्स उप्पत्ती ।
बासश्च पुथ्वभवो तस्स-एको धिज्जातिको जणं जयति, तस्स दुयक्खरा तेण जष्णपाडे ठवितो, सो भणति-जदि सेस मर्म देहि,इहरहा है। पणवि, एतण भणित-होउत्ति, सो ठितो, जं सेस तं साहूणं देति, तेण देवाउकं निवर्दू, देवलोकं गतो, चुतो सेणिकस्स सुतो जातो लणंदिसेणकुमारो, धिज्जातिओपि संसारं हिंडितूण सेचणओ जातो, जाधे किर णदिसणो बिलग्गति ताहे ओहयमणसंकप्पो अच्छति णिम्मदो य, जाती ओधिणा जाणति, सामी पुल्छितो, एवं सम्बं परिकहेति । एसा सेयणकस्स उप्पत्ती ।।
अभओ किर सामी पुच्छति--को अपच्छिमो रायरिसिनि?, सामिणा भणितं-उद्दायणो, अतो परं बद्धमउडो न पचयति, ताहे| अभयस्स किर सेणिएण रज्जं दिण्णं गच्छति, पच्छा सेणिको चिंतेति-मा कोणिकस्स दिज्जतित्ति हल्लस्स हत्थी दिण्णो विहल्लस्सल
देवदिण्णो हारो, अभयमि पव्ययंतमि नंदाए देवदूसयलं कुंडलाणि य हल्लविहल्लाणं दिष्णाणि, महता इड्डीए अभओ समातिओ पिबतिओ । अण्णदा कोणिओ कालादीहिं कुमारेहि समं मंतेति-सेणियं बंधित्ता एकारसभागे रज्जे करमुत्ति, तेहि पडिस्सुतं, ॥१७१॥ सेणिओ बद्धो,पुख्वण्हे अवरोहे य कससतं दवावेति,चेल्लणाए कतोवि ढोकं न देति,मत्तं वारितं पाणियं चेति,ताहे चेलणाए कुमासे वाले ल शा
मंभित्ता सताओयाए सुराए केसे आउट्टिता पविसति,सा किर घुयति सतं वारे पाणियं सव्वं सुरा भवति, तीए पभावणं वेयणं न घेतति । अण्णदा कदाइ पउमावतीए पुत्तो उदाती कुमारो,सो जेमंतस्स हत्थे थाले य मुत्तति,ण य चालेति मारुमिज्जिाहतित्ति जत्तितं
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(184)
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययने
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणामुत्तितं ततिलकं कूर अवणेचा सेसं जिमितो,मातं भणति-अम्मो! अण्णस्सवि कस्सवि एयप्पिओ पुत्तो हाज्जा',सा भणति-दुरात्मा' चेटकेनसह लातब अंगुली किमिए बमंती पिता मुहे काउं अच्छियाइतो, इहरहा तुम रोवास, ताहे से चित्तं मउकं जातं, भणति-किं खाइ मे गुल-IXI
ला युद्ध ॥१७२॥
मोदए पेसेति', देवी भणति-मए ते कता, जेण तुमं सदा पितिवरिओ उदरा आरद्धत्ति सव्वं कहेति, तथावि तुझ पिता न विरज्जसि, तहवि तुमए पिता एरिसं बसणं पावितो, तस्स अद्धिती जाता, सुणेतओ चेव उहाय बाया (हा) मितं लोहडंडं गहाय निगलाणि 15 भीजस्सामीति पधावितो,रक्खवालेहि रण्णो हितेण णिवेदितं-एस भा (पा) बो लोहडंडं गहाय एतित्ति,सेणिओ चितेति-को जाणति केणवि कुमारेण मारिहितिचि तालपुढं विसं खइतं जाव एति ताव मतो, दवण मुठुतरं अद्धिती जाता, ताहे दहितूण घरं आगतो, | रज्जधुरमुक्कतत्ती तं चेव चिततो अच्छति, कुमारामच्चेहिं चिंतितं-नट्ठो राया होतित्ति तंचिए सासणे लिहिता जुणं कातूण | उवणीतं, एवं पितणो कीरति पिंडदाणं नित्थारिज्जतित्ति, तप्पभितिं पितिपिंडनिवेदणा पवत्ता, एवं कालेणं विसोगो जातो।
पुणरवि तं पितुसंतिक अस्थाणियं आसणसयणपरिभोगेण दट्टण अद्धितित्ति ततो निग्गतो चंप रायहाणि करेति ॥ द्रा तेय हल्लविहल्ला तेण सेयणयहत्थिणा समं भवणेसु उज्जाणेसु पुक्खरिणीसु य अभिरमति,सोषि हत्थी अंतेपुरियाओ अभिरमाबेति, |तं पउमावती पेच्छति, णगरमज्ञण गते हल्लविहल्ला,हारेण य कुंडलेहि य देवसयलेण विभूसिता हत्थिवरखंधग तापासितूण. | अद्धितिं गता कूणियं विण्णबेति, सो नेच्छद पितुणा दिण्णंति, एवं बहुसो बहुसो भण्णंतस्स चित्तमुव्वत् ॥ अण्णदा हल्लविहल्ले भणति-रज्ज अद्धद्धेण विरिंचामो सेयणकं मम देह, तेहिं माऽऽसुरुक्खं, चितित देमोति भण्णति, गता य सभवणं, एक्काए रत्तीए सतपुरपरिवारा सालिं गता अज्जकमले, कोणिकस्स कहितं जथा नवा कुमारा, तेण य चितित-नेवि न जाता हत्थीवि, अमरि
RECRUCISCESCOECRECENCE
दीप अनुक्रम [११-३६]
(185)
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाला सेण चेडमस्स दूत पेसेति-जदि गता कुमारा गता, मम हत्थी पेसह, डओ भणति-जहा तुम दोहितो तथा एतेऽवि, किहालचटकेनसह ध्ययने एताणं हरामि', न देमिति, दतो अतिगतो कहितं च, पुणोऽवि दुतो पढवितो-देह न देति, ताहे भणति-जुद्धसज्जा
| होह एमिति, भण्णति-जथा सच्चति, ताहे कूणिएण कालादिया दस कुमारा आवाहिता, तत्थ एक्केक्कस्स तिण्णि तिष्णि II ॥१७॥ हस्थीसहस्साणि तिष्णि तिण्णि रहसहस्साणि तिण्णि तिणि अस्ससतसहस्साणि तिण्णि तिणि मणूस्सा कोडिओ, कृणिकस्सवि एत्तिक,
कसबसंक्खेबो-तेत्तीस सहस्सा हत्थीणं रहाणं च हयाणं च सतसहस्सा,कोडीओ मणूसाणं,तं सोतूण चेडएणवि गणरायाणो मोलता
देसपते ठिता,तेसिपि अट्ठारसण्हं रायीणं समं चेडएणं तओ हस्थिसहस्सा रहसहस्सा मणुस्स कोडीओ तहा चेव, नवरि संखेवो-सत्तावण्णा सत्तावण्णो । ताहे जुद्धं संपलग्गं, कूणिकस्स कालो डंडणादओ, दो चूहा कता कोणिकस्स गरुलबृहो चेडगस्स सागरचूहो, कालो
जुझंतो ताच गतो जाव चेडओ, चेडएण एकस्स सरस्स आगारो कतो, सो य अमाहो, तेण सो कालो मारितो, भग्गं कूणिकस्सा दबक, पडिनियत्ता सए आवासे, एवं दसहि दिवसेहिं दसवि जणा हता चेडएण कालादीया,एक्कारसमे दिवसे कोणिओ अट्ठमभत्ता
गेण्हति, सक्कचमरा आगता, सक्को भणति- चेडओ सावओ अहं न पहरामि, नवरं तुम सारक्खामि, एत्थ महासिलाकंटको ।
स्थमुसले य वण्णेतध्वा जथा पण्णत्तीए, ते किर चमरेण विकुब्बिता, ताहे चेडगसरो किर बइरपडिरूवगे अप्फिडति, गणता&ायाणो णट्ठा सनगरे गता. चेडओ विसालि गतो, रोधकसज्जो ठितो । एवं वारस वासा जाता रोहिज्जंतस्स, तत्थ य रोधए बा ॥१७॥
विहल्ला सेयणएण निम्गता पलं मारेति दिणे दिणे, कुणिओधि परिक्खिहिअति हत्थिणा, अण्णदा चिंतेति-को उवाओ जेण मारेइज्जेज्जा, कमारामच्या भणति-जदि नपरि हत्थी मारिज्जति, अमरिसिओ भणति-मारेज्जउ, ताहे इंगालखड्डा कता, तारे सेयणओगी
EASEARSEARCH
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(186)
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा 8 ओधिणा पेच्छति, न बोलेति खां, ताहे कुमारा भणति-तुम्भ निमित्तं इमं आवदि पत्ता, तोवि णेच्छति,ताहे ते सेयणएण उच्चा-15 ध्ययने
सारिया,सो यताए खाए पडितो रतणप्पभाए उबवणी । तेवि कमारा सामिम्स सीसात्त पोसिरन्तिदेवताए हरिता। तहनि नगरी ॥१७॥
| न पडति कोणिकस्स चिंता। ताहेकुलवारकस्स रुद्वा देवता आगासे भणति-समणे जदि कलवालग, मागहियं गणिर्य समेहिति।। तद लाय असोगचंदए, वेसालिं नगरिं गहस्सती॥१॥ तं सुणेतओ चेव चपं गतो,फूलवारगं पुच्छति, कहितं, मागहिया सहा-15 विता, विडसाविगा जाता, पधाविता । तस्स उप्पत्ती-जथा नमोक्कारे । सिद्धसिलगमण खुडग पडिणिय सिललोहणा य विक्वंभी। साचो मिच्छावादित्ति निग्गतो कृलवालवतो ॥१॥ तावस पल्ली नदिवारणं च कोधोय कोणिए कहणं । मागहियगमण बंदण मोदग अतिसार आणणता ।। २ ।। परिचरणीभासणता कोणिय गाण: कत्ति गमण निग्गमणं । वेसाली जह घेप्पति उदिक्व जाता गवसामि ॥३॥ वेसालि गमण मग्गण सातिकारवण कहण मा तुट्ठा। थूभणरिंदणिवारण इट्ठग निक्वालण पलातो ॥४॥ पडिआगमणं रोहण गहभहलवाहणापतिण्णा या चेहगनिग्गम वहपरिणतो य माता उबालद्धा ।। ५ ।। कोणिको मणह- चडका कि करोमि।,
मणति-जाव पुक्खरिणीतो उडेमि ताव नगरी मा अतीहित्ति, तेण पडिवणं, चडओ सव्वलोहमिग पडिमं गले घिउं ओतिष्णो, साधरणणं सभवर्ण णीतो, कालगतो देवचे गतो । विसालीजणो सब्बो महिस्सरेण मालबालिणं साहारितो। को माहिस्सरोत्तिी,
| ॥१७॥ तस्सेव चढगस्स धूता सुजेडा बेरग्गणं पश्चइता , सा उबस्सयस्स अतो आतावति . ता य पेढालो परिब्बायो। सो विज्जासिद्धो विज्जाओ दातुकामो पुरिसं मग्गति , जदि बभचारिणीए पुनी होज्जा तो सो मुंदरे होज्जा, तं
वज्रुक
दीप
अनुक्रम [११-३६]
ID
(187)
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
महेश्वरो
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाातातिर्गदरठ मिकतामोई कानूण विज्जाए विवज्जासो, तत्थ उउकाले जाते गडभो, अतिसतणाणीहि कहित-ण एताए। ध्ययने
कामकारो जातो, सहायर वडावितो, समोसरणं गतो साहुणीहि सम, तस्थ व कालसंदीवो वंदित्ता सामि पुच्छति-कतो मे भयं, त्पचिर ॥१७५॥
सामी भणति-सच्चातो तातेति, ताहे तस्स मूलं गतो, अवण्णाए भणति-अरे तुम में मारेहिसिति पादेसु पला पाडितो, संवड़ियो, अण्णदा तेण परिवायकेण हितो, विज्जाओ सिक्खावितो, महारोहिणि साहेति, इमं सत्तमं भवं, पंचसु भवग्गहणेसु मारितो, छडे छम्मासावसेसाउगेण मेच्छिता, इहमारद्धो साहित, अणाहमतिए चितिका कातूणं उज्जालेता अल्लचम्मं विताना पामेण अंगुहएणं चक्कमति जाव कहाणि जलंति, एत्थंतरे कालसंदीयो आगतो कट्ठाणि छुभति, सत्तरत्तो गतो, देवता से सरूवेण उवद्धिता भणति-मा विग्धं करेहि, अहं एतस्स सिज्झितुकामा, सिद्धा, केई भषंति-पिट्ठमओ चिसो कतो, भणति-एर्ग उत्तम अंग परिरचय जा ते पविसामि सरीरं, तेण निडालं दिण्णं, सा निटालेण अतिगता, तत्थ चिलं जातं, देवताए ततियं अच्छि कयं से,तेवं पेढालो मारितो मम माता रायधूता एतेण धरिसितत्ति, पच्छा कालसंदीपं आभोएति, दिट्ठो, पलातो, पच्छतो ओलग्गति, एवं हेडा य उवीर य, णातुं कालसंदीवेण तिण्णि पुराणि विकुश्विताणि, सोषि ताणि बिधिचा सामिपादमूले अच्छति, ताणि देवताणि पहतो, ताहे ताणि भणंति-अम्हे विज्जाओ सो महारगमले गतात्ति, तत्थ गतो, एक्कमेक्कं खामितो, अण्णे मणतिलवणे महापाताले मारितोचि, पच्छा सो विज्जाचक्कबड्डी तिसंझं सब्यतित्थगरे बंदिचा नई च दाएत्ता पच्छा सो अभिरमति,
॥१७५॥ तेण ईदण से महिस्सरो नामं कर्त | सोय किर धिज्जातियाणं पदोसमावष्णो, कण्णार्ण सतं सतं विणासेति, अण्णेसु य अतेउ| रेगु अभिरमनि, तस्स दो मित्ता-नंदी य नंदीसरो य, एवं पुष्फएण विमाणेण अभिरमनि, एवं कालो बच्चति , अण्णया उज्जे
अSASAR
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(188)
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा गीए पज्जातस्स अंतेपूरे सिर्व मोनूण ससिकाआ धरिसति, पज्जातो चिंतति-को उचाओ हाज्जा जण एसो विणासज्जा, तत्थ एका महेश्वरोध्ययने ह उमा नाम गणिका अतीव स्वस्सिणी, सा किर धृवपम्गहं गेण्हति जाहे अंतेण एति, वच्चंते काले ओतिण्णो, ताए दोण्णि पृष्फाणि
त्पत्ति: ॥१७६॥ IN विकसितं च मउलितं च पणामितं, महेस्सरेण फुल्लितस्स हत्थो पणामिती, सा मउलं पणामेह, एतस्स तुम्भे अरिहत्ति, कही, ताहे|
भणति-एरिसकाओ कण्णाओ, ममं ताव पेक्षहत्ति, तीए सह संवसति, तीए हतहियओ कतो, एवं कालो वच्चति । सा पुच्छति-काए बलाए विज्जाओ ओसरति , तेण सिट्ठ-जाहे मेहुणं सेवामित्ति, तीए रणो कहितं, मा ममंपि मारेहित्ति, पुरिसेहि अंगस्स उवरिंद जोगा दरिसिया, एवं रक्खामो, ने य पज्जातेण भणिता-सह एताएवि मारज्जाह, मा य दुराइयं करहि, ताहेमणुस्सा पच्छण्णा |कता, ताहि संसट्ठी मारितो सह ताए, ताहे नंदिस्सरो ताहि विज्जाहि अधिष्ठितो आमासे सिल बेउन्चित्ता भणति-हा दासा! मत-18 &ाति, ताहे सनगरी राया उल्लषडसाडओ पाएमु पडितो. खमाहि एक्कवराहन्ति, सो भणति-जदि एतस्स सवण्णगं अच्चेह तो || मुयामिति, एवं चनगरे नगरे टचेहनि, तमि पडिवणो, आयतणाणि कारिताणि, एसा माहिस्सर उप्पत्ती ।।
साहे मुणगं नगरं कृणिको अतिगतो, गाभणंगले हि वाहेति, पत्थंतरे सेणिकमज्जामो कालिमातिकाउ पुच्छति-अम्ह. पुत्ता *संगामातो एहिन्ति णविति, जथा निरयावलियाप पव्यइताओ । ताह कृणिको चपमागतो, तत्थ सामी समोसढो, ताहे कणिको काचिनेति-पहुगा मम हत्थी अम्मावि, तो जामि मामि पुच्छामि- अई चक्कवट्टी होमि न होमिति ?, निग्गतो सध्यबलसमदएणं, &ादित्ता भणति केवइया चक्काही एस्सा, सामी साहति सम्बे अतीना, पुणो भणति-कहिं ओवज्जिस्सामिी, छट्ठीए पृढवीए, तहषि
असाहतो सब्वाणि एगिदियाणि लोहमयाणि रयणाणि करेना ताहे सब्यबलेन तिमिसगुहं गतो,अङ्कमे भने कते भणति कतमालओ
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(189)
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ १७७॥
अतीता चक्कवडियो, जाहित्ति, गच्छति, हरिंथ विलग्गो, मणि हत्थिमत्थए कातूण पत्थितो, कतमालरण आइतो मतो, छड्डीए पुढवीए गतो ताहे ते रायाणो उदायिं वेति उदायिस्सवि चिंता जाता, एत्थ नगरे मम पिता आसिन अद्वितीय अण्ण नगरं कारेति, मग्गह वत्युंति वन्धुपाढगा पेसिता, तेवि एगत्थ पाडली उवरिं चासो अववासितणं तुंडणं पासंति, कीडगा से अप्पणी च्चैव मुहं अतिन्ति । किह सा पाडलिति १, -
दो महराओ-दक्षिणा उत्तरा य, उत्तरमडुराओ वाणियदारओ दक्षिणमहुरं वहणजताए गतो, तत्थ तस्स एक्केण वाणियकेण सह मित्तता, तस्स भगिणी अणिका, तेण भत्तं कतं, सा से जेमेन्तस्स बीयणकं घरेति, सो तं पाएस आरद्धो णिवण्णेति, अज्शोववण्णो, मम्गाविया, ताणि तं भणंति-जदि इदं चैव अच्छसि जाब एक्कं दारगरूवं जाति तो देमो, पडिवण्णो, दिण्णा, एवं काली वच्चति, अण्णया तस्स दारगस्स अमापितीहि लेहो पेसितो 'अम्हे अंधलीभूताणि, जदि जीवंताण पेच्छतो तो एहि,' से लेहो उबणीतो, सो तं वायति, अमूणि मुयमाणो तीए दिडो, पुच्छति, न किंचि साहति तीए लेहो गहितो, वायितो, तं मणति-मा अद्धिति करेहि, आपुच्छामि, तीए सब्बं अमापितॄणं कहितं विसज्जिताणि, णिग्गताणि दक्षिणतो मराओ सा य अणिका गुब्विणी. सा अंतरापहे वियाता, चिंतेति अमापितरो नाम काहिंतिसि न कर्त ताहे रमावेंतो जणो भणति अणिआपुसोति, कालेण पचाणि तेहिवि से तं चैव नामं कर्त, अण्णं न पतिट्ठाहितित्ति, ताहे सो अष्णिकापुतो अमुक्कचालभावो भोगे अवहाय पव्वतो, थेरतणे विहरमाणो गंगाए तडे पुष्कभदं नाम नगरं गतो ससीसपरिवारो, तत्थ पुप्फकेतू राया, पुप्फवती देवी से जुगलाणि दारको दारिका य जाता, पुप्फचूलो पुप्फचूला य, ताणि अण्णमण्णमणुरत्ताणि, तेण रामाए चिंतितं जदि बिजोइज्जति तो मरि
(190)
पाटलि
पुत्रीया पाटली
॥ १७७॥
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१७८॥
हिंति, एताणि चैव मिडुणकं करोमि, तेण णागरा पुच्छिता- एत्थ जं रमणं तत्थ को वसायति ?, राया नगरे अंतेपुरे वा, एवं ते पत्तियावेत्ता माताए वातीए संजोगो घडावितो, अभिरमंति, सा देवी साविकात्तेण निव्वेगेण पव्त्रता, देवो जातो, ओहिणा पेच्छति धूतं, ततो अम्भहिको हो, मा नरकं गच्छहितित्ति तीसे सा सुविणकेन नरका दरिसेति, सा भीता राणं अवतासेति, एवं सा रचि रति, ताहे पार्सडिणी सहाविता, कह-केरिसा नरका १, ते कोंति, ते अष्णारिसका, पच्छा अणिकावुत्ता पुच्छि ता फेरिसका नरकान्ति, ते कहेतुमारद्धा-निच्चधकारतमसा०, सा भणति - किं तुम्मेहिवि सुविणाक दिट्ठा ?, आयरिका भ वि- तित्थकराणं आदेसोति एवं गते काले देवलोका दरिसेति एत्थवि तहेव पासंडिका, अष्णिकपुत्तेहिं कहितं, ताहे देवी | भणति किह गरका गंमति १. किह वा देवलोका गंमति १, ताहे साधुधम्मो कहितो, सा राजाणं पुच्छति, तेण भणितं तो देमि जदि हहं चैव मम घरे भिक्ख गन्हास, तीए पडिसुतं पव्वता ॥ तत्थ य ते आयरिया पञ्चइए विसज्जित्ता जंघाबले क्षीणे तत्थेव विहरति, ताहे सा देवी भिक्खं अंतपुराओ आणेति, एवं कालो वञ्चति, अण्णदा कदायि तीसे भगवतीए सोभणेहिं अझवसाहि केवलनाणं उष्पष्णं, केवली किर पुष्धपवन्तं विषयं न भजति, अण्णदा सा अज्जा आयरियाणं हिदयइच्छितं आणेति, सेम्हकाले जेण सिम्दो विव्यति, एवं सेसेसुवि, ताहे ते भांति जं मए चिंतितं तं चैव ते आणीतं सा भणति जाणामि, किह १, अति सरणं केवलेणं, खामिता केवली आसादितोत्ति, अण्णे भणति वासे पडते आणीतं साढ़े ते भांति किं अज्जे ! वासे पड़ते आणेसि १, सा भणति जेणतेणं अचित्तो तितेण आगता, कहं जाणासि १, अतिसरण, खामेति, ते अद्विति पकता, ताहे सो केवली भणवि-तुम्मेवि चरिमसरीरा सिज्झिहिह, मा अद्धिति करेह, किह वा कहिं वत्ति १, गंगं उत्तरंता, ताहे चैव पउत्तिष्णा,
,
(191)
+ ল
पाटलि
पुत्रीया पाटली
॥१७८॥
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
उदायिमरणं नन्दबशे राज्य
***400
VERY
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाणावाए जे जेणं पासणं विलग्गति तं तं निचुडति, मज्ले ठिता सम्वा पाणिए बुड्डेति,तेहिं णाविएहिं पाणिए छूढा, पाणं उप्पण, ध्ययने देवेहिं कता महिमा, पयागं तत्व जातं तित्धं ॥ सा सीसकरोडी मच्छकच्छमेहिं खज्जती एकत्य उच्छलिता पुलिणे, सा इतो
य ततो य बुज्झमाणी एगत्थ लग्गा, तत्थ पाडलिबीयं किहवि पडितं, दाहिणाओ हणुकातो करोडी भिंदतो पोतओ उष्ठितो, ॥१७९॥
तत्थ तं चास पेक्वति, चिंतेति एत्थ राजाणकस्स एवं सयं चेत्र रतणाणि एहिंति, नगरं निवेसेंति, तत्थ सुत्चाणि पसारिज्जति, नमित्ती भणति-ताच जाहि जाब सिवाए वासितंति तो नियत्तीज्जासिनि , ताहे पुब्बातो अंतातो अवरामहो गतो, तत्थ सिवा रडिता, ततो उत्तरहत्तो गतो,तत्थवि, पुणो पुण्याहुतो गतो, पुणो दक्षिणमुहोतं किर बीयणकसंठितं, नगरनाभीए उदाइणा जिण| घरं कारितं एवं पाइलिपुत्तस्स उप्पत्ती ।।
सो उदायी तत्थ ठितो रज्ज झुंजति, सो य राया ते दंडे अभिक्खणं २ ओलग्गावेति, ते चितेंति-किह न होज्जा तो |एताए धाडीए मुच्चिज्जामोति, इतो य-एगस्स रायाणगस्स कहचि अबराहे रज्ज हित, सो राया नहो, तस्स पुसो ममंतो उज्ज| पीए आगतो, एक रायाणक ओलग्गति, सो य बहुसो परिभवति उदाइस्स, ताहे सो रायसुतो पादे पडिओ विष्णवेति-अहं तस्स
पीतिं पियामि नवरि मम वितिज्जओ होज्जासि, तेण पडिस्सुतं, गतो पाइलिपुत्तं, बाहिरिकामज्झिमिकाअभंतरिकासु परिसासु 8 ओलम्गितूण छिदं अलममाणो साहुणो अतीति, ते अतीयमाणे णिज्जायमाणे पेच्छति,ताहे एकस्स आयरियस्स मूले पम्वइतो, तेण
सच्चा परिसा आराहिता तमया जाता,राया अडमिचाउनसीसु पोसहं करेति, तत्थ आयरिकावि अतिति धम्मकहानिमित्त अण्णदा वेकालिक आयरिया भणति-गेण्डह उवकरणं, राउल अतीमो, ताहे सो सरनि उद्वितो, गहितं उबगरण, पुब्बसंगोविता य
दीप
अनुक्रम [११-३६]
ANKisk
॥१७॥
(192)
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
कल्याकस्य
मारा मार
प्रतिक्रमणा ठाककलोहकत्तिका सावि गहिता, पच्छण्ण कता, अतिगता रायकुल, चिर धम्मो कहितो, आयरिया पासुत्ता, रायावि, तेण उद्देत्ता ध्ययने लिरणा सीसे निवेसिया, तत्थेव अहिके लग्गा, निग्गतो, ठाणइत्ताविन वारेति पबहतओत्ति, रुधिरेण आयरिका छिक्का, पेच्छंति
R ॥१८॥
| राया विद्यावाडितो, मा पचयणस्स उडाहो होहितित्ति आलोइतपडिक्कता अप्पणा सीसं छिदंति, तेवि कालगता, सोवि एवं इतो य हाबियदासो सालिकाए उवज्झायस्स कहेति-सुविणए मम अंतेण नगरं वेढितं,एवं पभाए दिट्ठो, सो सुविणसत्य जाणति, ताहे से परं तूर्ण मत्थओ धोतो, धृता दिण्णा, दिप्पितुं च आरद्धो, सीयाए णगर हिंडाविज्जति, सो य राया अंतेपुरपालेहिं । सेज्जावतीए दिट्ठो, सहसा उ कवितं, णातं, अपुनोति अण्णेण दारेण णीतो, सक्कारितो, अस्सो य अधिवासितो, अम्भितरे हिंडावितो मज्झे, बाहिं निग्गतो राउलातो,तस्स हात्रियदासस्स पट्टि अहेति,पासति य क तेयसा जलंत,सोरायाभिसगेण अभिसित्तो,
राया जातो, ते दंडभडभोयगा दासोति न तहा क्णिय करेंति, सो चिंतति-जदि विणयं न करोति तो कस्स अहं रायत्ति? अस्थाजाणीतो उल्लेत्ता अंतो पबिट्ठो, पुणो निग्गतो, न उट्ठति, गेहधत्ति भणिता ते अवरोप्परं हसंति, तेण अमरिसेण अत्थाणीमंडविकाए |पडिहारा विलोकिता, ते असिवग्गहत्था उद्विता, केवि मारिया, केवि बद्धति, पच्छा विणयं उवहिता, खामितो य राया। तस्स कुमारामच्चो नत्थि, सो मग्गति ।
इतो य कविलो नाम बंभणो नगरस्स बाहिरिगाए वसति,विकालिकं च साहूणो आगता,दुक्खं विकाले णगरं अतिगंमतिचि तस्स अग्निहोत्तघरे ठिता, सो भणो चितेति- पुच्छामि ताणे किंचि जाणति ण वेति', पुच्छिता, पकहिता आयरिया, सो सङ्घी | जातो तं चेव रयणि, एवं काले बच्चति अण्णदा अण्णे साधुणो तस्स घरे वासारतं ठिता, तस्सेत्र य पुचो जायमेचजो रेषयीहि
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥१८॥
RCH
(193)
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २], निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
॥१८१ ॥
प्रतिक्रमणा 8 गहितो, साधूणं मायणाणि कप्पेंताणं भायणाणं हेट्ठा ठवितो ताहे नड्डा बाणमंतरी, सीसे पया थिरा जाया, कप्पकोणि य तस्स | ध्ययने णामं कर्त, ताणि दोषि कालगताणि, इमो य चोदससु बिज्जाड्डाणेसु परिनिडितो नाम लभति पाडलिपुत्ते, सो य संतोसेण दाणं णेच्छति, दारिकाओवि लग्भमाणीओ णेच्छति पव्वइस्सामिति, अणगखंडिकसतेहिं परिवरिओ हिंडति । इतो तस्स निग्गमण4 अतिगमगपट्टे एक्को मरुको, तस्स धृता जलूसकवाहिणा गहिता, लाघवं सरीरस्स नत्थि, अतीव रूविणीविण कोइ वरेति, महंती जाता, रुधिरं च से आगतं, माताए से पितुं कहितं, सो चिंतेति-बंभवज्झा एसा, कप्पयो सच्चसंघाओ, तस्स उचारण देभि, तण घरे कूवो खतो, तत्थ ठविता, तेण अंतेण कप्पओ नीति, इमो य महता सद्देण कूवितो भो भो कविला ! कुवे पडिता घूता, जो पं नित्थारेति तस्सा, तं कप्पओ सोतृणं पधातो, किवाए उत्तारिता य, अणेण भणितो य- सच्चसंधो होज्जासि पुत्तकत्ति !, | ताहे तेण जणवादभीतेण पडिवण्णा, अच्छति तीए सह परिभुंजतो, ओसहेहि य विसदा जाता। रायाए य सुतं कप्पओ पंडितओत्ति, सद्दावितो विष्णवितो, रावाणं पभणइ- अहं ग्रासाच्छादनं विनिर्मुच्य प्रतिग्रहं न करोमि । कहं किंचि संपडिवज्जामि १, चितेति न तीरति निखराही कारेउं, ताहे से राया छिद्दाणि मग्गति, अण्णदा राजाए जो एताए साहीए निल्लेवतो सो सहावितो, तुमं कष्पकस्स पोचाणि घोत्रसि नवत्ति १, भणति घोषामि, ताहे राजा पभणितो- जदि एयताहे आणज्जा तो से मा देज्जासि, अण्णदा इंदुमहे भज्जा से भणति मज्झवि ता पोत्ताणि रयावेहित्ति, सो गच्छति सा अभिक्खणं २ वड्डेति तेण पडिवण्णं, जीताणि रजकघरं, सो भणति अहंपि विणा मुल्लेण रजामि, सो उणदिवसेहि मग्गितो, अज्जह होति कालहरणं, सो छणो वोलीणो, तहवि न देति, एवं चितिए बरिसे ण दिण्णाणि, ततिए वरिसे, दिवसे दिवसे मग्गति ण देति, तस्स रोसो जातो, भणति कप्पओ
(194)
कल्पाकस्य
कुमारामात्यता
॥ १८१ ॥
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥ १८२॥
जदि ते रुधिरे ण रयामि तो अग्गी अतीमि तेहिं दिवसेहिं गतो छुरियं गहाय, सो रजको भज्जे भगइ आणेहित्ति, दिष्णाणि, तस्स पोई फालेत्ता रुधिरेण रथावेति भज्जा य भणति रायाए वारिता मोति, किं ते एतेण अवरद्ध १, कप्पकस्स चिंता जाताएसा रण्णो माता, कुमारामच्चत्तणं च्छिति, जदि पच्वइतो हुंतो ततो किं एवं होतं १, बच्चामि मा गोहेहिं निज्जीहामिति, गतो राउलं, राया उडतो, भणति संदिसह किं करेमि ?, तं मम विष्णप्पं चिंतंतु तुम्भेति, सो भणति जं जाणसि तं कीरतुचि, रबकसेणी य आगता, तं रायाए समं दणं उल्लावितुं गड्डा, कुमारामच्चो ठितो, सच्वं रज्जं तदायत्तं जातं, पुत्तावि से जाता तीसे अण्णाणं च ईसरधूयाणं ॥ अष्णदा कप्पकस्स पुत्तविवाहो, सो चिंतेति संतेपुरस्सरण्णो भत्तं दातव्वं, आभरणाणि णिज्जोगो य सो ताणं सज्जेति, जो य तेण कुमारामच्चो उबट्ठितो सो तस्स छिद्राणि मग्गति, तेण कप्पकस्स दासी दाणमाणसंगहिता कता, जो तव सामियघरे दिवसोदन्तो तं परिकद्देज्जाहित्ति, तीए पडिवण्णं, साहितं च जहा रण्णो नियोगो घडिज्जति, तेण छिद लद्धति राया पाएस पडितो विष्णयोति-जदिवि अम्हे तुम्हेहिं अवगीता तहवि तई संतिकाणि सित्थाणि घरंति अज्जवि तेणं अवस्सं कहतथ्यं जथा किर कप्पतो तुम् अहितं चिंतेत्ता पुत्तं ठवेति, रायणिज्जोग सज्जिज्जति, पेसविता चारपुरिसा, दिई, रुडो राजा, सकुबो कृबे छूढो, कोदवरसेविका पाणियगलंतिका व सिं दिज्जति सव्वाणं, ताहे सो भणति एषण सब्वेदिवि मरियच्वं, जो सक्को कुलोद्धरणं करेति वेरनिज्जायणं च सो जेमतु, ताणि भणति अम्हे असमत्थाणि, भत्ताणि पच्नक्खामो, तेहिं पच्चक्खातं ताणि देवलोगं गताणि, कप्पओ तं जिमति, पच्चतरातीहि य तं सुतं जहा कप्पओ विणासितो, जामो गिव्हामो नंदति आगतेहि पाडलिपुत्तं वेढितं, नंदो चिंतेति-जदि कष्पको होंतो तो ण एते एवं अभियंता, पुच्छिता चाररक्खपाला- अस्थि
(195)
कल्पाकस्य कुमारामान्यता
॥१८२॥
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा कोई भर्न पडिच्छति जी तस्स से कोई दासोवि महामती, तेहि भाणित--अस्थि, ताहे आसंदएण उक्कोएचा पीणितो पंडुल्लु- महापानध्ययन
इतो, वेज्जेहिं संधुक्खितो, आउक्षसा कारिते पागारे दरिसितो कप्पओ, ते भीता डंडा ससंकिता जाता, गंदं च परिहीणं णातूणेन्दस्य ट्रा मुठतरं अमिति, ताहे लेहो विसज्जितो-जो तुम्भ सम्वेसि अणुमतो सो एतु तो संधी 5 वा भणीहिह तं कज्जिहिति. शिकटालो:
तो विसज्जितो, कप्पओवि निग्गतो, नदीए मज्झे णावाए मिलितो कप्पओ, हत्थसण्णाहिं भाणित-उच्छुकलावकस्स हेट्ठा उवरि मात्यः च झिण्णम्स मजो कि होति, दहिकुंडगस्स हेट्ठा उरि च छिण्णस्स मज्झे किं होतु, धसिात पडितस्स किं होतिति भणितासावरकाचवृत्त &Iत पदाहिण करेंतओ पडिनियत्तो, इतरो विलक्खओ नियत्तो, पुच्छितो लज्जति अक्खाइतं, पलपति- बड़कोचि अक्खातं, नट्ठा लि भदोषि कप्पएण भणितो-सण्णहह पच्छतो, आसहत्थी पगहिता, पुणो ठवितो तंमि टाणे, सो य निग्घाडामच्चो मारितो।
तस्स कप्पकस्स वंसो दर्वसेण समं अणुयत्तति, नवमओ नंदवंसप्पसतो महापदुमो, कप्पगवंसे सगडालो कुमारामच्चो । तस्स | पुत्तो धूलभद्दो सिरियओ, धूताओ जक्या जक्खदिण्णा भूया भूयदिपणा सेणा वेणा रेणा ॥ इतो य वररुपी धिज्जाइतो असतेणं वित्ताणं गंदं धुणति दिवसे दिवसे अपुब्बेहि, राया तुट्ठो सगटाले पलोएति, सो न तूसतित्ति न देति, वररुइणा सगडालभज्जा पुप्फादीहिं ओलम्गिता,भणति-सगडालो पसंसतु सुभासितंति,सो तीए भणिओ,पच्छा भणति-किह मिच्छनं पसंसामित्ति,एवं दिणे दिणे मणतीए महिलाए करणि कारितो, अण्णादा भणति-सुभासितंति, ताहे दिणाराणं अट्ठसयं दिष्णं, पच्छा दिणे दिणे पदिण्णो , 1॥१८३॥ सगडालो चिंतेति-निहितोरायकोसो होतित्ति भणति-भट्टारगा! किंतुम्भे एयस्स देहात्ती, तुन्भेहि पसंसियति,भणति-अहं पसंसामि लोककव्वाणि अविणवाणि पढतित्ति, राया भणति-कि लोककव्वाणि १, सगडालो भणति- एतं मम धूनाओवि पढ़ति, किमंग
दीप
SAKAIRANSKRIES
अनुक्रम [११-३६]
(196)
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ४ ध्ययने
॥ १८४॥
पुण अण्णो लोको?, जक्खा एक्कासं सोतूर्ण गिण्हति चितिका वितिके ततिका ततिके वारे गेण्डति, ताओ अण्णदावि पविसंति अंतेपुरं, जयणिकाअंतरिताओ कताओ, वररची आगतो पुणति, पच्छा जक्खाए गहितं, ताए कड्डिय, बितियाए दोण्हवारं सुतं ततियाए तिनि वारं सुतं ताएवि कड्डिय, रायाएवि पत्तीतं तं वररुचिस्स दारं वारितं ॥ पच्छा सो दीणारे रत्ति गंगाए जंते ठवेति, ताहे दिवसतो थुणति गंगं, पच्छा पादेण आहणति, गंगा देतित्ति एवं लोगो भणति, कालंतरेण रायाए सुतं, सगडालस्स कहेतितस्स किर गंगा देति, सगडालो भणति-जदि मए गते देति तो देति, कलं बच्चामो, तेण पच्चायेतो मणुस्सो विसज्जितो, विकाले पच्छष्णो अच्छाहि, जं वररुई ठवेति तं आणेहि, सो गतो, आणीता पुट्टलिका, सगडालस्स दिण्णा, गोसे मंदी आगतो पेच्छति थुर्णतं, धुणे निबुडो हत्थेहिं पादेहि य जंतं मग्गति, नत्थि, विलक्खो जाओ, ताहे सगडालो तं पोट्टलियं दरिसेति, रण्णा ओभामितो गतो, पुणो छिद्दाणि मग्गति सगडालस्स एतेणं सव्वं खोडितंति । अण्णदा सिरिकस्स विवाहो, रण्णो आयोगो सज्जिज्जति, वररुचिणा तस्स दासी ओलग्गिता, तीए कहितं रंणो भतं देहित्ति, ताहे तेण चिंतितं एवं छिदंति चेडरुवाणं मोदए दातूणं इमं पांढेति-णंदो राया गांव जाणति, जं सगडालो करेहिति । नंदो राया मारे विणु, सिरियं रज्जे टवेहिति ॥ १ ॥ ताणि पढेति, तं रण्णा सुतं गवेसावितं, दिडं, कुवितो राजा, जतो जतो सगडालो पाएस पडति तओ तओ राया पराहुतो ठाइ, सगडालो घरं गतो, सिरिओ महापडिहारो नंदस्स, तं भणति पुनः किं अहं मारेज्जामि सव्वाणि मारिज्जंतु, तुमं ममं रण्णो पादपडितं मारेहि, सो कण्णे ठपति, सगडालो भणति अहं तालपुडं बिसं खामि पायपडितो अहं ततो तुमं पुणं मतं ममं मारेहि, सिरिएण पडिस्सुतं, ताहे मारितो राया उडतो, हा हा अहो अकज्जं, सिरिओ भगति-तो तुम्भं पावो सो अहं पर चैव पावोलि,
(197)
महापचनन्दस्य
शकटा लोड
मात्यः
वररुचितं
॥ १८४॥
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययने ।
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
मरणं
प्रतिक्रमणा सक्कारितो, सिरिओ भणितो-कुमारामच्चत्तर्ण पडिबज्जाहि, सो भणति-मम भाता जेडो थूलभदो बारसमं बरिसं गणि- स्थूलभ
| यघरं पविद्वस्स, सो सदावितो, भणति-चितेमि, राया भणति- असोगवणिकाए चिंतेहि, सो तत्थ अतिगतो पितेति- द्रस्य दीक्षा ॥१८५॥
करिसं भोगकज्जं बक्खित्ताण, पुणरवि नरकं जाइतव्वं होहिति, एते णाम एरिसा भोगत्ति पंचमट्टितं लोयं कातूण ४ वररुचेपाओतं कंबलरतर्ण रजोहरणं छिदित्ता रणो मूले गतो, एवं चिंतितं, राया भणति-सुचिंतितं, निग्गतो , राया चितेति-पेच्छामि काकिं विडत्तणेण गणियाघरं पविसति गवत्ति ?, आकासतलगतो पेच्छति, नवरं मतगकलेवरस्स जणो ऊसरति मुहाणि य|
ठवेति, सो मोण गतो, राया भणति-निविण्णकामभोगो नु भगवति, सिरितो ठावितो । सो संभूतविजयस्स मूले पव्वइतो ॥ सिरितो किर भातुणेहेण कोसाए गणियाघरे अल्लियति, सा य अणुरता धुलभद्दे अण्णमणुस्से णेच्छति, तीसे कोसाए डहरिका या भगिणी ओवकोसा, तीए समं वररुची वसति, सो सिरिओ मातुज्जामूले भणति- एतस्स निमित्तं अम्हे पितुमरणं भातुवियोगं च अपना, तुज्झ य पियवियोगो जातो, एतं सुरं पाएहित्ति,तीए भगिगी भणिता-तुम मत्तिका सो अमत्तो जं व तं व भणिधिसि,विरागो।
से होहिति, एतं पियाएहि, सा पपाइता, सो नेच्छति, सा भणति- अलाहि ममं तुमे, ताहे सो तीसे अबियोग मांगतो चंदप्पा मुरं पियति, लोगो जाणति खीरति, कोसाए सिरिकस्स कहित, राजा सिरिक भणति- एरिसो तब पिता मम हितिको आसि, सिरिको भणति- सच्चकं भट्टारक! एतेण मत्तवालएण एवं कतं, राजा भणति- मज्ज पियति', पियइ, कह?, तो पेच्छह, सो ॥१८५॥ राउलं अतिगतो, तेण उप्पलं भावितेल्लक मणुस्सहत्थे दिण्णं,एयं वररुइयस्स देज्जासि, इमाणि अण्णेसि, मो अस्थाणिकाए पभा-18 इतो, जो सो भावितओ सो वररुइस्स दिण्णो, जं चेव अग्घाति तंत्र भिंगारेणं आगतं, निच्छूढो, चातुबेज्जेणं पादच्छित
दीप
अनुक्रम [११-३६]
PRONTERN
4-%
(198)
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा 8 तत्तकतउकं पज्जितो मतो ।। धूलभदसामीवि संभूतविजयाणं मृले घोराकारतवं करेति, विहरता पाटलिपुतं आगता, तिणि अण-1 श्रीस्थूलध्ययने
कारा अभिग्गई गेहंति, एगो सीहगुहाए, तं पेच्छतओ सीहो उवसंतो, अण्णो सप्पगुहाए, सोवि दिट्टिविसो उपसंतो, अण्णो लाभद्रस्थ ॥१८६॥
कूवफलए, धूलभद्दो कोसाए घरे, सा तुट्टा परीसहपराजितो आगतोत्ति, भणति- किं करेमि , उज्जाणघरे ठाणं देहि, दिण्ण, रति अतिदूकर ६ सव्यालंकारविभूसिता आगता,चाई पकिता, सो मंदरोपमो अकंपो, ताहे सम्भावेणं पडिस्सुणेति धम्म, साविका जाया, भणति
कारिता है जदि रायवसेणं अण्णेण समं वसेज्जा, इतरहा बंभचारिणीवतं गेहति, ताहे सीहगुहातो आगतो चत्तारिवि मासे उववासे कात्रणं ठे
आयरिएहि इसिति अन्भुट्टितो, भणितो य-सागतं तव दुक्करकारकत्ति, एवं सप्पइतीवि कूवफलगइतोबि, धूलभदसामी तत्थेब गणिकाघरे भिक्खं गेण्हति, सोवि चतुम्मासेसु पुण्णेसु आगतो, आयरिया संभमेण उद्विता, भणितो य- अतिदुक्करकारकत्ति, ते ५ भणति तिण्णिवि-पेच्छह आयरिका रागं वहति अमच्चपुनोत्ति ॥ वितियए बरिसारत्ते सीहगुहासमणो भणति- गणियापरं घच्चा- मिति अभिग्गई गेण्हति, आयरिया उपउत्ता, पारितो, अपडिस्मणेतो गतो, बसही मग्गिता, दिण्णा, सा सम्भावेण ओरालसरीरा15 विभूसिता अविभूसिया था, सुणेति धम्म, सो तीसे सरीरे अझोववण्णो ओभासात, भणति-जदि नवरि किंचि देसि, किं देमिा, सतसहस्सं, सो मन्गितुमारद्धो, पालविसए सावओ, जो तहि जाइ तस्स सतसहस्समुल्लं कंबलं देति, तहिं गतो, दिणं तेण | सरायाणएण, एति, एकत्य चोरेहिं पंथो बद्धो, सउणो वासति- सयसहस्सं एति, चोरसणावती जाणति, नर संजतं पेच्छति, ॥१८६॥ वोलीणो, पुणो वासति. सतसहस्से गतं, तेण सेणावतिणा गंतूण पलोइतो, सम्भावं पुच्छितो भणति- अस्थि कंबलो, गणिकाए| | णमि, मुक्को, गवो, तीसे दिण्णो, ताए चंदणिकाए छुढो, सो भणति- मा विणासहि, सा भणनि- तुम एतं सोयसि अप्पाणं णवि,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
RAICH
(199)
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
सवआधारएहिमाणवान
स्थल
htik
भद्रस्य
पूर्वपाठ:
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा तुम एरिसओ चेक होहिसि, उवसामेति लद्धबुद्धी, इच्छामि बेदावच्चंति गतो, पुणावि आलोचेना विहरति । आयरिएहि भणितोध्ययने एवं दुक्करदुक्करकारओ थूलभदो, पुर्व खरिका इच्छति, इदाणिं सड्डी जाता अदिदोसा तुमे पस्थितत्ति उवालद्धो, एवं चेव
| विहरति ॥ सा गणिका राधकस्स रणा दिण्णा, अक्खाणं जथा नमोकार न दुकर तोडित अष। ॥१८७||
संमि य काले बारसबरिसो दुक्कालो उबहितो, संजता इत्तो इतो य समुद्दतीरे अच्छित्ता पुणरवि पाटलिपुत्ते मिलिता, तेसि अण्णस्स उद्देसओ अण्णस्स खंडं, एवं संघाडितेहिं एक्कारस अंगाणि संघातिताणि, दिट्ठियादो नस्थि, नेपालवनणीए य भहबाहुस्सामी अच्छति चोदसपुच्ची, तसि संघर्ण पत्थविता संघाडओ दिडिवादं वापहित्ति, गतो, निवेदितं संघकज्जत, ते भणतिदुक्काल निमित्तं महापाणं ण पविट्ठो मि, इयाणि पविट्ठो मि, तो न जाति वायणं दातु, पडिनियतेहिं संघस्स अक्खातं, तेहिं| अण्णोवि संघाडओ विसज्जितो-जो संघरस आण अतिक्कमति तस्स को डंडो, ते गता, कहितं, तो अक्खाइ- उग्घाडेज्जा, ते भणति-मा उग्पाडेह, पेसेह मेहावी सत्च पाडिपुच्छगाणि देमि, भिक्खायरियाए आगतो १ कालवेलाए २ सणाए आगतो ३
वेयालियाए४ आवस्सए पडिपुच्छा तिण्णि, महापाणं किर जदा अतिगतो होति ताहे उप्पणे कज्जे अंतोमुहुनेण चोद्दसवि ४ पुष्पाणि अणुप्पेहेजति, उक्कइओवइयाणि करेति, ताहे भूलभदसामिप्पमुक्खाणि पंच मेहावीण सताणि गयाणि, ते य
पपढिता, मासेण एकेण दोहि तिहिति सम्बे ओसरिता, न तरंति पाडिपुच्छएणं पढिनु, थूलभदसामी ठितो, थेवावसेसे महापाणे का पुच्छितो-न हु किलमसि', न किलंमामि, खमाहि कचि कालं, तो दिवसं सब बायणा होहिति, पुच्छति-किं पढितं, केत्तिय दिवा अच्छति?, आयरिया भणंति- अट्ठासीति मुत्ताण, सिद्धत्थकेण मंदरेण य उपमाण, मणिओ य एतो ऊणतरेणं कालेणं पढि
दीप
अनुक्रम [११-३६]
&
॥१८७॥
(200)
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययने
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाहिसि, मा विसादं बच्चेज्जासि, समत्ते महापाणे किर पढियाणि णव पडिपुण्णाणि, दसमकं च दोहि पत्थूर्हि ऊणक, एतमि अंतरे | निष्प्रति
विहरन्ता आगता पाडलिपुर, थूलभदस्स य ताओ भगिणीओ सत्तवि पब्वइतिकाओ भणति-आयरिका! भाउकं बंदका बच्चामो, कमशरीर ॥१८॥
उज्जाणे किर ठितेल्लका, आयरिए बंदित्ता पुच्छति- कहिं जेदुभाते ?. भणति- एताए देवकुलिकाए गुणति, तेण य चिंतित-ग ४ भगिणीणं इहि दरिसमित्ति सीहरूवं विउवितं, ताओ सीहं पेच्छंति, ताउ चेव भीता नहाओ, भणंति-सीहेण खइओ, आयरिएणं
भणित-ण सो सीहो, थूलभदो, जाह इदाणिं, ताहे गताओ, बंदिओ य, खेमकुसल पुच्छति, जथा सिरिओ पन्चइतो, अब्भत्तद्वेणं कालगतो, महाविदेहे य पुच्छिका गता अज्जा, दोवि अज्झयणाणि भावणा विमोती य आणिताणि, बंदित्ता गताओ । वितियदिवसे उद्देसणकाले उबढितो, न उदिसंति, किं कारणं , अजोगो, तेण जाणितं कल्लत्तणकं, भणति-ण काहामि, भणति-ण तुमंडू काहिसि, अण्णे काहिंति, पच्छा महता किलेसेण पडिवण्णा उवरिल्लाणि चत्तारि पुवाणि पढाहि, मा अण्णस्स देज्जासि, ते चत्तारि तितो चोच्छिणा,दसमस्स य दो पच्छिमाणि वत्थूणि बोच्छिण्णाणि,दस पुष्वाणि अणुसज्जंति। एवं सिकावं प्रति योगा संगहिता
थूलभदसामिणा ५॥ म निप्पडिकम्मसरीरत्तणेणं जोगसंगहो कातब्बो । तत्थ इमं विधम्मेण उदाहरण-११-१२१३८२॥ पतिट्ठाणे णगरे णागवम्
सेट्ठी, णागसिरी भज्जा, सङ्घाणि, नागदत्तो पुत्तो णिबिण्णकामभोगो पब्वइतो, सो पेच्छति जिणकाणं पूयासकार, विभासा, १८८||
पडिमापडिवण्णकाणं च विभासा, सोवि भणति-अहं जिणकप्पं पडिवज्जामि, आयरिएहि वारिओ, न हाति, सतं चेव पडिवज्जति, माणिग्गतो, एगस्थ वाणमंतरे पडिमं ठितो, देवताए सम्पदिटिकाए मा विणस्सिहितित्ति इस्थिरूवेणं उवहारं गहाय आगता, वाण-स
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(201)
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
अज्ञातो| पधानता
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा मंतरि अंचेत्ता भणति-गेहह खमणत्ति, पललकूरो भक्खरूवाणि य गहियाणि, खाइत्ता पडिमं ठितो, जिणकप्पिका ण सुवंति, ध्ययने
पोट्टयोसरिका जावा, देवताए आयारयाणं कहितं, सो सेहो अमुकत्थति, तो साधू पेसिता, आणीता, देवताए भाणितं चेल्लगिरि ॥१८॥ दज्जाह, ठितं, सिक्खितो य, न एवं कातव्वं पडिकम्म ६॥
इदाणिं अण्णाततत्ति, ज उवहाणं कीरति तं पच्छण्णं कातव्बं, एवं कतं न नज्जेज्ज पुणो, न गुणपूजादिनिमित्तं परि|ण्णातं कातव्यं । तत्थ उदाहरणं-१७,१३।१३८४॥ कोसंबी नगरी, अजितसेणो राया, धारिणी देवी, धम्मवग्गू आयरिया, ताण
| दो सीसा-धम्मघोसो य धम्मजसो य, विगतभया महत्तरिका, विणयवती सीसिणिक्का, तीए भत्तं पञ्चक्खातं, संघण महता भाइड्डीए निज्जामिता विभासा, ते धम्मवग्गूसीसा दोवि परिकम करेति ।
___इतो य उज्जेणीये पज्जोतसुता दोणि-पालओ गोपालओ य, मोपालओ पव्वइतो, पालगो रज्जे ठितो, तस्स दो पुत्तारज्जबद्धणो अबतिवद्धणो य,पालको अवतिबद्धणं राजाणं रज्जवर्ण जुवरायाण ठवेत्ता पम्बइतो रज्जवद्धणस्स भज्जा धारिणी,तीसे पुतो अवंतिसेणो, अण्णदा अबतिवद्धणो राया धारिणीए उज्जाणे बीसत्थाए सव्वंगाई दठूर्ण अझोववष्णो, दूती बिसज्जिता, सा गच्छति, पुणो पुणो पेसेति, तीए अहाभावेण भणित-भातुकस्सपि न लज्जति?, तेण सो मारितो, विभासा, तमि वियाले सगाणि आभरणाणि गहाय कोसंबी सत्यो बच्चति तत्थ एगस्स सगस्स वाणियगस्स अल्लीणा गता, कोसंबीए संजतीण पुच्छिता वसहि, रणो जाणसालाए ठिताओ, तत्थ गता, बंदित्ता साविकत्ति पव्वइता पुच्छासुद्धा, तीसे य गन्मो अहुणोववण्णो बढति, मा ण पवावेहितित्ति तं ण अक्खातं, पच्छा णाते महरिकाए पुच्छिता, ताए सम्भावो कथितो जह रदुबद्धणमज्जाह, संजतिमझे
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥१८९॥
(202)
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा अप्पसारिकं अल्छाविता,विआविता रति, साधुणीणं मा उडाहो होहितित्ति, ताहे सा अंतउर अतीती, नाममुदा आमरणाणि या अज्ञाताध्ययने
| उक्खणित्ता रणो अंगणए ठवेत्ता पच्छण्णे अच्छति, अजितसेणेणं आगासतले गतेणं पभा मणीण दिट्ठा, गहितो यणेणं, अम्ग- पानता महिंसीए दिण्णो, सोय अपुत्तो। सा संजतीहिं पुग्छिता भणति-उदाणकं जातंति, विकिचित, खइयं हाहीतात, ताहे सा अतपुर
अतात णीती य, अंतरिकाहिं सम मिचया जाया, तस्स मणिप्पभोति नाम कर्त, सो राया मतो, मणिप्पमी राया जातो, सो४ि लाय तीए संजतीए धारिणीए णेहं वहति।
सो य अतिवद्धणो पच्छातावेण मातावि मारितो सावि देवीन जायत्ति भातुणेहेण व अतिसेणस्स रज्ज दातूण पच्चइतो।।
सो य मणिप्पमं कप्पा मग्गति, सो य ण देति, ताहे सब्बबलेणं कोसंबी पधावितो । ते य दोवि अणकारा परिकमे समचे &ाएको चितेति जथा विणयवतीए इडी तथा ममचि होतुति नगरे भत्तं परचक्खाति, पितिओ धम्मजसो विभूसं नेच्छतो कोसंबीए। | उज्जणीए अंतरा बस्थकातीरे पब्बतर्कदराए एकत्थ भ पच्चक्खाति । ताहे तेण अवंतिसणण कोसी राहिता, तत्थ जणा य
अप्पए अद्दण्णो न कोति धम्मघोसस्स अल्लियति,सो य पत्थितमत्थमलभमाणो कालगतो, वारहिं निप्फेडो न लम्मतित्ति पागा॥१९॥ रस्स उबरिएण एडितो, सा पब्बइतिका चिंतोत-मा जणक्खयो होतुत्ति रहस्स मिंदामि, अतपुर अतिगता, मणिप्पभं उस्सारिचा का भणति-किं भातरण समं कलहेसि १. सो भणति-कहंति ?, ताहे सर्व परिवाडीए कडेति,जदिन पत्तियसि मातरं पुच्छाधि,
श॥१९॥ शपुच्छति, सीए णात-अवस्सं रहस्सभेदो जाओनि, कहितं जथावत्तं, रहबद्धणसंतिगाणि य आभरणाणि य नाममुदा य दाइया. पनीता भणति- जदि ओसरामि ता मम अजसो. भणति-तंपि बोहेहि, एवं होतत्ति निग्गता, अचंतिसणस्स णिवेदित-पव्याका
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(203)
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा। ध्ययने
॥१९१॥
दमिच्छति, अविगवा पादे दट्टुण गाता अंगपडिचारिकाहिं, ताउ पादपडिताओं परुष्णाउ, कहितं तव मातत्ति, सोवि पादपडितो परुष्णो, तस्सवि सख्यं कहेति एस ते भाता, दोषि चाहिं मिलिता, अवरोप्परं अवदासेतूर्ण परुष्णा, कंचि कार्ल कोसंबीए अच्छिता दोषि उज्जेणीं पचाविता, मातावि सह महरिकाहिं नीता जाव वच्छकातीरं पत्ताणि, ताहे जे तंमि जणपदंमि साधुषो ते बंदर ओतरंते विलग्गंते य ददर्ण पुच्छंति, ताहे ताहिवि वंदितो वितियदिवसे राया पधावितो, ताओ मति-भत्तपच्चखातओ एत्थ ता अम्दे अच्छामो, ताहे ते दोवि रायाणो टिता दिवे दिने महिमं करेंति कालगता, एवं वे गया रायाणो, एवं तस्स अणिच्छमाणस्सवि जाता, इतरस्स इच्छमाणस्स न जाता पूजा ७ ॥
"
लोभविवेगताए जोगा संगहिता भवंति, अलोभता तेण कातव्या, कहीं, तत्थोदाहरणं १७-१५।१७ ।। १३८५ । १३८७ ।। साहर्त नगरं पोंडरीओ राया कंडरीको जुवराया, जुगरणो भज्जा जसमद्दा, ताहे पुंडरीओ तं पत्थेति तहेब सो जुवराया मारितो, सावि सावस्थि, अहुणोचवण्णगन्भा जाता, अजितसेणो आयरिओ किसिमती महत्तरिका, सा तीए मूले पब्बइता जथा धारिणी तथा विभासितव्वा णवरि दारओ न छड्डितो, खुडगकुमारोति से नामं कर्त, पञ्चइओ, सो जोब्वणत्थो जातो चिंतेति पव्वज्जं न तरामि कानुं, मातरमापुच्छति जामि, सा अणुसासति, तहवि न ठाति, ताहे भणति तो खाइ मम निमित्तं बारस वरिसाणि करेडि पव्वज्जं, भगति करेमि, पच्छा आपुच्छति, महत्तरिक आपूच्छाहित्ति, तीए बारस वरिसाण, उवज्झायो बारस वरिसाण, आयरिओ वारस वरिसाणि सव्वाणिवि अठ्ठचत्तालीसं वरिसाणि, तहवि न ठाति, विसज्जितो, ताहे पच्छा माताए भणितो-मा जहिं वा तर्हि वा बच्चाहि, महलपिता तुज्झ पुंडरीको तर्हि वच्चाहि, इमा ते पितुसंतिका नाममुदिका कंबलरवणं च मए नीति,
(204)
अलोमता
