Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ८१६ गुरुदेव के श्रीमुख से ज्येष्ठ शुक्ला १० संवत् २०३५ दिनांक १६ जून १९७८ को आपने भागवती दीक्षा अंगीकार कर साधना-मार्ग में चरण बढाए।
आपने दीक्षा लेकर थोकड़ों का गहन अभ्यास किया। आप भाई-बहिनों को सामायिक प्रतिक्रमण के साथ थोकडे सिखाने में विशेष रुचि रखते हैं। आपने वर्णमाला पर आधारित प्रश्नों, दोहों आदि का अनूठा संकलन एवं निर्माण किया है। आप सेवाभावी एवं तपस्वी सन्त हैं। आप पोरवाल क्षेत्र के गौरव व संघ के प्रति समर्पित
आत्मार्थी सन्त हैं। • श्री प्रकाशमुनिजी म.सा.
तपस्वी सन्त श्री प्रकाशमुनि जी म.सा. का जन्म सूर्यनगरी-जोधपुर में वि.सं. १९९१ माघ शुक्ला द्वादशी १५ फरवरी १९३५ शुक्रवार को हुआ। आपके पिता सुश्रावक श्रीमान् पारसमलजी भण्डारी तथा माता श्रीमती मानकँवरजी भण्डारी से आपको धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए।
आपने अपनी धर्मपत्नी, पुत्र, पुत्री, भाई-बहिन आदि परिजनों को छोड़कर वि.सं.२०३७ माघ शुक्ला पंचमी (बसन्त पंचमी) दिनाङ्क ९ फरवरी १९८१ को बैंगलौर में आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से भागवती दीक्षा ग्रहण की।
समर्पित भाव से संयम जीवन का निरतिचार पालन करने में संलग्न मुनिश्री ने तप को साधना का प्रमुख अंग बनाया। वि.सं. २०४१ के अहमदाबाद चातुर्मास में आपने मासखमण तप किया। आप सेवा एवं तपस्या में आगे रहते हैं तथा नियमित स्वाध्याय करते हैं। • श्री प्रमोदमुनिजी म.सा.
तत्त्वचिन्तक एवं जैन सिद्धान्त मर्मज्ञ श्री प्रमोद मुनि जी म.सा. का जन्म वि.सं.२०१७ आषाढ कृष्णा द्वितीया शनिवार दिनांक ११ जून १९६० को अपने नाना श्री उमरावमलजी सेठ के यहाँ जयपुर में हुआ। अलवर निवासी आपके पिता धर्मनिष्ठ श्रद्धानिष्ठ सुश्रावक श्री सूरजमलजी मेहता एवं माता सुश्राविका श्रीमती प्रेमकुमारीजी आपको जन्म देकर धन्य हुए। सबसे छोटे पुत्र होने के कारण आपका लालन-पालन बहुत लाड़प्यार से हुआ।
आप प्रारम्भ से ही प्रतिभासम्पन्न छात्र रहे। आपको नैतिक एवं धार्मिक संस्कार विरासत में मिले। परिणामस्वरूप आपने व्यावहारिक शिक्षण में जहाँ B.Com,L.L.B, एवं C.A. इन्टर किया, वहीं धार्मिक क्षेत्र में सामायिक, प्रतिक्रमण, २५ बोल आदि भी कण्ठस्थ कर लिये। आप विद्यार्थी जीवन में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता रहे तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में आपकी सक्रिय भूमिका रही। आपने प्रमुख स्वाध्यायी के रूप में पर्युषण पर्व पर अनेक ग्राम-नगरों को लाभान्वित किया। उस समय आपकी व्याख्यान शैली, साधना एव योग्यता से प्रभावित होकर आपको कई संघों ने अभिनन्दन-पत्र भेंट किए।
__ आपने २३ वर्ष की युवावस्था में आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से जयपुर शहर में मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी वि.सं. २०४० दिनांक १५ दिसम्बर १९८३ को भागवती दीक्षा अंगीकार कर आपने जीवन को उच्च लक्ष्य की ओर अग्रसर कर दिया।
दीक्षित होकर आपने थोकड़े, आगम, इतिहास, संस्कृत, प्राकृत आदि का गहन अध्ययन प्रारंभ किया। आज