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आगम
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भाग-5 “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 3 अध्ययनं [६], मूलं [सूत्र /६३-९२] / [गाथा-], नियुक्ति : [१६५२-१७१९/१५५५-१६२३], भाष्यं [२३८-२५३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिताचूर्णि: 3
प्रत सूत्रांक [सू.]
प्रत्या- 18| समुट्ठि, एवंविधं गुरूहि अणुण्णायं संदिसावेतु आवलियाए कप्पति भोत्त, बीयभंगे तहेव विधिगहितं, भुत्तं पुण काकसी-13ापपेनेदार ख्यान
दयालादिदोसदुहुँ एरिसं ण कप्पति, ततिए अविहिगहितं वीसुंर उक्कोसगाणि गहियाणि, एवं से कायञ्चति, अहवा कारणे असंचूर्णि
धरणादिसु गहिये, पच्छा मंडली रातिणिएण विधीए भुतं,एत्थवि आवलियाण कापति,चउत्थेण कष्पतित्ति । भावपचक्खाणं गतं,। ॥३२॥॥४ा पञ्चक्खाणंति पदं समत्तं । पच्चक्रवाणेण०॥ १७०९ ॥ तेण पच्चक्खाणेण पञ्चक्खातो पञ्चक्खातितो पसूतिया भवंति,
| तत्थ पच्चखातओ आयरितो पच्चक्खातिओ सीसो, तत्थ भंगा-जाणतो जाणयस्स पच्चक्खानि सुद्ध पच्चक्खार्ण, जाणतोल अजाणयस्स जाणाचेतुं पच्चक्खाति सुद्ध, अजाणतो जाणयस्स पच्चस्खाति ण सुबे, पभुसंदिडादिसु विभासा, अयाणगा अयाण-। गस्स पच्चक्खाति असुद्धमेव । एत्थ गावीतो सीवीणियवीसमणत्थाणेसु ओलोएन्तो जाणति गोवालो सामी घरे,तातो सुई रक्षि-| |ज्जति, वितियं गोवालो ण याणति कह रक्खतु, ततिए सामी पहितणढातोवि जाणति, चउत्थे सामी ण जाणति जा गोवालोचि | कोण जाणतिति उपसंहारो काययो,जाणतो जाणएणं पच्चक्खादिति सुद्ध१ जाणतो अजाणएणं पचक्खावेति, केणति कारणेण पच्च-11 | क्खावेंततो तो सुदं, अणिमित् ण सुज्झति २ अयाणतो जाणएणं पच्चक्खावेति सुद्ध ३ अयाणन्ते अयाणएणं ण सुद्धति ४॥ ।
पच्चक्खायव्वयं पृण दुविहं-दव्बंमि असणादी भावम्मि अण्णाणादित्ति ॥ इयाणि परिसा, सा पुच्वं भाणिया जहा हेड्डा सामातियणिज्जुत्तीए सेलघणकुडगचालणि ॥ १३९ ॥ पुब्वभणिया गाथा, इह पुण सेसो भण्णति, सा परिसा दुबिहा-उवपाठविया अणुबठविया य, उवडिताए कईयव्य, इयराए पवि, उवाहिता दुविदा-समोवहिता मिच्छोवाहिता य, मिच्छोवाडिया जहा
गोविंदा, संमोवडियाणं कहेयन्वं, णेतराणं, संमोवाडिया दुविहा- विणतोवहिता अविणतोवहिता य, अविणतोवष्टियाए ण
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दीप अनुक्रम [६३-९२]
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