Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
भूलोचन कर चालो, चतुर होई बड़ाई हो ॥४ ॥ एकाकी पुरुषों के झुण्ड में, मत ना जाओ री । मधुर मंद वचनों से पाओ, जगत बड़ाई हो ॥५ ॥ पद्मावती चन्दनबाला अरु, सीता हो गई हो । आन कान को भूल, आज मत करो हँसाई हो ॥ ६ ॥ कसो वस्त्र से निज तन को तुम, ज्ञान से मनसमझावो । 'गजमुनि' कहे उच्च जीवन से, हो भलाई हो ॥७ ॥ (मेड़ता संवत् २००८)
(३८) स्त्री-शिक्षा
(तर्ज- सीता माता की गोदी में....)
पालो पालो री सोभागिन, बहनों धर्म को जी ॥टेर ॥ बहुत समय तक देह सजाया, घर-धंधा में समय बिताया। निन्दा- विकथा ने छोड़, करो सत्कर्म को जी ॥१॥पालो सदाचार-सादापन धारो, ज्ञान ध्यान से तप सिणगारो ।
पर उपकार ही भूषण खास, समझो मर्म को जी ॥२ ॥पालो.ये जर जेवर भार सरूपा, लुटेरा चोर जाति भय भूपा । दान-जप-तप में भय न किसी का, नियम शुभ कर्म को जी ॥३ ॥पालो.. देवी अब यह भूषण धारो, घर संतति को शीघ्र सुधारो । सर्वस्व देय मिटावो, आज जग के भरम को जी ॥४॥पालोधारिणी सीता-सी बन जाओ, प्रतापी वीर वंश प्रगटाओ ।
'हस्ती' उन्नत कर दो, देश धर्म अरु संघ को जी ॥५ ॥पालो
(३९) स्त्री-शिक्षा
(तर्ज- सीता माता की गोदी में....)
धारो धारो री झूठे भूषण में मत राचो, शील धर्म को भूषण सांचो
राखो तन मन से थे प्रेम, एक सत धर्म से जी ॥ १ ॥ धारो ||
मस्तक देव गुरु ने नमो, यही मुकुट
शिर सच्चा समझो ॥
सोभागिन शील की चून्दड़ी जी २ ॥टेर ॥
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