| ।। १९१।।
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१९२॥
*
एताणि गहिय बच्चाहित्ति गतो णगरं, रण्णो जाणसालाए आवासितो कल्लं रायाणं पेच्छामित्ति, तहिं च रतीए नट्टिका नत्चेति, सो ६ तितिक्षायां य खुट्टओ अभितरपरिसाए पेच्छतित्ति, सायनट्टिका सव्वं रत्ति नच्चिऊणं पभातकाले निद्दाति, ताहे सा धोरिया चिंतेति तोसितः सुरेन्द्रदत्तः परिसा बहुगं च लद्धं, जदि एत्थ वियइति तो धरिसिता मोति इमं गीतियं पगीता, सुट्टु गाइतं सुट्टु वाइतं । एत्थंतरे खुड्डएणं कंवलरतणं उच्छूट, जसभदो जुबराया तेण कुंडलं सतसहस्समुलं, सिरिकंता सत्यवाही, तीएवि हारो, जयसंधो अमच्चो, तेणवि कडगो, कण्णवालो मेंठो, तेण अंकुसो, जो य किर तत्थ तूसति रूसति वा देति वा सो सब्बो लिखिज्जति जदि जाणति सुद्द न जाणति तो डंडो तेसिन्ति, एवं सव्वेवि लिहिता, पभाए सद्दावितो पुच्छितो खुट्टओ-तुमे किं दिष्णं ?, सो जथा पिता मारितो तं सर्व्वं परिकहेति, न समत्थो जं समं अणुपालेतुं तो तुन्भं मूलं आगतो, रज्जं लभिमिति, सो मणति देमि, खुट्टओ भणति अलाहि उ, सुविणंतओ वट्टति मारेज्जा मा व पुण्यकतोवि संजमो णासिहिति । जुवराया भणति मारेतु मरगामि, थेरो राया रज्जं न देतित्ति, सोवि दिज्जतं णेच्छति । सत्थवाहभज्जा भगति- वारस वरिसाणि पउत्थस्स, पंथे वट्टति, तो अष्णं पवेसेमित्ति वीमंसा बट्टति । अमच्ची अण्णेहिं रायाणेहिं समं घडामि । इत्थिमेंठं पच्चंतरायाणो भणति एवं हरिथं मारेहि आणेह वति । ते भणिता रण्णा तहा करेहचि, च्छंति, खुट्टगकुमारस्स मग्गतो लग्गा पव्वता । तेहिं सव्वेहिवि लोभो परिचत्तो ८ ॥ तितिक्खा कातव्या । जहा सामाइके चक्कदिते १७-१८ १९ ।। १३८८-१३८९ ।। इंदपुर ईददत्ते बावीस सुता सुरिंददत्ते य । पव्वइप निव्यतिसुता आगमण स रज्ज देज्जा य ॥ १ ॥ (महुराए जियसत्तू सयंवरो निब्बुए उ । १७-१८ । १३८८ अग्गियओ पब्बतओ बहुलिय तह सागरो य योद्धव्यो। एक्कदिवसेण जाता महुराए सुरिददत्तो य
(205)
॥१९२॥
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [0] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा १७-१९ ॥ १३८९ ॥ वृत्तं महुराए चेव बीयं नाम इंदपुरति ॥ ध्ययनेमा
. अज्जवलणं नाम अज्जनणं तं कायव्वं, तत्थ उदाहरणं १७-२०॥१३९०॥ चपाए कोसियज्जो अज्झावओ, तस्स दो सीसा, ॥११३॥ ४ अंगओ, से भद्दओ, तेण अंगरिसित्ति नामं कर्त, रुद्दओ य बियओ, सो गठिभेदओ. ते दोषि दारुयाणं पत्थविता, अंगरिसी
दारुयाणं भारगं गहाय पडिएति, इमोवि दिवस रमित्ता विकाले संभरितं ताहे पधावितो अडवी, तं च पेच्छति दारुभारेणं एंत, सो चिंतेति-णिच्छूढो होमिति । इतो य जोगजसा नाम वच्छवाली पुत्तस्स पंधगस्स भ नेतूर्ण दारुभारएण एति, रुद्दएणं सा गद्दाए मारिता, दारुभारगं गहाय अण्णेण मग्गेण पुरतो अतिगतो, उचज्झायस्स हत्थे विहुणमाणो कहेति-एतेण तुज्झ सुंदरसी
सेण जोतिजसा मारिता वराई, विभासा, सो आगतो, धाडितो, वणसंडे चिंतेति, सुभज्झवसाणं जातीसरणं संजमो केवलनाणं, ॐादेवा महिमं करेंनि, देवेहि कहितं जथा एतेण अम्भक्खाणं दिण्णं, रुदओ लोकेणं हीलिज्जति, सो चितेति-सच्चयं मए अब्भक्खाणं ४ 5 दिण्णति, सो चिंतंतो संबुद्धो पत्तेयबुद्धो जातो, बंभणो बंभणी य पव्वइताणि, चत्तारिवि सिद्धागि १०॥
सुईनाम सच्चं, सञ्चं च संजमो, सो चेव सोयं, सच्चं पति जोगसंगहणं । तत्थ उदाहरण-१७२१ ॥१३९१।। सोरिकं नगरं सुरंबरो. जक्खो, तत्थ घणंजओ सेट्ठी सुभद्दा मज्जा, तेहिं सुरंवरो नमंसितो-जदि पुत्तो जाति तो महिसगसतं देमोनि, ताण संपची जाता, 18 ताणि संचुज्झिहितित्ति महावीरसामी समोसरितो, सेट्ठी निग्गतो, सभज्जो संबुद्धो, अणुव्वताणि गहिताणि, सो जक्खो सुविणए मग्मति महिससए, तेण पिदुमता दिण्णा । सामिस्स दो सीसा धम्मघोसो धम्मजसो य, एगस्स असोगपादयस्स हेट्ठा गुणेति, ते | | पुब्वण्हे ठिता, अवरण्हेवि छाया ण परियत्तति, एक्को भणति- तुझं लद्धी, वितिओ भणति-तुझं, एको कातिकभूमि गतो, तहेव |
दीप
ॐॐॐXXX
अनुक्रम [११-३६]
॥१९॥
ARRA
(206)
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६] / [ गाथा - १,२],
निर्युक्तिः [ १२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१९४॥
अच्छति, विइओषि गतो, तब अच्छति, तहिं णातं जथा न एकस्सवि लद्धी, सामी पुच्छितो, इहेव सोरिए जहा समुह विजयो रामा ४ सम्यग्दर्शन आसि, जण्णजसो तावसो भज्जा सोममित्ता प्रत्तो तीसे जष्णदत्तो, सोमजसा सुण्डा, ताण पुतो नारदो, ताणि उंछवित्तीण, एकशुद्धिः दिवस जेमेति, एकदिवस उपवास करेंति, ताणि तं नारदं पुष्वण्हे असोगपादवस्स हेडा ठवेऊण उंछति । इतो य वेदङ्कातो बेसमणकाइका देवा जैमका तेणं अंतणं वितीवयंति, ते पेच्छति दारगं, ओघिणा आमोईति, सो तातो देवनिकायातो चुतो, ते ताए अणुकंपाए र तं छाई थंमंति। एसा असोगपुच्छा नारदुप्पत्ती य । सो उम्मुकबालभावो तेर्द्वि जंभएहि विज्जाओ पुण्णतिमाओ पाठितो, कंचणकुंडियाए मणिपाउयाहि आगासेण हिंडति, अण्णदा बारवति गतो, वासुदेवेण पुच्छितो- किं सोयंति?, सो न तरति निव्वेदेतुं वक्खेवं काऊ अण्णाए कहाए उट्ठेति, पृथ्वविदेद्दे, सीमंधरं तित्थगरं गवाह वासुदेवो पुच्छति किं सोयं १, तित्थगरेण भणितं सच्चे सोयं, तेण एक्केण पादेन सर्व्व उवलद्धं पुणो अवरविदेहं गतो, जुगंधर वित्थगरं महाबाह तं चैव पुच्छितो, तस्सवि सन्धं उवगतं, पच्छा बारवर्ति आगतो वासुदेवं भणति किं ते तदा पुच्छितात?, सोयं, भणति सच्चे] १, । सच्चति पुच्छितो पुणो खोभाइतो, वासुदेवेण भणितं जहि ते तं पुच्छितं तर्हि एतंपि पुच्छितव्वं होतंति खिसितो, ताई भणतिसच्चं महारओ न पृच्छितोत्ति, चिंतितुमारद्धो, जाति सरिता, संबुद्धो, पढमं अज्झयणं सोच्चमेव वदति । एवं सोएण जोगा संगहिता १९ ।।
蒲
सम्यग्दर्शन विशुद्ध्यापि किल योगाः संगृह्यन्ते । तत्थ उदाहरणं १७-२४ ।। १३९४ ॥ साकेते महाबलो राया, पृच्छति-किं नाथ मम जं अष्णराईणं १, चित्तसमा, कारिता, दो विकखाता चित्तकारका तेर्सि दिण्णा विमलो पभासो य, जइणिकाअंतरिया चितंति,
(207)
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
SAPN-E
प्रतिक्रमणा एक्कण निम्मविता, एक्कण भूमी फता, रायाए तस्स दिहूं, तुट्ठी य पूहतो, पभाकरो पुच्छितो भणति-भूमी कता, न ताव चित्तेमि, समाधान ध्ययने सो चिंतेति-केरिसा भूमी कता ?, गतो, जणिका अवणीता, इतर चिचकम्मं तत्थ दासीत, राया कुविओ, पण्णविओ, पभणति
आचारोपमा एस्थ संकता, तं छाइयं, नबरिं कुएं पेच्छति, तुट्ठो, एवं चैव अच्छतुति भणितो, एवं सम्मत्तं बिसुद्धं कातव्वं । एवं जोगा संग-|
पगत्वं ॥१९५॥ लिहिता भवंति १२ ॥
___समाधाण-चित्तसमाधाणं । तत्रोदाहरण-सुदंसणपुर नगर, सुसुणागो गाहापती, सुजसा भज्जा, ताणि साणि, सुष्यतो पुचो, सुहेण गम्भ अछितो मुहेण जातो एवं वढितो एवं जाव जोब्यणत्यो संयुद्धो, आपुग्छिना पबहतो, एकल्लविहारपडिम४ पडिवण्णो, सक्कपसंसा, देवेहि परिक्खितो अणुकूलेण-धण्णो कुमारसंभयारी एक्केण, बितिएण को एताओ कुलसंताणच्छेदगाओ अधण्णोत्तिा, सो भगवं समो, एवं मातापिताणि से विसयपसत्ताणि दंसिताणि, पच्छा मारिजंतगाणि कलुणं कहेंति, तहावि समो, पच्छा सव्ये उदू विउम्बिया, दिव्वाए इस्थिगाए सविम्भमे पुलोइयमुक्कदोहनीसासमुवगूढो तथापि संजम समाधिततरी जातो, केवलं उप्पणं जाव सिद्धो १३ ॥
आयारउवगच्छणताए जोगा संगहिता भवन्ति । उदाहरण-पाडलिपुत्ते हुतासणो माहणो जलणसिहा भज्जा, सावकाणि, १९५।। भादो पुत्ता- जलणो य दहणो य, चचारि पव्वइताणि, जलणो उज्जुसंपण्णो, दहणो मायाबहुलो, एहित्ति जाति जाहिति एति, सो IM तस्स ठाणस्स अपडिक्कमिचा कालगतो, दोवि सोहम्मे उववण्णा अम्भितरपरिसाए पंचपलिओषमाइंठितीगा देवा जाता, सामी
।
+ गाथा: ||१२||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(208)
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
गवं
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा का आगतो, आमलकप्पाए अंबसालवणे समोसरणं,ते दोवि देवा आगता, तत्थ नविहि दाएंति, एक्कं उज्जुयं विउव्विस्सामित्ति बैंकाविनयापन ध्ययने
विकुव्वति, वंक विकृम्बिस्सामित्ति उज्जुयं विकुब्बति, एकको उज्जुय विकुब्बिस्सामित्ति उज्जुयं विकृव्यति बकं विउनिस्सामित्ति ॥१९॥ विकं विउव्वति, तं विकुवितं दट्टण गोतमसामी पुच्छति । ताहे सामी तं सञ्चं परिकहेति मायादोसोत्ति, जलणेणं आयारोवगतेण जोगा संगहिता इति १४ ॥
बिणयोपगतत्तणेण जोगा संगहिता भवन्ति, तत्थ उदाहरण-उज्जेणी अंबरिसी माहणो मालुका भज्जा, सङ्काणि, मालुका कालगता, सो पुनेण समं पन्चइतो, सो दुब्बिणीतो, काइकभूमीए कंटए निक्खणति, सज्झायं पढ़ताणं छीयति कालं उवहणति || सवं समायारं विवच्चासेति, ताहे साहुणो आयरिए भणति-जदि वा एसो अच्छतु अहवा अम्हे, सो निच्छ्ढो, पितावि से पच्छतो I&Iजाति, अण्णस्स आयरियस्स मूलं गतो, तत्थवि निच्छुढो, एवं किर उज्जेणीए पंच उवस्सयसताई, सव्वेहि निच्छुढो, सो खतो
गंतूण सण्णाभूमीए रुयति, सो भणति- किं खंत! रुपसिी, ताहे भणति खतो-तुम नामं निंबउत्ति कतं ण अण्णहा, एएहिं अणा
भागेहिं आयारेहिं तुम्हतणएण अहपि थाणं न लभामि, ण य बट्टति उप्पबतुं, ताहे तस्सवि खुडगस्स अद्धिती जाता, भणति*खता ! एक्कसि कहिंचि ठाणं लभामोति, भणति-न लम्भति, जदि नवरि पन्यावगाणं तहि मता, पन्चइता अक्खुभिता, आयरिका भणंति-मा अज्जो। एवं होह, पाहुणका अज्ज, कल्ल जाहिंति, ठिता, ताहे सो चेल्लओ तिण्णि तिण्णि उच्चारपासवण
का॥१९६१ भूमीओ पडिलहेति, सवा सामायारी विभासितम्बा,तुडा, सो णिचओ यमयखुद्दीओ जातो, तरतमजोगणं पंचवि सताणि पडिस्स| काणं आराधिताण, निग्गतुं न देति, एवं पच्छा सो विणओवगो जातो १५ ।।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(209)
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६] / [ गाथा - १,२],
निर्युक्तिः [ १२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
भाष्यं [२०५-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥१९७॥
faतीए जो मतिं करोति, तस्स जोगा संगहिता भवन्ति, तत्थ उदाहरणं - पंडुमंथुरा, तत्थ पंच पंडवा, तेहिं पन्नइतेहिं पुत्तों रज्जे ठवितो, ते अरिनेमिसामिस्स मूलं पधाविता, ते हत्थीकप्पे भिक्खं पहिंडिता, तेहिं हिंडतेहिं सुतं-अरिनेमी कालगतोति, तेहिं गहितं भत्तपाणगं च विगिचित्ता सेत्तुजे भत्तं पच्चकखातं, सिद्धा । ताणं वंसे अण्णो राजा पंडसेणो नाम, तस्स धृताउ मती य सुमती य, ताओ लक्खण० वंदियाओ सुरङ्कं वारिवसभोवहणंतेण समुद्देण एंति, उप्पातिएण लोको खंदरुदाणि नमसंति, इमाहिं धणिततरकं अप्पा संजमे जोड़तो, एसो सो कालोचि, भिण्णं वहणं, ताओ संजयतं सिणागतपि, कालगताओ सिद्धाओ, एवं एकत्थ सरीराणि उच्छलिताणि ताणि, सुट्ठितेण लवणाधिपतिना महिमा कता, देवज्जोतो कतो, ताहे पभासं तित्थं जातं । दोहिवि ताहिं घितीमर्ति करेंतीहिं जोगा संगहिता १६ ।।
सम्यग् वेगः उद्वेगः संवेगः, तत्थ उदाहरणं ।। १३९९-१४००। चपाए मित्तप्पभो राया, धारिणी देवी, धणमिचो सत्थवाहो, धणसिरी भज्जा, तीसे उबाइकसतेहिं पुत्तो जातो, लोको भणति जो एत्थ धणसमिद्धे कुले जातो तस्स सुजातं निब्बित्ते बारसाहे सुजातोति नामं कतं, सो फिर देवकुमारोपमे रूवेणं, तस्स ललितं भणितं अण्णे पुण सिक्खति, ताणि य सावगाणि । तत्थेव नगरे धम्मघोसो अमच्यो, पियंगू भज्जा, सा सुणेति एरिसो सुजातोति, अण्णदा दासीओ भणति-जदा सुजातो इतो वोलेज्जा तदा मम कहेज्जाए जं तो णं पेच्छामि, अण्णदा सो मितर्विदपरिवारितो तेण अंतेण एति, दासीहिं पियंगूए कहितं सा निग्गता, अण्णाओ य सवतीओ, दिट्ठो, ताओ भणति घण्णा सा जीए भागावडिओ, अण्णदा ताओ अवरोप्परं भणति अहो लीला तस्स, ताहे पिरंगू सुजातस्स वेसं करेति, आभरणवसणेहिं विभासा, सा य रमति, एवं वच्चति, एवं हत्यच्छोभा विभासा, अमच्चो
(210)
धृतिमतिः संवेगः
॥१९७॥ ॥
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ध्ययने
प्रत सूत्रांक
[सू.] + गाथा ||१२||
॥१९८॥
अतिक्रमणाय आगतो, निस्सद अंतेपुरति सोवाए निग्गच्छिय वारछिद्देश पलोएति. दिट्ठा विकहति एसो चिंतेति-विण? अंतेउरंति, भणति-15
संवेगः पच्छण्ण होतु, मा भिण्ण रहस्से सहरतराओ होहिंति, मारेतुं मग्गति सुजातं, विभेति, पिता से रणो अच्चितो, मा ततो विणासे ॥१९८ हितिचि उवार्य चितति, लद्धा, अण्णदा कूडलेहेहिं पुरिसा कता, जो मित्तप्पभस्स विपक्खा तण किर सामंतण लेहा विसज्जिता-1
४ मित्तप्पमं मारेहित्ति सुजानस्स, तुम वीसंमं गतो, ते अद्धं रज्जस्स देज्जिहित्ति, तेण से लेहा आणीता, रण्णो अग्गतो धारिता, दि राया कवितो, तेवि लेहकारका बज्झा आणता, तेण पच्छण्णा कता, मित्तप्पभो चितेति-जदि लोगणातं कजिजहिति तो पउरक्खो
भो मे होहितित्ति मम च तस्स रष्णो देज्जा अयसो, उवाएणं मारेमि । तस्स मित्तप्पभस्स एग पच्चतं नगरं अरखुरी नाम, तस्सर चंडज्झयो नाम राया, तस्स लेहं देति, जथा सुजातं पेसेमि तं मारेहित्ति, मुजातं सहावेत्ता भणति-वच्च अरक्षुरितं, तत्थ वितिजिओ होऊण रायकज्जाणि पेच्छाहि, गतो तं नगरि अरकारि नाम, दिहो, अच्छतु वीसत्था तो मारिजिजहिति, दिवे दिये एगट्ठा
भिरमति, सो तस्स रूबं संलि समुदायारं च दटूर्ण चितेति-गुणं अंतपुरिए सम विणट्ठा तण मारिज्जति, तो किहएरिसं रूर्व ट्र विणासमित्ति उस्सारता सर्व परिकहेति लेहे च दरिसेति, तेण सुजातेग भणति-जं जाणसि ते करेहित्ति, तेण भणित-न तुम ट्र *मारेमित्ति, एकं करेहि, पच्छण्णो अच्छाहित्ति, तेण चंदजसा भगिणी दिण्णा, सा घि तंदूसिता, तीए सम अच्छति, परिभोगदो
॥१९८॥ 3 सेण वडित, सुजायस्सवि ईसित्ति संकेत, सावि तेण सडी कता, चिंतेति-मम तणएणं एसोवि विणहोत्ति संवेगमावना, भत्ता दापच्चक्खाति, तेण चव निज्जामिता, देवो जातो, ओधी पउंजति, दणं आगता, बदिता भणति-कि करमा, सो संवेगमावण्णो
चिंतेति-जदि अम्मापियरो पेच्छेज्जा तो पब्वयामि, तेण देवेण सिला विकुन्त्रिता नगरस्त उवरिं, नागरा पयता धूवहत्था पाद
CARRIEREASE
दीप
अनुक्रम [११-३६]
Aceticsk*
(211)
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
संवेगा
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणापडिता विष्णवेति , देवो तासति-हा दासा। सुजातो समणोवासो अमरचण अकज्जे दृसिनो अज्ज मे चूरेमि, तो नवरि मुगामि । ध्ययने
जदि नवरं तं आणेचा पसादेह, कहिं सो, भणति एस उज्जाणे, सगागरो राजा णिग्गतो खामितो, अमापितरो रायं ॥१९९||
४च आपुच्छित्ता पच्चइतो, मातापितंपि पब्बइतं, ताणि सिद्धाणित्ति । सो य धम्मघोसो निब्बिसओ आणतो, जेण तस्स गुणा
पतरंति, जथा-यथा नेत्रे तथा सील, यथा नाशा तथाजवम् । यथा रूपं तथा विनं, यथा सील तथा गुणाः ||१|| अथवा- विषम VI समविषमसमा, विषमैर्विपमाः समः समाचाराः । करचरणकणेनासिकदंतोष्ठनिरीक्षणेः पुरुषाः ।। २ ।। पच्छा सोवि निव्वेदमावण्णो,
सच्चं मए भोगलोमेण विणासावितोत्ति निग्गतो, हिंडतो रायगिहे थेराणं अतिए पव्वइतो ।। विहरंतो बहुस्सुतो वारत्तपुरं गतो, सातत्थ अभग्गसेणो राया, बारचो अमरचो, सो मिक्खं हिंडंतो वारत्तगस्स परं गतो, तत्थ य पतमधसंजुत्तं पायसस्थालं जीणितं,
भंडणं जातं, तत्थ विन्दू पडितो, सो पाडितं तं नेच्छति, वारत्तओ ओलोकणगतो पेच्छति, जाब तत्थ मच्छिकाओ लीणा, ताओ | घरकोइलिका पत्थेति, तं मज्जासं, मज्जारं घरपच्चंतियसुगओ, तं वत्थयओ चिंतेति, ममचि ते दोषि भंडणं लग्गा, मुणसामिका उहिता, भंडणं जातं, मारामारी, बाहि निग्गना, पाहुणका बलं पिंडेता आगता, महासंगामो जातो, पच्छा वारत्तओ
पचिंतितो-एतण कारणेणं न इच्छितंति, सोभणं अज्झवसाणं उवगतो, जाती सरणं, संबुद्धो, देवताए भंडणकं उवणीतं । सो बारतकहरिसी विहरतो सुंसुमारपुर आगतो, तत्थ धुंधुमारो राया, तस्स अंगारवती धूता रूविणी साविका, तत्थ परिवाइका अतिगता,
वाद पराजिता, पदोसमावण्णा, सा चितेति-बहुसावत्तए पाडेमिति चिनफलहए लिहिता उज्जणीए पज्जोतस्स अत अतिगता, दि@ फलक, पज्जोतेण पुच्छिता, कहितं च णाए, पज्जोतो तस्स अक्कंतीए दूतं पैसेति, मो धुंधुमारेण निच्छुढो, भणति-पिवा
दीप
॥१९९॥
अनुक्रम [११-३६]
PERA
(212)
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथाः ||१२||
RECT
अतिक्रमणा साए विषएण य दिज्जइ, दूतणं पडिआगतेणं बहुतरकं पज्जोतस्स कहितं, आसुरत्तो निग्गतो सब्वबलेणं, सुसुमारपुरं रोहति, प्रणिधिः ध्ययन धुधुमारो अंतो अच्छति अप्पचलो य । वारत्तकरिसी एकत्थ जक्खघरए चच्चरमुले ठितेल्लओ,सोराया भीतो एसो महाबलवकोत्ति, ॥२०॥
मिनिकं पुच्छति, सो भणति-जाव ताव निमित्तं गेण्हामि, चेडकरुवाणि रमंति,ताणि भेसविताणि, तस्स वारत्तकस्स मूलं गताणि 13/रोवंताणि, तेण भणिताणि-मा बीभधत्ति, सो आगंतु भणति- तुज्झ जयोति, ताहे मज्झण्णे उस्सण्णद्धाण उवरि पडितो, वेदिता
नगरं नीओ, बाराणि बद्धाणि, पज्जातो भणितो-कतोमुहो ते वातो?, भणति-जं जाणसि तं करेहि, भणति-किं तुमए महासासणणं | विणासितेणं, ताहे से महता विभूतीए अंगारवती दिण्णा, बाराणि मुक्काणि, तत्थ अच्छति, अण्णे भणंति-तेण देवताए उच. | चासो कतो, तीए चेडरूवाणि विउविताणि, निमित्तं गहितंति, ताहे पज्जोतो नगर हिंडति, पेच्छति अप्पसासणं रायार्ण,। अंगारवतीं पुच्छति-किह अहं गहितो?, सा साधुवयणे कति, सो तस्स मुलं गंतु भणति-वंदामि नेमित्तिकखमणाति, सो भगवं* उवउत्ते पब्बज्जातो जाव चेडकरूवाणि विउविताणि संभरिताणि । चंदजसोए सुजातस्स धम्मघोसस्स पारतकस्स सम्वेहिदि संवगण | जोगा संगहितत्ति, केइ तु सुरंवरं जाव मितावती पन्चइता परंपरओ, एतपि संभवति । संवेगिति गतं १७ ॥
पणिधी नाम माया,सा दुविधा-दव्वपणिधी य भावपणिधी यादब्धपणिधीए उदाहरण-मरुकच्छे णधवाहणोराया कोससमिद्धो, इतो य पतिट्ठाणे सालवाहणो बलसमिद्धो, सो नहवाहणं रोहति, सो कोससमिद्धो जो हत्थं वा सांसं वा आणेति तस्स सहस्से य ॥२०॥ सतसहस्से य कोडादीए हियं देति, ताहे ते नहवाहणमणुस्सा दिवे दिवे मारेंति, सालवाहणमणुस्सावि केइ मारेला आणेति, सो तेसिंह न किंचिवि देति, सो खीणजणो पडिज्जाति, पुणो रितीयवरिसे एति तत्वविहतो पासेति, एवं कालो बच्चति,अण्णदा अमच्चो भणति-T
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(213)
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
॥२०१॥
+ गाथा: ||१२||
अतिक्रमणाममं अवराहेत्ता णिव्विसयमाणबेहि, मणूसाणि य बंधादि, तेण तहेव कतं, सोवि ततो निग्गंतूण भरुयच्छ गुग्गलभारं गहाय गतो, प्रणिया ध्ययने
एकत्य देवकूले अच्छति,सामंतरज्जेसु य फुडित जथा सालवाहणेण अमच्चो णिच्छ्ढोति,मरुयच्छे य न जातो केणइ, केणइ कोसित्ति पुच्छितो भणति- गुग्गलभगवं नाम कतै अहंति, जहिं वा गातो ताण कहेति जथा जेण विहाणेण निच्छढी अहालहुसंगणति, पच्छा | | नहवाहणेण सुतं, मणुस्सा विसज्जिता, नेच्छति कुमारामच्चत्तणस्स गंधपि, सो य आगतो राया, संत नीओ ठवितो य, अमच्चो संग्रहाः १८ | वीसभ जातितूण भणति- पुण्णेहिं रज्ज लहति, पुणोवि अण्णास्स जम्मस्स पत्थयण कीरतु, ताहे देवकुलाणि धूमतलागवावीओ नहवाहणखाइका च, एवमादीहिं दवं विणासितं, सालवाहणो आवाहितो,पुणोषि ता विसज्जितं,अमच्च भणति- तुमंपि घडितो, सो भणति-न घडामि, अंतेपुरिगाण आभरणा पहिति, पुणो गतो पतिद्वाणं, पच्छा अंतेपुरियाण णिव्वाहेति, तमि निहित | सालवाहणो आवाहितो, नस्थि दातब्ब, सोवि पलातो नगरंपि गहितं । एसा.दवप्पणिधी॥ भावप्पणिहाणिए उदाहरण| भरुयच्छे जिणदेवो आयरिओ, भयंतमित्तो कुणालो य तच्चनिका दो भातरो वादी, तेहिं पडहओ निक्खालितो, जिणदेवो | चतियवंदओ गतो मुणेति, तेण बारितो, रायकूले बादो जातो, पराजिता रत्तपडा, दोवि य ते पच्छा विणा एतेसिं सिद्धतेणं ण तीरति उत्तरं दातुति पच्छा मातिहागणं ताणं मूले पव्वद्दता, विभासा गोविंदवत् , पच्छा पढंताणं उवगतं,ते भावतो पडिवण्णा, साधुणो जाता । एसा भावप्पणिधी १८॥
सुविधीए जोगा संगहिता भवंति, विधिरनुज्ञा जा जस्स इट्ठा सा भवति सुविधी, तत्थ उदाहरणं जहा सामाइयनिज्जु-15 त्तीए अणुकंपाए-बारवती वेतरणी धनंतरि अ भविषअभाविके वेज्जे । करणा य पुच्छियमी गति निदेसे य संयोधीला
CCXACTERCACANCH
दीप
अनुक्रम [११-३६]
२०१॥
(214)
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा ॥१॥सो वानरजूहवती चिंता य सोभणा जाता, साधुणा य कहितं तेहिं गतिदिएहिं,सहस्सारे उपवण्णो,सो य साहरितो १९॥ प्रणिध्याध्ययने
संवरण जोगा संगहिता भवति, तत्थ पडिबक्षण उदाहरण-रायगिहे सेणिएणं बद्धमाणसामी पुच्छितो, एक्का देवी नट्ट- दमो ॥२०२॥
विधि उपदसत्ता गता, का एसत्तिः, सामी भणति-वाणारसीए भइसेको जुण्णसट्ठी, तस्स भज्जा नंदा इति, तीसे धूता सिरी, सानी ४ा बडकुमारी वरकपरिवज्जिता, तस्स कोढए चितिए पासस्सामी समोसढो, सिरी पन्चइता, गोवालीए सीसिणिका दिण्णा, सा
संग्रहाः हैपुवं उग्गेण विहरिना पच्छा ओसण्णा जाता, हत्येण पादे धोचति जथा दोवती विभासा, वारिज्जंती उद्धेतूण अण्णत्थ गता है।
१९-२१ विभत्ताए बसहीए ठिता, तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंता चुल्लहिमवते पउमे दहे सिरी जाता देवगणिका, एताए ण संवरो कतो, पडिवक्खा कातब्बो, अण्णे भणंति- हत्विणिकारूवेण वाउक्काएति, ताहे सेणिएणं पुच्छित २०॥
अत्तदोसोवसंहारो कातब्बो,जदि किंीच काहामि तो दुगुणो धो होहितित्ति,तत्थ उदाहरणं-बारमतीए अरहमित्तो सेट्ठी, अणुधरी भज्जा, सावकाणि, जिणदेवो पुत्तो, तस्स रोगो उप्पण्णी, ण तीरति चिगिच्छितुं, वेज्जा भणंति-मांस खाहि, सो| |णच्छति, सयणपरियणो अम्मापियरो य पुतणेदेणं अणुजाणंति, सो णेच्छति, किह चिररक्खितं बतं भजामित्तिा, उक्तं च| वरं प्रविष्ट ज्वलितं हुताशनं, न चापि भग्नं चिरसंचितं व्रतम् । बरं हि मृत्युः परिशुद्धकर्मणा,न शीलवृत्तस्खलितस्य जावितम् ॥१॥ अचदोसोवसंहारो कतो, मरामित्ति सच सावज्ज पच्चक्खात, कहवि पउणो तहावि पञ्चकखातं चेव, पन्वज्जा कता, इतो सुहावसाणस्स णाणमुप्पणं जाब सिद्धोत्ति २१॥
IM॥२०२॥ सव्वकामेसु पिरज्जितव्वं,तत्थ उदाहरणं-उज्जणीए देविलासत्तो राया,तस्स भज्जा अणुरत्ता लायणा णाम,अण्णदास
CMSADHA
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(215)
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
AAK
प्रत सूत्रांक
+ गाथाः ||१२||
प्रतिक्रममा राया सेज्जाए अच्छति, देवी वाले जोएति, ताए पलितं दिई, भणति-भट्टारगा! दूतो आगतो, सो य ससंभम भयहरिसाइतो प्रणिध्याध्ययने उद्वितो, पच्छा देवी भणति-धम्मदूतोत्ति सणितं अंगुलीए वेढेचा उक्खतं, सोवण्णे थाले धोमजुयले ठएत्ता नगरं हिंडावितं, पच्छा अद्धिती कति, अण्णदा अजाते पलिते अम्हें पुब्बजा पव्ययंति, अहंपि पब्बयामित्ति पउमरहे पुतं ठवेत्ता पश्चइतो सदेवीओला
संग्रहा: २२ ॥२०३तावसो, संगतओ दासो अणुमतिका दासी, ताणिवि अणुरागेण पब्वइताणि, असितागरिमि .अस्समो तावसाणं, तत्थ गताणि, II
संगतओ य अणुमातका य केणति कालतरेण उप्पब्वइताणि, वाणि दोण्णावि अच्छंति, देवीए गम्भो नक्खातो, संवदितुमारद्धो, राया अद्धिति पकतो अयसो जातोत्ति, अवसंचसो पच्छणं सारवेति, सुकुमाला देवी बियायन्ता कालगता, तस्थ दारिका जाता, सा अण्णाणं तापसीण धणं पिर्यती संपड्डिता,ताहे से अद्धसंकासत्ति नाम कर्त, सा जोवणत्था जाता, सा पितर अडवीतो आगतं वीसामेति । सो तीसे जोवणे अझोववष्णो अज्जा हिज्जो लएमिति मुमति, अण्णदा पधावितो गेहामिति, उडगकडे 13
आवडितो पडितो चिंतेतुमारद्धो-धिद्धिीच, इहलोग फलितं एतं, परलोए ण णज्जति किपित्ति संयुद्धो, जाती सरिता, भणतिशभवितव्वं खलु भो सब्बकामविरत्तेणंति अज्झयण भासति । धूता निरज्जे, संजतीणं दिण्णा, सिद्धाणि । एवं सच्चकामविरज्जितेण जोगा संगहिता २२॥
पचक्वाणं दुविहं-मूलगुणपच्चक्खाणं च उत्तरगुणपच्चस्खाणं च, मूलगुणपच्चक्खाणे उदाहरण-साएते सत्तुंजयो का राजा, जिणदेवो सावओ, सो दिसाजाताए गतो कोडिवारिसं, ते मेच्छा, तत्थ चिलातो राया, तस्स तेण पण्णाकारी रतणाणि मणीया पोचाणि य दिण्णाणि, तत्थ ताणि गस्थि, सो चिलातो पुच्छति, अहो रतणाणि रूवियाणि, कहिं एताणि?, सो साहेति,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(216)
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
BREAR
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा अण्णरज्ज, चिंतेति-जदि नाम संबुझेज्ज, सो राया भषति-अहे जामि, रतणाणि पेच्छामि, तुब्भ तणकस्स रष्णो बीहेमि, जिणदेयो प्रणिध्याध्ययने भणति-मा बीभेहि, ताहे तेण तस्स रण्णो पेसितं, तेण भणितं-एउत्ति , आणीतो साकेत, महावीरस्स समोसरणं, सत्तुंजतो निष्फिडोलो सपरिवारो,महता इट्टीए जणसमूहो निष्फिडितो,तं पासित्ता चिलातो जिणदेवं पृच्छति-कहि जणो जाति,सो भणति-एस सो रतण-
1 याग॥२०४॥
तासंग्रहाः ४ वाणिओ, भणति-जामो पेच्छामोति, दोवि जणा निग्गता, पेच्छति भट्टारगस्स छत्तातिच्छत्तं सीहासणाणि विभासा, पुच्छति-कहा
लब्भति?, ताहे सामी दब्बरतणाणि भावरतणाणि य वण्योति, भणति चिलातो-मम भावरतणाणि देहित्ति,भणति-रतहरणगोच्छएहिं । साहिज्जंति, पब्वइतो । एते मूलगुणा २३ ॥
उत्तरगुणपच्चक्खाणे चाणारसी णगरी, तत्थ दो अणगारा वासावासं ठिता-धम्मघोसो धम्मजसो य, ते मासेणं मासखमगणेणं अच्छति, चतुत्थे पारणगे मा णितियवासो होहितित्ति पढमाए पोरिसीए सज्झाय वितियाए अस्थपोरिसी ततियाए उग्गामहेता पधाइता, ते सारइएणं उण्हेणं अम्भाहता तिसाइवा गंगं उत्तरमाणा मणसोवि पाणियं णेच्छंति, ते उत्तिष्णा, गंगादेवताए दगोउलाणि विउन्विताणि, आउट्टा समाणी विभासा, ताहे सदावेति-एह साधू ! भिक्खं गेहह, ते उवउत्ता दट्टण तस्स रूवगंधा | साहहिं पडिसिद्धा, पधाइता, पच्छा ताए अणुकंपाए वासवद्दलं विकुव्वितं, भूमी उल्ला सीतलेणं बातेणं अप्पाइता, गाम पत्ता, तत्थ भिक्खं गहाय पारितं, एवं उत्तरगुणा २४ ॥
२०४॥ वियोसग्गो भाणितब्बो दव्ववियोसग्गे व भाववियोसम्गे य उदाहरणं जथा-चपाए नगरीए दाहिवाहणो राया, चेडमधूता पउमावती देवी, तीसे दोहलो किह अहं राबवत्थरस्थिता उज्जाणकापणाणि विहरेज्जा, सा उलुग्गसरीरा जाता,
दीप
R
अनुक्रम [११-३६]
(217)
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
[सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाबराया पुच्छति । ताहे राया व सा य जयहस्थिमि, राया छत्तं धरेति, गता उज्जाणए, पढमपाउसंच, सीतलएण मट्टिगागंण
व्युत्सर्मः ध्ययन हत्थी अम्माइते वर्ण संभरइ, वियड्डो वणाभिमुहो पयायो, जणो ण तरति ओलग्गितुं, दोवि अडविं पवेसिता, राया वडरुक्खें |
पेच्छति, देवि भणति-एतस्स बडस्स हेद्वेण जाहित्ति तो तुम साखं गेण्हेज्जासि, ताए पडिमुतं, न तरति, राया दक्खो, तेण टू ॥२०५॥
साला गहिता, सो उत्तिण्णो, निराणंदो गतो चपं, साविय इथिका णीता निम्माणुसं अडवि, जाव तिसागतो पेच्छति दहं महतिमहालयं, तत्थ उत्तिण्णो अभिरमति हत्थी, इमावि सणियं ओइण्णा, ओकिण्णा तलाकाओ, दिसाओ न जाणति, एकाए| दिसाए साकारभत्तं पच्चक्खाइत्ता पधाविता, जाव दूरं गता ता तावसो दिडो, तस्स मूलं गता, अभिवादितो, पुच्छति-कतोसि
अमो ! इहं आगता', ताहे कहेति-अहं चेडगस्स धूता जाव इहं हत्थिणा आणीता, सो य तावसो चेडगनियल्लओ, तेण आसा-| |सिता-मा बीभेहित्ति, ताहे से यणफलाणि दातूणं एकाए दिसाए अडवीतो णीणिता, एतोहिंतो हलच्छित्ता भूमी, तं ण अक्कGIमामो, एसो दंतपुरस्स बिसयो दंतचक्को राया, ता तुमं अडबीओ निग्गता, दंतपुरे अज्जाणं मूले पबहता, पुच्छिताए गन्मो |
नक्खातो, पच्छा णाते महत्तरिकाणं आलोएति, सा बियाया समाणी सह नाममुद्दाए कंबलरतणण य सुसाणे उज्झति, तत्थर ४. मसाणपालो पाणो तेण गहितो, मज्जाए अप्पितो, अवकिण्णपुत्तत्ति नामं कर्त, सा अज्जा तीए पाणीए समं मेति करेइत्ति, |सा अज्जा ताहि संजतीहिं पुच्छिता-कहिं गम्भो?, भणति-मतगो जातो, मे उज्झितो, सो तत्थ संवद्धति, ताहे दारगरूवेहि समं
| रमति, सो ताणि डिक्कारकाणि भणति-अहं तुज्म राया मम कर देह, सो सुक्खकच्छूए गहितो, ताणि भणति-मम कंडुयह, ताहे IRIसे करकंडत्ति णाम कतं, सो य ताए संजतीए अणुरचो, साय से मोदए देति, जंवा मिक्खं लट्ठ लभति, संवड़ितो सो म
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥२०५॥
(218)
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
अतिक्रमणा | साणं रक्सति, तत्थ दो संजता ते मसाणं केणति कारणेण अतिगता जाब एगत्थ वसाडगे डंडगं पेच्छंति, तत्थ एगो उंडगल-1 व्युस्सगे: ध्ययन हक्खणं जाणति, सो भणति-जो एतं डंडगं गेहति सोय राया होहितित्ति, किंतु पडिच्छितब्बओ. जाब अण्णाणि चत्वारि अंगु-४ ॥२०६॥
लाणि वड्वति ताहे जोगोत्ति, तं तेण मातंगचेडएणं एक्केण य धिज्जातिएणं सुर्य, साहे सो धिज्जाइको अप्पसारिकं तस्सा
चउरंगुलं खणिऊण छिदति, तेण य चेडेण दिद्रो, उहालिओ, सो तेण पिज्जाइएणं करणं णीतो देहिटगं, सो भणति-मम | समसाणे, न देमि, धिज्जातिगो भणति-अण्णं गेह, सोणेच्छति, भणति-एतेण ममं कर्ज, सो दारओ न देति, ताहे दारओ VIपुच्छितो-
किन देसि', भणति-अई एतस्स डंडगस्स पभावेण राया होहामिति ताहे ते काराणका हसितूण भणति जदा तुम 18 राया होज्जासि तदा तुम एतस्स गाम देज्जासि, पडिवण्णो, तेण धिज्जातिगेण अण्णे धिज्जातिगा गहिता जथा एतं मारेत्ता हिरामो. ते तस्स मातपिताए सुतं, ताणि तिण्णिवि नढाणि जाव कंचणपुरै गताणि, तत्थ राया मरति, आसो अधिवासितो,
तस्स चाहिं पुत्तस्स मूलं आगतो, पदाहिणीकातूणं ठितो, जाब नागरा पेच्छंति लक्खणजुत्तं, जयसहो कतो नंदीतूरं आहतं इमोवि
भंती उडितो, बीसत्थो आसं विलग्गो, पवेसिज्जति, मातंगोत्ति धिज्जातिगा ण देन्ति पवेस, ताहे तण रडगरतर्ण गहित, AIजलितुमारद्धं, ते भीता ठिता, ताहे वेण वाडहाणगा हरिएसा धिज्जातिगा कता, उक्तं प-दातवाहनपुत्रेण, राज्ञा तु करकइना ।
वाटहानकवास्तव्याश्चांडाला ब्राह्मणीकृताः ॥१॥ तस्स य घरनामं अवकिष्णकोत्ति, पच्छा से तं चेडरूवकतं पतिहितं करक-IP२०६॥ कत्ति, ताहे सो धिज्जातिको आगतो, देहि मम गाम, मणति-जो ते रुञ्चति, सो भणति-मम चंपाए घरं तत्थ देहि, ताहे दहि| वाहणस्स लेहं देति-देहि ममं गं गाम अहं तुझं जे रुरुचति गामं वा नगर वा तं देमि, सो रुट्ठो-दुट्टमातंगो अप्पाणं न याणति,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(219)
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
॥२०७॥
+ गाथा: ||१२||
R-
अतिक्रमणाला तो मम लेहं देतित्ति, दतण आगतेण कहितं, करकंह कुवितो, गतो, चंपा रोधिता,जुज्झं वकृति, ताहे संजतीए सुतं-मा जणक्खओर ध्ययने होहितिति करकई उस्सारत्ता रहस्सं मिंदति एस तव पितत्ति, ताणि अमापितरो पुच्छिताणि, तेहिं सम्भावो कहितो, माणेणं ण |
ओसरति, ताहे सा चपं अतिगता, रणो घरं एति, णाता, पादपडिताओ दासीओ परुष्णाओ, रायाएवि मुतं, सोवि आगतो, वंदिचा आसणं दातूणं तं गर्भ पुच्छति, भणति-एसो जो एस णगरं रोहिता अच्छति, तुडो, निग्गतो, मिलितो, दोवि रज्जाणि तस्स दातृणं दधिवाहणो पब्यइतो, करकंडू महासासणो जातो। सो किर गोउलप्पिओ, अणेगाणितस्स गोउलाणि जाताणि, जाब सरदकाले एग गोवच्छयं घोरगचं सेनतं पेच्छति,मणति-एतस्स मातरं मा दुहेज्जह, जदा बढितो होज्जा तदा अण्णाणं गावीणं दुई पाएज्जाह, ते गोवा पटिस्सुणंति, सोवि उ वत्तविसाणो खंधवसभो जातो, राया पेच्छति, सो जुद्धिकतो जातो, पुणो कालेण राया आगतो, पेच्छति महाकायं जुष्णवसमं पटुएहिं परिघट्टिजंत, गोवे पुच्छति-कहिं सो वसभोत्ति ?, तेहिं सो दाइतो, पेच्छंतओ विसण्णो, चितेति 'सेयं सुजायं० गोटुंगणस्स • पोराणयं० एवं संबुद्धो, जाइसरणं, पबहतो विहरति ।।
इतो य पंचालासु जणवदेसु कंपिल्लं नगरं, तत्थ दुम्मुहो राया, सो इंदकेतुं पासति लोगेण महिज्जतं अणेगकुडभीसहस्सपरिमंडिताभिरामं, पुणो य चिलुत्तं पडितं च मुत्नपुरीसाण मझे, सोचि संबुद्धो, जो इंदकेतुं मुयलंकियं तु० सोवि विहरति ।
इतो य विदेहे जणवए मिहिला णगरी, तत्थ नमी राया, तस्स दाहो जातो, देवी चंदणं घसति, बलयाणि खलखलेंति, सो भणति-कण्णाघातो होति, देवीए एक्केण एक्कं अवणेतीए सम्बाणिबि अबणीताणि, एक्के ठितं, राया तं पुच्छति, ताणि:
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥२०७॥
CHASSANSAR
(220)
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा | वलयाति न खलखलात, सा भणति-अवणीताणि, सो तेण दुक्खेण अम्भाहतो परलोकाभिमुद्दो चितेति-बहुकाण सो, एक्कस्स ण, व्युत्सर्गः ध्ययने ताएवं बयाणं० जाब विहरति ।
W इतो य गंधारविसएसु पुरिसपुरं नगर, तत्थ नग्गई राया, सो अण्णदा अणुजचं णिग्गतो, पच्छति चूतं कुसुमित, तेणं एगा ॥२०८॥
मंजरी गहिता, एवं खंधावारेण लएन्तेणं कट्टापसेसो कतो, पडिएतो पुच्छति-काहिं सो चूतरुक्खे', अमच्चेण अक्खातो, पस्सति, तो किह कद्राणि कतो, भणति-तुम्मेहिएगा मंजरी गहिता, पच्छा अण्णोण जणेण गहिता, सो चिंतेति-एवं रज्जसिरित्ति जाच रिद्धी ताब सो भणति-अलाहि, जो चूतरुवं । १७४६ । २१६ भा० । सोवि विहरति । चत्तारिवि बिहरमाणा खितिपद्र तिढे णगरे चाउब्बार देवकुलं, पुथ्वेण करकंडू पविट्ठो, दुम्मुखो दक्षिणेण, किह माधुस्स अण्णतोमुहो अच्छामित्ति तेण वाणम
तरेण दक्षिणपासेवि मुहं कतं, नमी अवरेणं, ततोपि मुहं कतं, गंधारो उत्तरेण, तओषि मुहं कर्य । तस्स किर करकंटकस्स आबालतणाउ सा कंडू अस्थि चव, तेण कंकणं गहाय मसिणमसिणं कण्णो कंडूइतो, तं तेण एगस्थ संगोवितं तं दुमुहो पेच्छति । | सो भणति-जदा रज्जं०। १७-४-७) उ०२७६।। जाव करकंट्ट पडिवयणं न देति ताव नमी वयणसमकं इमं भणति जदा ते
पितिये रज्जे ॥ उ० २७७।। कि तुम एतस्स आउनगोत्ति भणति, ताहे गंधारो भणति-सव्वं परिचज्जा । उ०२७८॥ होताहे करकंड भणति-मोक्खमग्गपवण्णाणं. (गं पवनंसु)।१७प्र० उ०२७९ ।। मस्सऊवा परी मा बा०।१७-५११
जधा जलंताणि । १७-५२ | १४००। सुचिरंपिबं०।१५-५३।१४१ ताण सव्वाणपि दबबिउम्सम्गो जं रज्जाणिल उज्झिताणि, भावविउसग्गो कोहादीण २५ ॥
२.८॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(221)
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा
न पमादो अप्पमावो, तत्थ उदाहरण-रायगिहे जरासंघो राया,तस्स सव्वप्पहाणाओ दो गणिकाओ-मगहसुंदरी मगहसिरी अप्रमादो ध्ययने य, ममहसिरी चिंतेति-जदि एसा न होज्जा मए एक्कलियाए राया हत्थगतो होज्जा जसो यत्ति, तीसे छिद्दाणि मग्गति,
तायाम ॥२०९॥४मगहसुंदरीए नमृदिवसंमि कण्णिकारेसु सोचण्णिकाओ विसधृविताओ सूचीओ केसरसरिकाओ पक्खित्ताओ, ताहे तीए मगहसं- संग्रह
हैदरीए महतरिका पेच्छति-भमरा कणिकाराणि न अल्लियंति, चूतेसु णिन्ति, ताहे ऊहित-गुणं सदोसाणि पुप्फाणिचि, जदिय
मणिहिन्ति-एतेहिं पुफेहिं अच्चणिका अचोक्खा विसभाविताणि वा तो गामेल्लकत्तणं होहितित्ति, तो उचाएण वारेमि, सायरवं उत्तिण्या, अण्णदा मंगलं गाइज्जति, तं दिवसं इमं गीतियं पगीता-पत्तए वसंतमासए ॥ सा चिंतेति- अपुव्वगीतिका,
णातं सदोसाणि कण्णिकाराणि, ते परिहरंतीए गीतं नच्चितं च सविलासं, ण य छलिता, परिहरिय अप्पमत्ता नई गीतं किर Bान चुक्का । एवं साधुणाथि पंचविहे अप्पमादे रक्खेंतेण जोगा संगहिता भवति २६ ।। ला.सो य अप्पमादो लवे अद्धलवे वा पमाद ण जाइतव्वं । भरुअच्छे एको आयरिओ, तेण विजयो सीसो उज्जेणिं पत्थविओ
कज्जेणं, सो जाति, तस्स गिलाणकज्जेण केणइ वक्खेवो, सो य अंतरा वासावासेण रुद्धो, अणुगवणं उद्वितंति गडपिडए गामे ४ावासावासं ठितो नागघरे, सो चिंतेति-गुरुकुलवासो न जातो, इहवि करेमि, तहेव जो उबदेसो तेण ठवणायरितु ठावितो, सो|
कालं गहाय आवस्सए काउस्सग्गं कात्रणं वंदिचा आलोएति, मज्झवि वंदित्ता परुचक्खाणं सयमेव गेण्हति, पच्छा कालं निवेदेति ॥२०॥ सयं चैव भणति-तहचि, एवं चक्कवालसमायारी विभासितव्या,एवं किर सो सम्वत्थ प चुक्को, खणे खणे उखनिज्जति-र्कि मे |कतं किं च मे किच्च सेसमिति । एवं किर अप्पमादेणे जोगा संगहिता भवति २७ ।।
दीप
अनुक्रम [११-३६]
CA
(222)
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
SARK
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा झाणेणं संवरो जोगाणं जत्थ सो माणसंबरजोगो, जोगसंगहो । तत्थोदाहरण-सबबद्धणे णगरे मुंडिवओ राया, तत्थ . ध्ययने बसुभूती आयरिया बहुसुता, तेहिं सो राया उबसामितो सतो जातो, ताणं सीसो पूसमितो बहुस्सुतो अण्णत्व ओसण्णो अच्छति,
लसंवरयोग: ॥२१॥ अण्णदा तेर्सि आयरियाणं चिंता जाता-सुहमझार्ण पविसामि, ते महापाणसरिसर्य, तं किर जाहे पविसति ताह एवं जोगसनि
रोधं करोति जथा किंचिविण चेतति, ताण य जे मूले ते अगीतत्था, तेण पुसमित्तो सहावितो, आगतो, कहितं से, तेण पडिवणं, ताहे ते एकत्थ उव्वरए निब्बाघातेण झायति, सो तेण अंतेण ताणं पवेसं न देति, मणति-एत्तो ठिता बंदह, आयरिया बाउला, त एवं करेति । अण्णदा ते अवरोप्परं मंतेति-कि मणे होज्जा, गवेसासु ता, एगो उबरगबारे ठितो निबण्णेह, चिरं अच्छितो, | आयरिओ न चलति न फंदति, ऊसासनीसासोवि नत्थि, सुहमो किर एवं, तेण गतूण अण्णोर्सि कहितं, तेहिवि जोइत, ते | &ारुडा, अज्जो। तुम आयरिए कालगएविन कहेह; सो भणति-पा कालगतत्ति, झायंति, मा बाघात करेह, अण्णे मणंति-पण्याइ-1
तगा एसो लिंगी मण्णे वेताल वा साहेतुकामो लक्खणजुत्ता आयरिका तेण न कहेति, अज्ज राति पेच्छिहिय, ते आरद्धा तेण सम विवदितुं, तेण बारिता, ताहे तेहि सो राया उत्सारेतूर्ण आणीतो, आयरिया कालगता सो किंगीन देति निष्फेडितुं, एसोवि राया पेच्छति, तेणवि पत्तितितं जहा कालगतात्त, पूसमित्तस्स न पत्तीयति, सीया सज्जिता, जाहे णिच्छओ णातो ताहे विणासित सेहेहिति, पुर्व भणितो सो आयरिएहिं-जाहे अगणी अण्णो वा अच्चयो होज्जा ताहे वामगुहए छिवेज्जासिति, छित्तो,का ती पडिबुद्धी, भणइ-किं अज्जो! वाघातो को', भणति-पेच्छह एतेहिं सेहेहि तुजा कत, ते अबाडिता परिसिका किारका IXR१ पविट्ठो । एरिसिक किर साणं पविमितवं तो जोगा संगहिता भवति २८ ।।
R-54SEXSIVE
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(223)
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
राधनाः
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा
II उदओ जदिवि किर मारणतिया वेदणा तोवि अहिवासेयच्या, एत्थोदाहरण-रोहिडगं नगर, ललिता गोडी, रोहिणी जुनकणिका, II ध्ययने THसा अणं जीवणोवार्य अलभंती तीसे गोट्ठीए भत्तं परंघिता, एवं कालो वच्चति, अण्णदा तीए कटुकं दोकिं बहुसंभारसंमितं वागाय
ट्र उवक्खडित, विण्णासति जाव मुहे ण तीरति कातुं, तीए चिंतितं- खिसिया होमि गोट्टिएहिंति सिग्धं अण्णं उबक्खडेमि, एतं चित्ता॥२१॥ भिक्खायराणं दिन्जिहिति, मा दबसंजोगो नासतु, जाव धम्मरुची नाम साधू मासखमणपारणगट्ठाए पविट्ठो, तस्स दिण्णं,
आगतो आलोएति गुरूणं, तेहिं भाजण गहितं, खारगंधो य जातो, विण्णासितं तेहि, चिंतितं जो एतं आहारेति सो मरति, भणितो विणेहि बाहिन्ति, सो गहाय अडविं गतो, एकत्थ दडरोक्खरे विकिंचामिचि पत्ताबद्धं मुयंतस्स हत्थो लित्तो, सो तेण एकट्ठ
पुट्ठो, तेण गंधेण कीडियाओ आगताओ, जा जा खाति सा सा मरति, तेण चिंतित-मए एकेण वा समप्पतुति मा जीवघातो भवछातुत्ति एकंते थंडिल्ले आलोचितपडिक्कतो मुहर्णतकं पडिलेहेना अणिदंतेण आहारित, वेदणा य तिव्या जाता अहितासिता,
सिद्धो । एवं अहियासेतब्ब २९ ॥ Pा संगो नाम 'संज संग' येनास्य भयमुत्पवते तं जाणणापरिण्णाए णातूर्ण पच्चक्खाणपरिणाए पचक्यातव्वं, तत्थोदाहरण
चपाए जिणदेवो सस्थवाहो साक्को जाव उग्घोसचा अहिछत्तं बच्चति, अंतरा अडवि पवण्णो,सस्थो पुलिंदेहि विलुलितो, वच्चंतो:
सो साबओ नासतो अडविं पविट्ठो, जाब पुरतो अग्गी मग्गतो बग्या दुहतो पवातं, सो भीतो असरण णातूणं सतमेव मावलिंग & कापटिवज्जेचा कतसामायिको पडिम ठितो, साचएहिं खइतो सिद्धो । एवं संगपरिणाए जोगा संगहिता भवति ३०॥
पायच्छित्तं करेंतस्स जथाविधीए देंतस्स य उववज्जित्ता जोगा किर संगहिज्जति । तत्थोदाहरण-एगत्थ नगरे पणगुत्ता
दीप
॥२१११॥
अनुक्रम [११-३६]
(224)
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाआयरिका, ते किर पायच्छित्तं जाणंति दातुं छदुमत्थत्तेवि, जहा एपिएण सुज्झति वा नवत्ति इंगितेण, जो य वाणं मुके वहति | आशातनाः
हासो र सुहेण नित्थरति, तं च अतीचारं सोहेति, अग्गहिकं च निज्जरं पावति, एवं दाणे य करणे य जोगा संगहिता भवति ३२॥ ॥२१॥
P आराहणाए मरणकाले जोगा संगहिता भवंति, तत्थोदाहरणं-विणीताए भरहो, उसमभगवतो समोसरणं, सव्वं वण्णेतव्यं । ४जहा कप्पे, सा मरुदेवा भरहविभूतिं पासिता भणति भरह- तुझ पिता एरिस विभूति जहिता एकल्लओ अवसणो हिंडति,13 &ाभरहो भणति- मम कतो विभूती तारिसी जारिसी तातस्सी, जदिन पचियह एस जामो पासामो, भरहो निष्फिडति सबबलेण,
मरुदेवावि, एक्कहिं हथिमि विलग्गा जाव पेच्छति छत्तातिच्छत्तं सुरसमूहं च धुवंत, भरहस्स य वत्थाभरणाणि ओमिलायंताणि, ४ा भरहो भणति- दिहा ते पुत्तविभूती?, कतो मम एरिसा सा', तो सएणं चिंतेतुमारद्धा, अपुब्बकरणं अणुपविट्ठा, जातीसरणं नत्थि,
जेण वणस्सतिकातिपहिंतो उन्बट्टिका, तत्थेव हत्थिखंधवरगवाए केवलनाणं, सिद्धा, इमाए ओसप्पिणीए पढमसिद्धो मरुदेवा । एवं आराहणं प्रति योगसंग्रहो कायच्चो ३२ ॥ | एते बचीसं जोगसंगहा, एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा जो मे अतियारो कतो तस्स मिच्छामिदुक्कडंति ।
तेत्तीसाए आसातणाहिं० ॥ सूत्रं ॥ आसातणा गामं नाणादिआयस्स सातणा, यकारलोपं कृत्वा आसातना भवति, ताओ य तेत्तीस एवं भवति, तंजहा-सेहे रातिणियस्स पुरतो गंता भवति आसातणा सेहस्स | सेहे रातिणियस्स सपक्खं गंता | भवति आसातणा सेहस्स २ । सेहे रातिणियस्स आसण्ण गंता भवति आसातणा सेहस्स ३श एवं तेणं अमिलावणं सेहे रातिणियस्स पुरतोवि चिड्डित्ता मवति आसातणा ४ । सेहे रातिणियस्स सपक्वं चिद्विता भवह आसातणा ५ । सेहे रातिणियस्स आसणं
दीप
अनुक्रम [११-३६]
ॐॐॐॐ
... अत्र ३३ आशातनानां वर्णनं क्रियते
(225)
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
