Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 871
________________ पंचम खण्ड : परिशिष्ट ८०१ जीवन के कुशल शिल्पकार आचार्य भगवन्त शिष्यों में छिपी प्रतिभा को पहिचानने में कितने निष्णात थे, | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आप द्वारा बालक मुनि हस्ती को अपना उत्तराधिकारी आचार्य मनोनीत किये जाने से मिलता है। आप जैसा महापुरुष ही मात्र ५ वर्ष के संयम-पर्याय वाले व १५ वर्ष की वय वाले शिष्य में रही विराट् आत्मा का अनुभव कर इस गुरुतर दायित्व के लिये यह साहसिक मनोनयन कर सकता था। अनेक ग्राम-नगरों को जीवनपर्यन्त अपने विचरण-विहार व साधना से पवित्र पावन करने वाले महापुरुष को || | स्वास्थ्य की कमजोरी से वि.सं. १९७९ माघ शुक्ला पूर्णिमा से जोधपुर में अपना स्थिरवास स्वीकार करना पड़ा। आपके स्थिरवास विराजने से जोधपुर नगर मानो तीर्थधाम ही बन गया। अपने संयम सौरभ से ५६ वर्षों तक संघ | को सुरभित कर अमरता का पुजारी यह महापुरुष वि.सं. १९८३ श्रावण कृष्णा अमावस्या को संथारा-समाधिपूर्वक अमरलोक के लिये महाप्रयाण कर गया। 1. स्वामीजी श्री हरखचन्दजी म.सा. जिन महापुरुष ने बालक हस्ती में निहित प्रतिभा को पहिचाना कि यह बालक दीक्षा लेकर भविष्य में शासन का आधार बन सकता है। ऐसी सूझ-बूझ के धनी, शासन हित-चिन्तन में सदा निरत रहने वाले महापुरुष का नाम है स्वामी जी श्री हरखचन्दजी म.सा. (श्री हर्षचन्दजी म.सा.)। __ आप पूज्य आचार्य श्री विनयचंदजी म.सा. के आचार्य काल में दीक्षा लेने वाले प्रथम महापुरुष थे। संयमधनी इन महापुरुष ने गुरु भगवंतों की सेवा करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन ज्ञान-दर्शन-चारित्र की साधना में लगा दिया। जिनशासन सदा जयवन्त रहे, रत्नसंघ परम्परा का गौरव सदा वर्धमान हो व यह परम्परा महापुरुषों की संयम-साधना की सौरभ से सदा सुवासित रहे, इस ओर आप सदा सचेष्ट रहे। छ: सात वर्षीय अबोध बालक हस्ती के अंतर में रहे हुए वैराग्य बीज को विकसित करना, अपने हृदय का असीम स्नेह उंडेल कर उन्हें ज्ञानाराधना हेतु प्रेरित करना आप जैसे महापुरुषों का ही उपकार था। आपने बालक हस्ती के साथ ऐसा आत्मीय संबंध स्थापित किया कि बालक हस्ती सदा आपकी सेवा में ही ज्ञान सीखने में लगा रहता। जैसे एक गोवत्स सदा अपनी माँ से लगा रहता है, कुछ वैसा ही स्नेह आकर्षण इन वयोवृद्ध महापुरुष में बालक हस्ती को नज़र आया। वैराग्य अवस्था में ही बालक हस्ती को (मात्र नौ-दस वर्ष की वय में ही आपने कितना सुयोग्य बना दिया, इसके लिये पूज्य आचार्य श्री शोभाचंदजी म.सा. के जीवन चरित्र 'अमरता का पुजारी' में वैरागी हस्ती का परिचय देते हुए लिखा गया है - “होनहार बीरवान के होत चीकने पात” । अतएव शीघ्र ही आप मुनि श्री हर्षचन्दजी म. के उपदेश, वचनों और संयम के अनुकूल शिक्षाओं से साधु-जीवन के सर्वथा योग्य बन गये। मुनि श्री हर्षचन्दजी म. ने अजमेर में रहते हुए आपको पच्चीस बोल, नवतत्त्व, लघुदंडक, समिति-गुप्ति, व्यवहार सम्यक्त्व, श्वासोच्छ्वास, ९८ बोल और भगवती एवं पन्नवणा के मिला कर २५-३० थोकड़े, वीर-स्तुति, नमिप्रवज्या और दशवैकालिक सूत्र के चार अध्ययन का अभ्यास करा दिया था। संस्कृत में शब्द रूपावली भी पूरी कंठस्थ करा दी गई।" __ वैरागी हस्ती के अध्ययन क्रम के उल्लेख से स्वामीजी की अनेक विशेषताएँ स्पष्टत: दृष्टिगोचर होती हैं कि आप थोकड़ों के गहन ज्ञाता, आगम प्रेमी, एक कुशल शिक्षा-गुरु एवं बालक हस्ती के सच्चे संरक्षक थे, जिन्होंने एक कुशल माली की भांति बालक हस्ती के जीवन-उपवन में शिक्षा व संस्कारों का बीज वपन किया।

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