Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
७९८
(६१)
माता- पद (तर्ज - महावीर भगवान तुमको लाखों प्रणाम) मरुदेवीजी माता जग में अमर हुई ॥टेर ॥ ऋषभदेव सा सुत देकर के, सच्चा सुख सबको दिखला के ।
____ बनी मुक्ति अधिकारी ॥१॥जग ॥ चैत्र बदी अष्टमी तिथि जाए, ऋषभदेव सा सुत मन भाए ।
जग जननी पद पाई ॥२॥जग ॥ भरत बाहुबली पौत्र हुए सौ, सूर्य वंश का मूल हुआ सो ।
मां की महिमा छाई ॥३॥जग ॥ सहस्र पीढ़ियां देखी जिसने, रोग शोक नहीं पाया उसने ।
पूर्ण दया अवतारी ॥४॥जग॥ तन, धन सम्पत्ति सब सुख पाया, अन्त समय में केवल पाया ।
चढ़े भाव की श्रेणी ॥५॥जग ॥ मरुदेवी सी बनलो बहना, पाओगी तुम भी सुख चैना ।
तज मिथ्या जंजाल ॥६॥जग ॥ माता का दिन खूब मनाती, अपना जननी पद विसराती ।
आज भटकती नारी ॥७॥जग ॥