Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं मार्गशीर्ष शक्ला षष्ठी वि.सं. २०३९ को ३०वर्ष की निरतिचार संयम-पर्याय का पालन करते हुए आपने इस नश्वर देह का त्याग कर समाधिमरण का वरण किया। . श्री सुगनचन्दजी म.सा.
सरलात्मा श्री सुगनचन्दजी म.सा. का जन्म लाडपुरा में वि.सं. १९६९ भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को हुआ। आपके | पिता श्री चुन्नीलालजी खटोड़ तथा माता श्रीमती अलोलबाईजी थीं। आपने वि.सं. २०१० ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को लाडपुरा में आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. से भागवती दीक्षा अंगीकार की। आप थोकड़ों के ज्ञाता एवं सरल मनस्वी सन्त रत्न थे। संयम में प्रतिपल जागरूकता आपके जीवन में झलकती थी। थोकड़े सीखने-सिखाने में आपकी विशेष रुचि थी।
वि.सं. २०२० ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठी को जाजीवाल (जोधपुर) में भीषण गर्मी एवं लू के कारण आपका असामयिक देहावसान हो गया। मारणान्तिक उपसर्ग आने पर भी आप विचलित नहीं हुए। . श्री श्रीचन्दजी म.सा.
तपस्वी श्री श्रीचन्दजी म.सा. का जन्म दक्षिण भारत के कावेरीपट्टम में वि.सं.१९९३ में हुआ। आपके पिता श्रीबंकट स्वामीजी नायडू तथा माता श्रीमती राजम्मादेवीजी थीं। आप भोपालगढ़ नरेश के यहाँ रसोइया के रूप में कार्यरत थे। तदनन्तर जैनरत्न छात्रालय में आ गए। वहाँ पर आचार्य श्री के दर्शन कर आप अत्यन्त प्रभावित हुए एवं दीक्षा लेने का भाव जागृत हो गया। राजपूत कुल के होते हुए भी आपने अपना खानपान एवं आचार-विचार साध्वाचार के अनुरूप ढाला । नवकार मन्त्र से आपने ज्ञानाराधन प्रारम्भ किया। अपने अटल संकल्प से आपने परिजनों से आज्ञा प्राप्त कर वि.सं. २०१६ ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी को जयपुर में आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी म.सा. के मुखारविन्द से श्रमण दीक्षा अंगीकार कर अपने जीवन की दिशा ही बदल ली।
तमिलभाषी होने से आपको हिन्दी , संस्कृत एवं प्राकृत सीखने में कठिनाई हुई। परन्तु आपने अथक परिश्रम कर बहुत से शास्त्रों का ज्ञान कर लिया। आपके ओजस्वी प्रवचन एवं बुलन्द आवाज से युक्त स्तवन श्रोताओं को बहुत प्रभावित करते थे। आपने 'निर्ग्रन्थ भजनावली' के रूप में भजनों, स्तोत्रों एवं प्रार्थनाओं का संकलन भी किया। आपने १८ वर्षों तक आडा आसन नहीं किया। पूर्व संचित कर्मरज को हलका करने की भावना से आपने तप का मार्ग चुना एवं पचोले-पचोले की तपस्या कर कर्म-निर्जरा की। इसी कारण आप 'तपस्वी' के नाम से जाने गए। | राजस्थान के पोरवाल एवं पल्लीवाल क्षेत्रों में आचार्यप्रवर के स्वाध्याय एवं सामायिक के सन्देश को ग्राम-ग्राम पहुँचाकर विशेष शासन प्रभावना की। ____ आचार्यप्रवर की सन्निधि के अतिरिक्त जोधपुर (संवत् २०२६), शेरसिंह जी की रीया (संवत् २०२७), भोपालगढ (संवत् २०२९), जयपुर (संवत् २०३१), जोधपुर (संवत् २०३२), अजीत (संवत् २०३३) के चातुर्मास विभिन्न वरिष्ठ सन्तों के सानिध्य में हुए। आलनपुर (संवत् २०३४), गंगापुर सिटी (संवत् २०३५), भरतपुर (सवत् २०३६) एवं सिन्धनूर (संवत् २०३८) में आपके स्वतन्त्र चातुर्मास हुए, जो अतीव प्रभावशाली रहे । २३ वर्षों तक निर्मल रूप से संयम का पालन करने के अनन्तर वि.सं. २०३९ पौष शुक्ला तृतीया को इन्दौर में संथारापूर्वक आपने समाधिमरण का वरण किया।