Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
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स्त्री शिक्षा
(तर्ज- भज मन भक्तियुक्त भगवान) प्यारी बहनों समझो धर्म मर्म को जग फैलाना है ॥टेर ॥ भावि कुल अरु देश की तुमको, धात्री बनना है । भावी (सकल) जगत में शान्ति और सौजन्य बढ़ाना है ॥१॥प्यारीसादा वेष सभी को सुखकर, पाप घटाना है । आरम्भ होवे अल्प, ममत्व का रोग घटाना है ॥२॥प्यारीराजकुमारी चन्दनबाला, सीता बनना है । कर जीवन आदर्श, विश्व में महिमा पाना है ॥३॥प्यारीचोर, जार छलियों से, अपना शील बचाना है । छोड़ो जग देखाव, इसी से, जग सुख पाना है ॥४॥प्यारीआजादी की चले हवा, स्वच्छंद न बनना है । विमल बुद्धि से स्वयं सत्य का मार्ग मिलाना है ॥५॥प्यारीराजतंत्र और जातितंत्र से, अब नहिं चलना है ।। होकर खुद निर्भीक, सत्य पथ डटकर रहना है ॥६॥प्यारीलालच-मद- अरु काम वासना से अब लड़ना है ।। 'गजमुनि' बनकर वीर, धर्म की शान बढ़ाना है ॥७॥प्यारी
(३७) माता को शिक्षा
(तर्ज- नवीन रसिया) समझो समझो री माताओं, पूजनीय पद तुम पाई हो ॥टेर ॥ ऋषभदेव और महावीर से, नर वर जाये हो । राम-कृष्ण तेरे ही सुत हैं, महिमा छाई हो ॥१॥ जग तन वंदत सब ही तुम पर, आश धरावे हो । युग-युग से तुम ही माता बन पूजा पाई हो ॥२॥ शील और संयम की महिमा, तुम तन शोभे हो । सोना-चांदी-हीरक से, नहीं खान पूजाई हो ॥३॥ स्वेच्छाचारी बन मत, भद्रा नाम धराओ हो ।