C
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाचिद्वित्ता भवा आसातणा ६ सेहे रातिणियस्स परतो निसीइना भवति सातमा ७ सेहे रातिणियस्स सपक्वं निसीहत्ता भवति 0.33 ध्ययने आसातणा ८ सेहे रातिणियस्स आसण निसीयित्ता भवति आसातणा ९ सेहे रातिणिएण सद्धि यहिया विहारभूमि निक्खते आशातनाः
समाणे तत्थ पुण्यामेव सेहतराए आयमति पच्छा रातिणिए आसायणा सेहस्स १० सेहे रातिणिएण सद्धि बहिया विधारभूमि वा। विहारभूमि वा निक्खंते तत्य घुब्वामेव सेहतराए आलोएति पच्छा रातिणिए. आसायणा सेहस्स ११ केयी रातिणियस्स पुष्वसंलचए सिया, तं पुव्यामेव सेहतलाए आलवति पच्छा राइणिए आसातणा सेहस्स १२ सेहे रातिणियस्स रातो वा दिया था | वाहरमाणस्स अज्जो ! के मुत्तो के जागरे, तत्थ सेहे जागरमाणे रातिणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति आसातणा १३ सेहे असणं वा ४ पडिगाहेत्ता तं पुवामेव सेहतरागस्स आलोएति पच्छा रातिणियस्स आसातणा सेहस्स १४ तहेव असणं वा ४ पडिगाहेत्ता तं पुब्बामेव सेहतरागस्स पडिदसेति आसातणा १५ सेहे असणं ४ पडिगाहेत्ता पुचामेव सेहतराग उवणिमंतेति पच्छा रातिणियं आसातणा सेहस्स १६ सेहे रातिणिएण सदि असणं ४ पडिगाहेत्ता त रातिणियं अणापुच्छित्ता जस्स इच्छति तस्स तस्स खर्च
खद्धं दलयति आसातणा सेहस्स १७ सेहे रातिणिएण सद्धि असणं वा ४ आहारेमाणे तत्थ सेहे खळू खर्दू हाय डायं रसिया ४ रसियं ऊसडं ऊसडं मणुण्ण२ मणाम२ निर्द्धर लुक्खं लुक्खं आहारेता भवति आसातणा सेहस्स १८ सेहे रातिणियस्स बाहरमाणस्सा
अपडिसुणेचा भवति आसातणा सेहस्स १९ सेहे रातिणियस्स बाहरमाणस्स तत्थ गते चेव पडिसुणेचा भवति आसातणा सेहस्स ॥२१॥ IN२० सेहे रातिणियं किंति वत्ता भवति आसातणा सेहस्स २१ सेहे रातिणिय तुर्मति वत्ता भवति आसातणा सेहस्स २२ सेहे राति
पियं खद्धं सर्दू वदति आसायणा सेहस्स२३सेहे रातिणीयं तज्जाएणं तज्जातं पडिहणेत्ता भवति आसातणा सेहस्स२४ कीस अजो
दीप
अनुक्रम [११-३६]
।
(226)
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
अध्ययनं [४] मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [ गाथा- १,२]
निर्मुक्तिः [ १२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
आयं [२०१-२२७]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥२१४॥
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
1561 64.96
गिलाणस्स न करेसि १, भणइ तुमं कीस तु न करेसि ?, आयरिओ भणति तुमं आलसिओ, सो भणति तुमं चेव आलसिओ इत्यादि २५ सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स इति एतंति बत्ता भवति आसातणा २६ सेहे रातिणियस्स कई कहेमाणस्स पो सुमणसे भवति आसातणा २७ सेहे रातिणियस्स कई कहेमाणस्स परिसं भेत्ता भवति आसातणा सेहस्स २८ सेहे रातिणियस्स कह कहेमाणस्स कहं अच्छिदित्ता भवति आसातणा २९ सेहे रातिणियस्स कहं कहेमाणस्स तीसे परिसाए अणुट्ठिताए अभिण्णाए अवोच्छिष्णाए अब्बो गडाए दोपि तच्चपि तमेव कहं कद्देत्ता भवति आसातणा ३० सेहे रातिणियस्स सेज्जासंधारगं पादेन संघट्टेत्ता हत्थे अणणुण्णवेता गच्छति आसातणा सेहस्स ३१ सेहे रातिणियस्स सेज्जासंधारगंसि चिट्टित्ता वा विसीतिचा वा तुयट्टित्ता वा भवति आसातणा ३२ सेहे रातिणियस्स उच्चासणे वा समासणे वा चिट्ठित्ता वा निसीतित्ता वा तुयट्टित्ता वा भवति आसातथा सेहस्त्र ३३ ॥
अहवा सूत्रोक्तानां आसातणाए, तेत्तीस पडुच्च इत्यर्थः, ताओ य इमाओ सुतेणेव भण्णंति, तंजथा-अरहंताणं आसातणाए १ सिद्धाणं आसातणाए २ आपरियाणं आसातणाएं ३ उवज्झायाणं आसातणाए ४ साहूणं आसातणाए ५ साहणीणं आसातणाए ६ एवं सावयाणं ७ सावियाणं ८ देवाणं ९ देवीणं १० इहलोगस्स ११ परलोगस्स १२ केवलिपण्णत्तस्स धम्मस्स १३ सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स १४ सव्वपाणभूतजीव सत्ताणं १५ कालस्स १६ सुतस्स १७ सुतदेवताए १८ वायणायरियस्स० १९ जं वाइर्द्ध २० विच्चामेलियं २१ हीणक्खरियं २२ अच्चक्खरियं २३ पयहीणं २४ घोसहीणं २५ जोगहीणं २६ विणयहीणं २७ दुहु दिपणं २८ दुदु परिच्छितं २९ अकाले कतो
(227)
अईदादीनामाशातनाः ३३
॥२१४॥
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
२१५
सूत्र
+ गाथा: ||१२||
समाओ ३० काले ण कओ सझाओ ३१ असज्माइए सजनाइयं ३२ समाहए ण समाइयन्ति ३३ तस्सअहंदादीध्ययः शामिच्छामि दुक्कडं।
नामाशा| तत्व अरहताणं आसातणा भण्णति-पत्थि अरहंता, तिहिं णाणेहि जाणता वा कीह घरबासे भोग भुजंति , तत्रोत्तर- तनाः ३३ भोगनिर्वर्तनीयगुणाः प्रकृतिबलादिति । भणति वा-तित्थकरो केवलणाणे उप्पण्ण देवमणुएहिं वागरति गंधयपुप्फोगारबलि-1 मादीयं उवणीतं पाहुडियं किं उपजीवति दोसे जाणतो , तत्रोत्तरं-ज्ञानदर्शनचारित्रानुपरोधकारकस्य अघातिकशुभप्रकृतेः तीर्थकुनामकर्मोदयाददोषः वीतरागत्वाञ्चादोष इति । सिद्धाणं आसातणा-सिद्धा नस्थि निच्चेट्ठा वा, उवयोगे वा सति रागदोसेहिं भवितन्त्र, उत्तर-सिद्धशब्दादेवास्ति, निच्चेट्ठाणं वीर्यान्तरायक्षयाददोषः, उवयोगेवि वा सति रागद्दोसो न भवति, कपा-12 याणां निरवशेषक्षयात् , अण्णा भणति- केवलणाणदसणाणं किं एगसमए उवयोगो नस्थि एगगाले , तत्रोत्तर- एतेसि दोण्हंपि | जीवसारुब्वा एगकाले उवयोगो न भवतीति ।। आयरियाणं आसातणा-सेहे रातिणियस्स पुरतो गंता जथा दसाहिंतो पुन्चमणितं, मणदोसण वा-डहरो अकुलीणोत्ति व दुम्मेहो दमग मंदबुद्धित्ति । अवि अप्पलामलद्धी सीसो परिभवति आयरिया परस्स वा उवदिसंति दसविहं वेयावच्चं अप्पणो किंण करेंति,एवमादी,उत्तर-डहरोऽविणाणबुड्डो अकुलीणोत्तिय गुणाहियो किह गु। दुम्मेहादीणिवितेभणंतसंलाई दम्मेहोशाजाणंति नविय एवं निद्धम्मा मोक्खकारण नाण। ॥२१५॥
निच पगासयंता येषावधादि कुम्बंति ॥शाएवं उवजझायाणंपि।।समणाणं-असहणा तुरियगती विरूवणेवस्थात्ति एव-12 दमादि, एवं अण्णपि आसातणापगारा संति-अरहंताणं आसातणा जधा-निरणुकंपताए अतिउग्गो उवदेसो कातब्बो इच्चादि,सिद्धाणं
ट- 24
दीप अनुक्रम [११-३६]
ASIA:
(228)
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा असरीराणं नस्थि अणावमं सुहं इच्चादि, आयरिया-भिक्खं न हिंडंति सुहसीला सीसपाडिच्छिए उवजीवंति इच्चादि , एवं उव- अहंदादीध्ययने
ज्झायापवि सा, साधणं अण्णोण्णपडिचोदणकोहादीहिं कमबंधणेत्ति इच्चेवमादि । साहुणीणं कलहणा बहुवगरणा, अहवा सम- नामाशा. INणाणं समणीओ उवद्दवा एवमादि ।। सावगाण जधा आरंभताण कतो सोग्गती? एवमादि । एवं सावियाणवि ।। देवाणं अवि-1
तनाः ३३ ॥२१॥
Bाउन्चिए ण तरंति किंचि कातुं, कामगद्दमा अणिमिसा य, अणुत्तरा वा निच्चेट्ठा, सामत्थे वा सति किमिति तच्च पवयणमुण्णति लान करेंति', एवमादि ।। एवं देवीणंपि ॥ इहलोगस्स-इहलोगो मणुस्सस्स मणुस्सलोगो, परलोगो सेसाओ तिणि गतीयो, | आसातणा विभासज्जा ।। केवलिपण्णत्तो धम्मो सुतधम्मो चरित्तधम्मो य,आसातणाओ-पाययभासानबद्धं को वा जाणति |पणीत केणेदं । किं वापरणेणं तू दाणेण विणेह भवति?त्ति, ॥१॥ एवमादि।। सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स आसातणाए, & देवादीयं लोग अण्णहा भणति, सत्त द्वीपसमद्राः, प्रजापतिकृतं वा युबते, प्रकृतिपुरुषसंयोगाद्वा ।। सव्वपाणभूतजीवसत्ताणं
आसातणाए पाणा-बेइंदियादयो जत्तो वर्ग आणमंति वा पाणमंति वा तम्हा पाणत्ति वत्तवा, भूता-पुढविमादि एगेदिया जम्हार भुर्व भवति भविस्सति य तम्हा भूतत्ति बत्तव्वा, जीवा-जेसि आउअसहव्वता,ते य सम्बे संसारिणो जम्हा जीवींमु जीवंति जीविस्संति
य तम्हा जीवत्ति बत्तब्वा, सत्ता संसारिणो संसारातीताय जम्हा संतीति तम्हा सत्तचि वत्तव्या, एगविता वा एते,एतेसिं आसादणा काजथा मुहुमतसेहिं थावरेहि य अव्वत्तवेदणतणेणं उद्दवितेहिं तुच्छो कमबंधो एवं विभासेज्जा।। कालस्स आसातणा, किं कालगह-121
२१६॥ जाणे? किं वा पडिलहणादिकाला आराहिज्जति एवमादि। सुतस्स आसातणा-को आतुरस्त कालो?,महलंयरधोव्वणे व कोर
कालो। जदि मोक्खहेतु णाणं को कालो तस्सऽकालो वा ॥१॥ एवमादि । सुतदेवताए सुतदेवता जीए सुतमधिहित
RSSAGE
दीप
अनुक्रम [११-३६]
*
(229)
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा &ातीए आसातणा,णस्थि सा, अकिंचिक्करी वा एवमादि । वायणायरियस्स आ० वायणायरिओ नाम जो उबझायसंदिडो उद्दे- परसमुत्थ
ध्ययने सादि करेति तस्स आसातणा- निदुक्खसुहो बहुवारा बंदणं वा दवावेति एवमादि । जं वाइद्धं व्याविद्धं विपर्यस्तरत्नमालावत्म स्वाध्या॥२१॥
५ अण्णण पगारेण जा आसातणा तीए, एवं जोएज्जा,बिच्चामेलितं कोलिकपायसवत् , हीणक्खरं अक्खरहीणं अच्चक्खरं यिक
अहिगक्खर पदहीणं घोसहीणं एवं जहा सामाइए जोगहीणं उबहाणं जोगो एवं विभासेज्जा जाव असज्झाइए सज्झा
इतं सज्झाइए ण सज्झाइतंति, तत्थ असज्झाइयं नाम जमि कारणे सज्झाओ नवि कीरति तं सव्वं असज्झाइयं, तं च बहुलाविहं, तस्स इमे भेया- असझाइतं तु दुविहं० ।। १४१९ । आयसमुत्थं चिट्ठतु ताब, उरि भणिहिति, जं पुण परसमुत्थं त
इम पंचबिह-संजमघादो०॥ १४२० ।। एतमि पंचविहे असज्झाइए जो सज्झाय करेति तस्स आयसंजमविराहणा। तत्थ दिडतो-18 घोसणयमेच्छरण्णोत्ति, अस्य व्याख्या-मिच्छभय० ॥ १४२१ ।। खितिपतिद्वितं नगरं, जिनसत्तू राया, तेण सविसए घोसाभवितं जहा- मेच्छो राया आगच्छति, ते गामकुनगराणि मोत्तुं समासण्णे दुग्गेसु ठायह, मा विणस्सिहिह, जे द्विता रण्णो वयरोण
दुग्गादिसु ते ण विणट्ठा, जे पुण ण ठिता ते मेच्छादीहिं विलुत्ता, ते पुणो रण्णा आणाभंगो मम कतोत्ति जंपि किंचि हितसेसं प्रातपि डंडिता, एवं असज्झाइए सज्झात करेंतस्स दुहतो डंडो,इह भवे सुरत्ति देवताय छलिज्जति परभवे पडुच्च णाणादिविराहणा
पच्छित्तं च, इमो दिद्रुतोवणतो-राया इध० ॥१४२२ ।। जहा राया तहा तित्थगरो जथा जणवदजणा तथा साधू जथा आघो- ★U२१७४ INसणं तथा सुत्तं असज्झाइए सज्झाइतपडिसेहगंति, जारिसा मेच्छा तारिसा असज्झाइगा जहा रतणधणावहारो तथा पाणदंस
णचरणविणासो, सब्य उपसंहारेतव्वं ॥ को इत्थ लिचो पमादेगति, अस्य विभासा- थोवावसेस०॥ १४२३ ।। सज्झायं करेंतस्स
दीप
MARATHAERMITTEESEXY
अनुक्रम [११-३६]
... अत्र अस्वाध्यायिकम् वर्णनं क्रियते
(230)
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
CARE
प्रतिक्रमणा थोचोऽवसेसगो उद्देसगो अज्झयणं वा ता पोरुसी अतिवच्चिसु ता अहवा सज्झायं कालवेला व सब्बादि, जो आउडियाए सज्झायं संयमोपचाध्ययनकरेति सो णाणादिहीणो भवति, अणायारत्थो य देवताए य छलिज्जति संसारे यदीहकाल अणुपरियति, पमादेणवि करेंतो ट्रातिकमस्ता
| ध्यायिक An| छलिज्जति च्चेव, दुर्ख संसारे य अणुभवति ।। तस्थ जे तं संजमोवघातियं तं इमं तिविहं
महिया य० ॥१४२४ ॥ पंचविहस्स य असज्झाइयस्स के कह परिहरितवमिति तप्पसाहगी इमो दिढतो- दुग्गाति. दाएगस्स रण्णो पंच पुरिसा, ते बहुसमरलद्धविजया, अण्णदा वेहिं अच्चंतविसमं दुग्गं गहितं, तेसि तुट्ठो राया इच्छितं नगरे पयार
देति, जे ते किंचि असणादिकं यत्थादिगं वा जणस्स गेण्हति तस्स बेतणयं सर्व राया पयच्छति । एकण. ॥ १४२६ ।। तेसिं ही पंचण्डं पुरिसाण एपेण राया तोसिततरो, तस्स गिहावणरत्थासु सम्वत्थ इच्छियपयारं पयच्छति, चउहं रत्थासु चेव इच्छितप-|
यारं पयच्छति, जो एते दिण्णपयारे वा आसादेज्ज तस्स राया दंड करेति, एस दिट्ठतो, इमो उपसंहारो- जथा पंच पुरिसा तथा पंचविहं असज्झातियं, जथा सो एगो अब्भहिततरो पुरिसो एवं पढम संजमोवघातियं, सव्वं वा ण सादिज्जति, तमि बहमाणे ण सज्झातो व पडिलेहणातिका काइया चेट्ठा कीरति, इतरेसु चतुसु असज्झाइएसु जथा ते चतुरो पुरिसा रत्थासु चेव अणासायणिज्जा तथा तेसु सज्झाओ चेव ण कीरति सेसा सव्वा चड्ढा कीरति,आवस्सगादि उक्कालियं पढिज्जति । महियादितिविहस्स संजमोवघातियस्स इमं वक्खाणं
२१८॥ ___महिया०॥ २२० भा० ॥ महियत्ति धूमिका, सा य कत्तियमग्गसिरादिसु गम्भमासेसु भवति, सा य पडणसमकालंच सुहुमत्तणतो सव्वं आउक्काइयभावितं करेति, तत्थ तरकालसमं चैव सब्बावि चट्ठा णिरुम्मति । ववहारसचितो पुढविस्कायो
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(231)
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४] मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८].
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥२१९॥
अरण्णो वा उड़न्तो आगतो तो भण्णति, तस्स सचित्तलक्खणं घृणतो ईसि आतंबी दिगंतरेसु दीसति, सोवि निरंतरपावेण तिन्ह दिणाणं परतो सब्बं पुढविक्काइयभावितं करेति तत्र उत्पात संकासंभवः । अभिण्णवासं तिविद्धं बुन्बुदाति, जत्थ वासे पढमाणे उदगवन्बुदा भवन्ति तं बुब्बुदवरिसं, तेहि बज्जितं तव्वज्जं, सुहुमफुसारेहिं पडमाणेहिं फुसितवरिसं, एतेसु जहसंखं तिष्णि पंच सत दिया, परतो सच् आउक्कायभावितं भवति । संजमघातस्स सव्वमेदाणं इमो चउन्विहो परिहारो दुब्वे खेत्ते ० पच्छद्धं अस्य व्याख्या
दब्बे तं चिय० ॥ २२१ ॥ भा० । दव्वतो तं चैव दव्वंति महिया सचित्तरयो भिण्णवास वा परिहरिज्जति, जहितं चेति जहिं खेत्ते महिया पडति तहिं चैव परिहरिज्जति, तच्चिरन्ति पडणकालाओ आरम्भ जच्चिरकालं पडति तच्चिरं परिहारी, सव्वंति भावतो ठाणभासादित्ति ठाणंति काउस्सग्गं न करेंति ण य भासंति, आदिसद्दाओ गमणागमणपडिलेहणसज्झायादि न करेंति मोतुं उस्सास उम्मेसन्ति मोतुं ते णो पडिसिज्झति उस्सासादिया, अशक्यत्वात् जीवितव्याघातकृत्वाच्च, शेषा क्रिया सर्वा णिषिध्यते, एस उस्सग्गपरिहारो । आइष्णं पुष्ण सचित्तरये तिष्णि भिण्णवासे तिष्णि पंच सत, ततो परं सज्झायादि सव्वं न करेति, अण्णे भणति बुब्बुयवरिसे अहोरत, तब्वज्जे दो अहोरता, फुसियबरिसे सच, अतो परं आउक्काय भाविते सम्बचेट्ठा पिरुज्झति । कहीं - वासत्ता० ।। १४२७ ।। निक्कारणे वासकष्पकंवलीए पाउता णिहुता सन्वन्तरे चिड़ंति, अवस्सकातव्बे वा कुज्जे इमा जतणा- इत्थेण भूमादिअच्छिविकारेण वा अंगुलीए वा सति इमं करेहि मावा करेहित्ति, अह एवं नावगच्छति मुहपोतियअंतरिया जतणाए मासंति, गिलाणादिकज्जे वा वासकप्पपाउया गच्छति । संजमधातेत्ति दारं गतं ।
इदाणिं उप्पापत्ति दारं, अभ्रादिविकारवत् विससापरिणामतो उप्पातो, उत्पातो पांशुमादी भवति । पशू प० ॥ १४२८||
(232)
संयमोपघातिक्रमस्वा ध्यामिकं
॥२१९॥
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
यिक
+ गाथा: ||१२||
15%
अतिक्रमणासुवरिसं मसवरिसं रुधिरवरिसं केसत्ति वालवरिसं, आदिकरणा सिलावरिसं रउग्घातपडणं च, एतेसि इमो परिहारो-मंसरुधिरे ओत्पाताध्ययन अहोरचं सज्झाओ न कीरति, अवसेसा पंसुमादीया जचिरं कालं पङति तेत्तियं कालं सुतं नंदिमादीयं न पढ़ति, पंसुरओग्धाताण स्वाध्या॥२२०॥
इमं वक्खाणं-पंसू अचि० गाहा ॥ १४२९ ।। धूमागारो आपांडरो रओ, अचित्तो य पंसू भण्णति, महास्कंधावारगमनसमुद्भुत इव विस्रसापरिणामतो समंता रेणुपतना रउम्घातो भण्णति, अहवा एस रओ, रओवग्याओ पुण पंसुरिया भणति, एतसुवातसहितसु४ निव्वातेसु वा मुत्तपोरिसिं न करेंति ॥ किं चान्यत्-साभावि०॥१४३०॥ एतेसु पंसुरउग्घाता साभाविगा हवेज्ज असामाविगा वा, तत्थ असाभाविगा जे निग्धातभूमिकंपचंदोवरागादिदिव्वसहिता, एरिसेसु असाभाविकेसु कते उस्सग्गे ण करेंति सज्झायं, सुगिम्हणत्त जदि पुण चेत्तसुद्धिपक्खदसमीए अवरण्हे जोगं निक्खिवंति, दसमीओ परेण जाब पुण्णिमा एत्थंतरे तिणि दिणा उबराउवरिं अचित्तरउग्घातावणं काउस्सग्गं करेंति तेरसिमादिसु वा तिसु दिणेसु तो सम्भाविके पडतेवि संवच्छर सज्झायं
करेंति,, अह , तुस्सगं न करेंति तो साभाविकेवि पडते सज्झायं न करेंति । उप्पातंति गतं। जी इदाणि सादिग्वित्ति, सह देवेण सादेवं, दिच्वकृतमित्यर्थः । गंधब्ब० ॥ १६ ॥ ३१ ॥ गंधवनगरविउच्चणं दिसाडाहकारणं विज्जुभवणं उक्कापडणं गज्जितकरणं जूबगो वक्खमाणो जक्खालित्तं जक्खुदितं आगासे भवति, एत्य गंधवनगरं ।
२२०॥ ठाजक्खुरितं च एते नियमा दिन्चकता, सेसा भयणिज्जा, जतो फुड न नजति तेण तेसिं परिहारो, एते गंधब्बादिया सव्ये एक्कं15
पोरिसिं उवहणंति, गज्जितं दो पोरिसीओ उवहणति । दिसिदा०॥ १४३२ ॥ अन्यतमादसि महानगरं प्रदीप्तमिवोद्योतः | किंतु उपरि प्रकाशमधस्तादंधकारः ईदृग् छिन्नमूलो दिग्दाहः, उक्कालकखणं सदेहवण्णरेह करेंति जा पडति सा उक्का*
दीप
%
अनुक्रम [११-३६]
(233)
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
BHOSRAE
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा है रेहविरहिता वा उज्जोतं करेति जा पडति सावि उक्का, जूवगोत्ति संझप्पभा चंदप्पभा य जेण जुगवं भवंति तेण जूवगो, सादिव्याध्ययने
सा य संझप्पमा चंदप्पभावरिता फिडंति न नज्जति, सुक्कपक्वपाडिवगादिसु तिसु दिणेसु. संझच्छेदे य अणज्जमाणे कालवेली स्वाध्यान पूर्णति अतो तिष्णि दिणे पादोसियं कालं न गेहंति, तेसु तिसु दिणेसु पादासियं सुत्तपोरिसिं न करेंति । केसिं च०॥१४३शा
यिक ॥२२१॥
जगस्स सुभासुभमत्थनिमित्तुप्पाओ अवितच्चो आदिच्चकिरणविकारजणिओ आदिच्चेसु वत्थामय आर्यवो किण्हसामो वा सगडद्धिसंठितो डंडो अमोहत्ति, एस जूवगो, सेसं कठ्यं । किं चान्यत- चंदि० ॥१४३४ ॥ चंदसूरुवरागो गहणं भणति एवं वक्खमाण, साधे निरत्रे वा व्यंतरकृतो महागर्जितध्वनिनिर्धातः,तस्यैव विकारो गुंजमानो महावनिर्गुजितं,सामण्णतो तेसु चतुसुवि अहोर सझाओ न कीरति, निग्घातगुंजितेसु बिसेसो-वितियदिणे जाव सा वेलत्ति णो अहोरत्तच्छेदेण छिज्जति, जथा अण्णेसु असल्झातिएसु, संझाचतुत्ति-अणुदिते सुरिए मज्झण्हे अत्थमणे अद्धरते य, एतासु चतुसु सज्झार्य न करेंति पुव्वुर्ग, पाडिवएत्ति चउई महामहाणं चतुसु पाडिवएसु सज्झायं न करेंति, एवं अण्णाप जंति महं जाणेज्जा जहिन्ति गामनगरादिसु
तंपि तत्थ बज्जेज्जा,सो गिम्हगो पुण सव्वत्थ नियमा भवति, एत्थऽणागाढजोगा नियता निक्खिवंति, आगाढ न निक्खिवंति, ४ पटति, के य पुणो वेते महामहा?, उच्चति-आसाढी०।१४३५ ।। आसाढी-आसाढपुष्णिमा इह, लाडाण पुण सावष्णपुण्णिमाए। I भवति, इंदमहो आसोयपुष्णिमाए भवति, कत्तियत्ति कत्तियपुष्णिमा चेव सुगेम्हओ वेतपूणिमा, एते अंतदिवसा गहिता, २२१॥
आदितो पुण्णिमा, जत्थ जत्थ विसए जतो दिवसातो महामहा पवति ततो दिवसातो आरम्भ जाय अंतदिवसो ताव समाओ न कातब्बो, एतसिं चेव पुण्णिमाणं अणंतरं जे बहुलपाडिबगा ते चतुरोवि वज्जेतव्यत्ति । तत्थ को दोसो -अण्णतरय० ॥१४३८॥ |
दीप
%
अनुक्रम [११-३६]
%
%
(234)
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा 5 सरागसंजतो संजयत्तणओ इंदियविसायादिअण्णतरपमादजुत्तो हवेज्जा, विससतो महामहेसु, ते पमादजुतं पडिणीया देवता सादिव्याध्ययन
tी स्वाध्याहि छलेज्जा, अप्पिडिया खित्तादिच्छलणं करेज्जा, जतणाजुत्तं पुण साहूं जो अप्पिट्टिओ देवो अद्धोदधीऊणहिती सो न सक्केति
यिक રશા|
छलेतुं, असागरीवमहितीओ पुण जतणाजुत्तं छज्जा . अस्थि से सामत्थं,तंपि पुण्ययेरसरणादिणा कोइ छलेज्जत्ति। चंदिमसूर ४/वरागत्ति अत्थ व्याख्या-उकोसेण ||१४३९।ाचंदो उदयकाले चेव गहितो संदूसंते रातीए चतुरो अण्णं च अहोरत्तं एवं दुवालस,अहवा उप्पादग्गहणे सबरातियमहणं सगहो च्चेव नियही संदूसितरातीए चतुरो अण्णां च अहोरत्तं एवं बारस,अहवा अजाणतो अब्भच्छपणे संकाल णणज्जति के बेलं गहणी,परिहरिता राती पभाते दि₹ सग्गहो बुशे,अणं अहोर,एवं दुवालस,एवं सूरस्सवि उदयस्थमणग्महेण सम्गह निबुझे उवहतरातीए चतुरो अण्णं अहोर परिहरति, एवं बारस, अह उदेंतो गहितो तो संदूसितमहोर अपरं च अहोरनं परिह| रति, एवं सोलस, अहना उदयवेलाए गहितो उप्पादितग्गहणे सव्वदिणे होत गहणं सग्गहो चेव निबुडो संदूसितमहोरचस्स अट्ट अण्णं च अहोर, एवं सोलस, अहवा अब्मच्छष्णे ण पज्जति, केवलं होहिति गहणं, दिवसओ संकाए ण पढित, अस्थमण: वेलाए दिई गहणं, सग्गहो निबुट्टो, संसितस्स अट्ठ अण्णं च, एवं सोलस । सग्गह०॥ १४४० ।। सग्गहनिबुझे एवमहोर उवहतं/ कहं , उच्यते, सूरादी जेनहोरत्ता,सूरुदयकालाणु जेण अहोरत्तस्स आदी भवति, तं परिहरिचा संदसितं अण्णपि अहोर परिहरितवं, इमं पुण आदिणं-चंदो रातीए गहितो रातीए चेव मुक्को तीसे चेव रातीए सेस वजणिज्ज, जम्हा आगामिसूरू
२२२॥ दिये अहोरत्तमादी, सूरस्सवि दिया व गहिओ दिया च्चेब मुक्को तस्सेव दिवसस्स सेसं राती य वज्जणिज्जा, अहवा सग्गह-ला' निबुड़े एवं विही मणितो । ततो सीसो पुच्छति-कह चंदे दुवालस सूरे सोलस जामा ', आचार्य आह- सूरादी जेण होतहोरचा,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(235)
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
ध्ययने
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणादिस्स नियमा अहोरसद्ध गते गहणसंभवे अण्णां च अहोरच, एवं दुबालस, सरस्स पुण अहोरचादीए अतो संदसित अहोर विग्रहास्या
परिहरितुं अण्णपि अहोरच परिहरितन्वं, एवं सोलस। सादिब्बन्ति गतं । इदाणिं बुग्गहेत्ति दारं, बुग्गह इंडियमादिति
का अस्य व्याख्या॥२२३॥
सेणाहि ॥ १५४२ ॥ डंडियस्स बुग्गहो, आदिसद्दाओ सेणाहितस्स च, एवं दोण्हं भोइयाण दोण्ई महत्तराणं दोण्हं पुरिसाण दोण्ह इत्थीण मल्लाण वा शुद्ध पिट्ठातगलोट्टभंडणो वा आदिसदाओ विसयपसिद्धा मुखुरलसुविग्रहाः प्रायोऽभ्यन्तरबहला, तथा पमर्च देवता छलेज्ज उहाहोवि, निवुक्रवत्ति जणो भणेज्ज- अम्ह आवतिपत्ताणं इमे सज्झाय करेंतित्ति अचित हज्जा विसयसंखोहो परचक्कागमे दंडिए वा कालगते भवति अण्णराइएत्ति रणे कालगते पम्भववि जावण्णो राया णो ठविज्जाति सभएत्ति जीवतस्स रण्णो बोहिगेहि समततो अहिदुर्य, जच्चिरं सभयं तत्तिय कालं समायण कीरति । जदिवसं सुतं निदोच्च | तस्स परतो अहोर परिहरंति, एस इंडिए कालगते, सेसेसु इमो विही-तदिवस० ॥ १४४३ ॥गामभोइए कालगते तहिवसति |तं दिवसं परिहरति । आदिसदातो मतहर०॥१४४४ागामरहमतहरे अधिकारनिउचो बहुसंमतोय पगतो बहुपक्खितोति बहुसयणो वागडसादिअधिवे सज्जातरे य अण्णमि वा अणतरघरगाओ आरंभ जाव सत्तघरतरं एतेसु मतेसु अहोर सज्झातो न कीरति,13 अह करेति निदरसिकाउं जणो गरहति अक्कोसेज्ज वा निच्छुब्मेज्ज वा,अप्पसदेण का सणितं करेंति अणुम्पति वा, जो पुण ॥२२३॥ | अणाही भरति तं जदि ओमिणं हस्थसतं वज्जेतवं, अणुन्भिण असज्झाइयं न भवति, वहविकृत्खितात. कात आवरणाता । |दिदं हत्थसतं बज्जिज्जति, जदि एतस्स नत्थि कोइ परिद्व-तओ ताहे- सागारिक० ।। १४४५। गाथा, ताहे सामारिकस्सा
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(236)
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा आदिसहातो पुराणसङ्कअस्स भहस्स वा कहिज्जति इमं छठेह, अम्हं सज्झातो न सुज्झति, जदि तेहिं छड्डितं तो सुद्धं,अह नेच्छति शारीराध्यवने
ताहे अण्णं वसहिं मग्गति, अह अण्णा वसही न लम्भति ताहे वसभा अप्पसागारितं परिहावेंति, एस अभिण्णे विधी। अह भिण्णास्वाध्या काकसाणादिएहि समंता विकिण्णं तं दि8 विवितमि सुद्धा, असढभावं गवसंतेहिं जं दि8 तं सव्वं विगिचितंति छहितं, इतरंति
यिक ॥२२४॥
अदि8 तमि तत्थत्थेवि सुद्धा, सज्झाय करताणवि ण पच्छित्तं । एत्थ एतं पसंगतो भणितं । बुग्गहत्ति गतं । इदाणिं सारी-18 रन्ति दारं, तत्थ
सारीरंपि० ॥१४४६ ।। एत्थ माणुसं चिट्ठतु, तेरिच्छं ताव मणामि, ते तिविहं मच्छादियाण जलजं गवादिजाण थलज मयूरादियाण खहचरं, एतेसि एक्कक्कं दव्वादियं चतुम्विहं, एक्केक्कस्स वा दय्वादिओ इमो चउहा परिहारो- पंचेंदिया ॥ १४४६।। दव्यतो पंचेंदियाणं रुहिरादि दवं असमाइयं, खेत्ततो सडिए हत्थमंतरे,परतो न भवति,अहवा खेत्ततो पोग्गलाइण्णं, | पोग्गलं मंस, तेन सर्व आकिण्णं-व्याप्त, तस्सिमो परिहारो-तीहिं कुरत्याहिं अंतरिय सुज्झति, आरतो न सुज्झति, महन्तरत्थाए हाय एक्काएवि अंतरितं सुज्झति, अणंतरित दरद्वितं ण सुज्झति, महंतरत्था रायमग्गो जेण राया बलसमग्गो गच्छति देवजाणरहो | वा विविहा य संवहणा गच्छंति, सेसा कुरत्था, एसा णगरे विही, गामस्स नियमा बाहिं, एत्थ गामो अविसुद्धणेगमदरिसणेण|
२२४॥ सीमापज्जतो,परग्गामसीमाए सुज्झतीत्यर्थः । कालत्ति तिरियं असज्झाइयं संभवकालाओ जाव ततियाए पोरिसीए ताव असज्झाइय, परतो सुज्झति, अहवा अट्ट जामा असमाइय, ते जत्थाघतणं तत्थ भवंति, भावतो पुण परिहरंति सुत्तं तं च णदिमणुयोगदारं तंदुलवेतालियं चंदगवेजमगं पोरुसीमंडलमादी, अहवा चतुद्धा तुत्ति असझाइयं चतुविध इम-सोणिय रुहिर
SSSS
दीप
★
अनुक्रम [११-३६]
k
(237)
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) 3
भाष्यं [२०५-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६] / [गाथा-१, २], निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥२२५॥
चम्मं अहिं च, साक्षिण उक्खित्तमंसे इमो विही अंतो बहिं० || १४४९ || साहुवसहीतो सडीए हत्थाणं अंतो चाहिं च धोतन्ति भगंदर्शनमेतत् अतो घोर्य अंतो पक्कं, अंतोग्गहणाओ पढमवितियभंगा, बहिग्गहणा ततिओ मंगो, एतेसु तिसु असज्झाइयं, जमि | पदेसे घोतं आणतुं वा रद्धं सो पदेसो सट्ठीए हत्थेहिं परिहरितब्बो, कालतो तिष्णि पोरिसीओ। बहिधोय० ॥ १४५० ॥ एस उत्थभंगो, एरिसं जदि सङ्कीए हत्थाणं अभितरे आणीतं तथाचि तं असज्झाइयं न भवति, पढमचितियभंगेसु अंतो घोषित णीते रद्धे वा संमि धोतट्टाणे अवयवा पडंति तेणं असज्झाइयं, ततियभंगे चाहिं धोवित्तुं अंतो पणीते मंसमेव अवज्झायंति, तं च उक्तिश्रमंसं आण्णयोग्गलं ण भवति, जं काकसाणादीहिं अणिवारितपयारेहिं विष्पकिष्णं नज्जति तं आइण्णं योग्गलं भणितव्वं, महकाओ पंचेंदियओ जत्थ हतो तं आघातणं वज्जेतव्यं खेचओ सडि हत्था कालतो अहोरतं, एत्थऽहोरत्तच्छेदो सूरुदए, रद्धपक्कं वा मंसं असज्झाइयं न भवति, असज्झाइयं जत्थ पडितं तेण पदेसेण उदगवाहो बूढो तं तिपोरुसिकाले अपुष्णेवि सुद्धं, आभातणं न सुज्झति । महाकाएत्ति अस्य व्याख्या महाकाए पच्छद्धं, मूसगादी महाकाओ, सो बिरालादिणा हतो जदि तं अभिष्णं चैव गिलितुं घेतुं वा सहीए हत्थाण चाहिं गच्छति तो कई आयरिया असज्झाइयं नेच्छति, ठितपक्खे पुण असज्झाइयं चैव, अस्यार्थस्य व्याख्या - मूसगादि ॥ २२२ ॥ भा० ॥ गतार्था । तिरियमसज्झाइकाधिकार एवं इमं भणति - अंतो बर्हि च० ।। १४५१ ।। अतो यहिं च भिन्ने अंडयंति, अस्य व्याख्या
अंड साधुवसहीतो सट्टीए हत्थाणं अंतो भिन्ने अंडर असज्झाइयं, बाहि भिण्णे ण भवति, अहवा साहुवसहीए अंतो बाहि वा अंडयं भिन्नंति वा उज्झितंति वा एमई, तं च कप्पे वा उज्झितं भूमीए वा, जदि कप्पे तो तं कप्पं सट्टीए हत्थार्ण बाहि
(238)
शारीरा
स्वाध्या 1. विकं
|॥२२५॥
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा नेतुं धाति ततो सुद्ध, अह भूमीए मिणं तो भूमी खणितु ण छडिज्जति, न मुज्झतीत्यर्थः, इतरहात तत्वत्थे सढि हत्था । त तिणि पोरिसीओ परिहरिजंति । इदाणि बिंदुत्ति, असमाइयस्स किं पमाणी, बिंदुमाणमेलण होणेण अधिकतरेण वा असज्झाओ
स्वाध्याभवतित्ति पुच्छा, उच्यते, मच्छियापादो जहिं बुङ्गति तं असझाइयप्पमाणं । इदाणि वियायत्ति- अजरायु०॥ २२४ भा०॥
यिक ।।२२६॥
जरु जासिं न भवति तासि पयाणं वागुलितामाइयाणं तासिं पसूहकालाउ आरम्भ तिष्णि पोरुसीओ असज्झाओ मोत्तुं अहोरतच्छेद, आसष्णपसताएवि अहोरत्तच्छेदेण मुमति, गोमादिजरायुजाणं पुण जाव जरूं लेबति ताव असशाओ, जरे चुतेत्ति जाहे जरं पडितं ताहे ततो पडणकालाओ आरम्भ तिण्णि पहरा परिहरिजंति, रायपह बूढ सुद्धेत्ति अस्य व्याख्या-रायपहविंदु पच्छद्धं, साहुवसहिआसण्णेण गम्छमाणस्स तिरियंचस्स जदि रुधिरबिंदू मलिता ते जदि रायपधतरिया तो सुद्धा, ते|| रायपहे चेव बिंदू गलिता तथावि कप्पति सझाओ कातुं, अह अण्णमि पहे अण्णस्थ वा पडितं तं जदि उदगवुड्डी वाहेण वा हरित तो सुद्ध, पुणति विशेषार्थप्रदर्शने, पलीवणगेण वा दले सुज्झति, परवयणे साणमादीणित्ति परोत्ति-चोयगो तस्स इमं वयण-1
जदि साणों पोग्गलं समुहिसिला जाव साधुवसतिसमी चिट्ठति ताव असज्झाइयं, आदिसदाओ मज्जारादी, आचार्याह-जदिx ★ फुसति ॥ २२५ ॥ भा०॥साणो भोत्तुं मंस लेत्थारितेणं तुंडेणं वसहिआसण्णण गच्छंतो तस्स गच्छतस्स जदि तुंडं रुहिरलित
खोडादिसित तो असज्झाइय, अहवा लेत्यारियर्तुडो वसहिआसपणे चिति तहवि असमाइयं,इहरहत्ति आहारिएण चोयगा असमाइयं न भवति, जम्दा तं आहारियं वंतं अर्वतं वा आहारपरिणामेण परिणय, तं च असज्झाइयं न भवति, अण्णपरिणामतो ||२२६॥ मृत्तपुरिसादि व । तेरिच्छं गतं, इदाणि माणुसं-माणुस्सयं०॥१४५२ ॥ तं माणुसं असमाइयं चउविहं- चम मंस रुहिरं|
NECRASAGEKANGAR
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(239)
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
मानुष्या स्व यिक
+ गाथा: ||१२||
परिणाअदिच.अस्मिो सेसस्स तिविहस्स इमो परिहारो-खेत्तओ हत्थसतं कालतो अहोर, पुण सरीराओ चेव वणादिस आगच्छति
ध्ययनें परियावण्णं विवण्णं वा तं असज्झाइयं न भवति, परियावां जथा रुहिरं चेव पूतपरियाएण ठित, विवणं खदिरकल्कसमाणे १२२७॥
रसियादिकं च, सेसं असज्झाइयं भवति, अहवा सेस आगारिरितुसंभवं तिण्णि दिणा, वियायाए या जो साबो से सत्त वा अडवा &| दिणे असज्झाइयं भवति । बियायाए कहं सत्त अट्ठ वा ?, उच्यते# रसुक्कडा० ॥ १४१३ ॥ णिसेगकाले रतुक्कडताए इरिथ पसवति तेण तस्स अट्ठ दिणा परिहरितव्बा, मुक्काॐ हियत्वणतो पुरिसं पसवति तेण तस्स सत्त दिवसा, जं पुण इस्थिए तिहं दिणाणं परेण भवति तं रिउं न भवइ, तं सरोगजोणित्थीएमहोरत्तं भवति, तस्स उस्सग्गं कातुं सज्झायं करेंति । एस रुहिरे विही । जं वृत्तं ' अढेि मोनूर्ण' ति तस्स इदाणि विधी इमो भण्णति
वि दं०॥ १४५४ ।। जति दंतो पडितो सो पयत्तओ गवेसितम्बो, जदि दिहो तो हत्यसताओ परं विगिचितब्बो, अह न दिहो तो उग्घाडयातुस्सगं कातूण सज्झायं करेति, सेसडिएसु जीवविमुक्कदिणारंभातो हत्यसतम्भतरे ठितेसु बारस बरिसे असमाइयं । 'झामिय सुद्ध सीताणे' ति अस्स व्याख्या- सीताणे ।। २२६ ॥ भा०॥ पुचई, सीताणेति सुसाणे जाणि
चियगरोपितदङ्गाणि न तं तु अहितं असज्झाइतं करेंति, जाणि पुण तत्थ अण्णत्थ वा अणाहकलेबराणि परिदृषिताणि अणाहाण दूवा इंधणादिअभावेण ठितत्ति णिक्खता ते असमायं करेंति, पाणत्ति मातंगा तेसिं अर्डबरो जक्खो, हिरिमिक्खोवि भण्णति,तत्थ
दीप अनुक्रम [११-३६]
॥२२७॥
(240)
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
C
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा ध्यवने ॥२२८॥
हा सज्जोमयअट्ठीणि उविज्जति, एवं रुद्दघरे य, कालतो वारस वरिसा खेत्तओ हत्थसतं परिहरणिज्जा । आवासितं०॥१४५५॥ मानुप्या एवीए पुव्वद्धस्स इमा विभासा
जास्वाध्याअसिवोमा०॥ १४५६ ॥ जत्थ सीतानहाणं जत्थ वा असिवओ मताणि बहूणि छशिवाणि आघातणंति जत्थ वा
यिक महासंगाममया बहू एतेसु ठाणेसु अविसोहितेसु कालतो वारसवरिसे खेचतो हत्थसतं परिहरति, सज्झायं न करेंतीत्यर्थः, अहा लाएते ठाणा दवग्गिमादिणा दड्डा उदगवाहो वा तेणंतेण चूढो गामणगरे वा आवासंतेण अप्पणो परिधावणाय सोधितो, सेसंति जला VIगिहीहिं न सोधितं, पच्छा तत्थ साधू ठिता, अप्पणो बसही समंतेण मग्गिता, जे दिदं तं विगिचित्ता अदि वा तिणि दिणे । । उग्घाडणउस्सग्गं करेचा असढभावा सज्झायं करेंति, सारीरगाम० पच्छद्रं, इमा विभासा-सारीरंति मतगसरीरं च जदि डहर-18 ग्गामे ण निप्फेडितं ताव सज्झायं न करेंति, अह नगरे महंते गामे वा तत्थ वाडगसाहीतो वा जाव न निष्फेडियं ताव सज्झाय | परिहरंति मा लोगो निदुक्खत्ति उडाई करेज्जा । चोयग आह-साहुवसहिसमीवेण मतगसरीरस्स णिज्जमाणस्स12 जदि पृष्फवत्यादि किंचि पडितं तं असज्झाइयं, आचार्य आह-निज्जन्त ॥१४५७। मतगसरीरं उभयो वसहीए इत्थसतम्भंतर | जाव निज्जति ताव तं असज्झाइयं, सेसा परवयणमणिता पुप्फादी पडिसेहेतव्वा, ते असझाइयं न भवति, जम्हा सारीरमसज्झा-MIR२८॥ इयं चउब्बिह-सोणियं मंस चम्म अहिं च, अतो तेसु सज्झाओ ण वज्जणिज्जो । एसो तु० ॥ १४५८ ॥ एयो संजमघातादिओ पंचविहो असज्झातो भणितो, तेहिं चेव बज्जितो पंचर्हि सज्झाओ भवति । तत्थत्ति तंमि सझायकाले इमा वक्ष्यमाणा मेरत्ति सामायारी । पडिक्कमित्तुं जाव चेला न भवति ताव कालपडिलेहणाए कताए गहणकाले पत्ते गंडगदिलुतो भविस्सति, गहिते
दीप
CREADCALCIRCLEARCC
अनुक्रम [११-३६]
(241)
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक
अतिक्रमणा
ध्ययने ॥२२९।
+ गाथा: ||१२||
-8
-%A
मुद्धे काले पट्टवणवेलाए गंडगदिदुनो भविस्सति । स्याद् दिः किमर्थ कालग्रहण?, अत्रोच्यते- पंचविहा०॥ १४५९ ॥ पंचविहंकालभूमिसंजमोवघातादिगं,जदि कालं अघेत्तुं सज्झायं करेंति तो चतुलहुगा, तुम्हा कालपडिलेहणाए इमा सामायारी-दिवसचरिमपोरुसीए प्रत्युपेक्षणा चउभागावसेसाए कालगहणभूमीओ ततो पांडलेहेतरुवा, अहवा ततो उच्चारपासवणभूमी य-अधियासिया० गाथा ॥१४६०11 अंतोत्ति निवेसणस्स तिनि उच्चार अहियासियाडले आमष्ण मज्झ दूरे पडिलेहेति, अणाधियासिज्जडलेबि अंतो एवं चेव * तिमि पडिलहेति,ततो थंडिला बाहिं निवेसणस्स, एवं चेव छ भवति एत्य अहियासिया दरयरे अणडियासिया आसण्णतरे कातव्या, पासवणेवि एतणेव कमण बारस, एते सच्चे चतुब्बीस, अतुरियमस्ममितं उबउत्तो पडिलहेना पच्छा निनि कालग्गहणथंडिले पडिलेहेज्ज, जहण्णण तत्थ हत्यमेतरिते, अहत्ति अर्णतरे थंडिलपडिलेहजोगाणतरमेव मरो अन्धमेति, ततो आवस्मगं करति, तस्सिमो विधी-अह पुण० ॥ १४६२ ।। अह इत्यनंतरे मुरुन्धमणाणतरमेव आवस्सगं करेति, पुनर्विशेषणे, विहमावस्सगकरण: बिससेति- निच्चाघातं बाघातिमं च, जदि निवाघातं तो सच्चे गुरुसाहिता आवस्मयं करेंसि, अह गुरू सड़ेसु धम्म कहति तो आवस्सगस्स साहहिं सह करणिज्जस्स बाघाती भवति, जंमि कालेनं करणिज्जतं भासतस्स बाघाता भण्णात, तता ते गुरूप निसिज्जधरो य पच्छा चरित्ताइयारजाणणटुता उवसरगं ठाउँति- सेसातु०॥ १४६३ ।। सेसा उ गुरुं आपुच्छिना गुरुवाणस्सहै
मग्गतो आसने दूरे अधारातिणियाए जं जस्स ठाणितं तं तस्स सट्ठाणं तत्थ, पडिक्कमंताण इमा ठवणा ||01:10॥ ॥२२९॥ PIगुरू पच्छा ठायतो मझेण गओ सट्टाणे ठायति, जे वामतो ते अणंतरसमेण गंतुं सहाणे ठायति,जे दाहिणयो अर्णतरमवसवण |तं चेत्र अणागतं ठाति सुनन्थज्मरणहेतुं, तत्थ य पुब्बामेव ठायंता 'करेमि भंते ! सामाइय'मिति सुत्तं करेंति, जाहे पच्छा
4
दीप
-%-
अनुक्रम [११-३६]
ECER'S
3
(242)
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
CRECESS
+ गाथा: ||१२||
SANSAR
प्रतिक्रमणा 3 गुरू सामाश्यं करेता बोसिरामित्ति भणिचा ठिता उस्सग्गं ताहे पुवद्विता देवसियातियार चितेंति, अण्णे भणति- ताहे गुरू आवश्यकध्ययने सामाइयं करेंति ताहे पुवट्टियावि तं सामाइयं करेंनि, सेसं कंठं। जो होज्जः ॥ १४६४ ॥ परिसंतो प्राघूर्णकादि, सोपि सज्झा-दा
विधिः ॥२३॥ मायझाणपरो अच्छति, जाहे गुरू ठंति ताहे तेऽवि बालादिया ठंति । एतेण विधिणा- आवासं० ॥१४६५।। जिणेहिं गणधराणं उच
कालग्रहण ४|दिह, ततो परंपरएण जाव अम्हं गुरुवदेसेण आगतं ते कातुं आवस्सग अण्णे तिणि धुतीओ करेंति, अहवा एगा एगसिलोइया है बितिया बिसिलोइया तइया तिसिलोइया, तेसिं समत्तीए कालवेलपडिलहणविधी इमा कातव्वा, अच्छतु ताव विही, इमो काल-| | भेदो ताव बुच्चति
दुविधो० ॥ १४६९ ।। पुब्बद्धं कंट, जा अतिरित्तवसही बहुकप्पटिगसेविया य सा घंघसाला, ताए णितअतिताणं घट्टण-18 पडणादि वाघातदोसो सडकहणेण य वेलातिक्कमदोसो एवमादि । बाघाते०॥ १४७० ।। तम्मि वाघातिमे दोणि जे कालप-10 डियरगा ते णिग्गच्छति, तेसिं ततिओ उवझायादि दिज्जति, ते कालग्गाहिणो आपुच्छणं संदिसावणं कालपवेदणं च सव्वं तस्सेव टू करेंति, एत्थ गडगदितो न संभवति, इतरे उवउत्ता चिट्ठति, सुद्धे काले तस्सव उवझायस्स प्रवेदिति, ताहे डंडधरगो चाहिं | "कालपडियरगो चिट्ठति, इतरे दुयगादिवि अंतो. परिसंति, ताहे उवज्झायस्स समीये सच्चे जुगवं पवेति, पच्छा एमो गीति,
दंडधरो अतीति, तेण पट्ठविते मज्झाय करेति, 'निब्वाधाते' पच्छदं, अस्यार्थ:- आपुच्छण०॥ १४६८ ॥ निब्वाधाते दोण्णि जणा गुरुं पुच्छति-कालं घेच्छामो?, गुरुणा अब्मणुण्णाता कितिकमंति बंदणं कातुं डंडगं घेत्तुं उबउचा आवस्सितमासज्जं करेंता
॥२३॥ पमजंता य गच्छति, अंतो जदि पक्खुडति पति वा वस्थादि वा बिलग्गति कितिकम्मादि किंचि विवई करेंति तो कालवाघातो,
दीप
अनुक्रम [११-३६]
ACRECACADEGA
REWASHRESERRE
(243)
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा दाइमा कालभूमीए पडियरणविधी-इंदिएहिं उबउत्ता पडियरंति, दिसत्ति जत्थ चउरोवि दिसाओ दिस्संति, उडुमि जदि विण्णि है
कालग्रहणं ध्ययन
तारा दिस्संति,जदि पुण अणुवउचा अभिट्टो वा इंदियविसओ दिसत्ति दिसामोहो दिसाओ तारगाओ वाण दीसति वासं वा ॥२३॥ परति असज्झाइयं वा जातं तो कालबही। किंच-जदि पुण०॥१४६९ ॥ तेसिं चेव गुरुसमीवातो कालभूमि गच्छताण अंतरे
जदि छीतं जोती वा फुसति तो नियतंति, एवमादिकारणेहिं अव्याहता ते निव्वापातेण दोषि कालभूमि गता संडासगादि विधीए पमज्जिचा निसण्णा उद्घहिता वा एक्केक्को दो दिसाओ निरिक्खतो अच्छति । किंच-तत्थं कालभूमीए ठिता सज्झाय. ॥ १४७० ॥ तत्थ सज्झाय अकरेंता अच्छति कालवेलं च पडियरन्ता, जदि गिम्हे तिष्णि सिसिरे पंच वासास सत्त कणगादि। पेक्षेज्जा तथावि नियत्तंति,अहया निव्याघातेण पत्ता कालग्गहणबेला तो ताहे जो डंडधारी सो अंतो पविसित्ता साधुसमीपे भणति-2
बहुपडिपुण्णा कालवेला मा बोल करेह, एत्थ गंडगोवमा पुन्चमणिता कजति, आघोसि० ॥१४७१ ।। जहा लोगे गामादिदगंडगेण आघोसिते बहूहि सुते थोयेसु असुतेमु गामादिवि अकरेंतेमु डंडो भवति, बहुर्हि असुते गडगस्स डंडो पडति, तहा
इहंपि उबसंहारेतव्वं, ततो डंडघरे निग्गते कालग्गाही उत्थेति । सो कालग्गाही इमेरिसो-पियधमो० ॥ १४७२ ॥ पियधमो ४ दढधम्मो य, एत्थ चतुभंगो, तत्थिमे पढमभंगे-निच्चं संसारभयुब्बिग्गचित्तो संविग्गो, बज्ज- पावं तस्स मीरू बज्जभीरू, जथा तं न भवति तथा जयति, एत्य कालविधिजाणको खतष्णो, सत्तमंतो- अभीरू, एरिसो साधू कालं पडिलहेति, जग्गति गृहाति
त्यः, तेय तं बलं पखियरंता एमेरिसं कालं तुलति-काल संझां०॥ १४७३ ।। संझाए धरतीए कालग्गहणमाढ, कालग्गहणं । संझाए य ज सेसं एतो दोवि जथा समं समप्पति तथा कालवेलं तुलेति, अहवा तिम् उतरादियासु ससंझं गेहति, चरिमत्ति |
दीप
SHAREKHA
अनुक्रम [११-३६]
ARE
(244)
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा अवरा ताए अवगतसंझाएपि गण्हंति, ण दोसो, सो कालग्गाही वेलं तुलेता कालभूमीओ संदिसावणणिमित्तं गुरुपायमूलं गच्छति, कालग्रहण ध्ययने
तत्थेसा विधी-आउत्त०॥१४७४|| जथा निग्गच्छमाणो आउनो निग्गतो तहा पविसंतोवि आउनो पविसति, पुन्यनिग्गतो चेव | ॥२३२॥
जदि अणापुच्छाए कालं गेहति पविसंतोवि जदि खलते पडति वा पत्थवि कालुवघातो, अहवा वाघातोत्ति अभिघातो लेटुइट्टालादिणा, भासत मूह पच्छद्धं मांन्यासिकं उपरि वक्ष्यमाणं, अहवा पत्थवि इमो अत्थो भाणितव्यो- बंदणं देतो अण्णं भासंतो|
देति वंदणदुयं न ददाति,किरियासु वा मूढो आवत्तादिसु वा संका-कता ण कतनि,बंदणं देंतस्स इंदियविसओ वा अमणुण्णमागतो। |णिसीहिय० ॥ पविसंतो तिमि निसीहिताओ करेति, नमो खमासमणाणंति णमोक्कारं च करेति, इरियावहियाए पंचउस्सास-12
कालियं उस्सग्गं करेति, उस्सारिते णमो अरहताणंति पंचमंगलं चेव कट्टति, ताहे कितिकमंति चारसावत्तं वंदणं देति, भणतिसंदिसह पादोसियं कालं गिण्हामो, गुरुबयण-गेण्हहत्ति, एवं जाव कालग्गाही संदिसावेत्ता आगच्छति ताव वितिओत्ति डंड|धरो सो कालं परियरति । पुणो पुब्बुत्तेण विहिणा णिग्गतो कालग्गाही. थोवाब० ॥१४७६ ॥ उत्तराहुत्तोत्ति उत्तरामुखः छाडंडधारीवि वामपासे रिजुतिरियदंडधारी पुवाभिमुहो ठायति, कालग्गहणनिमित्तं च अठुस्सासकालियं काउस्सगं करेति, अण्ण . पंचुस्सासियं करेंति, उस्सारिते चउबीसत्थयं दुमपुफिया सामण्णपुब्वयं च एते तिणि अखलिते पढित्ता पच्छा पुवाए एते कच्चेच तिष्णि अणुप्पेहेति, एवं दक्षिणाए अबराए य,गवतस्स इमे उबधाता जाणितव्या-बिंदू य छीए यः॥१८-६६ ।। १४७७॥ ॥२३२॥
गेहंतस्स जदि उदगबिंदू पडेज्जा, अहया अंगे पासओ वा रुधिरबिंदू, अप्पणा परेण वा जदि छीतं, अज्झयणं वा कडूतस्स जदि | अण्णतो भावो परिणतो, अनुपयुक्त इत्यर्थः, सगणेत्ति सगच्छे तिण्डं साहणं गज्जिते संका, एवं विज्जुच्छीतादिसुवि। भासंत
दीप
अनुक्रम [११-३६]
RECORNERAL
(245)
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥२३३॥
-
पच्छस्स पूर्वन्यस्तस्य इमस्य च विभासा मूढो व० ।। १९६७ ।। १४७८ ॥ दिसामोहो संजातो, अहवा मुढो दिसं पच्च अज्जायका, १, उच्यते, पढमं उत्तराहुत्तेण ठातव्वं, सो पुण पुब्बाहुतो पढमं ठायति, अज्झयणेवि पढमं चउन्चीसत्यओं, सो पुण मूढसणतो दुमपुष्फियं सामण्णपुव्वयं वा कति, फुडमेव वंजणाभिलावेण भासतो कड्डति, फुडफुडेचा वा गण्डति, एवं न सुज्झति, संकेतोत्ति पुव्वं उत्तराहुण ठातुं ततो पुव्बाहुतेग ठातव्वं, सो पुण उत्तराओ अवराहुतो ठायति, अज्झयणेसुवि चवीसत्थातो अण्णं चैव खुडियायारगादि अक्षयणं संकमेति, किं अम्रुतीए दिसाए ठितो ण बत्ति, अज्ायणेवि किं कर्ति ण वेति, इंदियविसए य अमणुण्णेत्ति अणिट्टो पत्ता जथा सोतिदिए रुदितं वंतरेण वा अट्टट्टहास कर्त रूवे विभीसिगादि विकतरूवं वा गंधे कलेवरादिगंधो रसस्तत्रैव स्पर्शे अग्निज्वालादि, अहवा इट्ठेसु रागं गच्छति अणि इंदियविसएस दोसं, एवमादिउवघातवज्जितं कालं घेतुं कालनिवेदणाए गुरुसमीवं गच्छंतस्स इमं भणति जो बच्चं० ॥ १९-६८ ।। १४७९ ।। एसा भद्दवाहुकता गाथा, तीए असे कवि सिद्धसेणखमासमणो पुव्बद्धभणितं अविदेसं वक्खाणेति आवासि० ॥ १॥ (सिद्ध०) जदि णितो आवस्सितं न करेति पविसंता वा णिस्सीहितं, अहवा अकरणमिति आसज्जं न करेति, कालभूमीओ गुरुसमीवं पट्टितस्स जदि अंतरेण साणमज्जारादी छिंदंति, सेसा पदा पुन्बभणिता । एतेसु सब्धेसु कालवधो भवति । गोणादि० || २ || (सिद्ध०) पढमं ता गुरु आपुच्छित्ता कालभूमिं गतो, जदि कालभूमीए गोणं णिसष्णं संसप्पगा वा उडिता पेक्खति तो णियत्तते, जदि कालं पडिलेहिंतस्स गण्हंतस्स वा णिवेदणाए वा गच्छेतस्स कविहसितादी एहिं कालवहो भवति, कविहसित नाम आगासे विकृतरूपं मुहं वानरसरिसं हार्स करेज्ज, सेसा पदा गयत्था । कालग्गाही निव्वाघातेण गुरुसमावमागतो- इरिया०
