Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
गामा ने तन निर्माण किया, चहुं ओर नाम मशहूर किया । आखिर तन जल के खाक हुआ, निर्माण करो अब तो ॥१॥ धनकोटि बनाया मुम्मण ने, रत्नों का बैल बना डाला । विध-विध कष्टों को सहकर भी, जब मरा चला नहीं धन तब तो ॥२॥ मुहम्मद ने गजनी में देखो, धन लूट-लूट भंडार भरा । अंतिम दम भू पर सिसक पड़ा, जीवन धन-कोष भरो अब तो ॥३॥ रावण ने देश अधीन किया, प्रभुता के मद में भूल गया । सुवरण की लंका छोड़ गया, निजगुण साधन कर लो अब तो ॥४॥ हिटलर ने धाक जमाई थी, संसार विजय की ठानी थी । कर विश्वयुद्ध में सर्व होम, जब चला समझ आई अब तो ॥५॥ शाली ने सब कुछ छोड़ दिया, धन्ना ने तन को गलादिया ।। जीवन निर्माण किया अपना, देखो सब अमर हुए वे तो ॥६॥ भौतिक निर्माण करो कुछ भी, सुखदायक भी दुख देंगे कभी । जब नाश की घड़ी बतायेंगे, कुछ कर न सकोगे तुम तब तो ॥७॥ बर्लिन पेरिस की सज्जा हो, सुरगण को भी जहां लज्जा हो । पल में लय वह भी हो जाता ‘गजमुनि' क्यों भूल करो अब तो ॥८॥
(२५) सप्त व्यसन-निषेध
(तर्ज- होवे धर्म प्रचार....) है उत्तम जन आचार, सुनलो नरनारी
तूं धार सके तो धार, शिक्षा हितकारी ॥टेर ॥ १. जुआ
जुआ खेलन बुरा व्यसन है, धन छीजे दुःख भोगे तन है । हारे राजकोष सब धन है, पांडव हारी नार ॥१॥शिक्षा ॥ नल भूपति राज गंवाया, दमयंती संग अति दुःख पाया । बड़े बड़ों का मान विलाया, जाने सब संसार ॥२॥शिक्षा ॥
२. चोरी
चोर दंड पाते नित देखो, राज समाज में निंदा देखो । रहता नहीं भरोसा देखो, करे न कोई इतबार ॥३॥शिक्षा ॥
"एक पहलवान