Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
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(१४) सामायिक-गीत
(तर्ज-नवीन रसिया) कर लो सामायिक रो साधन, जीवन उज्ज्वल होवेला ॥टेर ॥ तन का मैल हटाने खातिर, नित प्रति न्हावेला । मन पर मल चहुं ओर जमा है, कैसे धोवेला ॥१॥कर लो॥ बाल्यकाल में जीवन देखो, दोष न पावेला । मोह-माया का संग कियां से, दाग लगावेला ॥२॥कर लो। ज्ञान गंग ने क्रिया धुलाई, जो कोई धोवेला ।। काम, क्रोध, मद, लोभ, दाग को दूर हटावेला ॥३॥कर लो ॥ सत्संगत और शान्त स्थान में, दोष बचावेला ।। फिर सामायिक साधन करने, शुद्धि मिलावेला ॥४॥कर लो॥ दोय घड़ी निज-रूप रमण कर, जग बिसरावेला । धर्म-ध्यान में लीन होय, चेतन सुख पावेला ॥५॥कर लो। सामायिक से जीवन सुधरे, जो अपनावेला ।। निज सुधार से देश, जाति, सुधरी हो जावेला ॥६॥कर लो॥ गिरत-गिरत प्रतिदिन रस्सी भी, शिला घिसावेला । करत-करत अभ्यास मोह को, जोर मिटावेला ॥७॥कर लो ॥
(१५)
सामायिक-सन्देश (तर्ज-तेरा रूप अनुपम गिरधारी, दर्शन की छटा निराली है) जीवन उन्नत करना चाहो, तो सामायिक साधन कर लो । आकुलता से बचना चाहो, तो—सामायिक साधन कर लो ॥टेर ॥ तन-धन परिजन सब सुपने है, नश्वर जग में नहीं अपने हैं । अविनाशी सद्गुण पाना हो, तो सामायिक साधन कर लो ॥१॥ चेतन निज घर को भूल रहा, पर घर माया में झूल रहा । सचिद् आनंद को पाना हो, तो...सामायिक साधन कर लो ॥२॥ विषयों में निज गुण मत भूलो, अब काम क्रोध में मत झूलो । समता के सर में नहाना हो, तो..सामायिक साधन कर लो ॥३॥