Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 917
________________ . - [पंचम खण्ड : परिशिष्ट | प्राप्त हुई । वर्तमान में श्री सोहनलालजी संकलेचा इसका कार्य देख रहे हैं। • श्री जैन रत्न पुस्तकालय, घोडों का चौक, जोधपुर घोडों का चौक स्थित श्री जैन रत्न पुस्तकालय का शुभारम्भ संवत् २००२ में हुआ था । यह पुस्तकालय बहुत ही समृद्ध एवं सेवा में समर्पित है। सन्त-सतियों एवं जिज्ञासुओं के लिये यह नियमित रूप से खुला रहता है। पुस्तकालय में लगभग २५००० पुस्तकें हैं जिनमें आगम, टीकाएं, प्रवचन साहित्य के साथ जैन धर्म-दर्शन विषयक सभी सम्प्रदायों के विविध ग्रन्थ उपलब्ध हैं तथा नया साहित्य भी आता रहता है। जैन समाज की प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं यहाँ नियमित रूप से आती हैं। पुस्तकालय का कार्य प्रारम्भ से ही वरिष्ठ स्वाध्यायी श्री सरदारचन्दजी भण्डारी सम्पूर्ण निष्ठा, कर्तव्यपरायणता एवं सेवाभाव से देख रहे हैं। व्यापार से निवृत्ति लेने के पश्चात् आप प्रात: १० बजे से अपराह्न ४ बजे तक पुस्तकालय को ही अपना समय देते हैं। यह पुस्तकालय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ , जोधपुर द्वारा संचालित है। हिण्डौन , गंगापुर, सवाई माधोपुर, बजरिया, पीपाड़ सिटी, पाली मारवाड़, खेरली, नदबई, भोपालगढ, नागौर, किशनगढ़, अजमेर, पावटा जोधपुर आदि स्थानों पर भी संघ में पुस्तकालय चल रहे हैं, जिनकी स्थानीय श्रावक-श्राविकाओं एवं चातुर्मास व शेषकाल में विराजित सन्त-सतियों के लिए महती उपयोगिता है। • जैन इतिहास समिति, लाल भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर युगमनीषी, इतिहास मार्तण्ड, परम पूज्य आचार्य भगवन्त पूज्य श्री १००८ श्री हस्तीमलजी म.सा. के वि.सं. २०२२ के बालोतरा चातुर्मास के अवसर पर सन् १९६६ में जैन इतिहास-ग्रन्थों के प्रामाणिक प्रणयन हेतु इस समिति का निम्न उद्देश्यों को लेकर गठन किया गया : (1) प्रारम्भिक काल से लेकर अद्यतन जैन-परम्परा के प्रामाणिक इतिहास का लेखन एवं प्रकाशन (ii) पुरातन ऐतिहासिक सामग्री का संकलन (i) अज्ञात एवं संदिग्ध ऐतिहासिक वृत्त्तों का अन्वेषण एवं प्रकाशन । समिति का पंजीकरण राजस्थान सरकार के राजस्थान संस्था पंजीकरण अधिनियम १९५८ के अन्तर्गत सन् १९७४ में हुआ। ग्यारह सदस्यीय कार्यकारिणी के अध्यक्ष श्री इन्द्रनाथजी मोदी, मंत्री श्री सोहनमल जी कोठारी, सहमंत्री श्री सिरहमलजी बम्ब एवं कोषाध्यक्ष श्री पूनमचन्दजी बडेर थे। श्री श्रीचन्दजी गोलेछा एवं श्री नथमलजी हीरावत के मार्गदर्शन में यह समिति सुचारु रूपेण कार्य करती रही है। श्री इन्दरचन्दजी हीरावत के देहावसान के अनन्तर श्री पारसचन्दजी हीरावत समिति के अध्यक्ष बने एवं मंत्री पद का दायित्व श्री चन्द्रराजजी सिंघवी ने सम्हाला। समिति द्वारा अब तक निम्नाङ्कित ग्रन्थों का प्रकाशन किया जा चुका है(i) जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग १ (ii) जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग २ (ii) जैन धर्म का मौलिक इतिहास भाग ३

Loading...

Page Navigation
1 ... 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960