(246)
कालग्रहणं
॥२३३॥
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम
[११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 निर्मुक्तिः [ १२४३-१४१५/१२३९- १४१८],
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४] मूलं [सूत्र / ११-३६] / [गाथा- १,२]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥२३४॥
*16
॥ १४८० || जदिवि गुरुस्त हत्यंतरमेचे कालो गहितो तथाचि कालपवेदणाए इरियावहिया पडिक्कमितव्या, पंचूसासमेतं कालं काउस्सग्गं करेति उत्सारितेवि पंचमंगलं वयणेण कति, हे बंदणं दातुं कालं निवेदेति-सुद्धो पादोसिओ कालोचि, ताहे डंडधरं मोतुं सेसा सब्बे जुगवं पटुवेंति, किं कारणं १, उच्यते- पृथ्वुत्तं जं मरुगदितोति सणिहित० ॥ १४८१|| बडो बंड्गो विभागो एगई, आरितो आगारितो सावितो वा एग, वडेण आरितो बडारो, जहा सो वडारो संणिहिताण मरुयाण लब्भति, न परोक्खस्स, तथा देसकथादिपमादिस्स पच्छा कालं ण देति, दरत्ति अस्य व्याख्या वाहिद्विते पच्छद्धं कंठं । सवेहिवि० पच्छ अस्य व्याख्या- पढवित० ।। १४८२ ।। डंडधरेण पट्टचिते वंदिते एवं सव्वेंहिं पविते पच्छा भणति अज्जो ! केण किं सुतं दिवा, दंडधरो पुच्छति अण्णो वा, तेवि सच्चं कहेंति, जदि सन्देहिवि कहितं ण किंचि दिहं सुतं था तो सुद्धे करेंति सज्झायं, अह एगेणवि फुडं किंचि विज्जुमादिगं दिडं गज्जितादि वा सुतं ततो असुद्धे न करेंति, अह संकितो- एगस्स उ. दि एगेण संदि दि सुतं वा तो कीरति सज्झायो, दोन्हवि संदिद्धे कीरति तिद्धं विज्जुमादि एगसंगहे ण कीरति सज्झायो, तिन्हं अण्णाण्ण संदेहे कीरति, सगणंमि संकितेति परगणवयणातोऽसज्झासो न कातव्यो, खेत्तविभागेण तेसिं चेत्र असज्झाइयसंभवो । 'जं एत्थं णाणतं तमहं वोच्छं समासेणं' ति अस्यार्थः काल चतु० ।। १४८४ ॥ तं सर्व्वं पादोसिते काले भणितं इदाणि चतुसु कालेसु किंचि सामण्णं किंचि वइसेसियं भणामि, पादोसिते दंडधरं मोलुं एक्कं सेसा सब्धे जुगवं पट्टवेति, सेसेसु तिमु अङ्कुरते विरचिय पाभातिते य समं वा विसमं वा पट्ट्वेंति । किंचान्यत्- इंदिय० ।। १४८५ ।। सुद्ध इंदिओवओगे उवउत्तेहि सव्वकाला पडिजागरिता, कणगेसु कालसंखाकतो विसेसो भण्णति विष्णि सिग्यमुवहणंतित्ति तेण उक्कोसं मण्णति, चिरेण उबधातोति तेण सच जइण्णे,
(247)
कालग्रहणं
॥२३४॥
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथा: ||१२||
अतिक्रमणाटा सेसे मजिसम, अस्य व्याख्या- कणगा० ॥१४८६ ॥ कणगा गिम्हे तिणि सिसिरे पंच पासासु सत्त उवहणति, उक्का एक्का कालमा ध्ययन शव उवहणति काल, कणगो सण्हरेहो पगासविरहितोय, उक्का महन्तरेहा पगासकारिणीय, अहवा रेहविरहितोवि फुलिंगो
पहासकरो उक्का चेव । 'वासासु प तिषिण दिसा' अस्य व्याख्या-वासासु य०॥ १४८७ ।। जरथ ठितो वासकाले तिण्णिवि 1.२३५॥
दिसा पेक्वति तत्थ ठितो पाभातिर्य कालं गेण्हति, सेसेसु तिसुवि कालेसु बासासु उडुबद्धे चउसु चेव जत्थ ठितो चतुरोवि दिसाविभागे पेक्खति तत्थ ठितो गेण्हति ।। 'उहुपद्धेसाग्गा तिन्निति अस्य व्याख्या-तिसु निषिणः ॥ १४८८ ।। तिसुक कालेसु पादोसिए अङ्करत्तिए रत्तिए य जहण्णणं जदि तिगि तारिगाओ पेक्वंति तो गेहंति, उबद्ध वादा अम्भादिसंथडे जदिवि एक्कपि तारण देकखंति नहाबि पाभातियकालं गेहंति, वासाकाले पूर्ण चतुरोवि काला अब्म-1# संधडे तारासु अदीसंतीसुषि गण्हंति । छपणे णिविहात्ति अस्य व्याख्या- ठागासति ॥ १४८९ ॥ जदि वसहीए बाहि कालमाहिस्स ठामो णस्थि ताहे अंतो छष्णे उद्भडितो गण्हति, अह उद्धट्टितस्सवि अंतो ठातो णस्थि ताहेर
छष्ण व निविट्ठा गेण्हति, बाहिं ठितो य एको पडियरति, वासबिन्दसु पडतीसु नियमा अंततो ठितो गेण्हति, तत्थषि उद्धहितो MY निसण्णो पा, नवरं पडियरगोचि अंतो ठितो चेच पडियरति, एस पाभातिए गच्छवग्गहडा अयवायविहीं, सेसा काला ठागासती।
ण घेतब्वा, आइण्णओ बा जाणितव्वं । कस्स कालस्स कं दिस अभिमुहेहिं पुव्वं ठायवमिति भण्पाति-पादोसिय०॥ १४९०॥ ॥२३५।। पादासिए अद्धरतिए नियमा उत्तराभिमुद्दो ठाति, वेरथिए भयणति इच्छा उत्तरमुहो पुवमुहाँ वा, पाभातिए णियमा पुष्पमुहो।। इदाणि कालग्गहणपरिमाण भण्णति-कालचतु०॥१४९१ ।। उस्सग्गे उकोसेण चतुरो काला घेप्पंति, उस्सग्गे चेव जहष्णेण
SRIRALAGEGRECOR
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(248)
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कालग्रहणं
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणानिग मपति, पितियपदंति अबचादपद तेण कालदृगं भवति अमायाविना,कारणे अगृहाणस्येत्यर्थः, अहवा उकोसण चतुष्कं भवति, ध्ययने लाजहण्णे हाणिपदे तिगं भवति, एकमि अगहित इत्यर्थः, वितिते हाणिपदे कते दुगं भवति, द्वयोरग्रहणमित्यर्थः, एवं अमायाविणो
तिग्णि वा अगहतस्सएको भवति, अहया मायाविमुक्तम्य कारणे एकमपि का अगहतो न दोपो-प्रायश्चित्तं भवति ।। कई बा। पुण कालचउक?, उच्यत--फिडिय० ॥ १४९२ ।। पादासियं काल पर्नु सब्बे पोरुसि कातुं पुण्णपोरुसीए सुनपाढी मुवन्ति, अत्यचिंतगा उकालपादिणी य जागरंनि जाब अडरनो, नतो फिडिते अदरने कालं घेत्तं ते जागरपिया गुवति, ताहे गुरू उर्दुत्ता । गुणेति जाव चरिमो जामी पत्तो, चरमजामे सब्बे उट्टेचा बेरनिय घेत्तुं सज्झायं करोति, ताहे गुरू मुवंति, पत्ते पाभातिए काले जो। पाभातियं कालं घेच्छिति सो कालम्स पडिकमितुं पाभातियं कालं गेहति, मेमा कालबेलाए पाभाइयकालस्म पडिकमंनि, ततो आव-13 स्सयं करेंति । एवं चतुरो काला मति । निष्णि कह?, उच्यते, पाभातिते अगहिते ससा तिष्णि, अहया-गहिनमि॥१४९३॥वातिए अगहिते सेसेसु तिसु गहितेसु तिष्णि, अङ्करत्तिए वा अगहिते निष्णि, पादोसिए या अगहिने तिष्णि, दाणि कहं , उच्यते, 12 पादोसिअडरति गहितेसु सेसंग अगदितेसु दोष्णि भवे, अहवा पादोसिते रत्तिए गहिते दोषिण, अहवा पाभातियपादोसिएसु गहितेसु सेसेसु अगहितेसु दोण्णि, गन्थ विकप्पे पादोसिएण चेव अणुबहतेण उवयोगतो सुपडिजुग्गितेग मन्चकाले पटनित्ति न | दोसा, अहवा अडरत्तियवरत्तिय गहिए दोण्णि, अहवा अडरनियपामाइएमु गहिइएसु दोण्णि, जदा ऐका तदा अण्णतरं गेहति । कालचउक्ककारणा इमे', कालचउकग्गणं उस्सग्गतो विधी व, अहवा पादोसिये गहिते उवहते अड्डर घेनुं सज्झायं करेंति, तमि-IN | वि उबहते वेगनयं घेत्तुं सज्झायं कति. पाभानितो दिवसट्ठा धेनब्बो चेव, एवं कालचकं दिट्ठ, अणुवहते पण पादोसिते सुपडि
दीप
अनुक्रम [११-३६]
२३६।।।।
(249)
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ध्ययने
॥२३७॥
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणायग्गिते सव्वं राई पढंति, वेरत्तिएणवि अणुवहतेण सुपडियग्गितेण पाभानियममुद्धे उद्दिढ दिवसतोऽपि पढति, कालचउके अग्गह-I&ाकालग्रहर्ष
कारणा इमे-पादोसियं न गेहति असिवादिकारणतो ण सुज्झइ वा, अड्डरत्तियं न गेहति कारणतो न सुज्नति वा, पादोसिएम | वा सुपडियरिंगतेण पर्टतित्ति न गेण्हति. बरतियं कारणता ण गिण्हंति ण सुज्झति वा, पादोसियअड्डरत्तिएण वा पतित्ति ण गेण्हति, पाभातियं या गेहंति कारणतो न सुज्झति वा । इदाणिं पाभातियकालग्गहण विहि पनेयं भणामि-पाभाइय०॥१४९५॥ पाभाइयंमि काले गहणविधी पट्टवणविही य । तत्थ गहणविधी इमा-णवका || भा. २२४ ॥ दिवसतो सज्झायविरहिताण
देसादिकहासंभववज्जणहूँ मेधावितराण य विभंगवज्जणढाए, एवं सव्वेसिमणुग्गहणट्ठा णव कालग्गहणकाला पाभातिए अणुकोणाता, अतो णवकालग्गहणवेलाहिं सेसाहिं पाभातियकालम्गाही कालस्स पडिकमउ, सेसावि तवेलं उवउचा चिट्ठति, कालस्स |
तं बलं पाहि कर्मति वा ण वा, एगो णियमा ण पडिकमति, जदि छीतरुतादीहि ण सुज्झिहिति तो सो चेव बेरत्तिओ पडिजम्गितो होहितित्ति, सोवि पडिकतेसु गुरुस्स कालं निवेदेचा अणुदिते सूरिए कालस्स पडिकमते, जदि घेप्पमाणेण णव वारा उवहतो कालो तो गज्जति जहा धुक्मसज्झाइयमस्थिति ण कति सज्झायं, पाववारग्गहणविधी इमो 'संचिक्खि तिषिण छीतरुणाई' ति, अस्य व्याख्या-एक० ॥ २२५ मा. ।। एगस्स गिण्हतो छीतरुतादीहिं हते संचिक्ख तित्ति ग्रहणा विरमतीत्यर्थः, पुणो गि-1 हंति, एवं तिष्णि वारा, ततो परं अण्णो अणमि थंडले सिणिण वारा, तस्सपि उबहते अण्णो अण्णमि थोडले, तिण्डं असतीए २३७॥ दोणि जणा नववाराओ पूरंति, दोण्हवि असतीए एको चेव नवदाराओ पूरेति. डिलेसुचि अववादो, दोसु वा एकभि वा|| गण्हति । 'परवयणे खरमादि' ति, अस्य व्याख्या-चोदेति. चोयग आह-जदि रुदितमणिड्डे कालवहो ततो खरेण रडिते
%A-CAR
दीप
अनुक्रम [११-३६]
E
(250)
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ध्ययन का
+ गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा वारस वरिसे उबहमतु, अण्णेसुवि अणि इंदियविसएसु एवं चेव कालबहो भवतु । आचार्य आह-चोयगः ॥ २२६ भा.॥ कालग्रहणं
माणुससरे अणिढे कालवधो, संसगत्ति तिरिया तेसिं जदि अणिडो पहारसद्दो सुणिज्जति तो कालवधो, पावासिगा' अस्प ॥२३८॥
| व्याख्या-पावासिया जदि पाभातियकालग्गहणवेलाए पवासितभज्जा पतिणो गुणा संभरती दिवे दिवे रुवेज्जा तो तीए रोयणवेलाए पुन्चतरो कालो पेचव्यो, अह सावि पच्चूस रुवेज्ज ताहे गंतुं पप्णविज्जति, पप्णवणमणिच्छाए उग्घाडणकाउस्सग्गो कीरति । 'एबमादीणि त्ति अस्य व्याख्या-वीसरसह ॥२२७ भा.।। अच्चायासेण रुदंते वीसरसरं भणति तं उवहणते, जे पुण महुरसई घोलमाणं च तण्णोवहणति, जावमजंपिरं ताव अव्य, तं अप्पेणवि विस्सरसरण उवहणति, महन्तं उस्मुभरोवणाव उबद्दणति, पाभातियकालग्गहणविधी गता ॥ इदाणि पाभातियपढवणविधी-गोसे दर० ।। पच्छद्धं, गोसत्ति उदिते आदिच्चे दिसावाला दिसालोयं करेता पति, अद्धपढविते जदि छीताइणा भग्ग पट्ठवणं पुणो दिसावलोग करेत्ता तत्थेव पट्ठवेंति, एवं | ततियवाराएवि । दिसावलोयकरणे इमं कारण----आतिण्णं ।। १४९६ ।। आइण्णपिसितंति आइपणं पोग्गलं तं काकमादीहि ट्रा आणिय होज्जा, महिया वा पडितुमारद्धा एवमादि,एगट्ठाणे तयो वारा उपहते हत्थसतबाहि अण्णहाणं गंतु पेहिन्ति पडिलेहिन्ति |
य, पट्ठतिति युत्तं भवति, तत्थवि पुव्वुत्तविहाणण तिणि वारा पट्ठवेंति, एवं वितियट्ठाणवि असुद्धे ततोपि हत्थसतं अण्णं ठाणं गंतु तिणि वारा पुरुयुत्तविहाणेण पट्टति, जदि सुद्धं तो करेंति सज्झाय, णव वारा खुतादिणा हते नियमा हतो कालो (ततो.) पढमाए पोरुसीए समायं न कति । पट्टषितं०।जदा पढवणाए तिमि अज्झयणा सम्मना तदा उरि एगो सिलोगो को- २३८॥ तब्बो, तमि समत्ते पट्ठवण समप्पेति सुज्झति य, वितियपादो गतत्वो । सोणितति अस्य व्याख्या--आलोगेवि०॥ १४९८ मा
CRESEARCRACK
दीप
अनुक्रम [११-३६]
TERNER
(251)
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
[सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणाला तत्थ सज्झायं करतेहिं सोणितवनिका दीसति तत्थ न करेंति सज्ज्ञाय, कडगचिलिमिलि वा अंतरे दातुं करेंति, जत्थ सज्झाय कालपर्ण ध्ययने चेव करेंताणतपुरिसकलेबरादियाण गंध अष्णामि वा असुभगंधि आगच्छति तस्थ सज्झायन करेंति, अण्यात्थ गंतु करेंति,
|| अण्णपि बंधणसेहणादिआलोयं परिहरेज्जा, एवं सर्य नियाघाते काले भणितं, वाघातिमकालवि एवं चेक, णवरं गंडगमरुगदिट्टते ॥२३९॥ Itण भवति । एतेसा॥१३९९ ।। वितिय० ।। ।। (न वृती)दोवि कंठाओ, एवं परसमुत्थं गत।
दाणि आयसमुत्थं भण्णति- आयसमुत्थमसज्झाइयल्स इमे भेदा-आयस. ॥ १५०० ।। एगविधं समणाण,तं च वणे। भवति, समणीण दुबिह-बणे उद्दसंभवं च, इमं वणे विहाणं- धोयंमि य० ॥ १५०१ ।। पढम चिय वणो हत्थसतस्स बाहिरतो घोषितुं णिप्पगलो कतो, ततो परिगलंते तिणि बंधा जाय उक्कोसेण करेंतो पाएति, दुविई-वणसंभवं उद्ययं च, दुबिहेवि एवं
पट्टगजतणा कातब्बा । समणो० ॥ १५०२ ।। वणे घोषणप्पगले हत्थसतबाहिरतो पट्टग दातुं बाएति, परिगलमाणेण मिष्णे ६ तमि पट्टगे तस्सेव उवरि छारं दातुं पुणो पर्दु देति पुणो पाएति य, एवं ततियपि पट्टगं बंधेज्जा बायणं च देज्जा, ततो परं31
गलमाणे इत्थसतबाहिर गंतुं वर्ण पट्टगे य घावितु पुणो एतणब अण्णत्थ गतुं अणणेव कमेण वाएइ, अहवा अण्णस्थ गतुं पढति ।
एमेव य० ॥ १५०३ ।। इतरंति उद्ययं, तत्थवि एवं चेय, पावर सत्त बंधा उक्कोसेण कातन्वा, तहवि अQते हत्थसतबाहिरतो द घोतुं पुणो वाएंति, अहवा अण्णत्थ पदन्ति । आणादोया दोसा भवति । इमे य-सुतणाणं०॥ १५०५॥ सुतणाणअणुक्यारतो ॥२३९॥
अपत्ती भवति, अहबा सुतणाणभनिरागेण असज्झाइए सज्झाइयं मा कुणसु, उबएसो एस, जे लोगधंमविरुद्धं च तं न कातब्ब, अषिधीत पमत्तो लम्भति, तं देवता छलेज्ज, जहा विज्जासाहणवइगुण्णसाए विज्जा न सिज्मति तहा इईपि मखयो ण भवति,
दीप अनुक्रम [११-३६]
(252)
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं २०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कालमा
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
अतिक्रमणावैगुण्यं वैधता, विपरीतभावा इत्यर्थः, वैधम्मताए य-सुतधम्मस्स एस धम्मो जं असज्झाइए सज्झायव मण, करेंति य मुतणाणा- ध्ययन
शयार विराति, तम्हा मा कुणसु । चोयग आह-जदि दंतट्ठिमंससोणितादी असज्झायो णणु देहो एतधम्मओ चेब, कहं तेण ॥२४०॥ सज्झाय करेह ?, आचार्य आह- काम दे०॥ १५०६ । कामं चोयगाभिप्पायणुमतस्ये, सरचं तम्मयो देहो तथावि जे सरीरा ते
अवजुत्तत्ति पृथगभूता ते वज्जणिज्जा, जे पुण अणवजुत्ता तत्वत्था ते णो बज्जणिज्जा, इनि उपप्रदर्शने, एवं लोके दृष्ट, | लोकोत्तरेऽप्येवमित्यर्थः ।। किं चान्यन्- अभितर०॥ १५०७ ॥ अभ्यंतरा मत्रपुरीपादी तेहिं चव वाहिरे उवलितोण कुणति, अणुवलित्तो पुण अम्भितरगतेसुवि तेसु अह अच्चणं करति । किं चान्यत्- आउट्टिगा० ॥ १५०८ ॥ जा पडिमा संनिहितित्ति देवताहिडिता सा जदि कोइ अगाढितेण आउट्टियंति जाणतो बाहिरलितो ते पाडमं छिचति अच्चणं च से कुणति तो न खमते, खित्तचिनादि करेति रांगे वा जणेति मारति वा, इयत्ति एवं जो असज्झाइए सज्झायं करेति तस्स गाणाय रविराहणाए कंमबंधो, एस से परलोइओ दंडो । इहलोए पमत देवता छलेज्ज । स्यात्-आणा व चिराहणा चा धुवा चेव ।। कोइ इमेहि अप्प४. सत्थकारणेहिं असज्झाइए सज्झायं करज्ज-रागेण ॥१५०९ ॥ रागण दोसओवा करेज्ज,अहवा दरिमणमोहमाहिओ भणेना-14 Id का अमुत्तस्स नाणस्स आसातणा ?, को वा तस्स अणायारो', नास्तीत्यर्थः । एतसि इमा विभामा- गणिसद्द० ॥ १५१०॥ 12महितोत्ति पूज्य तुट्ठाणंदिओ परेण गणिवायगो बाहरिज्जन्तो भवति, तदभिलासी असज्झाइएवि सज्झायं करेति, एवं रागे- Nxदोसे, किंवा गणि वाहरिज्जति पायगो वा, अहंपि अहिज्जामि जेण एतस्स पडिसवत्तीभूतो भवामि, जम्हा जीवसरीरावयवी अस-
झाइयं तम्हा सर्व असझाइयमयं, न श्रद्धातीत्यर्थः। इमे दोसा-उम्मायः ॥ १५११ ॥ खित्ताइगो उम्मायो, चिरकालिओ
SEARSAX
दीप
अनुक्रम [११-३६]
॥२४॥
(253)
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
+ गाथाः ||१२||
प्रतिक्रमणा रोगो, आसुधाती आतंको, एते वा पायेज्जा, धम्माओ भैसेज्जा मिच्छादिट्ठी वा भवति, चरिताओ वा परिवडति । इहलोए.8| शेषातिध्ययन ॥१५१२ ।। सुयणाणायारविवरीयकारी जो सो णाणावरणिज्ज कम बंधति, तदुदयाओ य विज्जाओ कतोवयाराओवि फलं न देंति, चाराः
न सिध्यन्तीत्यर्थः, विधीए अकरण परिभवो, एवं सुतासातणा, अविधीए य बट्टतो नियमा अढ कमपयडीओ बंधति हस्सद्वितीओ ॥२४॥
यदीहद्वितीओ करेति मंदाणुभावा य तिव्वाणुभावाओ करेति अप्पपदेसाओ बहुप्पदेसाओ करोति, एवकारीय नियमा दी का संसारं निव्वचेति, अहवा णाणायारविराहणाए दसणायारविराहणा, णाणदंसणविराहणाहिं नियमा चरणविराहणा, एवं तिण्डं विरा-DI हणाए अमोक्खो अमोक्खा नियमा संसारो, वितिय० ।। पूर्ववत् । सर्वत्र अणुप्पेहा अप्रसिद्धा इत्यर्थः । असज्झाइयणिज्जुत्ती सम्मत्ता ।। एत्थ पडिसिद्धकरणादिणा वा अतियारो तस्स मिच्छामिदुक्कडंति ॥
एवं ता सुत्तनिबंध, अस्थतो पुण तेचीसाओ चोत्तीसा भवतीति चोत्तीसाए बुद्वयणातिसेसेहिं, पणतीसाए सच्चवयणादि| सेसेहिं छत्तीसाए उत्तरायणेहिं एवं जहा समवाए जाव सतभिसयाणक्खते सतगतारे पण्णत्ते, एवं संखेज्जेहिं असंखेज्जेहि अणंतेहि य असंजमट्ठाणेहि य संजमट्ठाणेहि य ज पडिसिद्धकरणादिणा अतियरितं तस्स मिच्छामिदुक्कडंति । सव्वोविय एसो
दुगादीओ अतियारगणो एमविहस्स असंजमस्स पज्जायसमूहो इति, एवं संवेगायथं अणेगधा दुक्कडगरिहा कता । &ाइदाणि परिणामविसुद्धिथिरीकरणथं गुणबहुमाणतो यदिदं निग्गंध पावयणं आराहितमारद्धं तं जेहिं उपदिई आराहितं चय॥२४॥
तेसिं णमोक्कारपुन्वर्ग एतस्स चेव गुणमाहप्पं भावेंतो एतम्मि अप्पणो ठिति आराधणं च दरिसेन्तो इदमाह-णमो चउब्धीसाए तित्वगराणं उसमादिमहावीरपज्जवसाणाणं इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अणुत्तरं जाव किरियं उपसंपज्जामित्तिा
दीप
RAKASH
अनुक्रम [११-३६]
(254)
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
अतिक्रम ध्ययने
1॥२४२॥
+ गाथा: ||१२||
ACCOctict
सूत्र
ण मो चउव्वीसाए जाव पज्जवसाणाणं' एवं सुगम, एतेण तेसि गमोक्कारो कतो । इणमेवेति इदं प्रत्यक्षीकरणे, निग्रन्थतमेव पागतेण इणमोत्ति भणति, इदमेव नियंध्यं प्रवचनं वक्ष्यमाणगुणमाहात्म्यं, नान्यत् शाक्यादि, निग्गंधाणमिदं नैर्ग्रन्थ्य,
स्थितिः निग्गंथा जघा पण्णत्तीए, पाक्यणं सामाइयादि बिंदुसारपज्जवसाणं, जत्थ णाणदंसणचारित्तसाहणवावारा अणेगधा वणिज्जंति, एतं-एतद्गुणमाहप्क्वेतं पवचते, जथा सच्च सद्भयो हितं सच्च, सद्भुतं वा सच्च, अणुत्तरं-सब्बुत्तिमं केवलियं केवलं अद्वितीयं एतदेवैक हितं नान्यत् द्वितीयं प्रवचनमस्ति, केवलिणा वा पण केवलियं, पडिपुण्णं णाणादिसाधगपयोगऽपडिहिडितं, णेयाउगंति नैयायिकं न्यायेन चराति नैयायिक, न्यायावाधितमित्यर्थः, संसुद्धं समस्तं सुद्धं ससुद्धं बहुविधचालणादीहिं पेयालिज्जतं सल्लकत्तणं सल्लाणि-मायानिदाणमिच्छत्तसल्लाणि तेसि कत्तणं-छेदणं, सिद्धिमग्गं सिद्धत्तर्ण सिद्धी तीए मग्गो-प्राप्त्युपायः, एवं मुत्तिमग मुत्ती-निर्मुक्तता निःसंगता इत्यर्थः निजाणमग्गं निर्याण-संसारात्पलायणं निब्वाणमग्गं निव्याणं-निव्वत्ती आत्मस्वास्थ्यमित्यर्थः, एयं चेव मग्गं बिसेसेति-अवितहमविसंधि सव्वदुक्खप्पहीणमरगति सिद्धिमग्गं मुनिमग्गं णिज्जाणमग णिव्वाणमग्गं अवितथं-तथ्य एवं अविसंधि-अव्यवच्छि सयदुक्खप्पहीणमग्गं-सर्वसंक्लेशविहीन, यतो एवंगुणं अतो | |एतमाहप्पयमित्यादि । एत्थंति निग्गंथे पावयणे स्थिता इति वृत्ताः जीवाः, किं:- सिझंति सिद्धा भति, परिनिष्ठितार्थी
मा॥२४२॥ भवतीत्यर्थः, ते य बजझति अत आह-पज्झति-युद्धा भवंति, केबलीभवतीत्यर्थः एवं मच्चति मुचंति नाम सव्वकम्मादिसंगण मुक्ता भवति, परिनिव्वायंति परिनिव्वुया भवति, परमसुहिणो भवतीत्यर्थः, सव्वदुक्खाण अंतं करेति सम्बसि सारीरमामसाणं दुक्खाणं अंतकरा भवंति, वोन्छिण्णसम्बदुक्खा भवतीत्यर्थः । अण्णे भणंति सिमंति मोहनीयक्खएण निष्ठितार्थाः भवति |
AURAIRS
दीप
अनुक्रम [११-३६]
(255)
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
॥१२॥
टीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
आयं [२०१-२२७]
अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा-१,२] निर्मुक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रतिक्रमणा
ध्ययने
॥२४३॥
बुज्झंति केवली भवंति मुच्वंति सव्वकम्मुणा परिणिव्वातंति निव्याणं गच्छति, एवं च सव्वदुक्खाणं अंतं करेंतित्ति । अणे गुण मणंति-सिज्झति अणिमहिमा (दि) सिद्धीसंपन्ना भवंति बुज्झति अतिसतबोधजुता भवति, विष्णाणयुता इत्यर्थः, मुंचति युक्ता भवति सव्वसंगेहिं परिणिन्यायंति उवसंतपसंता भवति सव्वदुक्खाणमंत करेंति सब्वदुक्खरहिता भवति, जतो य एवं एवं अतो एत्थ वट्टितव्यमिति अप्पणो ठिति एताम दरिसेति तं धम्मं सहहामि इत्यादि, जो एस वणितनिग्र्गथपवयणाभिहितो धम्मो तं धम्मं सदहामि सामण्णेण एवमेतमिति पत्तियामि अप्पणी प्रतीति करोमि, एवं एव एवमेतंति रोएमि रुचि करेमि एतंमि अभिलाषातिरेकेण आसेवनाभिमुखतया इति, अण्णे पुण एताणि एगट्ठाणि भणतिति । फासेमि आसेवणादारेणति अणुपालेमि आसेवनाभ्यासेन अहवा पुथ्वपुरिसेहिं पाठितं अपि अणुपालेमित्ति, एवं च तं धम्मं सदहंतो पत्तियंतो रोतो फार्सेतो अणुपालेतो तस्स धम्मस्स अन्भुट्टितोमि आराहणाए विरतोमि विराहणाए अतो असंजमं पडियाणामि संजमं उबसंपूज्जामि परियाणामित्ति ज्ञपरिण्णया जाणामि पचक्खाणपरिण्णता पश्चक्खामि, उवसंपजामिति अविराधणाप्रयत्वमित्यर्थः । सो व असंजमो बिसेसतो दुविहो-- मूलगुणअसंजमो उत्तरगुणअसंजमो म, अतो सामण्णेण भणिऊण संवेगाद्यर्थ विसेसतो चैव भणति अयंभं परियाणामि बंभं उबसंपजामि । अवभग्गहणेण मूलगुणा भण्ांतिति, एवं अकप्पं कप्पं च अकप्परगहणेण उत्तरगुणाति । इदाणिं द्वितीयसंसारमोक्षकारणमधिकृत्याह- अण्णाणं परियाणामि णाणं उपसंपज्जामि। तृतीयमधिकृत्याह-मिच्छत्तं परियाणामि सम्मतं उबसंपज्जामि, इदाणिं सव्वं बज्झे किरियाकलावमधिकृत्याह अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि अप्पसत्था किरिया अकिरिया, इतरा किरिया इति ।
(256)
निर्ग्रन्थ
प्रवचनस्थितिः
॥२४३॥
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति: [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.] + गाथा: ||१२||
प्रतिक्रमणा ठाइदाणि असेसदोसविसुदिाणमितमाह-संघयणादिदौर्बल्यादिना जं पडिक्कमामि परिहरामि करणिज्जं जंचन पडिक्क-15 निग्रन्थध्ययने मामि अकरणिज्ज, तथा छामस्थिगोपओगाच्च ज संभरामि जं च न संभरामि कंव्यं, तस्यैवंविधस्य तस्स सव्वस्स अणा
प्रवचन
स्थितिः ॥२४४॥
यरितं पति पडिकमामि, अणायरितं घातिकमोदयतः खलितमासेवितं पडिकमामि मिच्छादुकडादिणा । स एवं पडिकमितूण पुणो| अकुसलपवित्तिपरिहाराय आत्मानमालोचयन्नाह-समणोऽहं संजतविरतपडिहतपच्चक्वातपावकमो आणिदाणो दिहिसंपण्णो मायामोसविवज्जितात्ति । समणोऽहं-पब्बइतोऽहं, तत्थ य संजतो-संभ जतो, करणीयेसु जोगसु सम्यक्प्रयत्नपर इत्यर्थः, तथा बिरतो--सव्वातो सावज्जजोगातो, एतं च एवं इतः यतो पडिहतपञ्चक्खातपायकमो अणिदाणो जाव वञ्जितोचिपडिहतं अतीतं जिंदणगरहणादीहि पच्चक्खातं सेस अकरणतया पावकम-पावाचार येण स तथा, विसमो एस दोसोति । एतत् हितमात्मनो भेदेन भावयबाह-अणिवाणो-निदानपरिहारी, सच्चगुण मूलभूत गुणयुक्तत्वं दर्शयन्नाह-दिद्विसंपणोत्ति-दिट्ठी संमदसणणाणाणि, मायामोसवियज्जिनीत्ति-मायागर्भमुसावादपरिहारी इत्यर्थः, एरिसोय होतो कई पुण अकुसलमायरिस्सी, | इतरहा मायामोसभासप्पसंग इति । एवं अप्पाणं ममुकित्तेतुं ततो जे भगवनो एतमि प्रक्रमे स्थिता तेसि बहुमाणतो सुकडाणुमो| दणन्धं बंदणकातुकामो ते समुकित्तेति-- __अट्टातिजसु दीवसमुद्देसु पपणरससु कम्मभूमीमु जावंत के साधु रयहरणगोच्छपडिग्गहधरा पंचमहब्वयधरा अहारससलिंगसहस्सधरा अक्खुषापारचरित्तात सव्व सिरसा मणमा मत्थएणवदामिति ।। कह पूण २४४|| समुपदै गोपडिग्गहपदं च न पटति. अण्णे पुण- अट्टाहजम दोसु दीवममुद्देम पदंति, पत्थ विभामा कातन्वा । ते इति]
CACAMARC4
दीप
अनुक्रम [११-३६]
सूत्र
(257)
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम (४०)
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [४], मूलं [सूत्र /११-३६] / [गाथा-१,२], नियुक्ति : [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८], भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
संवन्धोऽधिकारक.....
+ गाथा: ||१२||
कायोत्सा साधवः सवत्ति गच्छनिग्गतगच्छवासीपत्त्यबुद्धादयो सिरसा इति कायजोगेण मत्थएणर्वदामिनि एस एव बइजोगो २ । एवं
ध्ययनं तुं मुप्पणिहाणस्थमिदमाह॥२४५॥ सूत्र | स्वामेमि सब्वजीवा,सब्बे जीवा ग्वमंतु मे। कंठयं । मेत्ती मे सबजीवेसु, वेर मजा न केणः ॥१॥ मेची णाम |
सिर्व उपशम इत्यर्थः,एवं आलोइय णिदिय गरहित दुगुंछियं सम्मं । तिविहेण पहिक्कतो वंदामि जिणे चउब्बीसाराति। है एवमिति अनेन प्रकारेण आलोइयं पयासितूणं गुरूणं कहितं णिदियं-मणेण पच्छाताबो गरहितं बहजोगणं, एवं आलोइयाणिदिय
गरहियमेव दुगुंछितं, एवं तिविहेण जोगेण पडिकतो बंदामि जिणे चउव्वीसति । एवं दिवसतो भणितं । रातिमादिसुवि एवं चेच | भणितन्वं, पवरं रातियादिअतियारो भाणितव्यो । भाणतो अणुगमो। इदाणिं नयाः। ते य पूर्ववत् ।। इति पडिकमणनिहै जुत्तीचुण्णी सम्मत्ता ।।
दीप
58XRA-S
अनुक्रम [११-३६]
इदार्णि काउस्सग्गजायणं, तस्य चायमभिसंबंधः-आवस्सगं पत्युतं, तस्स पढमारंभे मंगलं विग्धोवसमादिनिमित कत, मंगलादिपत्थणेण यणंदी अणुयोगद्दाराणि य वित्थरेण वणिताणि,तस्स य छविधस्स छ अज्झयणाणि सामाइयादीणि,
तत्थ चत्तारि अणुगताणि-सामाइयं चउवीसत्थयो बंदणयं पडिकमणति,तत्थ य सावज्जजोगविरती उकित्तण गुणवतो य पडिवची प्रखलितस्स निंदणा एते अत्याधियारा पत्तकालमवसं कातव्वत्ति वाणिता, एत्थवि पत्तकालं काउस्सग्गेण तिगिच्छा अवस्स
२४५||
*** अत्र अध्ययनं -४- 'प्रतिक्रमणं' परिसमाप्तं
.. अत्र अध्ययनं -५- 'कायोत्सर्ग' आरभ्यते
(258)
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
कायोत्सगो ध्ययन ॥२४६॥
||गाथा||
कातवति एत वणिज्जति, पडिक्कमित्त य पडिक्कमणसुसकाणेण ततो पच्छा चरित्तादाण उत्तरीकरणादिणा पायकम्मणिग्या-12
धिकारब तत्थं काउस्सग्गो कातव्वोत्ति काउस्सग्गज्झयण भण्णति, तस्स चत्तारि णियोगदाराणि उवक्कमादीणि परूवेत्ता अत्याधिगारो वणविगिच्छाए, सो य वणो दुविधो- दव्वे भावे य, दव्ववणो ओसहादीहिं तिगिच्छिज्जति, भाबवणो संजमातियारो तस्त पायच्छितेण तिगिच्छणा, एतेणावसरेण पादच्छित्तं परूविज्जति । वणतिगिच्छा अणुगमो य, तं पायच्छितं दसविह-आलोय १ पडिक्कमणं २ तदुभयं ३ विगो ४ थियोसग्गो ५। तवो ६ छेदो ७ मूलं ८ अणवठ्ठप्पं ९ पारंचितं चेति १० ॥१९-१ ॥ १५१३ ।। जथावराह, जहा सल्ले उद्धरिए बणतिगिच्छा कीरति, जथा कंटकगमादि जदि अप्पं निहोस च सल्लं तो उद्धरणमेचेण पाउणति, अहणज्जति वई खतं अमलितं दुखेज्ज ताहे मलिज्जति, जदि तहवि स्सभिज्जति तो उद्धरेत्ता केनमलादीण पूरिज्जति, तहवि सदोस होज्जा तो विभंगिज्जति, अह गाढविद्दारु फरुसं से दोस गोणसखतितादि जहा तो मूलातो | छिज्जति, अह तहाविहूं तो मूलच्छेदोवि कालंतरेण पयत्ततो कीरति, कमिइ पुण चणे खेत्तादीण णिकालितूण तथा मूलच्छेदो | कीरतित्ति, एवं चेव इहवि भाववणे तिगिच्छा दसविई पायच्छितं, तत्थ जो आलोयणाए सुज्झति सो ताए सोहेतब्यो, एवं जाव जो पारंचितेणं सुज्झति सो तेणंति, तत्थ परोप्परस्स वायणपरियट्टणवत्थदाणादिए अणालोतिए गुरूर्ण अविणओचि आलोयणारिहं, पडिक्कमणं पुण पवयणमादिसु आवस्सगकंमे वा सहसा अतिक्कमणे पडिचोतितो सयं वा सरितूण मिच्छादुक्कडं करेति | एवं वस्स सुद्धी, मूलत्तरगुणातिकमसंदेहे आउत्तेण वा कए आलोयणपडिकमणमुभय, आहारातीर्ण उग्गमादिअमुद्धाण गहितार्ण || पच्छा विण्णाताणे संपत्ताण वा विवेगो परिच्चागो, विओसग्गो कातुस्सग्गो गमणागमणसुविणणईसंतरणादिसु, तबो मूलुचरगुणा
दीप अनुक्रम [३७-६२]
NEHA
1:38
... अत्र व्रण-चिकित्सा मध्ये प्रायश्चितस्य दशविध-भेदानां वर्णनं क्रियते ।
(259)
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
काय
सूत्रांक
+
||गाथा||
कायोत्सर्गा है सियारे पंचरातिदियाति छम्मासावसाणमणेकधा, छेदो अवराधो पंचएण सासणविरुद्धादिसमायारेण वा तवरिहमतिकंतस्सा ध्ययनं पंचराईदियादिपध्यक्जाविच्छेदणं, मूल पगाढतरावराहस्स मूलतो परियातो छिज्जति, अणवट्ठो मूलच्छेदाणंतरं केणति कालबिहिणाबा निक्षे
पुणो दिक्खिज्जति, पारंचितो खेत्तातो देसातो वा णिच्छुम्भति, छेदमूलअणवदुपारंचिताणि देसकालपुरिससामत्थादीणि पड्डचा ॥२४७॥
दीतिति, एवं एसा अबरा वणस्स सोधी कीरति । एत्थं काउस्सग्गारिहण अहिगारो, सेसाणि सवाणे भण्णिहिन्ति, णामणिफण्णे पुण णिक्खेवे काउस्सग्गोत्ति, तत्थ दारगाथा
निक्वेवेगह ॥ १५२३ ॥ काउस्सग्गस्स निक्खेबो विभासितव्यो,एवं योजं. तत्थ काउस्सग्गो कायस्स उस्सग्गे य दोल पदाणि, तत्व कायस्स निक्खेबे इमा गाथा-णामंठवणसरीरे०॥ १९.२४ ॥१५३७।। कायस्स निक्खयो दुवालसविहो, णामशवणाओ गताओ, सीर्यत इति सरीरं सरीरं चेव कायो सरीरकाओ सो ओरालियादि पंचविहो, गतिकायो निरयगतिमादिसु पत्तेर्य पिनेये जो कायो, अहवा गतिसमावष्णस जो काओ मो गतिकाओ, गतीए कायो गतिकायोति, तथा चापांतरालगतावपि तेयाकमगाणि अस्थि व, निकायकायो छज्जीवनिकायो, अस्थिकायो धमस्थिकायादि, दवियकायो कायपाओग्गदव्या, जथा परमाणुमादी दुपदेसियादीणं, पत्तेयं पत्तेयं जस्स जस्स जे अणुरूवा मातुगादयो दिहिवादे छायालीसं मातुगापदाणि मिलिचीए वा | अक्षराणि अण्णस्थवि जत्थ एगपदे वह अत्था समोयरंति सो मातुगाकायो, संगहकायो जथा परमाणुमादि सुवण्णादिपरिणामा ॥२४॥ पिंडिता बहवे, भारकायो काबोडी, उक्तं च-तुद्धकायो, तत्थ कारक-एको कायो दुहाजातो ॥ १५४१॥ एत्थ अक्खाणक जया पडिक्कमणे परिहरणाए, भावकायो उदयियादीया वा मावा दुगमादी जत्थ विज्जति जीचे अजीवे वा सो मावकायो,
kBE
दीप अनुक्रम [३७-६२]
... अत्र काय + उत्सर्गस्य निक्षेपा: कथयते
(260)
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
+
||गाथा||
कायोत्सगो एत्थ जथासंभवं सरीरकायादिणा अहिगारो | तस्स एगडिया-कायो सरीर देहो॥१५४३॥ इदाणिं उस्सग्गो, सो छविधो- भदो कालध्ययन
IGणामढवणाओ गताओ, यतिरित्तो दव्युस्सग्गो अकिंचिकरं सदोस च कातुं जो जं दवं छईति, तत्थ अकिंचिकरं जथा भिण्ण-II ॥२४CATNI भिक्खे भायणं सदोसं, जथा विसकतमभियोगकतं वा एवमादि, अहवा जेण दग्येण जस्थ वा दब्बे दव्यभूतो छडेति एस दब्बु-IA
3 स्सग्गो। खेत्तुस्सग्गो जथा भरहादीहिं चकबट्टीहिं भारहं वासं पच्चयंतेहिं छडितं जो वा जं खेत्तयं चयति जंमि वा खेत्ते चयति दकिंचि जमि वा खेत्ते उस्सग्गो बणिज्जति एवमादि, कालुस्सग्गो जो जं कालं उज्झति, जहा उज्झितो वसंतो मदेण, ण वाहतिद
छड़ितो वा सिसिरो, एवमादि, अह चारित्तकालं पप्प रीयिज्जति वासारते वाण विहरिज्जति जश्चिरं च काल उस्सग्गो जम्मि 8/ वा काले उस्सग्गो वणिज्जति एवमादि, णोआगमतो उस्सग्गो पसत्थो अपसत्थो य, पसत्यो अण्णाणादीणं जातिमदादीण य, द अपसत्थो णाणादीण उज्झणा, जेण वा भावेण वा चयति एवमादि । अथ तस्स एगढिता-उस्सग्ग विओसरणझवणा या PI॥१५४८० ।। एत्थ जथासंभवं अप्पसत्थओस्सग्गादिणा अधिगारो इति । ४ इदाणि विधाणमग्गणत्ति,सो पुण काउस्सग्गो दुविधो-चट्ठाकाउस्सग्गो य अभिभवकाउस्सग्गो य,अभिभवो णाम अभिभूतो &चा परेणं परं वा अभिभूय कुणति,परेणाभिभूतो, तथा गुणादीहिं अभिभूतो सव्वं सरीरादि वोसिरामिचि काउस्सग्गं करेति, परं वा अभिभूय काउस्सग्गं करेति, जथा तित्थगरो देवमणुयादिणो अणुलोमपडिलोमकारिणो भयादी पंच अभिभूय काउस्सग्ग।
२४८॥ कातुं प्रतिक्षां पूरेति, चेढाउस्सग्गो चेट्ठातो निष्फण्णो जथा गमणागमणादिसु काउस्सग्गो कीरति, अहबा जदि उक्स्सग्गो अनो भवति छिदिति वा तो चलति, जो एसो चट्ठाकाउस्सग्गो, एस अणेगविधो पुरतो वणिहिज्जति । इदाणिं कालपरिमाणदारं
दीप
अनुक्रम [३७-६२]
SSESSES
(261)
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
**
||गाथा||
कायोत्सगो कालप्पयाणेण पुण अभिभवकाउस्सग्गस्स इमं कालपमाणं-जहण्णणं अंतोमुहुर्च उक्कोसेण संवत्सरं, जथा बाहुबलिस्स, सेसा कायोत्स ध्ययनमा
समझिमा काउस्सग्गा । चेवाकाउस्सगे पभेदा अणेगेसु ठाणेसु गमणागमणादिसु भवति,तेसि कालपमाणं उवरि भण्णिाहिति । इवार्णिमेदाः ॥२४९॥
भेदपरिमाणं, तत्थ भण्णति-सो पुण काउस्सग्गो दन्यतो भावओ य भवति,दव्यतो कायचट्ठानिरोहो, भावतो काउस्सग्गो शाणं, |तं दुविध- पसत्थं अपसत्थं च, पसत्थं धम्मसुक्काणि, अपसत्थं अट्टरोद्दाणि, एत्थ दव्यभावसंजोगेणं काउस्सग्गस्स णव भेदा है उप्पज्जीव, इमे
उसिउस्सितो तु पढमो १ उसितो २ उसितणिसण्णओ चेव ३। णिसणुस्सिओ४ णिसण्णो ५ णिसण्ण| गणिसण्यतो चेव ६॥ १५५६ ।। निवणुस्सितो ७ णिवपणो ८ णिव्वष्णगणिवण्णओ य ९ णातब्बो । एतेर्सि तु
पदाणं पत्तेयपरूवणं वोच्छं ॥ १५५७ ।। संवरितासवदारो॥१५६२ ॥ चेतणमचेतणं० ॥ १५६३ ।। धम्मं सुक्कं |च दुबे झायति॥ १५७६ ।। धम्म सुक्कं च दुवे णवि झायति॥१५७७ ।। अह रोई च दुवे झायति ॥१५८६ ॥ धम्म सुक्कं च दुवे ॥ १५८७ ॥ धम्म सुक्कं च दुवे नवि झायति॥१५८८ ।। अझै रोई चदुवे झायइ०॥१५८९॥ धम्म सुक्कं च दुवे ।। १५९० ।। अह रोदं च दुवे धम्म सुक्कं च दुवे नवि० ॥१५९१ ॥ झायह० ॥१५९२॥ अतरन्तो तु निसण्णो करेज्जः ॥ १५९३ ।। गाथाद्वादशकं तु भावेतन्वं । तत्थ सरीरमस्थितं भावोपि धर्मशुक्लध्यायित्वा- ॥२४९॥ | दुत्थित एव, एस उसिउस्सितो पढमो गमो १ द्वितीयस्तु केवलमस्य शरीरद्रव्यमुच्छ्रितं भाषस्तु ध्यानचतुष्टयवियुतः अथादाफन्ने। | तत्प्रायोग्यलेश्यायुक्तः २ तृतीयस्तु केवलमस्य कायोत्सर्गकृत्वान शरीरमुच्छ्रितं भावस्तु निषण्णः आतेरौद्रं च ध्यायतीति ३ अण्णे।
दीप अनुक्रम [३७-६२]
USERSHARE
... अत्र कायोत्सर्गस्य नव-भेदानां वर्णनं क्रियते
(262)
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ध्ययन
+
||गाथा||
कायोत्सगो तिष्णि गिलाणथेरादीणं अगणी वा वास वा महिया वा महावातो वा सागारित वा मसगा वा अणधियासतो वा असमत्थो 8 लहोज्जा ताहे उबविट्ठोवि करेति, तं पुण णिवण्णो करेति, तं किल नियमा असमत्थत्तणेणं जावतिओ उद्वितओ सक्कति का
त सूत्र तावतिए तथा करेति, सेसे उबविट्ठो करेति, जत्तिए सक्केति उवेडो कातुं तेत्तिकं करति, सेसे असमत्था संविहो करेति, एवं विभा
गव्याख्या IR५०||
सेज्जा । तत्थ पढमो सरीरेग निसष्णो भावस्तु धर्मशुक्लध्यायीति, द्वितीयस्तु यथाठितो, एवं तृतीयः, जदि णिसण्णो ण तरिति ताहे असहू णिवण्णोवि करेज्ज काउस्सग्ग, णिवण्णस्सवि जहा उत्थियस्स तिणि गमा इति । एवं णामणिप्फपणो किल गतो। इदाणि मुत्तालावगनिष्फण्णस्स अवसरः इत्यादिचर्चः पूर्ववत् । एत्थ पुण इमं सुतं-'करेमि भंते सामाइयं बोसिरामित्ति, एतस्स वक्खाणं जथा सामाइए | आह-येलं वेलं करेमि भंते! सामाइयंति एल्थ पुणरुत्तदोसोन, उच्यते, यथा वधः विषघाता
दिनिमित्त बेलं वेलं ओमंजणादि करेति मतपरियणादि च, जहा वा भत्तीए णमो णमोत्ति,न य तत्थ पुणरुत्तदोसो, एवं एसोऽवि १-सूत्र
रागादिविसपातणत्थं संवेगस्थ सामाइयपस्थितो अहंति परिभावणत्थं एवमादिणिमित्तं पुणो पुणो भणतिचि ण दोसो, महागुण
इति । अथ करोमि भंते! इत्याद्युक्त्वा कायोत्सर्गाध्ययनप्रथमखत्रमिदमारभ्यते-इच्छामि ठाइतुं काउस्सग्गं,इच्छामीत्यात्मानं IP
| निर्दिशति, स्थातुं आसितुं, कायोत्सर्गो भणितः, अनेन इच्छापूर्वकं करणं दर्शयति, न तु बलाभियोगादिना इत्यादि भाष्य । २-सत्र अथ किमर्थ कायोत्सर्गकरणमित्याह- जो मे देवसिओ अतियारो जाव मिच्छामि दुक्कडंति एतस्स अत्था जथा पडिक्कमणे, पुणो भणणं अनुसरणाद्यर्थ । तस्स उत्तरीकरणेण० सुत्तं । तस्स आलोइयणिदियपडिक्कंतस्स अतियारस्स
२५० | उत्तरीकरणादिणा पावाण कम्माण नियिघातणवाए ठामि काउस्सग्ग, उत्तरकरणं णाम तस्स पुग्वं आलोयणादि कर्स, इम पुण ३-सूत्र
CHAR
दीप अनुक्रम [३७-६२]
AR
(263)
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+
|| गाथा ||
दीप अनुक्रम [३७-६२]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२३७]
अध्ययनं [५] मूलं [सूत्र / २७-६२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१२४३-१६५९/१४१२-१५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कायोत्सर्गा
ध्ययन
॥२५९॥
काउस्सम्गकरणं उत्तरकरणं तस्स एवंकरणेण पावकम्मनिग्घातणा भवतित्ति एवं भाव्यं एत्थ गाथा खंडितविराहिताणं कायोत्सर्ग।। १९-९८ ॥। १६०४ ॥ भावितार्था, अवराधे पायच्छित्तं कातव्यमित्याह- पायच्छित्तकरणेणं, काउस्सग्गो य पंचमं पायच्छित्तंति, पायच्छित्तस्स पुण निरुत्तगाथा- पावं छिंदति० ॥ १६०५ ।। अवराहेणं मलिणत्तणं भवतीति तद्विशुद्धिः कार्येत्याह-विसोधीकरणेणं, दव्वभावविसोधी विभासेज्जा, अवराहो स भवति तत उद्धरेतव्यमित्याह बिसल्लीकर णेणं, दव्यभावसलं ( १६०६) पुथ्वं भणितं एवं पावाणं कम्माणं निघायणट्टाए, भिण्णं कायोरसग्गपयोयणमिदमिति केचित् । अट्ठविहंपि कम्मं पावं जेण थोवेऽवि संते व्वाणगमणं णत्थि तेण तं अट्ठविर्हपि पावं कम्मं णिग्धातेतव्यं अतस्तदर्थे ठामि काउसम्गंति, एगडिताणि वा उत्तरकरणपायच्छित्तकरण विसोही करणविसलीकरणपदाणि, अण्णे पुण भणति तस्सालोइतणिदितस्स जं किंचि अपडिक्कतं अपरिसोधितं तस्स इदं उत्तरकरणं, अनेनातिचारविशुद्धिर्भवतीति अहवा एवं सो आलोहयणिदियतोवि उस्सग्गेण चउत्थेण पायच्छित्तविहाणेणं अप्पाणं सोहेति, अहवा सामाइयचडब्बी सत्थयवंदणपडिक्कमणाणि विसोहीए कातवाए मूलं, इमं से उत्तरकरणं, किं पुनस्तद् ?, उच्यते, पायच्छित्तकरणं, प्राय इति बाहुल्यास्याख्या, चित्त इति जीवितस्याख्या, प्रायश्चित्तं सोधयतीति प्रायश्वितं प्रशस्तं वा चित्तस्य विशुद्धिकारणमिति वा प्रायश्चित्तं वा अथवा 'चिती संज्ञाने प्रायशः वितथमाचरितमर्थमनुस्सरतीति वा प्रायश्वितं तस्स पायच्छितस्स करणं, किंनिमित्तं ?- विशोधिनिमित्तं, विसोही निसलतं संणिमित्तं उद्धरित सव्वसलो० अहवा बिसलो पावाणं कम्माणं निग्यातणाए पकीरति अट्ठविहस्स कम्मस्स, एवं चैव पावं, 'इन हिंसागत्योः' निः आधिक्य, आधिक्येन घातः निर्घातः अस्यार्थाय अर्ध्यत इत्यर्थः, पावाणं कम्माणं निग्वावणडाए ठामि काउ
••• अत्र कायोत्सर्ग-सूत्रस्य व्याख्या क्रियते
(264)
सूत्र
व्याख्या
॥२५१ ॥
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
|| गाथा ||
दीप
अनुक्रम [३७-६२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२३७]
अध्ययनं [५], मूलं [ सूत्र / ३७-६२] / [ गाथा-], निर्युक्ति: [ १२४३ - १६५१/१४१९-१५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कायोत्सर्गा
ध्यय
॥२५२||
सूत्र
रसम्गं, 'ष्ठा गतिनिवृत्ती' तिष्ठामि उपगच्छामि कायोत्सगं पुण्यं भणितमिति ॥ कथमिति चेत् भण्णति- अण्णत्थूससितेणं नीससितेणमित्यादि, अन्यत्र इमाणि कारणाणि व्युदस्य, जाणि कज्जाणि भणति ताणि मोतुं कार्य ठाणेणं मोगणं झाणेणं वोसिरामीत्यर्थः । तत्थ ऊर्ध्वं स्वासः उच्छ्वासः अधः स्वासः निःस्वासः खासितेणं छीएणं जभाइतेणं उद्एणंति कंठ्यं वातनिसर्गितेणं वातनिसग्गतो वाउकाइयं भ्रमलीए पित्तमुच्छाए भमली-आकस्मिकी शरीरभ्रमिः मुच्छणा प्रतीतैव पित्तमुच्छापित्तसंखोभेण जा मुच्छा। सुहुमेहिं अंगसंचालेहिं सहुमा अंगसंचालो रोमुग्गममादी बीरियसयोगिसद्दव्यताए चलणं वा होज्जा, दृश्यादृश्यं सुमं बाह्यं सुहुमेहिं खेलसंचालेहिँ अन्तरेहिं सुमेहिं दिट्टिसंचालेहिं सुमो दिट्ठिसंचालो ग तीरति एगंमि दब्बे दिट्ठिनिवेसो का उम्मेसादि य होज्जति । किमित्येवमिति चेत १, उच्यते-उस्सासं ण णिरंभति० ।। १९-१०१ ।। १६०७ ।। काससुत० ।। १९-१०२ ।। १६०८ || वायणिसग्गुङ्गोए० ।। १९-१०३ ।। १६०९ ।। वीरिय० ।। १९-१०४ ।। १६१० ।। आलोयण ॥। १९-१०५ ।। १६११ ।। न कुणइ नि० ।। १९-१०६ ।। १६१२ ।। एताओ भाणितव्याओ, जतो एवमेते उस्सासादी अनिरोधक्खमा अत एवमाह, जदि पुण अण्णत्धूससितादि अभणित्ता काउस्सग्गं ठितो उस्सासादीणि करेति तो मा भंगविराहणाओ होज्जति अतो एवमादिएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ होज्ज मे काउस्सग्गोत्ति, एवमादिएहिं एवंप्रकारेहिं अण्णेहिवि, जथा अगणी बोहिभयं वा तिरिया वा मज्जारादी ओछिंदेज्जा पवडेज्जा अण्णो वा सावतमादी पवडेज्जा दीहजातिडक्को वा सतं अष्णे वेति, एवमादिग्गहणं सव्ववाघातज्झयणत्थं, आगारा-कारणाणि, तेहिं अभग्गो अविराहितो होज्जा मे काउस्सग्गोति । कालावधारणार्थं जाव अरिहंताणं भगवंताणं णमोक्कारेणं ण पारेमि ताव। जायत्ति
(265)
कायोत्सर्ग
सूत्र
व्याख्या
॥२५२॥
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं २२८-२३७]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ऊ
प्रत सूत्रांक
R
||गाथा||
कायोत्सगोजथा सामाहए अरहंता जथा नमोकारे भगवंता जथा पेदियाए पूजावचनमेतत् नमोक्कारो पुव्यवणितो, पाराणत वा पा IAL ध्ययन लणंति वा पारगमणंति वा एगट्ठा, तस्स परिमाणे असमते जदि उस्सारेति ण पालितं भवति, तम्हा पुण्णे बत्तव्यं णमो अरिहंताणं,IT
स्वरूपं एवं पालितं भवति । एत्थ य जावइयं जस्स परिमाणं अणेगविहं भणित तावइयं कालं ठातूण णमोक्कारेणं पारतवंति नमोक्कार| गहणं, तावच्छब्दः प्रतिनिर्देशे, जाय नमोक्कारं न करेमि तावइयं कालं कायं ठाणेण मोणेणं झाणेणं अप्पाणं बोसिरामि,* कायो पुष्वभणितो तं ठाणेणीत- उट्ठाणादिगं ठाणमभिगिज्झ, कायप्पसरनिराधेणेत्यर्थः, एवं मोणेणंनि बतिपसरणिरंभषण 3 झाणेणति सद्विषयचिन्तनादिमभिगृह्येत्यर्थः बोसिरामित्ति संस्कारादिव्यापाराकरणेन परित्यजामिति । इयमत्र भावना-1
कार्य स्थानमौनध्यानाभिग्रहणेण उक्तक्रियाव्यतिरेकेण क्रियान्तराध्यासद्वारेण व्युत्सृजामि,नमस्कारेण पारगमनं यावदूर्वस्थानादि18 स्थितः निरुद्धवानसरः प्रशस्तध्यानानुगतस्तिष्ठामीतियावत्, वोसट्टे काकमि य दिट्ठिनिवेसं का अच्छंति तेण निच्चलत् भवति,13
ता काउस्सग्गस्स ठाणविधी जथा ओहनिज्जुत्तीए निव्वाघात ठायंता चेव पुर्व सामायिक करित्ता सुन अणुपहति जावायरिएणद 12 बोसिरामित्ति भणित ताहे इमेवि अतियारमुहपोतियापडिलहणादीयं चितेंति, अण्णे भणंति-जाहे आयरिया सामाइयं पगडिता ४ ताहे ते तहाठिता चेव अणुप्पेहेंति, पढम सुत्तं चिंतेति । अत्राह-एत्थ किनिमित्तं काउस्सग्गो कीरति?, जेण णिरज्जस्स हिरवज्जता ४
होति सुहं च एक्कगो चिंतहिति,उक्तं च-काउस्सगग्गमि हितो नेरजकायो निरुद्धवइपसरो। जाणति सुहमेगमणो देवासमाययादिअतियार।।३२प्र.परिजाणेतु य तत्तो संमं गुरुजणपयासणेणं तु । सोहेति अप्पणं सो जम्हा य जिणेहिं सो
भणितो॥३३प्र.॥सो काउस्सग्गो एत्थ-काउस्सग्गं मोक्खपहदेसितं॥१५९१॥ काउस्सग्मं मोक्खपहं इति देसित जिणेहिं.
