Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
१८८
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
| बडे मुनिराज ' भजन द्वारा अपने भाव व्यक्त किये। वीर पुत्र पं. रत्न श्री घेवरचंदजी म.सा. ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति | करते हुए 'बाल्येऽपि संयमरुचि चतुरं' नामक संस्कृत श्लोक की रचना कर आपका गुणानुवाद किया।
इस अवसर पर उपाध्यायप्रवर श्री पुष्करमुनिजी म.सा. के शिष्य श्री रमेशमुनिजी शास्त्री ने आपके यशस्वी | जीवन पर संस्कृत में अष्टक प्रेषित किया, जिसके कुछ पद्य इस प्रकार थे
जगत्सु सन्तो बहवो महान्तः परन्तु सन्तं महतां महान्तम् ।
अहं वरेण्यं मुनिषूद्भटं तम् । तपस्विनां हस्तिमल्लं स्तवीमि ॥ १ ॥
पदे पदे सत्यकथं सुतथ्यम्
निरन्तरं यस्य मुनेश्चरित्रम् । समीक्ष्य सन्तोऽपि पुनर्नमन्ति मुनिं तमाचार्यमहं ब्रवीमि ॥ २ ॥
सुनिश्चितं मे मतमेतदेवम् जिनप्रभो: शासनसद्मनीति । ज्वलत्प्रभापूर्णविकासिदीपः प्रकाशमायाति मुनीश एषः ||३ ||
भवादृशाः साधुषु धीरवीरा: समन्विताः स्युः यदि साधुसंघे । परस्पराभाफलिते सुरत्ने यथा तु शोभा रमते तदा वः ॥४ ॥
पाली से सोजत, बगडी, पीपलिया होते पूज्यपाद २८ दिसम्बर को निमाज पधारे । यहाँ महासती कंचन कंवर
1
| जी मोतीझरा की अस्वस्थता के कारण विराज रही थी । आचार्य श्री ने स्वयं पधार कर मंगलपाठ सुनाया। जैतारण में आपने प्रवचन में फरमाया . " आत्मा का धर्म एक है। संस्था भेद से धर्म भिन्न नहीं होता। वीतरागता की ओर | बढाने वाला आचरण ही धर्म है। पानी को साफ करने के प्रकार भिन्न-भिन्न हैं, वैसे ही आत्म-शुद्धि के प्रकार अलग-अलग हो सकते हैं। मूल में जो आत्मशुद्धि की ओर विशेष अग्रसर करे वही प्रचार संस्था उपादेय है।” यहाँ से बिलाड़ा, पिचियाक, खेजरला, चिलराणी, पीपाड़ रीयां, चोढ़ा, पालासनी फरसकर आप जोधपुर पधारे, जहाँ यथासमय २ मार्च ७७ को दृढ़धर्मी सेवाभावी स्व. विजयमल जी कुम्भट की धर्मपत्नी राजुल बाई जी कुम्भट की दीक्षाविधि सम्पन्न हुई । नवदीक्षिता राजमती जी को महासती श्री बदनकंवर जी म.सा. की निश्रा में रखा गया। दीक्षा प्रसंग पर स्वामीजी ब्रजलालजी म, मिश्रीमलजी म. 'मधुकर' भी ठाणा ४ से पधारे ।
कोसाणा में अक्षय तृतीया पर्व - प्रसंग पर निःस्वार्थ समाजसेवी दाऊलाल जी सारड़ा, न्यायाधीश श्री मगरूप | चन्द जी भण्डारी, डा. बख्तावरमल जी मेहता एवं श्री मनोहरलाल जी चण्डालिया (अजमेर) का समाजसेवा के लिए | अभिनंदन किया गया । यहाँ बरवाला (गुजरात) परम्परा के आचार्य श्री चम्पक मुनि जी म.सा. के शिष्य श्री सरदारचन्द जी म.सा, श्री तरुणमुनि जी एवं श्री सवाईमुनि जी से स्नेह वार्ता हुई । मरुधर केसरी प्रवर्तक श्री | मिश्रीमलजी म.सा. की अस्वस्थता के समाचार प्राप्त हुए । आचार्य श्री उनकी सुखसाता की पृच्छा हेतु खवासपुरा