Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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विनयशील शासक जन को भी खूब रिझावेला ॥५ ॥ यत् किंचित् कर विनय गुरु का, 'गजमुनि' मन हर्षावेला । अनुभव कर देखो, जीवन - गौरव बढ़ जावेला ॥ ६ ॥
(१९) वीर-वन्दना
(तर्ज- मन प्यारे प्यारे नित रटना)
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॥टेर ॥
॥१ ॥वीर ॥
मन प्यारे नित प्रति (प्रतिदिन) रट लेना, वीर जिनेश्वर को जगमग जग में ज्योतिर्धर, वीर जिनेश्वर को धन्य त्रिशलाजी के नंदा, नृप सिद्धारथ कुल चन्दा सुर नरपति वन्दन करते हैं शुभचैत्र त्रयोदशी के दिन, अवतरे जगत हित श्रीजिन त्रिभुवन के प्राणी गुण गाते ॥२ ॥वीर ॥ प्रभु अधम उधारण आये, दीनों के प्राण बचाये सब शीश झुकाते प्रमुदित हो ॥३ ॥ वीर ॥ श्रेणिक चेटक अरु कोणिक, थे भक्त कई जन पालक
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भोजन भी करे वन्दन कर ॥४ ॥वीर ॥ थे कामदेव अरु अरणक, कई अन्य भी निर्भय श्रावक । सुरवर को लज्जित कर गाते ॥५ ॥वीर ॥ जो बंधन मुक्ति चाहो, सुख - शान्ति की इच्छा हो ।
नित्य भाव सहित तुम भज लेना ॥ ६ ॥ वीर ॥ उत्साह में गजमुनि (युवकों) आओ, अपना गौरव प्रगटाओ ।
वह भूत समय फिर दिखलाना ॥७ ॥वीर ॥ जिनराज चरण का चेरा, मांगू मैं सुमति बसेरा ।
हो 'हस्ती' नित वंदन करना ॥८ ॥ वीर ॥
(२०) विदाई - सन्देश
(तर्ज- सिद्ध अरिहन्त में मन रमा जायेंगे)
धर्म
जीवन महावीर का तत्त्व
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
के हित में लगा जायेंगे,
सिखा जायेंगे |टेर ॥