Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 887
________________ पंचम खण्ड : परिशिष्ट ८१७ आप रत्नसंघ के देदीप्यमान सन्त रत्न हैं। वि.सं.२०५२ के चातुर्मास में भोपालगढ़ में आपने पं.रत्न श्री शुभेन्द्रमुनिजी ।। म.सा. की अग्लान भाव से प्रमुदित होकर अनूठी सेवा की एवं उनके संलेखना-संथारा पूर्वक समाधिमरण में जो अनुपम योगदान किया वह चिरस्मरणीय रहेगा। वि.सं. २०५४ के जयपुर चातुर्मास में अपनी संसारपक्षीय माताश्री के संथारापूर्वक समाधिमरण में भी आपने निर्मोह भाव से अनूठा सहयोग प्रदान किया। आप ज्ञान-ध्यान सीखने-सिखाने में विशेष तत्परता रखते हैं। आपके आगमाधारित तत्त्वज्ञान से गर्भित, सरस एवं ओजस्वी प्रवचन विशेष प्रभावोत्पादक होते हैं। आपकी सन्निधि में जो भी बैठता है, उसे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त होती है। आगम, कर्मग्रन्थ एवं तत्त्वज्ञान के आप मर्मज्ञ सन्त हैं तथा निरन्तर तथ्यान्वेषण करते रहते हैं। प्रतिभा, वैराग्य एवं | साधना के आप संगम हैं तथा अप्रमत्त पुरुषार्थी सन्त हैं। - श्री दयाभुनिलो मला थोकड़ों के ज्ञाता श्री दयामुनिजी का जन्म सूर्यनगरी जोधपुर में वि.सं.१९७६ कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी को। हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्री माणकराजजी सिंघवी तथा माता सुश्राविका श्रीमती मानकंवरजी थीं। आपका सांसारिक नाम दुलेहराज जी सिंघवी था। राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग में जैसलमेर, पाली आदि स्थानों पर कार्यरत रहे । सेवानिवृत्ति के पश्चात् आचार्यप्रवर की प्रेरणा से आप तत्त्वज्ञान सीखने लगे। गहन '' रुचि के कारण आपको कई थोकड़ों का अभ्यास हो गया। आपने गृहस्थ में रहकर श्रावक के व्रतों का पालन || किया। अनेक वर्ष तक पर्युषण पर्व में बाहर क्षेत्रों में जाकर स्वाध्यायी के रूप में सेवाएँ भी दीं। आपने ६५ वर्ष की अवस्था में अपनी धर्मपत्नी की आज्ञा लेकर वि.सं.२०४१ माघ शुक्ला दशमी ३१ जनवरी . १९८५ को जोधपुर के रेनबो हाउस में आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से भागवती दीक्षा ग्रहण की। आप थोकड़ों के विशेष ज्ञाता थे। आप सरल स्वभावी एवं गुणग्राही सन्त थे। अनवरत स्वाध्याय में रत रहते थे। आपको स्तोक, भजन आदि में गहन रुचि थी। १० वर्ष का संयम पालकर वि.सं. २०५१ मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी को भोपालगढ़ में आपने संथारापूर्वक समाधि-मरण का वरण किया। 1. श्री राममानजा म.सा. सरलस्वभावी श्री राममुनिजी म.सा. का जन्म वि.सं.१९७६ द्वितीय श्रावण शुक्ला सप्तमी को राजस्थान के पल्लीवाल क्षेत्र में हुआ। आपके पिताश्री रामकुमारजी जैन तथा माता श्रीमती झत्थीबाई थीं। गृहस्थ में रहकर व्रतों का एवं श्रावक की प्रतिमाओं का पालन करने के कारण आप 'त्यागी जी' के नाम से जाने जाते थे। आपने ६७ वर्ष की उम्र में वि.सं.२०४३ माघ शुक्ला दशमी ८ फरवरी १९८७ को अपनी धर्मपत्नी के विद्यमान होने पर भी उनकी आज्ञा से पूज्य आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. से जोधपुर में भागवती दीक्षा ग्रहण कर दुष्कर संयम-साधना में पुरुषार्थ किया। वयोवृद्ध श्री राममुनिजी म.सा. ने 'पाछल खेती नीपजे, तो भी दारिद्र्य दूर' कहावत को चरितार्थ किया। आप सरल, सौम्य एवं अल्पभाषी थे तथा स्वाध्याय में निरत रहते थे। । पीपाड़ के अन्तिम चातुर्मास में मधुरव्याख्यानी श्री गौतममुनिजी म.सा. ने आपकी खूब सेवा-सुश्रूषा की। वि.सं. २०५४ वैशाख शुक्ला दशमी १७ मई १९९७ को आपने संथारे के साथ समाधिमरण का वरण किया। - -- --

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