Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 915
________________ पंचम खण्ड : परिशिष्ट ८४५ सुरेश दादा जैन के मन में एक तरंग उठी- मुझे परम पूज्य आचार्य भगवन्त जैसे गुरु मिले, मैं भी कोई ऐतिहासिक कार्य कर जिन शासन की सेवा करूं । आचार्य भगवन्त के प्रति पूर्ण समर्पित अनन्य गुरुभक्त इस जुझारू व्यक्तित्व के संकल्प का ही परिणाम था – २५ अक्टूबर १९७९ को इस विद्यापीठ की स्थापना । विद्यापीठ की स्थापना के मुख्य उद्देश्य थे१. जैनधर्म-दर्शन के विद्वान् तैयार करना। २. धार्मिक पाठशालाओं के संचालन व धर्म-प्रचारार्थ सेवा देने वाले अध्यापक तैयार करना। ३. पर्युषण पर्वाराधन कराने वाले सुयोग्य स्वाध्यायी तैयार करना। विद्यापीठ में इस समय दो योजनाओं के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जाता है। (१) न्यूनतम दसवीं उत्तीर्ण छात्रों को ४ वर्ष तक विद्यापीठ में रखकर धार्मिक अध्ययन की व्यवस्था है। अध्येता छात्रों के लिये भोजन एवं आवास की नि:शुल्क व्यवस्था के साथ ही माहवार छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है। अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात् समाज सेवा में सर्विस की गारण्टी भी प्रदान की जाती है। (२) अंशकालिक धार्मिक अध्ययन के इच्छुक छात्रों को कक्षा सात से प्रवेश दिया जाता है। इन छात्रों के लिये नियमित शैक्षणिक अध्ययन के साथ प्रतिदिन २ घण्टे धार्मिक शिक्षण आवश्यक है। विद्यापीठ में अध्येता छात्रों के लिये दोनों समय प्रार्थना, दैनिक सामायिक एवं साप्ताहिक व पाक्षिक प्रतिक्रमण करना आवश्यक है, रात्रि भोजन एवं जमीकन्द का उपयोग निषिद्ध है। प्रति रविवार जलगांव में विराजित सन्त-सती वृन्द के दर्शन करना भी छात्रों के लिये आवश्यक व्यवस्था है। विद्यापीठ के माध्यम से अभी तक २०विद्वान् अध्यापक तैयार हो चुके हैं, जो देश के विभिन्न भागों में समाज को अपनी सेवाएं दे रहे हैं। संस्थान में अभी १२ विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं । संस्थान का सम्पूर्ण व्ययभार स्थापना काल से ही उदारमना श्रीमन्त श्रावक श्री सुरेश दादा जैन द्वारा ही वहन किया जा रहा है। सुदीर्घकाल से श्री प्रकाशचन्दजी जैन इसके प्राचार्य के रूप में अपनी महनीय सेवाएं दे रहे हैं। . श्री सागर जैन विद्यालय, किशनगढ़ प्रात: स्मरणीय आचार्यप्रवर पूज्य श्री शोभाचन्द्र जी म.सा. के सुशिष्य दृढ़ आत्मबली प्रशान्तात्मा श्रद्धेय श्री सागरमलजी म.सा. के ५९ दिवसीय संथारा की स्मृति में श्री सागर जैन विद्यालय, किशनगढ़ की स्थापना हुई, जो सम्प्रति उच्च प्राथमिक विद्यालय के रूप में कार्यरत है। विद्यालय में लगभग ३५० छात्र अध्ययनरत हैं। शिक्षा के साथ संस्कारों के बीजारोपण हेतु विद्यालय में प्रतिदिन नवकार मंत्र के पठन व प्रार्थना से ही शैक्षणिक कार्य प्रारंभ होता है। • आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भंडार, लालभवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर परम पूज्य आचार्य भगवन्त की प्रेरणा से वि.सं. २०१६ में लालभवन स्थित पुरातन हस्तलिखित ग्रंथों को संभाल कर सुव्यवस्थित किया गया। हस्तलिखित ग्रन्थ एवं पुरातत्त्व सामग्री जैन इतिहास की एक अनमोल थाती व पीढियों की धरोहर है जिसे संभालना आवश्यक है , इस पुनीत भावना से पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के जन्म-दिवस पर जयपुर के श्रद्धालु भक्तगण ने संवत् २०१६ में इस सामग्री को एक व्यवस्थित रूप देते हुए इस ज्ञान

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