Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
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काव्य-साधना
(आचार्य श्री की प्रमुख चयनित रचनाएँ)
१
श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रार्थना ___(तर्ज- शिव सुख पाना हो तो प्यारे त्यागी बनो) ॐ शान्ति शान्ति शान्ति, सब मिल शान्ति कहो ॥टेर ॥ विश्वसेन अचिरा के नंदन, सुमिरन है सब दुःख निकंदन । अहो रात्रि वंदन हो, सब मिल शान्ति कहो ॥१॥ॐ॥ भीतर शान्ति बाहिर शान्ति, तुझमें शान्ति मुझमें शान्ति । सबमें शान्ति बसाओ, सब मिल शान्ति कहो ॥२॥ॐ॥ विषय-कषाय को दूर निवारो, काम-क्रोध से करो किनारो । शान्ति साधना यों हो, सब मिल शान्ति कहो ॥३॥ॐ ॥ शान्ति नाम जो जपते भाई, मन विशुद्ध हिय धीरज लाई । अतुल शान्ति उन्हें हो, सब मिल शान्ति कहो ॥४॥ॐ॥ प्रातः समय जो धर्मस्थान में, शान्ति पाठ करते मृदु स्वर में । उनको दुःख नहीं हो, सब मिल शान्ति कहो ॥५॥ॐ॥ शान्ति प्रभु-सम समदर्शी हो, करे विश्व हित जो शक्ति हो । 'गजमुनि' सदा विजय हो, सब मिल शान्ति कहो ॥६॥ॐ॥
सब जग एक शिरोमणि तुम हो
(तर्ज- बालो पांखा बाहिर आयो माता बेन सुनावे यूँ सतगुरु ने यह बोध बताया, नहिं काया नहिं माया तुम हो ॥ सोच समझ चहुँ ओर निहारो, कौन तुम्हारा अरु को तुम हो ॥१॥ हाथ-पैर नहीं, शिर भी न तुम हो, गर्दन, भुजा, उदर नहीं तुम हो । नेत्रादिक इन्द्रिय नहीं तुम हो, पर सबके संचालक तुम हो ॥२॥ अस्थि, मांस, मज्जा नहीं तुम हो, रक्त, वीर्य, भेजा नहीं तुम हो ।