Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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चतुर्थ खण्ड : कृतित्व खण्ड
७६५
घर-घर में स्वाध्याय बढ़ाओ, तज कर आरत ध्यान । जन-जन की आचार शुद्धि हो, बना रहे शुभ ध्यान ॥५॥ मातृ-दिवस में जोड़ बनाई (या) धर आदीश्वर ध्यान । दो हजार अष्टादश के दिन ‘गजमुनि' करता गान ॥६॥
(११)
आह्वान
(तर्ज-विजयी विश्व तिरंगा प्यारा) ऐ वीरों ! निद्रा दूर करो, तन-धन दे जीवन सफल करो । अज्ञान अंधेरा दूर करो, जग में स्वाध्याय प्रकाश करो ॥टेर ॥ घर-घर में अलख जगा देना, स्वाध्याय मशाल जला देना । अब जीवन में संकल्प करो, तन-धन दे जीवन सफल करो ॥१॥ चम्पा का पालित स्वाध्यायी, दरिया तट का था व्यवसायी । है मूल सूत्र में विस्तारो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥२॥ स्वाध्याय से मन-मल धुलता है, हिंसा झूठ न मन घुलताहै ।। सुविचार से शुभ आचार करो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥३॥ अज्ञान से दुःख दूना होता, अज्ञानी धीरज खो देता । सद्ज्ञान से दुःख को दूर करो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥४॥ ज्ञानी को दुःख नहीं होता है, ज्ञानी धीरज नहीं खोता है । स्वाध्याय से ज्ञान भण्डार भरो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥५॥ है सती जयन्ती सुखदायी, जिनराज ने महिमा बतलाई । भगवती सूत्र में विस्तारो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥६॥ वीरों का एक ही नारा हो, जन-जन स्वाध्याय प्रसारा हो । सब जन में यही विचार भरो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥७॥ श्रमणों ! अब महिमा बतलाओ, बिन ज्ञान, क्रिया सूनी गाओ ।। 'गजमुनि' सद्ज्ञान का प्रेम भरो, तन धन दे जीवन सफल करो ॥८॥
(१२) जीवन उत्थान गीत
(तर्ज- करने भारत का कल्याण-पधारे वीर..) करने जीवन का उत्थान, करो नित समता रस का पान ॥टेर ।
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