दीप अनुक्रम [३७-६२]
M
॥२५॥
4-5
(266)
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
For+aa
[सू.]
+
|| गाथा ||
दीप
अनुक्रम
[३७-६२]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२२७]
अध्ययनं [५] मूलं [सूत्र / २७-६२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१२४३-१६५९/१४१२-१५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कायोत्सर्गा ध्ययनं
॥२५४॥
जेण णिरवज्जता होति, अहवा मोक्खपही जैनसासनं तंमि देसितं विधेयत्वेन, मोक्खपहिगेहिं वा जिणेहिं दर्शितं मोक्षजिगमिवृणां कर्तव्यतया, अह्वा मोक्खपहो- गाणादीणि तस्स देखियं, देसयतीति देखियं तं देशयतीत्यर्थः । एवं जाणितूणं ततो धीरा घी:बुद्धिस्तया राजन्त इति धीराः, देवसियातियारस्स य परिजाणण काउस्सग्गं ठेतिति । एवं काउस्सग्गे ठितेण मुहणन्तियमादि | ।। १५९६ ।। कर्तुं जाब एत्थ काउस्सग्गे ठितो ताव अणुप्पेहेतच्वं सव्वं देवसितं चिंतेत्ता जावश्या देवसियातियारा ते सच्चे समाणइत्ता ते दोसे आलोयणाणुलोंमे पडि सेवणाणुलोमे यरवेज्जा, तेसु समत्तेसु ।। १५९७|| धम्मसुकाणि झाएजा जाब आयरिएहिं उस्सारिति ।। १६१५ ।। आयरिया पुण अप्पणोच्चयं देखियं च दो बारे चिंतेंति ताव इमेहिं एक्कसि चिंतितो होति, किं कारणं १, तस्स अहिंडितस्स अप्पा यतियारा सिस्सादीणं हिंडंताणं बहुतरा, दिवसग्गहणं किं निमित्तं ?, दिवसादीयं तित्थं पसत्थो बेति, एवं एताओ तिष्णि गाथाओ दिवसे, एवं पक्खिएवि दिवसो चाउम्मासिएवि दिवसो संच्छरीएवि दिवसो, तेण दैवसा तिष्णि, एवं ता पदोसे, पच्चू से रातिया आतियारा, पक्खिया चाउम्मासिया संवत्सरिया णत्थि एतेण कारणेग दिवसग्गहणं पुव्वं, व केवलं दुगुणाणुप्पेहा पच्चदताणं वा पयोगतं णातून अपरिमितेणं कालेण उस्सारेतव्यं तं च णमो अरिहंताणंति भणित्ता पारेति, पच्छा श्रुतिं भणति सा य श्रुती जेहिं इमं तित्थं इमाए ओसप्पिणीए दसिय पाणदंसणचरित्तस्स य उपदेसो तेसिं महतीए भतीए बहुमाणतो संथवो कातव्यो, एतेण कारणेणं काउस्सग्गाणंतरं चउवीसत्थओ, सो व उबउत्तेहिं पढिता गुणवतो पडिवत्तिनिमित्तं सचमाणं संवेगसारं अवराधालोयणा कातव्या, विणयमूलो धम्मोचिका वंदितुकामो गुरुं संडास पडिलेहेता उबवेडो मुहणतयं पडिलेहिति, ससीसं कार्य पमज्जिता परेण विणरण विकरणविशुद्धं कितिकमं कातव्वं तत्थ सुतगाथा
(267)
कायोत्सर्गस्वरूपं
॥२५४॥
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+
|| गाथा ||
दीप
अनुक्रम
[३७-६२]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२२७]
अध्ययनं [५] मूलं [सूत्र / ३७-६२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१२४३-१६५९/१४१९- १५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कायोत्सर्गा ध्ययन
॥२५५॥
आलोयण वागरणा पुच्छणा पूराणा य सज्झाये। अवराहे य गुरूणं विणओ मूलं च वंदणयं ॥ १ ॥ पयुंजित्ता अभूत्थाय जथारातिणियाए दोहिं इत्थेहिं रयहरणं गहाय अक्खलियं आलोएति जथा गुरू सुर्णेति, ओणतकाओ संजतभासाओ पुब्वरयिये दोसे पागडेति गुरुस्स । तत्थ सुत्तगाथाओ- विणण विणयमूलं गंतृणं साधु पादमूलंमि । जाणावेज्ज सुविहितो जह अप्पाणं तह परंपि ॥ १॥ कतपात्रोचि मणुस्सो आलोइय जिंदिउं गुरुसगासे । होति अइरेगलहुओ ओहरियभरोष्व भारवधो ॥२॥ उप्पण्णा उप्पा माया अणुमग्गतो तिब्बा। आलोयणा जिंदणगरहणाहिं ण पुणो य बितियंति || ३ || जादे नत्थि अतियारो ताहे संदिसहति भणिते पडिकमद्दति भाणियव्वं, अह अतियारोत्थि तो पायच्छित्तं पुरिमङ्कादीयं दिति, तं च तहेब अणुचरितव्वं मा अणवत्थादीया दोसा भविस्संति । एत्थ सुत्तगाथा- तस्स य पायच्छित्तं जं मग्गविद् गुरू उवदिसंति । तं तह अणुचरितब्वं अणवत्थपसंग भीतेणं ॥ १॥ अणवत्थाए उदाहरणं तेलहारएण चेडेणं, कदमलित्तणं तेणएणं पसंगविणिवारणडाए जाता उवालभितव्वो जथा ण पुणो अतियरति एतेण कारणेणं बंदणाणंतरं आलोयणा, आलोइय पुणरवि सामाइयं, ववगतरागदोसमोहां होतूर्ण पंचदियअसंवुडो तच्चित्तो संमणो जाय तब्भावणाभावितो सुसे सुत्त उवउत्तो अणुसरेखा । एतेण अभिसंबंधण आलोयणाणंतरं सामाइयं, ततो णाणदंसणचरित्ताणं विसुद्धिनिमित्तं पडिसिद्धाणं करणातियारस्स किच्चाणं अकरणातियारस्स जघोवदेसस्स असद्दहणाअतियारस्स वितहपरूवणावियारस्स व विसोहिनिमित्तं उवेपटिकमणेणं पदं पदेण अणुसज्जितन्त्रं उवउत्तेण, तीतं निंदामि अणागवं पच्चक्खामित्तिकालविभागेण पसत्थेसु ठाणेसु जथा अप्पगो ठाति तहा कातव्यं । तत्थ सुत्तगाथा- एते षेव अणभिगता भावा विवरीततो अभिणिविट्टो । मिच्छाद
(268)
विनयः कृतिकर्म
॥२५५॥
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
॥२५६||
||गाथा||
कायोत्सर्गासणमिणमो बहुप्पगारं वियाणाहि ॥१॥ एवं णातूणं आचिवरीतं पदंपदेणं णेतब्वं, पुणरावत्ती खलिते,ततो वेज्जतिगयपु-3 थामणा ध्ययन
व्युत्तदिQतेण विणयमूलो धम्मोत्ति पुव्वुत्तविहिणा बंदणखमावणापुव्वं णिवेदणं च, पडिकतोत्ति आयरियाणं वंदणं कातूणं ट्रा | सेसगावि खमावेतव्या । तत्थ सुत्तगाथा
-आयरिय उवजमाए सीसे साहम्मिए कुल गणे वा । जे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खाममि ॥१॥ सब्यस्स समणसंघस्स भगवतो अंजलिं करे सीसे । सव्वं स्वमावहत्ता खमामि सव्वस्स य तुर्मपि ॥२।एएणामिसंबंधेण बंदणाणंतरं खमावणा,ततो सेसगावि जीवा खमावइतव्वा, एवं बवगतरागदोसमोह इति पुणरवि सामाइकपुन्वर्ग चरित्तद्र विसोधणहेतुं काउस्सग्गे हविज्जत्ति । गयदिढते च चेव जा काइ चरितविराधणा कया पडिक्कमणालोयणाहिं ण सुद्धा तीसे
विसोहिणिमित्तं काउस्सम्गोचि वा जोगनिग्गहोत्ति वा, एतेण कारणेणं चरित्तातियारविसोधिनिमित्तं सामाइयं कडितूण काउस्सम्गदंडगं च जाव तस्स उत्तरीकरणेणं जाव वोसिरामिति । एवं णिरवज्जेणं णिरेजेणं तस्स भत्तीए काउस्सम्मो कातब्बो । केच्चिर कालं पमाणेणं ऊसासाणं, सिलोगे चत्तारि पादा, पादे पादि ऊसासो । तत्थ गाथा- पादसमा उस्सासा कालपमाणेण होति णातव्वा । एतं कालपमाणं उस्सग्गे होति णातव्वं ।। १९१-३६१३३६ ॥ तत्थेमा परिमाणगाथा-साय सतं गोसद्ध सायं यालियसंझा तत्थ, अत्थेद्वपडिक्कमणे पढिते पच्छा तिसुवि काउस्सग्गेसु उस्साससतं भवति, तेसिं पढमो
चारिसकाउस्सग्यो, तत्थ पण्णास उस्सग्गी, उस्सारेत्ता विसुद्धचरित्तदेसयाणं महामुणीण महाजसाणं महाणाणीणं जेहि णिवाणसामग्गोवदेसो कतो तेसि तित्थगराणं अविहतमग्गोवदेसगाणं दंसणसुद्धिनिमिर्त णामुक्कित्तणा कीरति । किंनिमिर्त्त ?, चरितं
दीप
अनुक्रम [३७-६२]
(269)
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
|| गाथा ||
दीप अनुक्रम [३७-६२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२३७]
अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र / ३७-६२] / [ गाथा-], निर्युक्ति: [ १२४३ - १६५१/१४१९-१५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
सूत्र - 'लोगस्स-सूत्र, गाथा: १-७
विसोधितं इदाणिं दंसणविसोधी कातव्यत्ति, एतेगाभिसंबंधेण चउवीसत्थओ, सो पुवि भणितो, तस्स विसोइणनिमित्तं काउ सरगं करेंतो पराए भनीए भगति-
||२५७ || सूत्र सम्बलोए अरिहंतचेइयाणं० बंदणवत्तियाए० ' इत्यादि, अस्य व्याख्या न केवलं चउवीसाए, जेबि सम्बलोए सिद्धादी रिहंता चेतियाणि य तेसि चैव प्रतिकृतिलक्षणानि 'चिती संज्ञाने ' संज्ञानमुत्पद्यते काष्ठकर्मादिषु प्रतिकृतिं दृष्ट्वा यथा अरहंतपडिमा एसा इति, अण्णे भांति अरहंता वित्थगरा तेसिं चेतियाणि- अरिहंतचेतिताणि अहेत्प्रतिमा इत्यर्थः तेसिं वंदनाप्रत्ययं ठामि काउस्सग्गमिति योगः, तत्र वंद्यत्वात्तेषां वंदनार्थं कायोत्सर्ग करेमि श्रद्धादिभिर्वर्द्धमानैः सद्गुणसमुत्कीर्त्तनपूर्वकं कायोत्सर्गस्थानेन वंदनं करोमीतियावत् एवं पूज्यत्वात्तेषां पूजनार्थं कायोत्सर्ग करोमि, श्रद्धादिभिर्वर्धमानः सद्गुणसमुत्कीर्तनपूर्वकं कायोत्सर्गस्थानेनैव पूजनं करोमीत्यर्थः, जथा कोइ गंधचुण्णवासमल्लादाहिं समभ्यर्चनं करोतीति । एवं सक्कारवत्तियाए सम्माणवत्तियाऽवि भावेतव्यं, नवरं सक्कारो जथा वत्थाभरणादीहिं, सक्कारेणं संमं मणणं, केई भणंति- बंदणादयो एमद्विता आदरार्थ उच्चारिज्जतित्ति, वंदणादण किमर्थमित्याह- बोधिलाभवत्तियाए बोधिलाभो समदंसणादीहिं अविष्ययोगो, सद्धर्मावाप्तिरित्यन्ये प्रेत्य सद्धर्म्मावाप्तिवधिलाभ इत्यन्ये तदर्थं बोधिलाभो किमर्थमित्याह- निरुवसग्गवत्तियांए, निरुवसग्गो- मोक्खो तदत्थं, एत्थ सिद्धाए मेहाए घितीए धारणाए अणुप्पेहाए बट्टमाणीए ठामि करेमि काउस्सग्गमिति, तत्थ सद्धा भक्त्यतिशयः, साभिलाषता इत्यन्ये, संमत्ते तीव्राभिनिवेश इत्यन्ये, तीए वडमाणीए एवं मेहाए, मेहा-पत्वं न पुनः चलः, इतो तद्गुणपरिज्ञानमित्यन्ये, अन्ये पुनः मेधापत्ति आसातणाविरहितो तच्चे व मग्गे ठितो इति, ठिती मणोसुप्प
कायोत्सर्गा ध्ययनं
... अत्र अर्हत्चैत्यस्य व्याख्या क्रियते
(270)
अईचैत्य
स्वयः
॥२५७ ॥
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं २२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
||गाथा||
कायोत्सगो मणिहाणं, ण दु रागादीहिं आकुलो, धारणा यथोपदेशाविस्सरणं, अन्ये तु धारणाएति अईद्गुणाविस्सरणरूपया, नतु तच्छ्न्य तया ध्ययन
| इति, अनुप्रेक्षा तद्गुणानामनुचिंतन, चढ़माणी बर्द्धमाना, केह पुग अणुप्पहाए बढमाणीए णू पर्दति, अन्ने पुण वणति-श्रद्धार्थ ॥२५८॥
श्रद्धनिमिचं च ठामि काउस्सग्गं, एवं मेहादिसुवि भावेतब्बं । ठामि काउस्सग्गं इत्यादि पूर्ववत् । पणुषीसउस्सासकाउस्सग्गो, णमोक्कारेण पारेति,ततो गाणातियारविसृद्धिनिमित्तं सुतणाणणं मोक्खसाहणाणि साहिज्जतित्तिकातुं तस्स भगवतो पराए भत्तीए
तप्परूवगणमोक्कारपुच्वगं थुतिकित्तणं करोति, तंजथासूत्र | पुक्स्वरवरदीवद्ध धातपिसंडे य जंबूदीचे य । भरहेरवयविदेहे धम्मादिकरे णमंसामि ॥ १॥ इत्यादि, पुष्कर
वरद्वीपस्य अर्धं पुष्करवरदीवड तंमि धातकीखंडे य. दीवे जंबुद्दीवे य अड्डाइज्जा दीवा समयखेत्तं, तं च माणुसुत्रेणं णगरमिव सध्यतो पागारपरिक्षितं तत्थ पंच भरहाणि पंच एरवयाणि पंच महाविदेहाणि तेसु सत्तरं चक्कवट्टिविजयशतं तेसु धमा| दिकरे णमंसामि, तीथमेव धर्मस्तस्यादिकर्तारस्तीर्थकराः, तथाहि-प्रत्येक स्वस्वतीर्थानां आदिकतोरस्तीर्थकराः, तत्थ उक्कोसपदेणं सत्तरं तीर्थकरसतं, जहण्णपदेणं वीस तीर्थकरा, एते ताव एगकाले भवति, अतीताणागता अणता तित्थकरे णमंसामिति ॥१॥ एवं तप्परूवगणमोक्कारो कतो, इदाणि सुतधम्मस्स भगवतो धुर भणति
तमतिमिरपडलविद्धंसणस्स सुरगणनरिदमाहियस्स | सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥२॥
तमो-विण्णाणमंदता जहा पुढचिकायादीणं तिमिरं विज्ञानाल्पता जथा सेसगाणं, तमतिमिराणं णिमित्तभूतं पडलं तमतिमिर-31 पडलं जाणावरणादिकमबंधमेव अहवा तमो-अणवबोधो सो चेव तिमिर तमतिमिरं तस्स कारणं पडलं तमतिमिरपडलं चेच, अहवा
॥२५८॥
दीप अनुक्रम [३७-६२]
... अत्र श्रुतस्तवस्य व्याख्या क्रियते
(271)
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
कायोत्सगोतमो- अपरिधानतः स एवं तिमिरपडलं, अहवा तमो- अपरिज्ञानहेतुः स एवं बहलो तिमिरं तस्स पडले वर्गः समूहः &ातस्तवः ध्ययनला पडलाणि वा, अण्णे पुण भणति- तमो बद्धं पुढे निधत् णाणावरणीय विकारित तिमिरं तस्स पटलं-वृंदं पटलानि वा समानजाती॥२५९॥
यवृंदानि तमतिमिरपटलानि वा, अण्णे पुण भणंति- तमो अपरिज्ञानं तं चव बहुतरं तिमिरं तं चैव बहुतरतमं पटलं एवमादि मंगल दंसज्जा, तं तमतिमिरपटलं ताणि वा जेण विद्धसिज्जति तं तमतिमिरपटलविद्धसणं, तथाहि-ज्ञानावरणीय ज्ञानावसायेन विद्धसिज्जतित्ति अतो तस्स । तथा सुरगणनरिंदमाहितस्स सुराणं गणा सुरगणा सुरगणाणं गरगणाण य इंदा सुरगणनरिंदा अहवा सुरगणा परिंदा य सुरगणणरिंदा,एवं भावेज्जा,ताह महितस्स-पूजितस्य,नमस्कृतस्येत्यर्थः,तथा सीमा मेरा मर्यादा इत्यनर्थान्तरं, णाणादीणं अविराधणं, सीमं धारयतीति सीमंघरं तस्स, एतेसि विशष्यपदं उबार भणिहिति, केयी पुण भणति-इमं चेव विशेष्यपद सीमाधरस्येति सुतणाणस्स,सुतणाणग्गहणं पुण जतो-सुतणाणमि पुण्णे,केवले तदणंतरं । अप्पणो सेसकाणं च, जम्हा सं पविभावग||५|न्ति, वंदे बंदणं करेमि ।। मोहणिज्ज कम्मं सभेदं मोहजालमित्युच्यते तं जम्हा सुतणाणण पप्फोडिज्जति बबै रेणुवत, तस्मादुपचारतः श्रुतज्ञानमेव प्रस्फोटितमोहजाल भण्णति, मोहणिज्जे य विहते ततो एतस्स लाम इति एवं निर्देश इति, अहवा मोहजालं-मूढविकप्पजालमित्यन्ये कुविकल्पजालमिति वा, नास्ति श्रुतज्ञाने अज्ञानमित्यर्थः, पप्फोडितमोहजाल श्रुतणाणमित्यन्ये॥ एवंविहस्स सुतणाणस्स बंदणं काउं हदाणिं तस्स चेव गुणोपदर्शनद्वारेणाप्रमादगोचरतां दर्शयमाह
* २५९॥ जातीजरामरणसागपणासणस्स, कल्लाणपुक्खलविसालसुहावहस्स । को देवदाणवणरिंदगणचितस्स, धम्मस्स सारमुवलम्भ करे पमादं ॥३॥
ARRIOR
||गाथा||
दीप अनुक्रम [३७-६२]
REWERESTHA
ACE-ECOGY
(272)
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
कायोत्सर्गा
- ॥२६॥
||गाथा||
कलकर
जातीजरामरणसोगपणासणस्सेति भाव्यं, अणेण सव्वदुक्खप्रतिघातित्वमाह,कल्याणं श्रुतज्ञानविदो या ऋद्धयः ऐहिकाः श्रुतस्तवः पारलौकिकाच तैः पुष्कलं-समधिकं विशालसुखं निर्वाणं आवहति-ढोकयति तदुपदेशक: कल्लाणपुष्कलविशालसुहारह, अण्णे || भणति-कल्लाणं पुर्व भणितं, एतत्कल्याणं पुष्फल मिति-शोभनं, सतीप्वाप ऋद्धिषु तासु यन्त्र मूछेति तत्फलं पुष्कलं भवति, तं | विशाल-सुबहुलं बहुविधं सुहं आवहति तदुवदेशकर्तुः कल्लाणपुष्कलविसालसुहावहं तस्सेवगुणसुहावहस्स, अण्णे भणंति- कल्लाणं प्रधानं पुष्कलं संपूर्ण, न च तदल्पं, किं तु विशालं-विपुलं, कि त?,सुह,तं आवहति-प्रापयति, एवं अणेगे भंगे दरिसेति, अनेन सर्वसुखावहत्वमाह, को सकअविण्णाणी पाणी देवदाणवणरिंदगणच्चितस्स गतार्थ, अस्य च गतार्थस्यापि पुनर्भणर्न पूर्वोक्ततमतिमिरविद्धसणादिविसेसणत्थं, संगहणमूयणथं, तस्स मुतधम्मस्स एवंविहं सारं-सामर्थ्य द्रव्यादिशेयपरिज्ञानमित्यन्ये चरणमित्यन्ये उपलभितूण करे पमादं , को सकन्नविनाणो नरो कुर्यात्प्रमाद?, तदधिगमे तद्भक्तौ तदुपदेशे च एत्थ पमादकरणमखममित्याकूतमिति ।। यतश्चैवमत एतदाह
सिद्धे भो! पययो णमो जिणमते गंदी सदा संजमे, देवनागसुवन्नकिन्नरगणसम्भूअभावरिचते । लोगो जत्थ पतिहितो जगामणं तेलोकमच्चासुरं, धम्मो वङ्गतु सासतं विजयतो धम्मोत्तरं बतु ॥४॥
एवंविधाय एस इति सिद्धोपन्यास!, क्व सिद्धः, जिणमते बद्धमाणसामिणो तित्थे सेसाणं व तित्थगराण, अहवा एवंविधो BIRom स इति सिद्धो नाम साधनं, यः कुतः, जिनमत इतिकृत्वा, सर्वरिर्थस्य भाषितत्वात् सर्वलम्धिसंपनैश्च गणधरैः रब्धत्वात्सिद्धंनिर्वचनीयमविचाल्यं, श्रुतज्ञानमेवेत्यर्थः, अण्णे पुण भणंति-सिद्ध-प्रतिष्ठितं प्ररूदं सर्वकालिक नित्यमित्यर्थः जिणमतं, तथाहि-12
दीप अनुक्रम [३७-६२]
-
(273)
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
||गाथा||
कायोत्सगाएतं दुवालसंग गणिपिडगं न कयाइ नासी न कयाइ णस्थि न कयाइ न भविस्सइ भुवि च भवइ य भविस्सइ य एवमादि । सिद्धेश्रुतस्तवः
ध्ययन || जिणमते भो इत्यानंन्यस्यामंत्रणि, पयतो प्रयत्नपरः, पुणोवि भत्तिबहुमाणतो णमो इत्याह, अहवा प्रयतो भूत्वा नमस्करोमि, ॥२६॥
एताओं य गंदीओ संजमे भवंतु, नंदी-समिही, किंभूते संजमे ?- देवंणागसुवमकिनारगणेहिं सद्भूतभावेनाचिते, तथा लोको छजीवनिकायो लोको लोकयनीति लोकः जत्थ संजमे प्रतिष्ठितो विषयतया संस्थितः तथा जगमिणं चराचरं जत्थ पतिद्वितं सर्ववत् , तथा तेलोकमणुयासुरं वा जत्थ पतिद्वितं, मनुष्याश्वासुराश्च मनुष्यासुरं, तथाहि-पढममि सब्जीवा० ॥ तमि | संजमे नंदी सदा भवतु, एतदप्पभावे नित्याशीर्वादः, एवं संजमे नंदि आससितूणं सुतधम्मस्स सब्धकालिकं विजयतो वढि आस-1 सितो एवमाह 'धम्मो वतु' इत्यादि, स एस एवंभूतो सुतधम्मो मृतु वृद्धि उपगच्छतु शाश्वतं यथा भवति, विजयमासृत्य |
विविधेहिं अणातापरदावदाणि जण इत्यर्थः, तथा धर्मात्तरं सम्मदसणं तं बहुतु, सम्यग्दर्शनस्य च समृद्धिं करोस्वित्यर्थः, अहवा पणदि सदा संजमे भणितगुणो धमो बट्टतु सासओ सासयं वा, धमो- सुतधमो भणितगुणो, पातु, पातु मुद्धिं तु, सासओ।
जम्हा पंचसुवि महाविदेहसु ण कदाइ बाच्छिज्जति तम्हा सासओ, सासतं वा जथा भवति । एवं स्वयं च विजयतो धर्मोत्तरं वतु। विजयेनान्यधर्मोत्तरं यथा भवति एवं च बर्द्धता, धर्वा गुणैः उत्तरं धर्मोचरमिति, अण्णो अण्णभावे वण्णेति तंपि अनया दिशा
भाव्य, संपुण्णं पुण चोद्दसपुब्धिमादी वण्णेति, तस्सेवं वणितस्स सुतस्स भगवतो वंदणवत्तियाए जाव वोसिरामिति ॥२६१॥ IM काउस्सग्गो पणुवीसउस्सासो णमोकारेण पारणं ॥ एवं चरित्तदंसणसुतधम्मतियारविसोहिकारगा काउस्सग्गा कता । इदार्णि
चरित्तदसणसुतधम्माणं संपुष्णफलं जेहि पत्तं तेसिं बहुमाणतो पराए भत्तीए मंगलनिमित्तं च भुज्जो धुति भण्णति
दीप
अनुक्रम [३७-६२]
(274)
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
.
+
|| गाथा ||
टीप अनुक्रम [३७-६२]
भाग-5 "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२३७]
अध्ययनं [५] मूलं [सूत्र / २७-६२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१२४३-१६५९/१४१२-१५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कायोत्सर्गा
ध्ययनं
॥२६२॥
सूत्र
सिद्धाणं बुद्धाणं पारगताणं परंपरगताणं । लोयग्गमुवगताणं णमो सया सम्बसिद्धाणं ॥ २ ॥ सूत्रं ॥ सिद्धाः परिनिष्ठितार्थाः बुद्धा-विष्णाणमता पारगता णाणसुहादीणं पर्यतं प्राप्ताः परंपरगताः अप्रमत्तस्थानाद्यनुक्रमप्राप्तः लोयग्गं उडलोयस्स अग्गं तं लोयग्गं उबगताणं णमो सदा सव्वकालं सव्वसिद्धाणं सव्बेसिपि सिद्धाणं । तत्थ सिद्धादीनंति अदवा णमो सव्वसिद्धाणंति अतीतद्भाए जतिया सिद्धा संपतं च जे सिज्ांति तेर्सि णमो अहवा सदाग्रहणं सिद्धस बुद्धतादीणं सायपर्यवसितत्वख्यापनार्थमिति, अण्णे भणति सिद्धाणं-सिद्धत्वं प्राप्तानां ते य सामषेण विज्जासिद्धादीयावि भवंति अतो भण्णति बुद्धाणं अवगतस्याऽविपरीततवानां, एवमवि मा प्रयोजनांतरतः पुणोवि संसारं एिितति भण्णति पारगताणंसंसारस्य प्रयोजनवातस्य वा पर्यंतं गताणं एतेवि पारंपर्येण गता, एगे गया पुणो अणागता पुणो अण्णे, एवं पुण सब्वेवि एगदा अणादिसिद्धा वा, अथवा एगे पड़च्च अष्णे गता अण्णे पड़च्च अण्णे, एवं परंपरगता, तेऽवि लोयग्गमुबगता, ण पुण इह जन्थ वा तत्थ वा ठिता, एवं णमो सदा सम्बसिद्धाणं, सब्बेसि सिद्धाणं सव्वसिद्धाणं अहवा सर्वे साध्यं सिद्धं येषां ते सर्वसिद्धा इति । अण्णे पुण सिद्धाणं बुद्धाणं पारगताणं परंपरगताणं एताणि एगट्टिताणि भणति, सिद्धत्तिय बुद्धतिय पारगतति य परंपरगतसि वयणाओ इत्याद्यलं विस्तरेणेति । इदाणिं मत्तित्रडुमाणतो जस्स भगवतो तिथे वयं ठिता तस्सवि धुती भंणति जो देषाणवि देवो० ॥ २ ॥ सूत्रं ॥ य इत्युपदेशवचनं, देवाणवि देवो देवाधिदेव इत्यर्थः, यं दे॒वा प्रकृतजलयः प्रांजलयः णर्मसंतित्ति नमस्कुर्वेति तमिति निर्देश, देवदेवमहितं च महितं पूजितं, अहवा देवदेवं अधिकं अहवा देवदेवा इंदा तेसिपि अधिक तेर्हिपि या महिनं देवदेवमहितं, सिरसा वंदे महावीरं सिरसागहणेण तज्जातीयत्वात् मणसा वायाए य बंदे महावीरं महति
1
... अत्र सिद्धस्तवस्य व्याख्या क्रियते
(275)
सिद्धस्तुतिः
॥२६२॥
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
प्राभातिकादिप्रतिक्रमणानि
.
+५
4
||गाथा||
+
कायोत्सर्गामहावीरवद्धमाणसामि ॥ वधमानस्वामिन एव नमस्कारसामथ्र्यदर्शनद्वारेण धुति भणति-- ध्ययनं । एक्कोऽपि णमोक्कारो॥३॥ पूर्व । ओषतः किर कंठति. भगवतो पण अणेगनयभंगआगमगहण गुरू मणतित्ति
एते तिष्णि सिलोगा भण्णंति, सेसा जहिच्छाए। ततो पुण संसारांणत्थारगाणं आयरियाण बंदणं । जथा रण्णो मणूसो आणत्तियाए| 1॥२६३॥
पेसितो पणाम कातूणं गतो तं कजं समाणेत्ता पुणरवि पणाम कात्रणं तं आणनियं णिवेदति, एवं इस्थापि गुरूणं वंदित्ता चरिने विसोहि कातूण दंसणे गाणे य मंगलं च कातूणं जे पूजारिहा पुणरवि गुरु बर्दति, भगवं! कतै पेसणं आयविसोहिकारगन्ति, एतेण । कारणण मंगलाणतरं भत्तियमाणविणयप्पसमापुच्छणाणिमिनं वंदणं च करेति, वंदणं कातूणं उक्इ ओ आयरियाभिमुही विणयरइयमत्थगंजलिपुडो जाहे पुचि आयरिया धुर्ति भणिता पच्छा सो भणति, अण्णहा अविणयो भवति , आयरिया वा किंचि अत्थपदं, पच्छिलतरालो य कतो, मा ताव आयरिया कस्सह अतियार मेरद्ववर्ण च विस्सरितं सारेंति, ताओ य थुतीओ एगसिलोगादिवतियाओ पदअक्षरादीहिं वा सरेण वा बहूतेण तिष्णि भणितूणं ततो पादोसियं करेंति । एवं ता सायं । इदाणि पभाते काविधी-पढम सामाइयं कातूणं चरितषिसोधिनिमित्तं काउस्सग्गो वितिओ चउवीसत्थर्य काढतूण दसणविसाहिकारको
तसिओ सुतणाणविसोहिनिमित्तं, तत्थ राइयातियारे चितेति, तथा धुतीणं अवसाणाया आरद्ध जाव इमो ततिओ काउस्सग्गोत्ति, 8 पमाणं किं एत्थर, सुत्तं गोसद्धं सतस्स, पढमे पणवीसा वितिएवि पणुवीसा, ततिए णत्थि पमाणं । तत्थ आयरिओ अप्पणो IPIअतियार चिंतेतूण उस्मारेति जेण पुणद्विता सबवि, ततो पंदणगं, ततो आलोयणा ततो पढिकमर्ण ततो पुणरविचंदणगं खामण
ततो पाभाझ्याणतर काउस्सग्गी, ततो पच्चखाणं गुणधारणाणिमिर्ग, तत्थ चिति- कम्हि नियोगे णिउत्ता गुरुर्हि तो तारिस
दीप अनुक्रम [३७-६२]
॥२६३॥
... अत्र प्रात: प्रतिक्रमण-विधि: प्रदर्शयते
(276)
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
|| गाथा ||
दीप अनुक्रम [३७-६२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 3
भाष्यं [२२८-२३७]
अध्ययनं [५], मूलं [ सूत्र / ३७-६२] / [ गाथा-], निर्युक्ति: [ १२४३ - १६५१/१४१९-१५५४
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
॥२६४॥
कायोत्सर्गात संपडिब्बज्जिस्सामि, साहुणा य किर चिंतेत छम्मासखमणं जाव करेमि ?, ण करेज्जा, एगदिवसेण ऊणगं करेतु जाव ध्ययनं पंचमास पंच ३-२-१ अद्धमासो चउत्थं आयंबिलं, एवं एगड्डाणं एगासणं पुरिमणिन्त्रीय पोरुसी णमोकारोनि अज्जत्तणगाओ *य किर क जोगवडी कातव्या, एवं वीरियायारो ण विराधितो भवति, अप्पा य विद्धाडितो भवति, जं समत्थो का तं हिदए करेति, अण्णे भणति एवं चिंतेतव्यं किं मए पच्चक्खातव्यं १, जदि आवस्यमादियाणं जोगाणं सकेति संघरणं कातुं ता अभत्तङ्कं ववसति असतो पुरिमङ्कायंबिलेगड्डाणं, असतो निब्बीय असतो पोरुसमादिविभासा, अह वउत्थभत्तिओ छई ववस छड़भत्तिओ अडमीमच्चादि विभासा उस्सारेता संघ कातुं पच्छा वंदित्ता पाडवज्जति, सव्येहिवि णमोकारइतेहि समगं उट्ठेत, एवं सेससुवि पच्चक्खाणिसु, पच्छा तिण्णि श्रुतीओ अप्पसदेहिं तहेव भण्णंति जथा घरको इलियादी सत्ता ण उट्ठेति, कालं वंदित्ता निवेदिति । जदि चेतियाणि अस्थि तो वंदन्ति श्रुतिअवसाणे चैत्र, पडिलेहणा मुहणंतगादि संदिसह पडिलेहेमि बहुवेला य । एवं च कालं तुलेतूणं पडिकमंति जथा ततिया धृती भणिता पडिलेहणवेला य होति । आह-किं निमित्तं विवरीत पाडक्कमि ज्जति जथा सायं गतं तथा पदेवि पडिक मिज्जतु ?, उच्यते, कोइ साहू णिद्दाइमो होज्जा तो णिद्दाभिभूतो न तरति चिंतेतुं, अविय अंधकारे वंदेताणं आवडणादयो दोसा, असंखर्ड च तुमं ममं उबर पडसि, मंदधम्मा य कितिकंम लोवेंति, एवमादि, जाव पुण तिष्णि काउस्सग्गा कीरंति ताव पभायं होति, एतेण कारणेण विवरीतं कीरति । एवं ता देवसिए भणितं पक्खिए हमा विधीदेवसियं जाहे पडिकंता णिवेदुगपडिकमणेणं ताहे गुरू निविसंति, ताहे वंदिता भणति इच्छामि खमासमणो !पक्खियं खामणमं एवं जहणेणं तिष्णि उकोसेणं सच्चे, पच्छा गुरू उट्ठेसणं अहारायणियाए खामिति, इतरेवि जथाराहणियाए खामंति, सब्जेवि
(277)
प्राभाति
कादिप्रतिक्रमणानि
॥२६४॥
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं (२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
ध्ययना
||गाथा||
कायात्सा सूत्र मति इम-देवसिय पडिकंतं पक्खियं पडिकमावेह,ताहे पक्खियं पडिक्कमणसि कट्टिज्जति, कविता मूलगुणउत्तरगणेहिं जं खंडितं ।
धामणाबिराहितं तस्स पच्छित्तनिमित्तं तिण्णि उस्साससताणि काउस्सग्गो कीरति, पारित उज्जोयकरन्ति, ओवविट्ठा मुहणतगं पडिलेहेचा विधिः २६ वदंति, पच्छा पक्खियं विणयाइयारं खामेंति वितिए, जथा राया जाणमपि पूसमाणएणं एवं इमेवि सीसा कालगुणसंथवं करोति । ६
| पियं च जंभे रहाणं सच्चं सोमणो कालो गतो अण्णावि एवं चेव उवाद्वितो. गुरुवि भणति-साधूहि समं, ततिए समावितावसूत्र | चोधिताणं चेइयवंदणं च साहुवंदणं च निवेदेति, इच्छामि खमासमणी ! पुचि चेतियाति वंदित्ता इत्यादि कंठं, णवरं कब समाणा बुडवासी वसमाणा--णबविगप्पविहारी, आयरिओ भणति-अहपि वंदामि । चउत्थे अप्पगं गुरुसु णिवेदेति, तत्थ जो | सूत्र | अविणओ कतो तं खमाति-इच्छामि खमासमणो! तुझं संतिय अहा कप्पं०, आयरिओ भणति-आयरियसंतियं, अहवा
गच्छसंतियंति, पंचमे भयंति--जे विणएह तं इच्छामि सव्वं, इच्छामि खमासमणो! कताई च मे कितिकमाई जाव तुम्भण्हं
तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसारकताराओ साहत्थं णित्थरिस्सामोत्तिकटु सिरसा मणसा मधएणवंदामोपातिकटु, गुरू आह-आयरिया णित्थारगा, एवं ससाणवि सवसि साहणं खामणवंदणगं पढमग, जाहे अतिवियालो वाघावा वा।
ताहे सत्तहं पंचण्डं तिण्डं वा । पच्छा देवसियं पडिकमति । पडिकंताणं गुरुसु चंदिएमु वडमाणिगाओ तिणि धुतीओ आयरिया लाभणंति, इमे य अंजलिमउलियहत्थया एकेकाए समत्ताए णमोकार करेंति, पच्छा सेसगावि भणन्ति । तावसं ण मुत्तपोरुसी णवि H ॥२६५॥
य अत्थपोरसी, धुतीओ भणति जीसे जत्तियाओ । एवं चेव चातुम्मासिएवि, पवरं इमो विसेसो-चाउम्मासियकाउस्सम्गो पंच 18 सताणि उस्सासाणं, संवत्सरिए च अदुसहस्सं उस्सासाणं, एस विसेसो, चाउम्मासियसंवच्छरिएसु सन्वेहि मूलउत्तरगुणाण
दीप अनुक्रम [३७-६२]
SONGS
-
(278)
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
॥२६६॥
||गाथा||
कायोत्सर्गा आलोएतब्ब, ताहे पडिकमिज्जति, चाउम्मासिए एगो उपसम्गदेवताए काउस्मग्गो कीरति, अब्भाहओ पभाते आवासए कते | ध्ययन
चातुम्मासियसवत्सरिएसु पंचकल्लाणगं गेहंति, पुण्यगहिता अभिग्गहा णिवेदतब्बा, जदि ण सम अणुपालिता तो कूजितककराइतस्स काउस्सम्गो कीरति, पुणरवि अण्णे गेण्हितण्या, णिरभिग्गहेणं किर ण बट्टति अच्छितु, संवच्छरिए य आवासए कते पज्जोसवणाकप्पो कडिजति, पुचि चेव अणागतं पंचरतं सम्बसाधणं मुणिताणं कडिज्जति कहिज्जति यति। एते ताव बेलाणियमेण भणिता काउस्सग्गा, इमे अणियता, तत्थ दारगाथा--भत्ते पाणे० ॥२३४॥ गमणं गामादिसु आगमणं ततो चेक, भत्तस्स जत्थ वच्चति जदि ण ताव देसकालो ताहे पडिकभित्ता अच्छति, ततो पडियागतो पुणोवि पडिक्कमति, एवं पाणस्सवि, सयर्ण संधारओ वसही वा, आसणगं पीढमादि, एतेसि मग्गतो गतो एतं पडिक्खेज्ज, अरहतपरं गतो साधुणं च वसहिं गतो, अदुमिचउद्दसीसु४ि | अरहंता साधुणो य देतधा, उच्चारविओसग्गे पासवणवियोसग्गे दोसुवि जदिवि हत्थमे गंतूर्ण वोसिरति तोवि पडिकमति,
अह मत्तए ताहे जो विगिचति सो पडिक्कमति, सेसएसु जदि हत्थसतं नियत्तणस्स बाहिं वा तो पडिकमति, अह अंतो फूण पडिकमति, एतेसु पणुवीस उस्सासा, गमणागमणचि गतं । विहारेत्ति असज्झाए अण्णस्थ सझायणिमित्तं गतस्स पणुवीस | उस्सासा ॥ इदाणिं सुत्तत्ति, उद्देससमुद्देसे सत्तावीसं अणुण्णवणियाए, सुते उद्दिढे जो काउस्सग्गो समुद्दिढे अणुण्णवणियाए, तेस &ा
Xi॥२६६॥ कसचार्वास उस्सासा अच्छितूर्ण सयं चेव उस्सारति जदि असढो, सढस्स आयरिश्रा उस्सारैति, जाच आयरिओ न उस्सारेति ताव सुच टासायति, आयंबिलविसज्जणे विगयविसज्जणे य सत्तावीसं. उक्स्सयदेवयाए य सत्तावीस, कालग्गहणे पवणे य अणसणाए पडि-।
कमणे अट्ट उस्सासा, आदिग्महणा कज्जणिमित्रं गच्छंतो अवक्खलितो अदु उस्सासे काउस्सग्गो कातब्बो, ताहे मंमति, जदि
ARRIE%%
दीप अनुक्रम [३७-६२]
SE
(279)
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं २२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
||गाथा||
कायोत्सर्गा वितियपि तो सोलस उस्सासा, ततियं जदि अवसउणो तो अच्छति अण्णं सोमणं सउणं पडिच्छंतो, सुतक्खंधपरियहणे पणुसिंकायोध्ययन | उस्सासा, अण्णे भणति कालगण्हणे पट्ठवणे य पंच उस्सासा, अणेसणाए कालपडिकमणे सुतक्खंधपरियणे य एतेसु अट्ठ, सुत्तत्ति सर्गाः
गत्तं ॥ मुमिणे पाणवहे मुसाचादे अदत्ते परिग्गहे सत उस्सासाणं, मेहुणे दिडीविप्परियासियाए सतं, इत्थीए सह अट्ठसयं, 12 ॥२७॥
रात्रिग्रहणं दिवासोतब्बणिवारणत्थं, णाचत्ति णावउत्तिष्णो जदिवि ण संघटेति तथाविरियावाहियाए पणुवीसं उस्सासा, नई
उत्तिण्णा तस्थवि पणवीस, चला वा संडेवो वा तत्थवि पणुवासंति, दारं। इदाणिं असढत्ति, एते सब्वेवि नियया अ अणियता य ट्रकाउस्सग्गा निकूडं कातबा । विसेसतो आवासगवेलाए पडिमाट्ठाणेसु य, तत्थ गाथा-जो बलु तीसतिवरिसी० ॥२३५भा०।
तीसतिगस्स उदको बालस्स, सत्तरिकस्स परिहाणी, जो तीसतिओ सत्तरिएण समं ठाती समं च उस्सारेति सो जथा कूडवाही बहल्ले मरालो, जति मरालो विसमे अद्धाणसीसके समिलं पच्छतो विलंघति पच्छा ईमति तस्स दो दोसा-हम्मति बहाविज्जति य, दोषि भरा उबरि होति, एवं इमोवि अप्पणो दो भरे उरि करेति, मायानिष्फण्णं तं च कायकिलेस, तम्हा वीरियं ण णिगृहेतवं, निकूडं कातब्बो सविसेसो सरिसगातो, ऊणगे का पुच्छा?, एवं तवोकंममादीवि वयाणुरूवं तरुण थेराओ सविसेसं बलाणुरूवंति,
कोइ तरुणो असमत्यो थेरो समत्थो तेणवि विरीयं ण निगृहेतच्वं, थाणुरिव अचलत्तणं, उति कायो य झाणं च गहितं, अव्वाबाहमि 81 है. जत्थ ण छिज्जति अप्पणो परस्स वा जहि वा चाहा ण भवति तत्थ ठाइतब्ब, सदं पुण एवं भवति-पयलायति ॥ १६४०॥ २६७॥ | काउस्सग्गकरणलाए मायाए पयलायति, आलावमादि वा पुच्छति, कंटकमादि वा उद्धरति, उच्चारपासवणवोसिरओवा गच्छति, धम्मकई वा करेति. मायाए गेलण्णं वा दरिसेति. एवमादीहि कूडं हवति एयंति । इदाणि विहित्ति, काए विहीए काउस्सग्गे
दीप
अनुक्रम [३७-६२]
CH
(280)
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
[सू.
