Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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(चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
चाहे कहो कोई बुरा अथवा भला कहो, पर हम कर्तव्य अपना बजा जायेंगे ॥१॥महावीर ॥ चाहे सुने कोई प्रेम से अथवा घृणा करे, पर हम धर्म का तत्त्व बता जायेंगे ॥२॥महावीर ॥ चाहे करो धन में श्रद्धा या धार्मिक कार्य में, पर हम शान्ति का मार्ग जचा जाएंगे ॥३॥महावीर ॥ अहमदनगर के श्रोताओं कुछ करके दिखलाना, हम भी प्रेम से मान बढ़ा जाएंगे ॥४॥महावीर ॥
(२१)
वीर-सन्देश (तर्ज- लाखों पापी तिर गये, सत्संग के परताप से) वीर के सन्देश को, दिल में जमाना सीखलो । विश्व से हिंसा हटाकर, सुख से रहना सीख लो ॥टेर ॥ छोड़ दो हिंसा की वृत्ति, दुःख की जड़ है यही । शत्रुता अरु द्रोह की, जननी इसे समझो सही ॥१॥ प्रेम मूर्ति है, अहिंसा दिव्य शक्ति मान लो । वैर नाशक प्रीति वर्द्धक, भावना मन धारलो ॥२॥ क्रोध और हिंसा अनल से, जलते जग को देख लो । नित नये संहार साधन, का बना है लेख लो ॥३॥ परिणाम हिंसा का समझ लो, दुःखदाई है सही । मरना अरु जग को मिटाना, पाठ इसका देख लो ॥४॥
(२२) हित-शिक्षा
(तर्ज-आज रंग बरसे रे) घणो पछतावेला, जो धर्म-ध्यान में मन न लगावेला ॥टेर ॥ रम्मत गम्मत काम कुतूहल, में जो चित्त लुभावेला ।
सत्संगत बिन मूरख निष्फल, जन्म गमावेला ॥१॥घणो ॥ वीतराग की हितमन वाणी, सुणतां नींद घुलावेला ।
रंग-राग-नाटक में सारी, रात बितावेला ॥२॥धणो॥