Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
View full book text
________________
तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
६७९ याद आया गुरुदेव का संदेश कि “हो सकता है कोई अड़चन आवे, पर काम रुकने वाला नहीं है" और उनके वचनों की सार्थकता गजब की रही। अर्द्धरात्रि के पश्चात् धीरे-धीरे स्वास्थ्य में सुधार होने लगा, नींद भी आ गई, और जब सुबह उठे तो पूरी ऊर्जा, पूरे उत्साह के साथ । पर्युषण पर्वाधिराज निर्विघ्न रूप से, अपूर्व धर्म - प्रभावना के साथ सम्पन्न हुए। इस प्रकार अड़चन आई और काम रोके बिना चली भी गई, किन्तु साथ ही यह झलक भी छोड़ गई कि गुरुदेव को |
कैसे, कई बार, होनी की घटनाओं का पूर्वाभास सहज में हो जाया करता था।" • पूज्य आचार्यदेव में अद्भुत दिव्यदृष्टि थी। उपाध्यायप्रवर पं. रत्न श्री मानचन्द्रजी म.सा. ने प्रवचन में एक प्रसंग
सुनाते हुए कहा – “किशनगढ़ प्रवास था। आचार्य भगवन्त माला में मग्न थे। मैं (वर्तमान उपाध्यायप्रवर श्री मानचन्द्र जी म.सा.) और पं.र. श्री लक्ष्मीचंद जी म.सा. आचार्य श्री के निकट ही बैठे स्वाध्याय में लीन थे। मोदी घराने का एक व्यक्ति आता है और निवेदन करता है कि महाराज ! श्री बादरमल सा मोदी अस्वस्थ हैं एवं गुरुदर्शन के इच्छुक हैं। मैंने सुना। विचार किया, कल ही तो पंडित जी म. के साथ उनके घर गया था। स्वस्थ थे, प्रसन्न चित्त थे, वन्दना की थी, बहराया भी था। और यह भी कहा था-"काई करूँ महाराज ! लारला छोरा-टाबर धरम में जीव राखेईज कोनी । घणोई केऊं पण ए तो म्हारी बात रो ध्यान ईज नहीं देवे।” पंडित जी म. ने उन्हें धैर्य बंधाया था। आचार्य श्री ने संकेत किया पंडित जी म. को। पंडित जी म.सा. गए उस व्यक्ति के साथ, मोदी जी के घर । मोदी | जी ने खड़े होकर वन्दन किया और कहा मुझे लग रहा है कि समय आ गया है। आप मुझे संथारा करा दो। लगता नहीं था कि मृत्यु उनका अभी वरण करने वाली है, पर वे मृत्यु का स्वागत करने को तैयार थे। पंडित जी | म.सा. ने जब तक आचार्य श्री पधारे तब तक के लिए उन्हें सागारी संथारा करा दिया। पूज्य गुरुदेव श्री की माला पूर्ण हुई । वे उठे और चल पड़े मोदी जी के घर।
आचार्य श्री के पधारने पर उनके चेहरे से हर्ष के भाव प्रस्फुटित हो उठे। उन्होंने आगे आकर वंदना की और संथारा | दिलाने की प्रार्थना की। आचार्य श्री ने उनको निहारा, उनके चेहरे पर कुछ देर के लिए आचार्य श्री की दृष्टि जैसे एकदम स्थिर हो गई। तब | आप श्री ने श्री बादरमल जी को यावज्जीवन संथारे के प्रत्याख्यान करा दिए। सायंकाल का समय। प्रतिक्रमण हो चुका था। वन्दना हो रही थी कि ध्यान आया मुझे श्री मोदी जी का । क्या हुआ उनके संथारे का? एक भाई से पूछा तो वह बोला-"अरे महाराज, मोदी जी रो संथारो तो तीन घंटा बाद ही सीझ गयो । व्हांने गाजा-बाजा सूं श्मशान पहुंचार पछे मैं लोग परकूणा (प्रतिक्रमण) में आया हाँ।" मैंने यह सुनकर आश्चर्य किया। मोदी जी के तो अन्तर्मन में घबराहट या अन्य कारण हुआ होगा, पर आचार्य श्री | की अन्तर्दृष्टि कैसी कि जैसे सचमुच जान लिया हो मोदी जी के समय के बारे में। आज सोचता हूँ कि गुरुदेव अवश्य ही उस दिव्यदृष्टि के धारक थे, जो भविष्य को दर्शा देती है।” सन् १९७८ । आचार्य भगवन्त का चातुर्मास जलगाँव में था। यदा-कदा बरसात भी होती रहती थी, किन्तु एक बार ऐसा हुआ कि बूंदा-बांदी ने निरंतरता का रूप ले लिया। एक श्रमण के लिए ऐसे में भिक्षाचरी के लिए बाहर जाना निषिद्ध है और बरसात थी कि बूंद-बूंद करके बरसती ही जा रही थी तो गोचरी लेने जा पाने का तो कोई