Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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वचन। • एक श्रावक दूसरे श्रावक का ज्ञान और श्रद्धा से भी साधर्मी है और व्रत से भी ।
सम्यक् दृष्टि श्रावक का फर्ज है कि यदि अपने सम्यक् दृष्टि श्रावकों में से कोई कमजोर है तो उसकी सहायता
करें।
• समाज जितना जिन्दा होगा उतना ही वह कमजोर भाइयों की सहायता करेगा।
चिन्तनशील समाज जगा हुआ कहलायेगा। ज्ञानवान चाहे अमीर हो या गरीब, अपने धर्म पर टिका रहेगा। • परवश होकर बड़ी से बड़ी वस्तु को छोड़ना त्याग नहीं है और इच्छा से छोटी से छोटी वस्तु भी छोड़ना त्याग |
• जब तक मानव के मन में राग, रोष स्वार्थ है और ज्ञानावरणीय का पर्दा मौजूद है तब तक वह सत्य को पूरी तरह
समझ नहीं पाता, कह नहीं पाता और आचरण में नहीं ला पाता। • जहाँ राग है, वहाँ रोग है, अत: राग के कारणों को घटाना चाहिए। भोग-उपभोग से कभी मन तृप्त नहीं होता, मन
को तृप्त करने का साधन है तप-त्याग। • त्यागी वह है जो उस चीज को छोड़ता है जो उसको प्यारी होती है। मन के सच्चे भाव से रमणीक वस्तु को
स्वयं बिना परवशता के छोड़ना त्याग है। • चीज पसन्द नहीं, शरीर के पीछे खाने की स्थिति नहीं, वह त्याग त्याग नहीं है जितना ज्यादा त्याग करोगे उतनी
ज्यादा ताकत आयेगी। • जो चीज अपने को पसंद है, स्वाधीन है, उपलब्ध है उसका इच्छापूर्वक त्याग करो, इसका नाम त्याग है। ऐसा त्याग करने वाले संसार में पूजनीय, आदरणीय बनते हैं, उनका वन्दन होता है। अन्न छोड़ना ही तप नहीं है। अन्न छोड़ने की तरह वस्त्र कम करना, इच्छा कम करना, संग्रहवृत्ति कम करना, कषायों को कम करना, यह भी तप है। • जब तक आदमी इच्छा की बेल को काट नहीं देता है तब तक सुखी होने वाला नहीं है। • मन का स्वभाव नीचे गिरने का है, इसलिये इसको ऊपर उठाने के लिये ज्ञान का बल लगाना पड़ेगा। • संसार के पदार्थ तभी खींचते हैं जब उनके प्रति तुम्हारा राग होता है, ममता होती है। • दुखः मिटाना चाहते हो तो जिन चीजों से दुःख होता है, उनके प्रति आसक्ति को ढीली कर दो। यह समझो कि
यह चीज मेरी नहीं है। जो चीज आपकी होगी वह आपसे कभी अलग नहीं होगी । जो चीज आपसे अलग होने वाली है, वह आपकी नहीं है। • दुःख और संताप का कारण यदि कोई है तो ममता है। यह कार, यह कोठी, यह बगीचा, यह कुँआ मेरे नहीं हैं, मेरी नेश्राय में हैं। अपने विचारों में इतना सा संशोधन भी कर लें, परिवर्तन कर लें तो कभी दुःख का जहाज अपने पर नहीं गिरेगा। जिस वस्तु पर हमारा ममत्व है वहाँ दुःख होता है, जिस पर ममत्व नहीं है वहाँ पर दुःख नहीं होता।