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आगम
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भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
सूत्र प्रत्या- संविभागो, तत्थ सामातिय नाम सावज्जजोगपरिवज्जणं णिरवज्जजोगपरिसेवणं च, तं सावएण कई काय?, सो दविहो-शिक्षावतेषु
सामायिक IPाइपित्तो अणा पत्तो य, जो सो अणिविपत्तो सो चड्यघरे वा साधुसमीवे वा घरे वा पोसहसालाए वा जत्थ या वीसमति।।
अच्छति वा णिव्यावारी सम्वत्थ करति सब, चउसु ठाणसु णियमा काय, तंजहा-चतियघर साहुमूले पोसहसालाए वा घरे
वा आवासं करेंतोत्ति, तत्य जदि साहुसगासे करेति तत्थ का विही?, जदि पारंपरभयं णस्थि जइवि य केणइ समं विवादो ॥२९९॥
णत्थि जदि कस्सति ण धरेति मा तेण अंछवियंछियं कटिज्जति, जदि धारणगं दट्टण ण गिण्हति मा पडिभज्जिहि,जति य वाचार ण चावारेति ताहे घरे चेत्र सामातियं काऊण उवाहणातो मोतूणं सचित्तदवविरहितो वच्चति, पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाए उवउत्तो जहा साहू भासाए सावज परिहरंतो एसणाए कट्ठ लेटुं वा पडिलेहित्तु पमज्जित्तु एवं आदाणणिक्वेवणे खेलसिंघाणे ण विगिंचति, विगिंचिन्तो वा पडिलेहिय पमज्जिय चंडिले, जत्थ चिट्ठति तत्थ गुत्तिणिरोध करेति,एताए विहीए गंता तिषिहेण णमिऊण साधुणो पच्छा साधुसक्खियं सामातिय करेति-करेमि भंते ! सामाइयं दुविहं तिविहेणं जाब साहू पज्जुवासामिति | काऊज, जइ चतियाई अस्थि तो पढमं वंदति, साहणं सगासातो रयहरण निसज्ज वा मग्गति, अह परे तो से आग्महितं रयहरणं | अस्थि, तस्स असति पोत्तस्स अंतणं, पच्छा इरियाबहियाए पडिकमइ, पच्छा आलोइत्ता यंदा आयरियादी जहारायणियाए, पुणोवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहेत्ता णिचिट्ठो पुच्छइ पढइ वा, एवं चेइएसुवि, असइ साहूचेइयाणं पोसहसालाए समिहे वा, एवं सामाइयं वा आवस्सयं वा करेइ, तत्थ नवरि गमणं नस्थि, भणइ-जाव णियम समाणेमि । जो इविपत्तो सो किर ऐतो सचिडीए एइ तो जणस्स अत्था होति, आढिता य साहुणो सप्पुरिसपरिग्गहेणं, जति सो कयसामातितो एति ताए आसहत्थिमादि
दीप अनुक्रम [६३-९२]
रा२९९
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