Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
उनका व्यक्तित्व इतना महान् था कि बड़े-बड़े सेठ साहूकार बड़े-बड़े अधिकारी जो भी आपके सम्पर्क में आते अपनी सब बात भूल कर उनके चरणों में श्रद्धा से झुक जाते । मुझे याद है सन् १९८४ में मोहनसिंह जी मेहता, जो राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति थे, आपके दर्शनार्थ आये। उन्होंने वर्तमान शिक्षा-प्रणाली एवं गुरु-शिष्य परम्परा के सम्बन्ध में सार्थक चर्चा करते हुए आनन्द का अनुभव किया । केन्द्रीय राज्यमन्त्री रामनिवासजी मिर्धा भी आपके सान्निध्य में बैठकर उपकृत हुए ।
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गुरुदेव विद्या, विनय एवं विवेक के धनी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी किसी को ऐसे शब्द नहीं कहे जो उनकी आत्मा को चुभने वाले हों । बड़े सरल थे ।
आप प्रचार में नहीं आचार में विश्वास रखते थे । आप जोधपुर के कोठारी भवन विराज रहे थे। बाहरी भूमिका से लौटते समय आपका आचार्य श्री तुलसीजी से मधुर मिलन हुआ । मैं उस समय गुरुदेव के साथ ही था। | प्रसंगवश गुरुदेव ने जो फरमाया उसका भाव था - आचार ही प्रचार का सबसे बड़ा माध्यम है।
मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ कि मैंने ऐसे चलते-फिरते भगवान के दर्शन किये, उनके बहुत निकट | रहा। उनसे बहुत कुछ सीखा और आज मैं जो कुछ भी हूँ, उन्हीं की कृपा से हूँ ।
- रेनबो हाउस, मण्डोर रोड़, जोधपुर