Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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३. वेश्यागमन
वेश्या और परस्त्री त्यागो, रावणकुल में हुओ अभागो ।
सीता को लेकर वह भागो, हुआ सकल संहार ॥४ ॥ शिक्षा ॥ ४. परस्त्रीगमन
लंपट तन-धन का बल खोवे, सुख की नींद कभी नहीं सोवे ।
फल भुगतान की बेला रोवे, त्याग करो नरनार ॥५ ॥शिक्षा ॥ ५. मांस
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
मद्य-मांस नहीं खाणो पीणो, दुर्व्यसनों से दूर हीरहणो ।
नशो भूलकर भी नहीं करणो, बुद्धि बिगाड़णहार ॥६॥शिक्षा ॥
६. मद्य
प्याली पी कई जन्म बिगाड़े, गली, नली में पड़त निहाले । कुत्ते भी आकर मुंह मारे, हंसे बाल- गोपाल ॥७ ॥शिक्षा ॥ ७. तम्बाकू
बीड़ी और तम्बाकू छोड़ो, कैंसर से मत नाता जोड़ो ।
धन-जन का है नाश करोड़ों, मन से दो दुत्कार ॥८ ॥ शिक्षा ||
सब धर्मों का सार यही है, दुर्व्यसनों से लाभ नहीं है ।
व्यसन बिगाड़े जन्म सही है, होते जन बेकार ॥९ ॥ शिक्षा ॥
(२६)
सच्चा श्रावक
(तर्ज- प्रभाती)
सांचा श्रावक तेने कहिये, ज्ञान क्रिया जो धारे रे
टाले रे
हिंसा- झूठ - कुशील निवारे, चोरी कर्म ने संग्रह बुद्धि, तृष्णा त्यागे, संतोषामृत पावे रे ॥१॥ द्रोह नहीं कोई प्राणी संग, आतम सम सब लेखे रे । पर दुःख में दुःखिया बन जावे, सब सुख में सुख देखे रे ॥२ ॥
परम देव पर श्रद्धा राखे, निर्ग्रन्थ गुरु ने सेवे रे । धर्म दया जिनदेव प्ररूपित, सार तीन को मन सेवे रे ॥३॥ श्रद्धा और विवेक विचारां, विमल क्रिया भव तारे रे । तीन बसे गुण जिन में जानों, श्रावक सांचा तेहने रे ॥४॥
॥टेर ॥
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