Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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पंचम खण्ड: परिशिष्ट
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आयोजित करने में श्राविका - मण्डल की अहं भूमिका है। ज्ञानाभ्यास में मण्डल की सक्रियता से पाठ्यक्रमानुसार | अध्ययन एवं परीक्षाओं के सफल आयोजनों से श्राविका मण्डल का कार्य विस्तृत हुआ और संघ ने शिक्षण-व्यवस्था को अखिल भारतीय श्री जैन रत्न आध्यात्मिक शिक्षण बोर्ड के रूप में स्वीकार कर श्राविका संघ द्वारा प्रारम्भ किए गए पाठ्यक्रम को अपनाया । स्वाध्याय सेवा, आयंबिल - आराधना और जीवदया के क्षेत्र में श्राविका - मण्डल की तत्परता अनुकरणीय है ।
श्रावक संघ की भांति श्राविका - मण्डल के अध्यक्ष का चुनाव तीन वर्ष पश्चात् होता है और कार्याध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव, कोषाध्यक्ष सहित कार्यकारिणी का गठन किया जाता है। श्राविका - मण्डल देशभर में | फैली श्राविकाओं को स्थानीय शाखाओं से संयुक्त कर सामायिक, स्वाध्याय, प्रार्थना, स्वधर्मी वात्सल्य सेवा और समय-समय पर शिक्षण-प्रशिक्षण के शिविर आयोजित कर अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के | कार्यों में सहयोग करता है । सामाजिक कुरीतियों के निकन्दन में श्राविका - मण्डल की सक्रियता से अहिंसक जीवन शैली की ओर बहिनों का आकर्षण बढ़ा है। भ्रूण हत्या जैसे जघन्य और निन्दनीय कार्य की रोकथाम में श्राविका - मण्डल का विशेष योगदान है।
वर्तमान में श्राविका-मण्डल का मुख्यालय घोड़ों का चौक, जोधपुर में स्थित है और मण्डल के तत्त्वावधान में | लगभग ४० शाखाएँ और २० सम्पर्क सूत्र कार्यरत हैं। अध्यक्ष के रूप में डॉ. सुषमा जी सिंघवी के बाद से श्रीमती विमला जी मेहता अपनी सेवाएँ दे रही हैं ।
श्राविका मण्डल समय-समय पर कार्यकारिणी बैठक में कार्यक्रमों की रूपरेखा निर्धारित करता है और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में संघ व संघ की सहयोगी संस्थाओं के साथ सामंजस्य बनाकर एक कड़ी के रूप में सेवाएँ देता है।
अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद्, घोड़ों का चौक, जोधपुर
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युगमनीषी आचार्य श्री हस्ती युवा शक्ति में भविष्य की आशा रखते थे । जीवन के संध्याकाल में आचार्य भगवन्त ने प्रेरणा के माध्यम से युवकों को संघ - सेवा, संत सेवा एवं स्वयं के जीवन-निर्माण की दिशा में सक्रिय किया। आचार्य भगवन्त की भावना को ध्यान में रखकर अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ ने २१ नवम्बर १९९१ को जोधपुर में अखिल भारतीय श्री जैन रत्न युवक परिषद् की स्थापना की ।
युवक परिषद् अपनी स्थापना से संगठित इकाई के रूप में संघ की सहयोगी संस्था का उत्तरदायित्व निर्वहन कर रही है। बच्चों एवं युवकों में धार्मिक- नैतिक-आध्यात्मिक संस्कार सृजित करने, उन्हें निर्व्यसनी बनाने, भ्रातृत्व भावना के साथ 'हम सब हैं भाई-भाई, हममें नहीं हो जुदाई' का आदर्श स्थापित करने, संघ-सेवा, संत सेवा और स्वयं के जीवन-निर्माण में आगे आने के लिये युवकों को निरन्तर प्रेरित करती है। सामायिक स्वाध्याय और चतुर्विध संघ की सेवा युवक परिषद् के मुख्य उद्देश्य हैं। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु युवक परिषद् अपनी स्थापना से राष्ट्रीय स्तर पर चतुर्विध संघ- सेवा, सामायिक - स्वाध्याय, स्वधर्मी वात्सल्य एवं समाज-सेवा, धार्मिक-शिक्षण व नैतिक संस्कार जैसे कार्यक्रम हाथ में लेकर उनकी सफल क्रियान्विति की ओर निरन्तर आगे बढ़ रही है ।
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व्यक्ति-व्यक्ति का जीवन आदर्श और प्रेरणादायी बने, इस लक्ष्य से सामायिक, स्वाध्याय, निर्व्यसनता, तप, संयम, शिक्षा, खेलकूद, समाज-सेवा जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले युवारत्नों को प्रेरित - प्रोत्साहित कर