Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
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शक्ति विद्युत् की शक्ति से लाखों करोड़ों गुणा अधिक है । सभी व्याख्यान अत्यन्त प्रेरणास्पद एवं सच्चे जीवन के मार्गदर्शक हैं। (१२) गजेन्द्र व्याख्यानमाला - छठा भाग
सन् १९७९ में आचार्य श्री के द्वारा जलगाँव चातुर्मास में प्रदत्त प्रवचनों में से इसमें २६ प्रवचन उपलब्ध हैं। इन प्रवचनों में संस्कार निर्माण, आचार-शुद्धि और स्वाध्यायशीलता पर विशेष बल दिया गया है। कतिपय प्रवचन दशवैकालिक सूत्र, जम्बू स्वामी की त्याग-गाथा जैसे विषयों पर केन्द्रित हैं तो अधिकांश प्रवचनों में दोष-परिमार्जन, ज्ञान और क्रिया , परिग्रह-निवारण, स्वाध्याय, धर्म-साधना, त्याग, धर्मशिक्षा, ममत्व विजय, बन्ध-मुक्ति की साधना जैसे विषयों की चर्चा है। कुछ प्रवचन गजेन्द्र व्याख्यान माला के पाँचवें भाग और इस भाग में समान भी हैं। प्रवचनों का सम्पादन डॉ. हरिराम जी आचार्य, जयपुर ने किया है। सभी प्रवचन प्रवाहमय एवं अन्तस् की गहराई से उद्भूत और स्वाभाविक हैं। संत का अनुभव भी इन प्रवचनों में प्रकट हुआ है तो व्यक्ति और समाज की स्थिति के प्रति पीड़ा भी अभिव्यक्त हुई है। आचार्य श्री ने सत्संग और स्वाध्याय को जीवन का दीपक बताया है तथा बालक, युवा, महिला, पुरुष आदि सभी के योग्य चिन्तन प्रदान किया है। 'जहाँ ममत्व नहीं, वहाँ दुःख नहीं', नामक प्रवचन में स्पष्ट कहा है कि ममता के विसर्जन से ही दुःख मिट सकता है। वे कहते हैं जहाँ ममत्व है वहाँ दुःख है। यदि ममत्व नहीं है तो हमें उस वस्तु का विनाश होने पर दुःख भी नहीं होता है। साधना के लिए सुकोमलता का त्याग आवश्यक है। महा-आरम्भ से पैदा होने वाले चमकीले और कोमल वस्त्र पहनना तथा आरामतलबी बनना नहीं छोड़ेंगे तो आरम्भ और परिग्रह कम नहीं हो सकेंगे।
आचार्य श्री ने आहार-शुद्धि पर बल देते हुए कहा है कि आज ताजा खाने की एवं घर में खाने की रीति बन्द हो रही है, आज के लोग बाहर की चाट और भोजन में अधिक रुचि लेने लगे हैं। यह आहार बिगड़ने का एक रूप है। आहार अशुद्ध होने पर विचार और आचार शुद्ध रहना कैसे सम्भव है। प्राचीन काल में "ऊना खाओ, ऊन्डा सोओ, पाव कोस मैदान में जाओ” कहावत प्रचलित थी। एक अन्य प्रवचन में ममत्व-विजय का उपाय बताते हुए आचार्य श्री ने कहा है -“ज्ञानी कहते हैं कि मानव दूसरों को देने के एक मिनट बाद ही उस वस्तु को परायी समझता है, तो देने से पहले ही क्यों नहीं समझता कि यह वस्तु मेरी नहीं है।” सभी प्रवचन अपने आप में महत्त्वपूर्ण
(१३) गजेन्द्र व्याख्यान माला - सातवाँ भाग
पर्युषण, ज्ञान, अज्ञान और विज्ञान, चारित्र, तप, संयम, दान, दया, सामायिक, साधर्मी वात्सल्य, दु:खमुक्ति आदि अनेक विषयों पर इस भाग में २७ प्रवचन उपलब्ध हैं। इसका प्रथम प्रकाशन चेन्नई के सेठ श्री मोहनमल जी दुग्गड की स्मृति में दुग्गड प्रतिष्ठान के आर्थिक सहयोग से सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर के द्वारा किया गया था। विक्रम संवत् २०३७ सन् १९८० में आचार्य श्री का चातुर्मास मद्रास नगर में हुआ था। वहाँ फरमाए गए प्रवचनों की उपयोगिता को देखकर यह भाग प्रकाशित हुआ है।
इसमें कुल २७ प्रवचन हैं। कतिपय प्रवचनों के शीर्षक इस प्रकार हैं –(१) ज्ञान, अज्ञान और विज्ञान (२) | चारित्र की महत्ता (३) संयम : भव-भ्रमण नाशक (४) सुख का साधन : दान (५) सामायिक : समत्व की साधना (६)| जीवन की सार्थकता : धर्मकरणी (९) शान्ति का मार्ग: आचार शुद्धि एवं विचार शुद्धि (८) मन का माधुर्य : साधर्मि -