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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[सू.]
+ गाथा:
||2,3||
दीप
अनुक्रम [११-३६]
भाग-5 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 3
भाष्यं [२०५-२२७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
अध्ययनं [४], मूलं [ सूत्र / ११-३६ ] / [गाथा - १, २],
निर्युक्तिः [१२४३-१४१५/१२३१-१४१८],
प्रतिक्रमणा ध्ययने
॥१२४॥
दुरायं वा वत्थए, णो से कप्पति एगरायाओ वा दुरायाओ वा परं वत्थए, जड़ तत्थ एगरायातो वा परं वसति से संतरा छेदे वा परिहारे वा, तस्स णं कप्पंति चत्तारि मासाओ भासित्तए, तंजथा- जातणी पुच्छणी पण्णवणी सुद्धस्स वागरणी, तस्स णं कप्पंति तओ उवस्सगा अणुष्णवेत्तए, तंजथा- अधे आगमण गिर्हसि वा अहे वियडगिहंसि वा रुक्खमूलगिहंसि वा तस्स णं कप्पति तओ उवस्सगा ओवाणियत्तए, तं चैव तस्स णं कप्पति तओ संधारगा पाडलेहित्तए, वं० पुढविसिल वा कसिलं वा अथासंथडमेव, तस्स णं कप्पति से पुत्रि पडिलेहित्तए, तओ संधारगा अणुण्णवेत्तए तं चैत्र, तस्स णं कप्पति तओ संथारगा उवायाणचए, तं चैव मासिय० इत्थी उवस्वयं उवागच्छिज्जा सइत्थीए वा पुरिसे णो से कप्पति तं पदच्च निक्ख मित्तए वा पविसित्तए वा, से उच्चारपासवणेणं ओबाहिज्जमाणे कप्पति उग्गेण्हितए वा पगिण्हत्तए वा, कप्पति से पुब्वपडिलेहिते थंडिले उच्चारपासवर्ण परिवेत्तए, तमेव उवस्सयं आगम आहाविहमेव ठाणे ठाइत्तए, मासिय० केइ उबस्सयं अगणिकाएणं झामेज्जा नो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पवित्तिए वा तत्थ णं केइ बाहाए गहाय आगसेज्जा णो से कप्पति अवलंबित्तए वा पञ्चवलंबित्तए वा कप्पर से आहारियं रिइत्तए, मासिय० पायंसि खाणु वा कंटए वा हीरे वा सकरा वा अणुपविसेज्जा णो से कप्पति निहरितए वा विसोहित्तए वा, कप्पति से आधारिये रोहत्तए, मासिय० अच्छिसि पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियावज्जेज्ज नो से कप्पति नीहरितए वा विसोहित्तए वा कप्पति से आहारीय रित्तिए, मासिय० जत्थ सूरिए अत्थमज्जा तं ० - जलांस वा थलसि वा दुम्गंसि वा निनंसि वा पव्त्रयंसि वा विससि वा तत्थेव सा रयणी उवादिणावेता सिया, नो से कप्पति पदमा गमित्तए, कप्पति से कल्लं पादुष्पभाते जाव जलते पाइणामिमुहस्स वा पदीणाभिहस्स वा दाहिणामिमुहस्स वा उत्तराभिमुहस्स वा
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भिक्षुप्रतिमाः
॥ १२४ ॥