Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड धर्म प्राण यह देश हमारा, सत्पुरुषों का बड़ा दुलारा,
धर्मनीति आधार प्यारे ॥१॥ सादा जीवन जीएं सभी जन, पश्चिम की नहीं चाल चलें जन,
सदाचार से प्यारे ॥२॥ न्याय नीति मय धंधा चावें, प्रामाणिकता को अपनावें,
सब धर्मों का सार ॥३॥ मैत्री हो सब जग जीवों में, निर्भयता हो सब जीवों में,
_ भारत के संस्कार ॥४॥ हिंसा, झूठ न मन को भावे, सब सबको आदर से चावें,
होवे न मन में खार ॥५॥ (३४) शुभ कामना
(तर्ज- यही है महावीर संदेश) दयामय होवे मंगलाचार, दयामय होवे बेड़ा पार ॥ करें विनय हिलमिल कर सब ही, हो जीवन उद्धार ॥१॥दयामय ॥ देव निरंजन ग्रन्थ -हीन गुरु, धर्म दयामय धार । तीन तत्त्व आराधन में मन, पावे शान्ति अपार ॥२॥दयामय ॥ नर भव सफल करन हित हम सब, करें शुद्ध आचार । पावें पूर्ण सफलता इसमें, ऐसा हो उपकार ॥३॥दयामय ॥ तन-धन-अर्पण करें हर्ष से, नहीं हो शिथिल विचार । ज्ञान धर्म में रमें (लगे) रहें हम, उज्ज्वल हो व्यवहार ॥४॥दयामय ॥ दिन-दिन बढ़े भावना सब की, घटे अविद्या भार । यही कामना गजमुनि' (हम सब) की हो,तुम्ही एक आधार ॥५॥दयामय ॥
(३५)
दर्शनाचार दर्शनाचार को शुद्ध रीति से पालो,
आत्म-शुद्धि हित दूषण पंचक टालो ॥टेर ॥ निश्शंकित आचार प्रथम मन भाना २, जिन वचनों में शंका शील न रहना ।