Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
॥२ ॥
जातियां करती तरक्की, देश में सब देख लो । धर्म बन्धु मुहब्बत, का सबक अब सीख लो ॥१ ॥ आपका कोई भी भाई हो नहीं भूखा कहीं । मूर्खता को भी निशां जग से मिटाना सीख लो है इसी में आपकी इज्जत व इसमें शान है । कौमी खिदमत के बहादुर अब तो होना सीख लो ॥३ ॥ देव गुरु और धर्म की सेवा तन अर्पण करो । है भला इसमें ही अब दिल को जमाना सीख लो ॥४॥ खर्चते धन रंग से उत्सव दिखाने के लिये । पर दुख भंजन के लिए कुछ भी तो देना सीख लो ॥५ ॥ भूख से पीड़ित हजारों बंधु छोड़े धर्म को । धर्म में भी शर्म आती दुःख छुड़ाना सीख लो ॥६॥ दर्द होता देख के 'गजमुनि' पराये हाल
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पर न जो उफ भी करें उनको जगाना सीख लो ॥७॥
(५४)
षट्
कर्म की साधना
(तर्ज धनधर्मनाथ धर्मावतार सुन मेरी....)
पाया २,
कहे मुनीश्वर सुनो बाई अरु भाई षट् कर्माराधन की करो कमाई ॥टेर ॥ अमूल्य नर भव पुण्य योग से सफल करो, मत फंसो जगत की माया । नश्वर है सब ठाठ एक दिन जाना २ ऐसा कर लो कार्य न हो शास्त्र वचन को देव गुरु अरु धर्म-तत्त्व त्रय जानोर,
पछताना ॥
धार, जो प्रभुताई ॥१ ॥ षट्
यही पहिचानो । सब शास्त्रों का सार शक्ति सहित तीनों को जो आराधेर,
श्रेणिक नृप सम तीर्थंकर पद साधे ॥ प्रथम कर्म (कर्तव्य) देव भक्ति मन भाई ॥२ ॥ षट्
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