Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
दशवैकालिक सूत्र का यह संस्करण आज भी विद्वानों के लिए सन्दर्भ ग्रन्थ का कार्य करता है | दशवैकालिक सूत्र महाराष्ट्र के विश्वविद्यालयों में अर्धमागधी के पाठ्यग्रन्थ के रूप में स्वीकृत था, अत: इसका महाराष्ट्री अनुवाद ग्रन्थ सम्पादक श्री अमोलक चन्दजी सुरपुरिया के द्वारा किया गया।
(२) नन्दीसूत्र
नन्दीसूत्र की गणना मूल सूत्रों में होती है। इसमें पंचविध ज्ञानों का सुन्दर निरूपण हुआ है। आचार्यप्रवर को यह सूत्र अत्यन्त प्रिय था । वे प्रतिदिन रात्रि - शयन से पूर्व इसका पाठ करते थे ।
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‘श्रीमन्नन्दीसूत्रम्’ नाम से इस कृति का प्रकाशन सातारा से विक्रम संवत् १९९८ (सन् १९४२ ई.) में तब हुआ | जब आचार्यप्रवर मात्र ३१ वर्ष के थे । नन्दीसूत्र की टीका से आचार्यप्रवर को तत्कालीन आचार्यों एवं विद्वानों में महती प्रतिष्ठा मिली। प्रकाशक थे राय बहादुर श्री मोतीलाल जी मूथा । नन्दीसूत्र का यह संस्करण विविध दृष्टियों से | अद्वितीय है। इसमें प्राकृत मूल के साथ संस्कृत छाया एवं शब्दानुलक्ष्यी हिन्दी अनुवाद दिया गया है। जहाँ विवेचन | की आवश्यकता है वहाँ विस्तृत एवं विशद विवेचन भी किया गया है। अनुवाद-लेखन में आचार्य मलयगिरि एवं | हरिभद्रसूरि की वृत्तियों को आधार बनाया गया है, साथ ही अनेक उपलब्ध संस्करणों का सूक्ष्म अनुशीलन किया | गया है। आवश्यक होने पर विद्वान् मुनियों से शंका-समाधान भी किया गया है। आचार्यप्रवर ने जब नन्दी सूत्र का | अनुवाद लिखा तब नन्दीसूत्र के कतिपय प्रकाशन उपलब्ध थे, परन्तु उनमें मूलपाठ के संशोधन का पर्याप्त प्रयत्न नहीं हुआ था । आचार्यप्रवर ने यह कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न किया ।
नन्दीसूत्र के इस संस्करण की विद्वत्तापूर्ण भूमिका का लेखन उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज ने किया । | आचार्य श्री ने नन्दीसूत्र की व्यापक तुलनात्मक प्रस्तावना लिखी। सूत्र के प्रकाशन का प्रबन्धन पं. दुःखमोचन जी झा | ने किया जो आचार्यप्रवर के शिक्षा- गुरु थे और आचार्यप्रवर की विद्वत्ता, प्रतिभा एवं तेजस्विता से अभिभूत थे ।
नन्दीसूत्र का यह संस्करण विद्वानों द्वारा बहुत समादृत हुआ। इसके पाँच परिशिष्ट हैं । प्रथम परिशिष्ट | पारिभाषिक एवं विशिष्ट शब्दों की व्याख्या पर है। द्वितीय परिशिष्ट में समवायांग सूत्र में वर्णित द्वादशांगों का | परिचय है । तृतीय परिशिष्ट में नन्दीसूत्र के साथ अन्य शास्त्रों के पाठान्तरों की सूची है। चतुर्थ परिशिष्ट श्वेताम्बर | एवं दिगम्बर सम्प्रदायों की दृष्टि से ज्ञान का निरूपण करता है तथा अन्तिम परिशिष्ट में नन्दीसूत्र में प्रयुक्त शब्दों का कोश दिया गया है।
(३) प्रश्नव्याकरण सूत्र
नन्दीसूत्र के प्रकाशन के आठ वर्ष पश्चात् दिसम्बर १९५० ई में. प्रश्नव्याकरण सूत्र संस्कृत छाया, अन्वयार्थ, भाषा टीका (भावार्थ) एवं टिप्पणियों के साथ पाली (मारवाड़) से प्रकाशित हुआ । इसका प्रकाशन सुश्रावक श्री | हस्तीमलजी सुराणा पाली ने कराया ।
प्रश्नव्याकरण सूत्र का यह संस्करण दो खण्डों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में पाँच आस्रवों का वर्णन है तो | द्वितीय खण्ड में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पाँच संवरों का निरूपण है। परिशिष्ट में शब्द कोष, विशिष्ट स्थलों के टिप्पण, पाठान्तर सूची और कथा भाग दिया गया है। यह सूत्र -ग्रंथ आचार्यप्रवर के | विद्वत्तापूर्ण १७ पृष्ठों के प्राक्कथन से अलंकृत है।