Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 894
________________ ८२४ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ब्यावर, पीपाड़, पाली, भोपालगढ, मदनगंज, जोधपुर, नागौर, जयपुर, सैलाना, अजीत, भीलवाड़ा, बालोतरा, इन्दौर, बीजापुर, यादगिरी, पाचोरा, गुलाबपुरा, धनोप, अजमेर, दुन्दाड़ा, नीमच आदि मुख्य रूप से रहे हैं । आपके संसार पक्ष में छोटी बहिन मैनाजी जो कि वर्तमान में शासन प्रभाविका परमविदुषी महासती श्री | मैनासुन्दरीजी म.सा. के नाम से रत्न संघ में ख्यात नामा महासती हैं, की दीक्षा भी आपके साथ ही सम्पन्न हुई थी। • शासन प्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरीजी म.सा. शासन प्रभाविका महासती श्री मैनासुन्दरी जी म.सा. का जन्म दृढधर्मी, प्रियधर्मी, सुश्रावक श्रीमान रिड़मलजी भण्डारी की धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती जतनकंवरजी भण्डारी की कुक्षि से मद्रास शहर में वि.सं. १९९१ में आषाढ शुक्ला द्वितीया को द्वितीय पुत्री के रूप में हुआ। परिवार जनों ने प्रेम से 'मैना' नाम रखा। विरासत में प्राप्त पैतृक संस्कारों के कारण 'मैना' जी की बचपन से ही धार्मिक भावना उच्चता की ओर बढ़ने | लगी थीं । आपकी दृढ़ वैराग्य भावना के कारण माता-पिता ने कठिन परीक्षाओं के पश्चात् आपको अपनी बड़ी | बहन के साथ दीक्षित होने की आज्ञा प्रदान की । माघ शुक्ला त्रयोदशी सं. २००३ के शुभ मुहूर्त में बारणी खुर्द ग्राम में आपकी भागवती दीक्षा आचार्यप्रवर पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से सम्पन्न हुई । गुरुणीजी प्रवर्तिनी | महासती श्री बदनकंवरजी म.सा. की नेश्राय में आपने ज्ञानाराधन से अपनी योग्यता में वृद्धि की । महासती श्री मैनासुन्दरीजी म.सा. बाल ब्रह्मचारिणी होने के साथ प्रारंभ से ही कुशाग्र बुद्धि की धनी रहीं । आपने प्राकृत, संस्कृत, आगम, थोकड़े, इतिहास आदि का गहन अध्ययन किया। आपने निष्ठा एवं लगन से अपनी | प्रवचन शैली को बहुत प्रभावोत्पादक बना लिया । संयम की निर्मलता बनाये रखने के साथ आपने जिनशासन की | विशिष्ट प्रभावना की और आज भी कर रही हैं। इसी कारण आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. ने आपको 'शासन प्रभाविका' के पद से अलङ्कृत किया। आपकी वाणी में ओज एवं प्रवचनों में सरसता रहती है। जैन धर्म के सिद्धान्तों के प्रतिप्रादन में आप विशेष निपुण हैं। आपकी वाणी से प्रभावित होकर कई बहनों ने श्रमण जीवन अंगीकार किया है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश आदि अनेक प्रान्तों में विचरण के साथ आपके | चातुर्मासों का सौभाग्य निमाज, ब्यावर, पीपाड़, पाली, जोधपुर, बीकानेर, नागौर, जयपुर, सैलाना, भीलवाड़ा, भोपालगढ़, अजमेर, टोंक, चौथ का बरवाड़ा, बीजापुर, गजेन्द्रगढ, बैंगलौर, मद्रास, रायचूर, मुम्बई, जलगाँव, कानपुर, | मेड़ता, कोटा, उज्जैन आदि क्षेत्रों को प्राप्त हुआ । आपके प्रभावोत्पादक प्रवचनों से स्वाध्यायी वर्ग तथा अन्य भाई-बहिन भी लाभान्वित हो सकें, इस लक्ष्य से | पर्युषण के प्रवचनों के संग्रह रूप में 'पर्युषण पर्वाराधन' पुस्तक का प्रथम प्रकाशन लगभग २० वर्ष पूर्व हो गया था। | आपके अनेक प्रवचन जिनवाणी एवं स्वाध्याय शिक्षा पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए हैं। आपकी अब तक अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें दुर्लभ अंग चतुष्टय, पर्युषण पर्वाराधन, पथ की रुकावटें शिवपुरी की सीढियाँ, सुजान ज्योति आदि प्रमुख हैं । । महासती श्री उमरावकंवर जी म.सा. आपका जन्म वि.सं. १९६७ में पीपाड़ शहर में हुआ। आपके पिता श्री कनकमलजी भण्डारी तथा माता

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