||गाथा||
कायोत्सा 8 ठावितव्वं , तत्थ
कायोत्सर्ग ध्ययन
चउरंगुलमुह०॥ १६४२ ॥ चउरंगुलं पदांतरं कातव्वं, उज्जुगहत्थे मुहपोती रब्बए रजोहरणं, दोहिवि पासेहिं दोवि ॥२६८
हत्था लंबिज्जति, घर्ण चोलपटं अवलंबित्ता दिट्ठी जुगतरे, अण्णे भणति जथा पदे पेच्छति, सव्वगत्तेहि मुक्केहि जहा काउस्सग्ग 18 ठाति, वोसह जं कंड्यणादिपडिकमणं ते ण करेति, वियत्तो सुढे वा दुहे वा सो चियत्तदेहो करेज्जा। दोसत्ति काउस्सग्गं च है करेंतो इमे दोसे परिहरेज्जा
घोडग लता य०॥ १६४३ ॥ सीसोकंपिय० ॥ १६४४ ॥ घोडओ जहा विसमेण पादेण ठाति आउंटावेत्ता १ लता | जहा कंपति २ खंभे वा कुड्डे वा अवत्थंभेत्ता माले वा सीसं अवत्थंभेचा ठाति ३ २.वरी जहा सागारीयमग्गं अच्छाएति ४ । बहू जहा ओमस्था ठाति, हेटाहुतं मुहं करोतीत्यर्थ: ५ णियलियओ जथा पादे मेलेत्ता ठाति, अतिविसाले वा करेति ६ लरुत्तरं जण्णुगाणि पावेति चोलपडगं, उवरि वा णामि चोलं दिति ७ यणति थणए अच्छाएति चोलपट्टेणं जहा इत्थी सीतादीहिं2 अच्छति ८ असंतुत इति वा उडिति बाहिरओद्धी पण्हिताओ मेलेचा अग्गपादे चाहिराहुत्ते करेति अम्भितरउड्डी अग्गपादे मेलेसा ४
पण्हिताओ वित्थारेति ९ संजती पाउएणं ठाति १० रपहरणं जथा खलितं तथा धरेति १० वायसो जथा दिद्धि भमाडेति ११ 8 छप्पतियाहि खज्जामित्ति चौलपत्यं जहा कविट्ठ तहा सागारियठाणे करेउ ठाति, अण्णे भणंति-कविढं जथा मेण्हित्ता ठाति १२
सास ओकंपेति १३ मूओ जहा हुंएति अच्चतं एसो एवं गुणुगुणेतो अणुप्पेहिति १४ छिज्जते अंगुलिं चालेइ १५ आलावए वा गणेइ संठावेइ वा १५ भमुहा बा चालेइ काउस्सग्गे ठिो छिज्जंते वा भमुहाओ चालेइ १७ वाणरो जहा ओहे लेबाद एवं
AURA
दीप अनुक्रम [३७-६२]
॥२६८॥
... अत्र कायोत्सर्गस्य दोषा: वर्णयते
(281)
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ध्ययन
॥२६९॥
कायोत्सगा। उढे लंबावेइ काउस्सग्गे ठिओ, वारणो हत्थी, अण्णे भणंति-वाणरो मक्कडो, सो तहा उढे चालेत्ता अणुप्पेहेति १८ अहबा वारुणी जी
सुरा जहा बुडबुडेति अणुप्पेहितो १९ एवमादी दोसे परिहोजा। णाभी करतल कोपर उस्मगे पारियमि धुती॥णाभित्ति |णाभीओ हेट्ठा चोलपट्टो कातब्बो, करतलत्ति हेढा लंबंतकरतलहिं ठतितब्बो कोप्परेहि धारेतब्बो, उस्सग्गे पारिते णमोद्वादीन्यअरहताणन्ति धुती कातव्वचि।
दाहरणानि कीसत्ति कस्स पुण काउस्सग्गो विराधितो न भवति , वासीचंदणकप्पो जो मरणे जीविए य समदरसी । देहे | Mअप्पडिबद्धो काउस्सग्गो हवति सुद्धो ।।।। तत्थ पुण इमाओ आलंबणगाथाओ-पास्थि भयं मरणसमं जम्मेण समं नर
विज्जती दुक्खं । जमणमरणायाहं छिंद ममतिं सरीरंमि ॥ १॥ अण्णं इमं सरीरं अपणो जीवोत्ति एवकतबुद्धी। दुक्खपरिकेसरि छिंद ममतिं सरीरातो ॥ १६४९ ॥ जावइया किर तुक्खा संसारे जे मए समणुभूता । एत्तो। दुव्विसहतरा णरएम अणोचमा दुस्वा ॥ १६५० ।। तम्हा तुणिम्ममेण मुणिणा उवलद्धदेहसारेणं। काउस्सग्गो कम्मक्खयहाए उ कातव्यो ।।१६५५।। इदाणिं फलं, एवंगुणसंपणं काउस्सग्गं करेमाणस्स एहियं फलं पारतिय च, एहिते | उदाहरणं सुभद्दा, कह?, चपाए जिणदत्तस्स धूता, सा सुभद्दारूविणी तच्चनियगसड्डेण दिट्ठा, अज्झविषण्णो मग्गति, अभिग्गहित-18 WIमिच्छादिद्विति ण लभति, साहसावं गतो, धम्म पुच्छति, कहिते कवडसावगधम्मं पगहितो, उवगतो से सम्भावो, आलोएति- ॥२६॥
मए दारियानिमित्तं कवडं आरद्ध, अण्णाणि अणुब्धताणि देह, दिण्णाणि, लोगप्पगासो साबगो जातो, कालंतरेणं वरगा पट्टविता, सम्मदिवित्ति दिण्णा, कतविवाहा विसज्जिता, जुतकं से घरं कतं, तच्चणिएसु भत्ती ण करेतित्ति सामुणणंदाओ पदुहाओ, भत्ता-18
---EASTER
||गाथा||
दीप
अनुक्रम [३७-६२]
(282)
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
For+aa
प्रत
सूत्रांक
+
|| गाथा ||
टीप
अनुक्रम
[३७-६२]
भाग-5 "आवश्यक" मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3 निर्बुक्तिः [१२४३-१६५९१ / १४१९- १५५४
भाष्यं [२२८-२२७]
अध्ययनं [५] मूलं [सूत्र / २७-६२ ] / [गाथा-] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
कायोत्सर्गा ध्ययनं
॥२७०॥
रस्स से कहेंति- एसा खमणेहिं समं, सो न सदहति, खमगस्स भिवखड्डा म तिगतस्स कणुयं लग्गे सुभद्दार जीहाए फेडितं, तिलगो से खमगनिलाडं पासिष्णं संकंतो, उवासियाहिं सायगो सित्ति भत्तारस्त से साम्रयं दरिसियं, पत्तियं ण, तहावि मन्दमणुयतति, सुभद्दा चिंतेति किं चित्तं जदि अहं गिहत्था छोभगं लहामि, जे सासणउट्टाहो एवं कई काउस्सम्गं ठिता, देवो आगतो, संदिसाहि अयसं संपमज्जाहित्ति, देवो भणति एवं अहं चचारिवि णगरदाराणि ठपहामि, भणीहामि य-जा पतिवता सा उघाडेहित्ति, तुमं चैव उघाडिसि, सयणपन्चयनिमित्तं चालणिगतमुदगं दरिसेज्जादि अणिग्गलंतं, आसासेऊण गज, ठतियाणि, अद्दण्णो जणो, आगासे वाया मा किलिस्सह, जा सती सयणेण चालणीगतमुदगमगलंतं घेणऽच्छोडेति ( सा उग्वाडेति) कुलबहुबग्गो किलिस्तो ण सक्केति, सुभद्दा सयणमापृच्छति, अविसज्जैताणं चालणीगतेण उदगेण पाडिहरे दारसिते विसज्जिता, ओवासि ताओ पर्वधिति एसा किल उघाडेहिति, चालणिगत से उदगं ण गलतिति बिसण्णाओ, ततो महाजणेण सम्मुस्सुतेण दीसंती गता, अरहंताणं णमोक्कारं काऊणं चालणीओ उदगेण अच्छोडिता दारा, महता कोंचारखं करेमाणा तिमि दारा उग्घाटिता, उत्तरं न उग्घाडितं भणितं जा मए सरिसा सा एतं उघाडेज्जा, तं अज्जवि अच्छति, नगरे जणेण साधुक्कारो कतो, सक्कारिता य एवं इहलोइयं काउस्सग्गफलं, अण्णे भणति वाणारसीए सुभद्दाए काउस्सग्गो कओ एलकच्छुप्पत्ती भाणितब्बा राया ओदिओदएत्ति, उदितोदयस्स रण्णो भज्जालोमा पज्जोयणिवरोहितस्स उवस्सग्गुवसमणं जातं, कहाणगं जथा णमोकारे । सेट्टिभज्जा यत्ति चपाए सुदंसणो सेट्ठिपुत्तो, सो सावमो अट्टमचा उदसीसु चच्चरेसु उवासगपाडमं पडिवज्जति, सो मद्दादेवीए परिथज्जमाणो णेच्छति, अण्णदा बोसटुकायो देवपडिमति तत्थ बेडिओ, चेडीहिं अंडरं नीओ, देवीए निबंधेकतेणेच्छति,
(283)
कायोत्सर्ग
फलं सुभद्रादीन्युदाहरणानि
॥२७०॥
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [५], मूलं [सूत्र /३७-६२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१२४३-१६५१/१४१९-१५५४], भाष्यं [२२८-२३७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ख्यानचूर्णि
*GA
||गाथा||
प्रत्या- पदुहाए कोलाइलो कतो, रग्या वज्झो आणत्तो, णिज्जमाणो भज्जाए से मित्तवतीए सावियाए सुतं, सुन्वाणजक्खस्साराहणाकाउ-प्रत्याख्या
मस्सगं ठिता, सुरसणास्तवि अट्ठ खंडाणि कीरतुत्ति खंघे असी वाहिओ, सव्वाणजखेण पुष्कदामं कतो, मुको रण्णा पूजितो, ताहेनस्य भेदाः
४ मित्तवतीए पारिता तथा सोदासत्ति सोदासो राया जथा णमोक्कारे खग्गत्थं, भण्णति-कोइ विराधितसामण्णो खग्गो समुप्पण्णोx ॥२७॥ & बढाए मारेति, साधू पधाविता, तेण दिट्ठा, आगतो, इतरेवि काउस्सग्गेण ठिता, ण पहवति, पच्छा दवण उपसंतो । एतदैहिक
| फलं, णिज्जरा देवलोगो मुमाणुसच गेब्बाणगमणं, कहं , तत्थ गाथाओ-'जह करकयो णिकिंतति दाऊं पत्तो पुणोवि | वच्चतो.॥ २७॥ भा०॥ काउस्सग्गे जह सुट्टितस्स० ॥ १६४ ॥ इमा काउस्सग्गे परंपरसुहबेल्ली जथा
संवरेण भषे गुत्तो, गुत्तीए संजमुत्तरो । संजमेण तवो होति, तवातो होति णिज्जरा ॥१॥ णिज्जराए मुहं कंमं, खीयते कमसो सदा । आवासगेसु जुत्तम्स, काउस्सग्गे विसेसओ ॥२॥ पया इच्छितवा, तस्थ गाथाओ २ पूर्ववत् ॥
काउस्सग्गणिज्जुत्तीचुण्णी सम्मत्ता।। अथ प्रस्याकयानाध्ययन-मणितं पंचमजायणं, दाणिं छ8 पच्चक्खाणायणं मण्णति, अस्य पायमभिसंबंधा-आ-RI॥२७॥ मस्सगं पत्थुतं, तस्थ य जथा सावज्जजोगा विरतिमादीणि पत्तकालमवस्सं कायव्वाणि, एवं पच्चक्खाणमावि पत्तकालमवस्स kी कातन्वमिति एवं बभिज्जति । पाभातियावस्सये य- अंतिम काउन्सगंग कातुं पच्चक्खातब दिदए ठवेता उस्सारतुं चठवीतत्यप-1
दीप अनुक्रम [३७-६२]
... अत्र अध्ययनं -५- 'कायोत्सर्ग' परिसमाप्तं
S... अत्र अध्ययनं -६- 'प्रत्याख्यानं आरभ्यते
(284)
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-], निर्युक्ति: [ १६५२-१७१९/१५५५-१६२३],
भाष्यं [२३८-२५३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥२७२॥
बंदणगाणि विधीए कातुं पच्चखाणस्स उबट्टाइज्जति, तं कतिविदं केरिस वा पच्चक्खाणंति, भण्णति, अण्णे भांति जो पुठिंब वणदितो कतो सो इर्हपि कातव्यो, जो परिमद्दणादाहिं ण सुज्झति सो उववासादीहिं अपत्थपरिवज्जणादीहिं सोधिज्जति, एवं इहंपि जो अतियारो आलोयणपडिकमण का उस्सग्गेहिं ण सुज्झति सो तवेण पच्चक्खाणेण य विसोधिज्जति, एतेणाभिसंबंधेणाग| तस्स चचारि उणियोगद्दाराणि उवकमादी जहा हेट्ठा वण्णतव्वाणि तस्थाधिगारो गुणधारणाए, गुणा णाम मूलगुणे, उत्तरगुणा उवरिं भष्णिर्हितित्ति | णामणिष्फण्णे पच्चक्खाणंति, तत्थ इमाणि दाराणि
पच्चक्खाणं पच्चक्रखाओ० ।। १६५२ ।। पच्चक्खाणं पञ्चकखाओ पञ्चकवेयं परिसा कहणविधी फलति एते छन्भेदा, अहवा पच्चक्खाणंति आदिपदस्स इमे छन्भेदा-णामपच्चक्खाणं ठेवणापच्च० दव्वप० अदिच्छप०पडिसेहप० भाव पच्चक्ख: णन्ति, णामठवणाओ गताओ, दव्वपच्चक्खाणं दव्वणिमित्तं दब्बे वा, दव्वेण वा जथा रयहरणेणं, दव्वेहिं वा दव्वस्स वा दव्वाण चा | दव्वरूवो वा जं पच्चक्खाति एवमादि दब्वपच्चक्खाणं । तत्थ रायसुता उदाहरणं
एमस रणो धृता अष्णस्स रण्णो दिण्या, सो य मतो, ताहे पितुणा आणीता, धम्मं करेहित्ति भणिता पासंडीणं दाणं देति, अण्णदा कत्तिको धम्ममासोति मं ण खामित्ति पच्चकखातं, पारणए दंडिएहिं अणेगाणि सत्तसहस्वाणि मंसत्थाए उवणीताणि, ताहे भत्तं दिज्जति सा मुंजति, गाणाविहाणि मंसाणि दिज्जति, तत्थ साधू अदूरेण वोलेन्ता णिमंतिता, भत्तं गतिं, मंसण इच्छति सा भणति--किं तुब्भं कत्तिओ ण पूरितो, तेण भण्णति जावज्जीवं अम्हं कत्तिओ, किं वा कहं वा ?, ताहे तेहिं धम्मो कहिओ मंसदोसा य, पच्छा संबुद्धा पव्वइया । एवं तए पुब्बं दव्यपच्चक्खाणं, पच्छा भावपच्चक्खाणं जातंति ।
(285)
पत्याख्यानस्य भेदाः
||२७२॥
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान चूर्णिः
प्रत सुत्रांक [सू.]
॥२७३॥
अतिस्थापचक्खाणं जहा अतित्थ बंभणाण एवमादि । पहिसेहपञ्चक्खाणं णस्थि में तुर्म मग्गसि । भावपञ्चक्वाण दुबिह-सुतपच्चक्खाणं णोमुतपच्चक्खाणं च, जं तं सुतपच्चक्खाणं तं दुबिह-पुब्बसुतकणोपुबसुतपच्चक्खाणं, पुवतपणाम समस्य ४ पुर्व णवम जे तं, णोपुव्वसुतपरचक्खाणं तं अणेगविहं, तं० आतुरपच्चक्खाणं महापच्चक्खाण, इमं पच्चक्खाणज्झयणं जंत मेदाः &ाणोसुतपच्चक्खाणं,तं दुविह-मूलगुणपच्चक्खाणं उत्तरगुणपच्चक्खाणं च, जे तं मूलगुणपच्चक्खाणं तं दुविहं-सवमूलगुणपच्चक्खाणं | देसमूलगुणपञ्चक्खाणं च,सव्यमूल पंच महव्यता,देसगुणमूलपच्चक्खाणं च पंचं अणुव्वता,उत्तरगुणपच्चक्खाणं दुविह सबुत्तरगुणपच्चक्खाणं देसुत्तरगुणपच्चक्खाणं च, सव्युत्तरगुणपन्दसावह अणागतमतिक्कंतं०॥१६६१शाएतं दसविहं,देसुत्तरगुणपच्चक्खाणं सत्तविहं तिमि गुणञ्चताणि चत्तारि सिक्खावताणि, एवं सत्तविहं, अहवा उत्तरगुणपच्चक्खाणं दुविहं- इत्तिरिय आवकाहयं, जथा | णियंटितं, तं दुक्खिमादिमुवि जं पडिसवति, सावगाणं च तिमि गुणबतानि आवकहिताणि, साधूर्ण केति अभिग्गहविसेसा सावलागाणं च तिमि गुणब्बतानि आवकहिताणि,साधुणं केति अभिग्गहबिसेसा सावगाणं चत्तारि सिक्खावताणि इत्तिरियाणित्ति,तत्थ
तं सब्बमूलगुणपच्चक्खाणं तस्थिमा गाथा पाणवह मुसावाए॥२४३शाभासमणाणं जे मूलगुणा ते सव्वमूलगुणपच्चक्खा प्रणति भण्णति, तंजथा सध्याओ पाणातिवाताओ वेरमणं, तिविहं तिबिहेणंति जोगत्तियं करणत्तियं च गहितं, रथ तिविति न करेमि न कारवेमि करतंपि अण्ण ण समणुजाणामि, तिविहंति मणसा वयसा कायसा । एवं पंचमु महन्यतेमु भणितव्यं ।। ॥२७॥
इदाणि देसमूलगुणा एते चव देसओ पच्चक्खाति, तं सावयाणं पंचविहं इम-थूलाओ पाणातिवायाओ बेरमर्ण जाव इच्छा-1 परिमाणं । तत्थ ताव सावगधम्मस्स विधि वोच्छामि ते पुण सावगा दुविहा-साभिग्गहा य णिरभिग्गहा प०॥ १६५४ ॥
दीप अनुक्रम [६३-९२]
SARKI
... अत्र श्रावक-व्रतस्य भेदा: वर्णयते
(286)
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.]
|ओहेणंति समासतो । तत्थ साभिग्गहा मूलगुणेसु वा उत्तरगुणेसु वा एमम्मि वा अणेगेसुपा उभयाभिग्गहा वा मवंति, मिरमि-ना
भेदाः द ग्गहा णाम केवलदसणमेतेण सावगा जया कण्हसच्चतिसेणियादी । एते चेव दोषि विभज्जमाणा अदुविधा भवंति। कई:-- चूर्णिः
दुविहं तत्थ जे ते एग या अणेगा वा अभिग्गहे अभिगेण्हंति ते दुविहं तिविहेणं दुविहं वा एक्कविहेणं एक्कविहं वा ॥२७॥18॥ तिविहेणं एकविहं दुविहेण एकविहं वा एक्कविहेण, एते छप्पगारा, उत्तरगुणसावगो सत्तमो, अविरयसम्मदिट्ठी अडमी । एते
हाव अट्ठपिहा विभज्जमाणा बत्तीसतिविहा मति, कही-जे ते आदिल्ला छप्पगारा ते ताव तीसविहा, कह', पणगचतुक्कं० 21॥१६५०॥ पंचाणुष्वतिए अभिग्गडे ६ भेदा चतुअणुष्वतिए अभिग्गहि ६ जाव एगमि६ फ, एते तीस मूलगुणसु, खिप्पण्ण एक्कतीसमो उत्तरगुणसावओ अविरतसम्मदिही बत्तीसतिमो । मणिता बनीसतिविधा।
हिस्संकित० ॥ १६५८ ॥ जे ते साभिग्गहा य मिरभिग्गहा य ओहेण विभागेण भणिता, एतेसि णिस्संकितणिक्कषित-18 णिबितिगिच्छताअमृढदिहीहि होतब्ब, एतेसिं तिणि आदिल्ला सम्मत्तइयारसु वश्चिज्जिहिति, अमूढदिड्डी सामाइए सुलसा पुग्ववचितमदाहरणं एतेत्ति जे मणिता एते चेच पतीसतिविहा विगप्पिज्जमाणा करणतिगजोगतिगकालतिएण विसासज्जमाणा अणेगविगप्पसहा भवतीति वयोति । एतेसिंपुर्ण मलगुणाणं उत्तरगुणाण य आधारवरधु सम्मत्तं, जथा चित्रस्य मूलाधारा कुब्यादिः, कुब्धायभावे चित्रकर्माभावः, एवं सम्यक्त्वाभाचे मलगुणउत्तरयुणानामभाव इतिकत्वदच्यत-समणीवासीIR७४। |पुब्बामेष मित्तातो पडिकमति, संमत्तं उपसंपज्जति ।। सूत्र इत्यादि।
तत्थ पाहुडिया-जारिसओ जतिभेदो जह जायति जह व पत्थ दोसगुणा । जयणा जह अतियारा भंगो
दीप अनुक्रम [६३-९२]
SAMHASE
RECECARRERABADY
(287)
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- तह भावणा गेया॥॥ भगोवा अतियारोवा एतेसु मवेति । रागहोसकसाया परीसहायणा पमाया य । एते अवराहपदायाशायाख्यान
सूत्र जत्थ विसीदति दुम्मेहे।शातत्थ समणावासओ पुषामेष मिच्छत्तातो पडिक्कमतीति,से य मिच्छत्तं दव्यओ भावओ,तत्थ दब्बओमेदाः चूर्णि
आगमणोआगमादी व अणेगविह,भावती पुण मिच्छत्तमोहणीयकम्मोदयसमुत्थे तच्चभावासदहणासग्गहादिलिंगे असुभे आयपरिणामेट्र टपण्णत्ते, तं तिबिह-संसइयं अभिग्गहितं अर्णाभग्महितं च,णिमित्तं पुण एतस्स अधोधो असदमिनिवसो संसओ वा, पडिक्कमणं पुण है
मिच्छत्तातो संमत्तगमणं, अत एवाह-संमत्तं उपसंपज्जतित्ति,से य सम्मत्ते पसस्थसम्मतमोहणीयकम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगादिलिंगे सुभे आयपरिणामे पण्णते,तस्सोवसंपत्ती सहसंमुइयाए परवागरणणं अण्णसिं वा सोच्चा, तस्थ सहसंमुतियाए जातीसरणादिणा, तत्थापरो तित्थगरो तस्स वागरणणं, अण्णोणं अण्णे तित्थगरवतिरिचा साधुमादी तेर्सि भत्तिबहुमाणविणयपज्जुवासणा, सुस्सूसधम्मरागादिणा सोऊण सबुद्धीए सत्थवेयणेण, परस्स देसणमोहविसुद्धीए एवं भवति । मिच्छत्तातो अपडिक्कतस्स दोसा-मिच्छत्तपरिणतो जीवो कम्मघणमहाजालं अणुसमयं बंधति, तचिवागेण जातिजरा-14 मरणादिवसणसतसंसारं परियहर, पटिकतस्स पुण गुणा सुदेवत्तसुमाणुसत्तादि मोक्खपज्जवसाणत्ति । तत्पुनः सम्पत्वं यथा| कुब्यादिभूमी मुष्ठु परिकर्मितायां यदि चित्रं क्रियते तदा शोभनं राजते, एवं यदि सम्यक्त्वं सुष्टु मिथ्यात्वा सुपरिसुद्धं कृत्वा | ब्रतान्यारोप्यन्ते ततस्तानि व्रतानि विशुद्धिफलानि भवंति अतः सम्यक्त्वं सुपरिसुद्धं कर्तव्यं इत्युपदेशः। .
तस्स मिच्छत्तातो पटिकतस्स सम्मत्तरसायणं ओगाढस्स इमा जतणा, जपणा नाम ससत्तीए अगप्पपरिहारो, णास कप्पति-12 अज्जप्पमिति अण्णओस्थिए वा अण्णओस्थितदेवताणि वा अण्णोत्थितपरिग्गहिताणि वा चेहयाणि बंदित्तए या णमंसिचए
दीप अनुक्रम [६३-९२]
२७५
BREAL
(288)
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
दीप अनुक्रम [६३-९२]
प्रत्या- वा पुचि अणालितएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा कल्लाणं मंगल देवयं चेतियन्ति पज्जुवासित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा४४ राजामियोख्यान
दातुं वा अणुप्पदातुं बा, णण्णत्थ रायाभियोगेणं गणाभियोगेण बलाभियोगणं देवयामियोगेणं गुरुणिग्गहणं वित्तीकंतारेणं चूर्णिः
वा इति । आह-रागद्वेषभाक्त्वं', उच्यते, सद्भूतार्थतया यो नैव ब्रह्मचारी नाप्यहिंसका लुब्धः मिध्यादृष्टिः अणार्जवः तस्य प्रणामः ॥२७६॥15 कृतोऽफलः कम्मबंधो य, असम्भावुब्भावणाए अप्पपरणासणं च,तं दटुं अण्ण तिथियाणं इमं सोहणंति मती भवति बला बंभलत-४
लीगमणं, अहुणोगाढाणं च बला बंमलतं भवति, अण्णउत्थिते य बंदमाणस्स बहू दोसा भवति, संदसणाओ पेम्मं वहति, पच्छा.
अभियोगादीहिं मिच्छत्तं णज्जा, मिच्छदिट्ठीणं सिद्धत्तं सावगोवि अम्हचए वंदति, पुवावलणेपि एते दोसा, तेसिं च जदि असप्रणादि देति तो लोग बुग्गाहेति- अम्हं दायब्वं चेव, जेण सावगावि देंति, एवमादी बहू दोसा, अयगोलसमत्ति य कातूण तेणडू लावायणएण सावगस्स सयणपरियणो संबंधं गच्छेज्जा, ततो तेसिं विणासो होजा, तं वा दट्टणं अण्णे तमि अण्णउहिए बहुमाणं | करेज्जा, सो वा तं जणं बुग्गाहेज्जा, आलावो एक्कासं, बहुसो संलाबो, असणादीणि पसिद्धाणि, दाणेवि पक्कअंतसो से पावं|
| कम्मं चज्झति तेण न देति, कोलुणियाए पुण देतिवि, जतणाए, ण वा धम्मोत्ति, अण्णत्थ रायाभिओगणत्ति रायाभियोगे मोत्तूण INणो कप्पति, रायाभिओगेण पुण दवाविज्जतिवि, जथा सो कत्तियसेट्ठी
। तत्थ हस्थिणापुरं णयरं जियसत्तू राया कत्तिओ णगरसेट्टी गमट्ठसहस्सपढमासणिओ, एवं बच्चति कालो, तत्थ परिवालाओ मासंमासेण खमति, सो सम्बो आढाति, सो से पदोसमावण्णो, छिद्दाणि मग्गति, अण्णदा णिमंतेति राया पारणए, सो
णेच्छति, राया आउट्टो भणति,जति णवरि कत्तिओ परिवेसेति तो जिममि, राया भणति-एवं करेमि, समणूसो राया कत्तियघरं गतो,
SACAक
(289)
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
प्रत्या18 भणति कत्तिओ-संदिसह, राया मणति-परिवेसेहि, कत्तिओ भणति-ण बद्दति अम्ह, तुज्झविसयवासी कि काहामि !, जदि पञ्च- जा
समाचार ख्यान इओऽहं होतो तो ण एवं होतं, पच्छा परिएसिओ, सो परिवाओ अंगुलिं चालेति-किह ते, पच्छा सो तेण णिवेगेण पन्या चूर्णिः तिओ णगमहऽहसहस्सपरिवारो मुणिमुव्वयसामिसगासे, वारस अंगाणि अधांतो वारस वासाणि परियाओ, मासिएणं भत्तणं सो
सोधम्मकप्पे सक्को जातो। सो परिवायतो तेणाभियोगेण आभिउग्गो एरावणो जावो, पासति सक्कं, पलायितो, गहितो, सक्को । ॥२७७॥
विलग्गो, दो सीसाणि कताणि, सक्कोवि दो जातो, एवं जावतियाणि विउग्वति तावतियाणि सक्को विउब्वति,ताहे णासितुमारद्धो, सक्केणाहतो पच्छा ठिओ, एवं रायाभियोगणं देंतोवि णातिक्कमति, केत्तिया एरिसया होहिं तित्ति जे उ पब्धहस्संति वा, तम्हार ण दातव्यं । गणाभियोगणं जथा वरुणसारथी, गणथेरातीहिं अब्भत्थेऊण 'मुसले संगामे णिउत्तो, एवं कोवि सावओ गणाभियोगेणं भत्तं दवावेज्जति,गणो णाम समुदयो । एवं बलाभियोगेण विवसीयंतओ दवाविज्जते भचादि । देवताभियोगेणं जथा| एगो मिहत्थी सावओ जातो, तेण वाणमंतराणि उज्झिताणि, एगा वाणमंतरी पदोसमावण्णा, तीए तस्स गाविरक्खओ जुत्तो गावीहिं अवहितो, जाहे विउलाणि जाताणि ताहे आधिवा महिला, साहति, तज्जेति-किह ममं उज्झति पावेत्ति, सो सावओ चितेति-णवरं ममं धम्मातो विराधणा मा भवतु, ताहे सा भणति-ममं अच्चहि,सो भणति-पडिमाणं अवसाणे ठाहि, आम, ठविता, 18/ ताहे गावीओ दारओ य आणीतो, एरिसा केत्तिया होहिंति' तम्हा ण देजा । एवं दन्वाविजंतोऽवि णातिचरति । गुरुनिग्गडेणं
M२७७॥ गुरुणिग्गहो अरहंतचेतियपवयणसरीरमादििण तेण, तत्थ उदाहरणं उवासगपुत्तो सावगाधूतं मग्गति, सावओण देति, सो सट्टत्तXणणं साधू सेवेति, तस्स भावतो उवगतं, पच्छा साधति, एतण कारणणं पुन्वं दुको मि इदाणि सम्भावतो, सावओ पुच्छति ||
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(290)
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) | अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-, नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सुत्रांक [सू.]
प्रत्याख्यान चूर्णि : ॥२७८॥
साधुतेहिं भणित, पच्छा तेण दिण्णा धूता, सो सावओ जुतयं घरं करेति, अण्णदा तस्स अम्मापितरो भवं करेंति भिच्छुगाणं, ताई भणंति-अज्ज एकस्सि बच्चाहित्ति, सो गओ, भिच्छुएहिं विज्जाए अभिमंतूण फलं दिण्णं, तेण चाणमंतरीए अधिडिओ गिर गावाः गतो, तो सावगीतं भणति-भिच्छुगाणं भचं देमित्ति, सा णेच्छति, दासरूवाणि सयणा य आढत्ता सज्जेतुं, साविया आयरियाणा गंतु कहेति, तेहिं जोगो पडिदिष्णो, सा वाणमंतरी णट्ठा, सो सावओ जाओ, पुच्छति-किह व किं वति ?, कहिते पडिसेहेति । अण्णे भणंति-तीए वलम्मि जेमावितो, पच्छा सुत्थो साभाविओ जाओ भणति-अम्मापिउच्छलेण है मणा बंचितोति, तुं किर फासुगं साधूर्ण दिणं, एरिसिया आयरिया कहिं मग्गितम्या, तम्हा परिहरेज्जा । वित्तीकंतारेणं देज्जा जथा-सोरट्टओ सड्डो
उज्जणि बच्चति, दुक्कालो, रचपडेहि समं पच्चंतस्स पत्थयणं खीणं, तच्चणिएहि भण्णति-अम्ह एवं पहाहि तो तुज्झवि दिज्जि-15 &ाहिति, तस्स पोट्टसरणिया जाता,सो तेहि अणुकंपाए चीवरेहिं वेढिओ,सो णमोक्कारं करेंतो कालगतो, देयो बेमाणिओ जाओ, जालं
ओहिणा तच्चणियरूवं पेच्छति, ताहे सभूसणेणं हत्थेणं परिवेसेति, सट्टाणं ओभावणा, आयरियाणं कहणं च, तेहिं भणितं-जाह | अग्गहत्थं घेत्तूण मणह-घुज्झ गुज्झगति, तहिं जाइतु अग्गहत्थं घेत्तूण भणियं णमोअरिहंतार्ण तु बुझ गुज्नया, स बुद्धी, बंदिता लोगस्स य कहेति जथा ण एत्थ धम्मो, तम्हा परिहरेज्जा ।।
तं पण संमनं मलं गुणसताण, तं पंचअयारविसुद्ध अणुपालेतवं. जथा संका०५. तत्थ-सका ण कातण्या-किं पतं एवं णवित्ति, गुरुसगासे पुच्छितव्यं, सा संका दुविहान्देसे सम्बे य, देसे किं जीवो अत्थिी पत्थिी एवमादि, अण्णतरे देसे, सच्चे किं ॥२७८॥ जिणसासणं अस्थि णस्थिति?, एवं तित्थगरा, देसे सवे वा संका ण कापच्चा, किं कारणं, गीतरागा दि सर्पशा० तमेव सच्चा
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(291)
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
णीसक०, ५ देसे जथा थोवेण पाणियमग्गण तलाय भिज्जति एवं जो संक करेति सो विणस्सति, जथा वा सो वेज्जापायो, I ख्यान 121 बेज्जाए मासा, तेहिं परिमज्जिता, अंधकारे लेहसालीगता दो पुत्ता पियन्ति, एगो चिंतेति-एताओ मच्छिगाओ, तस्स संकाए |
अतिचाराः चूर्णिः
| वग्गुली वाधी जातो, मतो य, वितीओ चितेति-ण मे माया मच्छिया देवत्ति, सो जीवितो, एते दोसा, अहवा अंडगणातं तदा ॥२७९॥ G है हरणं माणितव्वं ।
कंवा ण कातव्वा, जथा इमोवि सरक्खधम्मो तच्चन्नियधम्मो अस्थि एवं साधुधम्मो, तोवि सो चुकति, जथा सो मंडि| सुणओ । अहवा राजा आसेणं कुमारामच्चो य अवहिता, अडविं पविट्ठो, छुहापविद्धा वणफलाणि खायंति, पडिणियत्ताणं राया चिंतेति-कोंडगपूर्वगमादीणि सम्बाणिवि खामि, आगता दोषि जणा, रायाए पता भणिता-जं लोके पसरति तं रंधेहत्ति, तेहिं रद्धं, | उपद्ववियं च रनो, सो राया पेच्छणायदिटुंतं करेति, कप्पडिया बलिएहिं धाडिअंति, एवं मिट्ठस्समोगासो होहितित्ति कणकुंडमंड
गादीणि खइताणि, सेहिं सूलेण मतो । अमच्चेण चमणविरेयणाणि कताणि, सो आभागी भोगाणं जातो, इतरो विणडो ॥ | वितिगिच्छाए सावओ गंदीसरदीवगमणं मित्तआपुच्छणं, विज्जाए दाणं, साहणं, मसाणे तिपायसि कयसि कजं, हेडा इंगाला, खाइरो य मूलो, अदुसतं बारे परिजवेत्ता पादो छिज्जति, एवं बितिओ, वतिये पच्छिण्णे आगासे वच्चति । केति भणंति-कट्ठसतं | सिककपादाण कातूर्ण एकेक पादं एकसि वारा परिजवेउं छिज्जति, एवं अट्ठसतेणं वाराहि असते पादाणं छिदितवं, तेण साल विज्जा गहिता, कालचाउद्दसि रति मसाणे साथेति, चोरो य णगरारक्खिएहि परमंतो मसाणमतिगओ, बेढेतूण ठिता पभाते घेप्पिहितित्ति, सो य भमंतोतं विज्जासाधगं पेच्छति, ते पुच्छति सो चोरो, सो भणति-विज्ज साइमि, केण ते दिग्णा', सा-1
EREGAO
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(292)
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-], निर्युक्ति: [ १६५२-१७१९/१५५५-१६२३],
भाष्यं [२३८-२५३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥२८० ॥
वरणं, चोरेण भण्णति---एवं दव्वं गेण्हाहि, एवं विज्जं देहि सौ सट्टो वितिगिच्छिति सिज्झेज्जा णवत्ति तेण दिण्णा, सो चोरो चिन्तेति समणोवासओ कीडियाएवि पार्वणेच्छति, सच्चमेतति, सो साहेतुमारो, सिद्धा, इतरो सगेवेज्जो गहिओ, तेणं लोगो मेसितो, ताहे मुको, सावओ जातो, एवं णिव्वितिकिच्छेग होतव्यं । विदुगुच्छत्तिवि भण्णति, ण किर पत्रयणे दुर्गुछा कातब्वा, तत्थ उदाहरणं सडो पंथे पच्चते वसति, तस्स धूताविवाहे किहवि साधुणेो आगता, सा पितुणा भणिता-तुमं पुत्ता ! पडिलामेहिति, सा मंडिया पसाधिता पडिलाभेति, साहूणं जल्लगंघो तीए अग्घातो, सा हिदए चिन्तेति अहो अणवज्जो भट्टारएहिं धम्मो मणितो, जदि पुण फासुएणं व्हाएज्जा तो को दोस्रो होतो ?, सा तस्स ठाणस्स अणालोतियपडिकंता कालं किच्चा मगधाए राहगिहे गणियाए पोट्टे आयाता, अण्णे भगति - वाणिगिणीए गन्भगता, तेणं चेत्र अरतिं जणेति गम्भपाडणेहिं पाडेतुं मग्गति, जाया समाणी उज्झिता, सा गंधेण तं दे वासेति, सेणिते य तेणंतेण गच्छति भट्टारगं बंदतो, सो संधावारो तं गंधं ण सहति रक्षा पुच्छितं किं एतं ? तेहिं कहितं-दारियाए गंधो, तेण गंधण दिडा. भणति एसेव ममं पुच्छति, गतो, वंदित्ता पुच्छति, भट्टारतो पृथ्वभवं कहेति, भणेति कहिं एसा पच्चणुभविहिति सुहं वा दुक्खं वा ?, भट्टारतो भणति एतेणं कालेणं वैदितं इदाणिं तवच्चेव भज्जा भविस्सति, अग्गमहिसी य वारस संवच्छराणि, अष्णे भांति अट्टमे, जाय तुझं रममाणस्स पट्टी हिंसोलीणं काहिति तं जाणेज्जासि, गतो वंदिता । सा य अवगतगंधा एगाए आहीरीए गहिया, जोब्वणत्था जाता, कोमुदिवासरे माताए समं आगता, अमओ सेणिओ य पच्छंणं कोमुदिचारे ऐच्छंति, तीसे दारियाए गायसंफासो जातो, सेणिएणं अज्झो ववणेणं णाममुद्दा दसिताए तीसे बद्धा, अभयस्स कद्देति णाममुद्दा पट्टा, मग्गाहि, तेण मणूसा बारीए बढाए एकेक णीणिज्जंवि, सा
(293)
सम्यक्याविचाराः
॥२८० ॥
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-], निर्युक्ति: [ १६५२-१७१९/१५५५-१६२३],
भाष्यं [२३८-२५३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यानचूर्णिः
॥२८१ ॥
दारिया दिट्ठा, चोरिति गहिता परिणीता य । अष्णदा वाहिंगइयाहि रमति, रायणियाए पोतं बाहेति, इतरी पोतं दिती य विलग्गा, रण्णा सारियं, मुका पव्वतिया । एवंविहं दुर्गुछाफलं ॥
परपासंडपसंसाए - पाडलिपुत्ते चाणको, चंदओतेण भिच्छुयाणं वित्ती हरिता, ते तस्स धम्मं कहेंति, राया तूसटि, चाणकं पलोति, ण पसंसतित्ति ण देति. तेहिं चाणकभज्जा ओलग्गति, तीए सो करणं कारितो तेहि कहिते भणति - सुभासितंति, रण्णा तं च अण्णं च दिष्णं, वितियदिवेस चाणको रायाणं भणति कीस दिष्णं १, भणति -तुम्भीह पसंसिंत, सो भणति मए पसितं अहो सव्वारंभपवना किह लोगवतियावणगाणि करेंतिति, पच्छा ठितो, कतो एरिसगा, तम्हा ण कातव्वा ।। संभवे सो चेव सोरहओ सङ्को एवं पंचातियारविसुद्ध संमतं मूलं गुणसताणं, मज्जादातिकमं पुण पकरेंतो अतिसंकिलिङ* परिणामेण सव्वत्थ परिचयति धम्ममिति। दारं मूलं परिद्वाणं, आहारो भाषणं णिही । तुछस्सस्स धम्मस्स, सम्मत्तं ४ परिकित्तियं ॥ ॥ एवमिदाणिं सुद्धे संमते बतावि गेण्तन्त्रा, तत्थ विसयसुहपिवासाए अहवा बंधवजणाणुराएण अचयंतो बावीस परिसहे दुस्सहे सहिउं जदि न करेति विशुद्धं सम्म अतिदुकरं तवच्चरणं तो कुज्जा गिहिधम्मं, ण य वंशो होति धम्मस्स । सत्र तस्थ पढमं धूलगपाणातिवातं समणोपासओ पच्चक्खाति (सू० ) इत्यादि, धूलगपाणा वेदियादी, तेसिं मज्जा
ভল
यातिक्कमेण पातो धूलगपाणातिवातो, से य पाणतिवावे दुबिहे-संकप्पओ य आरंभओ य, संकप्पओ पच्चक्खाति, णो आरंभतो अभिसंचिन्त पिवराही ण मारेतीत्यर्थः सचराहिंप जहसतिसारंभ तोत्तिकाएं सारंमे वावती नियमा तेण ण पंच्चक्खा
(294)
सम्यक्त्वा तिचाराः
॥२८१ ॥
Page #295
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णि
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥२८॥
का मिति, सुहुमा-एगिदिया तेसि बहो अट्ठाए य अणडाए य, अहाए नाम जेण विणा धम्मववहारं लोगववहारं वा ण णित्थरति. 15 स्थूल| सेसगमणट्ठाए, एत्थवि सम्वत्थ जयति । बयपडिवत्तीए पुण वियप्पं एवमाह-पुचि ताव अहं भंते दिसणविसोहि पडि-IX
पात| बज्जामि, णो खल्लु मे कप्पति अज्जप्पभिति जावज्जीवाए अण्णीत्थतं वा सेसं जथा पुचि जाब विचीकतारणं
लाविरमणं वा इति, तदणंतरं च णं थूलगं पाणातिवातं संकप्पओ पच्चक्खामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं मणणं वायाए कारणं ण करेमि ण कारवोमिः तस्स भंते ! पडिकमामि जिंदामि गरिहामि अप्पाणं बोसिरामि । अत्यविवरणा सामाइयाणुसारेण णेया, केई पढ़ति- थूलगप्पाणातिवायं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं ण करेमि ण कारवेमि* मणसा वयसा कायसा, सेसं तह पेव, एवमादि विभासेज्जा, एवं धूलगमुसाबातादिसुवि सेसवतेसु भावेतवं , जे पुण तिविह तिविहेण भणितं एवं पडिमापडिवण्णस्सत्ति कम्मि विसंए।
एत्थ पाणातिवाते के दोसा ? वेरमणे च के गुणा ?, दोसे णातुं णिवित्ती काहिति, गुणा णातुं वेरमणणिञ्चलो भविसति, एतेणावणेण तं वयं सुई घरेहित्ति । तत्थ दोसे उदाहरणं-एक्को कोंकणओ, तस्स मज्जा मता, पुत्तो से खाओ, अण्णं दारिक मग्गति, दारिक दायिकभएणं कओवि ण लमति, कोंकणगेणं गातं-दारका दायिकमएणं ण कोईवि देति, ताहे मारे
P॥२८२॥ ववसितो, अद्दलक्षणं रमितुमारद्धो, कंडं बाहेतूणं पुत्र पेसेति-जाहि कंडं आणेहिति, अण्णं कंडं वाहेतूर्ण बप्पो पप्पोत्ति बाहरेतो है मारितो । वितिय उदाहरण-कॉकणओ अवरण्हे छेत्ताणं पच्चुवेस्खणहाए पडिओ, पुत्तो से खालओ पिङ्कजो पापियो, भब्जा
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(295)
Page #296
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान चर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
'पात
SCRESS
दीप अनुक्रम [६३-९२]
STORRECRX
&ामणिया-णियचेहि दारक, ताए पमादेणं गणियत्तितो, कोंकणओ छेचादि गओ, पितरं अमण्णेमाणो बप्पो पप्पोक्ति वाहरति ।
C. स्थू लकोंकणओ पिसाओत्तिकाउं कंडं वाहरति, तेण सो वियो मतो, सो सायगिहे आगतो, कहि, भणति-णस्थि, सोगेण मतो, प्राणातिपरगगमणं । एवमादि । इहलोप परलोए० एवमादि, जथा कालसोयरियादीणं, एवमादि पाणातिवाते अपञ्चक्खाते दोसा। इदाणिं गुणे सत्तपदितो उदाहरण पुवं वणितं । वितिय उज्जेणीदारआ मालबेहिं हरिता, सावगदारओ सूतेण कीतो, सो तेण| बिरमणं मणिओ-लावए ऊसासहित्ति, तेण मुका, पुणो भणिओ-मारेहित्ति, सो गच्छति, पच्छा पिढेतुमारद्धो, सो कुवति, रणा सुतं, सूतो सद्दावेऊण पुच्छिओ-किं एतन्ति?, सो साहति, रायाएवि भणिओ णेच्छति, पच्छा हत्थिणा भेसावितो, तहवि णेच्छति, | पच्छा रना सीसारक्खो ठविओ, ते दारगा मोयिता, थेरा समोसढा, तेसि अंतिक पध्वतितो । ततियं-पाटलिपुत्तं णगरं, जितसत्तू राया, खमो से अमच्चो, चउव्विहाए बुद्धीए संपनो सावगो वष्णओ, सो पुण रणो हितगोत्ति अण्णेसि दंडभडभोझ्याण अप्पितो, ते तस्स संतिए पुरिसा दाणमाणसंगहिता कातुं रणो य अभिमरपयोगे णियुंजंति, गहिता य भणति हम्ममाणा-अम्हे खेमसंतगा तेण चेव णिउत्ता, खेमो गहिओ, भणति-अई सब्बसचाणं खेमंकरो, किमंग पूण रमो सरीरगस्सत्ति, तहवि वझो आणत्तो, रण्णो य असोगवणियाए अगाधा पुक्खरिणी संछण्णपत्तमिसमुंणाला, सा य मगरगाधेहिं दूरोगाहा, ण य ताणि उप्प| लादीणि कोइ ओच्चिणिउं समत्थो, जो य वज्झो आदिस्सदि सो भण्णति-एनो पउमाणि आणेहित्ति, उत्तिण्णमत्तो य मगरादीहि ॥२८॥ खज्जति, आदिट्ठो य खेमो तत्थ, ताहे उद्वेतुं णमोत्थुण अरहंताणति भणितुं जदिऽहं णिरवराधी तो मे देवता साण्णेज्यं देज्जा, सागारं पच्चक्खाणं कातुं ओगाढो, देवतासाणिोणं मगरपछिडिओ वहणि पउमाति मे उत्तिष्णो, रण्णा हरिसितेण खामिओं
RSS
(296)
Page #297
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ख्यान
चूर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
SAE%
प्रत्या- 18 उवगूढो य, पडिवक्खनिग्गहं कातुं भणिओ-किं ते बरं देमि, तेण णिरुज्झमाणेणापि पयज्जा चरिता, पव्वइतो, एवमादि इहलोगे, परलोगे सुदंवत्तसुमाणुसचदीहाउयादिणो उदाहरणं उत्ररि भणिहिति । जयणाए य वट्टितब्ब-परिसुद्धजलग्गहणं प्राणात
पातदास(गोम)गधण्णादियाण य तहेव । गहिताणवि परिभोगो विधीए तसरक्खणडाए ॥१।। एवं सो सावगो धूलगपाणा
विरमणं ॥२८॥ 18| तिवातातो णियत्ति कातुं पंचतियारसुद्धमणुवालेति, गुणवेयालो नाम परिमाण, पच्छा ण समायरियव्वा ॥
के अतियारा ?, पंच-बंधो बहो छविच्छेदो अतिभारो भतपाणवोच्छेदो | बंधो दुविहो-दुपदार्ण चतुष्पदाणं च, अडाए अणद्वाए य, अणट्ठाए ण बङ्गति, अट्ठाए सावेक्खो जिरवेक्खे य, जिरवेक्खो णिच्चल धणितं बज्झति, साविक्खो जे संचरपासएण आलीप्रावणगादिसु य ज सकेति मुंचितुं वा दामगठिणा, एवं चतुष्पदाणं, दुपदाणं दासी वा चोरो वा पुनो बाण पढ़तओ तेण सविकमाण में बंधेतव्वाणि रक्खितब्वाणि य जथा अग्गिमयादिसु ण विणस्संति, तारिसयाणि किर दुप्पयचउप्पयाणि सावएण गेण्हितब्वाणि काजाणि अबराणि चेव अच्छंतीति । बहोवि तहेब, अणढाए णिरवेक्खो णियचेणं, साविक्खो पूर्व भीतपरिसेण होतब्ब, जदि ण
करेज्जा ताहे मम मोत्तूण गलिताए(लताए)दोरेग वा, एवं दो तिमि बारे तालेज्जा एवमादि विभासणं । छविच्छेदो अणडाए तहेव |णिरवेक्खो हत्थपायकपणणक्खाणं पियत्ताए, साविक्खो गंड वा अरतिं वा छिंदज्जा दहेज्ज वा, चतुप्पदो कण्णे लंछिज्जति
एवमादि विभासा । अतिभारो ण आरोवेतब्बो, पुर्व ताव एवं जा बहणाए जीविता सा मोतब्बा, अहण होज्जा अण्णा ला जीविता दुपए जथा सतं उक्खियेति अयारेति एवं वाहिज्जति, बइल्लादीणं जथा साभावियाओवि भराओ ऊणओ कीरति, हल-15 1२८४॥
सगडेसुचि पेलाए मुयति, आसहत्थी सुवि एस विधी । भत्तपाणयोच्छेदोण कातब्बो, तिक्षलहाए वा मरेज्जा: ताहे अण-|
दीप अनुक्रम [६३-९२]
... श्रावक-व्रतानां अतिचाराणां वर्णनं क्रियते
(297)
Page #298
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान चूर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥२८५॥
त हाए दोसे परिहरेज्जा, सावेक्खो वा रोगणिमितं, वायाए वा भणेज्जा--अज्ज ते ण देमि, संतिणिमित्तं वा उववासे कारावेज्जा, सीय| सम्वत्थषि जयणा, जया यूलगस्स पाणातिवातवेरमणस्स अतियारो ण भपति तथा पयतितब्ब, एवं करतेण भोगतरियादि कर्तण
अणुव्रत मनति । नवि अतिदारुणहंडो हवेज्ज अणुकंपको सदा य भवे । तह होज्ज अप्पमत्तो जथा तु णातिक्कमे पाणे | ॥१॥ एवं तु भावेज्जा-सब्बसि साधूणं णमामि जर्सि तु णस्थि संकज्ज। जस्थ भवे परपीडा एवं च मणेण चितज्जा ॥२॥
गतं पढम, इदाणि वितिय थूलातो मुसावायातो वेरमण । तस्थ थूलगमुसावायस्स समणोवासओ पञ्चक्खाति, धूलवत्थुविसओ धूलो, जेण भासिएणं अप्पणो परस्स वा अतीवोवघातो अतिसंकिलेसे वा जायते तं ण यएज्जा, अट्ठाए अणट्ठाए वा, मुहुमो उपहासखेडादी, एत्थवि जतितब्ब, भेदा पुण पंच, तंजथा-कण्णालिए० इत्यादि, तत्थ कण्णालियं जथा अकणं कर्ण भणति विवरीयं वा इत्यादि, एवं भणेतेण भोगंतराइयं कतं भवति, पदुट्ठो वा घातं करेज्जा कारवेज्जा मारेज्ज वा ११ भोमालिये अणूसरं ऊसरं भणेज्जा वा, ऊसरं वा अणुसर,एवं अप्पसासं बहुसास बहुसास अप्पसासं, अणाभवंतंपि रागद्दोसेण आभवंत भणेज्जा, एस्थवि ते चैव अंतराश्यपदोसा विभासितव्या २) एवं गवालिए अप्पक्खीरं पसंसज्जा बहुखीरं वा णिदेज्जा गुणदोसचिवज्जओ वा, एत्थवि ते चैव दोसा ३। कूडं सक्खेज्ज करज्ज, रागेण दोसेण वा लंचेण वा करेज्जा, एत्थवि ते चेच दोसा ४ । निक्खेवं| IA||२८५३॥ अवहरति मुसावादेणं, थोवं वा ठवितं भणति, एवमादि, एत्थवि ते चेव दोसा। तस्थ मुसाचादे पुरोहितो उदाहरणं जथा णमोक्कारे, ण भणज्जा, परलोए दुग्गंधमुहादी विभासेज्जा । गुणे उदाहरणं जथा कोंकणओ सावओ, मसणं भणितं घोडए णासन्ते
दीप अनुक्रम [६३-९२]
SECSRO
(298)
Page #299
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
LG
ख्यान चूर्णिः
प्रत सुत्रांक [सू.]
॥२८६॥
आहणाहित्ति, तेण आहओ, मओ, गहितो, धाराणं णीओ, पुच्छिओ-को ते सक्खी, पोडासामिएण भणितं-तस्स चेच पुचो 31 सक्खी, तण दारएम भणित-सच्चमेतंति तुहा दंडो य से मुको । परलोए सच्चबयणेण जथा सच्चमासा सुरा, तथा जयणं करेज्ज्जा, जदिवि गिही अणियत्तो, पिच्चं भयकोहलोहहस्सेसु । णातिपमत्तो तेसुवि ण होज्ज अंकिचिभणिओ य ॥१॥ किं तु बुद्धीए णिउणं भासेज्जा उभयलोगसुविसुद्धं । सपरोभयाण जं खलु ण सव्वहा पीडजणगं तु ॥२॥ तं च सच्चं पंचतियारविसुद्धं अणुपालेतबं, तं. सहसा अन्भक्खाणे इत्यादि, सहसा भणति-तुमं चोरो पारदारिओ रायावगारित्ति, तं च अण्णेण सुतं खलपुरिसेणं, सो वा इतरो वा मारेज्ज वा दंडेज्ज वा एवंगुणोसिाति, भएणं अप्पाणं वा तं वा सयण वा विहावेज्जचि, तम्हा पुवं बुद्धीए पेहेत्ता ततो वकमुदाहरे१॥ रहस्सन्भक्स्वाणं, रहस्स मन्तेंताण भणति-एते इमं वा २। रायावगारित्तणं वा मतेतीति इत्येवमादि, तनिमित्तं जा विराहणा २१ मोसोवदेसो नाम मोसं उवदिसंति, जहा पबचमोसमासणे पगारं दंसेतिति, मोसोवदेसे उदाहरण-एगेण चोरेण खर्च खणियं गंदियावत्तेहि, वितियदिवसे तत्थ लोगो मिलितो, चोरकम्म पसंसति, सोवि तस्थेव अच्छा, तस्थ एगो परिब्वायगो भणति-किं चोरस्स मुक्खत्तणं पसंसही, वाहे चोरेण विरहे सो परिग्याओ पुल्डिो -कई मुक्खो', ताहे भणति एवं करेंतो वज्झज्ज मारेज्ज वा, उवाएणं तं कज्जति जेण जीविज्जइत्ति, को उबाउत्ति , अहं कहेमि, केराडं दाणमग्गणवाउल अच्छिन्नं मग्गेज्जाहि, ताहे सो बाउलवणेणं पडिवयर्ण तव ण देहिति ताहे कालुद्देसे दाणग्गहणबाउल चेष प्रतिदिषसं भणेग्जासि-देहितं मम देहितं मर्मति बहुजणेणं बहुसुयं, जाहे भणति-ण किचि घरेमि ताहे मए सक्खि उवदिसिज्जाहि, एवं करणे ओसारिओ दवावितो या सदारमंतभेओ जो अपणो भज्जाए सहजाणि रहस्सिपरोल्लियाणि ताणि
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(299)
Page #300
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
म
-
प्रत सूत्रांक [सू.]
अण्णेसि पगासेति, ताहे सा लज्जिता अप्पगं वा परं वा मारेज्जा, तत्थ मधुरावाणियओ उदाहरणं, दिसाजनं गतो, मज्जा से ख्यान उम्भामएण सम संसत्ता, अण्णदा सो चाणियो पडियागतो, कप्पडियवसेणं अप्पणो घरं आगतो, मज्जाए भण्णति-कप्पडिया ! चूर्णिः मम वयणं करेहि मोयणं ते सुंदर दाहामि, जे आणवेसित करेमि, सा ओगाहिमगाणि वियर्ड च पिडियाए काऊणं कप्पडियस्स
लखंधे दातुं उन्मामगघरं गंतु भणति-कप्पडिया! तहिं चव घरे जाहि रक्खज्जाहि य, उन्भामएण समं मिलतीए जं किंचि बोलिय* ॥२८७||
तपि ण उम्माहिय, सा उम्भामएण समं सातुं पडियागया, कप्पडिओ णिग्गंतुं वितियदिवसे घरमागतो, तहिवसं रनिं पतिणा समं मुवंती तं पुच्छति- कह घुलिओसि एच्चिरं १, सो भणति-अत्थनिमित्त, इमं च मे दिहूं, ताहे सर्व परवदसेणं कहेति, सा चिंतेति-अहं चब पडिभिना, तीए अप्पओ मारिओ । कूहलेहकरणे अनृतदोसेण बज्झज्ज मारेज्ज वा भैरवीसु जातो, अण्णे य एवमादि उदाहरणा । एतं च भावए-कुंदुज्जलभावाणं णमामि णिच्चं च सम्बसंघाणं । सब्वेसिं साहणं चिंतेयव्वं
च हिदएणं ।। १ ।। गतं वितियं ।। सूत्र |. इदार्णि ततिय थूलगादचादाणातो बेरमण, तस्थ थूलगादत्तादाणं सेत्यादि, धूलगादत्तादाणं नाम जेण चोरसहो होइन का त परिहरितव्यं, चोखुद्धीए अप्पपि जणवयसामर्थ पच्चक्खाति खत्ने वा खले वा पंथे वा ण गहियवं, जे पुण लड्डुगादि अणणु
अवेत्ता गेइंति तं सुहम, तं पुण अदत्तादाणं दुबिह-सच्चित्तेत्यादि, एत्यवि अडाणट्ठा जहसंभवं योज्ज, दोसगुणे एकं चैव ॥२७॥ का उदाहरणं-एगा गोडी, तत्थ एगो सावओ, ते गोडिया एवं बबसिया-एकस्स बाणियगस्स रतिं परं मोसामोत्ति, सावओ णेच्छति, ट्रा इयरे ववसित एक्कं थेरि पेच्छति, आयुधं ओम्गिरिउ भणति-मा बल्ली, मारेस्सामोति, तीसे थेरीए आहाभावणं मोरपिच्छं मूले,
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(300)
Page #301
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
vभाग-5 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्यारूपान चूर्णिः
HYEG
प्रत सत्रांक [सू.]
