Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं सामायिक की महिमा भारी, यह है सबको साताकारी । इसमें पापों का पचखान, करो नहीं आत्म गुणों की हान ॥१॥ नित प्रति हिंसादिक जो करते, त्याग को मान कठिन जो डरते । घड़ी दो कर अभ्यास महान, बनाते जीवन को बलवान ॥२॥ चोर केशरिया ने ली धार, हटाये मन के सकल विकार । मिलाया उसने केवलज्ञान, किया भूपति ने भी सम्मान ॥३॥ मन की सकल व्यथा मिट जाती, स्वानुभव सुख सरिता बह जाती। होता उदय ज्ञान का भान, मिलाते सहज शान्ति असमान ॥४॥ जो भी गये मोक्ष में जीव, सबों ने दी समता की नींव । उन्हीं का होता है निर्वाण, यही है भगवत् का फरमान ॥५॥ कहता 'गजमुनि' बारम्बार, कर लो प्रामाणिक व्यवहार । हटाओ मोह और अज्ञान, मिले फिर अमित सुखों की खान ॥६॥
(१३) सामायिक का स्वरूप
(तर्ज-अगर जिनराज के चरणों में) अगर जीवन बनाना है, तो सामायिक तू करता जा । हटाकर विषमता मन की, साम्यरस पान करता जा ॥ध्रुव पद ॥ मिले धन-सम्पदा अथवा, कभी विपदा भी आ जावे । हर्ष और शोक से बचकर, सदा एक रंग रखता जा ॥१॥ विजय करने विकारों को, मनोबल को बढ़ाता जा । हर्ष से चित्त का साधन, निरन्तर तूं बनाता जा ॥२॥ अठारह पाप का त्यागन, ज्ञान में मन रमाता जा । अचल आसन व मित भाषण, शान्त भावों में रमता जा ॥३॥ पड़े अज्ञान के बन्धन, सदा मन को घुमाता है । ज्ञान की ज्योति में आकर, अमित आनन्द बढ़ाता जा ॥४॥ पड़ा है कर्म का बंधन, पराक्रम तूं बढ़ाता जा ।। हटा आलस्य विकथा को, अमित आनंद पाता जा ॥५॥ कहे 'गजमुनि' भरोसा कर, परम रस को मिलाता जा । भटक मत अन्य के दर पर, स्वयं में शान्ति लेता जा ॥६॥