Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड ने किया। • बीकानेर के धोरों का अनुभव
पूर्वाचार्यों द्वारा रत्नत्रयी के बोधिबीज का वपन, अंकुरण और सिञ्चन बीकानेर क्षेत्र में हुआ जानकर आचार्य | श्री ने नवदीक्षित संतों का मनोबल बढ़ाने हेतु तथा कष्ट सहिष्णुता जगाने हेतु चरितनायक को बीकानेर विहार का संकेत किया। आचार्य श्री चाहते थे कि हमारे नवदीक्षित सन्त अतिकठिन समझे जाने वाले, बालू के समुद्र वाले मरुप्रदेश में विचरण कर नये-नये अनुभव प्राप्त करें। भुरण्ट (कांटे) से भरे बालू के बड़े-बड़े टीलों और मैदानों के पारगामी कण्टकाकीर्ण पथों पर दृष्टि गड़ाए चलने से इन्हें अपनी चित्तवृत्तियों को एकाग्र करने का अभ्यास होगा,
आत्मविश्वास जागृत होगा। उन्होंने इस बात को अपने मन में रेखांकित किया कि अजमेर से मेड़ता तक प्रथम विहार में वय की अपेक्षा सबसे छोटे एकादशवर्षायुष्क मुनि हस्ती ने अपने दृढ़ मनोबल का परिचय दिया है। अत: यह होनहार संत निश्चय ही श्रमण धर्म के कठोर परीषहों को सहन कर एक दिन सन्त-परम्परा का आदर्श स्थापित करेगा। ___आचार्य श्री शोभा गुरु की छत्रछाया में मुनि हस्ती खजवाणा, मूंडवा होते हुए नागौर पधारे, जहाँ बीकानेर के प्रेमी श्रावक विनति हेतु उपस्थित हुए। नागौर से गोगोलाव, अलाय आदि ग्राम नगरों को फरसते हुए कक्कू-भग्गू के धोरों को पार कर देशनोक की तरफ अग्रसर हुए। बालुका से परिपूर्ण विस्तृत मैदानों के कैर, बेर, बबूल, खेजड़े और फोग की झाड़ियों और पेड़-पौधों से भी पथिक मुनि हस्ती ने सीख ली कि कंटीला और कठोर जीवन भी आनंदमयी और परोपकारी हो सकता है। धोरों की धरती के ऊंचे रेतीले टीलों पर धंसते पैरों से श्रमपूर्वक चढ़ते हुए बाल मुनि का भाल मोती जैसे स्वेद बिन्दुओं से चमकने लगा। गुरुवर ने ठीक ही तो कहा था कि साधना की ऊंचाई पाने हेतु श्रमणत्व की कठोर चर्या साधन है जो मोक्ष की अलख ऊंचाई की प्राप्ति कराता है। 'टीबा कुण का भारा राखै है' लोकोक्ति का अर्थ मुनि हस्ती ने समझ लिया कि सही ढंग से किया गया श्रम कभी निष्फल नहीं होता। रेतीले रास्तों की पद-यात्रा की परीक्षा में भी मुनि हस्ती उत्तीर्ण रहे। बीकानेर नगर प्रवेश के अनन्तर मालूजी की कोटडी में विराजे । यहाँ श्रावकों ने सन्तों से प्रश्नोत्तरों का लाभ लिया। सेवा में भी उपस्थित होते । सेठिया भैरोंदानजी, राव सवाईसिंह जी , सुराणा भेरूमलजी, बाबू आनन्दराजजी , लाभचन्दजी डागा आदि ने सन्तों का विशेष लाभ लिया। बीकानेर पूज्य जवाहराचार्य का प्रमुख विचरण क्षेत्र था। अत: सतारा विराजते हुए उन्होंने श्रावकों को सन्तों की सेवा का लाभ लेने हेतु विशेष भोलावण भिजवाई। जोधपुर, नागौर और समीपवर्ती स्थानों से समागत तथा स्थानीय श्रावक दर्शनार्थियों का तांता लग गया। मुनि हस्ती को तो ज्ञानाभ्यास की लगन लग गई। श्री भैंरोदान जी सेठिया द्वारा मुनि श्री के अध्यापन की समुचित व्यवस्था से उनका शास्त्रीय अध्ययन परवान पर चढ़ने लगा। पूर्व पठित एवं कण्ठस्थ किये गए शास्त्रों एवं व्याकरण, कोश, स्तोक आदि के परावर्तन का क्रम निरन्तर मुनि श्री को उत्साहित करने लगा। पारमार्थिक संस्था के पण्डितों का शिक्षण में सहयोग मिलता रहा। बीकानेर नगर के निवासियों, उनके रहन-सहन एवं उनकी भाषा आदि का परिचय पाकर वे अपने अनुभव को पुष्ट करने में भी थोड़ा-थोड़ा समय लगाते थे।
बीकानेर प्रवासकाल में मुनि श्री हस्ती और उनके सतीर्थ्य मुनि श्री चौथमलजी महाराज का होली चौमासी पर केशलुञ्चन स्वामी जी श्री भोजराज जी महाराज द्वारा बड़े स्नेहपूर्वक किया गया। दिन प्रतिदिन बाल मुनि की कोमल काया परीषह सहन करने में उत्तरोत्तर सक्षम बनती गई। अजमेर से बीकानेर और अब बीकानेर से नागौर की ओर