MUSAEENA
R
दीप अनुक्रम [६३-९२]
साध्वेक्कमेक्कस्स पाए पडति, मा भट्टारया ! मारेह, तेणं विहाणेणं सब्बे पाएसु मोरपिच्छेण अंकिता, मुसित्ता गता, पमाते रनो दा कहियं. थेरी भणति-संजाणामि जदि पेच्छामि, किह १, भणति-अंकियनि, तम्मि णगरे जे मणूसा ते सहाविता, थेरीए गाया, ताहे।
गहिता, असुगाए गोट्ठीए मुस(सिय)ति, सो सावओ गहिओ, थेरी भणति ण पविट्ठो एस, अण्णो य लोगो भणति-एस एरिसक। SIन करेतित्ति, अण्णे भणंति-ते बत्तीसं गोढिगा, तेहिं कहिअ--ण एस चोरो, मुक्को पूजितो य, इयरे सासिया, सावगस्स गुणो|
इयरेसिं दोसो इत्यादि । अविय-सावगेण गोट्ठीए चेव ववसिय जदि परिमविज्जति होरति वा एवमातीहि कारणेहिं ताहे जा कुलपुत्वा तत्थ परिवसति तत्थवि ओहारगं हिंसादिएसु न देति णवि चा ताणं आयोट्ठासु ठातित्ति, सम्वत्थ जयति,उचितं मोत्तण
कलं दब्वादिकमागतं च उक्करिस । णिवडियमवि जाणतो परस्स संतं ण गेण्हिज्जा ॥१॥तं च पंचातिचारवि है सुद्धं वेरमणं, तेच तेनाहड इत्यादि, तत्थ तेनाहर्ड ज चोरा आणेत्ता पच्छण्णं चौराहत विकिणति त न गेण्डियन्वं, तत्थ |
चोरपडिच्छगादयो दोसा शतकरपयोगो तदेव तस्य कर्म तस्करः तेसिं भत्तं देति पत्थयणं वा अप्पेति वा एवमाइसु पयोगेसु ण बहियवं २। विरुद्ध ण विदिण्णं गमणागमणं गामाईहिं तं जो अतिकमति अदिण्णादाणातियारे बद्दति ३। कूडतुलाए महल्लीए घेतु धुडीलयाए पडिदेति, माणेवि पत्थगादिणा खुडुलएणं देति महल्लएण गेण्हति, पडिमाणेवि विभासा । तप्पडिरूवं कूडरूवे करेइ | सुबनवितए दीणारे करेति,तेल्लस्स रुक्खतेल्लादि घते वसादि सुवनस्स जुत्तिसुवनादि एवमाति विभासा । एते परिहरतेण अदिण्णादाणवेरमणमणुपालियं भवति । इणमवि चिंतेयब्वं अदिण्णदाणेदिणिव्व (दाणाउ णिच्च) विरयाणं। समतिणमतिमुत्ताणं णमो गमो सव्वसाहणं ॥१॥जतियं गयं ।
(301)
Page #302
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्या -
सूत्र
प्रत सूत्रांक [सू.]
इदार्णि चउत्थं, तत्थ समणोवासओ परदारममणं पच्चक्खाति सदारसंतोसं वा उवसंपज्जति, स्वदार-स्वकलत्रं परदारं-परकलत्रं यं स्थूलख्यान- चसे य परदारे दुबिहे-ओरालिए बेउब्बिए य,ओरालिए दुविहेन्तेरिको माणुसे य,विउम्बिए देवाण वा माणुसाण वा,एतप्पसंगो पुण-संद-
I N चूर्णिः
| सणेण पीती पीतीओ रईईओ वीसंभो । वीसंभातो पेम्म पंचविहं वड्डए पेम्मं ॥११॥ ति । सदारणिरतेण य होय । ॥२८९॥ अविरयस्स दोसा-मातरं वा धूतं वा भगिणिं वा गच्छेज्जा, तत्थ उदाहरणं-गिरिणगरे तिष्णि पावासियादो, तातो उज्जेतगतिया
तो वाणिगिणीओ चोरेहिं गीताओ, पारसकूले विक्कीताओ, तासि पुत्ता डहरका उज्झितका घरे, तहेव मित्ता जाता, वाणिज्जाए गया पारसकूलं, तातो य गणिताओ कयातो, सदेसकाओत्ति तासि भाडि देति, तेवि संपत्तीए सयाहिं सिज्जाहिं गता, एक्को य| | साचओ, तेहिं ताओ अणिच्छितो णेच्छंति,महिला अणिच्छिणातुं तुहिक्का अच्छति, सो भणति-कओ तुम्भ आणीयाओ?, ताए कहियं, जाते परिहरिया, तेण सावएण तेसि कहियं-दुरात्मा! तुम्भे सयाहि मायाहि समं वोच्छा, मोइतातो, अद्धितीए अप्पाणं
मारेतुमारद्धा, धम्मो कहिओ, पव्वतिया य१॥ वितियं-धूयाए समं वसेज्जा, जहा गुठिवणीए भज्जाए वाणियतो दिसाजतं गतो, साधूया य जाया, सा य दिण्णा अन्नत्थ णगरे, सो पडिएन्तो तमि णगरे वासारने ठिओ, धृयाए समं घडिओ, यत्ते वासारते गतो
सभवणं, धूयाकहणं, दारियाए पिता आगतोनि दारिया आणिज्जतु जाव पितरं पेच्छतित्ति आणीया, तं दट्टुं विळचा णिवत्ता,
तीए अप्पा मारितो, इयरो पव्वतितो २॥ ततिय-एगा गोट्ठी, एत्थ एगस्स गोहिल्लयस्स माया उब्मामति, तो सा रति उम्मा-॥२८९।। 2मतिलस्स पास जाति, याताए गोट्ठीए दिडा, तहिं रचिंण सम णाता, तहिं प्राप्ता अणियमिछल्लयं पुत्तस्स परिवाडी जाया,पाविओ
विस्तामणतेणं तस्स च्चयाणि पोताणि, विभाए भज्जाए से पोता दिट्ठा, पुट्ठो कतो एते', कातु तो किरिया ?, विलक्खो जातो,
***RAWAKESPEC*
दीप अनुक्रम [६३-९२]
AK
(302)
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
मूलांक
[.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२३८-२१३]
अध्ययनं [६] मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], निर्युक्तिः [ १६५२-१७१२/१५५५-१६२३.
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥२९०॥
निव्वेगणं पञ्चतिओ ३ ॥ चउत्थं एगा गणिया, सा पढमं चैव गुब्विणी, पश्या जाहे ताहे मा थोवं भाडि लंभिस्सामिति [ साय जमलपच्या दारकं दारियं च गणिया य जा अप्पमूतिया सा बहुतरकं मोछे लभति, चिंतेति मा अतिथोवं लभीहामि, ] तो एते डिक्रुका उज्झामि पुग्वे नगरहारे दारिया अवरे दारतो परिडवियाणि, परिवेत्ता ताव पडियरिया जान तम्मि नगरे दो वाणियगा मिचा, तेसिं भवियव्वताते एक्केण दारतो दिट्टो एक्केण दारिया, पडियरिया दासी गता, जाहे ताणि महंतीभूयाणि ताहे तेहिं वाणियएहिं परप्परं वरणं कथं मम दारयस्स दारियं देहि, दिण्णा सा भगिणीभूता, ताहे सो दारतो गोट्टीए मिलितो, तं दारियं नाढायति, अण्णया सो दारतो ताए गणियाए जा से माता ताए समं पसतो, वेणं तस्स दारतो जातो, सावि गणियादारिया छड्डियामित्ति पव्यतिता, ओहिणाणं से समुप्पण्णं । अनया भिक्खं हिंडती गणियाघरं गता, जा आभोगेति ताहे सम्बोहेमित्ति तं दारयं गहाय परिवहति भाया पुतो दियरो मज्झ तुमं जो तुमं पिया होति । सो मे पिता य भाया पति जणणी सासु सवित्ती मे ॥ १ ॥ संबुद्धो पन्चतितो ॥ अहवा हत्था वा से छेज्जेज्ज अन्नाओ वा कारणओ करिज्जेज्ज वा, जह मो सोमिलिओ वाणियदारतो, दोण्ह वाणियगाणं घराणि समोसियकाणि, सो सोमिलितो पासादाणं दुकयाणं कहुं दातुं ओयरति, तस्स सुहाए समं वसति, एवं बच्चति कालो, अण्णया तेणं वाणियएणं नायं, अरे घट्टयं कहूं, णूर्ण कट्ठेणं कोई चडति, संसरंतो पडियरिओ, गहिओ यच्चकुबे छूढो, स तत्थत्थो मीढं खाति सुतं च पीवति, अण्णया वच्चघरयं वासारचे सोधिज्जति पाणियाणुसारेणं णिमणें अप्पणिज्जं वरं गतो, दिट्ठो पास णामेति दुभिगंधतो, तेणं संवादितो, ताहे बेज्जेहिं पोराणरूवो कतो समाणो पुणो पुणो तं देव अविरइयं पत्थेति एवं विभि वारा, चउत्थियवारा बच्चचरण संकलबद्धो काले मता । एते दोसा
(303)
तुर्ये स्थूलमैथुन
विरतिः
॥२९०॥
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
K
मथन
प्रत सूत्रांक
[सू.
प्रत्या
इहलोइए, परलोइए य गपुंसादि भवंति । णियत्तस्स गुणा, इहलोए- कच्छे आभीराणि सड्ढाणि, आणंदपुरतो धिज्जातिओर्ये स्थूलख्यान दरिदो भूलिस्सरे उबवासे ठितो, वरं मग्गति चाउब्बेज्जस्स भत्त मुलं देहि, वाणमंतरेण भण्णति- कच्छे सावगाणि चूर्णिः मज्जपतियाणि ताणं भलं करहि, अक्खयं ते फलं होहिति, दो तिमि वारा भणितो गतो कच्छं, दिलं ताण भत्तं दक्खिणं च,
विरति: ॥२९॥
मणति-साहह किं तवच्चरणं ? जे तुम्भे देवस्स पुज्जाणि , तेहिं भणियं एगंतरं मेहुणस्स णिवत्ती कता, अण्णया कहवि अम्हं संजोगो कतो, तं च विवरीयं समाचरितं, जंदिवसं एगस्स तंदिवसं चितियस्स पोसहो, अम्हे घरं गयाणि कुमारगाणि चेव,8 धिज्जातितो संबुद्धो । अहवा मुरंडयंतःपुरमहत्तरं, जथा मुरंडेणंतेपुरवालो अपुमंसो दूतो पेसितो, कयकज्जो णियत्तो, पूजितो, भणितो- अंतेपुरं पविस, भणति-णवि किंचि अहं धर्म जातो, भणति-कई आइक्यति ?, वथिल्लावद्वितदेवताए वरो दिण्णो एवमादि । इहलोइए पहाणपुरिसचणं देवत्ते पहाणातो अच्छरातो मणुयत्ते पहाणाउ मणुस्सितो विउला य पंचलक्षणा भोगा पियसंपयोगा य आसण्णसिद्धिगमणं चेति । जयणा पुणो- वज्जज्जा मोहकरं परजुवतीदंसणादि सबियारं । एतेसु
सयण्णजणो चरित्तपाणे विणासेति ॥१॥ तं च पंचातियारसुद्धं अणुपालेयवं, सदारसंतुट्ठस्स अंतिल्ला तिष्णि, परदारद्र विवज्जगस्स पंचवि सयपरिग्गहियअपरिग्गहियातो, अण्णो भणंति-सदारसंतुट्ठस्स अंतिल्ला तिमि सदारणियत्तस्स पंचवि, तत्थ |
सोदामि वा गच्छतो जच्चिरं कालं अण्णेण परिग्गहिता जावतं पूरति ताव परदारतणं, तेणं च ण कप्पति । अपरिग्गाहिता णाम |
जा मातादीहिं ण परिग्गहिता, अच्चि कुलटा य सा, अण्णे पुण भणंति-देवपुत्तिया घडदासी बा, एवमादि । सा पुण भाडीए वा दिअभाडीए वा गच्छति, जो भाडिए गच्छति तस्स जदि अण्णणं पढम भाडी दिना सा ण यद्दति परनियत्तस्स गंतुं, जा पुण
दीप अनुक्रम [६३-९२]
AHRESSEShe
(304)
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यानचूर्णिः
पञ्चमे परिग्रहप्रमाणं
प्रत सुत्रांक [सू.]
॥२९२॥
SACRORECR
| अमाडीए गच्छति सा जति अण्णणं भणति-अज्ज अहं तुमए समं सुविस्सामि , ताए य पडिच्छितं, तस्स ण वमृति अंतराइयं काउं। अंग मुक्त्वा सेसमनंग, क्रीडा उवभोगः, आसकतोसकाओ पडिसेवणं ण वट्टति काउं । परवीवाहकरणं नाम कोति अभिग्गहं गेहति- धूया णवि मम वसो तं अणुपालेति, कोति पुण एवं अभिग्गहं अभिगण्हति-धूयाणवि मम बद्दति, सो तं अणुपालेति, कोति पुण एवं अभिग्गहं गेहति-णियल्लगाणं मोक्तुं अण्णसिं न कप्पति, ण वट्टति सावगस्स भणिउं- महंती दारिया | | दिज्जउ, गोधणे वा वसभो छुब्भउ एवमादि । कामभोगतिव्वाभिणिवेसो णाम अच्चंततिबज्झवसायी तच्चित्ते तम्मणेत्ति, ण | वट्टति सावगस्स तिब्वेणं अज्झवसाणेणं पडिसेविउ, दिया बंभचारी रातो परिमाणकडेण होतब्ब, दिवसओवि परिमाणं एवमादि। | विभासा, एवं विभासेज्जा, चिन्तेतेवं च णमो तेसिं जेहिं तिविहमच्चतं । चत्तं अहम्ममूलं मूलं भवगम्भवासा-1 णं ॥१॥चउत्थं गतं ।
इयाणि पंचम, तत्थ अपरिमियपरिग्गरं इत्यादि, से य परिग्गहे दुबिहे-सचित्ते अचित्ते य, विभागतो पुण णेग-1 विहो- घणधनखेत्तवत्थुरुप्पसुवष्णकुषितदुपदादिभेदेण, तत्थ धणं-मंडं, तं चउविहं-गणिमं धरिमं मेज परिच्छेज्ज, तत्थ गणिम14 है पूगफलादि परिमं मंजिष्ठादि मेज लक्खायततेल्लादि पारिच्छेज्जं परीक्ष्य मूलतः परिच्छिज्जते तच्च मणिपद्महीरकादि,धणं सालिको
| हवादि,खेचं सेतुं केतुं उभयं च,सेतुं जत्थ सेकजं भवति,केतुं इतरं उभयं सेकजमितरंच,वत्थु खातं ऊसितं उभयं च, खातं भृमिघरादि, हाऊसितं जे उच्छएम कयं,उभयं खातं ऊसितं च,रुप्पं सुवचं प्रतीतं.उपलक्षणं चेदं एवंजातियाण,कुवियं-परोक्क्ख रकणगपारसलो-
हीदीहकडाहगादिणाणाविहं, दुपदं दासीदासमुगसारिंगादि, अपदं वाहणरुक्खादि, चतुष्पदं आसहत्थिगजादि एवमादि, अड्डा
दीप अनुक्रम [६३-९२]
सूत्र
२९॥
-4848
(305)
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- गढवेयालणेण जहासत्तीए वयं गेहति, जावइयस्स परिग्गहस्स आगारो कतो ततोऽविरतो सेसाओ अणतातो परिग्गहातो चिरतो, पञ्चमे ख्यान- तेण सो बिरयाविरतोचि भन्नति । एवं पाणवहादिसुवि विरताविरयविभासा । परिग्गहे असंतुहस्स दोसा संतुहस्स गुणा, तत्वचूणि उदाहरणं-लुद्धणंदो, कुसीतो उद्दीहिं विक्कियातो, णिमंतणए गमण, पुत्तेहिं पेच्छ्यिातो, अरक्खिजंती भग्मा, लोएण दिवा
प्रमाण ॥२९॥ारणो कहित, लुवर्णदेणं, पाया भग्गा, सावतो पूजितो, एवं जथा णमोक्कारे । लोहुदाहरणो बितियं- वाणिगिणी वाबिया,
रयणाणि विक्किणति, सड्डेण भणिया-एच्चितो पढिकतो नत्थि, अचस्स गीयाणि, तीए भणिय-जं जोग्गं तं देहि, सो तुच्छ दादेति, दइओ आगतो पुच्छति, तीए भणिय अमुगत्थ चहयाणि, सो रमो मूलं गतो, एरिसे अग्पे वतगाण एतेसि मणिरयणाणं
एएण एत्तियं दिणं, सो विणासितो, सावगेण णेच्छितंति पूइतो एवमादि । जयणा पुण इमा-भावेज्जा संतोसं गहियमा
दीणि अयाणमाणेण । एवं (च जाणमाणा) गहिस्सामो ण चिंतेज्जा ॥१॥ तं च पंचातियारविसुद्धं । ते य खेते दावत्थुपमाणादिसु जे पमाणं गहितं तं ण बतिक्कमियव्वं, अहवा जं पणं गहितं ततो अहितं धारणिओ अप्पेज्जा पडिमुल्ले दा
देज्जा, असमत्थो तं धणादि काउं ताहे खत्तं वा वत्थु वा देज्जा । एवं पविरलवित्थरो विभासियब्बो, सो य सावगो चिंतेन्जा५) जहा मए दवपमाण जे गहितं तं अज्जापि न पूरेति, एसो य धारणितो तस्स ठाणे इमं देति, तेन सोपि किल दब्बलेक्खगे । लव इमं देति, तं ममापि किल दबलेक्खगे चेव इम, एवं खेत्तवत्थुपमाणातिक्कमणं कुणंतो आतियरति, एवमादिविभासा, ॥२९॥
सव्वस्थ एसो विभागो उ० स च पुणो सयसहस्से वा कोडीए वा सव्वं गणिज्जमाणं तस्स, एस च एक्को अतियारो, विभाग पदे पदे अतियारो विभासियम्बो, एयाणं मलप्पमाणे गहिते संवबहारं पिवासयाणं कयविक्कयस्स दिवे दिवे परिमाणं करोति ॥
SHESARITRA
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(306)
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] - पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
RECROSS
सत्राक
[सू.]
प्रत्या- च रात्रिं न करेति तस्स पच्चक्खाति, आरंभपरिग्गहदमणवाहणादिएसु परसु विभासियब, जथाविहि एत्थ भावणा-जहषष्ठं दिग्वतं रुयान जह अप्पो लोभो जध जध अप्पो परिग्गहारंभो। तह तह सुहं पबति धम्मस्स य होति संसिद्धी ॥१॥ चूर्णिः
धन्ना परिग्गरं उजिमऊण मूलामह सब्धपावाणं । धम्मचरणं पवन्ना मणेण एवं विचिंतेज्जा २॥अणुब्बता समत्ता । ॥२९ ।
अहणा गुणब्बयाणि, एषामणुव्रतानां भावनाभूतानि त्रीणि- दिशिजतं उपभोगवतं अणस्थदंडवतं, तत्थ दिसासु बता |दिसिव्वतं, तत्थ दिसि पाणादिवायरमणगुणनिमित्त, सेसाण य विभासा, तं उई एवाणिय (रेवतिय) नागपव्ययादिमु अहेल इंदपदकबातिमु तिरिय चउद्दिर्सि जोयणपरिमाणेणं जत्तियं अणुपालति तं गेण्हति, ततो परं जे तसथावरा तेर्सि दंडो णिक्खित्तो।
मवतीति, जतो-तत्तायगोलकप्पो पमत्तजीयो णिवारियप्पसरो। सम्वत्थ किं न कुज्जा पापं तक्कारणाणुगतो? IN0१॥ एते गुणदोसे णाऊण जतियच्वं । एवं-जत्थंत्थि सत्तबीला दिसामु अह पेलवं तहिं कज्ज । कुज्जा णातिपसंग, सेसासुवि सत्तिओ मतिमं ॥१॥ तस्स य पंचइयारा,
उ पमार्ण गहितं तत्थ जदा विलम्गो भवति, जामा तस्स उवरि मक्कडे पक्खी वा वयं आभरणं वा घेतु बच्चेज्जा एत्थ मे ण कप्पति पयत्तेउं, जाहे पडियं अण्णेण वा आणीयं ताई कप्पति , एवं पुन अट्ठावते हेमकूडसमेतसुपतिओज्जितचित्तकूडअंजणगमंदरादिसु पब्बएसु भवेज्जा, एवं अहिवि कूलादिस विमासा, तिरियपि परिमाण तणातिचरियवं, तिबिहेणवि करणे बुद्धी ण कायव्या, का पूण सा खेत्तबुद्धी, तेण ॥२९॥ पुग्वेण अप्पतरं जोयणपरिमाणं कयं अवरेण बहुतर, सो पुब्वेण गतो जाव तं परिमाणं जाच तत्थ एवं मंडं ण अग्पति परेण है। अग्पतित्ति ताहे पुन्यदिसिञ्चएहितो जाणि अमहियाणि ताणि अवरदिसाए ओसारेत्ता पुग्वेणं नेतुं गच्छति, एस खेत्तबुद्धी, IP
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(307)
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
॥३०
[सू.]
सूत्र
दीप अनुक्रम [६३-९२]
प्रत्या
IMI सियत्ति बोलीणो होज्जा णियत्तियध्वं । सतिअंतरद्धा णाम सरणं स्मृतिः अन्तर्धान जा तं विस्सरितं पमाणं होति, जति वीसा-187 सप्तम ख्यान | रितं न गंतवं, जाए दिसाए सम्बातो वा, अहवा सती गाम लाभतो. ताए दिसाए अते करेऊण अण्णस्स हस्थे विसज्जेति, सत-2 भोगोपचूर्णिः पत्थितस्स लाभहूँ पण्णन्ति ण वति, अईमाणाए गतो जे परेण लद्धं तं ण लएति उरेणं जं तं लएतित्ति । किं च चिंतेयव्यंट्र मोगमानं
च णमो साहणं जे सदा णिरारंभा । विहरति विष्पमुक्का गामागरमंडितं वसुहं ।। १॥
उवभोगपरिभोगव्ययं णाम भुज पालनाभ्यवहारयोः सतिं उबभोगो पुणो पुणो परिमोगो, वत्थाभरणादीणं पुष्पतंबोलाईण य,एवं विभासा, सो दुविहो-भोयणतो कम्मतो य,भोयणतो सावगेण उस्सग्मेणं सावज्जभोयणं वज्जेयव्यं, असति सचित्तं परिहरितवं ला असति बहुसावज मज्जमंसपंचुंबरमादि, गुणदोसा विभासितव्वा, सम्वत्थ जयणाए बट्टितव्यं, भोगुवभोगे मोत्तुं जेणऽसमत्थो । बुधोऽधुणा तेहिं । अवसेसे वज्जेज्जा बहुसावज्जे य सविसेसं ।। १ ।। पुष्फफलेहिं रसेहि य बहुतसपाणेहिं अज-13 तण्हाणेहिं । मज्जेहि य मंसहि य विरमज्जा अत्तहियकामो ॥ २ ॥ जत्थथि सत्तवीला उपभोगो पेलबो तु
तहियं तु। कुज्जा णादिपसंग सेसेसुवि सत्तितो णिउण।।३।। एयस्स अतियारा सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अवोलियन । दुबोलिय० तुच्छोसहि, तत्थ उस्सग्गेण सावतो जत्थ सचिचासंका भवति तं सचित्रं, ते ण सं जति, इयरी मूलकंदबहुवीयाणि
अल्लगपुढविकायमादीणि, ण चयंतो परिमियाण अभिग्गहविससं पगरेति १-२॥ तथा अवोलितं ण वहृति, इसित्ति अबोलित३, दुप- २९ उलितं सचित्तपडिबद्धं जथा खठरो विहेलओ पकाणि फलाणि, अचित्तं कडाई सचिचातो मिजातो एवमादि ४ तुच्छोसही ण वति जेण बहुणावि आहारो ण भवति, एस दोसो । अहवा जदा किर अचित्तो ण होज्जा तो भत्तं पच्चक्खातितव्वं, ण चरति डू
(308)
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
सप्तम
काभोगमान.
प्रत सूत्रांक [सू.]
दीप अनुक्रम [६३-९२]
प्रत्या- ताहे तुच्छाओ ओसहीतो परिहरति, जहा मुग्गसिंगातो चणगादिसिंगातो इच्चादि,तत्थ दोसे सिंगरखातो उदाहरणं, खेचरक्ख-12
तो मुग्गसिंगाओ खाति, राया णिग्गतो, खायंत पेच्छति, ततो पडिनियत्तो तहवि खायति, वलयाणं कूड़े कयं, रमा पोई फलाचूर्णिः
वियं कत्तियातो खत्तियातो होज्जा,णवरि फेणो,किंचिविणत्थि,अहवा केसिंचि केति अतियारा जहासमवं जोज्जा, अभिग्गहबिससेण॥२९६॥18|वा होज्जा । इमं च अच-भोयणतो असणे अणंतकायं अल्लगादि मंसादि,पाणमि रसगवसमज्जादि,खादिमे उदुम्बरवडापिप्परिपिलक्सु-
मादीसु महुमादिसु सादिमे सतितो वयं,जो पुण अभिग्गहविसेसेणं उवभोगपरिभोगविहिपरिमाणं करेति सो उम्बलणियाबणविहि-र परिमाणं करति,एवं दंतवणविहे य फलविहे य अभंगणतेल्लविहे य,उबलणबिहे य एसि मज्जणजलवत्थवि० विलेवणविही आभरण-11
विहे पुप्फविहे धूवविहे,मोयणविहिपरिमाणं करेमाणो भिज्जाविहि परिहीखज्जगविही सूयविही चोप्पडविही माहुरगविही परिजेमणग-४ सूत्र | विही पाणियविही सागविही एवमादिविहि महुमांसविहीपरिमाणं करंति, अवसेसे पच्चक्खामित्ति । कम्मे अकम्मो ण तरवि राजीविउं ताहे सावज्जाणि परिहरउ बहुसावज्जाणिवा, तत्थ पन्नरस कम्मा ण समातरियव्या, इंगाले दाहिऊण विक्किणति, तत्पर | छक्कायाण वधो, तत्र वदृति, अहवा लोहकारादि १ वणकम्मं जो वर्ण किणति, पच्छा रुक्खे छिदिऊण जीवति तेण मुल्लेणं, एवं पं(ख)डिगादीवि पडिसिद्धा भवंति २ सागडिगनेणं जीवति तत्थ एवं वहादी दोसा ३ भाडगकम एस णं भंडीवक्खरेण भाडएणं बहति पराय, अमाण वा भाडएणं सगडबलरवमादि ४ फोडितो उक्खणणं, हलेणवि भूमी फोडिज्जति ५ दंतवाणिज्जे पुलि-II दाणं मोल्लं देति पुज्यं चेव दन्ते देहित्ति,पच्छा ते मारेंति अचिरत्ति सो वाणियतो एहितित्ति, एवं मग्गे रणे संखाणं जीवति,एवं चमरादीण,ण बद्दति,पुयाणीत किणंतिविलक्खावाणिज्जेवि एस चेव गमगो,तत्थ किर किमिगा हाँति,किमिया किं(ण)रुधिरस्म वा
२९५
(309)
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ख्यानचूर्णिः
प्रत सुत्रांक [सू.]
प्रत्या- चिसवाणिज्ज तेण बहुगाणं विराहणाटरसवाणिज्जं कल्यागत्तणं, तत्थ सुरादीहिं बहु दोसा मारणअक्कोसणं एवमादी९ केसवाणि- अनर्थदण्ड
जं दासादी घे विकिणति१० जन्तपीलणकंमं तेल्लियजंतं उच्छुआदीणं चकादी, ण वद्दति ११ जिल्लंछण वड़ितकरण १२ वणदव| विरतिः
४ देति, तत्थ रक्खडा, उत्तरापहे दव पच्छा तरुणगनणं उद्वेतित्ति वा,तत्थ सयसहस्साण वधो १३ सरसोसेत्ति तलागादी पच्छा वा-18 ॥२९७||
&| विज्जति १४ असतीतो पोसेंता भाडिं लएति १५ । एवमादी ण यति । तथा-सव्वेसिं साधूणं णमामि जेणाहियंति माणातूण । तिविहेण कामभोगा चत्ता एवं विचिंतेज्जा ॥१॥
___ अनर्थाय आत्मानं येन दंडयति सो अणत्थादंडो, सो य सव्वत्थ जोएतब्बो, जो निरत्थएणं दंडिजति कम्मबंधे ण ते -वकृति, सो चउम्बिहो अवमाणं, जहा तस्स कोंकणगस्स, वाये वायंते चिंतति-किह वल्लराणि उज्झज्जा, पमादायरित कसाएहिं णस्थि काति बुद्धी अप्पणो परस्स वा, तेण अणत्थाए ण वट्टति, एवं इत्थिकहादिविभासा, इंदियनिमित्तं च विमासा एवमादिप्पमादा, हिंसप्पदाणं आयुधं अग्गी विसमफलमादीणि, ण वकृति सत्तधायगाणि दातुं, पावकम्म ण बट्टति उवदिसिउं जहा (किस) छिचाणि एवं जहा कसिर्जति गोणा एवं दमिज्जति तहा 'अलं पासायधंभाण' इत्यादि, एसो उ अणुवउचाणं भवति, तम्हा सब्वस्थ उवउत्तेणं भवितव्वं । सव्ववएसु जहासंभवं योज्जोयमिति दोसगुणविभासा कायव्या, जतो-अटेण तं ण बंधति | जमणतुणेति थोषबहुभावा । अढे कालादीया णियामगा ण तु अणट्ठाए ॥१॥ तम्हा जदियव्य, कज्ज अहिगिच्च
॥२९७॥ सूत्र गिही कामं कम्मं सुभासुभ कुणति । परिहरियव्वं पावं णिरत्यमियरं च सत्तीए ॥ १॥ खेत्ताई कसह गोणे पावमह एमादि सावगजणस्स । उपदिसिउं जो कप्पति जाणियजिणवपणसारस्स ॥२॥ तस्स पंचइयारा कंदप्पेत्ति
दीप अनुक्रम [६३-९२]
ॐSAX
(310)
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- ठा अनहासे वा ण वमृति, जदि णाम हसियध्वं तो इसित्ति विहसितं कीरति१ कुक्कृतियं ण तारिसाणि भासति जहा कोगस्स हासन-1 अनर्थदण्डख्यान
पिज्जति, एवं गतीए ठाणेणं वा एवमादि विमासा २ मोहरिओ मुद्देण अरियणो जहा कुमारामच्चेणं, रनो तुरियं किंपि कज्जं जा-17 विरतिः चूर्णिः
|यं को सिग्घओ होज्जति !, कुमारामच्चा भणंति-अमुगो चारुमडो, पत्थविओ, कुमारामच्चस्स पदोसमावमओ, एएण एवं कयंति, ॥२९८॥
तेण रुद्वेण कुमारामच्चो मारिओ । अहवा एगो राया, देवी से अतिप्पिया कालगया, सो य मुद्धो, सो तीए वियोगदुक्खितो ण सरीरहितिं करेति, एवं जहा णमोकारे अमच्चकहाणगे, तेण धुत्तेण वायालेण महेण अरी आणितो, एवमादि ३ संजुत्तधिगरणगं| सगडाणि जुत्ताणि चेव सह उवगरणेहि अच्छंति पच्छा अहिगरण सत्ताण, पुव्वं चेव कए कज्जे विसंजोइज्जति, पच्छा न दुरुस्संति, अग्गीवि जाहे गिहत्थेहि उद्दीबति ताहे उद्दीवउ, गावीओ धणे ण पसरावेइ पढम, हलेण वा ण वाहेइ पढम, एवं वावीहलपरशुमादि विभासा एवमाई५ एसा विही,उवभोगातिरित्तयं नाम जदि तेल्लामलए बहुगे गेण्हइ तो बहुगा ण्हाणया बच्चति तस्स लोलियाए, अण्णेवि अण्हाचयगा पहायति पच्छा पूयरगआउवहो, एवं पुष्फतंबोलमाइविभासा । एवं बद्दति विधी सावगस्स उपभोगे हाणे घरे व्हाइतव्वं, नस्थि तेल्लामलए घंसेत्ता सव्वे माडेऊण ताहे तलागादीणं तडे निविट्ठो अंजलीए हाति, एवं जेसु य पुष्फे कुंधुमादीणि ताणि परिहरति, एवमादि विभासा, चिन्तेयव्वं च नमो असत्थगा (ग्गिसत्था)ईजेहिं पायातिर साहहिं वज्जिताई णिरत्यगाई च सव्वाई॥१॥ एते तिमि गुणवया।
इयाणि सिक्खावताणि, शिक्षा नाम यथा शैक्षकः पुनः पुनर्विद्यामध्यसति एवाममाणि चत्तारि सिक्खापयाणि पुणो पुणो है। अन्भसिज्जति, अणुब्बयगुणब्वयाणि एकसि गहियाणि चेव, एताण सिक्खावयाणि सामातिय देसावगासियं पोसहोचवासो अहा-1
दीप अनुक्रम [६३-९२]
+GRICIN
IN२९८॥
(311)
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
सूत्र प्रत्या- संविभागो, तत्थ सामातिय नाम सावज्जजोगपरिवज्जणं णिरवज्जजोगपरिसेवणं च, तं सावएण कई काय?, सो दविहो-शिक्षावतेषु
सामायिक IPाइपित्तो अणा पत्तो य, जो सो अणिविपत्तो सो चड्यघरे वा साधुसमीवे वा घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ या वीसमति।।
अच्छति वा णिव्यावारी सम्वत्थ करति सब, चउसु ठाणसु णियमा काय, तंजहा-चतियघर साहुमूले पोसहसालाए वा घरे
वा आवासं करेंतोत्ति, तत्य जदि साहुसगासे करेति तत्थ का विही?, जदि पारंपरभयं णस्थि जइवि य केणइ समं विवादो ॥२९९॥
णत्थि जदि कस्सति ण धरेति मा तेण अंछवियंछियं कटिज्जति, जदि धारणगं दट्टण ण गिण्हति मा पडिभज्जिहि,जति य वाचार ण चावारेति ताहे घरे चेत्र सामातियं काऊण उवाहणातो मोतूणं सचित्तदवविरहितो वच्चति, पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाए उवउत्तो जहा साहू भासाए सावज परिहरंतो एसणाए कट्ठ लेटुं वा पडिलेहित्तु पमज्जित्तु एवं आदाणणिक्वेवणे खेलसिंघाणे ण विगिंचति, विगिंचिन्तो वा पडिलेहिय पमज्जिय चंडिले, जत्थ चिट्ठति तत्थ गुत्तिणिरोध करेति,एताए विहीए गंता तिषिहेण णमिऊण साधुणो पच्छा साधुसक्खियं सामातिय करेति-करेमि भंते ! सामाइयं दुविहं तिविहेणं जाब साहू पज्जुवासामिति | काऊज, जइ चतियाई अस्थि तो पढमं वंदति, साहणं सगासातो रयहरण निसज्ज वा मग्गति, अह परे तो से आग्महितं रयहरणं | अस्थि, तस्स असति पोत्तस्स अंतणं, पच्छा इरियाबहियाए पडिकमइ, पच्छा आलोइत्ता यंदा आयरियादी जहारायणियाए, पुणोवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहेत्ता णिचिट्ठो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेइएसुवि, असइ साहूचेइयाणं पोसहसालाए समिहे वा, एवं सामाइयं वा आवस्सयं वा करेइ, तत्थ नवरि गमणं नस्थि, भणइ-जाव णियम समाणेमि । जो इविपत्तो सो किर ऐतो सचिडीए एइ तो जणस्स अत्था होति, आढिता य साहुणो सप्पुरिसपरिग्गहेणं, जति सो कयसामातितो एति ताए आसहत्थिमादि
दीप अनुक्रम [६३-९२]
रा२९९
(312)
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- 18जणेण य अहिगरणं पवति ताहे ण करेति, कयसामातिएण य पाएहिं आगंतब्वं तेण ण करेति, आगतो साहुसमीचे करेति, शिक्षात्र ख्यान
जदि सो सावतो ण कोति उद्वेति, अह अहामदउत्ति पूया कया होहित्ति भणति ताहे पुष्बरतियं आसणं कीरति, आयरिया उहिता | सामायिक चूर्णिः
| अच्छति, तत्थ उद्रुतमणुटुंते दोसा भासियव्या, पच्छा सो इडिपत्तो सामातियं काऊण पडिकतो बंदित्ता पुच्छति, सो य किर | ॥३०॥18| सामातियं करेंतो मउड ण अवणेति, कुंडलाणि णाममुई पुष्फतंबोलपावारगमादि बोसिरति, अण्णे भणति-मउडपि अवणेइ, एसा
| विधी सामातियस्स । णणु जदि सो पंचसमितो तिगुत्तो जहा साह तहा पण्णितो तो किं तिविहं तिबिहेण ण कीरति इत्तिरिय सामातियं, उच्यते, ण करेति, कीस', तस्स पंचसमियत्तणपित्तिरिय ण आवकहियं, साहुस्स पुण आवकहितं,तस्स य पुवषवत्ता
आरंभा गिहे पबट्टति, तो सो ण चोसिरति सातिज्जति य, हिरण्णसुवण्णादिसु ममत्तं अस्थि चेव तेण तिविह तिविहेण ण पठति। हामं च गाथासुतं पडुच्च साहुस्स य तस्स य विसम-सिक्खा दुविहा (१९०) गाहा, सिक्खा दुविहा-आसेवणसिक्खा य१
गहणसिक्खा य२,साहू आसेवणं सिक्खं दसविहचकवालसामायारि सव्वं सब्बकालं अणुपालेइ, सावतो देस इतिरिय अणुपालेति, गहणसिक्खं साहू जहणणं अट्ठपवयणमायातो सुत्तओवि अस्थतोवि उकोसेण दुवालसंगाणि, सावगस्स जहष्णेणं तं चेव उकोसेणं ५ छज्जीवणिकार्य सुत्ततोवि अस्थओऽवि, पिंडेसणज्झयणं ण सुत्ततो, अस्थतो पुण उल्लावेण मुणदि १, अपिच गाथासूत्रप्रमाणात वैषम्यमेव सामातियंमि तु कए (२०) गाथा, श्रावकः सामाइके कते समणो इव, यदेतद्वचनं श्रवण इव श्रावको भवति, एसा हि एकदेसोपमा, यथा चंद्रमुखी स्त्री इत्युक्ते यत् परिमांडल्यं चंद्रमसः सौम्यता कांतिश्च तदेकदेशो गृह्यते, न तु सर्वात्मना चंद्रतुल्यं ॥३०॥ मुखं यस्याः सेयं चंद्रमुखी, एवं साधुगुणानी एकदेशेन श्रावकस्योपमा क्रियतेऽनेनेति, यतः एकदेशः साधुगुणानां श्रावकस्य ।
SHESE SERECREC6*
दीप अनुक्रम [६३-९२]
ॐ
5A5%
(313)
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
प्रत्या- भवति, तेन पुनः सामायिक क्रियमाणे श्रावकस्य बहवो गुणा भवतीति दर्शितमिति, एतेण गाहासुत्तोवदेशेणचि तिविहं तिविहेणं , सामायिक ख्यान IN ण करेइर उववायपि पडच्च विसम,जहष्णणं सोधम्मे उकोसेणं सावगस्स अच्चुते,साहुस्स जहण्णेणं सोहम्मे उकोसेणं सव्वट्ठसिद्धी३ ।
ठिती सावगस्स जहणणं पलिओवमे उक्कोसेण बावीसई सागराणि, साहुस्स जहण्णेण पलितपुहुत्तं उकोसेणं तेतीसं सागरा ४५
गतिपि पडुच्च साधू पंचमपि गतिं गच्छति सावया चत्तारि, अण्णे भणंति-सावगस्स गतीतो चत्तारि, साधुस्स दोन्नि, अविरतस्स है| ॥३०१॥
एगा देवगती ५ कसाएसु साहुस्स यारसविधे कसाए स्वविते (११३) ६ बंधति साधुणो सत्तविहं या अट्टविहं वा छव्यिहं वा एगविहं वा अबद्धंतो वा, उवासतो सत्त वा ७ वेदन्ति साहयो सत्त वा अट्ठ वा चत्तारि वा सावतो अट्ठ वेदेति ८ पडिवत्तीए साहू नियमा रातीभोयणबेरमणछट्ठाणि पंच महब्बयाणि, सावओ एग वा २-३-४-५-अहवा साधू सामातियं एकसि पडियो, सावतो | पुणो पुणो पडिवज्जति ९ साहुस्स एगमि वते भग्गे सव्वाणि भज्जति, सावगस्स एगं चेव भज्जति १० किं चान्यत्-इदं च कारणं, जेण सावतो तिविघं तिविधेण ण करेति सामातियं, सबंति भाणिऊण ॥ (२१*) ण सो सव्वतो विरतो तिविहेण करणजोएण तेण सो तिविहं तिबिहणं सामातियं न करेतित्ति, एवं सामातियं कातब्बं । एत्थ जयणा-धम्मझाणोवगतो उवसंतप्पा सुसाहुभूतो य | सबिदिय संवुडओतह संजमतोय साहण।।१।। इरिएसणभासामु य निक्खेवमि य तहा वि-5 उवसग्गे । तकालमप्पमत्तो जह साहुजणो तहा होज्जा ॥२॥ तस्स पंच अतियारा मणदुप्पणिहाणं, पणिधी नाम ॥३०॥ निरोधो मणसः, तं मणं ण सुद्छु निरोधेति, चिंतेति पोसहिते-इमं च सुकर्य धारे इमं दुकडयंति, वायादुष्पणिहाणं ण सुट्ठ वार्य | सावज्जेण रंभति इमं या करेह इमं वा ममत्ति सावज्ज उवदिमति, कायदुप्पणिहाणं ण पडिलेदेति ण पमज्जति ण वा ठाणणि
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(314)
Page #315
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत
सूत्रांक [सू.
प्रत्या- 3ासीयणादिसु, उल्लंघणमाति वा करेज्जा, ण वट्टति सामातियस्स, सतिअकरणया नाम अर्थ करेति, अहवा ण जाणति-किं सामा- देशावकाख्यान तियं कयं ण कयं पत्ति, एवं विभासा, सामातियस्स अणवट्टियस्स करणया णाम सामातियं काऊणं पुणो तक्षणं चेव पारंतोटा
शिकं चूर्णिः
चेव वच्चति, ण पद्दति एवं, अदि चिरं अच्छति तो करति, अहवा सव्वं वावारं काऊण जाधे खणितो ताहे करेति तो से ण ॥३०॥कामजात एव ।
भज्जति, एवं विभासा । धन्ना जीवेमु दयं करेंति धन्ना सुदिट्ठपरमत्था । जावज्जीव व दयं करेंति एवं च चिंतेज्जा ॥१॥ कतिया णु अहं दिक्खं जावज्जीवं जहडिओ समणो । णिस्संगो बिहरिस्सं एवं च मणेण चिंतेज्जा ॥२॥
देसावगासियं नाम देशे अवकाशं ददातीति, पूर्व दिक्खु तं बहूणि जोयणाणि आसि, इदाणि दिवसे दिवसे ओसारेति, गाजत्तियं जाहिहिति, राति तंपि उवारेति दिसं उबक्कमति, एत्थ दिट्ठीविससप्पदिट्ठतो, पुण्यं तस्स बारस जोयणाणि दिट्ठीए ४
विसतो आसि, पच्छा तेण विज्जावातिएणं ओसारितो जोयणे ठवितो, एवं सावओ दिसिब्बए बहुयं अवरझियातितो पच्छा ॐादेसावगासिएणं तंपि ओसारेति, अहवा बिसदिदंतो, अगदेणं एगाए अंगुलीए ठवियं विभासा । एवं सापोऽवि आवकहिया-15 डातो दिसिब्बयाता दिणे दिणे ओसारेति जाव अज्ज घरातो ण णामि गामणगरउज्जाणातो, अह जातितुकामी होति सो भणति-1
अज्ज पुरत्थिमेणं जोयणं दो तिथि जत्तिए वा जोयणे गंतुकामो, अण्णतरएणं दिवसेण तस्स आकारं करेति, किंचिमित्तविराहओचि सेसाणं आविराहो, अण्णे भणंति-एवं वएसु जे पमाणा ठबिता ते पुणो दिवसे ओसारेति, एवं-गगमुहुनं दिवसं राति ॥३०॥ पंचाहमेव पक्षं था । वतमिह धारेउ दढे जावतियं तुच्छहे कालं ॥१॥ पुढविदगअगणिमारुयवणस्सती तहाइ तसेसु पाणेसु। आरंभमेगसो सब्यसो य सत्तीरें वज्जेज्जा ॥२॥ण भणेज्ज रागदोसेहिं सितं णवि गिह
Ok
दीप अनुक्रम [६३-९२]
SAKASIRSASS
(315)
Page #316
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
।
प्रत्या
त्यसंबंधं ।'भासेज्ज धम्मसहियं मोणं च करेज्ज सत्तीए ॥३॥ण य गिहिज्ज अदिन्नं किंचिति असमिक्खिया देशावर ख्यान
च दिनपि । भोयणमहवा वित्तं तु एगसो सम्वसो वाधि॥४॥ होज्ज य परिमाणकडो सएवि दारांमि बंभ-10 -शिक चूर्णिः
यारी य। दढधितिम पंडियतो दुगुंछतो कामभोगाणं॥५॥ संसुवि अत्धेसु तु तक्कालं तेसु णातितिण्हातो। ॥३०॥ पच्छाए एगदेसं अहवा सव्वपि जो इत्थं ॥ ६॥ णाऊण जाव भोगे भोगे य अणुव्वयं तहिं कुज्जा । सत्तीए एण-IR
सो सव्वसो य गिहिसुब्बतो मतिमं ॥ ७॥ दंडं समयविवुधो चएज्ज तो दिमित्तरं कालं । देसं उद्दिसितं तो 31 पच्छारंभ परिहरेज्जा॥८॥ देसावकासियं खलु णायव्वं अप्पकालियं एत्तो । एकमवि बयं कुज्जा पडिमंच तहाला ससत्तीए ॥९॥ एयस्स पंच अयियारा-सतंपि अवच्चतो जदिमं कारेवि तो विराहेति देसावगासिय, आणावेति अचं संतितं पत्थितं जथा असुगातो ठाणातो असुगं आणेज्जा । संदेसं दिसति सयणं वा मज्झ अज्ज देसावगासियं जाव अमुगं खेचं गाम वा
तत्थ परिभाएति अमुगो एतचि, एवमादि विभासा । अण्णे भणति-अमणुण्णपयोगे अमणुण्णा सद्दादी जाया तो सदेसस्स चेष | मझ अच्चत्थं यच्चति जत्थ तेर्सि संपातो ण भवति, चिंता वा-काहे पोसहो पूरिहिति तो अजस्थ वच्चीहामो इत्यादि, पेसवणं ४संतिपत्थियं भणति-एवं तत्थ नेह, खेचं वा गामं वा, सदाणुवातो गंधव्यं वकृति, सो तत्थ ठितो ण सुणेति, ताहे तत्थ अत्तणा दगंतूणं णिसामेति, अतियरति, अहवा तस्थ ठितो जत्थ सो आगच्छेति, रूवाणुवातो तत्थ संतो णट्ट लोमंथियं वा पेच्छति M ॥३०॥
देसावगासियस्संतो, एवं आसहत्थिरायादि जथा वा सो पेच्छति, तया गंडमंडाणि छिदति ताहे सो एति, पहिया पोग्गलक्खेवो णाम खेत्ते परोहडे पा तोतिण्णं पहाणेणं कद्वेण वा वावारेति,तत्थ ण बच्चति, मा किर देसावगासियं भज्जिाहनि, एवंण कायव्यं ।
5451525
दीप अनुक्रम [६३-९२]
SCR45
%
(316)
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] - पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
चूर्णि
[सू.
दीप अनुक्रम [६३-९२]
प्रत्या- एवं देसावगासिते कए परेण पाणादिवायमुसावायअदत्तादाणमेहुणपरिग्गहा य ते पच्चक्खाया भवंति । एत्थ भावणा-सव्वे य: पोषधोख्यान
पचासः सव्वसंगहि वज्जिता साहुणो णमंसज्जा । सबहिं जेहिं सब्वं सावज्जं सब्बओ चत्तं ॥१॥ सूत्र | पोसहोपवासो पोसह उववासः, पोसहो चउबिहो-सरीरे पोसहोर देसे अमुग बहाणादि न करेति, सव्वे पहाणमद्दणवन्नग॥३.भागविलेवणपुष्फगंधाणं तथा आभरणाण य परिच्चातो, अव्वावारपोसहो णाम देसे य सचे य, देसे अमुग वा वावारं ण करेमि, सच्चे
वहारसेवाहलसगडघरपरिकम्ममातितो ण करेति, बंभचरं २ देसे दिवा रानि वा एकसि दो बा, सव्वे अहोरत्तं बंभयारी, आहारे
२ देसे अमुगा विगती आयंबिलं या एकसिं बा, सब चउब्यिहो आहारो अहोरनं, जो देसे पोसह करे। सो सामातियं करेति वा |ण बा, जो सब्बपोसहं करेति सो नियमा करेति, जदि ण करेति वंचिज्जति । तं कहि?, चतियघरे साधूमले घरे वा पोसहसालाएx
वा. तोम्मुकमणिसुबष्णो पढतो पोत्थर्ग वा वायतो धम्मज्झाणं झियायति. जथा एते साहगुणा अहं मंदभग्गो असमत्थानि विभासा, तं सत्तितो करेज्जा तबो उ जो वनिओ समणधम्मे | देसावगासिएण व जुत्तो सामातिएणं वा ।। १ ।। सब्वेसु कालपब्वेसु पसत्थे जिणमए तहा जोगी। अट्ठमि पन्नरसीस य णियमेण हवेज्ज पोसहितो ॥२॥ तस्सवि। | अतियारा दुप्पडिलहियं चक्खुना सेज्जं दुरुहति करेति चा, दुप्पमज्जितं करेति सेज्ज पोसहसालं वा, आदते निक्खिपति वा, सुद्धे वा वत्थं भूमीए कातियभूमीए, कातियभूमीओ वा आगता पुणरवि ण पडिलेहति, एवं अप्पडिलेहणाए बहुतरा दोसा, एते ॥३०४|| चव उच्चारपासपणेवि विभासियथ्या, पोसहस्स सम्मं अपाणुपालणया शरीरं उबदेहति दाढीयाता वा कसा वा रामराति या सिंगाराभिप्पाएणं संठवेति, बाहे वा सिंचति, अव्वाबारे बाबारेति, कयमकयं वा विचिंतति, वंभचेरे इहलोनिया पारलोइए वा
(317)
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
ॐ
प्रत्याख्यान चणि
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥३.
सूत्र
भोगे पत्थेति संवाधेति वा, अहया सद्दफरिसरसरूवगंधे वा अभिल सति, भचरेण पोसहो कया पुज्जिहिति चइयामो बंभचेरेणंति, यथाआहारे एग सव्वं वा पत्थेति, बीयदिवसपारणगस्स चा आढत्तियं करेति इमं वा तिम वत्ति, ण वद्धृति । उग्गं तप्पंति तवं संविभागः ते तेसि णमो सुसाहणं । णिस्संगा य सरीरेचि सावओ चिंतए मतिमं ॥१॥ __अहासंविभागों णाम जदि अहाकम्म देति ते साधूर्ण महव्वए भंति, हेडिल्लेहिं संजमठ्ठाणेहिं उत्तारोति, तेण आहाया कमेणं सो अहासंविभागो न भवति, जो अहापबत्ताणं अण्णपाणवत्यओसहभेसज्जपीढफलगसेज्जासंथारगादीण संविभागो CI सो अहासविभागो भवति, फासुएसणिज्जसंविभागोचि भणियं होति, तेणं पोसहं पारणं साहूर्ण अदातुं ण वहति पारेतं,
पुचि साहणं दातुं पच्छा पारितव्वं, काए विहीए दायव्यं, जाहे देसकालो ताहे अप्पणो सबसरीरस्स विभूसं अविभूसं. | वा काऊणं साहुपडिस्सयं गतो णिमंतेति-भिक्खं गण्हहति, साहूणं का पडिबत्ती, ताहे अनो पडलं अनो भायणं पडिलेदेति, मा | अंतरातियदोसा ठवियदोसा य भविस्सन्ति, सो जदि पढमाए पोरुसीए निमंतेति अस्थि य नमोकारसित्ता ताहे घेप्पति, जदि णस्थि ताहे ण घेप्पति, तं धरियच्वं होहित्ति, सो घणं लग्गेज्जा ताहे घेप्पति संचिक्खाविज्जति, जो वा उग्पाडपोरिसीए पारेति । पारणगइत्तो अन्नो वा तस्स विसज्जिज्जति, तेण सावएण सह गम्मति, संघाडतो वच्चति, एगो ण वमृति, साहू पुरतो. साबमो पच्छा, तो घरं जाऊण आसणेणं निमंतेति, जदि णिविट्ठो लहूं, जदि ण णिविट्ठो विणतो पउत्तो, साहे भचपाणं सयं देति अहवाला ॥२०॥ भाजणं धरेति, अहवा ठितो अच्छति जाव दिन, सायससं च गेण्हियवं पच्छेकम्मादिपरिहरपाडा, दाऊणं बंदित्ता त्रिसज्जेति, अणुगच्छति, पच्छा सयं भुजति, जैच किर साहणं ण दिणं तं सावएणं ण भोत्तव्यं, जहिं पुण साहू णत्थि तेण, देसकालवेलाए|
दीप अनुक्रम [६३-९२]
CASKARENERANG
(318)
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
विभाग
सविम
चूर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥३०६॥
दिसालोगो कायवो विसुद्धण भावेणं, जदि साहुणो होन्ता तो णित्थारिओ होन्तो, एसा विही । णाणीमु भयारीसु भत्तीए गिही अणुग्गहं कुज्जा । पाविउकामो पवरं इह परलोगे य दाणफलं ॥१॥ तं च पंचतियारविसुद्धं दायब, भत्तं पाणं वा कंदादीणं (मायणे निक्खिपति) चाद्रा (१) एवं पिहितुंपि ण वट्टति, तं साहू ण गिण्डति, कालातिकमो पए हिंडतित्ति ण उस्सारेयव्ब, उस्मरेति वाण उस्सकावेयब, जा वेला सच्चेव, अहबा जाहे ते हिंडिउं णियत्ता ताहे निमंतेति, ताहे कि तेण ?, उक्तं च-अणागतं तु गोविंदा, वर्तमानं तु पांडवाः। अतिक्रान्तं धार्तराष्ट्रास्तेन ते प्रलयं | गताः॥१॥ काले दिन्नस्स पहेणयस्स अग्धो न तीरए कातुं । तस्सेवाकालपणामियस्स गण्हंतया नस्थि ॥ २॥ परववदेसो नाम विज्जमाणेवि अब ववदिसति अमुगस्स अस्थित्ति भग्गितो समण, अहवा परेण दवावेति, अवज्जाए परं या उद्दिस्सावेति-अमुगस्स पुर्ण होउ मयस्स जीवनस्स बा, मछरियता नाम मग्गिते रूसति, संत वा मग्गितो न देति, अमुएण वा दियं अहं किं ता ऊणतरो?, अहंपि देमि, तम्हा साहुणं उवरि पसनचित्रण दायव्वं । बरसाधुगुणसमिदं साधुजणं साधुवच्छलं पूए । तस्स उ भत्तीए होति धम्मो (एसो) जिणपसत्थो ॥१॥ ते जं करेंति धीरा सुसाहुणो साधुवच्छल धम्म । तेसिं भत्तीए गिहीवि होति धम्मेण संजुत्तो ॥२॥ कालंमि वट्टमाणे अतीयकाले अणागते चेव । अणुजाणदि जीवदयं समणे भावेण वंदंतो ॥३॥तो सकारेयचा धुवेण बरचम्मचारिणी। णियतं । कायब्वा जीवदया होति निस्सेसकामेण ।।४॥ धन्नो अणुग्गहीतो संपत्ती जं मए इमा पत्ता। चित्तं पत्तं मतिसुद्धता य एवंति कहाणं ॥५॥
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(319)
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूनांक
.
