Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं देव वही जो राग रोष से हीनार, कनक कामिनी विजय करन प्रवीना । गुण वर्धन की उज्ज्वल भक्ति जानो २, वीतरागता मय प्रभु है यह मानो ॥ निरवद्य भक्ति ही सबको सुखदाई- ॥३॥षट् अर्जुन माली ने की जिनवर की भक्ति २ सेठ सुदर्शन ने बतलाई शक्ति । उसी जन्म में कर्म काट शिव पाया२, सच्ची पूजा का फल यों शास्त्र सुनाया ॥ प्रभु भक्ति बिन देते जन्म गंवाई- ॥४॥षट् कर्म दूसरा गुरु सेवा दिल धरलो२, महाव्रती ज्ञानी मुनि वंदन करलो । असंग्रही सात्त्विक जीवन के धारी २, शान्त जितेन्द्रिय बिना स्वार्थ उपकारी ॥ ऐसे गुरु ही भव जल देत तिराई_ ॥५॥षट् प्रात: समय में मुनि दर्शन नित करनार, चवदे भेदे प्रतिलाभी दुःख हरना । संयम में उपकारक सेवा करिये२, भूल कभी उन्मार्ग साख नहीं भरिये ॥ सद्गुरु ही भव जल से देत तिराई- ॥६॥षट्बलभद्र मुनि की मृग ने की थी सेवा २, शुभ योग कल्प पंचम का बन गया देवा ।। राय प्रदेशी को केशी ने तारा २, नास्तिक था भरपूर बड़ा हत्यारा ॥ गुरु वचनों से उसने सुर गति पाई- ॥७॥षट्
गुरु वन्दना (तर्ज - जाओ जाओ अय मेरे साधु...) आओ आओ अय प्यारे मित्रों ! गुरु दर्शन को आओ ॥