Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं जिन शासन की रक्षा करना, स्वाध्याय प्रेम जन मन भरना । 'गजमुनि' ने अनुभव कर देखा, स्वाध्याय करो स्वाध्याय करो ॥७॥
स्वाध्याय-महिमा (तर्ज- ऐ वीरों उठो वीर के तत्त्वों को अपनावो) हम करके नित स्वाध्याय, ज्ञान की ज्योति जगायेंगे । अज्ञान हृदय को धो करके, उज्ज्वल हो जायेंगे ॥१॥ श्री वीर प्रभु के शासन को, जग में चमकायेंगे । सत्य, अहिंसा के बल को, जन-जन समझायेंगे ॥२॥ घर-घर में ज्ञान फैलायेंगे, जीवादिक समझेंगे ।। कर पुण्य-पाप का ज्ञान,सुगति पथ को अपनायेंगे ॥३॥ श्रेणिक ने शासन सेवा की, जिन पद को पाएंगे । हम भी शासन की सेवा में, जीवन दे जायेंगे ॥४॥ श्री लोंकाशाह सम शास्त्र वांच कर ज्ञान बढ़ायेंगे । शासन सेवी श्री धर्मदास मुनि, के गुण गायेंगे ॥५॥ देकर प्राणों को शासन की, हम शान बढ़ायेंगे । सब प्रान्तों में स्वाध्यायी जन, अब फिर दिखलायेंगे ॥६॥
(१०) जिनवाणी का माहात्म्य (तर्ज- जावो - जावो ऐ मेरे साधु, रहो गुरु के संग) कर लो कर लो, अय प्यारे सजनों, जिनवाणी का ज्ञान ॥टेर ॥ जिसके पढ़ने से मति निर्मल, जगे त्याग तप भाव । क्षमा दया मृदु भाव विश्व में, फैल करे कल्याण ॥१॥ मिथ्या-रीति अनीति घटे जग, पावे सच्चा भान । देव-गुरु के भक्त बने सब, हट जावे अज्ञान। ॥२॥ पाप-पुण्य का भेद समझकर, विधियुत देवो दान ।। कर्मबंध का मार्ग घटाकर, कर लेओ उत्थान ॥३॥ गुरुवाणी में रमने वाला, पावे निज गुण भान ।। राय प्रदेशी क्षमाशील बन, पाया देव विमान ॥४॥