Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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परिशिष्ट - तृतीय
कल्याणकारी संस्थाएँ
(आचार्यप्रवर के शासनकाल में सजग एवं विवेकशील श्रावकों द्वारा संस्थापित)
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युगमनीषी, युगप्रभावक, करुणासागर आचार्यप्रवर पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. जैन जगत् के दिव्य दिवाकर, रत्नसंघ के देदीप्यमान नक्षत्र एवं भक्त-समुदाय के महनीय भगवन्त थे। आपका जीवन ही प्रेरणा एवं हर वचन प्रमाण . था। निरतिचार संयम साधक उन महासन्त ने न तो किसी संस्था के लिए प्रत्यक्ष प्रेरणा दी, न ही किसी संस्था के नाम अथवा संचालन से अपने आपको जोड़ा। वे अनूठे महासाधक तो संघनायक होकर भी संघ के प्रति मोह - आसक्ति से परे थे। ऐसे निस्पृह महामनीषी महापुरुष भला संस्थाओं से क्यों बंधते?
___ उन युगमनीषी ने भले ही किसी प्रेरणा को संस्थागत स्वरूप नहीं दिया, पर उनके श्रद्धालु भक्तों के मानस पटल पर उनके वचन प्रेरणापुंज बन गए। महिमाशाली गुरुदेव के साधक-व्यक्तित्व का उनके भक्त-समुदाय पर कैसा अनूठा प्रभाव , भगवन्त के श्रद्धानिष्ठ श्रावक भी कितने सुज्ञ, जागरूक एवं विवेकशील कि संस्थाओं के गठन व उनके सम्यक् संचालन में कभी श्रद्धेय गुरु भगवन्तों को जोड़ने की न तो कोई अपेक्षा की, न ही ऐसी कोई बालचेष्टा की। श्रद्धेय गुरुदेव के सुज्ञ भक्त भी उन करुणानिधान की पावन प्रेरणा के ही तो अंग हैं। भक्तों ने समय-समय पर संघ-संगठन, संघ-सेवा तथा प्राणिमात्र के कल्याण व सेवा की भावना से कई संस्थाओं का गठन एवं संचालन किया। यह भी उन महामनस्वी पूज्य आचार्यदेव के स्वर्णिम शासनकाल का स्वर्णिम अध्याय है, इसी दृष्टि से पूज्य ! भगवन्त के शासनकाल में गठित संस्थाओं का परिचय दिया जा रहा है(अ) ज्ञानाराधन हेतु गठित संस्थाएँ
सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर श्री जैन रत्न माध्यमिक विद्यालय, भोपालगढ़ श्री जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान, जयपुर श्री महावीर जैन स्वाध्याय विद्यापीठ, जलगांव श्री सागर जैन विद्यालय, किशनगढ़ आचार्य श्री विनयचन्द्र ज्ञान भण्डार, जयपुर आचार्य श्री शोभाचन्द्र ज्ञान भण्डार, जोधपुर श्री जैन रत्न पुस्तकालय सिंहपोल, जोधपुर श्री जैन रत्न पुस्तकालय, घोड़ों का चौक, जोधपुर
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