Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं चोरी कभी न करना चाहे, धोखा दे नहीं नम्बर पावे । सादा जीवन मन को भावे, हरे ज्ञान कुविचार ॥४॥शिक्षा ॥
आप्त जनों का आदर करना, सबमें मैत्री भाव बढ़ाना । शिक्षा से सुविचार फैलाना, यही ज्ञान सुखकार ॥५॥शिक्षा ॥ धर्म जाति का (द्वेष)गर्व न करना, बंधु भाव से वैर मिटाना। तोड़-फोड़-हिंसा नहीं करना, ज्ञान बढ़ावे प्यार ॥६॥शिक्षा ॥ ब्रह्म भाव से छात्र रहे सब,चोरी, हिंसा, व्यसन तजे सब। झूठी फैशन दूर करे सब, सच्चा हो व्यवहार ॥७॥शिक्षा । ऐसी शिक्षा जो धारेंगे, छात्र देश को पार करेंगे । विद्यालय भी नाम वरेंगे, संकट होगा पार ॥८॥शिक्षा ॥ देव-गुरु के भक्त बनेंगे, वृद्ध जनों का मान करेंगे । छोटों से भी प्यार करेंगे, कहते संत पुकार ॥९॥शिक्षा ॥
(२९) जिनवाणी की महिमा
(तर्ज- मांड-मरुधर म्हारो देश) श्री वीर प्रभु की, वाणी म्हाने प्यारी लागे जी ॥टेर ॥ पंचास्ति मय लोक दिखायो, ज्ञान नयन दिये खोल । गुण पर्याय से चेतन खेले,पुद्गल(माया) के झक झोल हो ॥१॥श्री ॥ वाणी जाने ज्ञान की खानी, सद्गुरु का वरदान । भ्रम अज्ञान की प्रन्थि गाले, टाले कुमति कुवान हो ॥२॥श्री ॥ अनेकान्त का मार्ग बताकर, मिथ्यात्व दिया ठेल । धर्म-कलह का अन्त कराके, दे निज सुख की सेल हो ॥३॥श्री ॥ त्रिपदी से जग खेल बतायो, गौतम को दियो बोध । दान-दया दम को आराधो, यही शास्त्र की शोध हो ॥४॥श्री ॥ 'गजमुनि' वीर चरण चित्त लाओ, पाओ शान्तिअपार । भव बंधन से चेतन छूटे, करणी का यह सार हो ॥५॥श्री ॥