Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं मरुधर पट्टावली ८. मेवाड़ पट्टावली ९. दरियापुरी सम्प्रदाय पट्टावली १०. कोटा परम्परा की पट्टावली।
ग्रन्थ को अधिकाधिक उपयोगी और बोधगम्य बनाने की दृष्टि से प्रत्येक पट्टावली के पूर्व संक्षेप में उसका सारतत्त्व दे दिया गया है। लोंकागच्छ परम्परा की प्रतिनिधि रचना 'संस्कृत पट्टावली प्रबन्ध' का हिन्दी अनुवाद पण्डित शशिकान्तजी झा ने तथा स्थानकवासी परम्परा की प्रतिनिधि रचना विनयचन्द्र जी कृत पट्टावली का सरलार्थ पण्डित मुनि श्री लक्ष्मीचन्द जी महाराज ने किया है। ये दोनों पट्टावलियाँ ही आकार में बड़ी हैं, शेष पट्टावलियाँ लघुकाय हैं। ___इतिहास के विद्वानों और शोधार्थियों के लिए ‘पट्टावली प्रबन्ध संग्रह', पुस्तक महत्त्वपूर्ण है। इसमें कुछ पट्टावलियाँ संस्कृत में हैं तो कुछ राजस्थानी या स्थानीय भाषाओं में । कुछ पद्य में हैं तो कुछ गद्य में । पुस्तक का सम्पादन डा. नरेन्द्र जी भानावत ने किया है। प्रस्तावना श्री देवेन्द्र मुनि जी के द्वारा एवं भूमिका प्रसिद्ध विद्वान् श्री अगरचन्द जी नाहटा के द्वारा लिखी गई है। प्राक्कथन में संकलित पट्टावलियों का सारगर्भित अन्तरंग परिचय देते हुए पट्टावलियों का महत्त्व उद्घाटित किया गया है।
___ प्रकाशन 'जैन इतिहास निर्माण समिति' जयपुर के द्वारा किया गया है। (२) जैन आचार्य चरितावली
इस पुस्तक में भगवान् महावीर से लेकर आधुनिक युग के प्रमुख जैनाचार्यों की परम्परा और उनकी विशेषताओं को पद्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इतिहास बोध की दृष्टि से यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण है। इतिहास का विषय प्राय: नीरस होता है, किन्तु आचार्यप्रवर ने पद्यबद्ध रूप में जैनाचार्यों के चरित्र को गूंथकर जन सामान्य के लिए सुग्राह्य एवं रुचिकर बना दिया है। इसमें संक्षेप में जैन परम्परा, संस्कृति एवं धर्माचार्यों सम्बन्धी आवश्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पद्यबद्ध होने से रुचिशील भक्त श्रावक इसे कण्ठस्थ भी कर सकते हैं। विषय
और भाव की स्पष्टता के लिए प्रत्येक पद्य का अर्थ भी साथ में दिया गया है। इतिहास-जिज्ञासु इस ग्रन्थ का लाभ उठा सकें, इस दृष्टि से अन्त के परिशिष्टों में लोंकागच्छ की परम्परा और धर्मोद्धारक श्री जीवराज जी म.सा, श्री धर्मसिंह जी म, श्री लव जी ऋषि, श्री हरजी ऋषि, श्री धर्मदास जी महाराज आदि से सम्बन्धित विभिन्न शाखाओं का विवरण भी दिया गया है। विद्वानों और शोधार्थियों की सुविधा के लिए शब्दानुक्रमणिका दी गई है जिसके द्वारा
आचार्य, मुनि, राजा, श्रावक, ग्राम, नगर, प्रान्त, गण-गच्छ, शाखा, वंश, सूत्र, ग्रन्थ आदि के सम्बन्ध में सुगमता व | शीघ्रता से जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ग्रन्थ के लेखन में धर्मसागरीय तपागच्छ पट्टावली, हस्तलिखित स्थानकवासी पट्टावली, प्रभुवीर पट्टावली और पट्टावली-समुच्चय आदि ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। प्राचीन हस्तलिखित पत्रों एवं आचार्य श्री की अपनी धारणा का भी इसमें सदुपयोग हुआ है। चरितावली का सर्वप्रथम प्रकाशन सन् १९७१ में जैन इतिहास समिति जयपुर के द्वारा श्री गजसिंह जी राठौड़ के सम्पादन में किया गया था। द्वितीय संस्करण सन् १९९८ में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल जयपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है। द्वितीय संस्करण में आचार्यों की परम्परा के परिशिष्ट में अधुनायावत् हुए आचार्यों के नाम भी जोड़ दिए गए हैं। (३) जैन धर्म का मौलिक इतिहास
आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. ने जैन धर्म के इतिहास को प्रस्तुत करने का महान कार्य किया है। जैन धर्म यूँ तो अनादिकालीन माना जाता है, किन्तु अवसर्पिणी काल के तीसरे आरक में हुए आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से