Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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करने जिनवाणी का श्रवण, रत्नमय कुंडलो जी ॥२ ॥धारो ॥ जीव, दया और सतगुरु दर्शन, सफल करो इसमें निज लोचन । नथवर अटल नियम सूं, धर्म प्रेम है नाक रो जी ॥३ ॥धारो ॥ मुख से सत्य वचन प्रिय बोलो, जिन गुरु गुण में शक्ति लगालो । भगिनी यही चूंप है, अविनाशी सुखदायिनी जी ॥४ ॥ धारो ॥ सज्जन या दुर्बल जन सेवा, दीन की टहल घणी सुख देवा । भुजबल वर्धक रत्न-जटित, भुजबन्ध लो जी ॥५ ॥धारो ॥ (४०) महावीर जन्मोत्सव
(तर्ज- अगर जिन देव के चरणों में तेरा ध्यान हो जाता) श्री महावीर स्वामी का जन्म हमको मुबारक हो जन्म महावीर का हमको, मुबारक हो २, पावनी भरत भूमि को, मुबारक हो २ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की, रात्रि वह मंगला अब भी जगादे वीर से नर को
॥टेर ||
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॥१ ॥मुबारक ॥
जगत में सब तरफ हिंसा का नंगा नाच होता
।
था
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
जन्मना आपका तब यह
धर्म के नाम पर क्रोड़ो, मूक प्राणी बलि चढ़ते
बचाया आपने उनको
॥ २ ॥मुबारक ॥
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॥३ ॥मुबारक ॥
सूक्ष्म जीवों की भी हिंसा, धर्म के नाम से
करना '
अज्ञानी पन कहा तुमने (प्रभु कहते) ॥४ ॥मुबारक ॥ श्रवण कर वीर वाणी को, सकल प्राणी दया करना
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।
॥६ ॥ मुबारक ॥
भक्ति यह मुक्तिदा जानो ॥५ ॥ मुबारक ॥ सकल जग जीव सुखदायी, धर्म फरमायो जिनराई उसी सद्धर्म को पाना सताना दीन जीवों को, परस्पर कलह फैलाना धर्म के नाम धब्बों को मिटाना ही धन्य सिद्धार्थ महाराजा, मात त्रिशला है गुण खानि,
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॥७ ॥ मुबारक ॥
रतन तारक हुआ जिनसे ॥८ ॥ मुबारक ॥