Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 881
________________ पंचम खण्ड : परिशिष्ट श्री मगनमुनिजी म.सा. सेवाभावी श्री मगनमुनिजी म.सा. का जन्म वि.सं.१९६२ माघ शुक्ला एकादशी को जोधपुर में हुआ। आपके | पिता श्री सोनराजजी मुणोत तथा माता श्रीमती अमरकंवरजी मुणोत थीं। ___ आपने ५८ वर्ष की उम्र में भरे पूरे परिवार को छोड़कर वि.सं.२०२० वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को जोधपुर में मानचन्द्र जी म.सा. के साथ जैन श्रमण दीक्षा अंगीकार की। आप शान्त, दान्त, सेवाभावी एवं तपस्वी सन्त थे। थोकड़े सीखने-सिखाने में आपकी विशेष रुचि थी। लगभग ९ वर्ष के संयम-जीवन में सभी ८ चातुर्मास पूज्य आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में किए। जोधपुर में अचानक आपका स्वास्थ्य नरम हो गया। सन्तों ने बड़ी लगन से सेवा की। आचार्यप्रवर ने मंगलपाठ सुनाया, पच्चक्खाण कराये। किन्तु श्वास की गति एकदम रुक जाने से फाल्गुन कृष्णा द्वादशी शुक्रवार संवत् २०२८ को आप संसार से विदा हो गए। • उपाध्यायप्रवर पं. रत्न श्री मानचन्द्र जी म.सा. पद, परिचय एवं प्रतिष्ठा की अभिलाषा जिनको छू ही न पाई ; सेवा, स्वाध्याय एवं समर्पण ही जिनके | जीवनादर्श हैं, ऐसे सरल, विरल संतरत्न तथा भक्तों के सहज आकर्षण के केन्द्र का नाम है श्रद्धेय उपाध्याय प्रवर पं. | रत्न श्री मानचन्द्र जी म.सा.। आपका जन्म वि.स. १९९१ माघकृष्णा चतुर्थी के दिन सूर्यनगरी, जोधपुर में श्रद्धानिष्ठ समर्पित सुश्रावक श्री अचलचन्दजी सेठिया की धर्मशीला धर्मपत्नी श्रीमती छोटाबाई जी सेठिया की कुक्षि से हुआ। बाल्यकाल से ही सन्त-समागम व प्रवचन-श्रवण का सुखद संयोग पाकर आपके पूर्वसंस्कार वर्धमान हुए तथा आपके हृदय में असार संसार से विरक्ति के अंकुर प्रस्फुटित हो गए। परम पूज्य आचार्य भगवंत पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. एवं पण्डित रत्न श्री बड़े लक्ष्मीचन्द जी म.सा. के पावन सान्निध्य से आपके वैराग्य संस्कार पल्लवित-पुष्पित हुए एवं आपका संयममार्ग पर बढ़ने का निश्चय दृढ़तर होता गया। श्री जैन रत्न विद्यालय, भोपालगढ़ में शिक्षण कार्य आपके इस निश्चय में और अधिक सहायक बना। छह भाइयों और तीन बहिनों के भरे पूरे परिवार के मोह-बंधन को तोड़कर वि.सं. २०२० वैशाखशुक्ला त्रयोदशी को जोधपुर में आपने परमपूज्य आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से भागवती श्रमण-दीक्षा अंगीकार कर मोक्षमार्ग में अपने कदम बढ़ाये। सांसारिक सुखों के प्रलोभन व परिजनों के स्नेह बंधन को भेद कर विरले महापुरुष ही मोक्षमार्ग में अग्रसर हो पाते हैं। इस दुर्लभ संयमधन, 'ज्ञानदर्शनचारित्र' के साकार स्वरूप गुरु भगवन्तों का सान्निध्य पा आपने अपना समग्र जीवन ही ज्ञानार्जन, गुरुचरणों में समर्पण एवं निरतिचार संयमपालन हेतु समर्पित कर दिया। आगमों के तलस्पर्शी ज्ञान के साथ ही थोकड़ों के गहन ज्ञान से आप शीघ्र ही जिज्ञासुओं की श्रद्धा के केन्द्र बन गये। निर्मल संयम-साधना, उत्कृष्ट वैय्यावृत्य, सहज सरलता व निरभिमानता से आप श्रमणवरेण्यों के भी स्नेह पात्र बन गये। विरले ज्ञानी महापुरुष ही अग्लान सेवा का आदर्श उपस्थित कर पाते हैं। आपके जीवन में यह दुर्लभ मणिकांचन संयोग सहज दृष्टिगोचर होता है। सुदूर क्षेत्रों के विचरण, प्रवास में व्यक्तित्व के सहज निखार व प्रसिद्धि कोई भी आकर्षण आपको बांध न सका। जब भी वृद्ध स्थविर संतों की सेवा करने व उन्हें सम्हालने का अवसर आया, आप सदा तत्पर रहे। पं. रत्न श्री बड़े लक्ष्मीचन्द जी म.सा. एवं बाबाजी श्री जयन्तमुनि जी म.सा, की जिस अतिशय उत्साह, समर्पण व श्रद्धा भाव से आपने सेवा की, वह रत्नवंश के स्वर्णिम इतिहास का गौरवशाली अध्याय है। श्री

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