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२३८-२१३]
अध्ययनं [६] मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१६५२-१७१२/१५५५-१६२३]. पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥३०७॥
सूत्र
| एमेवेसो दुबालसविडो हित्यधम्मो । एत्थ पंच अणुध्वया तिष्णि गुणन्वया, एएसिं दोन्हवि थिरीकरणानि चचारि सिक्खावयाणि इत्तिरियाणि सेसाणि अट्ठवि आवकहियाणि णायव्याणि । एयस्स मूलं सम्मतं उक्तं च-द्वारं मूलं प्रतिष्ठानं, आधारो भाजनं निधिः । द्विषट्कस्यास्य धर्मस्य, सम्यग्दर्शनमिष्यते ॥ १ ॥ तं दुविहं निसग्गेण वा अभिगमेण वा, सिग्गो जहा सावगपुत्तनयाणं, अभिगमेणं जं सोऊणं पढिऊण य जायति, तस्स अतियारा पुष्वभणिया । एस दुवालसविहो, एक्कारस पडिमाओ अभिग्गहा य अणेगे, एवं मए दायव्वं, भावणातो आणिञ्चयातीतो, पच्छा किर पव्वतियव्वं, सो सावगधम्मे उज्जमितो भवति ||
ताहे मपच्चक्खाणं संथारसमणेण भवियन्वं अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाजूसणाराहणा, अपच्छिमरगहणं मंगलार्थं, मरणांत तज्जीवितपर्यंते भवा मारणांतिकी, संहेलणा दुविधा - दब्बे भावे य, दव्बे फलगादि मंसं सोणियं वा, मावे कोधादि, 'जुषी श्रीतिसेवनयो:' आराहूणा अतियारविसुद्वया । तस्स पंच अतियारा इहलोतियं रिद्धिं पत्थेति रायसिद्दिमादीणं, पारलोइया देवो होमित्ति पत्थेति जीवितासंसप्पओगो जीवितुं देवादीहिं पूजितो इच्छति अणिट्ठेहिं फासातीहिं पुट्ठो मरिउमिच्छति, कामभोगासंसा जहा बंभदतेग कयं ॥ एसो सावगधम्मो, अह इयाणिं सच्छुत्तरगुणपच्चक्खाणं, आह-किं सावगधम्मो मज्झे कतो?, एसो सावगाणं, जं तं सब्बुत्तरगुणपच्चक्खाणं एत्थ किंचि सावगाणं सामनंति । तत्थ-पच्चक्खाणं उत्तरगुणेसु० ।। १६६० ।। उत्तरगुणपच्चक्खाणं जं तं खमणादीचं अणेगविहं, आदिग्गहणेणं अभिग्गहणजोगा अणेगविहा, तं पुण इमं दसविहं, तंजहा| अणागयमतिक्कंसं० ।। २०-२३ ।। १६६१ ॥ संकेतं० ॥ २०-२४ ।। १६६२ ।। तत्थ अणागयं पच्चक्खाणं, जहा अणागयं तवं
(320)
उपसंहारः संलेखना
॥३०७॥
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥३०८॥
दीप अनुक्रम [६३-९२]
करेज्जा, पज्जोसमणागहणं एत्थ विकट्ठ कीरति, सव्वजहष्णो अट्ठमं, जहा पज्जोसमणाए तथा चाउम्मासिए छटुं पक्खिते अम-13 उत्तरगुणतटुं अण्णेसु य ण्हाणाणुजाणातितेसु, तहिं अंतराइयं होज्जा, गुरु-आयरिया एसिं मत्चपाणादिवेयावच्चं कायब, किं, तेदप्रत्याख्यान उवासं ण करेंति, असहू वा होज्जा, जहा सिरितो, अहवा अन्ना आणत्तिया होज्जा कायविता गामंतरादिसु सेहस्स आणेयव्वं, सरीरवतावडिगा वा, ताहे सो उपवासं च करेति गुरुचेयावच्चं च ण सक्केति, जो अण्णो दोण्हवि समत्थो सो करेउ, जो वा अण्णो असमत्थो उपवासस्स सो करेउ, णस्थि न बा लभेज्जा ण याणेज्जा वा विधि ताहे सो चेव पुर्व उववासं काऊण पच्छा तदिवसं भुजेज्जा, तवस्सी णाम खमतो तस्स कायव्यं होज्जा, किं तदा ण करेति, सो तीरं पत्तो पज्जोसवणा य उस्सरिया, असहुत्ति वा सयं पारावितो ताहे सयं हिंडेउं असमत्थो, जाणि अब्भासे तस्थ बच्चंतु, पत्थि ण चा लन्मति सेसं जहा गुरुम्मि विभासा, गेलनं-जाणति जथा तहिं दिवसे असहू होहाभि, वेज्जेण वा भणिय-अमुगं दिवसं कीरहित्ति, अहवा सतं चेव जाणति संगंडरोगातिएहि तेहिं दिवसेहि असहू भविस्सामि, सेसविभासा, जहा गुरुम्मि करणं कुलगणसंघादि आयरियगच्छे वा तहेव विभासा । पच्छा सो अणागए काले करतूणं पच्छा जेमेज्जा पज्जोसवणादीहिं तहेव सा अणागते काले भवति । अतिक्कन्तं णाम पज्जोसवणाए तवं तेहिं कारणेहिं ण कीरति गुरुतबस्सिगिलाण कारणेहिं सो अतिक्कते करेति, तद्देव विमासा | कोडिसहित
॥३०८॥ णाम जत्थ कोणो कोणो य मिलति, गोसे आवासे पकए अभत्तट्ठो गहितो, अहोर अच्छिऊणं पच्छा पुणरवि अभत्तढ करेति, पीयढवणा पढमस्स य निट्ठवणा, एए दोणि कोणा एगत्थ मिलिता , एवं अटुममादि दुहओ कोडीसहियं, जो चरिमदिवसों तस्सवि एगा कोडी,एवं आयंबिलं णिधिए य, एगासणएगठाणाणवि, अहवा इमो अण्णो विही-अभत्तहो कतो, आयंबिलेण पारियं,
... अथ प्रत्याखान-विषये दृष्टान्ता:
(321)
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [६], मूलं [ सूत्र / ६३-९२] / [ गाथा-], निर्युक्ति: [ १६५२ - १७१९/१५५५-१६२३]
भाष्यं [२३८-२५३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥३०९।।
पुणरवि असो कीरति आयंबिलेणं पारेह, एत्थ संजोगा कायच्या णिवित्तीकादिसु सन्धेसु सरिसेसु विसरिसेसु य। णियंटियं नाम नियमितं, जहां एत्थ काय, अहवा छिन्नं पुख्वं एत्थ अवस्त कायर्च्चति मासे अमुको अमुको दिवसे चतुल्यादि अट्टममाति 3. एवतिओ छद्वेण वा हट्टो ताव करेतिच्चिय जदाबि गिलाणो होति तयावि करेति च्चेव, णवरं ऊसासो घरउ। एयं पच्चक्खाणं * णियंटियं धीरपुरिसपन्नन्तं । जं गिव्हंतिऽणगारा पदमसंघगणी अणीसाणा ॥ १ ॥ इह परत्थ य । अह्नवा न ममं असमत्थस्त अण्णो काहिति सरीर एव अपडिबद्धा, एयं पुण चोदसपुण्त्रीसु पढमसंययणेण य जिणकष्पेण य समं बोच्छिनं, थेरावि तदा करन्ति । सह आगारेहिं सागारं ते आगारा उबरिं सन्निहिंति, तं पुण अभतट्टो पच्चक्खातो, ताहे आयरिएहिं भण्णति अमुगं गामं जातियव्वं, तेण निवेदेतव्यं मम अज्ज अभट्ठो. जदिय समत्थो करेउ जातु य. पण तरति तो अन्नो बच्चउ, णत्थि असमन्थो ण वा तस्स कज्जस्स समत्थो ताहे से गुरू विसज्जैति, एवं किर तस्स तं जेमंतस्सव अणभिलासस्स अभट्ट| यस्स णिज्जरा जा सच्चेव पत्ता भवति गुरुणिओएणं, एवं उपरलंभवि विणस्सति अच्छत्तविभासा, जदि थोवं ताहे जे णमोक्कारपोरुसिया तेसिं विरज्जिज्जति, जे वा असहू विभासा, एवं गिलाणकज्जेसु अण्णतरेसु वा कारणेसु कुलगणसंघकज्जादिविभासा, एवं जो भत्तपरिच्चायं करेति सागारकडमेतं । अणागारं णाम निम्मज्जायं, जथा एत्थ आगारा न कायच्चा, एवं परिणिट्टियंतस्स जहा नत्थि एत्थ किंचिवित्ति महत्तरगादि आकारा ण करेति, अणाभोगसहसकारे करेज्जा, किं निमित्तं ?, कई वा मुद्दे पक्खिबेज्जा अणाभोगेण सहसा वा तेण से आगारा कज्जेति । तं कहं होज्जा ?, कंतारे जहा सिणवलीमाइए बत्ती न लब्भति, पडिणीएण या पडिसिद्धं होज्जा, दुभिक्खं वा वट्टति हिंडतस्सविन लम्भति, अहवा णं जाणति अहं ण जीवामित्ति, ताहे
(322)
दश प्रत्याख्यानानि
॥३०९॥
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
मूलांक
[.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२३८-२१३]
अध्ययनं [६] मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१६५२-१७१२/१५५५-१६२३]. पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्या
ख्यान
चूर्णिः
॥३१०॥
णिरागारं पच्चक्खाति । परिमाणकडं नाम दत्ती, अज्ज मम एक्का वा २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, १०, किं च दत्तीए पमाणं ९ छप्पकंपि जदि एक्कसि छुम्मति एक्का दत्ती, डोविलयंपि जदि वारे पफ्फोडेति तावमियातो दतीतो, एवं कबलेणं एक्केण दोहिं जाव बचीसा, दोहिं ऊणगा कवलेहिं परेहिं एममादिएहिं २, ३, ४, ५, ६, ७, भिक्खातो एगादियातो, दबं अगं ओदणो खज्जगविधी वा जहा अज्ज आयंबिलं कायव्वं अमुगं वा कूसणं सीइकेसरगा या एवमादिविभासा, एवं परिमा णकडं । जो असणस्स सत्तविहस्सवि योसिरति, पाणगाण पुण विविहाणं खंडपाणगादीणं, खातिमं णेगविदं फलमादि, सातिमं गविहं मधुमादि, तं सव्यं बोसिरति । एवं निरवसेसं पच्चक्खाणं । साकेयं णाम केयमिति गृहव्याख्या, गृहवासिनां प्रत्याख्यानमित्युक्तं भवति, द्वितीयोऽर्थः केयं णाम चिन्हं पञ्चक्खाणे जाब एयं ताव ण जेमिमिति । तत्थ गाथा अंगुह । २०-३७ ।। १६७४ || सावतो पोरिसिं पच्चक्खाइता खत्तं गतो, घरे या ठियस्स ण ताव सिज्झति, ताहे किर न वट्टति ता अपच्चक्खाणिस्स अच्छिउं ताई अंगुट्टगमुद्धं करेति जाव ण मुयामि ताव न जेमिमित्ति जाव वा मुट्ठि सुयामि जाब वा गठिन सुयामि एवं जाव घरं ण पविसामि जाव सेदो ण णस्सति जाव एवतियाती उस्सासा जाब एवतियातो नीसासा थिभागो पाणे मंचियाए वा जाव देवता जलंति ताव न जामित्ति, ण केवलं भत्ते, अण्णसुवि अभिग्गइबिसेसेसु । अपने भगति सव्वंपि संकेतपच्चक्खाणं साहुणावि कायच्वंतिपुण्णे काले किं अपच्चकखाणिणा अच्छियब्वंति ? ।।
·
अद्धा नाम काला, कालो यस्त परिमाणं तं काले अवरद्धति कालपञ्चक्खाणं, णमोक्कार पोरिसि० ।। २०-३८ ।। १६९३ ।। णमोक्का रपोरिसि पुरिम पच्छिमङ्कादि अद्धमास मासा, चसरेण दो दिवसा तिभि दिवसा मासे वा जाब छम्मासोति पच्चक्खाति ।
(323)
दश प्रत्याख्यानानि
॥३१०॥
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-, नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्या
प्रत
---
सूत्रांक
चूर्णिः ॥३१॥
[सू.]
एवं अद्धापच्चक्खाणं, भणियं इसधि पच्चक्वाणं । एत्थ सीसो आह-जहा साह पाणातिवायं ण फरति ण कारयेति करंतपि अद्भाप्रत्याअण्ण ण समणुजाणति एवं किं अभत्तद्वे पच्चक्खाए संयं ण भुजति अण्णेवि ण मुंजावेति !, उच्यते, एयं सयं चेच पालनीय, दाणंपि साहूर्ण दवावेज्जा वा उवदिसज्ज वा दाणं, सयं भुजति, अण्णेसि आणत्ता देति, संतं विरियं न निगृहेतब्वं, अण्ण-15 ण आणावेति जहा अमुगस्स आणेहित्ति, उबदेसो-तणं पाणगस्त गएणं संखडी दिट्ठा, समं वा गएणं सुया व बोज्जा, ततो भण्ण ति ब-अमुगस्स संखडित्ति उपदिशति, परिजिते गंतुंपि दवावेज्जा चा, उबधि सेज्जा वा, जहा जद्दा साहूर्ण समाही अप्पणो य तहा तहा जइयव्वं ।।
एयस्स दसपिहस्स पच्चक्खाणस्म वा सचावीसतिविधकस वा तं०पंच महाव्यया दुवालसविदो सागधम्मो दसविध उत्तरगुणपच्चखाणं, एते सत्तावीस,एयरस छबिहा विसोही-सहहणा जाणणा विणय अणुभास अणुपाल भावविसोही हदति छडा,तस्थ सहहणासोही सबण्णूहि देसियं सत्ताबीसाए अनतरं जहि जिणकप्पो वा अहया चाउज्जामो वा जहा दिवसतो वा रत्तीए वा सुभिक्खे वा। दभिक्खे वा पुबण्हेवा अवरण्हे वा चरिमकाले वा तं जो अवितहमेयं(ति सदहति त)सद्दहणासुद्धा जाणणासुद्ध णाम जाणातिाजणा कप्पियाण एवं चाउज्जामियाणं वा एवं सावगाण मूलगुणाण उत्तरगुणाण वसं जाणणासुद्धशविणयसुद्धं णाम जो कितिकम्मरस जे गुणा ते अहीणमतिरित्ता पउंजित्ता ओणयकातो दाहिचि हत्थीह स्यहरणं गहाय पंजलिउडो उवद्वाति पच्चक्खायेतित्ति एवं |विणयविसुद्धं ३। अणुभासणासुद्धं णाम जे गुरू उच्चारेति तं इमोवि सणियागं उत्थारेति अक्षरेहि पएहि वंजणांणि अणुच्चारो ६ पंजलिकडो अभिमुद्दो तं जाणऽणुभासणासुद्धं, आयरिया भणंति-बोसिरति, सो भणति चोसिरामि । अशुपालणासुद्धं णाम
दीप अनुक्रम [६३-९२]
CXC
॥३१॥
(324)
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-], निर्युक्ति: [ १६५२-१७१९/१५५५-१६२३],
भाष्यं [२३८-२५३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्या
ख्यान
चूर्णिः
॥३१२॥
बायालीसं दोसा पडिसिद्धा णिच्चं ते जो आवतीएवि ण य पडिसेवति तं अणुपालणासुद्धं, का पुण आवति ?, कंतारे दुग्भिक्खे आतंके वा जो ण मंजति तं अणुपालणासुद्धं । आह-णणु जं पालितं तदेव अभग्गमेव, यदेव णो भग्गं तदेव पालेति, उच्यते, पालितग्रहणे कृते यदभग्नग्रहणं क्रियते तत् ज्ञाप्यते अववादतो यतनया प्रतिसेवा तत्पालितमेव भवति, जम्हा अपायच्छिती भवतित्ति५ । भावविसुद्ध णाम रागेणं एसो लोए पूएज्जहत्ति एवं अपि करोमि तो पुज्जीहामित्ति रागेणं करोति, दोसेणं तह करेमि जहा लोगो मम संमुहो होति, एवं दोसेणं दूसियं परिणामेणं, जो इहलोगड्डयाए कित्तिजसहेलं अष्णपाणवत्थ लेणसयणहेउं वाण करेति एवं भावसुद्ध ६। एते गुणा, पडिवक्खतो असुद्धं, असद्दद्दणाए असुद्धं अजाणणाए अविणएणं अणणुभासणाए अणणुपालणाए भावतो असुद्धं, अहवा इमेहिं कारणेहिं भावतो असुद्ध थंभा माणिज्जिहीहामि एसो माणिज्जति अपि करोमि, कोहेणं अभत्तङ्कं करेति - अंबाडितो णेच्छति जेमेडं, अणा भोगेणत्ति किंचि पच्चक्खायंति तहवि समुद्दिसति जिमिएणं संभरियं भत्तपच्चक्खाणंति, अणापुच्छा जेमेति ण आयरिए आपुच्छति, अडवा अणापुच्छा सयमेव पच्चक्खाया, अहवा वारिज्जीहामि जथा तुमे अन्मत्तट्टो पच्चक्खातो, अहवा जेमेति तो भणामि बिस्तरितंति, असंतती नाम णत्थि एत्थ किंचिविता वरं पच्चक्खाति पच्चक्खाति, परिणामो पुव्वभणितो इहलोगादी, अहवा एसेव परिणामो थंभादी, विदूनाम परिन्नावान्, सो य जाणतो करणजुत्तो य, सो पमाणं, एवमादि जाणिऊण वा विधिकरणपवत्तो एत्थ पमाणं भणियं हांति, असुद्धो वादोति अपि करेमि मा णिच्छुभीहामित्ति एएण अवाएणं पञ्चकखावेति ण वट्टति, तम्हा जाणतो एते दोसे परिहरति तेण सो पमाणं । णामणिप्फनो गतो । सुत्तालावगनिप्फनो सुत्ताणुगमो य सुत्तफासियनिज्जुती य एगंतओ णिजंति, तत्थ सुत्ताणुगमे संधिया य० सिलागो । संघिता सुतं
(325)
विशुद्धिषट्कं
| ३१२।
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
चूर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या
णमोक्कारं पच्चकग्वाति सूरे उग्गए चउब्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं सातिमं । एमेव पदच्छेदो, “अस प्रत्याख्यामोजने" एवं लोगे, उत्तरे उ आसु खुधां शमयतीत्यशनं. पा पाने लोगे, उत्तरे उ प्राणानामुवग्रहं करेति तेन पानमिति भवति, नानि खार भक्षणे खाज्जत इति खातिम लोके, उत्तरे खमित्याकाशं नच्च मुखाकाशं तस्मिन्मायत इति खातिमं, ' स्वद आस्वादने' लोके, उत्तरे गुणान् सावयति सातिम, तस्य द्रव्यस्य परमाण्वादयो गुणानास्वादयमानाः सादयंती विनाशंयतीत्यर्थः संयमगुणान् । वा स्वादी स्वादिम, एगपदत्वामास्ति विग्रहः. आक्षेपयती-आसु खुधं समेतित्ति असणं; तेण पाणपि असणं क्षीरघयादि, फलाणिA खातिमानि खुई समेति, साइमंपि महुगुडादी खुधं समेति, एवं चउसुवि विभासा, असणंपि पाणाणुग्गहकरं, एवं सर्वपि खादि-13 मादि, सब्वेसिपि गुणा सातिजति. आचार्य आह-बाद, सन्चोऽधिय आहारी असणं० ।। २०-५६ ॥ १६८६ ।।
किंतु असणं पाणं खातिम सातिमं एवं परूविए सुई सद्दहिउं आयरियपच्चक्खार्वतयाणं सुहं दाउं पच्चक्खाणं तेसि आयरियस्स,81 दिदि पुण असणंति करेजा तो जया असणंति पच्चक्खाइज्जति तो पाणयं अपरिचत्तयं, अपरिचर्चेतस्स ण बट्टति पाणगं काउं.
रसविगइओवि अपरिचयंतस्स न वट्टर आहारेउ, अहवा जदि सव्वं असणंति करेज्जा तो पाणगं अपरिच्चयंतो तिविहमाहारं ण: परिच्चइहितित्ति दसविगतीतो वा ण परिच्चइहितित्ति एवं विभासा, जम्हा एए दोसा तम्हा चउव्यिहो असणादिविभागो कओ।
इमं असणन्ति व्यवहर्तव्यं इमं पाणमिति इत्यादि । तत्थ सीसो भन्निहिति-अषणस्थ णिषित्ती ( बडि ) ए०॥ १६८९॥4॥३१३॥ ID सीसो अजमध्यदेउं उपड़ितो- भए पोरिसी पच्चक्खायवत्ति, तो कहमवि सहसा भणियं-पुरिमतृ पच्चक्खाइ, ताहे पच्चक्खायचं,
तस्थ कयरं पमाणं किं ताव वंजणाणि पमाणं अह संकप्पियं?, भण्णति-संकप्पियं, जं अणुवउत्तरस पंजणुरुवारणं गेप आयरियस्स
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(326)
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- ख्यान चूर्णिः ॥३१४॥
तं पमाण, ते अभस्स तणगा आगारा छलणा सा अणुवउत्तस्स, एवं अनसुबि पच्चक्खाणेसु णायण्वं । तं पच्चक्खाणं कपमविशुद्धिकारइमेहिं कारणेहि मुद्धं भवति, तं०--
जानि | फासियं ॥१६९० ॥ तत्थ फासियं च, फासियं नाम जदि सो कालो अभग्गपरिणामेण अन्तं णीयो भवति, फासिय प्रत्याख्या नाम जं अंतरान खंडेति असुद्धपरिणामो वा अन्तं नेति १पालियं पुणो पुणो पडिजागरमाणेणं जहा तेणं महुरावाणियतेणं निसह
नगुणाः पुत्तोक्खेचतो समं अणुपालितो पच्छा निरंतरणं पीती जाया उपसंहारो, बितिएणं ण पालितो, एवं जो पुणो २ पडिजागरति तेण तं पालियं २ सोभितं नाम जो भत्नपाणं आणेचा पुण्यं दाऊणं ससं भुजति दायब्बपरिणामेण वा, जदि पुण एक्कतो (जति ताहे ण सोहियं भवति ३ पारियं च तीरियं च, पारियं नाम जदि पुनमेनए पच्चक्खाणे जेमेति, ताहे पारं नीतं णो तीरिवं, तीरियं पुण जे पुरवि मुत्तमे अच्छति असणं निरंभति ४ किट्टियं जदि जेमणवेलाए उकिनेति, जहा मए असुगं पच्चक्खायन्ति, तुहिक्कएणं भुजतेणं ण कटियं भवति, एवं सम्बेहि आराहियं अणुपालियं भवति ५ अनुपालियं नाम अनुस्मृत्यानुस्मृत्य तीर्थकरवचनं प्रत्याख्यानं पालियञ्वं ६॥
पञ्चक्खाणेण के गुणा, (१६९१) आसवदाराणि पिहियाणि, छिमाणि ठतियाणित भणितं होति, जीवस्स कम्मधत्ताए परिणममाणाण पोग्गलाण आगमो आसवो तस्स दाराणि आसपदाराणित्ति, आसवदारेहिं पिहितेहिं जा अनवसायतम्हाला | सा वोच्छिण्णा भवति, तण्डाए वोच्छिण्णाए प्रशमो भवति, आतुलभावे णस्थिति भणियं होति, एवं यदासौ प्रशान्तो भवति
॥३१४॥ तदा तस्स पसमवसेणं अतुर्क सुरं भवति, तेण ण दिट्ठीमोहो घुबो भवति, तेण पञ्चक्खाणं सुद्धं भवति, पशब्दाच्च सुद्धे
दीप अनुक्रम [६३-९२]
IRCRACK
(327)
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
मूलांक
.
दीप
अनुक्रम
[६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२३८-२१३]
अध्ययनं [६] मूलं [सूत्र / ६३-९२ ] / [गाथा-] निर्बुक्तिः [१६५२-१७१२/१५५५-१६२३].
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥३१५॥
पच्चक्खाणे अतुला चारितधम्मपसूती, अतुलचरितम्मपती अतुला कम्मनिज्जरा, अतुला० ए यमाणस्स अपुष्यकरणादी, ततो कम्मनखतो, ततो केवलणाणुष्पत्ति, ततो कमेण य सेसकम्मक्खतो, ततो संसारविप्पमोक्खो, ततो सिद्धत्तं, सिद्धस्स य अतुलं सोक्खं अब्याबाहं भवतीति, एवं पच्चक्खाणे मोक्खोऽधिकाणितो गुणोति तच्च पञ्चक्खाणं दसविषं णमोकार पोरिसी पुरिम कासगट्टाणे य । ० ।। १६९४ ।।
"
एएसि आगारा दो छच्च सप्त० ।। १६९५ ।। तस्य णमोकारस्स दुबे आगारा, तत्थ भच्छंतु ताव आगारा, णमोकारप| व्यक्खाणं चैव ताव ण जाणामो णमोकारं काऊ जेमे बडति तम्हा जेमणवेलाए माणियध्वं नमो अरहंताणं मत्थरण | वंदामो स्वमासमणा ! णमोकारं पारेमित्ति । तं पुण एवं पच्चक्खाणं
नमोक्कारं पञ्चखाति सूरे उग्गते चउव्विहमाहारं असणं ४ अन्नत्थणा भोगेणं सहसाकारेणं बोसिरति । अणाभोगो णाम एकान्तविस्मृतिः, विस्सरिएणं णमोकार अकाऊणं मृहे छूढं होज्जा, संभरिते समाणे मुद्देतणगं खेलम लए जं इत्थे तं पत्ते पच्छा मुंजे, णमोकार काऊणं जेमेति ता न भग्गं, सहसाकारे णाम सहसा मुद्दे पक्खित्तं, छड़ति, जाणतेवि तहेव विनिचित्ता णमोकारं काऊ जति पच्छा, एवंपि किर जीवो आहाराभिमुद्दो नियतिओ भवति, तेण तण्डाच्छेदणे णिज्जरा १ ॥ पोरिसीआगारा, पोरुसिं ताव न जाणामो, पुरुषनिष्पन्ना पोरुषी, जदा किर चउन्भागो दिवसस्स गतो भवति तदा सरीरप्पमागच्छाया भवति, तीसे छ आगारा ।
(328)
आकार
व्याख्या
।।३१५ ।।
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
I-ASCENE-
प्रत्या- । सूत्र पोकसि पच्चस्वाति चउब्धिपि आहारं असणं ४ अन्नस्थणाभोगणं सहसाकारणं पसनेणं कालेण आकारख्यान- मादिसामोहेण साहुचयणेणं सव्यसमाहिवत्तियागारणं वोसिरति।
ती व्याख्या चूर्णिः
अणाभोगसहसकारा तहेव, पच्छण्णातो दिसातो मेहेहिं रएहि रेणुणा पब्बएण वा पुण्णेत्ति कए पजिमितो होज्जा, जाहेश ॥३१॥ णायं ताहे ठाति, जे मुद्दे तं खेल्लमल्लए, जं लंबणे तं पत्ते, पुणो संदिसावेति मिच्छादुकडन्ति करेति, जेमेति, अह एवं न करोति।
तदेव जेमेति तो भग्गं । दिसामूढोण जाणहिति हेमंते जहा पोरिसी, जाणति अबरण्हे बट्टइनि, साहुबयणेणं अने साहू भणति उग्घाडा पोरुसी, सो जेमेत्ता मिणति अद्धजिमिते वा अण्णे मिणति तेण से कहियं जहा ण परितित्ति, तहेव ठातितब्बं । | समाधी णाम तेण य पोरुसी पञ्चक्खाया, आसुकारियं दुक्खं उप्पन तस्स अन्नस्स बा, तेग किंचि कायध्वं तस्स, ताहे परो|४ | विज्जे(हवे)ज्जा तस्स वा पसमणणिमित्तं पाराविज्जति-ओसह वा दिज्जति एत्थंतरा पाए तहेव विवेगो२।। पुरिमड्डो णाम पुरिम |दिवसस्स अद्धं तस्स सत्त आगारा,ते चेव छ,महत्तरागारो सत्तमतो, सो जथा पुच्वं मणिओशाएगामणगं नाम पुता भूमीतो ण सूत्र चालिज्जति, सेसाणि हत्थे पायाणि चालेज्जावि, तस्स अट्ठ आगारा-अणाभोगणं सहसकारणं सागारिएणं आउंटणपसारणेण गुरुअन्भुट्ठाणणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरयागारणं सव्यसमाधिः। अणाभोगसहसकारे तहेच, सागारियं । अद्धसमुदिहस्स आगतं जदि बोलति पडिच्छति, अह थिरं ताहे समायबाघातोत्ति उद्वेता अमत्थ गंतूर्ण समुदिसति,हत्थं वा पायं| वा सांसं वा आउंटेज्जा वा पसारेज्ज वा ण भज्जति, अन्भुट्ठाणारिहो आयरितो वा आगतो अम्भुढेयव्यं तस्स, एवं समुरिट्ठयस्सा ॥३१६॥ पारिट्ठावणिया जदि होज्जा करेति, महत्तरसमाहीतो तहेच ४|| एकट्ठाणे जं जथा अंगुवंग ठवियं तहेव समुदिसितवं, आगारे से
दीप अनुक्रम [६३-९२]
%
SAEXA
मू.(८५) एगासणं० मू.(८६) एगट्ठाणं० मू.(८७) आयंबिलं. मू.(८८) सूरे उग्गए अभत्तटुं० मू.(८९) दिवसचरिमं पञ्चक्खाई चउब्बिहंपि असणं पाणं खाईमं साइमं० मू.(९०) भवचरिमं पञ्चक्खाई० मू.(९१) अभिग्गहं पञ्चक्खाई० मू,(९२) निविगइयं पञ्चक्खाई०
(329)
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
दीप
अनुक्रम [६३-९२]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र / ६३-९२] / [ गाथा-], निर्युक्ति: [ १६५२ - १७१९ / १५५५-१६२३],
भाष्यं [२३८-२५३]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान
चूर्णिः
॥३१७॥
आउंटणपसारणं णत्थि, सेसा सत्त तहेब ५॥ इयाणि आयंबिलं, ताव न जाणामो कि आर्यविलं किं अणायंविलं च भवति, आर्यबिलमिति तस्स गोष्णं नाम, अह समयकतं आयामेणं आंबिलेण य आहारो कीरति तम्हा आयंबिलंति गोण्णं नाम, तं तिविदं ओदणं कुम्मासा सत्तुगा, तत्थ आयंचिलं आयंबिलपायोग्गं च तत्थ तोदणो आयंबिलं च आयंबिल पाउग्गं च आयंबिलं टं सत्त कूरा, जाणि वा क्रूरविकरणाणि, पायोग्गं तंदुलकणियातो कुंडतो पिठ्ठे बहुगा मरोलगा उंडेरगा मंडगा कलमादी, कुम्मासा जहा पुव्वं पाणितो आकडिज्जति पच्छा उक्खलीते चुण्णिज्जंति ताहे णयविहा कया सण्दा मझिगा धुद्धा, एते आर्यचिलं, आर्यबिलपायोग्गा पुण जे तस्स तुसमीसा कणियातो कंकडुगा य एवमादी, सनुया जवाण या गोधूमाण वा वीहीण या एए आयंबिलं, पायोग्गं पुण गोहमे भुंजिता बाहुगा लाया जबभुंजिया जे य जंतपणं ण तीरति पीडिउं रोहो, तस्स चैव कणिकाणाभी वा, एयाणि आयंबिल ओग्गाणि तं तिविहंषि आयंबिलं उकोसं मज्झिमं जहण्णं, दव्वतो कलमसालिको उकोसो, जं वा जस्स पत्थं, उच्चए वा रालको वा सामको वा जहण्णो, सेसा मज्झिमा । जो सो कलिमसालिकूरो सो रसं पड़च्च तिविहो-उकोसे मज्झिमो जहणो, तं चैव तिविहंपि आयंबिलं णिज्जरागुणं पडुच्च तिविहं, उकोसो गिज्जरागुणी मज्झो जहण्णांति, कहं ९. कलमसालिकूरो दव्यओ उकोसं चैव फरिसेण समुद्दिसति रसतोवि उकोसं तस्सच्चरण आयामेणवि उक्कोसं रसतो, जहणं थोत्रा णिज्जराचे मणिय होति, सो वेब कलमोदणो जदा अण्णेहिं दव्यतो उक्कोसो रसतो मज्झिमगुणतो मज्झिमं चेव, जेण दव्यतो उकोसो, इयाणि जो मज्झिमा तोदणाते दबतो मज्झिमा अबिलेण रसओ उकोसा गुणतो मज्यं, ते चेत्र आयामेणं दव्वतो जहणं रसओ मज्झं गुणओ मां उण्दोदएण दब्बजहण्णं रसजहणं गुणुकोसं, बहुनिज्जरंति भणियं होति, अहवा उकोसए तिभि विभागा उकोको उक्को
(330)
आकार व्याख्या
॥३१७॥
Page #331
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
vभाग-5 "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- 13 समझिम उकोसजहनं, कंजियाआयामउण्होदयादिहिं जहण्णा मज्झा उकोसा णिज्जराधि, एवं मज्झिमउकोसं ३, जहन्नमकोर्स ३,13 आकारख्यान
|एवं तिमुवि भासियव्यं । छलणा णाम एगेण आयंबिल पच्चक्खायं, हिंडतण सुकोदणोणेण गहितो,अण्णण णवखीरेण णिमंतितो, दि व्याख्या चूर्णिः
घेतूण आगतो आलोतिय पजिमितो, गुरूहि भणिय-तुज्झ अज्ज आयंबिल पच्चक्खायं, सो भणति-सच्चगं, तो किं जेमेसि', ॥३१८॥
18 भणति-जेण मे पच्चक्खायं, जहा पाणातिवाए पच्चक्खाते ण मारिजति एवं आयंबिले पच्चक्खाते ण तं कीरति, एसा छलणा दणाम णायन्या । पंच कुडंगा लोगो वेदा समतो अनाणं गिलाणं, कुंडगत्ति एगेण आयविलस्स पञ्चक्वायं, हिंडतेण संखडी संभो
तिया, सो पडिग्गहं भरिततो आगतो, अण्णता आलेोतितो भणितो-तुज्झ आयंबिलं पञ्चक्खाय, सञ्चय खमासमणा, एयं आय| चिल लोगसत्याणि परिमिलियाणि अम्हेहि, तत्थ ताव ण दिई आयंबिलं च, तहा चउसुवि संगोवंगेसु वेदेसु समयाचारपरिवायसकादीण, ण कहिंवि दिष्ट, तुभं कतो आगतोत्ति, अण्णाणेण भणति-ण यागामि खमासमणो ! केरिस तं आयंबिलं, अहं
जाणामि कुसणाहिवि जिम्मिविति, तेण मए गहितं, मिच्छामि दुक्कड, पुणो पेच्छामि, गिलाणकुडंगो भणति-मम अकारयं आय-12 ४ बिलं सुलो वा उट्ठति अग्नं वा किंचि उद्दिसति ताहे ण तीरति करतुं । तस्स अट्ठ आगारा
अणाभोगसहसक्कार लेवालवेणं उक्वित्तविधेगेणं निहत्थसंसट्टेणं पारिहापणियागारेणं महत्तरागार सव्यसमाहिवत्तियागारणं वोसिरति ।।
अणाभोगसहस कारा तहेब, लेवालेवे जदि भायणेण पुग्वं लेबाई गहियं जा समुद्दिढ सलिहिय, जति तेणं आणति ण ॥३१॥ 10 भञ्जति, उक्वित्तविबेगो जं आयंबिले पडति विगतिमादि तं उक्सिविता परिठ्ठाविज्जति य, गरि गलिओ अण्णं वा आय
CHECACARRORECASS
CANCE
दीप अनुक्रम [६३-९२]
(331)
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्याख्यानचूर्णिः
॥३१९॥
दीप अनुक्रम [६३-९२]
| बिलअप्पाउगं जदि उद्धरित तीरति, उद्धरिएणं न हम्मति । गिहस्थसंसहे णाम जदि गिहत्थडोयलियभायण या लेखाचा आकार कूसणादीहिं तेण जदि इसित्ति लेवादीहिं देति ा भजति, जदि बहुरसो आलिीखज्जति बहुतो ताहे ण कप्पति, परिवाचणिय-
बापाला महत्तरगसमाहीतो तहेच ६ ॥ इयाणि अभचट्ठो। तस्स पंच आगारा- अणाभाग सहसक्कारा पारिहावाणिया महयरा समाहिति जति तिविहस्स पचयखाति विगिचणिय कप्पति,जदि चउब्धिहस्स पाणगं च नास्थि न पद्दति,जदि पण पाणगंपि उडरिय ताहे से कप्पति ।। जदि तिविहस्स पश्चक्वाति ताहे से पाणगस्स छ आगारा-लेबाहेण या अलेवाडेन वा अोणIDI वा पहलेण वा ससित्धेण वा असिस्थण वा बासिरति । वुत्तस्था एते पदा छप्पिाचरिमं दुविहं-भवचरिम दिवसचरिमाला च, तत्थ भवचरिमं णाम जावीचं गतं,तस्स चत्वारि आगारा,दिवसचरिमस्स अणाभोगो सहस्सकारो महत्तरागारो सबसमाहीती, II जावजीवकस्सपि एमेव चत्वारि ८। अभिग्गहे अवाउडियस्स पच्चक्खाति, अणाभोगे सहसक्कारो चोलपट्टएणं महरिंग
सामधित्ति एते पंच, सेसाणं अभिग्गहाणं एते चेव चोलपट्टयजं चत्तारि आगारा ९। निश्चितीए णव आगारा, अहवा तत्थ चिगतिला सचिव न जाणामो,का य विगतित्ति,तस्थ नव विगतीतो खीरं दधि नवनीतं सपि तेलु महुँ मजं गुलो पुग्गलत्ति, तत्थ पंच खीरा४णि-गावणिं महिसीण उट्टीणं अजाणं एलियाणं,उट्ठीणं दधि नत्थि नपनीतं धर्य च, णवणीतघयवजा, चत्तारि खीरा, असलिहसुनसे सरिसवतेल्याणि, एयातो विगतीतो लेबाडातिं पुण होंति । दो बिगहा कट्टनिष्पणं उच्छुमादि पिट्ठनिष्फण्णं,फाणिया दोभि-दयगुडी या ॥३१९।। कापिंडगुडो य, मधूणि तिष्णि-मच्छियं कुत्तियं भामरं,पोग्गलाण जलचरं थलचरं खहचरं अहवा चम्म मैसं सोणितं । एयातो नव विगतीती, द्र ओगादिमं च दसमं तं जाहे कबल्ली अद्दहिया ताहे एग ओगाहिमगं चलंतं पञ्चति,सफ्फेणं तेणेव धारणं चितियं ततियंति,सेसाणि अजोग
-ECRE
(332)
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०)
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान चूर्णिः
प्रत सत्रांक [सू.]
॥२२०॥
दीप अनुक्रम [६३-९२]
वाहिणिवीताणं कप्पति यदि णअंति,अह एग चेव जाहे तवगं सब पूरेति ततो वितियं च कप्पति,लेवाडाणि या विगतीए दुविहा आगारा पारिष्ठाअट्ठ नव य,दवेसु अट्ठ अणाभोगो सहसक्कारो लेवालेबो गिहत्थसंसडेणं पडुबमखिएणं पारिठ्ठावणियाए महत्तरगा
पनिकी समाहिआकारहिं बोसिरति। पट्टच्चमक्वियं णाम जदि अंगुलीहिं गहाय मक्खेति तेल्हण वा घएण वा थोवएणं ताहे निव्वीत-12 |कस्स कप्पति, धाराए स वीगई भवति, सेसाणि पुख्वभणियाणी, ताणि ओगाहिमगगुलाणं, जं वा अपग्परितं णवणीयं यं वा तेसिं नव आगारा, उक्खिचविवेगेणं गतो, तत्थ जंगिहत्थसंसट्ठ तस्स करिसी, तस्सेमा विधी-खारेण जदि कुसाणियतो करे | लम्भत्ति तस्स जदि कुंडगस्स ओदणातो चत्तारि अंगुलाई पुब्ब ताहे निश्चितगयस्स कप्पति,पंचमं चारद्धं विगती य,एवं दहिस्सवि, 12 एवं विगडस्सवि, केसुवि देसेसु विगडेणं मोसिज्जति ओद्रणो ओगाहिमओ वा,फाणियगुलस्स णवणीयस्स अदामलगमेत्तं संसहूं, जदि बहुगाणिवि एयप्पमाणाण तो कप्पति,एक्कषि वईन कप्पति । इदाणिं पारिट्ठावणियाआगारो तेसु तेसु ठाणेसु भाषितो| | तो सो कस्स दायब्यो ण वा दायब्धो केरिस वा पारिट्ठावाणियं दायब्वं ण दाययंति, ते सव्येवि दुबिहा आयंबिलगो य अणायं| बिलगो य,आयंबिलिओ आयविलितो चेब,अणायंविलितो निव्वीयं एगासणगं एगट्ठाणगं चउत्थं छटुं अट्ठमं, दसमादियाणं ण वट्टति दातुं, तस्स पेज्जे उण्हं वा देति,विय सो सदेवयतो होति । एक्को आयंबिलिओ एगी चउत्थभत्तितो कस्स दायब्वं?,चउत्थभत्तियस्स दायब, दोवि ते आयंबिलिगा अभत्तद्विगा वा, एगो बुडो एगो बालो, बालस्स दायब, दोबि चाला दोवि बुड्डा एगो सह एगो असह, असहुस्स य दायब्वं, दोबि असहा एगो हिंडतो एगो अहिंडगो, अहिंडयस्स दायच, दोवि हिंडया दावि वा अर्डि-13॥२०॥ डया, एगो पाहुणगो एगो बत्थचतो,पाहुणगस्स दायव्वं । एवं आयंबिलिओनि, छट्ठभत्तितो आयंविलितो य अट्ठमभनितो आर्य-IP
RECARS.
(333)
Page #334
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 (४०) । अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३]
- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक
ख्यान चूर्णिः
ला
॥३२॥
[सू.
& विलितो य एगढाणागइतो य आयंविलितो य निव्वीतो य आयंविलियो य, एवं चउत्थभत्तिएणवि भंगा, एवं छट्ठभत्तिएणवि पारिष्ठा
पनिकी भंगा, एवं एगट्ठाणगतित्तणवि एवं एगासणगत्तणवि एवं णिवीएणवि णायच्या, एवं आयंबिला भासियवा जथाविधि, अण्णे ।
भणति एक्कासणगादिसु जेसु पारिट्ठावणियाकारो भण्णति सो केसिंचि दायव्वो,केरिसं वा पारिहावाणिवं दायव्वं तदर्थमिदमुच्यते#आयंबिलणायंबिल०॥ १७०६ । एक्को आयंविलितो एको य अणायंविलिओ एतेसिं कस्स दायव्वं पारिवावणिय ,II.
आयंविलियस्स दायव्वं, दोवि आयंबिलिया होज्जा, तेसिं एको बालो एगो बूढो कस्स दायवं, वालस्सदायव्वं, दोवि वाला एगो सहू एगो असहू, असहस्स दायब, दोवि असह एगो हिंडतो एगो अहिंडतो, अहिंडयस्स दायब्व, दोवि हिंडया एगो &
दोवि वा अहिंडया, एगो पाहुणओ एगो बत्थव्वओ, पाहुणगस्स दायव्वं । एसा एगा आवलिया । अहवा दोवि बूढा होज्जा, ठा एत्थवि सधुयादीहिं जाव पाहुणतो, एवं चउत्थमचीएणवि बालादी णेयच्या, सबस्थवि असहमादी यवं । तहेब छहभत्ती-13
रवि । अट्ठमभत्तियस्स पारिट्ठावणिया ण दिज्जति, किं कारणं, तस्स तं सीओणादि यच्छंतस्स पढम पेज्जाति उण्हयं दिज्जति तं पुण वियर्ड्स, केति आयरिया अदुमा पभणंति केति दसमादि,जेमि अट्ठमं अवियर्से तेसिं अट्ठमेण य णायव्वं, एवं एकासणतोवि, एगठाणेवि, णिब्वियएवि । इयाणि संजोगो आयंबिलिएणं चउत्थभत्तिएणवि, बालादी तहेव जाव पाहुणए, एवं आयविलिएण । छट्ठभत्तिएण य, एवं एक्कासण एगठाणणिव्यीया जाव तहेव छट्ठभत्तीएणं णेय जाब णिग्बीयं, ताहे अट्ठमेण जाव णिवीत ॥३२१॥ | ताहे एक्कासणएणचि एकठाणेणवि । तं पुण पारिद्वावणियं जदि एवं भवेज्जा तो मुज्जति-विहिगहित विहिभुत्तसेस, नत्थर 8 विधिगहितं भिक्ख हिंडंतेहि अलुद्धेहिं संजोयणादोसविप्पजढेहिं उग्गमियं, पच्छा मंडलीए पतरकडगच्छेदसीहखदिएण वाटू
दीप अनुक्रम [६३-९२]
*
(334)
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) |
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- 18| समुट्ठि, एवंविधं गुरूहि अणुण्णायं संदिसावेतु आवलियाए कप्पति भोत्त, बीयभंगे तहेव विधिगहितं, भुत्तं पुण काकसी-13ापपेनेदार ख्यान
दयालादिदोसदुहुँ एरिसं ण कप्पति, ततिए अविहिगहितं वीसुंर उक्कोसगाणि गहियाणि, एवं से कायञ्चति, अहवा कारणे असंचूर्णि
धरणादिसु गहिये, पच्छा मंडली रातिणिएण विधीए भुतं,एत्थवि आवलियाण कापति,चउत्थेण कष्पतित्ति । भावपचक्खाणं गतं,। ॥३२॥॥४ा पञ्चक्खाणंति पदं समत्तं । पच्चक्रवाणेण०॥ १७०९ ॥ तेण पच्चक्खाणेण पञ्चक्खातो पञ्चक्खातितो पसूतिया भवंति,
| तत्थ पच्चखातओ आयरितो पच्चक्खातिओ सीसो, तत्थ भंगा-जाणतो जाणयस्स पच्चक्खानि सुद्ध पच्चक्खार्ण, जाणतोल अजाणयस्स जाणाचेतुं पच्चक्खाति सुद्ध, अजाणतो जाणयस्स पच्चस्खाति ण सुबे, पभुसंदिडादिसु विभासा, अयाणगा अयाण-। गस्स पच्चक्खाति असुद्धमेव । एत्थ गावीतो सीवीणियवीसमणत्थाणेसु ओलोएन्तो जाणति गोवालो सामी घरे,तातो सुई रक्षि-| |ज्जति, वितियं गोवालो ण याणति कह रक्खतु, ततिए सामी पहितणढातोवि जाणति, चउत्थे सामी ण जाणति जा गोवालोचि | कोण जाणतिति उपसंहारो काययो,जाणतो जाणएणं पच्चक्खादिति सुद्ध१ जाणतो अजाणएणं पचक्खावेति, केणति कारणेण पच्च-11 | क्खावेंततो तो सुदं, अणिमित् ण सुज्झति २ अयाणतो जाणएणं पच्चक्खावेति सुद्ध ३ अयाणन्ते अयाणएणं ण सुद्धति ४॥ ।
पच्चक्खायव्वयं पृण दुविहं-दव्बंमि असणादी भावम्मि अण्णाणादित्ति ॥ इयाणि परिसा, सा पुच्वं भाणिया जहा हेड्डा सामातियणिज्जुत्तीए सेलघणकुडगचालणि ॥ १३९ ॥ पुब्वभणिया गाथा, इह पुण सेसो भण्णति, सा परिसा दुबिहा-उवपाठविया अणुबठविया य, उवडिताए कईयव्य, इयराए पवि, उवाहिता दुविदा-समोवहिता मिच्छोवाहिता य, मिच्छोवाडिया जहा
गोविंदा, संमोवडियाणं कहेयन्वं, णेतराणं, संमोवाडिया दुविहा- विणतोवहिता अविणतोवहिता य, अविणतोवष्टियाए ण
4%AECSCIENC4
दीप अनुक्रम [६३-९२]
13२२
82
(335)
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्याख्यानचूर्णिः
विधि:
॥३२३॥
दीप अनुक्रम [६३-९२]
है वहति, विणतोवहिता दुबिहा- वक्खित्ता य अवक्खिता य, वक्खित्ता जा सुणेति सिव्यति वा एवमादिया, अवक्खित्ता ण कंचिविल
अर्म करेति केवल सुणेति, अवक्खिताए कहेयर, जा सा अबक्खित्ता सा दुविहा-उबउत्चा अणुवउत्ता य, अणुबउत्ता जा सुणेति अण्णण्णाणि प चिन्तेति, उवउत्ता जा निचिन्ता सुणति, उपउत्ताए कहेयध्वं, पच्चक्खाणं एरिसियाए परिसाए कईयवं, ण केवल पच्चक्खार्ण, सम्वं आवासयं सब्बं सुयणाणं कद्देयव्य, कार विहीए कहेयब्बी, पुष्वं भाणिय-मुत्तत्थो खलु पदमो॥२४॥ तत्थ विसेसो जो आणाए गझो अत्थो भवति सो आणाए कहेतव्यो,जदि आणाए दिहतो भवति तो दिहतेण कहेयब्बो भवति, अण्णाहा। कहणविधि विणासिया भवति, एत्थ बाणियदारतो उदाहरणं, वाणिएण पुत्तो रयणपरिच्छितं सिक्वाचितो,तस्स य बहुया रपणा, | भरंतो भणति-एते रयणा, हमस्स माणिकस्स एत्तियं मुलं, एयस्स य इमंति, तं स सरहति, पवि तातो अलिक्कयं भणिहिति । एवं | | उवणतो वीयरागा हि सर्वज्ञा०सिलोगो,यो दृष्टान्तसाध्योऽर्थो तत्थ दिहतो भाणितब्बो, तत्थ मातंगो उदाहरणं,एगेण हरितेण ४ भोतिए सागारियठाणं पासिऊण भमति-अहो ते सुंदरं, तीए भणियं-जदि मम खन्तीए पासज्जास तो ते विम्हतो होन्तो, आवत्तो तो गामं गतो जत्थ से खंती, तेणं सा णिवातिया, सा कप्पही?, भणति-अकल्ला, तो जामो, एवं होउति पटियाणी, तेण य ततो
पत्तएणं अमत्थ मंस अमत्थ सुरा एवमादीणि वह्निताणि, एतो ण भवति, एस सउणो वाहरति, भणति-मंस लेहि, महा गया, पालद्धं, एवं पुणो पसियावीया, ताहे ताए णायं महानेमिची एस. ताहे पुणोवि सउणेण बाहरितं, ताहे कण्णा ठएति, पुच्छति-कि
ठएसि', भणति-सङणो बाहरति जंतं असोतब, णिबंध करेति, भणति- अक्खामि, सउणो भणति-जदि ते पडिसेवामि तो तीए कप्पड्डीए अस्थि जीवितं, अहणवि तो मरति, पडिस्मुयं पडिसविया, एवं उवणयविभासा ॥ याणि फलं, तं दुविहं-इहलोए
॥३२३॥
(336)
Page #337
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत्याख्यान चूर्णिः
प्रत सूत्रांक [सू.]
॥३२४॥
धम्मिलोदाहरणं, जहा वसुदेवहिंडीए, आतिसद्दा आमोसहिमादिया घेप्पंति, परलोए दामण्णगादी, तत्थोदाहरण-रायपुरे णगरे दामनकएगो कुलपुनजातितो, तस्स जिणदासो मित्तो, तेण सो साहुसगास नीतो, तेण मच्छयमंसस्स पच्चक्खाणं गहितं, दुम्भिक्खे मंससमाहारो लोगो जातो, इयरो सालेहिं महिलाए य खिसिज्जमाणो गतो, उइण्णो दई, मच्छं दटुं पुणरावती जाया, एवं तिमी दिवसे तिमी वारा गहिता मुक्का य, अणसणं काउं रायगिहे णगरे मणियारसडिपुत्तो दामनगो नाम जातो, अडवारिसस्स कुल मारीतो च्छिण्णं, तत्थेव सागरपोतसत्यवाहस्स गिहे चिहुई, तत्थ य एगेण भिक्षुणा संघाडइलस्स कहियं- एयरस गिहस्स एस दारगो आहिवति भविस्सति, सुर्य सत्यवाहेण, पच्छन्नं चंडालाण अप्पितो, तेहिं रे तुं अंगुले च्छेतुं भेसिउणिवीसओ कतो,
नासन्तो तस्सेव गोसंघिएण गहितो पुत्तोत्ति, जोव्वणत्थो जातो, अण्णया सागरपोतो तत्थेव गतो, तं दटुं उवाएणं परियणं पुच्छत्ति&|कस्स एस, काहिय-अणाहोत्त इहागतो, इमो सोति भीतो, लेहं दाउं घरं पावहित्ति विसज्जितो, गतो रायगिहवाहिरपरिसरे|8V
देवउले सुवति, सागरपोतध्या विसा णाम कष्णा. तीए अचणियवावडाए दिहो, पितामुद्दमुद्दियं दटुं बाएति, एतस्स दारगस्सी असोहियामक्खियपादस्स विसं दायव्वं, अणुस्सारफुसणं, कण्णगदाणं, घुणोवि मुद्दति, नगरं पविट्ठो, विसाणेण विवाहिया, आगतो 81
॥३२४॥ | सागरपोतो, माइघरअच्चणियविसज्जणं, सागरपुत्तमरणं सोउं सागरपोतो हिदपुष्फालेण मतो, रण्णा दामण्णगो घरसामी कतो, | भोगसमिद्धी, अभया पञ्चावरण्हे मंगलिएहिं पुरतो से उम्गीतं-अणुपुंखमाषयंतावि अणस्था तस्स बहुगुणा होति । सुहुदु.
क्वकच्छपुडतो जस्स कयंतो वहति पक्खं ॥१॥ सोउं सयसहस्सं मंगलियाण देति, एवं तिनि करा तिमि सयसहस्सााण, भारण्णा सुयं,पुच्छएणं रमो सिढु,तुद्वेण रबा सेट्ठी ठावितो। बोधिलाभो पुणो धम्माणुहाणं देवलोगगमणं,एवमादि परलोए । अणुगमो
दीप अनुक्रम [६३-९२]
%
(337)
Page #338
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम
(४०) ।
भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं (२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
दामनक कथा:
प्रत सूत्रांक [सू.]
ख्यान चूर्णिः ॥३२५॥
सम्मत्तो ।। गाणिं नया। ते य जहा पुव्य, तत्थ दुवे नया-अज्झयणणतोय करणणतो य । अज्झयणणतो णायम्मि गिहि- यवे० ॥ १७१८ ॥ करणणतो य सब्वेसिपि नयाणं० ॥१७१९ ॥ इइ पच्चक्स्वाणज्झयणचुण्णी सम्मत्ता
शुभं भवतु कल्याणमस्तु श्रीरस्तु । ग्रं०१९सहमाः। यादृशं पुस्तके दृष्टं तादृशं लिखितं मया । यदि शुद्धमशुद्ध वा,मम दोषो न दीयते | ५॥१॥ यावल्लवणसमुद्रो यावनक्षत्रमंडितो मेरुः। यावच्चन्द्रादित्यौ, तावदिदं पुस्तकं जयतु ॥ २ ॥ जलाद्धेत तैलाद्रक्षेद्रक्षेच्छि-पद
थलबंधनात् । परहस्ते न दातव्या, एवं वदति पुस्तिका ॥३॥ सं० १७७४ वर्षे पं. दीपविजयगणिनामाणिकर पं० श्रीन्यायसागरगाणिभ्यः प्रदत्ता ।।
दीप अनुक्रम [६३-९२]
॥ इइ आवस्सगनिज्जुत्तिचुण्णी सम्मत्ता ॥
BRECARE
न
॥३२॥
मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ४०)
"आवश्यकचूर्णि:-३ परिसमाप्ता:
(338)
Page #339
--------------------------------------------------------------------------
________________
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
पूज्य आनंद-क्षमा-ललित- सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः
भाग-5
पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधितः संपादितश्च “आवश्यक मूलसूत्र” [निर्युक्ति एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णिः (भाग-२)]
(किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह )
मुनि दीपरत्नसागरेण पुनः संकलिता “आवश्यक” निर्युक्ति एवं चूर्ण: परिसमाप्ताः
सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि श्रेणि, भाग-५ [आगम-४०]
(339)
Page #340
--------------------------------------------------------------------------
________________
ਤਰਕ ਨੂੰ ਮਿਲ ਸਕਲ
ਸ
ਗ ਹੈ
यामा राज्य
एका
आगम वाचना शताब्दी वर्ष
ਭਗਤ ਸੈਣ ਨੂੰ
ਹੁਣ ਤ
ਕ
ਬਹੁਤ
(340)
Page #341
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगम आगम आजम आजस
मनम
BUSTST
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
सचूर्णिक-आगम-सुत्ताणि
मूल संशोधक
पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य
श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज
राज
आजम
आजम
375TH
आजम
अभिनव संकलनकर्ता
(341)
STORE
आग
अर
आगम
BIOTE
राजम
आगम दिवाकर मुनिश्री दीपत्नसागरजी [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि ] आजम
प्रत- प्राप्ति और पेज सेटिंग कर्ता : के चेरमन श्री प्रवीणभाई शाह, अमेरिका मुद्रक : नवप्रभात प्रिन्टींग प्रेस अमदाबाद Mo 9825598855 / 9825306275
Page #342
--------------------------------------------------------------------------
________________
ईस प्रोजेक्ट के संपूर्ण-अनुदान-दाता ।
सच्चारित्र चूडामणि स्वर्गस्थ पूज्यपाद गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री देवेन्द्रसागर
सूरीश्वरजी महाराज साहेब
श्री परम आनंद श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ वीतराग सोसायटी, प्रभूदास ठक्कर कोलेज रोड, पालडी, अमदावाद
करीब पचास साल पहेले परम पूज्य स्वर्गस्थ गच्छाधिपति आचार्य देव श्रीमद् देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा संस्थापित इस संघमें श्री शीतलनाथ भगवंत का जिनालय भी है, जिन के प्रतिष्ठाचार्य भी पूज्य देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म० ही है।
इस संघर्म पूज्य साधू -भगवंत एवं साध्वी -महाराज के लिए उपाश्रय भी है, जहां हर-साल चातुर्मास करवा के श्रावक-श्राविकाओ को धर्म-आराधन से लाभान्वित करवाया जाता है | इस संघमें आयंबिलभवन, उबाला हुआ पानी, ज्ञान-भण्डार एवं पाठशाला की भी बहोत अच्छी सुविधा प्रदान हो रही है | ऐसे सम्यग्-मार्गी संघ की सद्भावना और प्रभावक आचार्य पूज्य श्री हर्षसागरसूरिजी म. की प्रेरणा से इस शास्त्र के लिए अनुदान प्राप्त हुआ है |
(342)
Page #343
--------------------------------------------------------------------------
________________ आगम आगम आगम आगम आजम आजस __ मूल संशोधक आजस आजसा पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्य / श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजसाहेब आम आजम आजम आजम आगम आगम आगम आगम - 40 "आवश्यक नियुक्ति एवं चूर्णि: [3] आगम आण अभिनव-संकलनकर्ता आगम आगम दिवाकर मुनिश्री दीपरत्नसागरजी आगम [M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि] आगम आगम आगम आगम / आजम् आगम आगम (343)