Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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पंचम खण्ड: परिशिष्ट
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अध्ययन से आपका दीर्घकालिक वैराग्य परिपुष्ट होता गया तथा आपने संयम ग्रहण का दृढ निश्चय पूज्य माता-पिता व परिजनों के समक्ष व्यक्त किया। स्नेह-बंधन को तोड़कर अपने युवा पुत्र को सदा के लिए संयममार्ग पर बढ़ने हेतु समर्पित कर देना आसान नहीं है, पर संस्कारशीला माता व धर्मनिष्ठ पिता श्री ने आपके दृढ़ निश्चय व परिपुष्ट वैराग्य को देखकर दीक्षा हेतु अनुमति प्रदान की । परम पूज्य भगवन्त के संवत् २०२० के पीपाड़ वर्षावास में कार्तिक शुक्ल षष्ठी श्रमण दीक्षा अंगीकार कर आपने अपने आपको गुरु चरणों में समर्पित कर दिया।
परम पूज्य आचार्य हस्ती के सान्निध्य की शीतल छांव में आपका श्रमण जीवन ज्ञान-दर्शन- चारित्र की साधना व विविध गुणों के अर्जन से निरन्तर निखरता गया । पूज्यपाद की सेवा में आपने आगमों व थोकड़ों के तलस्पर्शी ज्ञान के साथ ही संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी व गुजराती भाषाओं ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन किया। प्रकाण्ड पांडित्य, गहन आगमिक अध्ययन, धाराप्रवाह ओजस्वी प्रवचन शैली एवं गुरु चरणों में सर्वतोभावेन समर्पण से आपका व्यक्तित्व प्रभावी बनता गया । वि.सं. २०२० में दीक्षित होकर वि.सं. २०४७ तक पूज्यपाद के महाप्रयाण तक वि.स. २०४४ के नागौर चातुर्मास अतिरिक्त आपने सभी चातुर्मास उन महामनीषी के चरणों में ही कर शासन की महती प्रभावना की ।
संयमनिष्ठा, संघ ऐक्य भावना, गहन आगम - चिन्तन, सेवा व समर्पण भावना आदि विविध गुणों तथा आपकी शासन संचालन प्रतिभा को दृष्टिगत रख कर पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री हस्ती ने अपने लिखित संकेत में आपको अपना उत्तराधिकारी भावी आचार्य मनोनीत कर संघ पर महान् उपकार किया। सूर्यनगरी जोधपुर में वि.सं. २०४८ ज्येष्ठ कृष्णा पंचमी रविवार दिनांक २ जून १९९१ को चतुर्विध संघ द्वारा विधिवत् चादर अर्पण कर आपको महनीय रत्नवंश परम्परा के अष्टम पट्टधर के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया। आज आप अपनी यशस्विनी परम्परा के गौरव को वृद्धिगत करते हुए चतुर्विध संघ का कुशलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं ।
परमपूज्य आचार्य श्री आकर्षक व्यक्तित्व एवं विराट् कृतित्व के धनी प्रज्ञापुञ्ज मनीषी साधक हैं। आचार्य पद की आठों सम्पदाओं से सम्पन्न आचार्यप्रवर पंचाचार को पालने व पलवाने में 'हीरे' की भांति दृढ़ हैं, तो आगम | रहस्यों के तलस्पर्शी ज्ञाता हैं। गौरवर्ण, दीर्घनेत्र, प्रशस्त भाल, सौम्यकान्ति व मनमोहक आकृति के आचार्यप्रवर का | व्यक्तित्व भक्तों व दर्शकों को बरबस अपने चुम्बकीय आकर्षण में बांध लेता है। आपकी ओजस्वी वाणी में की | गई आगमिक व्याख्या श्रोताओं पर अनूठा प्रभाव छोड़ने में सक्षम है। प्रत्युत्पन्नमति आचार्यप्रवर ने अपने पूज्यपाद गुरुदेव के 'सामायिक स्वाध्याय' के संदेश के प्रचार-प्रसार के साथ ही समाज व राष्ट्र को व्यसनमुक्ति का अभिनव संदेश दिया है। उनके प्रभावक प्रवचनों व सुबोध शैली में की गई आपकी पावन प्रेरणा से हजारों लोगों ने व्यसन त्याग कर अपना जीवन पवित्र व निर्मल बनाया है। रात्रि - भोजन त्याग, संस्कार सम्पन्न परिवार व्रतग्रहण एवं ब्रह्मचर्य पालन आपकी प्रभावी प्रेरणाएँ हैं ।
आचार्यपद ग्रहण के पश्चात् आपने राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के सैकडों क्षेत्रों में हजारों है। जोधपुर (सं. २०४८), बालोतरा ( संवत् किलोमीटर का पाद विहार कर जिनशासन की महती प्रभावना २०५९) २०४९), जयपुर (सं. २०५०), जोधपुर (स. २०५१), विजयनगर (सं. २०५२), अजमेर (सं. २०५३), पीपाड़शहर (सं. २०५४), मदनगंज (सं. २०५५) नागौर (सं. २०५६), जलगांव (सं. २०५७), धुलिया (सं. २०५८), मुम्बई । आदि क्षेत्रों में किये गये सफल चातुर्मासों से अभिनव धर्मक्रान्ति का संदेश देश के कोने-कोने में फैले भक्त समुदाय को प्रभावित करने में सक्षम रहा है। आपके शासनकाल में ६ सन्तों व ३२ महासतियों की दीक्षाएँ सम्पन्न हो चुकी