Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं घट-घट में सबके, आत्म भाव प्रगटा दो ॥टेर ॥ प्रभु वैर - विरोध का भाव न रहने पावे, विमल प्रेम सबके घट में सरसावे । अज्ञान मोह को , घट से दूर भगा दो ॥१॥घट । ज्ञान और सुविवेक बढ़े हर जन में, शासन सेवा नित रहे सभी के मन में । तन मन सेवा में त्यागें, पाठ पढ़ा दो ॥२॥घट ॥ हम शुद्ध हृदय से करें तुम्हारी भक्ति, संयुक्त प्रेम से बढ़े संघ की शक्ति । नि:स्वार्थ बंधुता सविनय हमें सिखा दो ॥३॥घट ॥ चिरकाल संघ सहवास में लाभ कमायें, नहीं भेद भाव कोई दिल में लावें । एक सूत्र में हम, सबको दिखला दो ॥४॥घट ॥ चर स्थावर साधन भरपूर मिलावें, साधना मार्ग में नहीं चित्त अकुलावे । 'गज' वर्धमान पद के, अधिकारी कर दो ॥५॥घट ॥
(४८) गुरुदेव तुम्हारे चरणों में जीवन धन आज समर्पित है, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में टेर ॥ यद्यपि मैं बंधन तोड़ रहा, पर मन की गति नहीं पकड़ रहा। तुम ही लगाम थामे रखना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ॥१॥ मन - मन्दिर में तुम को बिठा, मैं जड़ बंधन को तोड़रहा । शिव मंदिर में पहुँचा देना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ॥२॥ मैं बालक हूँ नादान अभी, एक तेरा भरोसा भारी है । अब चरण-शरण में ही रखना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ॥३॥ अंतिम बस एक विनय मेरी, मानोगे आशा है पूरी ।। काया छायावत् साथ रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ॥४॥